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- -अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस पर विशेष लेखललित चतुर्वेदी, उप संचालकअंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस अक्षरों की अलख जगाने का दिन है, अक्षर ज्ञान की महत्ता बताने का दिन है। यह अक्षर ज्ञान के प्रकाश से समाज में सुख और समृद्धि फैलाने के संकल्प लेने का दिन है। अक्षर ज्ञान वह पहला द्वार है, जहां से ज्ञान के अनंत रास्ते खुलते हैं। साक्षरता से शिक्षा और शिक्षा से विकास का सीधा संबंध है।साक्षरता वह शक्ति है, जिससे हम बड़ी से बड़ी चुनौतियों का सामना कर सकते हैं। शिक्षा हमारे जीवन में बदलाव लाती है। शिक्षा की गुणवत्ता के लिए यह आवश्यक है कि शिक्षकों के साथ पालक भी बच्चों की शिक्षा में योगदान दें। अशिक्षित पालकों को शिक्षित करना अत्यंत आवश्यक है, ताकि वे अपने परिवार के सदस्यों को शिक्षित कर सकें। साक्षरता के लिए व्यक्तिगत रूचि और सामूहिक प्रयासों की बड़ी आवश्यकता है। व्यापक जनभागीदारी से यह लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। मानव के सम्पूर्ण विकास के लिए साक्षरता बहुत महत्वपूर्ण है। यह समग्र रूप से सशक्त समाज के निर्माण के लिए आवश्यक साधन है। साक्षर समाज समानता, शांति और विकास का मूल आधार है। इसे विश्व स्तर पर मान्यता दी गई है।प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा वर्ष 2020 में विधानसभा में ‘पढ़ना लिखना अभियान’ की घोषणा की गई। इस कार्यक्रम में 15 वर्ष से अधिक उम्र समूह के असाक्षरों को बुनियादी साक्षरता एवं अंक ज्ञान प्रदान करने के लिए निर्धारित लक्ष्य ढाई लाख में से 2 लाख 22 हजार 477 शिक्षार्थियों को साक्षर किया गया। 25 हजार स्वयंसेवी शिक्षकों को मुख्यमंत्री और स्कूल शिक्षा मंत्री द्वारा प्रमाण पत्र प्रदान किया गया। प्रदेश में कोरोना काल के दौरान असाक्षरों को निर्धारित समयावधि एवं आवश्यक पठन-पाठन कराकर शिक्षार्थियों के आंकलन हेतु महापरीक्षा अभियान का आयोजन किया गया। चिन्हांकित स्वयंसेवी शिक्षकों को प्रशिक्षण उपरांत उनके माध्यम से विधिवत मोहल्ला साक्षरता केन्द्रों का संचालन किया गया। इसके लिए सर्वप्रथम जिलों में सर्वे के माध्यम से ढाई लाख असाक्षर और उन्हें पढ़ाने वाले 25 हजार स्वयंसेवी शिक्षकों का चिन्हांकन किया गया। पढ़ना-लिखना अभियान के अंतर्गत 15 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को बुनियादी शिक्षा प्रदान करने लिए वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान 28 जिलों की 2 हजार 925 ग्राम पंचायतों और 121 नगरीय निकायों में इसका क्रियान्वयन किया गया।वर्ष 2019-20 में मुख्यमंत्री शहरी कार्यात्मक साक्षरता ‘गढ़बो डिजिटल छत्तीसगढ़’ कार्यक्रम के तहत शहरी क्षेत्र के 14 से 60 वर्ष आयु समूह के डिजिटल (ई-शिक्षा) से वंचित असाक्षर व्यक्तियों को दक्ष बनाते हुए छत्तीसगढ़ राज्य के 168 नगरीय निकायों में 55 ई-साक्षरता केन्द्र प्रारंभ किया गया था। इस कार्यक्रम के अंतर्गत लगभग 10 हजार शिक्षार्थियों को डिजिटल साक्षर बनाया गया।गौरतलब है कि यूनेस्को ने सन् 1966 में 8 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया था। इस वर्ष का अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस दुनिया भर में ’संक्रमण में दुनिया के लिए साक्षरता को बढ़ावा देना टिकाऊ और शांतिपूर्ण समाजों की नींव का निर्माण’ विषय के तहत मनाया जाएगा।साक्षरता कार्यक्रम का उद्देश्य असाक्षरों को साक्षर कर जीवन की मुख्य धारा से जोड़ना है। शिक्षा से वंचित 15 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के असाक्षरों को बुनियादी साक्षरता एवं अंक ज्ञान कराने के लिए नव भारत साक्षरता कार्यक्रम प्रारंभ किया गया है। बुनियादी साक्षरता प्राप्त करना, शिक्षा और जीविकोपार्जन का अवसर प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार है। इस कार्य के लिए नवाचारी उपायों, स्वैच्छिक कार्यकर्ताओं पर आधारित साक्षरता कार्यक्रम के परिणाम स्वरूप न सिर्फ समुदाय के वयस्कजनों की साक्षरता में वृद्धि होती है, बल्कि समुदाय में भी सभी बच्चों की शिक्षा के लिए मांग बढ़ती है।राष्ट्रीय शिक्षा नीति में प्रौढ़ शिक्षा एवं जीवन पर्यन्त शिक्षा को प्राथमिकता प्रदान की गई है। देश में वर्ष 2022-27 के लिए न्यू इंडिया लिट्रेसी प्रोग्राम नामक एक नई योजना को मंजूरी दी गई है। अब देश में “प्रौढ़ शिक्षा“ शब्द को “सभी के लिए शिक्षा’’ के रूप में बदल दिया है। छत्तीसगढ़ में इस वर्ष से नवभारत साक्षर कार्यक्रम प्रारंभ किया जा रहा है, जो पांच वर्षों तक संचालित किया जाएगा। इसमें प्रदेश के एक चौथाई शेष बचे असाक्षरों को साक्षर किए जाने का लक्ष्य है। नव भारत साक्षरता कार्यक्रम के अंतर्गत प्रथम वर्ष प्रदेश में 5 लाख असाक्षरों को साक्षर कर उन्हें बुनियादी साक्षरता और अंक ज्ञान प्रदान किया जाएगा। इसके अलावा महत्वपूर्ण जीवन कौशल जैसे - डिजिटल साक्षरता, वित्तीय साक्षरता, विधिक साक्षरता, चुनावी साक्षरता, व्यावसायिक कौशल विकास, बुनियादी शिक्षा, जीवन पर्यन्त शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता आदि क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा।राज्य में इस वर्ष 01 से 7 सितम्बर तक साक्षरता सप्ताह का आयोजन किया गया। इस सप्ताह में सभी वर्गों के लिए विभिन्न प्रतियोगिताओं में लोगों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। साक्षरता सप्ताह के दौरान छत्तीसगढ़ी लोक गीत, लोक परंपरा एवं पारंपरिक खेलों के प्रति लोगों में अच्छा उत्साह दिखाई दिया।
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मनोज सिंह, सहायक संचालक
रायपुर। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की परिकल्पना अब साकार हो रही है। प्रदेश की स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट अंग्रेजी और हिंदी माध्यम स्कूल से राज्य के लाखों बेटे, बेटियों की जिन्दगी संवर रही है। इसका लाभ सुदूर वनांचल हो या मैदानी इलाका, प्रत्येक जगह देखने को मिल रहा है और आधुनिक शिक्षा की उजली तस्वीर देखने को मिल रही है। प्रदेश में वर्तमान सत्र 2023-24 में 377 अंग्रेजी माध्यम उत्कृष्ट विद्यालय तथा 349 हिंदी माध्यम विद्यालय कुल 726 स्कूल संचालित किए जा रहे है। स्कूल में 1 लाख 70 हजार बच्चे अंग्रेजी माध्यम और 2 लाख 20 हजार बच्चे हिन्दी माध्यम में पढ़ाई कर रहे है। राज्य सरकार की पहल से आज सुदूर अंचल के बच्चों को भी अंग्रेजी माध्यम स्कूल में खेलने के लिए बढ़िया मैदान, आधुनिक प्रयोगशाला, पुस्तकालय, जैसी सुविधाओं का लाभ मिल रहा है।
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के निर्देशन में शुरू की गयी स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट शासकीय अंग्रेजी माध्यम स्कूलों ने पालकों के आर्थिक बोझ को कम कर दिया है और पालकों के मन की चिन्ताएं दूर हो गई हैं। आज अंग्रेजी माध्यम स्कूल मैं पढ़ाई करके बच्चे अपनी प्रतिभा को बेहतर रूप में निखार रहे हैं।
योजना ने आर्थिक रूप से कमजोर तबकों के बच्चों का आत्मविश्वास और स्वाभिमान बढ़ाया है। अंग्रेजी विद्यालयों में अध्ययनरत विद्यार्थीयों ने बोर्ड परीक्षाओं में मेरिट में अपना स्थान बनाया है। इन विद्यालयों में स्मार्ट क्लास, सुंदर भवन मार्डन पुस्तकालय, खेल मैदान, उत्कृष्ट प्रयोगशाला लैब आदि का बेहतर संचालन किया जा रहा है। जिससे प्रदेश में शासकीय विद्यालयों के प्रति बच्चों और पालकों के मन में लोकप्रियता बढ़ी है। स्वामी आत्मानंद विद्यालयों के संचालन से निर्धन गरीब वर्ग के बच्चों को उच्च गुणवत्ता के अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा प्राप्त होने से पालकों में बहुत उत्साह है। जिसके कारण सभी जगह से और भी आत्मानंद स्कूल खोले जाने की मांग लगातार हो रही है। छत्तीसगढ़ सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में निजी और सरकारी शालाओं के बीच के अंतर को कम करने और बच्चों को बराबरी के अवसर देने के लिए यह योजना शुरू की है। -
’’शिक्षक दिवस पर विशेष लेख’’
ललित चतुर्वेदी, उप संचालकरायपुर / शिक्षा मानव के सर्वांगीण विकास का एक सशक्त माध्यम है। शिक्षा विद्यार्थियों के लिए सिर्फ ज्ञानार्जन का ही साधन नही अपितु यह आर्ट ऑफ लिविंग अर्थात जीने की कला सिखाती है। आज के प्रतिस्पर्धी युग में बच्चों के सर्वागीण विकास पर बाल्य काल पर ही ध्यान देना होगा तभी बेहतर उपलब्धियां प्राप्त कर सकेगी। शिक्षकों को प्राथमिकता से बच्चों के नैतिक शिक्षा पर बल देना चाहिए। शिक्षक अपने विद्यार्थियों के लिए रोल मॉडल होता है। अतः बेहतर शिक्षक निश्चित तौर पर सुसंस्कारित बेहतर नायक तैयार करने में महती भूमिका निभाते हैं।शिक्षकों पर देश के भावी कर्णधारों के जीवन को गढ़ने और उनके चरित्र निर्माण करने का महत्वपूर्ण दायित्व होता है। शिक्षा ही ऐसा माध्यम है जिससे हम प्रगति के पथ पर निरंतर आगे बढ़ सकते हैं। देश के राष्ट्रपति भारतरत्न डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। जब वे भारत के राष्ट्रपति थे तब कुछ पूर्व छात्रों और मित्रों ने उनसे अपना जन्मदिन मनाने का आग्रह किया। उन्होंने विनम्रतापूर्वक कहा कि यह बेहतर होगा कि आप इस दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाए। इसके बाद 5 सितम्बर को हमारे देश में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि ‘‘जिस शिक्षा से हम अपना जीवन निर्माण कर सके, मनुष्य बन सकेें, चरित्र का गठन कर सकें और विचारों का सामंजस्य कर सकें, वही वास्तव में शिक्षा कहलाने योग्य है‘‘। शिक्षक, शिक्षा और ज्ञान के जरिये बेहतर इंसान तैयार करते है, जो राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देते है। हमारे देश की संस्कृति और संस्कार शिक्षकों को विशेष सम्मान और स्थान देती है। गुरू शिष्य के जीवन को बदलकर सार्थक बना देता है।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की सरकार ने शिक्षा व्यवस्था और शिक्षकों की स्थिति में सुधार के लिए शिक्षकों और छात्र-छात्राओं से किए गए वादे को न केवल निभाया है, बल्कि अमलीजामा पहनाना भी शुरू कर दिया है। छत्तीसगढ़ राज्य में शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत पहली बार बारहवीं कक्षा तक के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा का अधिकार प्रदान किया है। छत्तीसगढ़ में निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था के साथ ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के अनुक्रम में मातृभाषा को महत्व दिया जा रहा है।व्यक्ति अपनी मातृभाषा में शिक्षा को अधिक रूचि तथा सहजता के साथ ग्रहण करता है। अंग्रेजी एक वैश्विक भाषा है जिस कारण उसके शिक्षक को महत्व दिया जाना चाहिए। छत्तीसगढ़ की जनता की भावनाओं एवं अंग्रेजी भाषा की वैश्विक मान्यता को देखते हुए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने राज्य के बच्चों के हित में स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम विद्यालय प्रारंभ करने का निर्णय लिया। छत्तीसगढ़ सरकार चाहती है कि विश्व स्तरीय प्रतियोगिताओं में छत्तीसगढ़ के बच्चे भाग ले सके तथा सफलता प्राप्त कर सकें। प्रदेश सरकार द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के स्थायी उपाय किए गए हैं।राज्य गठन के बाद पहली बार शिक्षकों की सीधी भर्ती शुरू की गई। जिसके तहत पहले चरण में 14 हजार 580 पदों पर सीधी भर्ती हेतु विज्ञापन जारी किया गया था। इनमें से 10 हजार 834 अभ्यर्थियों को नियुक्ति प्रदान की जा चुकी है। वर्तमान में बस्तर एवं सरगुजा संभाग के लिए 12 हजार 489 व्याख्याता, शिक्षक एवं सहायक शिक्षक के पदों पर सीधी भर्ती की प्रक्रिया जारी है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा 12 अगस्त 2023 को मुख्यमंत्री निवास में 232 अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र प्रदान किया गया। इसी प्रकार शिक्षकों के विज्ञापित 5 हजार 772 पदों में से 3 हजार 449 पदों के लिए अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र जारी किया जा रहा है। इनमें से 2 हजार अभ्यर्थियों को 02 सितम्बर को आयोजित राजीव युवा मितान सम्मेलन में नियुक्ति प्रदान किया गया।स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट विद्यालय योजना से स्कूल शिक्षा के क्षेत्र में एक नयी क्रांति आई है। विगत वर्ष 2020-21 में 51 स्कूलों से यह योजना प्रारंभ की गई थी, जो अब बढ़कर 727 स्कूलों तक पहुंच गई है। इनमें से 351 स्कूल हिन्दी माध्यम के है और 376 स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा दी जा रही है। नवा रायपुर में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बोर्डिंग स्कूल स्थापित करने की प्रक्रिया भी प्रारंभ कर दी गई है।प्रदेश में लम्बे समय से राष्ट्र स्तर का अकादमिक एवं प्रशासनिक प्रशिक्षण की आवश्यकता महसूस की जा रही थी, ताकि राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा के क्षेत्र में चल रहे अनुसंधान एवं प्रशिक्षण का लाभ शिक्षक उठा सके। राज्य सरकार ने इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए आगामी शिक्षा सत्र के लिए नवा रायपुर में राष्ट्रीय शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान के लिए 1 करोड़ रूपए का प्रावधान बजट में किया है।शिक्षकों को प्रोत्साहित करने एवं उनके कार्यक्षमता को प्रमाणित करने के उद्देश्य से शिक्षकों को राज्यपाल पुरस्कार एवं मुख्यमंत्री गौरव अलंकरण पुरस्कार प्रदान किया जाता है। शिक्षक दिवस के अवसर पर राज्य स्तरीय शिक्षक सम्मान समारोह में प्रदेश की 4 महान साहित्यिक विभूतियों के नाम से चार शिक्षकों को डॉ. पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी स्मृति पुरस्कार, डॉ. मुकुटधर पाण्डेय स्मृति पुरस्कार, डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र स्मृति पुरस्कार, श्री गजानंद माधव मुक्तिबोध स्मृति पुरस्कार प्रदान किया जाता है। शिक्षक दिवस समारोह में प्रदेश के महान विभूतियों की स्मृति में दिए जाने वाले पुरस्कार से सम्मानित होने वाले प्रत्येक शिक्षक को 50-50 हजार रूपए एवं प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है। इसके साथ ही समारोह में राज्य शिक्षक पुरस्कार के लिए चयनित शिक्षकों में से प्रत्येक शिक्षक को 21-21 हजार रूपए की राशि और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है।प्रदेश में मातृ भाषा शिक्षण के संदर्भ में कक्षा पहली एवं दूसरी में बच्चों की मातृभाषा में स्पोर्टिक मटेरियल एवं कक्षा तीसरी से पांचवी तक की भाषा (हिन्दी) के पाठ्यपुस्तक में 25 प्रतिशत स्थानीय भाषा छत्तीसगढ़ी, गोंड़ी, हल्बी, सरगुजिहा व कुडुख में विषयवस्तु का समावेश किया गया है। कक्षा पहली और दूसरी में हिन्दी की पढ़ाई को बच्चों की मातृभाषा से जोड़ने के लिए हिन्दी के शब्दों का 06 क्षेत्रीय भाषाओं में पर्यायवाची शब्द दिये गये हैं। प्रदेश के 19 जिलों में 12 भाषाओं पर बहुभाषा शिक्षण का कार्य किया जा रहा है।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने मृतक शासकीय कर्मचारियों के परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए अनुकम्पा नियुक्ति के लिए 10 प्रतिशत की सीमा को शिथिल किया। स्कूल शिक्षा विभाग ने 1722 लोगों को सहायक शिक्षक, सहायक ग्रेड और भृत्य के पदों पर अनुकम्पा नियुक्ति दी गई।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ में शिक्षक पात्रता परीक्षा प्रमाण पत्र की वैधता की 7 वर्ष की अवधि को विलोपित करते हुए, इसे आजीवन कर दिया है। स्कूल शिक्षा विभाग में शिक्षाकर्मियों का पंचायत शिक्षक और शिक्षिका के रूप में संविलियन किया गया। सरकार ने अपने घोषणा पत्र के अनुसार दो वर्ष की सेवा पूर्ण करने वाले 35 हजार से अधिक शिक्षक संवर्ग (पंचायत एवं नगरीय निकाय) का भी शिक्षा विभाग ने संविलियन कर दिया है। राज्य के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नक्सल गतिविधियों से ध्वस्त हुए शाला भवनों के स्थान पर 60 पोटा केबिन के माध्यम से 27 हजार 762 बच्चों के शिक्षा की व्यवस्था की गई है। स्कूल शिक्षा विभाग नित नये नवाचार पर अपने विद्यार्थियों को नये अवसर प्रदान कर रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न अवार्ड छत्तीसगढ़ को प्राप्त हुए है। इनमें बच्चों के आकलन एवं अभ्यास कार्य को सरल बनाने एवं मूल्यांकन संबंधी विसंगतियों को दूर करने के लिए राष्ट्रीय सूचना केन्द्र (एनआईसी) के सहयोग से टेली प्रेक्टीज नामक कार्यक्रम लागू किया गया इसे कम्प्यूटर सोसायटी आफ इंडिया स्पेशल इंट्रेस्ट ग्रुप द्वारा ई-गर्वनेस पुरस्कार प्रदान किया गया।एनआईसी और शिक्षा विभाग के संयुक्त प्रयास द्वारा विकसित निकलर मोबाईल एप की नवाचारी मूल्यांकन संसाधन के अंतर्गत एम बिल्लिंथ अवार्ड प्राप्त हुआ। इसकी सहायता से एक मोबाईल के द्वारा सभी बच्चों का मौखिक मूल्यांकन, वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के आधार पर कर सकता है। निकलर एप को कम्प्यूटर सोसायटी आफ इंडिया द्वारा भी पुरस्कृत किया गया है। इसी कड़ी में शिक्षा विभाग द्वारा चलाए जा रहे महिला शिक्षक समूह कार्यक्रम ’अंगना मा शिक्षा’ को स्कॉच अवार्ड-2022 से पुरस्कृत किया गया। इसमें 38 हजार 539 महिलाएं प्रशिक्षित होकर जुड़ी है।पढ़ाई तुंहर दुआर नवाचार में श्रेष्ठ कार्य करने के कारण आवार्ड ऑफ एक्सीलेंस प्राप्त हुआ और कोरोना काल के कठिन समय में शिक्षकों द्वारा किए गए कार्यों में राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली। प्रदेश के एनआईसी द्वारा विकसित एनक्लियर एण्ड टेली प्रेक्टिस एप को डिजिटल टेक्नोलॉजी सभा अवार्ड प्राप्त हुआ है। - अनुशंसित लेखक: डॉ. मनसुख मंडाविया , केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रीभारत नई दिल्ली में 18वें जी20 राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों के शिखर सम्मेलन की मेजबानी की तैयारी कर रहा है। इस परिदृश्य में हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि वास्तव में समावेशी और समग्र सार्वभौमिक स्वास्थ्य संरचना के निर्माण के लिए ग्लोबल साउथ और ग्लोबल नॉर्थ को जोड़ने वाले सेतु की आधारशिला रखी जा चुकी है, जब भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गांधीनगर में आयोजित स्वास्थ्य मंत्रिस्तरीय बैठक में कहा, "हमें अपने नवाचारों का जनकल्याण के लिए उपयोग करना चाहिए। हमें वित्तपोषण के दोहराव से बचना चाहिए। हमें प्रौद्योगिकी की न्यायसंगत उपलब्धता की सुविधा प्रदान करनी चाहिए।”यह देखकर खुशी होती है कि शक्तिशाली अंतरराष्ट्रीय मंच के सदस्यों ने महामारी के वर्षों के दौरान और उसके बाद से अर्जित सामूहिक ज्ञान के आधार पर कार्य करने के लिए एक लंबा सफर तय किया है - वास्तविक स्वतंत्रता तभी शुरू होती है, जब पूरी मानवता के स्वास्थ्य के साथ कोई समझौता नहीं किया जाता है। यदि कोई वायरस तबाही मचाने का फैसला करता है और हम इसका मुकाबला करने के लिए तैयार नहीं हैं, तो समाज किसी भी स्तर की आर्थिक खुशहाली का आनंद नहीं ले सकता है। यह बात, भारत की जी20 अध्यक्षता के तहत महत्वपूर्ण स्वास्थ्य प्राथमिकताओं पर विचार-विमर्श की अंतर्निहित अवधारणा रही है।मंत्रियों, वरिष्ठ नीति निर्माताओं और बहुपक्षीय एजेंसियों ने स्पष्ट तौर पर भारत की जी20 स्वास्थ्य प्राथमिकताओं का समर्थन किया है, जो सभी की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच और उनकी क्षमताओं की जटिलताओं पर प्रकाश डालता है। इस प्रक्रिया में, हम बात पर एक व्यापक सहमति बनाने में सफल रहे हैं कि भविष्य की स्वास्थ्य आपात स्थितियों को रोकने, इसके लिए तैयार रहने और इसका मुकाबला करने के लिए सामूहिक वैश्विक कार्रवाई ही आगे का रास्ता है और महामारी से उबरने की प्रक्रिया न्यायसंगत होनी चाहिए।स्वास्थ्य पर कुछ महत्वपूर्ण वैश्विक कार्रवाइयों में शामिल हैं, चिकित्सा उपाय प्लेटफार्म के सिद्धांतों और संरचना पर आम सहमति बनाना, जो टीकों, उपचार, निदान और अन्य समाधानों तक पहुंच से जुड़ी मौजूदा असमानताओं में कमी ला सकता है और जिन्हें स्वास्थ्य संकटों से निपटने में प्रभावी उपाय माना जाता है; डिजिटल स्वास्थ्य पर एक वैश्विक पहल, जो देशों की डिजिटल स्वास्थ्य पहल की प्रगति की इस प्रकार सहायता करे कि अपने विशिष्ट संदर्भ में अन्य देशों के लिए समाधान अपनाने में अंतर को कम किया जा सके; इस बारे में अपनी समझ विकसित करना कि जलवायु और स्वास्थ्य एक-दूसरे को कैसे प्रभावित करते हैं, ताकि विशिष्ट समाधानों को प्राथमिकता दी जा सके; और पारंपरिक औषधियों के हमारे भंडार से जानकारी प्राप्त करना, ताकि हमारे भविष्य का स्वास्थ्य हमारे अतीत के ज्ञान से लाभ उठा सके।प्रतिरोधी चिकित्सा उपाय प्लेटफ़ॉर्म की आवश्यकतादुनिया भर में कोविड-19 टीकाकरण और नैदानिक चिकित्सा ने हमारी निहित असमानताओं को उजागर किया है, जिन्हें हमें दूर करना होगा। आपस में अत्यधिक जुड़ी हुई दुनिया में, किसी देश में रोगाणुओं का खतरा, पूरी दुनिया के लिए खतरा है और हमें सिद्धांतों तथा एक वैश्विक संरचना पर सहमत होना चाहिए, जो टीकों, नैदानिक परीक्षणों, दवाओं और अन्य समाधानों तक न्यायसंगत और समय पर पहुंच में सभी देशों को सक्षम बना सके।ऐसा वैश्विक प्लेटफार्म समावेशी होना चाहिए, जिसका अर्थ है कि यह उन देशों को ध्यान में रखता है, जो समाधान तक पहुंच में बाधाओं का सामना करते हैं; कुशल होना चाहिए, जिसका अर्थ है कि यह मौजूदा क्षमताओं और नेटवर्क पर तेजी से आगे बढ़ता है; कार्यकुशल और अनुकूल होना चाहिए; जिसका अर्थ है कि इसमें बदलती जरूरतों और वैज्ञानिक प्रमाणों के अनुसार तेजी से अनुकूलन करने के लिए अंतर्निहित लचीलापन है; और जवाबदेह होना चाहिए; जिसका अर्थ है कि एक पारदर्शी संरचना में स्पष्ट और साझा जिम्मेदारी है। इसे शीघ्रता से किफायती चिकित्सा समाधान उपलब्ध कराने चाहिए। जी20 के माध्यम से, हमने डब्ल्यूएचओ के नेतृत्व में ऐसे प्लेटफार्म को लागू करने के परामर्श के लिए एक अंतरिम व्यवस्था के निर्माण पर बिना किसी देरी के अपनी प्रतिबद्धता जताई है, जहाँ निम्न और मध्यम आय वाले देशों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व हो, ताकि अगली स्वास्थ्य आपात स्थिति से मुकाबले के लिए हम पूरे तरह तैयार रहें।जी-20 देशों ने विशेष रूप से विकासशील देशों में टीकों, चिकित्सीय और नैदानिक उत्पादों की क्षेत्रीय विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ाने के साथ-साथ सामूहिक रूप से अनुसंधान एवं विकास के एक इकोसिस्टम को विकसित करने की आवश्यकता पर जोर दिया है, ताकि स्वास्थ्य-आपातकालीन स्थितियों में बाजार की विफलताओं से बचा जा सके।डिजिटल स्वास्थ्य पर वैश्विक पहल का शुभारंभसार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल के लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में, डिजिटल स्वास्थ्य सबसे शक्तिशाली उपायों में से एक के रूप में उभरा है। महामारी के दौरान हमने भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य में डिजिटल उपकरणों की परिवर्तनकारी क्षमता का अनुभव किया है। कोविड-19 के दौरान, डिजिटल जनकल्याण उपायों के रूप में परिकल्पित को-विन और ई-संजीवनी जैसे प्लेटफॉर्म पूर्ण रूप से गेम-चेंजर साबित हुए, जिसने एक अरब से अधिक लोगों तक, जिनमें सबसे कमजोर समुदाय भी शामिल थे, टीकों और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच के तरीके को पूरी तरह से लोकतांत्रिक बना दिया। भारत पहले से ही एक राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य इकोसिस्टम - आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (एबीडीएम) – तैयार कर रहा है, जो मरीजों को उनके मेडिकल रिकॉर्ड का संग्रह करने, मेडिकल रिकॉर्ड तक पहुँच प्राप्त करने और उचित उपचार व अनुवर्ती चिकित्सा सुनिश्चित करने के लिए स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के साथ मेडिकल रिकॉर्ड साझा करने का अधिकार देता है।120 से अधिक देशों ने अपनी राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य नीतियां या रणनीतियां विकसित की हैं, जो कम आय वाले देशों सहित दुनिया भर में डिजिटल स्वास्थ्य उपकरणों की जरूरत को दर्शाती हैं। लेकिन कुछ समय पहले तक, देशों के पास डिजिटल स्वास्थ्य पहल पर ज्ञान के आदान-प्रदान के लिए कोई आम प्लेटफार्म और भाषा नहीं थी, जबकि वे ऐसा करना चाहते थे। डिजिटल स्वास्थ्य में इस तरह से अलग-अलग से कार्य करने का मतलब है कि समान उत्पाद का कई रूपों में दोहराव होना है। भारत की जी-20 अध्यक्षता के तहत 19 अगस्त को डिजिटल स्वास्थ्य पर डब्ल्यूएचओ के नेतृत्व वाली वैश्विक पहल (जीआईडीएच) के लॉन्च के बाद इस स्थिति में बदलाव होना निश्चित है। इस पहल पर जी-20 देशों के सर्वसम्मत समर्थन ने यह सुनिश्चित किया है कि दुनिया, निर्णायक रूप से देशों के बीच बढ़ते डिजिटल-विभाजन को पाटने के लिए, एक विभाजित डिजिटल स्वास्थ्य व्यवस्था से वैश्विक डिजिटल स्वास्थ्य व्यवस्था की ओर आगे बढ़ेगी।इस पहल का उद्देश्य देशों को उच्च गुणवत्ता वाली डिजिटल स्वास्थ्य प्रणालियों की योजना बनाने और उन्हें लागू करने में सहायता करना और मरीजों को गोपनीयता और नैतिकता के उच्चतम सम्मान के साथ जन-केंद्रित दृष्टिकोण के आधार पर स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच की सुविधा प्राप्त करने में मदद करना है। इस तरह की संरचना को साधन प्रदान करने चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दुनिया भर में लोगों को दी जाने वाली डिजिटल स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता एक निश्चित मानक पूरा कर रहीं हैं; देशों की डिजिटल स्वास्थ्य यात्रा को समझने और साझा करने के लिए एक मंच बनाया जा रहा है तथा उनकी जरूरतों को इस तरह से उजागर किया जा रहा है कि एक देश दूसरे देश से सीख सकें और सभी के लिए स्वास्थ्य की इस यात्रा की दूरी कम की जा सके।जलवायु और स्वास्थ्य को प्राथमिकतासभी क्षेत्रों में जलवायु संबंधी जागरूकता होने के बावजूद, मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य और पौधों के स्वास्थ्य को कवर करने वाले वन-हेल्थ परिदृश्य में जलवायु, स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करती है तथा इनका आपसी संबंध क्या है, को अभी तक पूरी तरह से समझा नहीं जा सका है। भारत की अध्यक्षता ने पहली बार जी-20 के माध्यम से इन अदृश्य कड़ियों को सुलझाने की आवश्यकता को स्वीकार किया है, ताकि हम समाधानों को प्राथमिकता दे सकें। जी-20 देशों ने निम्न कार्बन उत्सर्जन, उच्च-गुणवत्ता वाले स्थाई और जलवायु सहनीय स्वास्थ्य प्रणालियों को प्राथमिकता देने के लिए प्रतिबद्धता जताई है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हमारा स्वास्थ्य क्षेत्र ऐसे समय में पीछे न रह जाये, जब सभी क्षेत्र नेट-जीरो लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपना योगदान दे रहे हैं। हमारे परिणाम दस्तावेज़ में, जी-20 देशों ने वन-हेल्थ दृष्टिकोण के माध्यम से जीवाणु-रोधी प्रतिरोध (एएमआर) से निपटने का भी वादा किया गया है।पारंपरिक चिकित्सा की भूमिकाऐसे समय में जब दुनिया भर में समग्र स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देने वाली एकीकृत चिकित्सा के क्षेत्र में क्रांति हो रही है, तो हमारा मानना है कि शक्तिशाली पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों को पुनर्जीवित करना और जी-20 जैसे वैश्विक समूहों के माध्यम से मानवता को उनके अप्रयुक्त लाभों की पेशकश करना हमारी जिम्मेदारी है। पिछले साल, हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के जामनगर में पारंपरिक चिकित्सा के डब्ल्यूएचओ-वैश्विक केंद्र का उद्घाटन किया और दुनिया के लिए हमारे प्राचीन आरोग्य ज्ञान के दरवाजे खोले। स्वास्थ्य में साक्ष्य-आधारित पारंपरिक और पूरक चिकित्सा की संभावित भूमिका की पहचान करते हुए हम जी-20 में सदस्य देशों के साथ उस विरासत को आगे ले जा रहे हैं।एक कालातीत श्लोक के अनुसार, "आरोग्यम परमं भाग्यम्, स्वास्थ्य सर्वार्थ साधनम्", जिसका अर्थ है "निरोगी होना परम भाग्य है और स्वास्थ्य से अन्य सभी कार्य सिद्ध होते हैं।", महामारी के अनुभव के बाद, जी-20 में हमने इस पर ध्यान दिया है और निर्णय लिया है कि अब कार्रवाई करने का समय आ गया है।
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सौंवी जयंती पर विशेष
मुंबई। महान गीतकार शैलेंद्र की एक बड़ी पहचान जनवादी गीतों के लेखक की है। शैलेंद्र फ़िल्मी दुनिया में भी अपने उन तेवरों के साथ आए और छा गए। 30 अगस्त 1923 को जन्मे शंकरदास केसरीलाल शैलेन्द्र की आज 100वीं जयंती है।पचास के दशक में बनी राज कपूर की फ़िल्मों में एक ख़ास ट्रेंड महसूस किया जा सकता है। ये फ़िल्में एक ऐसे नायक की कहानी कहती हैं जो मुफलिसी से जूझता गरीब है, दुनियावी मायनों में हाशिये का आदमी है लेकिन उसके पास सच्चाई और ईमानदारी की पूंजी है। वह ऐसे समाज का दूधिया स्वप्न देखता है जिसमें इंसानी मूल्यों की कद्र हो, जहां तरक्कीपसंदी को तरज़ीह दी जाती हो। परंतु हक़ीक़त में ऐसी दुनिया होती नहीं है। यहां नायक के सपनों की दुनिया हक़ीक़त से टकराती है। सपने टूटते हैं, लेकिन इस टूटन से कोई शोर नहीं होता। यह टूटन कुछ सुरीले नग़मों को आवाज़ देती है:दिल का हाल सुने दिल वालासीधी सी बात न मिर्च मसालाकहके रहेगा कहने वालादिल का हाल सुने दिल वाला…
या फिर
सब कुछ सीखा हमनेन सीखी होशियारीसच है दुनिया वालोंकि हम हैं अनाड़ी…ऐसे ही नग़मे लिखने वाले शख्स थे जनकवि शैलेंद्र।शैलेंद्र के गीतों में जनवाद तो है ही, फ़िल्म की सिचुएशन के मुताबिक लिखे गए उनके जो प्यार भरे गीत हैं वे एक ख़ास किस्म की बेफ़िक्री और मासूमियत को अपने साथ लिए चलते हैं। मोहब्बत की बातें तो हैं लेकिन उनमें परंपरागत उबाऊपन नहीं बल्कि एक ख़ास किस्म का नयापन और रूमानियत है। इन गीतों में भारत के आध्यात्मिक दर्शन की भी झलकी है। उनके लिखे ज़्यादातर गीत इतने सरल, सुरीले और सांगीतिक (रिदम में बंधे हुए) हैं कि यह समझ पाना लगभग असंभव है कि इन गीतों को फ़िल्म की सिचुएशन पर लिखा गया या ये अलग से लिखे गए हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि शैलेंद्र की जितनी पहचान फिल्मी नग़मों के लिए रही उतना ही नाम जनता के कवि के तौर पर भी रहा। तू ज़िंदा है तो ज़िंदगी के गीत में यक़ीन कर …, हर ज़ोर जुल्म की टक्कर में.., क्रांति के लिए उठे कदम… आदि जन गीतों के माध्यम से उन्होंने समाज के संघर्षशील तबके के दिलोदिमाग़ में अपनी अमिट छाप छोड़ी।फ़िल्मी गीतों के बारे में आम तौर माना यही जाता है कि गीतकार ने इसे फ़िल्म की सिचुएशन पर रचा होगा। बहरहाल जब गीतकार शैलेंद्र (Shailendra) जैसे क़द के हों तो यह संभव ही नहीं है कि उन गीतों में उनकी वैचारिक छाप नज़र न आए। शैलेंद्र की सोच, उनकी वैचारिकी, उनके अंदर की कशमकश उनके गीतों में हमेशा नज़र आती है। फिर भले ही गीत फ़िल्म की मांग पर लिखे गए हों।शैलेंद्र नई आज़ादी की सुबह अंगड़ाई ले रहे हिंदुस्तानी फ़िल्म संगीत की दुनिया में ताज़ी हवा के झोंके की तरह आए और छा गए। इन गीतों ने बतौर गीतकार उन्हें देश-विदेश में प्रतिष्ठित कर दिया। फ़िल्मों में गीत लेखन की स्थापित परिपाटी के बरअक्स यह एक नए प्रयोग की शुरुआत थी। हालांकि छिटपुट तौर पर ही सही शैलेंद्र से पहले दीनानाथ मधोक, पंडित नरेंद्र शर्मा और गोपाल सिंह नेपाली… के यहां मिलते जुलते रंग हैं लेकिन बतौर गीतकार इन तीनों की यात्रा ज्यादा परवान न चढ़ सकी।शैलेंद्र की कलम से निकले देसज और लालित्य से भरे नग़मों ने हिंदी सिनेमा के गीतों को एक नई ख़ुशबू बख्शी। गीत लेखन का यह नया अंदाज फिल्म माध्यम के भी ज्यादा माफिक था। तभी तो विस्तृत और विविधता से भरे कैनवास पर रचे गए उनके नग़मों ने बहुत जल्दी सुनने वालों को अपना मुरीद बना लिया।शैलेंद्र की बतौर गीतकार ऐसी महत्वपूर्ण फ़िल्में हैं, आवारा, श्री 420, अनाड़ी, जिस देश में गंगा बहती है …. वगैरह। याद रखना होगा कि इन फ़िल्मों ने परदे पर अभिनेता राज कपूर (Raj Kapoor) को एक ख़ास किस्म की छवि प्रदान की जो ताज़िंदगी उनके साथ चस्पां रही और आज भी है। इस इमेज को बनाने में इन फ़िल्मों के गीतों के योगदान को नकारा नहीं जा सकता है। जानकार तो यहां तक मानते हैं कि इन फ़िल्मों की सफलता में कहानी से अधिक योगदान गीत और संगीत का था। इन गीतों में नई-नई आज़ादी की अंगड़ाई भी है और आम भारतीयों के सपनों का सतरंगी धुनक भी है। इस बहुरंगी धुनक में न सिर्फ़ निपट भारतीयता का रंग है बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान और रुझान की झलक भी है। इन गीतों की अपनी मास अपील है। तभी तो इंटरनैशनल ऑडियंस इन फ़िल्मों और इनके गीतों से आज भी कनेक्ट करते हैं। दूसरी जंग ए अज़ीम (दूसरा विश्व युद्ध) की विभीषिका के बाद उपजे माहौल में इन फिल्मों और इनके गीतों ने इंटरनैशनल ऑडियंस को एक सुखद अहसास कराया।बानगी के तौर पर फ़िल्म आवारा का गीत – आवारा हूं या गर्दिश में हूं…, श्री 420 – मेरा जूता है जापानी…, अनाड़ी – सब कुछ सीखा हमने …, जिस देश में गंगा बहती है – हम उस देश के वासी हैं… को देखिए।ये सारे गीत टाइटल गीत हैं। हिंदी फ़िल्मों में टाइटल गीत लिखने की शुरुआत शैलेंद्र ने ही फ़िल्म बरसात के टाइटल गीत – बरसात में हमसे मिले तुम ….. से की। आगे चलकर उन्होंने एक से बढ़कर एक टाइटल गीत लिखे। इन टाइटल गीतों में पूरी फ़िल्म की थीम झलकती है। एक तरह से कहें तो शैलेंद्र के ये टाइटल गीत शंकर-जयकिशन की संगीत रचना में महज़ गीत नहीं बल्कि एक आख्यान बन गए।शैलेंद्र का एक और रूप है जहां वे कबीर, रैदास, मीराबाई, नज़ीर अकबराबादी…. की परंपरा की अगली कड़ी लगते हैं। अपने इस अवतार में शैलेंद्र जीवन की निर्मम सच्चाई यानी कॉस्मिक ट्रुथ को अपने गीतों में बड़े आसान बिंबों, प्रतीकों और देसी मुहावरों के ज़रिये दिखाते हैं। ये सभी बिंब और प्रतीक जनमानस की स्मृतियों में रचे बसे हैं। मसलन तीसरी कसम – सजन रे झूठ मत बोलो … काला बाज़ार – ना मैं धन चाहूं … दाग़ – देखो आया ये कैसा ज़माना … आवारा – जुलम सहे भारी … नई दिल्ली – अरे भाई निकलके आ घर से … लव मैरिज – टीन-कनस्तर पीट-पीटकर, गला फाड़कर चिल्लाना … बादल – अनमोल प्यार बिन मोल बिके, इस दुनिया के बाज़ार में … आह – छोटी-सी ये ज़िंदगानी रे … दो बीघा ज़मीन – अजब तोरी दुनिया, हो मोरे रामा … धरती कहे पुकार के … गाइड – वहां कौन है तेरा … जिस देश में गंगा बहती है – मेरा नाम राजू, घराना अनाम … ।अपनी सामाजिक व राजनीतिक चेतना को गीतों में पिरोने का उनका अंदाज़ भी संत काव्य-परंपरा के कवियों जैसा ही है। यहां भी बिंब सीधे-सादे हैं लेकिन बात लोगों के दिल में सीधे उतरती है। शैलेंद्र के गीत सुनने वालों पर बौद्धिक आतंक डालने की कोशिश नहीं करते। यही बात तो उन्हें हिंदी फ़िल्मों का अकेला जनगीतकार भी बनाती है। जो जनता की भाषा में जनता की बातें कहता है: मिसाल के तौर पर फ़िल्म उजाला का गीतसूरज ज़रा आ पास आआज सपनों की रोटी पकाएंगे हमऐ आसमां तू बड़ा मेहरबांआज तुझको भी दावत खिलाएंगे हमसूरज ज़रा आ पास आचूल्हा है ठण्डा पड़ा, और पेट में आग हैगरमा-गरम रोटियां, कितना हसीं ख़्वाब हैसूरज ज़रा आ पास आ …फ़िल्मी गीत लिखते हुए भी वह सामाजिक सरोकारों के स्तर पर कितने सजग थे इसकी बानगी उनके कुछ और गीतों में देखिए –दो बीघा ज़मीनअजब तोरी दुनिया, हो मोरे रामापर्बत काटे, सागर पाटे, महल बनाए हमनेपत्थर पे बगिया लहराई, फूल खिलाए हमनेहोके हमारी हुई ना हमारीहोके हमारी हुई ना हमारी, अलग तोरी दुनियाहो मोरे रामा, अजब तोरी दुनिया, हो मोरे रामाचोरी चोरीतुम अरबों का हेर-फेर करनेवालेऐसी कड़की में ये बोझा दो जनों काआधा साझा हुआ थोड़े-से चनों काकभी आया ना वो दिन सपनों कातुम अरबों का हेर-फेर करनेवाले …वगैरह।अपने जनवादी तेवर के लिए प्रख्यात शैलेंद्र के गीतों का एक रंग निराशा, पलायन और जीवन के बजाय मृत्यु की फैंटसी का भी है। कई लोग इस निराशा को उनकी दलित पृष्ठभूमि से जोड़कर देखते हैं। दुनियावी मानकों पर वह एक सफल गीतकार थे फिर वह निराशा कहां से आती थी? शायद उनके भीतर कोई अव्यक्त पीड़ा समांतर चलती थी। सफलता की चमकदमक के बीच वह नितांत अकेले थे। इस अकेलेपन को एक कलाकार के नैसर्गिक विरोध से जोड़कर भी देखा जा सकता है। विन्सेट वॉन गॉग जैसे प्रतिभाशाली चित्रकारों का उदाहरण हमारे सामने है, जिनका जीवन नैराश्य और जटिलताओं से भरा रहा। बहरहाल, शैलेंद्र के यहां यह विरोध जब जीवन से पलायन और निराशा तथा मृत्य की ओर जाने लगा तो लोगों ने इसे उनकी दलित पहचान से भी जोड़ा।शैलेंद्र की लेखन यात्रा पर ध्यान दें तो बतौर गीतकार अपनी पारी शुरू करने से पहले उन्होंने जो भी लिखा उसमें निराशा नहीं बल्कि बेहतर भविष्य का सपना और कामना नज़र आते हैं: उनकी बहुत प्रसिद्ध ग़ैर फ़िल्मी रचना – तू ज़िंदा है तो ज़िंदगी के गीत में यकीन कर .. को लीजिए। शैलेंद्र की इस रचना में पलायन, निराशा की जगह दुख और तकलीफ़ की मौजूदा दुनिया के आगे एक बेहतर दुनिया का सपना है। वह अपनी इस रचना का अंत भी ऐसे ही थीम पर करते हैं …हज़ार भेष धर के आई मौत तेरे द्वार परमगर तुझे न छल सकी चली गई वो हार करनई सुबह के संग सदा तुझे मिली नई उमरअगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन परतू ज़िंदा है तो…लेकिन मृत्यु को लेकर जो रोमांस शैलेंद्र के यहां है उसकी झलक यहां भी है जब वह कहते हैं हज़ार भेष धर के आई मौत तेरे द्वार पर मगर तुझे न छल सकी चली गई वो हार कर …। परंतु शैलेंद्र इस निराशा को पार करते नज़र आते हैं। शायद इस निराशा से निकलने में उनकी राजनीतिक चेतना का गहरा असर रहा हो क्योंकि यही शैलेंद्र की राजनीतिक चेतना के बुनाव का दौर था। एक नए भारत को रचने का रूमानी स्वप्न भी इसमें शामिल हो सकता है।लेकिन जैसे ही शैलेंद्र फ़िल्मों के लिए गीत लेखन के क्षेत्र में आए उनका यह सपना मानो हक़ीक़त के धरातल पर आकर धीरे-धीरे दम तोड़ने लगा। एक आज़ाद भारत को लेकर जो सपना उनकी आंखों में था उसके भी टूटने की चुभन उनके फ़िल्मी गीतों में पसरने लगी। आशावाद की जगह पलायन और नैराश्य का रंग गहराने लगा।आप उनकी फ़िल्म रचनाओं में इस तिरती उदासी, निराशा को देख सकते हैं। मिसाल के तौर पर –फ़िल्म बरसातबरसात में हमसे मिले तुम …देर न करना कहीं ये आस टूट जाए सांस छूट जाएतुम न आओ दिल की लगी मुझको ही जलाए ख़ाक में मिलाए…बादलदो दिन के लिए मेहमान यहां …जलता है जिगर उठता है धुआंआंखों से मेरी आंसू हैं रवांजो मरने से हो जाए आसांऐसी ये मेरी मुश्किल है कहां…दाग़ऐ मेरे दिल कहीं और चल…चल जहाँ ग़म के मारे न हों, झूठी आशा के तारे न होंउन बहारों से क्या फ़ायदाजिस में दिल की कली जल गई, ज़ख़्म फिर से हरा हो गया …***प्रीत ये कैसी बोल री दुनिया …डूब गया दिन शाम हो गईजैसे उमर तमाम हो गईमेरी मौत खड़ी है देखोअपना घूँघट खोल रे …
सीमातू प्यार का सागर है…इधर झूम के गाए जिंदगीउधर है मौत खड़ीकोई क्या जाने कहां है सीमाउलझन आन पड़ी …
यहूदीये मेरा दीवानापन है…ऐसे वीराने में एक दिन घुट के मर जाएंगे हमजितना जी चाहे पुकारो फिर नहीं आएंगे हम …
मधुमतीटूटे हुए ख्बाबों ने…लौट आई सदा मेरी टकरा के सितारों सेउजड़ी हुई दुनिया के सुनसान किनारों सेपर अब ये तड़पना भी कुछ काम न आया हैदिल ने जिसे पाया था, आंखों ने गंवाया है…
मेरी सूरत तेरी आंखेंपूछो ना कैसे मैंने रैन बिताई …ना कहीं चंदा ना कहीं तारेज्योत के प्यासे मेरे नैन बिचारेभोर भी आस की किरन ना लाई…..जग में रहा मैं, जग से परायासाया भी मेरा मेरे पास ना आयाहँसने के दिन भी रोके गुज़ारे …
अनाड़ीकिसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार …कि मर के भी किसी को याद आएंगेकिसी के आंसुओं में मुस्कुराएंगेकहेगा फूल हर कली से बार बार…
छोटी छोटी बातेंकुछ और ज़माना कहता है …दुनिया ने हमें बे-रहमी से ठुकरा जो दिया अच्छा ही कियानादां हम समझे बैठे थे निभती है यहां दिल से दिल की…
पूनमदो दिन की ज़िंदगी में दुखड़े हैं बेशुमार …मरने के सौ बहाने, जीने को सिर्फ़ एकउम्मीद के सुरों में, बजते हैं दिल के तार…
पतितामिट्टी से खेलते हो बार-बार …ज़मीन ग़ैर हो गई, ये आसमां बदल गयाहवा के रुख़ बदल गए, हर एक फूल जल गयाबजते हैं अब ये साँसों के तार किसलिए …***अंधे जहान के अंधे रास्ते …हमको न कोई बुलाए, ना कोई पलकें बिछाएऐ ग़म के मारो, मंज़िल वहीं है, दम ये टूटे जहां….आग़ाज़ के दिन तेरा अंज़ाम तय हो चुकाजलते रहे हैं जलते रहेंगे ये ज़मीं-आसमाँ …
हरियाली और रास्तालाखों तारे आसमान में …मौत है बेहतर इस हालत से नाम है जिसका मजबूरीकौन मुसाफ़िर तय कर पाया दिल से दिल की ये दूरीकांटों ही कांटों से गुज़रा, जो राही इस राह चला … - उप संचालक, ललित चतुर्वेदीरायपुर / संस्कृत दिवस श्रावण पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ संस्कृत विद्यामण्डलम् द्वारा राज्य स्तर पर सप्ताह का आयोजन रक्षाबंधन के 3 दिन पूर्व और 3 दिवस बाद तक किया जाता है। विभिन्न जयंतियों - वाल्मिकि जयंती, कालीदास जयंती, गीता जयंती, गुरू पूर्णिमा का आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में प्रदेश के विद्यालयों की सक्रिय सहभागिता रहती है। संस्कृत दिवस के दिन वेद शास्त्रों की पूजा एवं महत्ता पर चर्चा एवं विद्वत्संगोष्ठी का आयोजन किया जाता है।भारत की प्राचीनतम भाषा संस्कृत में भारत का सर्वस्व संन्निहित है। देश के गौरवमय अतीत को हम संस्कृत के द्वारा ही जान सकते हैं। संस्कृत भाषा का शब्द भण्डार विपुल है। यह भारत ही नहीं अपितु विश्व की समृद्ध एवं सम्पन्न भाषा है। भारत का समूचा इतिहास संस्कृत वाड्मय से भरा पड़ा है। आज प्रत्येक भारतवासी के लिए विशेषकर भावी पीढ़ी के लिए संस्कृत का ज्ञान बहुत ही आवश्यक है।संस्कृत भाषा ने अपनी विशिष्ट वैज्ञानिकता के कारण भारतीय विरासत को सहेजकर रखने में अपना अप्रतिम योगदान दिया है। संस्कृत ऐसी विलक्षण भाषा है जो श्रुति एवं स्मृति में सदैव अविस्मरणीय है। अतिप्राचीन काल में संरक्षित-संग्रहित भारत की यह विपुल ग्रंथ सम्पदा संस्कृत के कारण ही सुरक्षित रही है। संस्कृत की महत्ता को सम्पूर्ण विश्व ने स्वीकारा है। संस्कृत को भारतीय शिक्षा में अनिवार्य करना आवश्यक है। शिक्षा में इसकी अनिवार्यता को लेकर केन्द्रीय संस्कृत आयोग ने 1959 में - माध्यमिक स्कूलों में संस्कृत को अनिवार्य शिक्षा करने के साथ मातृभाषा तथा क्षेत्रीय भाषा पढ़ाई जाने की अनुसंशा की। संस्कृत शाला एवं संस्कृत महाविद्यालय प्रारंभ करने के लिए शासन द्वारा 90 प्रतिशत की छूट भी प्रदान की गई है।संस्कृत परिष्कृत, संस्कारित एवं वैज्ञानिक भाषा है। आदिकाल से वेद, रामायण, महाभारत सहित विशिष्ट विषयों को भारतीय मस्तिष्क में संस्कृत के संबल पर सहेज कर रखा है। वेद, रामायण, महाभारत आदि ग्रंथ श्रुति एवं स्मृति परिचारों में सुरक्षित रखते हुए आज लिपिबद्ध रूप में गोचर हो रहे हैं। इससे बड़ा प्रमाण कोई नहीं हो सकता।संस्कृत भाषा का अपना एक वैज्ञानिक महत्व है। नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार संस्कृत एक सम्पूर्ण वैज्ञानिक भाषा है। प्राचीन भारत में बोल-चाल की भाषा में संस्कृत का ही उपयोग किया जाता था। इससे नागरिक अधिक और मानसिक रूप से अधिक संतुलित रहा करते थे। संस्कृत के मंत्रों का उच्चारण करते समय मानव स्वास्थ्य पर विशेष प्रभाव पड़ता है। मंत्रोच्चार के समय वाइब्रेशन से शरीर के चक्र जागृत होते हैं और मानव का स्वास्थ्य बेहतर रहता है। बहुत सी विदेशी भाषाएं भी संस्कृत से जन्मी हैं। फ्रेंच, अंग्रेजी के मूल में संस्कृत निहित है। संस्कृत में सबसे महत्वपूर्ण शब्द ‘ऊँ’ अस्तित्व की आवाज और आंतरिक चेतना एवं ब्रम्हाण्ड का स्वर है। प्राचीन धरोहर की खोज करने का मुख्य मापदण्ड संस्कृत है। संस्कृत की महत्ता को देखते हुए जर्मनी में 14 से अधिक विश्व विद्यालयों में संस्कृत का अध्ययन कराया जाता है।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल का कहना है कि हमारे वेद पुराण और गीता आदि संस्कृत में लिखे गए हैं। हमें अपनी जड़ों को नहीं भूलना चाहिए। संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए राज्य शासन द्वारा हरसंभव सहयोग दिया जा रहा है। छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार के प्रयास से संस्कृत शिक्षा की प्रगति हो रही है। संस्कृत अध्ययन प्रोत्साहन राशि संस्कृत शालाओं में पढ़ने वाले उत्तर मध्यमा स्कूल प्रथम वर्ष कक्षा 11वीं के विद्यार्थियों को दी गई। इससे कक्षा पहली, छठवीं और 9वीं को दी गई थी। गैर अनुदान प्राप्त संस्कृत शालाओं को स्तरवार वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। इस वर्ष से गैर अनुदान प्राप्त विद्यालयों को उनके प्रत्येक स्तर को जोड़ते हुए वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है। प्रवेशिका प्राथमिक स्तर को 10 हजार रूपए प्रतिवर्ष, प्रथमा मिडिल स्तर को 20 हजार रूपए प्रतिवर्ष, पूर्व मध्यमा प्रथम एवं उत्तर मध्यमा प्रथम (हाईस्कूल और हायर सेकेण्डरी) को 40 हजार रूपए प्रतिवर्ष की दर से राशि प्रदान की जाती है। केन्द्रीय जेल रायपुर और अम्बिकापुर में संस्कृत पाठशाला संचालित की जा रही है। प्रदेश में संस्कृत उत्तर मध्यमा कक्षा को छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल द्वारा कक्षा 12वीं के समकक्ष मान्यता प्रदान की गई है। राज्य में कक्षा तीसरी से 12वीं तक संस्कृत की शिक्षा स्कूलों में दी जा रही है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की मंशानुरूप स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में भी संस्कृत की शिक्षा देने के लिए शिक्षक नियुक्त किए गए है।भारतीय विरासत के संरक्षण के लिए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के मार्गदर्शन में आयुर्वेद, योग, प्रवचन, वेद, ज्योतिष जैसे संस्कृत के वैज्ञानिक विषयों का अध्ययन-अध्यापन संस्कृत पाठशालाओं में किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ की संस्कृत पाठशालाओं में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को संस्कृत में शास्त्रों के अध्ययन के साथ-साथ आधुनिक विषयों जैसे गणित, विज्ञान, वाणिज्य आदि का समन्वित ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं। प्रदेश में संस्कृत पढ़ने वाले विद्यार्थी किसी भी क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्राप्त करने में समर्थ हैं।प्रदेश में संस्कृत का अतीत समृद्ध है। यहां बलौदाबाजार में तुरतुरिया महर्षि वाल्मीकि और सरगुजा जिले के उदयपुर में रामगढ़ की पहाड़ियां महाकवि कालीदास का क्षेत्र माना जाता है। प्रदेश रामायणकालीन एवं महाभारतकालीन धरमकर्मों से जुड़ा हुआ है। यहां का बड़ा भू-भाग दण्डकारण्य क्षेत्र में आता है, जो ऋषियों का क्षेत्र कहा गया है। छत्तीसगढ़ वासियों का आचार-विचार, व्यवहार और संस्कार संस्कृत से पुरित हैं।प्रदेश के स्कूल शिक्षा मंत्री श्री रविन्द्र चौबे एवं अध्यक्ष छत्तीसगढ़ संस्कृत विद्यामण्डलम् डॉ. सुरेश कुमार शर्मा संस्कृत के विकास के लिए निरंतर प्रयासरत् है। राज्य के पांच जिलों में संचालित आठ शासकीय अनुदान प्राप्त विद्यालयों को शासन के द्वारा सहायता प्रदान की जाती है। इनमें रायपुर के गोलबाजार में संचालित श्रीराम चन्द्र संस्कृत उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, बिलासपुर में श्री निवास संस्कृत उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, रायगढ़ जिले के लैलुंगा में श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत पूर्व माध्यमिक विद्यालय, रायगढ़ के गहिरा में श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत पूर्व माध्यमिक विद्यालय और गहिरा में ही श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, जशपुर जिले दुर्गापारा में श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सामरबार और श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत पूर्व माध्यमिक विद्यालय सामरबार, बलरामपुर जिले के जवाहर नगर में श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत उच्चतर माध्यमिक विद्यालय श्रीकोट शामिल हैं। प्रदेश में एक शासकीय संस्कृत विद्यालय गरियाबंद जिले के राजिम में संचालित है।
- -पीयूष गोयल, केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग, उपभोक्ता कार्य, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण और वस्त्र मंत्रीलाल किले की प्राचीर से, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भारत की प्रगति और समृद्धि से जुड़े लंबे समय तक चलने वाले स्वर्ण युग के संबंध में अपने व्यापक दृष्टिकोण को अभिव्यक्ति दी है, क्योंकि माँ भारती हजारों वर्षों की गुलामी, अधीनता और दरिद्रता के बाद, आत्मविश्वास के साथ फिर से गौरव प्राप्त कर रही है।श्री नरेन्द्र मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं, जिनका जन्म आजादी के बाद हुआ है। प्रधानमंत्री देश के भविष्य के प्रति बहुत आशान्वित हैं। उनका आत्मविश्वास पिछले नौ साल में प्रगति के लिए किए गए अथक परिश्रम के बाद हुई ठोस प्रगति पर आधारित है। 140 करोड़ देशवासियों के धर्म, क्षेत्र, लिंग, जाति, उम्र या जातीय पहचान के आधार पर बिना कोई भेदभाव किए ये प्रयास किए गए हैं।मोदी सरकार की प्रत्येक नीति उनके 'सुधार, प्रदर्शन और बदलाव' के मंत्र को दर्शाती है, जो विशेष रूप से गरीबों और वंचितों को लाभान्वित कर रही है। इससे भारत को नौ वर्षों में दुनिया की दसवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से पांचवें पायदान तक पहुंचने में मदद मिली है। भारतीय अर्थव्यवस्था, पीएम मोदी के तीसरे कार्यकाल के दौरान तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है।इस प्रगति को ठोस आर्थिक नीतियों, भ्रष्टाचार पर अंकुश, सरकारी खर्च में होने वाली चोरी को रोकने, शासन में दक्षता और पारदर्शिता की वृद्धि तथा उदार कल्याणकारी योजनाओं से गति मिली है।महिलाओं के नेतृत्व में होने वाला विकासबदलाव के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में है- भारत में महिलाओं के नेतृत्व में होने वाला विकास। जैसा कि पीएम ने कहा, भारत में किसी भी अन्य देश की तुलना में महिला पायलटों की संख्या अधिक है और वे चंद्रयान मिशन जैसे उच्च तकनीक कार्यक्रमों में भी सबसे आगे हैं। यह गर्व की बात है कि लड़कों की तुलना में ज्यादा लड़कियां विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (एसटीईएम) विषय का चयन कर रही हैं। पीएम का लक्ष्य गांवों में 2 करोड़ लाखपति-दीदी बनाना और ड्रोन के संचालन एवं मरम्मत के कार्य में महिलाओं को शामिल करना है।बदलाव की इस यात्रा में मोदी सरकार गरीबों को रोटी, कपड़ा और मकान के जीवन पर्यंत चलने वाले संघर्ष से मुक्ति दिला रही है। सरकार ने प्रत्यक्ष लाभ अंतरण, लगभग 80 करोड़ लोगों को नि:शुल्क खाद्यान्न, राशन कार्डों की देशव्यापी वैधता, महिलाओं की गरिमा की रक्षा करने वाले शौचालय, प्रत्येक गांव में बिजली आपूर्ति, रसोई गैस, अच्छी सड़कें, स्वास्थ्य बीमा और किफायती इंटरनेट सेवा की सुविधाएं प्रदान की हैं। आवास उपलब्ध कराने और पाइप से पेयजल की आपूर्ति करने की योजनाएं तेजी से आगे बढ़ रही हैं।मोदी सरकार ने अन्य देशों की तुलना में या पिछली सरकारों की तुलना में मुद्रास्फीति को बेहतर ढंग से प्रबंधित किया है, लेकिन जैसा कि पीएम ने कहा, इन प्रयासों के बावजूद सरकार आत्मसंतुष्ट नहीं है। देशवासियों पर महंगाई का बोझ कम करने के लिए सरकार विभिन्न कदम उठाएगी। प्रधानमंत्री की लोगों का ध्यान रखने वाली और उनके प्रति संवेदनशील नीतियों के कारण पिछले पांच वर्षों में (2021 तक) 13.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकलने में सफल रहे हैं और वे मध्यम वर्ग की श्रेणी में शामिल हो गए हैं।एक सहस्राब्दी तक दु:ख झेलने के बाद, नया भारत आशा, आकांक्षा और महत्वाकांक्षा के केन्द्र के रूप में उभर रहा है। देश को बढ़ती युवा शक्ति, महिला शक्ति, मेहनती श्रमिकों और किसानों, प्रतिभाशाली कारीगरों और बुनकरों तथा एक समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा की संपदा प्राप्त है, जिनके कारण हम दुनिया भर में अपनी पहचान बना रहे हैं।भारत का आकांक्षी युवा, मांग और उद्यमशीलता की ऊर्जा पैदा कर रहा है। मोदी सरकार आम लोगों को आवास, स्वास्थ्य देखभाल और खाद्यान्न प्रदान करने और करोड़ों लोगों को निर्धनता की बेड़ियों से बाहर निकलने में सफल रही है, विभिन्न उत्पादों की मांग बढ़ रही है। इससे हमारे लघु व्यवसायों और व्यापारियों के लिए नए अवसर पैदा हो रहे हैं। यह प्रतिभाशाली युवा पुरुषों और महिलाओं को स्टार्ट-अप बनाने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है, जो रोज़गार की इच्छा रखने वालों को रोज़गार प्रदाताओं में परिवर्तित कर रहा है। मोदी सरकार की मुद्रा ऋण योजना के अंतर्गत 8 करोड़ नए उद्यमियों को 23 लाख करोड़ रुपये वितरित किए गए हैं। इनमें से 70 प्रतिशत महिला उद्यमी हैं और 51 प्रतिशत लाभार्थी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग से हैं।140 करोड़ लोगों की शक्ति और आकांक्षाओं पर आधारित भारत का रूपांतरण आज विश्व को दिखाई पड़ रहा है। आज, महामारी और यूक्रेन संकट के दोहरे आघात के बावजूद भारत को अशांत दुनिया में एक उज्ज्वल स्थान के रूप में विश्व स्तर पर सराहा जा रहा है।घबराया हुआ विपक्षअमृत काल के दौरान आशावाद के इस दौर में, जहां प्रधानमंत्री का दूरदर्शी नेतृत्व भारत को एक विकसित देश बनाएगा, कुछ लोग ऐसे भी हैं जो घबराए हुए हैं। वे तीन बुराइयों : भ्रष्टाचार, वंशवाद की राजनीति और तुष्टिकरण से लड़ने की प्रधानमंत्री की अपील से घबरा गए हैं।उनका डर समझा जा सकता है। सरकार ने प्रभावी कानून प्रवर्तन, प्रौद्योगिकी के उपयोग और पुराने कानूनों - जिनका दुरुपयोग लोगों को परेशान करने और रिश्वत वसूलने के लिए किया जाता था - को समाप्त करने के साथ भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए कई पहलें की हैं। प्रधानमंत्री ने यह भी सुनिश्चित किया है कि अतीत में तुष्टीकरण की नीतियों के विपरीत, जिनसे सामाजिक सद्भाव को नुकसान पहुंचा है, हर सरकारी पहल में सभी नागरिकों को समान समझा जाए।प्रधानमंत्री ने वंशवाद की राजनीति की बुराई को सही ढंग से उजागर किया है। राजनीति के इस ब्रांड में, एक विशेष परिवार के सदस्य, जिनके पास योग्यता हो या न हो, के बावजूद, एक राजनीतिक दल के शीर्ष पद पर बने रहते हैं, जबकि एक योग्य पार्टी सदस्य के लिए शीर्ष तक पहुंचने का कोई अवसर नहीं होता है।इन बुराइयों को समाप्त करने के लिए सरकार के दृढ़ संकल्प ने जनता को प्रोत्साहित किया है, लेकिन कुछ विपक्षी दल उदास हैं। वे अपनी नकारात्मकता को छिपा नहीं सकते। इसमें आश्चर्य की बात नहीं है। घमंडिया गठबंधन, घोटालों से घिरे वंशवादियों का एक समूह है, जो नियमित रूप से तुष्टीकरण को चुनावी माध्यम के रूप में इस्तेमाल करता है। इनमें नकारात्मकता, सत्ता की लोलुपता और तीनों बुराइयों के विरूद्ध निर्णायक कार्रवाई के बारे में बढ़ते डर के अलावा कुछ भी समान नहीं है।जब ऐसी पार्टी ने गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया, तो उसे नियमित रूप से लाखों करोड़ रुपये के सार्वजनिक धन से जुड़े भ्रष्टाचार के घोटालों का सामना करना पड़ा। इस गठबंधन के प्रधानमंत्री ने एक बार कहा था कि यह गठबंधन की राजनीति की विवशता है। इससे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति नहीं हो सकती कि एक प्रधानमंत्री ईमानदार प्रशासन देने में असमर्थ हो, क्योंकि उसे गठबंधन को बरकरार रखना है। पार्टी को चलाने वाले परिवार ने एक ऐसी व्यवस्था बनाई, जिसने उसे बिना किसी जवाबदेही के सत्ता सौंप दी।इसके विपरीत, प्रधानमंत्री श्री मोदी के लिए शासन; ईमानदारी, जवाबदेही, पारदर्शिता और नागरिकों के जीवन को बेहतर बनाने की ज्वलंत इच्छा से जुड़ा है। प्रधानमंत्री के लिए परिवार का मतलब भारत के सभी 140 करोड़ लोग हैं, जो उनके संवेदनशील नेतृत्व पर भरोसा करते हैं। यही भरोसा उनको भारत का सबसे प्रभावी और सबसे लोकप्रिय प्रधान सेवक बनाता है।
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देख आइने में चाँद उतर आया है...
फ़िराक़ गोरखपुरी की याद में...चंद्रयान-3 की सफलता के बाद पूरे विश्व में भारत का मान बढ़ गया है और यह उपलब्धि हर भारतीय को गौरवान्वित करती है। चाँद पर अनगिनत गजलें, शायरी और गीतों की रचना की गई है। यह सिलसिला अब भी जारी है और आगे भी जारी रहेगा। स्वाभाविक है, पूरी दुनिया की नजरें इस समय चाँद पर टिकी रहेंगी। चाँद के वैज्ञानिक ही नहीं, धार्मिक, आध्यात्मिक और ज्योतिषीय महत्व से भी समय-समय पर अवगत कराया जाता रहा है। चाँद पर रघुपति सहाय फ़िराक़ गोरखपुरी की रुबाई में वात्सल्य रस की अनोखी अनुभूति और एक नन्हे बालक की भावनाओं का अद्भुत वर्णन कुछ इस तरह-से मिलता है-आँगन में चाँद के टुकड़े को खड़ीहाथों पे झुलाती है उसे गोद भरीरह-रह के हवा में जो लोका देती हैगूँज उठती है खिलखिलाते बच्चे की हँसीएक माँ अपने चाँद के टुकड़े यानी अपने बच्चे को आँगन में लिए खड़ी है और उसे अपने हाथों में झुलाती है। माँ अपने बच्चे को रह-रह कर हवा में उछालती (लोका) है और बच्चा खिलखिलाकर हँसने लगता है। वात्सल्य का कितना अद्भुत दृश्य है इन चार पंक्तियों में जो यह अभिव्यक्त करती हैं कि हर माँ के लिए उसका बच्चा चाँद का टुकड़ा होता है। फ़िराक़ गोरखपुरी साहब की एक और रचना है-आँगन में ठुनक रहा है जिदयाया हैबालक तो हई चाँद पै ललचाया हैदर्पण उसे दे के कह रही है माँदेख आईने में चाँद उतर आया हैदेवमणि पाण्डेय अपने ब्लाग ‘अपना तो मिले कोई’ में उपर्युक्त पंक्तियों को सूरदास के कृष्ण की परम्परा में उनकी एक रुबाई मानते हैं। इन पंक्तियों का भावार्थ यह है कि एक नन्हा बालक आँगन में मचलकर जिद कर रहा है कि उसे आकाश का चाँद चाहिए और माँ उसे दर्पण देकर कहती है कि देख आईने में चाँद उतर आया है। फ़िराक़ गोरखपुरी की ये रुबाइयाँ स्कूली पाठ्यक्रमों में भी शामिल हैं। स्वाभाविक तौर पर यह सोचा जा सकता है कि इस आलेख की शुरुआत चंद्रयान-3 से की गई और कहाँ फ़िराक़ गोरखपुरी साहब की रुबाइयों और उसके भावार्थ की चर्चा पर पहुँच गये। दरअसल मूल विषय तो फ़िराक़ साहब ही हैं क्योंकि 28 अगस्त को फ़िराक़ साहब का जन्म हुआ था चूँकि चाँद पर इस समय दुनिया की नज़रें इनायत हैं सो फ़िराक़ गोरखपुरी साहब की चाँद पर लिखी रुबाइयाँ याद आ गईं।ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित स्वधानीता संग्राम सेनानी और ऊर्दू के प्रसिद्ध शायर फ़िराक़ गोरखपुरी का जन्म 127 साल पहले 28 अगस्त 1896 को उत्तरप्रदेश के गोरखपुर में हुआ था। भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित ‘फ़िराक़ गोरखपुरी बज्मे-ज़िंदगीः रंगे शायरी’ में स्वयं फ़िराक़ साहब ने ‘मैं और मेरी’ शायरी शीर्षक से अपने जीवन के अनेक अनछुए पहलुओं का ज़िक्र किया है। वे लिखते हैं, “मैं कई लेहाज़ से एक असाधारण बालक था। घर और घरवालों से असाधारण हद तक गहरा और प्रबल प्रेम था। सहपाठियों और साथियों से भी एसा ही प्रेम था। मुहल्ले-टोले के लोगों से अधिक-से-अधिक लगाव था। मैं इस लगाव-प्रेम की तीव्रता, गहराई, प्रबलता और लगभग मुझे हिला देने वाले तूफ़ानों को जन्म-भर भूल नहीं सका। इतना ही नहीं, घर की हर वस्तु-बिस्तर, घड़े, दूसरे सामान, कमरे, बरामदे, खिड़कियाँ, दरवाजे, दीवारें, खपरैल-मेरे कलेजे के टुकड़े बन गये थे। मुहल्लों की गलियाँ, मुहल्लेवालों के घर, पेड़ और चबूतरे सभी मेरे खून, मेरी नाड़ी, मेरे दिल की धड़कन बन गये थे। तरकारियों और फ़स्लों में दिया जाने वाला पानी, जीव-जन्तुओं का अपने बच्चों को दूध पिलाना, चिड़ियों के चहचहे और उनकी उड़ान, लोगों के दुख-सुख की कहानी मुझे आनन्दित या दुखी करके जड़ से हिलाकर रख देती थीं। लोकगीत, तुलसी-कृत रामायण के पाठ, सूर और मीरा के पद और दूसरे गीत नश्तर की तरह मेरे दिल में उतर आते थे। माँ-बाप, अध्यापकों और साथियों से मैं कुछ नहीं कहता था, मन-ही-मन मैं सभी बातों से तड़प-तड़पकर रह जाता था।“ 12 अक्टूबर 1970 को लिखी गईं यह बातें फ़िराक़ साहब की संवेदनशीलता को गहराई से व्यक्त करती हैं।फ़िराक़ साहब असाधारण प्रतिभा के धनी थे। वे डिप्टी कलेक्टरी और आईसीएस के लिए भी चुने गये थे। 1920 में स्वराज्य आंदोलन में हिस्सा लेने की वजह से वे डेढ़ साल जेल में भी रहे। जेल से छूटकर आने के बाद पं. जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस के दफ़्तर में अंडर-सेक्रेटरी बनाया। नेहरू जी सेक्रेटरी थे। फ़िराक़ साहब महाविद्यालयों और यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी के अध्यापक भी रहे। फ़िराक़ साहब के अनेक प्रसंग हैं। काव्य-रचना को लेकर उऩका कहना था, “साधारण-से-साधारण विषयों को सुगम-से-सुगम भाषा में स्वाभाविक-से-स्वाभाविक शैली में इतना उठा देना कि पंक्तियों की ऊँगलियाँ सितारों को छू लें, यही उच्चतम काव्य-रचना है।“ इसमें कोई संदेह नहीं है कि फ़िराक़ साहब की पक्तियाँ आज भी सितारों को ही स्पर्श करती नज़र आती हैं। उऩकी उनकी रुबाइयात, ग़ज़लियात, मंजूमात (कविताएँ) और अन्य रचनाएँ आज भी प्रासंगिक हैं और जीवन के विविध पहलुओं का सहज बोध कराती प्रतीत होती हैं। ज़िन्दगी और प्यार के सही मायने बताने वाली उनकी रचना की कुछ पंक्तियाँ हैं-ज़िन्दगी क्या है, ये मुझसे पूछते हो दोस्तोएक पैमाँ है जो पूरा होके भी पूरा न हो
बेबसी ये है कि सब कुछ कर गुज़रना इश्क में।सोचना दिल में ये, हमने क्या किया फिर बाद को।।उनकी उनकी रचनाओं में से चंद पंक्तियाँ हैं-बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैंतुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं
रुकी रुकी सी शब-ए-मर्ग ख़त्म पर आईवो पौ फटी वो नई ज़िंदगी नज़र आई
वो चुप-चाप आँसू बहाने की रातेंवो इक शख़्स के याद आने की रातेंफ़िराक़ अपनी क़िस्मत में शायद नहीं थेठिकाने के दिन या ठिकाने की रातेंरघुपति सहाय फिराक गोरखपुरी ने अनुदित और मौलिक गद्य लेखन भी किया। उऩका गद्य लेखन अऩेक रूपों में में सामने आया, मसलन निबंध, लेख, कहानी, संस्मरण, आलोचना, फीचर, सम्पादकीय-लेखन।प्रसिद्ध जर्मन नाट्यकार अर्नेस्ट टालर के नाटक का हिन्दी अनुवाद फ़िराक़ साहब द्वारा किया गया है। आदमी नामक इस पुस्तक की भूमिका में रमेशचंद्र द्विवेदी जी लिखते हैं, “शायद ही साहित्य की एसी कोई विधा हो जो फ़िराक़ से अछूती रह गई हो। काव्य साहित्य में (ऊर्दू में), गज़लें, रुबाइयाँ, दोहे तज़मीनें, आज़ाद नज़्म, छन्दबद्ध कविताएँ और गद्य साहित्य में (हिन्दी, ऊर्दू और अंग्रेजी भाषाओं में) विविध विषयों जैसे साहित्य, राजनीति, समाजशास्त्र, दर्शन, कविता आदि पर गम्भीर विचारोत्परक लेख, कहानी, अनुवाद, सारसेनियो का इतिहास (हिन्दी), पहला शराबी (हिन्दी), टैगोर की गीतांजलि और उनकी एक सौ नज़्में (ऊर्दू), हैमलेट (ऊर्दू) समालोचना (अंग्रेजी, हिन्दी, ऊर्दू) आदि कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं।“ असाधरण प्रतिभा के धनी रघुपति सहाय फ़िराक़ साहब को शत-शत नमन...ग़म का फ़साना सुनने वालो आख़िर्-ए-शब आराम करोकल ये कहानी फिर छेड़ेंगे हम भी ज़रा अब सो ले हैं- फ़िराक़ गोरखपुरी -
मुख्यमंत्री के जन्मदिवस पर विशेष
आलेख- जी. एस. केशरवानी,आनंद सोलंकीमुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल का ठेठ छत्तीसगढ़िया अंदाज रंग ला रहा है। जमीनी हकीकत और छत्तीसगढ़ के लोगों की जरूरतों से जुड़ी उनकी योजनाओं ने पुरखों के सपनों के ‘नवा छत्तीसगढ़‘ गढ़ने की परिकल्पना को धरातल पर साकार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। उनके पिछले पौने पांच साल के कार्यकाल की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि वे छत्तीसगढ़िया गौरव और स्वाभिमान को जगाने में कामयाब रहे हैं।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा छत्तीसगढ़ में प्रारंभ किए गए नवाचारों ने पूरे देश का ध्यान आकर्षित किया और सराहना पायी। नवाचारों को दूसरे राज्यों अपनाने के लिए आगे आ रहे है। संसदीय समितियों और नीति आयोग ने भी छत्तीसगढ़ के इन नवाचारों की सराहना की है। सुराजी गांव योजना, नरवा, गरूवा, घुरवा, बाड़ी योजना, गोबर खरीदी की गोधन न्याय योजना, राजीव गांधी किसान न्याय योजना, राजीव गांधी भूमिहीन कृषि मजदूर न्याय योजना जब प्रारंभ हुई थीं, तब लोगों ने इनकी सफलता पर बड़ा प्रश्न चिन्ह लगाया था, लेकिन इन योजनाओं को लागू करने में मुख्यमंत्री श्री बघेल के दृढ़ संकल्प ने योजनाओं की सफलता ने नया कीर्तिमान बनाया है।ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा छत्तीसगढ़ में लागू की गई न्याय योजनाओं से बड़ा बदलाव आया है। किसानों, मजदूरों, ग्रामीणों, पशुपालकों और गरीबों की जेब में सीधे पैसे डालने की योजनाओं से लोगों की आर्थिक स्थिति और जीवनस्तर में सुधार हुआ है, उनकी क्रय शक्ति में बढ़ोत्तरी हुई है। जिससे छत्तीसगढ़ के बाजारों की रौनक बढ़ी और उद्योग और व्यापार के क्षेत्र में उत्साहजनक वातावरण बना है। नीति आयोग द्वारा हाल ही में जारी रिपोर्ट के अनुसार पिछले पांच वर्षों में छत्तीसगढ़ में 40 लाख लोग गरीबी के दायरे से बाहर आए हैं। इस उपलब्धि में छत्तीसगढ़ सरकार की राजीव गांधी किसान न्याय योजना, राजीव गांधी भूमिहीन कृषि मजदूर न्याय योजना, गोधन न्याय योजना की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद श्री भूपेश बघेल ने सबसे पहले किसानों से किए गए कर्जमाफी का वायदा निभाया और किसानों की कर्जमाफी की घोषणा की। राज्य के किसानों के 9270 करोड़ रुपये से अधिक के कृषि ऋण अदायगी में छूट दी गई। इसके साथ ही 244.18 करोड़ रुपये का सिंचाई कर भी माफ किया गया। किसानों से 2500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से धान खरीदी का वादा किया गया था। समर्थन मूल्य के अलावा अंतर की राशि को राजीव गांधी किसान न्याय योजना लागू कर आदान सहायता के रूप में प्रदान किया जा रहा है।वनवासियों के लिए आय में वृद्धि का स्त्रोत बढ़ाने सरकार द्वारा खरीदी जाने वाली लघुवनोपजों की संख्या को सात से बढ़ाते हुए 65 प्रकार के लघुवनोपज तक कर दी गई है। तेंदूपत्ता के समर्थन मूल्य में बड़ी वृद्धि करते हुए 2500 रुपये से 4000 हजार रुपये तक किया गया। वहीं तेंदूपत्ता संग्राहकों के लिए 5 अगस्त 2020 को शहीद महेन्द्र कर्मा तेंदूपत्ता संग्राहक सामाजिक सुरक्षा योजना की शुरुआत की गई। इसमें 4555 तेंदूपत्ता संग्राहकों को 31 मार्च 2022 की तारीख तक 63 करोड़ 43 लाख रुपये की बीमा राशि का भुगतान किया गया है। आदिवासियों की लोहाण्डीगुड़ा में टाटा समूह द्वारा 4200 एकड़ अधिगृहीत जमीन वापसी कराई गई।स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम स्कूल की शुरुआत करते हुए निम्न आय वर्ग के बच्चों को भी भविष्य में बेहतर अवसर दिलाने की पहल। शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार करते हुए राज्य सरकार द्वारा 377 स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम तथा 350 स्वामी आत्मानंद हिन्दी माध्यम के स्कूल प्रारंभ किए गए है, जहां 4.21 लाख विद्यार्थी अध्ययनरत् हैं। इन विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता और लाइब्रेरी, लैब सहित अधोसंरचना इतनी अच्छी है कि निजी विद्यालयों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों ने इन विद्यालयों में प्रवेश लेने की होड़ लगी रहती है। चंूकि इन स्कूलों में शिक्षा निःशुल्क दी जा रही है, इससे भी शिक्षा पर होने वाले खर्च में लोगों की बचत हो रही है।राज्य के युवाओं को अंग्रेजी माध्यम में उच्च शिक्षा के लिए 10 स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम कॉलेज प्रारंभ किए गए हैं। आने वाले समय में सभी जिला मुख्यालय में अंग्रेजी माध्यम कॉलेज प्रारंभ करने की योजना है। राज्य में मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य हुए है। चार नए मेडिकल कॉलेज प्रारंभ किए गए और जिनमें से एक निजी कॉलेज का अधिग्रहण किया गया है। इसी प्रकार चार नए मेडिकल कॉलेज की घोषणा की गई। इन्हें मिलाकर आने वाले समय में छत्तीसगढ़ में मेडिकल कॉलेजों की संख्या बढ़कर 6 से बढ़कर 14 हो जाएगी।सुराजी गांव योजना के तहत नरवा-गरवा-घुरवा-बाड़ी कार्यक्रम से विशेष प्रसिद्धि प्राप्त की है। गोधन न्याय योजना जिसके अंतर्गत गोबर खरीदी योजना लाया गया और गौठानों का निर्माण किया गया। गोबर के साथ गोमूत्र खरीदने वाला देश का पहला राज्य छत्तीसगढ़ है। महंगी दवाओं से राहत देने के लिए श्री धनवंतरी जेनेरिक मेडिकल स्टोर्स की शुरुआत जहां 50 से 72 फीसदी तक छूट में 300 से अधिक प्रकार की दवाएं और मेडिकल उपकरण उपलब्ध हैं। सी-मार्ट (छत्तीसगढ़ मार्ट) की शुरुआत करते हुए ग्रामीण उत्पादों के लिए बाजार उपलब्ध कराने का कार्य किया गया।इन योजनाओं के साथ-साथ समर्थन मूल्य पर धान खरीदी, लघुवनोपजों की समर्थन मूल्य पर खरीदी और प्रसंस्करण, मिलेट्स के समर्थन मूल्य पर खरीदी और प्रसंस्करण, जैसी योजनाओं ने भी लोगों की आय बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इसके साथ-साथ बेरोजगारी भत्ता योजना ने बेरोजगार युवाओं को संबल प्रदान किया है। राजीव युवा मितान क्लब योजना ने युवाओं को रचनात्मक गतिविधियों से जोड़ने का काम किया है।गांव के गौठानों में प्रारंभ किए गए रूरल इंडस्ट्रीयल पार्क के माध्यम से विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के माध्यम से महिला स्व-सहायता समूहों को रोजगार और आय के साधन मिले हैं। प्रदेश में 300 रीपा विकसित किए जा रहे हैं, जिनमें ग्रामीण युवाओं को छोटे-छोटे उद्योग धंधे प्रारंभ करने के लिए जमीन, बिजली, पानी, बैंक लिंकेज और प्रशिक्षण की सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है। रीपा में पौनी-पसारी के तहत परम्परागत व्यवसाय करने वाले लोगों को भी अपनी गतिविधियों के लिए शेड उपलब्ध कराये जा रहे हैं।राज्य सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं के माध्यम से लगभग पौने दो लाख करोड़ रूपए की राशि जनता की जेब में डाली गई है। छत्तीसगढ़ सरकार की न्याय योजनाओं के चलते बीते पौने पांच सालों में प्रति व्यक्ति का 88,793 रूपए से बढ़कर 1,33,898 रूपए हो गई है। इस अवधि में छत्तीसगढ़ का जीएसडीपी 3,27,106 करोड़ रूपए से बढ़कर 5,09,043 करोड़ रूपए हो गयी है। मार्च 2020 से निरंतर दो वर्ष तक कोविड-19 आपदा के कारण आर्थिक गतिविधियां मद होने के बावजूद राज्य शासन की नीतियों और न्याय योजनाओं के चलते अर्थव्यवस्था के आकार में 56 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वर्ष 2022-23 में कृषि, औद्योगिक एवं सेवा क्षेत्र में छत्तीसगढ़ राज्य की विकास दर राष्ट्रीय औसत से काफी ज्यादा रही है।राज्य शासन द्वारा राजीव गांधी किसान न्याय योजना के तहत 24.30 लाख किसानों को इनपुट सब्सिडी के रूप में अब तक 21 हजार 912 करोड़ रूपए का भुगतान किया जा चुका है। इसी तरह ‘राजीव गांधी भूमिहीन कृषि मजदूर न्याय योजना’ के 5.6 लाख हितग्राहियों को अब तक 758.03 करोड़ रूपए का भुगतान किया जा चुका है। इस योजना के हितग्राहियों को किश्तों में प्रतिवर्ष 7000 रूपए की मदद दी जा रही है। ‘गोधन न्याय योजना’ के तहत अब तक महिला स्व-सहायता समूहों, गौठान समितियों और ग्रामीणों को 551.31 करोड़ रूपए का भुगतान किया जा चुका है।इसी तरह राज्य में गठित किए 13 हजार 242 राजीव युवा मितान क्लबों को अब तक 132.48 करोड़ रूपए की राशि का भुगतान किया जा चुका है। बेरोजगारी भत्ता योजना के तहत प्रदेश के 01 लाख 22 हजार 625 हितग्राहियों को अब तक 112 करोड़ 43 लाख 30 हजार रूपए की राशि दी जा चुकी है। युवाओं को शासकीय नौकरी का अवसर प्रदान करने के लिए हाल ही में राज्य में 42 हजार पदों पर भर्ती प्रक्रिया की जा रही है। प्रतियोगी परिक्षाओं में फीस माफ की गई है। राज्य के युवाओं को उद्योगों में रोजगार के अवसर दिलाने के लिए 36 आईटीआई का आधुनिकीकरण किया जा रहा है। जहां नए जमाने के अनुरूप विभिन्न ट्रेडों में युवाओं को तकनीकी प्रशिक्षण की व्यवस्था रहेगी। इससे प्रतिवर्ष 10 हजार युवाओं को प्रशिक्षण मिलेगा।तेन्दूपत्ता संग्राहकों की मेहनत का उचित मूल्य दिलाने के लिए राज्य सरकार द्वारा तेन्दूपत्ता संग्रहण की दर 2500 रूपए से बढ़ाकर 4000 रूपए प्रति मानक बोरा की गई है। इसी तरह 67 प्रकार की लघु वनोपजों के समर्थन मूल्य पर खरीदी के साथ उनके प्रसंस्करण का काम प्रारंभ होने से वनोपज संग्राहकों की आय में वृद्धि हुई है।राज्य सरकार द्वारा लागू की गई किसान हितैषी योजनाओं से प्रदेश में खेती-किसानी की अच्छी प्रगति हुई है। ऐसे किसान जो कृषि लागत बढ़ने के कारण खेती-किसानी छोड़ चुके थे, वे भी खेतों की ओर लौटे है। पिछले पौने पांच वर्षों में समर्थन मूल्य पर धान बेचने वाले किसानों की संख्या 12 लाख से बढ़कर 24 लाख से ज्यादा हो गई है। खेती का रकबा भी 24.46 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 31.17 लाख हेक्टेयर हो गया है। खेती की प्रगति से समर्थन मूल्य पर धान का उर्पाजन 55 लाख मीटरिक टन से बढ़कर 107 लाख मीटरिक टन हो गया है।प्रदेश में मछली पालन, लाख पालन को कृषि का दर्जा दिया गया है। इसके अलावा रेशम पालन और मधुमक्खी पालन को कृषि का दर्जा देने की घोषणा की गई है। समर्थन मूल्य पर धान खरीदी के एवज में किसानों को वर्ष 2019-20 में 15 हजार 285 करोड़, वर्ष 2020-21 में 17 हजार 241 करोड़, वर्ष 2021-22 में 19 हजार 37 करोड़ तथा वर्ष 2022-23 में 22 हजार 67 करोड़ रूपए का भुगतान किया गया है। खेती-किसानी को मिले प्रोत्साहन से शून्य प्रतिशत ब्याज पर अल्पकालीन कृषि ऋण लेने वाले किसानों की संख्या वर्ष 2018-19 में 9.94 लाख से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 14.07 लाख हो गई है।लोगों की बचत को बढ़ावा देने में राज्य सरकार की हाफ बिजली बिल योजना, जिसमें 400 यूनिट तक बिजली की खपत पर आधा बिजली बिल देना होता है। किसानों को रियायती दर पर बिजली की आपूर्ति, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसानों को निःशुल्क बिजली प्रदाय, राज्य सरकार की सार्वभौमिक सार्वजनिक वितरण प्रणाली, इलाज के लिए डॉ. खूबचंद बघेल स्वास्थ्य सहायता योजना के तहत गरीबों को इलाज के लिए पांच लाख रूपए तक की सहायता, मुख्यमंत्री विशेष स्वास्थ्य सहायता योजना के तहत इलाज के लिए 20 लाख रूपए तक की सहायता उपलब्ध कराने की पहल की गई है। हमर लैब के माध्यम से जांच की सुविधा, हाट बाजार क्लिनिक योजना, मुख्यमंत्री शहरी स्लम स्वास्थ्य योजना, दाई-दीदी क्लिनिक योजना जैसी योजनाओं ने भी लोगों के खर्च कम करने में मदद की है।लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में छत्तीसगढ़ सरकार योजनाओं की सफलता पर नीति आयोग ने भी हाल ही में जारी अपनी रिपोर्ट में मुहर लगायी है। इस रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ के कबीरधाम, सरगुजा और दंतेवाड़ा में 23 से 25 प्रतिशत लोग गरीबी से बाहर आ गए हैं। रायपुर, धमतरी और बालोद जिले में गरीबी का अनुपात अब 10 प्रतिशत से कम रह गया है। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ सरकार की जनहितैषी नीतियों और न्याय योजनाओं से राज्य के 40 लाख लोग गरीबी से बाहर निकलने में सफल हुए हैं। -
बहुत विरले होते हैं वे कलाकार जिनकी अद्भुत कला की बदौलत न सिर्फ उन्हें, बल्कि उनके गाँव, शहर, जिले, राज्य और देश को पूरे विश्व में पहचान मिलती है। बिहार का गाँव डुमराँव और शहनाई एक दूसरे के पर्याय हैं। शहनाई का जिक्र होते ही पूरी दुनिया में सिर्फ एक ही नाम गूँजता है, भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ...वे आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी शहनाई की गूँज उनके रहने का हर पल एहसास कराती रहेगी। वे दो कौमों के आपसी भाईचारे की मिसाल थे। वे मज़हब के प्रति समर्पित थे, पाँचों वक्त की नमाज अदा करते थे, लेकिन उनकी श्रद्धा काशी विश्वनाथ और बालाजी मंदिर के प्रति भी थी। 17 साल पहले 21 अगस्त 2006 को उनका इंतकाल हुआ, लेकिन उनकी शहनाई का मंगल गान अनंतकाल रहेगा। 107 साल पहले 21 मार्च 1916 को उनका जन्म हुआ था। ख़ाँ साहब पर संचार के विभिन्न नये-पुराने माध्यमों में कितना कुछ लिखा, कहा और दर्शाया जाता रहा है। नई पीढ़ी को समय-समय पर ख़ाँ साहब जैसी देश की प्रसिद्ध शख्सियतों से अवगत कराना आवश्यक प्रतीत होता है। प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित एक पुस्तक का नाम है ‘रागगीरी’ जिसमें फिल्मी संगीत में शास्त्रीय रागों की अनसुनी कहानियों का अद्भुत यथार्थ है। शिवेंद्र कुमार सिंह और गिरिजेश कुमार द्वारा लिखित इस पुस्तक में भी उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ से संबंधित अनेक महत्वपूर्ण बातों का जिक्र मिलता है। ‘’15 अगस्त 1947 को आजाद भारत की पहली सुबह का स्वागत उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ की शहनाई से हुआ था। यह देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के आग्रह पर हुआ था। तब ख़ाँ साहब की उम्र 30 साल थी, उनकी आँखें नम थीं और उन्होंने ‘राग काफी’ गाया था। यह चंचल किस्म का राग है जिसमें छोटा खयाल और ठुमरियाँ खूब गाई जाती हैं। कहा जाता है कि पं. जवाहर लाल नेहरू जब झंडा फहराने जा रहे थे तब खुले आसमान में इंद्रधनुष नजर आया था। उसे देखकर वहां एकत्र हजारों लोगों की भीड़ हतप्रभ रह गई थी। इसका उल्लेख माउंटबेटन ने 16 अगस्त 1947 को लिखी अपनी 17वीं रिपोर्ट में भी किया।‘’
'भारत के महान संगीतज्ञ' पुस्तक में मोहनानंद झा लिखते हैं कि ‘’स्वतंत्रता के 50 वर्ष पूरे होने पर सन 1997 की 15 अगस्त के सूर्योदय का स्वागत भी बिस्मिल्लाह ख़ाँ की शहनाई वादन से हुआ था।‘’ रामपाल सिंह और बिमला देवी 'भारत रत्न सम्मानित विभूतियाँ' में लिखते हैं कि ‘’उनके पिता पैगम्बर बख्श अपने समय के श्रेष्ठतम संगीतज्ञों में से एक थे। छह वर्ष की आयु से ही उन्होंने शहनाई को संगीत के रूप में चुना। वे बालपन से ही मिलनसार, सरल चित्त व खुदा में विश्वास रखने वाले व्यक्ति थे। मुसलमान होते हुए भी सरस्वती के उपासक थे जो हिन्दु धर्म में ज्ञान की स्त्रोत मानी जाती है। उन्हें संगीत एक दैवीय वरदान के रूप में मिला। खाँ साहब ने शहनाई का गुर अपने मामा से सीखा।‘’उनकी भक्ति और साधना का ही प्रतिफल था की मात्र 14 वर्ष की अल्पायु में सन् 1930 में उन्हें अखिल भारतीय संगीत परिषद में अपना पहला महफिर पेश करने का अवसर प्राप्त हुआ। यहाँ से उनके यश की यात्रा शुरू हुई। सन् 1936 में मात्र 20 वर्ष की अवस्था में कलकत्ता की लाल बाबू कान्फ्रेंस में उन्होंने शहनाई वादन का कार्यक्रम प्रस्तुत कर उस समय के प्रसिद्ध कलाकारों को विस्मय में डाल दिया। गुरू-शिष्य परंपरा के वे प्रबल समर्थक थे। वे अपने शिष्यों को उसी प्रकार अभ्यास करवाते थे जैसा उन्हें करवाया गया था।शिष्य परिवार में उन्हें उस्ताद नहीं अपितु गुरुदेव कहा जाता था। समर्पित शिष्यों को वह निःशुल्क सिखाते थे। उनका कहना था कि राग, बंदिशें, ताल, सुर तथा नोटेशन सभी किताबों में उपलब्ध हैं, किन्तु उसकी अनुभूति और उसका दर्शन स्वयं को करना पड़ता है। गुरू केवल इस प्रक्रिया का मार्गदर्शक है। सन 1960 में गूँज उठी शहनाई फिल्म में दी गई संगीत की धुन बिस्मिल्लाह ख़ाँ की है जिसमें शहनाई के स्वरों का मर्मभेदी प्रयोग कर उन्होंने अपने को अमर बना लिया। भारत सरकार की ओर से 1961 में उन्हें पद्मश्री, 1963 में अखिल भारतीय शहनाई चक्रवर्ती की उपाधि से विभूषित किया गया। सन् 1986 में मराठवाड़ा विश्वविद्यालय, 1988 में विश्वभारती शांति निकेतन, 1989 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, 1995 में काशी विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें मानद डी.लिट की उपाधि प्रदान की गई। 1994 में उन्हें स्वरलय पुरस्कार (मद्रास), भारत शिरोमणी पुरस्कार व राजीव गांधी राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार प्रदान किया गया।अनेक राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से अलंकृत उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ के अनेक रोचक प्रसंग हैं।स्कूली पाठ्यक्रमों में उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ से संबंधित अनेक प्रश्न पूछे जाते रहे हैं। विभिन्न वेबसाइट्स में प्रतियोगी परीक्षाओँ के महत्वपूर्ण नोट्स भी शामिल हैं। बिहार बोर्ड के दसवीं का पाठ है ‘नौबत खाने में इबादत’ जिसके लेखक यतीन्द्र मिश्र हैं, यह उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ पर रोचक शैली में लिखा गया व्यक्तिचित्र है। इन्होंने किस प्रकार शहनाई वादन में बादशाहत हासिल की, इसी का लेखा-जोखा इस पाठ में है। बिस्मिल्लाह ख़ाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक कहा गया है क्योंकि इनकी शहनाई से सदा मंगलध्वनि ही निकली, कभी भी अमंगल स्वर नहीं निकले। परंपरा से ही शहनाई को मांगलिक विधि-विधानों के अवसर पर बजाया जाने वाला यंत्र माना गया है। वे सभी धर्मों के साथ समान भाव रखते थे। दो कौमों के आपसी भाईचारे के मिसाल उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ को शत-शत नमन... - -डॉ. जितेन्द्र सिंह, राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालयविश्व आज भारत की अद्भुत वैज्ञानिक क्षमता और कौशल से आश्चर्यचकित है, जो सुसुप्त थी और किसी को भी उसके बारे में सही रूप में पता नहीं था। वास्तव में, यह एक सक्षम वातावरण और एक समर्थक नेतृत्व मिलने की प्रतीक्षा में थी।यदि संक्षेप में कहें तो यह इतिहास का वह क्षण था जब श्री नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने और शेष तो इतिहास ही है। दुनिया को पहली बार डीएनए कोविड वैक्सीन उपहार में देने से लेकर चंद्रयान को घर लाने तक और चंद्रमा की सतह पर पानी की मौजूदगी का प्रमाण...यह मोदी के भारत की साक्ष्य आधारित अमिट छाप है, जिसने भारत को विश्वभर में व्यापक तौर पर एक सशक्त राष्ट्र के रूप में स्थापित किया है।पिछले 9 वर्षों में भारत, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार (एसटीआई) से संबंधित राष्ट्रीय नीतियां अभूतपूर्व संख्या में लेकर आया है। कुछ प्रमुख नीतियों में भारतीय अंतरिक्ष नीति (2023), राष्ट्रीय भू-स्थानिक नीति (2022); राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) (2020); इलेक्ट्रॉनिक्स पर राष्ट्रीय नीति (एनपीई) (2019); स्कूली शिक्षा में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी पर राष्ट्रीय नीति (2019); छात्रों और संकाय के लिए राष्ट्रीय नवाचार और स्टार्टअप नीति (2019); राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (2017); बौद्धिक संपदा अधिकार नीति (2016), आदि शामिल हैं।इसी तरह, सरकार ने राष्ट्रीय क्वांटम मिशन (2023), वन हेल्थ मिशन (2023), नेशनल डीप ओशन मिशन (2021) आदि भी लॉन्च किए।एसईआरबी डेटा के अनुसार, पिछले 10 वर्षों में औसतन, कुल अनुसंधान निधि का लगभग 65 प्रतिशत आईआईएससी, आईआईटी, आईआईएसईआर आदि जैसे राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों को दिया जा रहा है और केवल 11 प्रतिशत धनराशि राज्यों के विश्वविद्यालयों को प्रदान की जा रही है, जहां अनुसंधानकर्ताओं की संख्या आईआईटी की तुलना में बहुत अधिक है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अनुसंधान निधि की वर्तमान प्रणाली प्रतिस्पर्धी अनुदान द्वारा प्रेरित है। इसी तरह, अधिकांश राज्यों के विश्वविद्यालयों में अनुसंधान की आधारभूत संरचना राष्ट्रीय शैक्षणिक और अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं की तुलना में बहुत कमजोर है।हमारे विश्वविद्यालयों में शिक्षा जगत और उद्योग जगत की साझेदारी और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग अपर्याप्त रहा है।वास्तव में परिवर्तनकारी अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना करना प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का भी विज़न था, जो न केवल वर्तमान अनुसंधान एवं विकास के इकोसिस्टम की कुछ बड़ी चुनौतियों का समाधान करेगा, बल्कि देश को दीर्घकालिक अनुसंधान एवं विकास को लेकर विजन प्रदान करेगा और भारत को अगले 5 वर्षों में वैश्विक स्तर पर अनुसंधान एवं विकास के एक अग्रणी देश के रूप में स्थापित करेगा।अनुसंधान एनआरएफ (एएनआरएफ) गणितीय विज्ञान, इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी, पर्यावरण और पृथ्वी विज्ञान, स्वास्थ्य और कृषि सहित प्राकृतिक विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान, नवाचार और उद्यमिता के लिए उच्च स्तरीय रणनीतिक दिशा प्रदान करेगा। यह मानविकी और सामाजिक विज्ञान के वैज्ञानिक और तकनीकी इंटरफेस को बढ़ावा देने, निगरानी करने और ऐसे अनुसंधान और उससे जुड़े या उससे संबंधित विषयों के लिए आवश्यकतानुसार सहायता प्रदान करने के लिए भी प्रोत्साहित करेगा। एएनआरएफ अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देगा और भारत के विश्वविद्यालयों, कॉलेजों, अनुसंधान संस्थानों और अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं में अनुसंधान और नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा देगा।भारत सरकार का विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), एएनआरएफ का प्रशासनिक विभाग होगा जो एक संचालक मंडल द्वारा शासित होगा, जिसमें विभिन्न विषयों के प्रतिष्ठित अनुसंधानकर्ता और पेशेवर शामिल होंगे। साथ ही, प्रधानमंत्री इस संचालक मंडल के पदेन अध्यक्ष होंगे। केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री और केंद्रीय शिक्षा मंत्री पदेन उपाध्यक्ष होते हैं। एनआरएफ का कामकाज भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में एक कार्यकारी परिषद द्वारा नियंत्रित होगा।एएनआरएफ उद्योग, शिक्षा जगत और सरकारी विभागों और अनुसंधान संस्थानों के बीच सहयोग स्थापित करेगा, और वैज्ञानिक तथा संबंधित मंत्रालयों के अलावा उद्योगों और राज्य सरकारों की भागीदारी एवं योगदान के लिए एक इंटरफेस की प्रणाली तैयार करेगा। यह एक नीतिगत संरचना तैयार करने और नियामक प्रक्रियाओं को स्थापित करने पर ध्यान केंद्रित करेगा, जो अनुसंधान एवं विकास पर उद्योग द्वारा सहयोग और उस पर व्यय में वृद्धि को प्रोत्साहित कर सके।एएनआरएफ की स्थापना पांच वर्षों (2023-28) के दौरान 50,000 करोड़ रूपये की कुल अनुमानित लागत से जाएगी। 50,000 करोड़ रुपये की एएनआरएफ फंडिंग के तीन घटक होंगे - 4000 करोड़ रुपये का एसईआरबी फंड; 10,000 करोड़ रुपये का एएनआरएफ फंड, जिसमें से 10 प्रतिशत फंड (1000 करोड़ रुपये) इनोवेशन फंड के लिए रखा जाएगा। इनोवेशन फंड का उपयोग निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी में अनुसंधान एवं विकास के लिए किया जाएगा और 36,000 करोड़ रुपये के कोष का योगदान उद्योग, परोपकारी संगठनों, अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों आदि द्वारा दिया जाएगा।केंद्र सरकार वर्तमान में एसईआरबी को प्रति वर्ष 800 करोड़ रुपये का फंड प्रदान करती है, जिसमें निजी क्षेत्र का बहुत कम या कोई योगदान नहीं होता है। प्रस्तावित एएनआरएफ में, सरकारी योगदान को 800 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 2800 करोड़ रुपये प्रति वर्ष (~ 3.5 गुना) करने का प्रस्ताव है। प्रस्तावित एएनआरएफ में निजी क्षेत्र का योगदान 5 वर्षों के लिए 36,000 करोड़ रुपये (~ 7200 करोड़ रुपये प्रति वर्ष) किया जा रहा है।आने वाले वर्षों में वैश्विक अनुसंधान एवं विकास के क्षेत्र में भारत के नेतृत्व का लक्ष्य प्राप्त करने और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एएनआरएफ की स्थापना भारत के सबसे परिवर्तनकारी कदमों में से एक साबित होगा।[लेखक विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय में राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय; कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन; परमाणु ऊर्जा विभाग और अंतरिक्ष विभाग में राज्य मंत्री हैं]
- बीते 76 वर्षों से आजाद भारत के खुले गगन में कितनी आसानी से हम अमन-चैन की साँसें ले रहे हैं, लेकिन इस आजादी की बहुत बड़ी कीमत हमारे पूर्वजों ने चुकाई है! हमें आसानी से नहीं मिली है यह आजादी! वृहद इतिहास है आजादी की गाथाओं का, जिसकी अनुगूँज देश के कोने-कोने की मिट्टी में समाई है! निःसंदेह इनमें अनगिनित वे वीर सपूत भी होंगे जो गुमनाम हो गए। जलियांवाला बाग की घटना की कहानी आज भी रोंगटे खड़े कर देती है। इस तरह की अनेक घटनाएँ हैं। कितनी नृशंस हत्याएँ अंग्रेजों ने की…! कितने जुल्म हमारे पूर्वजों ने सहन किए…! आज तरक्की के जिस मुकाम पर स्वतंत्र भारत खड़ा है, उसमें हमारे वीर जवानों की शहादत के योगदान को कभी विस्मृत नहीं किया जा सकता। इस समय भी देश की रक्षा के लिए प्राण न्यौछावर करने को तैयार खड़ा हर एक फौजी और उनका परिवार अहम योगदान दे रहा है।स्वतंत्रता दिवस और आजादी के अमृत महोत्सव के समापन के मौके पर देश के क्रांतिकारी लोकप्रिय शायर और महान कवि जगदम्बा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’ की लिखी प्रसिद्ध गजल की पंक्तियाँ याद आ रही हैं-शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेलेउरूजे कामयाबी पर कभी हिन्दोस्ताँ होगारिहा सैयाद के हाथों से अपना आशियाँ होगाचखाएँगे मज़ा बर्बादिए गुलशन का गुलचीं कोबहार आ जाएगी उस दम जब अपना बाग़बाँ होगायह पंक्तियाँ आजादी के 31 साल पहले लिखी गईं थीं। आजादी के 76 साल हो चुके हैं और यह 77वां स्वतंत्रता दिवस है। देशवासियों के मन में देशप्रेम की अखण्ड ज्योति प्रज्वलित करने वाली उपर्युक्त पंक्तियाँ अटल देशभक्ति, बरसों पहले देखे गए स्वतंत्र भारत के साकार होते स्वप्न और मिश्र जी की दूरदर्शिता का प्रत्यक्ष प्रमाण है। इतिहास के पन्नों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि सन 1916 में प्रकाशित ‘अमेरिका को स्वतंत्रता कैसे मिली’ नामक पुस्तक में हितैषी जी की उपर्युक्त गज़ल छपी थी। कहीं-कहीं यह भी उल्लेख मिलता है कि शुरुआत की पंक्ति में ‘’शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे मेले’’ की जगह ‘’शहीदों मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले’’ लिखा गया है। खैर, ‘’वतन पर मरने वालों का यही बाकी होगा...’’ इन दो पंक्तियों ने उस समय पूरे देश में क्रांतिकारी आंदोलन को गति प्रदान की थी। ये पंक्तियाँ जन-जन की जुबाँ पर बस गईं थीं। कहा जाता है कि जब किसी शहीद को फाँसी लगती थी तो भी यह पंक्ति गाई जाती थी। आज स्वतंत्र भारत में भी यह जन-जन की जुबां पर मौजूद है। वास्वत में उनकी गज़ल आजादी के बाद से लेकर आज डिजिटल युग तक में भी प्रासिंगक प्रतीत होती हैं। शहीदों की चिताओं पर हर बरस मेले जुड़ते रहे हों या नहीं, यह शोध का विषय हो सकता है, लेकिन सबसे बड़ा मेला जुड़ा आजादी के अमृत महोत्सव के रूप में जिसे विश्व का सबसे बड़ा और सबसे लम्बे दिनों तक चलने वाला महोत्सव कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। आजादी की 75वीं वर्षगांठ से 75 सप्ताह पहले 12 मार्च 2021 को अधिकारिक रूप से आजादी के अमृत महोत्सव की शुरुआत हुई थी और 15 अगस्त 2023 को ‘मेरी माटी मेरा देश’ अभियान के अंतर्गत देश के कोने-कोने से लाई गई मिट्टी से स्थापित अमर वाटिका की स्थापना के साथ समापन।2 साल 4 माह 230 दिन तक यह उत्सव विभिन्न रचनात्मक गतिविधियों, गुमनाम शहीदों की दास्तां को सामने लाने और देश के लिए जान की बाजी लगाने वाले वीर सपूतों की कहानियों को युवा पीढ़ी से अवगत कराने के साथ मनाया गया। इस दौरान शहीदों की याद में हर दिन मेले जुड़े और सिर्फ भारत ही नहीं, विश्व के अनेक देशों में भी, जहाँ बसे प्रवासी भारतीयों ने आजादी का अमृत महोत्सव मनाया। इस महोत्सव के अंतर्गत देश और विदेश में अनेक नए-नए विश्व रिकार्ड स्थापित हुए।बीते वर्ष 2022 के अगस्त माह में प्रवासी भारतीयों ने न्यूयॉर्क के मेडिसन स्क्वॉयर पर इडिया डे परेड में कीर्तिमान रच दिया। फेडरेशन ऑफ इंडियन एसोसिएशन (FIA) ने न्यूयॉर्क में भारतीय डायस्पोरा की मेजबानी में आयोजित वार्षिक इंडिया डे परेड में दो गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाए। पहला, एक ही समय में सबसे अधिक तिरंगा फहराने का और दूसरा संगीत वाद्ययंत्र में बड़ी संख्या में डमरू और ड्रम के इस्तेमाल के लिए। डेढ़ लाख लोगों की भागीदारी के बीच इस आयोजन ने अमेरिका में भारत को गौरवान्वित कर दिया। देश में भी इस तरह के अनेक विश्व रिकार्ड बने जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी देशभक्ति की भावना को चिरस्थाई बनाए रखने और शहीदों के बलिदान को अविस्मरणीय बनाए रखने का अहम माध्यम रहे।भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की “पुनः चमकेगा दिनकर” नामक कविता की प्रासंगिक पंक्ति है -चीर निशा का वक्षपुनः चमकेगा दिनकरअपना बागबाँ जब सैयाद के हाथों रिहा हुआ तो बागबाँ में बहार आने लगी। वतर्मान परिप्रेक्ष्य में विश्व का सातवां सबसे बड़ा देश भारत विश्व की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। भारत वर्तमान में विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। वर्ष 2013-14 में ग्यारवां स्थान था। हमारा देश विश्व पटल पर एक नये भारत के रूप में उभर रहा है। कोरोना महामारी काल में भारत ने विश्व के सौ से भी ज्यादा देशों की हरसम्भव सहायता कर पूरी दुनिया को प्रमाणित कर दिखाया कि वह पूरे विश्व को एक परिवार मानता है।भारत को जी-20 की अध्यक्षता का सम्मान मिलना हर देशवासी के लिए गौरव की बात है, क्योंकि दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्तियाँ जी-20 की सदस्य हैं। वैश्विक जीडीपी में जी-20 का हिस्सा करीब 85 प्रतिशत है और वैश्विक व्यापार में इस समूह का योगदान 75 फीसदी से भी ज्यादा है। शिखर सम्मेलन में दुनिया के तमाम विकसित देशों के राष्ट्र प्रमुख एक साथ जुटते हैं। भारत की जी-20 की अध्यक्षता का सार "वसुधैव कुटुंबकम" अर्थात "एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य" की थीम में सन्निहित है। भारत को दुनिया को एक साथ लाने का यह अवसर मिलना जगदम्बा प्रसाद मिश्र की लिखी कविता की इस एक पंक्ति को भी सार्थक बनाती है- “बहार आ जाएगी उस दम जब अपना बाग़बाँ होगा।“भारत आज वर्ल्ड बैंक के लॉजिस्टिक परफॉर्मेंस इंडेक्स में 16वें स्थान पर है। वर्ष 2014 में 54वां स्थान था। वैश्विक स्तर पर पूरी दुनिया की दृष्टि आज भारत पर है, फिर वह चंद्रयान-3 का ही मिशन क्यों न हो। संयुक्त राष्ट्र संघ के कामकाज और जरूरी संदेश आज हिन्दी में भी जारी किये जाते हैं। पूरे विश्व में प्रवासी भारतीयों की आबादी सबसे ज्यादा है। विश्व में राजभाषा हिन्दी का अपना विशेष महत्व है। विश्व के सौ से भी ज्यादा देश के स्कूलों और विश्वविद्यालयों में हिन्दी भाषा का अध्ययन-अध्यापन कराया जाता है।दुनिया की अऩेक बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों में मुख्य कार्यकारी अधिकारी से लेकर अनेक देशों के कानून और अर्थव्यवस्था में निर्णय लेने वाली संस्थाओं का प्रमुख हिस्सा बनने में भारतीयों की भूमिका अहम रही है। गूगल और अल्फाबेट के सीईओ भारतीय मूल के अमेरिकी व्यवसायी पद्मभूषण सुंदर पिचई, दुनिया के सबसे लोकप्रिय वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म यूट्यूब के सीईओ भारतीय मूल के नील मोहन, माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्या नाडेला सहित अनेक महान शख्सियतें इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।प्रसिद्ध अर्थशास्त्री मार्टिन वूल्फ ‘द फाइनैशल टाइम्स’ में लिखे अपने लेख में लिखते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया में तेजी से एक बड़ी ताकत बनने की ओर अग्रसर है और वैश्विक अथवा अमेरिकी अर्थवय्वस्था में कोई विशेष बदलाव नहीं होता है तो 2050 तक भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार अमेरिका के समान होगा। जीवन के हर क्षेत्र में भारत ने विश्व क्षितिज में अपनी पहचान स्थापित की है। जरूरत है देश को विश्व-गुरू की राह पर अग्रसर करने की। यदि हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री बॉस कहते हैं और अमेरिकी राष्ट्रपति भी विश्व स्तर पर उन्हें एक ताकतवर नेता मानते हैं तो यह हमारे देश का गौरव है, हमारे देश का अभिमान है। यह पूरी दुनिया में भारत के बढ़ते कद का संकेत है। दुनिया के इंटरनेशनल फोरम में भारत को अब गंभीरता से लिया जाता है। राजनीतिक चश्मे को उतारकर सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ लिखे गये इस आलेख का समापन मैं भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी की “पड़ोसी से” नामक कविता की चंद पंक्तियों के साथ करना चाहूँगा-अगणित बलिदानों से अर्जित यह स्वतंत्रताअश्रु, स्वेद शोणित से सिंचित यह स्वतंत्रतात्याग, तेज, तप, बल से रक्षित यह स्वतंत्रताप्राणों से भी प्रियतर यह स्वतंत्रता।वीर शहीदों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को शत-शत नमन... स्वतंत्रता दिवस की आप सभी को और पूरी दुनिया के विभिन्न देशों के कोने-कोने में बसे प्रवासी भारतीयों को हार्दिक शुभकामनाएं...जय हिन्द...जय भारत...वन्दे मातरम...
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विश्व आदिवासी दिवस पर विशेष
ललित चतुर्वेदी, उप संचालकआनंद सोलंकी, सहायक संचालकरायपुर / छत्तीसगढ़ के वन और आदिवासी सदियों से राज्य की पहचान रहे हैं। प्रदेश के लगभग आधे भू-भाग पर जंगल हैं, जहां छत्तीसगढ़ की गौरवशाली आदिम संस्कृति फूलती-फलती है। आदिवासियों का पूरा जीवन वनों पर आधारित होने के बावजूद समय के साथ-साथ उनकी वनों के साथ दूरी बढ़ती गई। भारत के दूसरे आदिवासी क्षेत्रों की तरह छत्तीसगढ़ के आदिवासियों को भी जल-जंगल-जमीन पर अपने अधिकार के लिए लड़ाई लड़नी पड़ी। पृथक छत्तीसगढ़ राज्य का सपना इन्हीं अधिकारों की वापसी का सपना था।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने आदिवासियों तक उनके सभी अधिकार पहुंचाने का वायदा किया था। साथ ही उन्हें हर तरह के शोषण से मुक्ति दिलाने का भी वायदा किया था। इन वायदों को पूरा करने के लिए सरकार ने लगातार ऐसे कदम उठाए, जिनसे वनों के साथ आदिवासियों का रिश्ता फिर से मजबूत हुआ है और इन क्षेत्रों में विकास की नई सुबह हुई है।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ सरकार की विकास, विश्वास और सुरक्षा नीति के चलते वनांचल में रहने वाले लोगों के जीवन में तेजी से बदलाव आने लगा है। श्री भूपेश बघेल की सरकार ने आदिवासी समाज की जरूरतों और अपेक्षाओं को ध्यान में रखकर योजनाएं बनाई और पूरी संवेदनशीलता के साथ उनका क्रियान्वयन किया। सरकार बनते ही इसकी शुरूआत लोहंडीगुड़ा के किसानों की जमीन वापसी से की। बस्तर के लोहंडीगुड़ा क्षेत्र के 10 गांवों में एक निजी इस्पात संयंत्र के लिए 1707 किसानों से अधिग्रहित 4200 एकड़ जमीन वापिस की गई। इससे वहां के निवासियों को कृषि व्यवसाय के लिए पट्टे दिए जा सकेंगे। नए उद्योगों की स्थापना हो सकेगी। आजादी के बाद पहली बार अबूझमाड़ क्षेत्र के 2500 किसानों को मसाहती खसरा प्रदान किया गया। अब तक अबूझमाड़ के 18 गांवों के सर्वे का कार्य पूरा कर लिया गया है और 2 गांवों का सर्वे प्रक्रियाधीन है।वनांचल में तेजी से बदलाव लाने के लिए राज्य सरकार ने तेंदूपत्ता संग्रहण दर को 2500 रूपए प्रति मानक बोरा से बढ़ाकर 4000 रूपए प्रति मानक बोरा करके, 67 तरह के लघु वनोपजों के समर्थन मूल्य पर संग्रहण, वेल्यूएडिशन और उनके विक्रय की व्यवस्था की गई। इनका स्थानीय स्तर पर प्रसंस्करण और वेल्यू एडिशन करके राज्य सरकार ने न सिर्फ आदिवासियों की आय में बढ़ोत्तरी की है, बल्कि रोजगार के अवसरों का भी निर्माण किया है। वर्ष 2018-19 से लेकर वर्ष 2022-23 में राज्य में 12 लाख 71 हजार 565 क्विंटल लघु वनोपज की खरीदी समर्थन मूल्य पर की गई, जिसका कुल मूल्य 345 करोड़ रूपए है। वनोपज संग्रहण के लिए संग्राहकों को सबसे अधिक पारिश्रमिक देने वाला राज्य छत्तीसगढ़ है। तेन्दूपत्ता संग्राहकों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए शहीद महेन्द्र कर्मा तेन्दूपत्ता संग्राहक सामाजिक सुरक्षा योजना अगस्त 2020 में शुरू की गई। योजना के अंतर्गत 3827 हितग्राहियों को 57.52 करोड़ रूपए की अनुदान राशि उपलब्ध कराई गई है।आदिवासी बहुल छत्तीसगढ़ की आदिवासी संस्कृति से देश-दुनिया को परिचित कराने के लिए राष्ट्रीय नृत्य महोत्सव जैसे गौरवशाली आयोजनों की शुरूआत राज्य सरकार द्वारा की गई। देवगुड़ियां और घोटुलों का संरक्षण और संवर्धन कर राज्य सरकार ने आदिम जीवन मूल्यों को सहेजा और संवारा है। श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में सरकार ने देवगुड़ी, ठाकुरदेव एवं सांस्कृतिक केन्द्र घोटुल निर्माण व मरम्मत के लिए दी जाने वाली राशि में उल्लेखनीय वृद्धि की है।वर्ष 2017-18 में प्रति देवगुड़ी के लिए एक लाख रूपए की सहायता प्रदान की जाती थी, राज्य शासन द्वारा वर्ष 2021-22 में वृद्धि कर प्रति देवगुड़ी, घोटुल निर्माण, मरम्मत के लिए 5 लाख रूपए तक की सीमा कर दी है। विगत साढ़े तीन वर्षों में 2763 देवगुड़ी के लिए 51 करोड़ 55 लाख 83 हजार रूपए की राशि स्वीकृत की गई है। इसके साथ ही अबूझमाड़िया जनजाति समुदायों में प्रचलित घोटुल प्रथा को संरक्षित करने का प्रयास भी किया जा रहा है। वर्ष 2022-23 में नारायणपुर जिले में 104 घोटुल के निर्माण के लिए 4.70 करोड़ रूपए की राशि स्वीकृत की गई है। सरकार द्वारा आदिवासियों के तीज-त्यौहारों की संस्कृति एवं परंपरा को संरक्षित करने और इन त्यौहारों, उत्सवों को मूल रूप से आगामी पीढ़ी को हस्तांतरण तथा सांस्कृतिक पंरपराओं का अभिलेखीकरण करने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री आदिवासी परब सम्मान निधि योजना शुरू की गई है।राज्य में वन अधिकार कानून के प्रभावी क्रियान्वयन से जल-जंगल-जमीन पर आदिवासी समाज को संबल मिला है। व्यक्तिगत वन अधिकार पत्र, सामुदायिक वन अधिकार और सामुदायिक वन संसाधन के अधिकार के साथ-साथ रिजर्व क्षेत्र में वन अधिकार वनवासियों को दिए गए। विश्व आदिवासी दिवस आदिवासी समाज का महापर्व है। इसे पूरी गरिमा और भव्यता से मनाने की शुरूआत राज्य सरकार द्वारा की गई है। छत्तीसगढ़ में आदिवासियों का मान बढ़ाने के लिए विश्व आदिवासी दिवस पर सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया है।राज्य के वन क्षेत्रों में काबिज भूमि का आदिवासियों और पारंपरागत निवासियों को अधिकार देने के मामले में छत्तीसगढ़ देश में अग्रणी राज्य है। राज्य में निरस्त दावों की पुनः समीक्षा करके वन अधिकार मान्यता पत्र वितरित किए जा रहे हैं। विगत पौने पांच वर्षों में 59,791 व्यक्तिगत, 25,109 सामुदायिक वन अधिकारी पत्र वितरित किए गए हैं। देश में सर्वप्रथम नगरीय क्षेत्र में व्यक्तिगत वन अधिकार, सामुदायिक वन अधिकार एवं सामुदायिक वन संसाधन अधिकार पत्र प्रदाय करने की कार्यवाही छत्तीसगढ़ में की गई।प्रदेश में विशेष रूप से कमजोर जनजातियों को पर्यावास के अधिकार प्रदाय करने की कार्यवाही धमतरी जिले में प्रारंभ की गई। राज्य में अब तक विशेष रूप से कमजोर जनजाति समूह को 23,571 व्यक्तिगत वन अधिकार पत्र, 2360 सामुदायिक वन अधिकार पत्र तथा 184 सामुदायिक वन संसाधन अधिकार पत्र प्रदाय किया गया है। वितरित व्यक्तिगत वन अधिकार पत्रों में से 17,411 वन अधिकार पत्र एकल महिलाओं (विधवा, निर्धन, अविवाहित, तलाकशुदा) को वितरित किए गए हैं।राज्य में अब तक अभ्यारण्य एवं राष्ट्रीय उद्यान में 18 सामुदायिक वन अधिकार पत्र प्रदाय किए गए हैं। प्रदेश के विभिन्न जिलों में अब तक 3694 सामुदायिक वन अधिकार संसाधन मान्य किए गए हैं, जिसके अंतर्गत 17,29,237 हेक्टेयर भूमि के संरक्षण, संवर्धन तथा प्रबंधन का अधिकार ग्राम सभाओं को दिया गया है।राज्य में बीते साढ़े 4 सालों में 4,54,415 व्यक्तिगत वन अधिकार पत्र के अंतर्गत हितग्राहियों को 3,70,275 हेक्टेयर भूमि दी गई है। सामुदायिक वन अधिकार मान्यता के अनुसार 45,847 पत्र वितरित किए गए है, जिसके तहत 19,83,308 हेक्टेयर भूमि प्रदाय की गई है। 3,731 ग्राम सभाओं को सामुदायिक वन संसाधन अधिकार पत्र जारी कर 15,32,316 हेक्टेयर भूमि का अधिकार सौंपा गया है।राज्य में वन अधिकार एवं मान्यता पत्र के अंतर्गत आबंटित भूमि 5 लाख से अधिक परिवारों के लिए आजीविका का जरिया बन गई है। सामुदायिक वन अधिकार एवं वन संसाधन अधिकार के अंतर्गत प्रदत्त भूमि का फलदार वृक्षों के रोपण को बढ़ावा दिया जा रहा है। अबूझमाड़ इलाके में भी वन अधिकार अधिनियम के तहत तेजी पट्टे बांटे जा रहे हैं।छत्तीसगढ़ राज्य में नेशनल पार्क क्षेत्र में वन संसाधन मान्यता पत्र देने वाला देश का दूसरा राज्य बन गया है। ओड़िशा के बाद बस्तर में कांकेर वैली नेशनल पार्क क्षेत्र में वन संसाधन अधिकार मान्यता पत्र देने की पहल की गई है, इससे वन वासियों को रोजगार के साथ-साथ आय के अधिक अवसर उपलब्ध होंगे। वन भूमि पट्टा धारियों की उपज के समर्थन मूल्य पर क्रय करने के अलावा उन्हें राजीव गांधी किसान न्याय योजना का लाभ दिया जा रहा है। वन अधिकार मान्यता पत्र हितग्राहियों की कृषि भूमि के समतलीकरण तथा मेढ़-बंधान कार्य में भी शासन द्वारा मदद की जा रही है। साथ ही उन्हें खाद-बीज एवं कृषि उपकरण भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं। राज्य में 41 हजार से अधिक हितग्राहियों को 11 हजार हेक्टयेर से अधिक भूमि पर सिंचाई सुविधा उपलब्ध करायी गई है। वन अधिकार अधिनियम 2006 के अंतर्गत शिक्षा, स्वास्थ्य, विद्युत, रोजगार, पेयजल आदि से संबंधित जन सुविधाओं का विस्तार किया जा रहा है।पेसा कानून से मिलेगा अधिकार-छत्तीसगढ़ सरकार पेसा कानून के नियमों को लागू करने के विषय में गंभीरता से प्रयास कर रही है। पेसा कानून के नियम बन जाने से अब इसका क्रियान्वयन सरल हो जाएगा। इससे आदिवासी समाज के लोगों में आत्मनिर्भरता और स्वावलंबन की भावना आएगी। ग्राम सभा का अधिकार बढ़ेगा। ग्राम सभा के 25 प्रतिशत सदस्य आदिवासी समुदाय के होंगे और इस 50 प्रतिशत में एक चौथाई महिला सदस्य होंगे। ग्राम सभा का अध्यक्ष आदिवासी ही होगा। महिला और पुरूष अध्यक्षों को एक-एक साल के अंतराल में नेतृत्व का मौका मिलेगा। गांव के विकास में निर्णय लेने और आपसी विवादों के निपटारे का अधिकार भी इन्हें होगा।छत्तीसगढ़ सरकार की विकास, विश्वास और सुरक्षा की नीति के चलते वनांचल में रहने वाले लोगों के जीवन में तेजी से बदलाव आया है। आदिवासियों की आय में वृद्धि और उन्हें बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए सरकार तेजी से काम कर रही है। -
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर विशेष लेख
-घनश्याम केशरवानी-डॉ. ओम प्रकाश डहरियाछत्तीसगढ़ प्रभु श्री राम का ननिहाल भी है। उन्होंने अपने वनवास काल में सर्वाधिक समय छत्तीसगढ़ में बिताया, इसलिए पूरा छत्तीसगढ़ राममय है। भांजा राम की याद में यहां हर परिवार में अपने भांजे में प्रभु श्री राम जैसी छवि देखते है। प्रभु श्री राम के स्मृतियों को ताजा करने के लिए राज्य शासन द्वारा राम वन गमन पथ का निर्माण किया जा रहा है। प्रभु श्री राम के वनवास काल की सुन्दर प्रस्तुति अरण्य काण्ड में है, जिसमें उनके वनवास काल का विवरण है। हाल ही में रायगढ़ में आयोजित रामायण महोत्सव में देश-विदेश की कलाकारों ने सुन्दर प्रस्तुति देकर अरण्य काण्ड को जीवन्त कर दिया।छत्तीसगढ़ में वनवासी राम का सम्पूर्ण जीवन सामाजिक समरसता का प्रतीक है, यहां उन्होंने सदैव समाज के सबसे अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को गले लगाया। राम ने दंडकारण्य की धरती से पूरी दुनिया तक “सम्पूर्ण समाज एक परिवार है” का संदेश दिया। छत्तीसगढ़ की इस गौरवशाली आध्यात्मिक विरासत से नई पीढ़ी को अवगत कराने के इस तरह का आयोजन प्रशंसनीय कदम हैं।छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों मे बहुत पहले से ही नवधा रामायण के आयोजन की परंपरा रही है। नवधा रामायण के माध्यम से रामयण मंडली भगवान श्री राम की जीवन-गाथा को गाकर लोगों को जीवन की सीख देते है और यही परंपरा आज भी चली आ रही है। बतां दें कि नवधा रामायण का आयोजन ग्रामीण क्षेत्रो में ज्यादातर चैत्र मास में किया जाता है। यह हिन्दु नववर्ष का प्रारंभ होने का समय भी होता है। इसी दिन से साल के प्रथम नवरात्रि भी प्रारंभ होता है, नौ दिनों का यह पर्व रामनवमी पर समाप्त होता है।यही सब कारण है कि मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने रामायण मानस गान की ऐतिहासिक महत्ता को देखेते हुए इसे राज्य स्तर पर आयोजन करने का निर्णय लिया। छत्तीसगढ़ को भगवान श्री राम की माता कौशल्या की जन्मभूमि माना जाता है। इस नाते उन्हें छत्तीसगढ़ में भांजे का दर्जा प्राप्त है। प्रदेश में माता कौशल्या भी आराध्य हैं। चंदखुरी में देश का इकलौता कौशल्या माता का मंदिर निर्मित है।देश में पहली बार छत्तीसगढ़ में शासकीय रूप से राष्ट्रीय स्तर पर रामायण महोत्सव के सराहनीय आयोजन से श्री राम जी के आदर्श चरित्र को जानने-समझने का अवसर मिला। वहीं सांस्कृति आदान-प्रदान के साथ ही रामायण का एक नया स्वरूप भी देखने को मिला। छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक मानचित्र में रामायण मंडली एक अभिन्न अंग है। छत्तीसगढ़ की धरा से भगवान राम के जुड़ाव के कई प्रसंग मिलते हैं। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल पर छत्तीसगढ़ में रामायण मानस गान की ऐतिहसिक और पौराणिक महत्त को ध्यान में रखते हुए उसे सहेजने एवं संवारने का काम किया जा रहा है।रामायण महोत्सव का पहला आयोजन माता शबरी की पावन धरा शिविरीनारायण में हुआ। यह वहीं स्थान है जहां माता शबरी ने भगवान श्री राम और लक्ष्मण को वनवास काल के दौरान जुठे बेर खिलाये थे। दूसरा आयोजन छत्तीसगढ़ के प्रयागराज के रूप में प्रसिद्ध त्रिवेणी संगम राजिम में सम्पन्न हुआ। इसी कड़ी में तीसरा और भव्य आयोजन संस्कार धानी रायगढ़ में हुआ, इस आयोजन में देश-विदेश से आए रामायण मंडलियों और कलाकरों ने इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर के आयोजन बना दिया। मानस गायन को लेकर गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में कीर्तिमान दर्ज हुआ।रायगढ़ में हुए राष्ट्रीय रामायण महोत्सव में देश के 13 राज्यों सहित इंडोनेशिया और कम्बोडिया के रामायाण मंडली के कलाकरों द्वारा भी विशेष प्रस्तुती दी गई। रामायण मानस गान को सहेजने राज्य के 4850 मंडलियों को वाद्य यंत्रों के लिए लगभग ढाई करोड़ रूपए की राशि का सहयोग दी गई। मानस गायन के लिए राज्य स्तर पर प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले दलों को क्रमशः पांच लाख, तीन लाख और दो लाख रूपए का पुरस्कार भी प्रोत्साहन स्वरूप प्रदान किए गए। - -कोयला मंत्रालय के तहत कोयला एवं लिग्नाइट सार्वजनिक उपक्रमों द्वारा एक अनूठी पहलराजीव आर. मिश्रा, पूर्व सीएमडी, वेस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेडभले ही अपने उपभोक्ताओं के लिए कोयला/ लिग्नाइट का उत्पादन और वितरण करने का ही शासनादेश हो, फिर भी कोयला मंत्रालय के मार्गदर्शन में कोयला और लिग्नाइट सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) ने लीक से हटकर ओवरबर्डन से बहुत कम कीमत पर रेत का उत्पादन करने वाली एक अनोखी पहल की है। इस पहल से न केवल ओवरबर्डन के कारण रेत गाद से होने वाले पर्यावरण प्रदूषण को कम करने में मदद मिल रही है, बल्कि निर्माण के लिए सस्ती रेत प्राप्त करने का विकल्प भी मिल रहा है। कोयला सार्वजनिक उपक्रमों में रेत का उत्पादन पहले ही शुरू हो चुका है और अगले पांच वर्षों के दौरान कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल), नैवेली लिग्नाइट कॉरपोरेशन लिमिटेड (एनएलसीआईएल) और सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड (एससीसीएल) में रेत के उत्पादन को अधिकतम करने के लिए रोडमैप तैयार किया जा चुका है।कोयले का निष्कर्षण एक महत्वपूर्ण उप-उत्पाद के साथ होता है, जिसे ओवरबर्डन के नाम से जाना जाता है। कोयले के खुले खनन के दौरान, कोयले की परत के ऊपर स्थित परत को ओवरबर्डन के रूप में जाना जाता है, जिसमें प्रचुर मात्रा में सिलिका सामग्री के साथ मिट्टी, जलोढ़ रेत और बलुआ पत्थर शामिल होते हैं। नीचे से कोयला निकालने के लिए ओवरबर्डन को हटा दिया जाता है। बाद में, कोयला निष्कर्षण पूरा होने पर, भूमि को उसका मूल आकार प्रदान करने के लिए ओवरबर्डन का उपयोग बैकफिलिंग के लिए किया जाता है। ऊपर से ओवरबर्डन निकालते समय, मात्रा का स्वेल फैक्टर 20-25 प्रतिशत होता है। इस ओवरबर्डन को परंपरागत रूप से अपशिष्ट या बोझ माना जाता है और अक्सर इसके संभावित मूल्य को पहचाने बिना इसे ऐसे ही छोड़ दिया जाता है। हालांकि, सतत् अभ्यास और सर्कुलर इकोनॉमी पर बढ़ते फोकस के साथ, ओवरबर्डन के लिए वैकल्पिक उपयोग की खोज करने और इसे कचरे से कंचन में बदलने की दिशा में बदलाव आया है।प्रथम पहलइस तरह के रूपांतरण की पहली व्यावसायिक पहल सीआईएल की सहायक कंपनी वेस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (डब्ल्यूसीएल) ने 2016-17 के दौरान अपनी खदान में की थी। महाराष्ट्र के नागपुर जिले के भानेगांव खदान में एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया था, जहां विभाग की ओर से स्थापित की गई मशीनों के जरिए रेत निकाली जाती थी। इस मशीन की क्षमता 300 घन मीटर प्रतिदिन थी। निकाली गई रेत का गहन परीक्षण किया गया और अंततः उसे नदी तल से मिलने वाली रेत से बेहतर पाया गया। इसकी कीमत लगभग 160 रुपये प्रति घन मीटर थी, जो बाजार की तत्कालीन कीमत का लगभग 10 प्रतिशत थी। यह रेत प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) के तहत कम लागत वाले घर बनाने के लिए नागपुर इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट को दी गई थी। इसके अलावा दो और विभागीय पहल भी शुरू की गई।पायलट परियोजनाओं की सफलता पर, डब्ल्यूसीएल ने नागपुर के पास गोंडेगांव खदान में देश के सबसे बड़े रेत उत्पादन संयंत्र को चालू करके रेत का व्यावसायिक उत्पादन शुरू किया। यह इकाई बाजार मूल्य से लगभग आधी कीमत पर प्रतिदिन 2500 घन मीटर रेत का उत्पादन करती है।सरकारी इकाइयों के साथ साझेदारी और स्थानीय बिक्रीनागपुर के सबसे बड़े रेत उत्पादक संयंत्र से उत्पादित रेत का बड़ा हिस्सा बाजार मूल्य के एक तिहाई पर एनएचएआई, एमओआईएल, महा जेनको जैसी सरकारी इकाइयों और अन्य छोटी इकाइयों को दिया जा रहा है। बाकी रेत को बाजार में खुली नीलामी के माध्यम से बेचा जा रहा है, जिससे स्थानीय लोगों को काफी सस्ती कीमत पर रेत मिल रही है।कचरे से कंचन: एक आदर्श बदलावओवरबर्डन, जिसे कभी अपशिष्ट या बेकार पदार्थ समझा जाता था, अब उसे एक मूल्यवान संसाधन माना जा रहा है। रेत प्रसंस्करण इकाइयां भी जबरदस्त रोजगार के अवसर पैदा कर रही हैं, क्योंकि बड़ी संख्या में स्थानीय आबादी न केवल उत्पादन इकाई में, बल्कि ट्रकों के माध्यम से उपभोक्ताओं तक रेत को ले जाने के लिए उसकी लोडिंग और आपूर्ति जैसी कार्यों में शामिल हो रही है।विस्तार की योजनाएं और समाज पर प्रभावइस सकारात्मक दृष्टिकोण और ओवरबर्डन के वैकल्पिक उपयोग की खोज के एक भाग के रूप में, सीआईएल ने देश के पूर्वी और मध्य भाग में अपनी सहायक कंपनियों में कई ओवरबर्डन प्रसंस्करण संयंत्र और रेत उत्पादन संयंत्र चालू किए हैं।इस स्थायी प्रयास के हिस्से के रूप में, कोयला सार्वजनिक उपक्रम में ओवरबर्डन से नौ रेत उत्पादन/ प्रसंस्करण संयंत्र पहले से ही उत्पादन में हैं, जिनमें से चार एससीसीएल में, तीन डब्ल्यूसीएल में और एक-एक एनसीएल और ईसीएल में हैं। इन रेत उत्पादन/ प्रसंस्करण संयंत्रों की कुल वार्षिक क्षमता लगभग 5.5 मिलियन क्यूबिक मीटर प्रति वर्ष है। इसके अलावा, सीआईएल की विभिन्न सहायक कंपनियों में ओवरबर्डन से रेत उत्पादक चार संयंत्र निविदा के विभिन्न चरणों में हैं। लिग्नाइट उत्पादक कंपनी एनएलसीआईएल भी दो रेत उत्पादक संयंत्र लगा रही है। इन सभी नए आगामी संयंत्रों की कुल वार्षिक रेत उत्पादन क्षमता लगभग 1.5 मिलियन क्यूबिक मीटर प्रति वर्ष होगी।भविष्य का मार्गअग्रणी पहलों के माध्यम से, कोयला/ लिग्नाइट सार्वजनिक उपक्रम रेत उत्पादन और खपत के लिए एक परिवर्तनकारी दृष्टिकोण का नेतृत्व कर रहे हैं, जो पर्यावरणीय स्थिरता और सामाजिक कल्याण में योगदान दे रहा है। कोयला मंत्रालय किफायती मूल्य पर ओवरबर्डन से और भी अधिक मात्रा में रेत का उत्पादन करने के लिए कोयला/ लिग्नाइट सार्वजनिक उपक्रम को लीक से हटकर इस पहल को शुरू करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है।अगले कुछ वर्षों में, प्रौद्योगिकी की प्रगति और हमारे देश में विभिन्न स्थानों में भारी मात्रा में होने वाले रेत उत्पादन के साथ, रेत के प्रति घन मीटर कीमत में काफी कमी आएगी, जिससे आम आदमी को निर्माण उद्देश्य के लिए सस्ती रेत उपलब्ध कराने में मदद मिलेगी। साथ ही इससे नदी तल की रेत के इस्तेमाल को भी कम करने में मदद मिलेगी, जो बदले में पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद होगा।*
- स्वतंत्रता दिवस के मौके पर विशेष लेखरायपुर, /थाईलैंड के युवा कलाकार एक्कालक नूनगोन थाई ने राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के आयोजन के लिए छत्तीसगढ़ सरकार की सराहना करते हुए कहा था कि जनजाति समुदाय की अपनी कला, संस्कृति होती है, इसकी पहचान आवश्यक है। जनजाति समुदाय एक कस्बे या इलाकों में निवास करते हैं, ऐसे में उनकी कला, संस्कृति की पहचान एक सीमित क्षेत्र में सिमट कर रह जाती है। जनजाति समाज की कला और संस्कृति के संरक्षण में ऐसे आयोजनों की बड़ी भूमिका है। बेलारूस की सुश्री एलिसा स्टूकोनोवा ने कहा था कि यह उसका सौभाग्य है कि वह छत्तीसगढ़ आई। उसे छत्तीसगढ़ के कलाकारों की प्रस्तुति देखकर अहसास हुआ कि यहां की संस्कृति, जीवन में कितनी विविधताएं हैं।छत्तीसगढ़ में मेला, उत्सव व महोत्सव लोक परंपरा का एक अंग हैं। वहीं राज्य की लोक संस्कृति एवं आदिवासी एक-दूसरे के पर्याय हैं। यहां के वन और सदियों से निवासरत आदिवासी राज्य की विशेष पहचान रहे हैं। प्रदेश के लगभग आधे भू-भाग में जंगल है, जहां मेला-महोत्सव के जरिए छत्तीसगढ़ की गौरवशाली आदिम संस्कृति फूलती-फलती रही है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में राज्य सरकार ने राज्य की आदिम संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन के साथ ही इसे विश्व स्तर पर पहचान दिलाने का बीड़ा उठाया और छत्तीसगढ़ में वृहद स्वरूप मंे राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का सफल आयोजन किया गया। राज्य में आयोजित आदिवासी नृत्य महोत्सव महज राष्ट्रीय नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप ले लिया, इससे छत्तीसगढ़ की आदिम लोक संस्कृति को देश-दुनिया में एक नई पहचान मिली है।छत्तीसगढ़ में निवासरत जनजातियों की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत रही है, जो उनके दैनिक जीवन, तीज-त्यौहार, धार्मिक रीति-रिवाज एवं परंपराओं के माध्यम से अभिव्यक्त होती है। बस्तर के जनजातियों की घोटुल प्रथा प्रसिद्ध है। जनजातियों के प्रमुख नृत्य गौर, कर्मा, ककसार, शैला, सरहुल और परब जन-जन में लोकप्रिय हैं। जनजातियों के पारंपरिक गीत-संगीत, नृत्य, वाद्य यंत्र, कला एवं संस्कृति को बीते पांच सालों में सहेजने-संवारने के साथ ही छत्तीसगढ़ सरकार ने विश्व पटल पर लाने का सराहनीय प्रयास किया है। अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का भव्य आयोजन इसी प्रयास की एक कड़ी है।छत्तीसगढ़ की संस्कृति का दर्शन कराने के साथ ही जीवन की कई चुनौतियों से लड़ने और विषम परिस्थितियों में जीवन यापन करने की प्रेरणा और संदेश देने वाले आदिवासी समाज के नृत्य, संगीत और गीत राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के माध्यम से देशभर के लोगों एवं विदेशी कलाकारों को जुड़ने का अवसर दिया। इस महोत्सव में देशभर के अलग-अलग राज्यों से कलाकार, जनजाति समाज सहित अन्य परिवेश के नृत्यों की रंगारंग प्रस्तुतियां देखने-सुनने को मिली। छत्तीसगढ की प्राचीन और समृद्धशाली लोक संस्कृति व नृत्य ने विशिष्ट छाप छोड़ी । रायपुर के साइंस कालेज मैदान में होने वाले इस समारोह में आदिवासी नृत्य के साथ गीत एवं पारम्परिक वेशभूषाओं में एक से बढ़कर एक वाद्ययंत्रों के कर्णप्रिय धुनों की जुगलबंदी के बीच छत्तीसगढ़ ही नहीं देश के अन्य राज्यों की जनजाति संस्कृति का संगम एवं उनकी जीवंत प्रस्तुति भी देखने को मिली।वर्ष 2019 में पहली बार हुए इस आयोजन में कलाकारों को मंच देकर छत्तीसगढ़ सरकार ने जनजाति संस्कृति को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की पहल की। इस आयोजन का दर्शकों ने लुफ्त उठाया और कलाकारों ने इस मंच के माध्यम से आदिवासी संस्कृति को प्रसिध्दि दिलाई। आदिवासियों को जब राष्ट्रीय स्तर के आयोजन में पहली बार मंच मिला तो वे स्व-रचित गीत, अनूठे वाद्य यंत्रों की धुन और आकर्षक वेशभूषा, आभूषण में सज धजकर नृत्य कला का प्रदर्शन, प्रस्तुतियों को देखने वाले दर्शक आज भी उन्हें भूल नहीं पाते। विगत 3 साल से आयोजित हो रहें। इस महोत्सव में युगांडा, बेलारूस, मालदीव, श्रीलंका, थाईलैंड, बांग्लादेश सहित एक दर्जन देशों से आए विदेशी कलाकार भी शामिल हुए। इसके अलावा 28 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लगभग 5000 से अधिक कलाकारों ने भी भाग लिया।
- जन्मदिवस पर विशेषमुुंबई। एक्ट्रेस मीना कुमारी अपने दौर की सबसे खूबसूरत और प्रतिभाशाली एक्ट्रेस थीं। उन्हें ट्रेजडी क्वीन का खिताब मिला था। उन्होंने छोटी-सी उम्र में ही अपनी जिंदगी में कई बड़े दुख झेले हैं। मीना कुमारी ने केवल 4 साल की उम्र से एक्टिंग की दुनिया में अपना कदम रख दिया था। इसके बाद वह बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट कई फिल्मों में नजर आईं। मीना कुमारी ने ना सिर्फ अपनी एक्टिंग बल्कि खूबसूरती से बड़ी ऊंचाइयों को छुआ। हालांकि मीना कुमारी अपनी प्रोफेशनल जिंदगी से ज्यादा पर्सनल लाइफ को लेकर सुर्खियों में रहीं। मीना कुमारी ने केवल 18 साल की उम्र में दो शादी चुके फिल्ममेकर कमाल अमरोही से निकाह कर लिया था।कमाल अमरोही पहले से ही तीन बच्चों के पिता थे, लेकिन बावजूद इसके वह मीना कुमारी पर अपना दिल हार बैठे। हालांकि शादी के बाद भी मीना कुमारी की जिंदगी बिल्कुल भी आसान नहीं रही। कहा जाता है कि मीना कुमारी ने शादीशुदा जिंदगी में बहुत बुरा दौर देखा। एक समय तो ऐसा था, जब गुस्से में मीना कुमारी को शौहर कमाल अमरोही ने तीन बार तलाक, तलाक, तलाक कहकर तलाक दे दिया था।रिपोट्र्स की मानें तो कमाल अमरोही और मीना कुमारी के रिश्ते शुरुआत से ही ठीक नहीं थे। ऐसे में अक्सर दोनों के बीच लड़ाई-झगड़े हो जाते थे। लेकिन जब कमाल अमरोही ने मीना कुमारी को तलाक दे दिया, इसके बाद उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ और वह मीना कुमारी के पास वापस लौटे। हालांकि मुस्लिम धर्म के अनुसार एक बार तलाक के बाद पुराने शौहर के पास वापस जाने के लिए हलाला से होकर गुजरना पड़ता है। ऐसे में मीना कुमारी को भी कमाल अमरोही के पास वापस जाने के लिए इस हलाला के दर्द से गुजरना पड़ा था। ्ररिपोट्र्स के मुताबिक कमाल अमरोही ने मीना कुमारी के हलाला के लिए एक्ट्रेस जीनत अमान के पिता अमान उल्लाह खां को चुना। मीना का पहले अमान उल्लाह खां के साथ निकाह हुआ। उसके बाद मीना कुमारी का हलाला मुकम्मल हुआ। इसके बाद अमान ने मीना कुमारी को तलाक दिया और बाद में एक बार फिर से मीना कुमारी और कमाल अमरोही का निकाह हुआ। इस प्रकार मीना कुमारी अभिनेत्री जीनत अमान की सौतेली मां हुईं।मीना कुमारी का जन्म 1 अगस्त, 1933 को हुआ था। उनका असली नाम था अस्ल नाम-महज़बीं बानो। इन्हें खासकर दुखांत फि़ल्मों में इनकी यादगार भूमिकाओं के लिये याद किया जाता है। मीना कुमारी को भारतीय सिनेमा की ट्रैजेडी क्वीन भी कहा जाता है। अभिनेत्री होने के साथ-साथ मीना कुमारी एक उम्दा शायरा एवम् पाश्र्वगायिका भी थीं। इन्होंने वर्ष 1939 से 1972 तक फि़ल्मी पर्दे पर काम किया। उनका निधन 31 मार्च, 1972 को हुआ। .
- सायबर ठगी का नया स्वरूप, एडवायजरी जरूरीएक शख्स ने अपने मित्र को कॉल किया, “हैलो...धीरेंद्र मैं गोपाल, यह मेरा नया नंबर है, सुनो मेरे दामाद का एक्सीडेंट हो गया है मुझे तत्काल पैसों चाहिए ! तुम्हें एक नए नंबर से एकाउंट डिटेल व्हाट्सएप किया है इसमें तुरंत पैसे भेजो मैं कल तुम्हें लौटाता हूँ, अभी अस्पताल में व्यस्त हूँ !”“हाँ गोपाल नो टेंशन... मैं तुरंत भेज रहा हूँ तुम फोन रखो।’’ फोन रखते ही गोपाल ने व्हाट्सएप किये गये एकाउंट नंबर में पैसे भेज दिये।हेमलता को नए नंबर से काल आया, ‘’हाँ मैं बोल रहा हूँ, मेरा मोबाइल बंद हो गया है! सुनो, तुम्हें एक लिंक भेजा है उसे तुरंत टच करो और एक ओटीपी आया होगा, उसे बताना जरा, अर्जेंट है।’’‘’हाँ जी…’’ कहते हुए हेमलता ने पति के आदेशों का तुरंत पालन किया।अगले दिन धीरेंद्र और हेमलता को पता चला कि वे सायबर ठगी का शिकार हुए हैं। धीरेंद्र के होश यह सोचकर फ़ाख्ता हो गये थे कि आवाज़ तो उसके परम मित्र की ही थी। हेमलता भी यही सोचकर परेशान थी कि वह अपने पति की आवाज को पहचानने की भूल कैसे कर गई। उसका पूरा एकाउंट खाली हो गया था। यह दोनों घटनाएँ और पात्र काल्पनिक हैं, लेकिन वॉयस कॉल फ्रॉड की इस तरह की अनेक घटनाएँ हो रही हैं। हाल ही में घटित इस तरह की घटनाओं को लेकर यूपी सायबर क्राइम ने एडवायजरी जारी की है और इस तरह की घटनाओं की गंभीरता से जाँच भी कर रही है।यह सारा खेल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई (कृतिम बुद्धि) का है। एआई का नकारात्मक पहलू यह है कि इसका इस्तेमाल सायबर ठगी के रूप में किया जा रहा है। एआई के पहले तक सायबर क्राइम ठगी के मामलों में सोशल मीडिया पर फर्जी प्रोफाइल, अनजान लिंक, ओटीपी, लोन देने के नाम पर लुभावने प्रलोभन और क्रेडिट कार्ड एक्टिवेटशन जैसे अनेक तरीके शामिल थे। सायबर ठग अब एआई की सहायता से दोस्तों, रिश्तेदारों के आवाज की हुबहू नकल कर पैसे मांगने लगे हैं। एआई के वॉयस क्लोनिंग टूल का दुरुपयोग सिर्फ ठगी ही नहीं, अपितु अनेक तरह की गंभीर अपराधिक घटनाओं को भी अंजाम दे सकता है जिस पर सख्त कदम उठाए जाने की जरूरत है। वॉयस क्लोनिंग टूल का गलत इस्तेमाल अपनों पर से भरोसा खत्म कर सकता है और वास्तव में जरूरत पड़ने पर अपनों की मदद भी नहीं की जा सकेगी। पंचतंत्र की प्रसिद्ध झूठे गड़रिये की कहानी चरितार्थ होने लगे तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। प्रतिदिन भेड़ों को चराने वाला गाँव का गड़रिया मजाक में भेड़िया आया...भेड़िया आया...चिल्लाता था और गाँव वाले उसे भेड़ों को बचाने पहाड़ी की तरफ दौड़ पड़ते थे। वह बार-बार झूठ बोलकर मजे लेता था। एक दिन सही में भेड़िया आया तो उसे बचाने कोई नहीं आया। स्वाभाविक रूप से वॉयस क्लोनिंग टूल के गलत इस्तेमाल की घटनाएँ लोगों पर से अपनों की किसी भी बात का भरोसा करना छोड़ सकती हैं। जिन्हें तत्काल सहायता की जरूरत होगी, उन्हें एआई का धोखा समझकर दरकिनार किया जा सकता है। वॉयस मैसेज पर भरोसा करना खतरनाक साबित होने जा रहा है।ठगी के इस तरह के मामलों को लेकर सुर्खियों में अनेक खबरें हैं। अमर उजाला ने यूपी में वॉयस क्लोनिंग से संबंधित ठगी की घटित घटनाओं के आधार पर प्रकाशित रिपोर्ट में बताया है कि वॉयस क्लोनिंग टूल लोगों की आवाज इतने सलीके से नकल करता है कि लोगों के लिए अपनी व टूल की आवाज में अंतर करना संभव नहीं हो पाता। साइबर क्रिमिनल सबसे पहले किसी शख्स को ठगी के लिए चुनते हैं। इसके बाद उसकी सोशल मीडिया प्रोफाइल को सर्च करते हैं और उसके किसी ऑडियो व वीडियो को अपने पास रख लेते हैं। इसके बाद एआई के वॉयस क्लोनिंग टूल की मदद से उसकी आवाज क्लोन करते हैं। फिर उनके परिचित को कोई भी इमरजेंसी स्थिति बताकर ठगी करते हैं।रिपोर्ट के अनुसार, साइबर क्रिमिनल फेसबुक, इंस्टाग्राम या यूट्यूब पर सर्च कर किसी भी आवाज का सैंपल ले लेते हैं। इसके बाद वॉयस क्लोन कर उनके परिचित या फिर रिश्तेदारों को फोन किया जाता है। आवाज की क्लोनिंग ऐसी होती है कि पति-पत्नी, पिता पुत्र तक आवाज नहीं पहचान पा रहे हैं। वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट में कनाडा की एक घटना इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। एक वृद्ध दम्पति को को उसके पोते ने फोन कर कहा कि वह जेल में है और उसे बेल के लिए पैसों की जरूरत है। वृद्ध दम्पति ने 18 लाख रुपए भेज दिये। बाद में दूसरे बैंक से और पैसे निकालने पर बैंक मैनेजर ने उन्हें सावधान किया। मामले का खुलासा हुआ तो पता चला कि पोते का वीडियो यूट्यूब पर मौजूद है और वॉयस क्लोनिंग टूल से उसकी आवाज की नकल कर ठगी को अंजाम दिया गया।यह बात भी हैरान करती है कि इंटरनेट में वॉयस क्लोनिंग टूल की सुविधाएँ उपलब्ध कराने वाली अनगिनत वेबसाइट्स हैं जिस पर कोई नियंत्रण नहीं है। यह तो सिर्फ वॉयस क्लोनिंग टूल की बात है, एआई लोगों के डिजिटल क्लोन बनाकर उनके जैसी ही नकल करने में भी सक्षम हैं। हालीवुड के कलाकार भी इस बात से खासे परेशान हैं। लोगों के डिजिटल क्लोन बनाकर सिर्फ ठगी ही नहीं, अनेक तरह के अपराध करने का अनुमान सहज रूप से लगाया जा सकता है। बीते दिनों केरल के तिरुवनंतपुरम में एआई का सहारा लेकर सायबर ठगों ने एक व्यक्ति को व्हाट्सएप वीडियो कॉल कर उसका पुराना दोस्त बताया और 40 हजार रुपए की धोखाधड़ी की। रायटर्स की खबर के अनुसार, चीन में एक ठग ने फेस स्वैपिंग टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर एक व्यक्ति से 5 करोड़ रुपए ठग लिये। इस मामले में डीपफेक तकनीक का इस्तेमाल किया गया। डीपफेक का अर्थ है फेक डिजिटल तस्वीर और वीडियो जो दिखने में पूरी तरह असली लगते हैं। इसके माध्यम से गलत सूचनाओं को वायरल करने का भी खतरा है।एआई के फायदे गिनाये जा रहे हैं तो दूसरी तरफ इसके नुकसान पहले देखने को मिल रहे हैं। 'एआई- ठगी' के बढ़ते मामले ज्यादा सावधानी रखने का संकेत दे रहे हैं। आडियो-वीडियो के माध्यम से पैसों का सहयोग मांगने वाले तथाकथित अपनों पर भरोसा करने से पहले सतर्क रहने की विवशता ही सजगता मानी जा रही है। विशेषज्ञों की मानें तो देश के हर राज्यों को एआई आधारित सायबर अपराधों के संबंध में एडवायजरी जारी करने से लेकर जागरुकता अभियान चलाने की आवश्यकता है। किसी भी अनजान व्यक्ति की बात पर भरोसा न करने, अपनी निजी जानकारी, बैंक डिटेल्स, आईडी प्रूफ व अन्य दस्तावेज, ओटीपी आदि कभी भी फोन कॉल या ऑनलाइन किसी के साथ शेयर न करना, हर एकाउंट का अलग-अलग मजबूत पासवर्ड रखना ही समय की मांग है।उर्दू साहित्यिक वेब पोर्टल रेख्ता पर अज़हर फ़राग़ का एक शेर है -''दीवारें छोटी होती थीं लेकिन पर्दा होता थातालों की ईजाद से पहले सिर्फ़ भरोसा होता था।''
- पुण्यतिथि पर विशेषआलेख-मंजूषा शर्मामोहम्मद रफी, संगीत की दुनिया का वो नाम है, जिनके गाए गाने आज भी हर पीढ़ी की पसंद बने हुए हैं। वे न केवल एक अच्छे गायक बल्कि एक अच्छे इंसान भी थे। दरअसल वे महज़ एक आवाज़ नहीं; गायकी की पूरी रिवायत थे। पिछले करीब साठ दशक से लोग उनकी आवाज सुन रहे हैं।पंजाब के एक छोटे से क़स्बे से निकलकर मोहम्मद रफ़ी नाम का एक किशोर बरसो पहले मुंबई आता है। साथ में न कोई जमींदारी जैसी रईसी या पैसों की बरसात, न कोई गॉड फ़ादर सिर्फ एक प्यारी सी आवाज, जो हर तरह के गीत गाने की हिम्मत रखता था। फिर वह चाहे किसी भी स्केल का हो। सा से लेकर सा तक यानी सात स्वरों के हर स्वर में । कोई ख़ास पहचान नहीं ,सिर्फ संगीतकार नौशाद साहब के नाम का एक सिफ़ारिशी पत्र। किस्मत ने पलटा खाया और अपनी आवाज, इंसानी संजीदगी के बूते पर यह सीधा सादा युवक मोहम्मद रफ़ी पूरी दुनिया में छा गया। संघर्ष का दौर काफी लंबा था और मुफलिसी भी साथ चल रही थी। संगीत का यह साधक किसी भी परिस्थिति में रुकना नहीं चाहता था। उस दौर का एक वाकया सुनने में आया जिसका जिक्र आज यहां कर रहे हैं।मोहम्मद रफी साहब संघर्ष के दिनों में मायूस भी हो गए थे, लेकिन दिल में कुछ कर दिखाने का जज्बा उन्हें पंजाब लौटने नहीं दे रहा था। नौशाद साहब ने उन्हें गाने का मौका दिया। मुंबई में रिकॉर्डिंग हुई और रफी साहब ने सबको प्रभावित किया। काम खत्म हो चुका था, तो सभी लोग स्टुडियो से बाहर निकल गए। लेकिन रफ़ी साहब स्टुडियो के बाहर देर तक खड़े रहे। तकऱीबन दो घंटे बाद तमाम साजि़ंदों का हिसाब-किताब करने के बाद नौशाद साहब स्टुडियो के बाहर आकर रफ़ी साहब को देख कर चौंक गए । पूछा तो बताते हैं कि घर जाने के लिये लोकल ट्रेन के किराये के पैसे नहीं है। नौशाद साहब अवाक रह गए और बोले- अरे भाई भीतर आकर मांग लेते ...रफ़ी साहब का जवाब -अभी काम पूरा हुआ नहीं और अंदर आकर पैसे मांगूं ? हिम्मत नहीं हुई नौशाद साहब। सीधा- सरल जवाब सुनकर नौशाद साहब की आंखें छलछला आईं हैं। न कोई छलावा न कोई दिखाया और न ही ज्यादा पाने की चाहत। बस जो मिल गया उसे को मुकद्दर समझ लिया।सही मायने में सहगल साहब के बाद मोहम्मद रफ़ी एकमात्र नैसर्गिक गायक थे। उन्होंने अच्छे ख़ासे रियाज़ के बाद अपनी आवाज़ को मांजा था। उन्हें देखकर लोग सहसा विश्वास ही नहीं कर पाते थे कि शम्मी कुमार साहब के लिए याहू ,.... जैसे हुडदंगी गाने वे ही गाया करते हैं।उनके बारे में संगीतकार वसंत देसाई कहते थे -रफ़ी साहब कोई सामान्य इंसान नहीं थे...वह तो एक शापित गंधर्व थे जो किसी मामूली सी ग़लती का पश्चाताप करने इस मृत्युलोक में आ गया। एक तरफ किशोर कुमार अपने पारिश्रमिक को लेकर एकदम परफेक्ट थे। दूसरी तरफ रफी साहब संकोची इंसान। कई बार उनके पैसे इसी वजह से डूब गए, क्योंकि उन्होंने संकोच की वजह से पैसे मांगे नहीं। रफी साहब कभी काम मांगने भी नहीं गए। जो मिल गया, गा लिया।अपने कॅरिअर में रफ़ी साहब को श्यामसुंदर, नौशाद, ग़ुलाम मोहम्मद, मास्टर ग़ुलाम हैदर, खेमचंद प्रकाश, हुस्नलाल भगतराम जैसे गुणी मौसीकारों का सान्निध्य मिला जो उनके लिए फायदेमंद भी रहा। रफ़ी साहब ने क्लासिकल म्युजिक़ का दामन कभी न छोड़ा। बैजूबावरा में उन्होंने राग मालकौंस (मन तरपत)और दरबारी (ओ दुनिया के रखवाले) को जिस अधिकार और ताक़त के साथ गाया , उसे गाने की हिम्मत आज भी बहुत कम लोग कर पाते हैं। उस दौर की फिल्मों में जब भी क्लासिकल म्यूजिक की बात चलती थी, तो संगीतकार रफी साहब और मन्ना डे के पास ही जाते थे। रफी साहब की आवाज नायकों के लिए ज्यादा सूट करती थी, इसीलिए उन्हें मन्ना दा की तुलना में लीड गाने ज्यादा मिले।6 फिल्मफेयर और 1 नेशनल अवार्ड रफी साहब के नाम हैं। उन्हें भारत सरकार की तरफ से 'पद्म श्री' सम्मान से भी सम्मानित किया गया था। रफी साहब ने भारतीय भाषाओं असामी , कोंकणी , पंजाबी , उडिय़ा , मराठी , बंगाली , भोजपुरी के साथ-साथ उन्होंने पारसी, डच, स्पेनिश और इंग्लिश में भी गीत गाए थे।
- फिलहाल तो यह प्रश्न ही है जिसका उत्तर भविष्य के गर्त में छिपा है। पहले एक नजर डालते हैं ओपनएआई कंपनी के जीपीटी चैटबॉट के पत्रकार की तरह खबर बनाने की शैली पर। छत्तीसगढ़ आज डॉट कॉम (chhattisgarhaaj.com) ने ओपनएआई के जीपीटी चैटबॉट से कहा, "टमाटर के बढ़ते दाम पर खबर बनाइये।" इतना लिखते ही किसी भी प्रकार का कंटेट दिए बिना चैटबॉट ने बकायदा शीर्षक, डेटलाइन और इंट्रो के साथ कुछ ही सेकंड में यूनिकोड के मंगल फाउंट में हिंदी में खबर इस प्रकार बनाकर दी-टमाटर के बढ़ते दाम से आम जनता पर भारी बोझराजधानी दिल्ली, 25 जुलाई 2023: टमाटर के बढ़ते दाम देशवासियों के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बन रहा है। अंतरराष्ट्रीय बाजारों में टमाटर की कमी और प्राकृतिक आपदा के कारण, टमाटर के दामों में तेजी से बढ़ोतरी का सामना कर रहे हैं।देशभर में टमाटर के दामों में वृद्धि के कारण आम जनता को खाने के उपकरणों में भारी बढ़ोतरी का सामना करना पड़ रहा है। आम लोगों को रसोई घर में टमाटर के दाम देखकर परेशानी हो रही है और खाने के बजाय अन्य विकल्पों पर मन लगा रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, टमाटर के दामों में बढ़ोतरी का कारण विशेष रूप से अंतरराष्ट्रीय बाजारों में उत्पादन में कमी और परिवारिक किसानों के पास यह फसल को उगाने की भूमि की कमी है। भारतीय उपमहाद्वीप में अनियमित मौसम तथा तापमान में बढ़ोतरी और अधिक वर्षा के चलते किसानों को प्राकृतिक आपदाओं से निपटना पड़ रहा है, जिससे टमाटर जैसी फसलों की उपज पर असर पड़ रहा है। सरकार ने टमाटर के दामों पर नजर रखते हुए आवश्यक कदम उठाने का वादा किया है। अन्तरराष्ट्रीय बाजारों में टमाटर की आपूर्ति को बढ़ाने के लिए कदम उठाए जाने का प्रस्ताव भी किया गया है। इसके अलावा सरकार ने किसानों को प्राकृतिक आपदाओं से बचाने के लिए बेहतर बुनियादी ढांचे प्रदान करने का भी कदम उठाने का वादा किया है।इसके बाद चैटबाट ने खबर के अंत में स्टार लगाकर अन्य स्त्रोतों का उपयोग करने की सलाह देते हुए लिखा - *यह खबर सिर्फ जागरूकता के उद्देश्य से दी गई है और वास्तविक टमाटर के दामों और अन्य विवरणों को सत्यापित करने के लिए अन्य स्रोतों का उपयोग करने की सलाह है।अब एआई की इस खबर के वाक्य-विन्यास को थोड़ा सा संशोधित करना है और कुछ तथ्य जोड़ दीजिए। खबर तैयार है। कहने का आशय यह है कि बड़े-बड़े मीडिया संस्थानों के लिए भी सिर्फ संशोधन करने वाले कुछ ही लोगों की जरूरत रह जाएगी जिन्हें एआई तकनीक की थोड़ी-बहुत जानकारी हो। एआई को आभार व्यक्त करने पर जवाब इस तरह मिला-आपका धन्यवाद! आपको किसी भी प्रकार की मदद के लिए हमेशा तैयार रहूँगा। अगर आपको फिर से किसी सवाल या समस्या का सामना करना पड़े तो कृपया मुझे बताएं। हमेशा आपकी सेवा में। धन्यवाद!ओपनएआई के इस चैटबॉट को सिर्फ कंटेट उपलब्ध करा दीजिए। मसलन किसी दुर्घटना की खबर बनानी हो तो घटनास्थल का नाम, घटना का कारण, घायलों का नाम, डेटलाइन, तारीख, समय आदि दे दीजिए जो जानकारी एक पत्रकार को सामान्य रूप से मिलती है, कुछ ही सेकंड में समाचार के मूलभूत सिद्धांत उल्टा पिरामिड शैली में खबर बनकर तैयार हो जाएगी। सिर्फ खबर ही नहीं, किसी विषय पर संपादकीय, आलेख, कहानी, कविता आदि भी।90 के दशक में समाचार पत्र के दफ्तरों में टेलीप्रिंटर हुआ करता था। यह खट-खट की आवाज के साथ देश और दुनिया की खबरें कागज पर उगलता रहता था। थोड़ा तकनीकी विकास हुआ तो यह आवाज चर्र-चर्र में तब्दील हो गई। बाद में इंटरनेट आया तो यह आवाज भी बंद हो गई। एक समय स्थानीय रिपोर्टर घटनास्थल से खबरें एकत्र कर दफ्तर में अखबारी कागज पर खबरें लिखा करता था। अंग्रेजी के समाचार-पत्रों में टाइपराइटर पर खबरें लिखने का चलन भी देखने को मिला था। कुछ समाचार-पत्रों के दफ्तरों में रेडियो सुनकर राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय खबरें लिखी जाती थीं, विशेषकर सांध्य दैनिक समाचार-पत्र में। आमतौर पर खबरें मटमैले अखबारी कागज पर लिखी जाती थीं। इंट्रो गलत होने पर प्रायः कागज को मोड़कर फेंक दिया जाता था। जिले और दूर-दराज के संवाददाता भी कागज पर लिखकर ही खबरें भेजा करते थे। कई बार उनकी खबरें दो से तीन दिन में पहुँचती थीं। महत्वपूर्ण खबरें फोन पर लिखाई जाती थीं। तकनीक और संसाधन के अभाव के उस दौर में आज की तरह व्हाट्सएप की सुविधा नहीं थी।रिपोर्टर और छायाकार को घटनास्थल तक जाना ही पड़ता था। तब का लेखन भी सशक्त हुआ करता था। खबर लिखने के बाद वरिष्ठ संशोधित करते थे। इसके बाद खबर कम्प्यूटर आपरेटर के पास टाइप के लिए भेज दी जाती थी। हर एक खबर का बटर में प्रिंट निकलता था। पेस्टर एक-एक खबर की कटिंग कर पेस्टिंग किया करता था। फिर छपाई के लिए प्लेट बनती थी। एक लम्बी प्रक्रिया हुआ करती थी। रात दो से तीन बजे तक पेस्टिंग ड्यूटी भी लगा करती थी। बहुत सी यादें हैं और बहुत से अनुभव....याद कीजिए उन दिनों को जब टेक्नोलॉजी के चरण चरम पर नहीं थे। हम विश्व के किसी भी कोने में बैठे व्यक्ति तक पलक झपकते ही अपना संदेश पहुँचाने में सक्षम भी नहीं थे। शायद उस समय हम एक-दूसरे के ज्यादा करीब हुआ करते थे। सामाजिक जीवन भी सशक्त हुआ करता था। आभासी दुनिया से दूर संवेदनाओं का अपना ही महत्व हुआ करता था। झूठ भी कम ही बोला जाता था। निःसंदेह तकनीकी के विकास के साथ-साथ मानव का भी विकास हुआ। आम से लेकर खास तक, उन तमाम सुविधाओं से लैस होता चला गया जिसकी कल्पना पहले कभी नहीं की गई थी। नित-नये अविष्कारों से जैसे-जैसे पूरी दुनिया मुट्ठी में समाती चली गई वैसे-वैसे जीवन-शैली भी बदलती चली गई। अब तकनीक के बिना जीवन व्यर्थ माना जाने लगा है।अब पहले जैसा कुछ भी नहीं रहा। प्रिंट, इलेक्ट्रानिक, वेब मीडिया, सोशल मीडिया और अब एआई (AI) यानि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जो जीवन के हर क्षेत्र को बदलने वाला है। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी एआई की भूमिका तय हो रही है। इन दिनों गूगल जीनियस एआई की खासी चर्चा है जो घटनाओं को संशोधित कर ब्रेकिंग न्यूज बना सकता है। कहा जा रहा है कि गूगल का यह एआई टूल फेक्ट चेक कर न्यूज, आर्टिकल लिखने, हेडलाइन बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। हाल ही में ओड़िशा के भुवनेश्वर के न्यूज चैनल ओटीवी ने लिसा नामक एआई संचालित एक सुंदर सी दिखने वाली न्यूज एंकर लाँच की है जो खबरों को अनेक भाषाओं में सुना सकती है। इंसान के ब्रेन से भी कई गुना क्षमता रखने वाले एआई की यह आहट भविष्य के खतरों से खुद-ब-खुद आगाह करती नजर आ रही है। जाहिर है पत्रकारों की नौकरी पर भी खतरे मंडराएंगे। लेकिन इसका सामना ठीक उसी तरह किया जा सकता है जिस तरह 20वीं सदी में किया गया था। कनिष्ठों से लेकर वरिष्ठों तक को कम्प्यूटर पर अपनी खबर खुद टाइप करने का दबाव था। इसके बाद पेज मेकिंग करने का दबाव आया। तकनीकी के साथ सुर-ताल मिलने वाले टिके रहे। समय के साथ अपडेट होने की आवश्यकता फिर से आन पड़ी है। तो क्यों न एआई की ट्रेनिंग ली जाए जो भारत सरकार मुफ्त में दे रही है।भारत सरकार ने अपने इंडिया 2.0 प्रोग्राम के अंतर्गत एआई प्रशिक्षण पाठ्यक्रम की घोषणा की है। यह पूरी तरह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) पर समर्पित है। इसे इसे स्किल इंडिया और जीयूवीआई के माध्यम से विकसित किया गया है। इसमें एआई के बुनियादी सिद्धांत, एआई एप्लिकेशन, एआई एथिक्स आदि शामिल है। शेष समय के हांथों निहित है...(क्रमशः जारी.... युग चेतना कॉलम में एआई से संबंधित विभिन्न पहलुओँ पर सारगर्भित आलेख जारी रहेगा।)
- - डॉ. कमलेश गोगिया
ऊपर शीर्षक में एक शब्द है ‘इकिगाई’ (IKIGAI)। यह जापानी भाषा का शब्द है। जापान का नाम लेते ही सबसे पहले खयाल आता है वहाँ के लोगों की लम्बी आयु के रहस्य का। दुनिया में सबसे ज्यादा लम्बी आयु जापान के लोगों की रहती है। जापान की केन तनाका दुनिया की सबसे बुजुर्ग महिला थीं। उनकी आयु 119 वर्ष थी। उनके निधन पर गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने भी दुख व्यक्त किया था। विश्व बैंक के तथ्य बताते हैं कि दुनिया में सबसे ज्यादा बुजुर्ग आबादी जापान में है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार जापान में औसतन एक महिला की आयु 87 वर्ष और पुरुष की 82 वर्ष होती है। अध्ययन बताते हैं कि जापान के ओकीनावा नामक आइलैंड में लोगों की औसतन आयु 100 साल या इससे भी अधिक होती है। यह अधिकांशतः लोग जानते भी होंगे। अब सवाल है ‘इकिगाई’ क्या है? पहली बार यह शब्द मैंने एक पुस्तक के फ्रंट पेज के शीर्षक के रूप में पढ़ा था। लीक से हटकर आकर्षित करने वाले शब्दों की तरह इस शब्द के मायने जानने की लालसा हुई। फ्रंट पेज में दिये गए उपशीर्षकों ने भीतर के पन्ने पलटने पर मजबूर कर दिया। भीतर के पन्नों से पता चला इकिगाई के पीछे जापान के लोगों की लम्बी आयु का सीक्रेट।
हेक्टर गार्सिया (Hector Garcia) और फ्रान्सेस्क मिरालेस (Francesc Miralles) की लिखी पुस्तक का नाम है ‘इकिगाई’ (IKIGAI)। दुनिया भर के लाखों लोगों ने इसकी सराहना की है और यह बेस्ट सेलर पुस्तक मानी जाती है। इसमें लम्बे और खुशहाल जीवन के जापानी रहस्यों को प्रकाश में लाया गया है। यह गहन जाँच-पड़ताल और शोध के आधार पर लिखी गई पुस्तक है जो जापान के लोगों की लम्बी आयु के रहस्य पर से पर्दा हटाती है। वास्तव में यह आडम्बर से दूर एक आदर्श जीवन-शैली अपनाकर खुशहाल जीवन जीने की प्रेरणा देती है।
क्या है इकिगाई ? इसे विस्तार देने से पहले जापानी कहावत का उल्लेख मिलता है-
"सौ वर्ष जीने की चाहत आप में तभी होगी
जब आपका हर पल सक्रियता से भरा हो।"
इकिगाई एक जापानी संकल्पना है। इसका सामान्य अर्थ है, हमेशा व्यस्त रहने से मिलने वाला आनंद। इसका मकसद है अपने जीवन जीने का उद्देश्य खोजना। यह शब्द असल में जापान के लोगों की लम्बी आयु का रहस्य बताता है, जैसा कि लेखकों ने अपने अध्ययन में जिक्र किया है। लेखकों ने विश्व में सबसे ज्यादा लम्बी आयु जीने वाले लोगों के गाँव ओगिमी का अध्ययन किया जिसे विश्व का सबसे दीर्घायु लोगों का गांव माना जाता है। एक साल के प्रारंभिक शोध के बाद कैमरे और रिकार्डिंग उपकरणों का भी इस्तेमाल किया गया। यह बात खास है कि वहाँ के लोगों ने उनका स्नेहशीलता के साथ स्वागत किया और वे कुछ ही समय में उनसे घुल-मिल गये। वे हरी-भरी पहाड़ियों और स्वच्छ पानी वाले वातावरण में हँसते और चुटकुले सुनाते दिखे। जैसा कि लेखकों ने अपनी भूमिका में जिक्र किया है। वे बताते हैं कि ओगिमी लोगों के आनंददायक जीवन के पीछे पहला राज था उनका सामाजिक जीवन जो टीम भावना और अपनेपन से परिपूर्ण होना। दूसरे विश्व युद्ध में इस गाँव पर हुए हमले में दो लाख लोग मारे गये थे। लेकिन गाँव के लोगों में नाकारात्मक भाव नहीं थे। वे सकारात्मक सोच और ‘इबारीबा चोडे’ के आधार पर जीवन जी रहे थे जिसका अर्थ है-सभी की तरह भाई जैसा बर्ताव, फिर वे अपने हों या पराये, मित्र हों या शत्रु । यह हमें भारतीय दर्शन का भी स्मरण कराता है। वेदों में विश्व बंधुत्व का संदेश निहित है। वृहदारण्यक उपनिषद् के इस प्रसिद्ध श्लोक से सभी अवगत ही हैं-
ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः
सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
जिसका अर्थ है, सभी सुखी हों, सभी रोगमुक्त रहें। सभी अच्छी घटनाओं को देखने वाले अर्थात् साक्षी रहें और कभी किसी को दुःख का भागी न बनना पड़े।
इकिगाई में शतायु जीवन के बहुत से रहस्य उजागर किये गये हैं। इनमें जीवन शैली, आचार-विचार, खाद्य संस्कृति, अपनापन आदि प्रमुख रूप से शामिल है। हर व्यक्ति के भीतर इकिगाई छिपा रहता है जो किसी को मिल गया रहता है तो कोई उसकी तलाश में रहता है, मसलन जीवन जीने का एक उद्देश्य, जैसे किसी का इकिगाई दूसरों की सहायता करना रहता है तो किसी का कला की सेवा करते रहना और आप कैसा जीवन जीते हैं ,यह बात भी शतायु का कारण बनती है। स्वस्थ रहने के राज के पीछे अच्छी पर्याप्त नींद, कम भोजन, सदैव सक्रिय रहने और कभी रिटायर न होने, तनाव से मुक्त रहने, हँसने, खुश रहने, सामाजिकता को महत्व देने और सभी में अपने भाई-बंधु का दृष्टिकोण रखने जैसी बातों को महत्व दिया गया है।
यदि कम शब्दों में इकिगाई का पूरा सार समझना है तो इसमें दिया गया दीर्घायु काव्य पढ़ लीजिए। यह ओगिमी में करीब सौ साल की एक बुजुर्ग महिला ने सुनाया था। इस काव्य में स्वस्थ और दीर्घायु जीवन का सूत्र दिया गया है। इसमें कहा गया है कि स्वस्थ और दीर्घायु जीवन के लिए सभी पदार्थ थोड़े-थोड़े खुशी से खाएँ। इस एक लाइन पर यदि हम गंभीरता से ध्यान दें तो थोड़ा खाना और खुशी से खाने की बात कही गई है। मसलन भोजन करते समय हमारी भावनाएँ और हमारे विचार कैसे हैं, इसका पूरा प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ता है। यदि हम आधुनिक जीवन शैली देखें तो संचार के दो प्रमुख साधन हैं टेलीविजन और मोबाइल और सर्वाधिक लोग इन दो उपकरणों में व्यस्त रहते हुए भोजन करते हैं। पिछले साल एबीपी लाइव ने एनवायरमेंटल जनरल ऑफ हेल्थ नामक प्रतिष्ठित मैग्जीन के हवाले से बच्चों में खाने-पीने की आदत पर एक रिसर्च पर प्रकाश डालते हुए बताया था कि टेलीविजन देखते हुए खाना खाने वाले दस साल तक के बच्चों को मोटापे का खतरा रहता है। इसके विपरीत परिवार के साथ बातचीत करते हुए लंच या डिनर खाने से ओबेसिटी का खतरा कम हो जाता है। टीवी या मोबाइल देखते हुए भोजन करने से वजन बढ़ने, ह्रदय रोग, पेट की समस्या और नींद न आने जैसी बीमारियों का जिक्र रिसर्च में किया गया है।
खैर, चलिए दीर्घायु काव्य की आगे की पंक्तियों की तरफ...आगे कहा गया है कि जल्दी सोएं, जल्दी उठें और तुरंत घूमने जाएँ। हर दिन शांति के साथ जिएं, यात्रा का आनंद लें, दोस्तों में अपनेपन का बर्ताव करें, सभी ऋतुओं का आनंद लें और हमेशा मशगूल रहें और काम करते रहें तो सौ साल आपकी ओर चलते हुए आएँगे। इकिगाई में एक बात और प्रभावित करती है और वह है निरंतर सक्रिय रहना। शोध के हवाले से बताया गया है कि दीर्घायु गाँव ओगिमी के 80 और 90 साल के लोग भी काफी कार्यक्षम हैं। वे घर में बैठकर खिड़की से झाँकते रहने और अखबार पढ़ने जैसे कामों में अपना समय नहीं बिताते हैं। सुबह जल्दी उठकर भरपूर चलते हैं, दोस्तों के साथ बातचीत करते हैं और गाना गाते रहते हैं। सुबह नाश्ते के बाद बगीचे में काम करने जाते हैं। वे कभी जिम में जाकर व्यायाम नहीं करते, लेकिन सदा कुछ न कुछ गतिविधि करते रहना मानो उनकी दिनचर्या का अंग-सा होता है। सदा जवान बने रहने के लिए योग को यहां काफी महत्व दिया गया है। इकिगाई में जीवन-शैली से संबंधित अनेक महत्वपूर्ण बातों का न सिर्फ जिक्र है बल्कि अमल में लाने के तरीकों पर भी प्रकाश डाला गया है।
इकिगाई के दस नियमों में शामिल है- हमेशा कार्यरत रहने, जल्दबाजी न करने, पेट भरकर न खाने, अच्छे मित्रों से घिरे रहने, मुस्कराते रहने, प्रकृति के साथ जुड़े रहने, भूत और भविष्य की बजाए वर्तमान में जीने, छोटी-छोटी बातों में खुशी ढूंढने, कृतज्ञ बने रहने और उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने जैसी बातें। भारतीय संस्कृति और अध्यात्म में भी वही सारे तत्व निहित हैं जिनका जिक्र हमें इकिगाई में मिलता है, बात अमल करने पर है। आप सभी शतायु रहें, यही इकिगाई से मेरी कामना है। - आलेख - धनंजय राठौर, छगन लोन्हारेरायपुर, / छत्तीसगढ़ में हरेली त्यौहार का विशेष महत्व है। हरेली छत्तीसगढ़ का पहला त्यौहार है। इस त्यौहार से ही राज्य में खेती-किसानी की शुरूआत होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह त्यौहार परंपरागत्रूप से उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन किसान खेती-किसानी में उपयोग आने वाले कृषि यंत्रों की पूजा करते हैं और घरों में माटी पूजन होता है। गांव में बच्चे और युवा गेड़ी का आनंद लेते हैं। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल पर लोक महत्व के इस पर्व पर सार्वजनिक अवकाश भी घोषित किया गया है। इससे छत्तीसगढ़ की संस्कृति और लोक पर्वों की महत्ता भी बढ़ गई है। लोक संस्कृति इस पर्व में अधिक से अधिक लोगों को जोड़ने के लिए छत्तीसगढ़िया ओलंपिक की भी शुरूआत की जा रही है।छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा राज्य के परंपरागत तीज-त्यौहार, बोली-भाखा, खान-पान, ग्रामीण खेलकूद को बढ़ावा देने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। मुख्यमंत्री की पहल पर राज्य शासन के वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग ने लोगों तक गेड़ी की उपलब्धता के लिए जिला मुख्यालयों में स्थित सी-मार्ट में किफायती दर में गेड़ी बिक्री के लिए व्यवस्था की है। परंपरा के अनुसार वर्षों से छत्तीसगढ़ के गांव में अक्सर हरेली तिहार के पहले बढ़ई के घर में गेड़ी का ऑर्डर रहता था और बच्चों की जिद पर अभिभावक जैसे-तैसे गेड़ी भी बनाया करते थे। वन विभाग के सहयोग से सी-मार्ट में गेड़ी किफायती दर पर उपलब्ध कराया गया है, ताकि बच्चे, युवा गेड़ी चढ़ने का अधिक से अधिक आनंद ले सके।मुख्यमंत्री की पहल पर पिछले वर्ष शुरू की गई छत्तीसगढ़िया ओलंपिक को काफी लोकप्रियता मिली। इसको देखते हुए इस बार हरेली तिहार के दिन शुरू होने वाली छत्तीसगढ़िया ओलंपिक 2023-24 को और भी रोमांचक बनाने के लिए एकल श्रेणी में दो नए खेल रस्सीकूद एवं कुश्ती को भी शामिल किया गया है। हरेली पर्व के दिन से ही प्रदेश में छत्तीसगढ़िया ओलंपिक खेल की शुरूआत भी होने जा रही है, जो सितंबर के अंतिम सप्ताह तक जारी रहेगा। हरेली पर्व के दिन पशुधन के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए औषधियुक्त आटे की लोंदी खिलाई जाती है। गांव में यादव समाज के लोग वनांचल जाकर कंदमूल लाकर हरेली के दिन किसानों को पशुओं के लिए वनौषधि उपलब्ध कराते हैं। गांव के सहाड़ादेव अथवा ठाकुरदेव के पास यादव समाज के लोग जंगल से लाई गई जड़ी-बूटी उबाल कर किसानों को देते हैं। इसके बदले किसानों द्वारा चावल, दाल आदि उपहार में देने की परंपरा रही हैं।सावन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को हरेली पर्व मनाया जाता है। हरेली का आशय हरियाली ही है। वर्षा ऋतु में धरती हरा चादर ओड़ लेती है। वातावरण चारों ओर हरा-भरा नजर आने लगता है। हरेली पर्व आते तक खरीफ फसल आदि की खेती-किसानी का कार्य लगभग हो जाता है। माताएं गुड़ का चीला बनाती हैं। कृषि औजारों को धोकर, धूप-दीप से पूजा के बाद नारियल, गुड़ का चीला भोग लगाया जाता है। गांव के ठाकुर देव की पूजा की जाती है और उनको नारियल अर्पण किया जाता है।हरेली तिहार के साथ गेड़ी चढ़ने की परंपरा अभिन्न रूप से जुड़ी हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग सभी परिवारों द्वारा गेड़ी का निर्माण किया जाता है। परिवार के बच्चे और युवा गेड़ी का जमकर आनंद लेते है। गेड़ी बांस से बनाई जाती है। दो बांस में बराबर दूरी पर कील लगाई जाती है। एक और बांस के टुकड़ों को बीच से फाड़कर उन्हें दो भागों में बांटा जाता है। उसे नारियल रस्सी से बांध़कर दो पउआ बनाया जाता है। यह पउआ असल में पैर दान होता है जिसे लंबाई में पहले कांटे गए दो बांसों में लगाई गई कील के ऊपर बांध दिया जाता है। गेड़ी पर चलते समय रच-रच की ध्वनि निकलती हैं, जो वातावरण को औैर आनंददायक बना देती है। इसलिए किसान भाई इस दिन पशुधन आदि को नहला-धुला कर पूजा करते हैं। गेहूं आटे को गंूथ कर गोल-गोल बनाकर अरंडी या खम्हार पेड़ के पत्ते में लपेटकर गोधन को औषधि खिलाते हैं। ताकि गोधन को विभिन्न रोगों से बचाया जा सके। गांव में पौनी-पसारी जैसे राऊत व बैगा हर घर के दरवाजे पर नीम की डाली खोंचते हैं। गांव में लोहार अनिष्ट की आशंका को दूर करने के लिए चौखट में कील लगाते हैं। यह परम्परा आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यमान है।हरेली के दिन बच्चे बांस से बनी गेड़ी का आनंद लेते हैं। पहले के दशक में गांव में बारिश के समय कीचड़ आदि हो जाता था उस समय गेड़ी से गली का भ्रमण करने का अपना अलग ही आनंद होता है। गांव-गांव में गली कांक्रीटीकरण से अब कीचड़ की समस्या काफी हद तक दूर हो गई है। हरेली के दिन गृहणियां अपने चूल्हे-चौके में कई प्रकार के छत्तीसगढ़ी व्यंजन बनाती है। किसान अपने खेती-किसानी के उपयोग में आने वाले औजार नांगर, कोपर, दतारी, टंगिया, बसुला, कुदारी, सब्बल, गैती आदि की पूजा कर छत्तीसगढ़ी व्यंजन गुलगुल भजिया व गुड़हा चीला का भोग लगाते हैं। इसके अलावा गेड़ी की पूजा भी की जाती है। शाम को युवा वर्ग, बच्चे गांव के गली में नारियल फेंक और गांव के मैदान में कबड्डी आदि कई तरह के खेल खेलते हैं। बहु-बेटियां नए वस्त्र धारण कर सावन झूला, बिल्लस, खो-खो, फुगड़ी आदि खेल का आनंद लेती हैं।
- सौरभ शर्मा, सहायक संचालकरायपुर, / आज विश्व जनसंख्या दिवस है। भारत के जनांकिकी आंकड़ों के मुताबिक भारत की औसत आयु 28 वर्ष है और इस नाते युवा शक्ति इस देश को आगे ले जाने में अपना बड़ा योगदान दे सकती है। दुनिया भर में जनांकिकी को आर्थिक शक्ति के रूप में देखा जा रहा है। इस लिहाज से भारत में आर्थिक शक्ति की बड़ी संभावना है। जनांकिकी की तरक्की इस बात पर निर्भर करती है कि आधी आबादी की हिस्सेदारी कार्यक्षेत्र में कितनी है। इस दृष्टि में भारत में अभी महिलाओं की केवल 17 फीसदी आबादी कार्यक्षेत्र में है जबकि चीन की 40 प्रतिशत महिला आबादी कार्य कर रही है। छत्तीसगढ़ के संदर्भ में देखें तो मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की ग्रामीण विकास योजनाओं से सीधे महिलाओं की बड़ी आबादी आर्थिक गतिविधियों में संलग्न हो गई है।इसका सबसे सुंदर उदाहरण गौठान और रीपा के माध्यम से आर्थिक गतिविधियां हैं। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की सरकार बनने के बाद स्व-सहायता समूहों की संख्या तेजी से बढ़ गई। दिसंबर 2018 के बाद से अब तक 13 लाख से अधिक महिलाएं इन समूहों से जुड़ चुकी हैं। इस तरह से कार्यशील आबादी की संख्या में तेजी से विस्तार आया है।इस बड़ी आबादी के कार्यशील गतिविधियों में लगे होने का अर्थव्यवस्था को लाभ तो होता लेकिन जब तक इनके लिए व्यवस्थित बाजार मुहैया नहीं कराया जाता तब तक यह लाभ प्रभावी नहीं हो पाते। छत्तीसगढ़ सरकार ने इनके लिए बाजार प्रदान किया। हर जिले में सी-मार्ट आरंभ किये गये। इन सी-मार्ट के माध्यम से हर क्षेत्र के खास उत्पादों को जगह मिली। उदाहरण के लिए बस्तर के दंतेवाड़ा में यदि भूमगादी समूह से जुड़ी कोई महिला जैविक चावल का विक्रय कर रही है तो उसके लिए बाजार केवल अपने आसपास के क्षेत्र तक नहीं है अपितु पूरा छत्तीसगढ़ और इसके बाहर भी बाजार उपलब्ध है। इसके साथ ही प्रशिक्षण का पक्ष भी महत्वपूर्ण है। जब महिलाएं एसएचजी से जुड़ती हैं तो बैंकिंग गतिविधियों से भी जुड़ती हैं एकाउंटेंसी से भी परिचित होती हैं और मार्केट को भी समझ पाती हैं। इस तरह पूरी तरह से आर्थिक कार्यकलापों के लिए दक्ष बनाने अपने को तैयार कर पाती हैं।जब महिलाएं आर्थिक रूप से सक्षम हो रही हैं तो अपनी बेटियों को भी इस दिशा में तैयार कर रही हैं। छत्तीसगढ़ में स्कूल के अच्छे इंफ्रास्ट्रक्चर और महिलाओं में बढ़ी जागरूकता का प्रभाव स्कूलों में दर्ज संख्या से पता चलती है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 5 में 10 से अधिक साल तक पढ़ाई करने वाली लड़कियों की संख्या में 36.9 प्रतिशत वृद्धि हुई है।महिलाओं के आगे आने से आर्थिक रूप से सबल होने से उनकी सामाजिक स्थिति भी सशक्त हो रही है। मुख्यमंत्री से भेंट मुलाकात के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में जितनी संख्या में पुरुष हितग्राही अनुभव साझा करते हैं उतनी ही संख्या में महिला हितग्राही भी अपना अनुभव साझा करते हैं। इन सभाओं को देखकर महसूस होता है कि छत्तीसगढ़ का समाज सचमुच समतामूलक समाज है जहां महिलाओं और पुरुषों की कार्यक्षेत्र में बराबरी की भागीदारी हैं और दोनों ही मिलकर अपने प्रदेश के विकास की गाथा को गढ़ रहे हैं।महिलाएं परिवार की धुरी होती हैं और आर्थिक रूप से सक्षम होने की वजह से उनके पास भी परिवार की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने की शक्ति आ गई है। चाहे बच्चों की पढ़ाई का मामला हों, उनके लिए ज्वैलरी खरीदी हो। वे निर्णय ले रही हैं। अपने सपनों को पूरा करने की जो शक्ति उनके भीतर आई है उससे उनके जीवन में खुशियां भी बढ़ी हैं।गौठानों में आजीविकामूलक गतिविधियों का ट्रेंड देखें तो यह साफ होता है कि महिलाएं लगातार अपनी आर्थिक गतिविधियों का विस्तार कर रही हैं। जिन समूहों की महिलाएं वर्मी कंपोस्ट तैयार करती थीं। उन्होंने मशरूम का उत्पादन आरंभ कर दिया। तेल पिराई का काम करने लगीं। इस तरह अपने आसपास की बाजार की जरूरतों को भांपते हुए अपना कार्य क्षेत्र बढ़ाया। छत्तीसगढ़ में उद्यमशील समाज के निर्माण में अब इन महिलाओं की अहम भूमिका हो गई है।
- कहावतों का अनूठा संसार है। कहावतों से संबंधित प्रश्न स्कूल- कॉलेज और प्रतियोगी परिक्षाओं में भी पूछे जाते रहे हैं। पहले-पहल लगता था कि हिन्दी विषय में कहावत तो पूछी ही जाएगी, सो रट्टा मार लेते थे। बड़ा सरल लगता था याद करना और प्रश्न पूछे जाने पर उत्तर लिखना। समय बीतने के साथ इसके महत्व का पता चला। कहावत क्या है? सरल शब्दों में कहें तो भारतीय लोक जीवन में मौखिक परंपरा के आधार पर प्रचलित लोकोक्ति या कथन को ही कहावत कहा जाता है। सच पूछिये तो कहावतें हमारी अनमोल धरोहर हैं। ये एक दिन में तैयार नहीं होतीं और न तो किसी एक घटना के आधार पर किसी कहावत को बनाया जा सकता है। लम्बी प्रक्रिया से गुजरकर ही कहावतों का निर्माण होता है। इन्हें समय की कसौटी पर बार-बार कसना पड़ता है और तब जाकर इन्हें लोक जीवन प्रमाणित करता है। देश के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग बोलियों और भाषाओं में लोक-कहावतें प्रचलित रही हैं। कहा जाता है कि सदियों से चली आ रही कहावतें आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के इस दौर में भी सटीक बैठती हैं। कहावतों में सिर्फ जीवन-दर्शन ही नहीं छिपा है, यदि गंभीरता से अध्ययन कर अमल किया जाए तो बहुत सी बीमारियाँ ठीक भी हो सकती हैं और सम्भावित रोगों से बचा जा सकता है।देश के विभिन्न राज्यों में अनेक कहावतें प्रचलित हैं। इनमें स्वास्थ्य से संबंधित कहावतें भी शामिल हैं। भोजपुरी कहावतों का सत्यदेव ओझा ने बेहतर संकलन किया है। ‘’भोजपुरी कहावतेः एक सांस्कृतिक अध्ययन’’ में उन्होंने स्वास्थ्य संबंधी अनेक कहावतों का उल्लेख किया है।जैसे- "मोटी दतवन जो करे, नित उठी हर्रे खायबासी पानी जो पिये, ता घर बैद न जाय।"इसका अर्थ है कि जो मोटी दतवन से मुँह धोता है, नित्य प्रति हर्रे खाता है और बासी पानी पीता है उसके घर वैद्य कभी नहीं जाता है।‘’बानपुर और बुंदेलखंड’’ पुस्तक में मदन मोहन वैद्य का ‘बुन्देली कहावतों में स्वास्थ्य विज्ञान’ नाम से बड़ा ही सुंदर आलेख है। वे लिखते हैं कि भारत के ग्रामीणों में नीति, धर्म, सदाचार, स्वास्थ्य, ज्योतिष, कृषि, वर्षा आदि अऩेक विषयों पर लोकोक्तियों अर्थात कहावतों का अक्षय अनमोल भण्डार कण्ठों में मौखिक साहित्य के रूप में रक्षित चला आ रहा है। उऩ्होंने अनेक बुंदेली कहावतों में छिपे स्वास्थ्य-विज्ञान को उद्घाटित किया है। वे लिखते हैं-"सावन ब्यारू जब तब कीजै। भादो बाको नाम न लीजै।कुंवार मास के दो पाख। जतन जतन जिय राख।आधे कातिक होय दीवारी। फिर मन मारी करो ब्यारी।"इसका अर्थ है कि सावन, भादो और कुंवार महीनों में वर्षा खूब होती है। पृथ्वी की उष्णता निकलने और परिश्रम न करने से मंदाग्नि हो जाती है। फलतः भोजन के भली प्रकार न पचने से तमाम रोगों और दोषों का जन्म होता है। इसी सिद्धांत को देखते हुए कहा गया है कि सावन मास में रात्रि में भोजन (ब्यालू) कभी-कभी करें किन्तु भादो मास में रात्रि भोजन का नाम ही न लें अर्थात रात्रि भोजन बिल्कुल न करें। कुंवार के महीने को बड़ी सावधानी से बिना रात्रि भोजन के बिता दें। कार्तिक मास में दिवाली के बाद इच्छा पूर्ण रात्रि भोजन से कोई हानि नहीं होगी। किस महीने में हमें क्या खाना चाहिए और क्या नहीं इस पर भी बुंदेलखंड की प्रसिद्ध कहावत है-"अधने जीरो, फूसे चना, माओ मिसरी, फागुन धना।चैते गुर बैसाखे तेल, जेठ महुआ, असाड़े बेर।सावन दूध उर भादों दही कुंवार करेला कातिक मई।जो इतनी नहीं माने कही मर है नई तो परहै सई।"इसका अर्थ है कि साल के 12 माह में कोई न कोई वस्तु दोषकारक होती है जिसका सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। अगहन (मार्गशीर्ष) में जीरा, पौष में चना, माघ में मिश्री, फाल्गुन में धना, चैत्र में गुड़, ज्यैष्ठ में महुआ (मधुफूल), आषाढ़ में बेर (बद्रीफल), श्रावण में दूध, भाद्रपद में दही, अश्विन (कुंवार) में करेला और कार्तिक मास में मठा (दही) ग्रहण करना स्वास्थ्य के लिए घातक है। यह आर्युवेद के सिद्धांत पर आधारित है। मार्गशीष माह जिसे आगहन कहते है, यह नवंबर से दिसंबर के बीच होता है। मार्गशीष और पौष माह में हेमंत ऋतु का प्रभाव रहता है जिससे वात-पित्त कुपित होता है। जीरा और चना शीतल होने की वजह से वात और पित्त को और भी कुपित कर देते हैं। माघ जनवरी से फरवरी और फाल्गुन फरवरी से मार्च के बीच रहता है। इस समय शिशिर ऋतु का प्रभाव रहता है जिससे मिश्री और धना वात को सबल बनाकर शरीर में रोग बढ़ा देते हैं। चैत्र और बैसाख (मार्च से अप्रैल और अप्रैल से मई) में बसंत ऋतु के प्रभाव से कफ कुपित होता है जिसमें गुण और तेल निषिद्ध है।श्रावण और भाद्रपद (जुलाई-अगस्त और अगस्त-सितंबर) यानी वर्षाऋतु में दूध और दही के सेवन से वात बढ़ता है। इसी तरह अश्विन और कार्तिक (सितंबर-अक्टूबर और अक्टूबर-नवंबर) में करेला और मठा का सेवन पित्त कुपित होने की वजह से हानिकारक माना गया है। इस संबंध में एक और कहावत है-कुंवार करेला, चेत गुड़, भादों मूली खाय।पैसा जावे गांठ का, रोग ग्रस्त पड़ जाय।इसका अर्थ है कि कुंवार में करेला, चैत में गुड़ और भाद्रपद में मूली खाने वाले का पैसा तो नष्ट होगा ही, बीमार पड़ जाएगा। अतः यह वस्तुएं इन महीनों में नहीं खानी चाहिए।स्वस्थ रहने का एक और उपाय बुंदेली कहावत में इस प्रकार बताया गया है-"निन्नें पानी ज पिएं हर्र भूंज नित खाय।दूध ब्यारू जे करें उऩ घर बैद न जाएं।।"यानी जो व्यक्ति प्रातःकाल उठकर बिना कुछ खाए-पिए पानी पीता है, प्रतिदिन दोपहर को भुंजी हुई हर्र का सेवन करता है और रात्रि को सिर्फ दूध पीकर रहता है, वह निरोगी रहता है और उसे वैद्य की कभी कोई आवश्यकता नहीं होगी। भोजन के पहले, बाद और बीच में पानी पीने को लेकर कहावत है-"पहले पीवे जोगीबीच में पीवे भोगीपीछे पीवे रोगी"इसका अर्थ है कि योगी जन भोजन के पूर्व पानी पी लेते हैं अर्थात भोजन पूर्व पानी पीना बुद्धिमानी का कार्य है और स्वास्थ्य के लिए सर्वश्रेष्ठ है। भोगी गृहस्थ जन पानी भोजन के बीच में पीते हैं। यह पानी पूर्ण लाभकारी नहीं है, किंतु मध्यम होने से कुछ ठीक है। जो रोगी हैं या होना चाहते हैं, वे लोग ही पानी भोजन के बाद पीते हैं।छत्तीसगढ़ में भी स्वास्थ्य से संबंधित अऩेक कहावतें हैं। एक कहावत है-"चैत सुते भोगी, कुँवार सुते रोगी।"इसका अर्थ है कि चैत माह में भोगी व्यक्ति और क्वाँर माह में रोगी व्यक्ति सोता है। बुंदेली की तरह छत्तीसगढ़ी में भी कहा गया है कि-"कुँवार करेला, कातिक दही, मरही नहीं त परही सही।"अर्थात- क्वाँर में करेला और कार्तिक माह में दही खाने वाला व्यक्ति भले न मरे, लेकिन बीमार अवश्य पड़ जाता है। एक अन्य कहावत है-"खाके मुते सुते बाउ, काहे बैद बसावे गाउ।"यानी, भोजन करके लघुशंका जाना और फिर बाँयी करवट सोने पर व्यक्ति निरोगी रहता है।कहने का आशय यह है कि कहावतें लोक जीवन का सार होती हैं और ये सिर्फ दैनिक समस्याओ को सुलझाने का ही कार्य नहीं करतीं, अपितु निरोगी जीवन के सूत्र भी बतलाती हैं। देश के लगभग सभी राज्यों में स्वासथ्य से संबंधित हजारों लोक-कहावतें प्रचलित हैं जो दीर्धकालीन अनुभव से गुजरकर लोगों की जुबां पर आज भी रची-बसी हैं।
- आलेख - सौरभ शर्माइस साल जुलाई महीने की तीसरी तारीख को दुनिया का औसत तापमान 17.18 डिग्री दर्ज किया गया। यह विश्व का अब तक का सबसे अधिकतम तापमान है। वैज्ञानिक इसका कारण एलनीनो और क्लाइमेट चेंज बता रहे हैं। इसका उपाय भी बताया जा रहा है कि स्वच्छ ऊर्जा की ओर दुनिया रूख करे। अबुधाबी से लेकर फ्रांस तक इसके लिए देशों की शिखर वार्ताएं की जा रही हैं। जलवायु परिवर्तन के इस बड़े खतरे को देखते हुए निश्चित रूप से दुनिया को स्वच्छ ऊर्जा के विकल्पों की ओर ध्यान देना होगा। जो भी देश इस दिशा में आरंभिक पहल करेंगे, वे इस दिशा में अग्रणी रहेंगे।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल हमेशा से परंपरा से संचयित ज्ञान को महत्व देते हैं और हमारे पूर्वजों ने जो कृषि परंपरा की अच्छी बातें सिखाई हैं उसे वर्तमान में पुनः कृषि में पूरे जोर से स्थापित कराने का श्रेय उन्हें जाता है।क्लाइमेट चेंज जैसी परिस्थितियों से निपटने के लिए छत्तीसगढ़ ने देश-दुनिया को अनोखी राह दिखाई है। दुनिया स्वच्छ ईंधन के लिए जीवाश्म ईंधन के बजाय अभी ई-व्हीकल की ओर रूख कर रही है लेकिन लीथियम की सीमित उपलब्धता के चलते यह विकल्प भी लंबे समय तक कारगर नहीं है ऐसे में स्वाभाविक रूप से ऐसे स्वच्छ ईंधन की जरूरत प्राथमिकता में है जो सतत रूप से उपलब्ध हो। छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है जिसने स्वच्छ ईंधन के विकल्प को अपनाने की दिशा में कदम बढ़ाएं हैं।उदाहरण के लिए गोबर से बिजली के उत्पादन को लें। जगदलपुर के डोंगाघाट में गोबर से बिजली उत्पादन के लिए पहल की गई है। यह कई मायने में महत्वपूर्ण है। इससे पशुधन का उपयोग उचित तरीके से किया जा सकेगा। स्वाभाविक रूप से गोबर के अधिक उपयोगी होने से लोग पशुपालन की ओर भी बढ़ेंगे। कृषि से इतर पशुपालन भी आजीविका बढ़ाने की दिशा में कारगर कदम साबित होगा, इससे किसानों की आय में दोगुनी वृद्धि के लक्ष्य को पूरा किया जा सकेगा।जलवायु परिवर्तन का सीधा असर फसल चक्र पर पड़ेगा। खराब मौसम और मिट्टी की अनुर्वरता ऐसे कारक होंगे जिससे खेती किसानी की राह काफी कठिन हो जाएगी। मिट्टी की ऊर्वरता बचाने जैविक खाद का उपयोग ही एकमात्र विकल्प बचता है। इससे देश में मंहगे फर्टिलाइजर का आयात भी बचेगा।जलवायु परिवर्तन के असर से हो सकता है कि मानसून संक्षिप्त अवधि का हो या टल जाए अथवा सूखा एवं अतिवृष्टि की भी आशंका होती है। ऐसे परिवर्तनों के लिए क्या हम तैयार हैं। छत्तीसगढ़ के संदर्भ में यह पूछें तो हाँ क्योंकि हमारे यहां की धान की अनेक प्रजाति ऐसी हैं, जो प्रतिकूल मौसमों का सामना कर सकती हैं। अच्छी बात यह है कि इन्हें हमने सहेजकर भी रखा है।जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पौधरोपण बहुत जरूरी है। पौधरोपण के लिए समय समय पर शासकीय अभियानों के चलाये जाने के साथ यह भी जरूरी है कि किसानों को भी व्यावसायिक पौधरोपण के लिए प्रेरित किया जाए। राजीव गांधी किसान न्याय योजना के अंतर्गत व्यावसायिक वृक्षारोपण पर इनपुट सब्सिडी भी शासन द्वारा प्रदान की जाती है। इससे बड़ी संख्या में किसान पौधरोपण की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं जो हरियाली की दृष्टिकोण से उपयोगी तो है ही, व्यावसायिक वृक्षारोपण के माध्यम से आय का जरिया भी किसानों के समक्ष खोलता है।स्वच्छ ऊर्जा के लिए हाइड्रोलिक एनर्जी भी उपयोगी हो सकती है। इसके लिए जरूरी है कि हमारे नदी-नाले जीवंत बने रहें। नरवा योजना ने हमारे नालों को पुनर्जीवित कर दिया है। नरवा योजना के अंतर्गत बनाये गये स्ट्रक्चर से भूमिगत जल का स्तर बढ़ा है और नदियों को भी सदानीरा बनाये रखने में इसकी बड़ी भूमिका है।आने वाला समय विपुल चुनौतियों से भरा है लेकिन इन चुनौतियों में संभावनाएं भी छिपी हैं। स्वच्छ ऊर्जा को लेकर जो पहल छत्तीसगढ़ में की जा रही है उससे निकट भविष्य में बड़ी मात्रा में वैकल्पिक नवीकरण ऊर्जा का उत्पादन हो सकेगा।