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- राजमा चावल उत्तर भारतीयों के सबसे प्रमुख भोजन में से एक है। बीन्स और चावल का यह मिश्रण हाई प्रोटीन के लिए जाना जाता है। दरअसल जब ये दोनों खाद्य पदार्थ एक साथ खाए जाते हैं तो प्रोटीन में मौजूद सभी तत्व हमें प्राप्त हो जाते हैं। राजमा को मसालों के साथ गाढ़ी ग्रेवी के रूप में बनाया जाता है। इस तरह ये सारे भारतीय मसाले इसमें और पोषक तत्व जोड़ देते हैं और इस तरह ये एक इम्यूनिटी बूस्टर डाइट बन जाता है। वहीं इसके कई और फायदे भी हैं। राजमा विटामिन बी 1 से समृद्ध है।-राजमा प्लांट-आधारित प्रोटीन है, जिसमें अच्छी मात्रा में खनिज, कैल्शियम, विटामिन बी 1, फाइबर और एंटीऑक्सिडेंट पाए जाते है। यह प्रोटीन और एंथोसायनिन में बहुत स्वस्थ और उच्च है।-राजमा- चावल दैनिक आहार में फाइबर की जरूरतों का 40-50 प्रतिशत हिस्सा पूरी कर देता है, जो आपके आंत्र को सुचारू रखने में मददगार है। इसके अलावा ये कब्ज को कम करने और रक्त कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में मदद करता है।-प्रोटीन और फाइबर के अलावा राजमा में खनिज, कैल्शियम और आयरन होते हैं। यह पोटेशियम, मैग्नीशियम, घुलनशील फाइबर और प्रोटीन का अच्छा स्रोत है, जो उच्च रक्तचाप को कम करने में मदद करता है।- चूंकि राजमा में ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है, इसलिए यह मधुमेह रोगियों के लिए भी ये फायदेमंद है।- राजमा में मौजूद एंटीऑक्सिडेंट कोशिकाओं की उम्र बढऩे की प्रक्रिया को धीमा करते हैं। यह झुर्रियों को कम करने, मुंहासों को ठीक करने, बालों और नाखूनों के स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है।-उच्च फाइबर सामग्री इंटेस्टाइन को भी फिट रखती है। वहीं राजमा में मौजूद जिंक तत्व आंखों और बालों और त्वचा के लिए अच्छा होता है।-ये लो-ग्लाइसेमिक-इंडेक्स फूड हैं। इसमें बड़ी मात्रा में फाइबर होता है, जिसे खाने से लंबे समय तक भूख नहीं लगती। इसमें पाए जाने वाले कम वसा वाले तत्व इसे एक कम कैलोरी वाला भोजन बनाते हैं। इसलिए वजन कम करने वालों के लिए राजमा का सेवन लाभकारी हो सकता है।- इसके अलावा यह गठिया के दर्द, अस्थमा , किडनी संबंधी रोगों में भी फायदेमंद है।-शास्त्रों में लिखा है कि किसी भी चीज की अति घातक होती है। यह राजमा के साथ भी होता है। अधिक मात्रा में इसे खाने से पाचन तंत्र में परेशानी हो सकती है, क्योंकि अधिक मात्रा में इसके सेवन से शरीर में ंज्यादा मात्रा में फाइबर पहुंच जाता है जिससे पाचन तंत्र को परेशानी होती है। वहीं कच्चे राजमा का सेवन पेट दर्द का कारण भी बन सकता है। इसलिए अच्छी तरह से पकाकर ही इसे खाएं।-
- उत्तर भारत में एक कहावत है-सत्तू मनमत्तू , जब घोले तब खा। प्राचीन काल से यह गर्मियों का सबसे अच्छा खाद्य पदार्थ माना जाता रहा है। उत्तर भारत मुख्य रूप से बिहार और उत्तर प्रदेश में यह काफ़ी लोकप्रिय है और कई रूपों में प्रयुक्त होता है। सत्तू अपने आप में पूरा भोजन है, यह एक सुपाच्य, हलका, पौष्टिक और तृप्तिदायक शीतल आहार है, इसीलिए इसका सेवन ग्रीष्म काल में किया जाता है। चने वाले सत्तू में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है और मकई वाले सत्तू में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधिक होती है।सत्तू बना है संस्कृत के सक्तु या सक्तुक: से जिसका अर्थ है अनाज को भूनने के बाद उसे पीस कर बनाया गया आटा।1. जौ का सत्तू- जौ का सत्तू शीतल, अग्नि प्रदीपक, हल्का, दस्तावर (कब्जनाशक), कफ़ तथा पित्त का शमन करने वाला, रूखा होता है। इसे जल में घोलकर पीने से यह बलवर्द्धक, पोषक, पुष्टिकारक, मल भेदक, तृप्तिकारक, मधुर, रुचिकारक और पचने के बाद तुरन्त शक्ति दायक होता है। यह कफ़, पित्त, थकावट, भूख, प्यास और नेत्र विकार नाशक होता है।2. जौ-चने का सत्तू- चने को भूनकर, छिलका हटाकर पिसवा लेते हैं और चौथाई भाग जौ का सत्तू मिला लेते हैं। यह जौ-चने का सत्तू है।3. चावल का सत्तू- चावल का सत्तू अग्निवर्द्धक, हलका, शीतल, मधुर ग्राही, रुचिकारी, बलवीर्यवर्द्धक, ग्रीष्म काल में सेवन योग्य उत्तम पथ्य आहार है।4. जौ-गेहूं-चने का सत्तू- चने की दाल एक किलो, गेहूं आधा किलो और जौ 200 ग्राम। तीनों को 7-8 घंटे पानी में गलाकर सुखा लेते हैं और जौ को साफ करके तीनों को अलग- अलग घर में या भड़भूंजे के यहां भुनवा कर, तीनों को मिला लेते हैं और पिसवा लेते हैं। यह गेहूँ, जौ, चने का सत्तू है।उपरोक्त दिये गये किसी भी सत्तू को पतला पेय बनाकर पी सकते हैं या लप्सी की तरह गाढ़ा रखकर चम्मच से खा सकते हैं। इसे मीठा करना हो तो उचित मात्रा में शक्कर या गुड़ पानी में घोलकर सत्तू इसी पानी से घोलें। नमकीन करना हो तो उचित मात्रा में पिसा जीरा व नमक पानी में डालकर इसी पानी में सत्तू घोलें।फायदे- 1. चने और जौ का सत्तू शरीर को न केवल ठंडक देता है बल्कि ये डायबिटीज और मोटापे का भी दुश्मन होता है।2. सत्तू की तासीर ठंडा होती है। इसलिए गर्मी में इसे खाने से शरीर ठंडा भी रहता है और पानी अधिक पीने से ये डिहाइड्रेशन से भी बचाता है। इससे लू नहीं लगती है। सत्तू शरीर का तापमान नियंत्रित रखने में कारगर होता है।3. सत्तू कैल्शियम, आयरन से भी भरा होता है। ऐसे में जिन्हें एनिमिया है वह इसे जरूर खाएं।4. सत्तू में मौजूद बीटा-ग्लूकेन शरीर में बढ़ते ग्लूकोस के अवशोषण को कम करता है। इससे ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल में रहता है। सत्तू लो ग्लाइमेक्स इंडेक्स वाला होता है। ये डायबिटीज के लिए फायदेमंद होता है।5. गैस्ट्रोइंट्रोटाइटिस से पीडि़त लोगों को सत्तू जरूर खाना चाहिए। चने और जौ के सत्तू को बराबर मात्रा में मिला कर आप इसका सेवन करें।6. जौ और चने से बना सत्तू कफ, पित्त, थकावट, भूख,प्यास और आंखों के अलावा पेट से जुड़ी बीमारी में बेहद लाभदायक होता है।-----
- मौजूदा वक्त में तेजी से बढ़ते मोबाइल और कंप्यूटर के प्रयोग ने न केवल लोगों के शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डाला है बल्कि लोगों की आंखों को भी गंभीर रूप से प्रभावित किया है। आज हम आपको ऐसे घरेलू नुस्खों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनके जरिए आप अपनी नजर को दुरुस्त बना सकते हैं। ये है बादाम, सौंफ और मिश्री का मिश्रण। लेकिन यदि आप शुगर के रोगी हैं तो आप इस नुस्खे को न ही करें।नजर तेज करने का सबसे अच्छा घरेलू उपाय है कि आप 7 बादाम और 5 ग्राम सौंफ और 5 ग्राम मिश्री लें और फिर इन तीनों चीजों को आपस में मिलाएं और कूट लें। जब ये मिश्रण चूर्ण बन जाए तो रात को सोने से पहले दूध के साथ इसका सेवन करें । रोजाना 7 दिनों तक इसका सेवन करने के बाद आपको खुद फर्क महसूस होगा। ज्यादा बेहतर है कि इसे 40 दिनों तक इस्तेमाल किया जाए। सभी जानते हैं कि बादाम शरीर के लिए कितना फायदेमंद है। आंखों की रोशनी बढ़ाने में विटामिन-ए और विटामिन-सी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सौंंफ में विटामिन-ए पाया जाता है। इस प्रकार सौंफ के सेवन से बढ़ती उम्र में भी आपकी आंखों की रोशनी प्रभावित होने से बच सकती है । वहीं मिश्री के औषधीय गुणों में से एक यह भी है कि इसे खाने के बाद आंखों के स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद मिल सकती है। बताया जाता है कि इसका नियमित सेवन न केवल आंखों की रोशनी में सुधार करता है, बल्कि मोतियाबिंद जैसी समस्या में भी सकारात्मक परिणाम प्रदर्शित कर सकता है। इसप्रकार बादाम, सौंफ और मिश्री का सेवन आंखों की सेहत के लिए फायदेमंद होता है।----
- छत्तीसगढ़ में कुम्हड़ा बहुतायक मात्रा में होता है। इसे स्थानीय भाषा में मखना भी कहा जाता है। कद्दू से सब्जी के अलावा बहुत सी स्वादिष्ट चीजें बनती हैं, मालपुआ, हलुआ, खीर आदि। जितना कद्दू फायदेमंद है, उससे ज्यादा उसके बीज शरीर को फायदा पहुंचाते हैं। कद्दू के बीज यानी पमकिन सीड में बहुत से औषधीय गुण मौजूद होते हैं। प्रतिदिन मु_ी भर कच्चे, अंकुरित या भुने हुए कद्दू के बीजों का सेवन कई औधषीय फायदा दे सकता है।- कद्दू के बीज फाइबर से समृद्ध होते हैं, जो पाचन तंत्र को स्वस्थ रखने के साथ-साथ, कब्ज जैसी समस्या और मोटापे को कम करने का काम करते हैं।- इसमें विटामिन-सी और ई भी पाया जाता है, जो त्वचा के लिए सबसे कारगर विटामिन माने जाते हैं। विटामिन-सी कारगर एंटीऑक्सीडेंट है। इसके अलावा ये बीज प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, आयरन, सोडियम, जिंक व फोलेट आदि से भी समृद्ध होते हैं।- एक अध्ययन के अनुसार, अलसी और कद्दू के बीजों से बना सप्लीमेंट मधुमेह का इलाज कर सकता है, लेकिन इस पर अभी और शोध की आवश्यकता है। एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, डायबिटीज के लिए इटिंग प्लान में अनसैचुरेटेड नट्स के साथ अनसैचुरेटेड बीजों को भी शामिल किया जा सकता है और कद्दू के बीज में अनसैचुरेटेड फैट मौजूद होता है।- एक रिपोर्ट के अनुसार कद्दू के बीज का तेल रक्तचाप को नियंत्रित कर सकता है। कद्दू के बीज में मौजूद पोटैशियम रक्तचाप को नियंत्रित कर हृदय जोखिम को कम कर सकता है।- कद्दू के बीज खाने के फायदे में अनिद्रा से छुटकारा भी है। कद्दू के बीज मैग्नीशियम का अच्छा स्रोत हैं और मैग्नीशियम मांसपेशियों को आराम देने का काम करता है, जिससे अच्छी नींद आ सकती है।- गठिया जैसे हड्डी रोगों के लिए भी कद्दू के बीज के फायदे देखे जा सकते हैं। पमकिन सीड कैल्शियम से समृद्ध होते हैं, जो ऑस्टियोपोरोसिस होने की आशंका को कम कर सकते हैं।-एक अध्ययन के अनुसार, कद्दू के बीज में फास्फोरस की मात्रा पर्याप्त होती है। इससे ब्लैडर स्टोन के जोखिम को कम किया जा सकता है।-भोजन को पचाने में भी कद्दू के बीज के फायदे देखे जा सकते हैं। पमकिम सीड में फाइबर भरपूर मात्रा में पाया जाता है, जो पाचन क्रिया को मजबूत करने के साथ-साथ कब्ज जैसी पेट संबंधी समस्या से भी छुटकारा दिलाने का काम करता है।- यह विटामिन-ए से समृद्ध होता है। ।- एनीमिया की रोकथाम के लिए भी कद्दू के बीजों के फायदे देखे जा सकते हैं। एनीमिया यानी शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन में रुकावट। इसका मुख्य कारण शरीर में आयरन और फोलेट की कमी होना है । यहां कद्दू के बीज आपकी मदद कर सकते हैं, क्योंकि इसमें आयरन और फोलेट दोनों पोषक तत्व पाए जाते हैं।इसलिए जब भी कद्दू खाएं, तो उसके बीज को फेंके नहीं, बल्कि उसे सूखाकर रख लें और उसका सेवन करें। बाजार में ये काफी महंगे बिकते हैं।----
- आयुष मंत्रालय के अनुसार इम्युनिटी बढ़ाने के लिए आपको रोजाना सुबह 1 चम्मच च्यवनप्राश खाना चाहिए। इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।भारत सरकार के आयुष मंत्रालय के अनुसार इम्युनिटी बढ़ाने के लिए रोजाना सुबह 10 ग्राम यानी 1 चम्मच च्यवनप्राश खाना चाहिए। डायबिटीज के मरीजों को शुगर-फ्री च्यवनप्राश खाने की हिदायत दी गई है। आप घर पर भी इसे बना सकते हैं वो भी बहुत कम समय में ।सामग्री- आंवला- आधा किलोकिशमिश- एक मु_ीखजूर (बिना बीज वाला)- 10 पीस (अगर उपलब्ध हो)देसी घी- 100 ग्रामगुड़- 400 ग्रामतेजपत्ता- 2 पत्तियांदालचीनी- 1 छोटा टुकड़ासूखी अदरक (सौंठ)- 10 ग्रामजायफल- 5 ग्रामहरी इलायची (छोटी)- 7-8 पीसलौंग- 5 ग्रामकाली मिर्च- 5 ग्रामकेसर- एक चुटकीजीरा- 1 चम्मचपिप्पली- 10 ग्राम (अगर आसानी से मिल जाए)चक्रफूल- 1 पीसविधि-सबसे पहले सभी सूखे मसालों (तेजपत्ता, दालचीनी, सौंठ, जायफल, हरी इलायची, लौंग, कालीमिर्य जीरा, पिप्पली, चक्रफूल आदि) को पीसकर इसका पाउडर बना लें। अब आंवलों को धोकर अच्छी तरह साफ कर लीजिए और इन्हें कुकर (2 सीटी) या पैन में उबाल लीजिए। उसके बाद आंवला को उबले हुए पानी से निकालकर अलग रख लीजिए और इसी बचे हुए गर्म पानी में किशमिश और खजूर को डाल दीजिए और 10 मिनट के लिए ढंक दीजिए ताकि ये मुलायम हो जाएं।अब जब आंवले ठंडे हो जाएं, तो इन्हें काटकर इसके बीज निकालकर लीजिए। अब ब्लेंडर या मिक्सर जार में आंवला, किशमिश और खजूर को डालिए और थोड़ा सा वही पानी डाल दीजिए, जिसमें आपने खजूर और किशमिश को भिगोया था। इन्हें पीसकर पेस्ट बना लीजिए। (ध्यान दें ज्यादा पानी न मिलाएं। अब एक पैन में देसी घी को डालें और मीडियम आंच पर इसे 10 मिनट तक पकाएं। इसके बाद इसी घी में गुड़ डाल दीजिए और गुड़ को पिघलाकर चाशनी जैसा बनने तक पकाएं। (लगभग 5-6 मिनट)इस गुड़ में आंवला और खजूर का पेस्ट डालें और चलाएं। धीमी आंच पर इस पेस्ट को चलाते रहें और पकाते रहें। 3-4 मिनट बाद तैयार किए गए मसालों का पाउडर डालें और अच्छी तरह धीमी आंच पर ही चलाते हुए मिलाएं। जब पकते-पकते ये पेस्ट इतना गाढ़ा हो जाए कि चम्मच से चिपकने लगे और पैन या कड़ाही की सतह छोडऩे लगे, तो आप गैस बंद कर दें। इसे ठंडा होने दें और आपका च्यवनप्राश बनकर तैयार है। इसे किसी एयर टाइट जार में भरकर रख दीजिए और रोजाना सेवन कीजिए। च्यवनप्राश को आप रोजाना सुबह 1 चम्मच 1 ग्लास दूध के साथ या सादा ही ले सकते हैं।--
- पत्ता गोभी या बंद गोभी एक सब्जी है, जिसे अधिकांश लोग खाना पसंद करते हैं। कुछ लोग इसे सलाद के रूप में और चाउमीन और बर्गर के साथ भी खाया जाता है। इस मुद्दे पर अक्सर बहस भी होती रही है कि क्या बंद गोभी वाकई हानिकारक हो सकता है? दरअसल, बंद गोभी में कई परत होती है, जिसे कीड़े छिपे हो सकते हैं, जो आंखों से दिखाई नहीं देते हैं। ये काफी सूक्ष्म होते हैं। ये एक प्रकार के परजीवी होते हैं जो दूसरों के शरीर के अंदर जीवित रह सकते हैं, जिन्हें टेपवर्म या फीताकृमि के नाम से जाता है।पकाने से पहले पत्ता गोभी को 15-20 मिनट के लिए नमक पानी या सिरके के पानी में भिगोएं। इसकी विटामिन सी सामग्री को संरक्षित करने के लिए, गोभी को पकाने या खाने से ठीक पहले धो लें। चूंकि गोभी में फाइटोन्यूट्रिएंट्स कार्बन स्टील के साथ प्रतिक्रिया करते हैं और पत्तियों को काला करते हैं, काटने के लिए स्टेनलेस स्टील के चाकू का उपयोग करें।देखा गया है कि अगर पत्ता गोभी में टेपवर्म मौजूद होते हैं और उन्हें बिना अच्छी तरह से धोए या अधपका खाने से शरीर में परजीवी के प्रवेश करने की संभावना बढ़ जाती है। जब टेपवर्म शरीर में पहुंचता है तो यहां तेजी से इनकी संख्या में वृद्धि होने लगती है, और ये आंतों को भेदते हुए ब्लड वेसेल्स में प्रवेश कर जाते हैं। इसके बाद ये खून के जरिए शरीर के अन्य अंगों तक इनका पहुंचना आसान हो जाता है। कई बार ये मस्तिष्क और लिवर तक पहुंच जाते हैं, जिसके कारण शरीर में कई लक्षण दिखाई देने लगते हैं, जिनमें उल्टी, दस्त, चक्कर आना, सिर दर्द, पेट दर्द और सांस फूलना प्रमुख है। टेपवर्म बारिश के मौसम में ज्यादा सक्रिय रहते हैं। दिमाग में पहुंचकर ये टेपवर्म अंडे देना शुरू कर देता है। जो दिमाग में छोटे-छोटे थक्के के रूप में नजर आते हैं। जब दिमाग में अंडों का प्रेशर बढ़ जाता है, तो दिमाग काम करना बंद कर देता है। टेपवर्म एक प्रकार का पैरासाइट है, जो अपने पोषण के लिए दूसरे पर निर्भर रहता है। इसमें रीढ की हड्डी नहीं होती है। टेपवर्म की 5 हजार से ज्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं। कई बार यह आंखों में भी पहुंच जाता है, जिससे आंखों की रौशनी पर असर पड़ता है।.इसलिए पत्ता गोभी को खाने-पकाने से पहले ऐहतियात बरतें। उसकी एक-एक परत को अलग करें और फिर नमक पानी या सिरके के पानी में भिगोएं। साथ ही अच्छी तरह से पकाकर ही खाएं।----
- गर्मियों का मौसम आ चुका है। ऐसे मौसम में शरीर को अंदर से कूल और स्वस्थ रखना बहुत जरूरी होता है।-सत्तू भुने हुए चने , जौ और गेहूं पीस कर बनाया जाता है। सत्तू का शर्बत पेट की गर्मी शांत करता है।-टमाटर में कैरोटेनॉएड होता है जो हमारे शरीर को प्राकृतिक रूप से गर्मी और सनबर्न से बचाता है।-तरबूज कई विटामिन और पोषक तत्वों से युक्त होता है। यह आपकी बॉडी को कूल रखता है।-दही और छाछ गर्मी में पाचन क्रिया को दुरूस्त कर आपको तरोताजा रखते हैं।- डाइट में तरबूज और खरबूजा, खीरा, ककड़ी, पुदीना को शामिल करें। इसमें 90 प्रतिशत पानी होता है साथ ही ये विटामिन-्र, एंटी-ऑक्सीडेंट और कैल्शियम से भी भरपूर होता है।- प्याज में क्वेरिस्टिंग होता है जो गर्मी में आपकी स्कीन पर पडऩे वाले रैशेज में आराम पहुंचाती है।- अंगूर में लायकोपीन होता है, जो त्वचा को अल्ट्रावॉयलेट किरणों के हानिकारक असर से बचाता है।- गुलकंद खाने से शरीर को ठंडक मिलती है। गुलकंद में विटामिन सी, ई और बी अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं। इसमें एंटीऑक्सीडेंट्स की भरपूर मात्रा होती है, जो शरीर की प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाते हैं और थकान दूर करते हैं। ये पाचन संबंधी समस्याओं को भी दूर करता है।-गर्मियों में नारियल पानी पीते रहने से शरीर में पानी की कमी नहीं होती है।-नींबू पानी गर्मी में राहत दिलाता है। गरमी और उमस के चलते शरीर में कम हुए लवणों की मात्रा को भी नियंत्रित करता है।-पेट के लिए बेल रामबाण है। यह गैस, कब्ज और अपच की समस्या में आराम दिलाता है।- कच्चे आम का शर्बत यानी पना लू से बचाता है. गर्मियों में रोज़ाना दो गिलास आम का पना पीने से पाचन सही रहता है।-लौकी में पानी की अत्यधिक मात्रा होने के कारण यह गर्मियों में बेहद लाभदायक होती है। इसमें कैल्शियम, मैग्नीशियम, विटामिन ए, सी पाए जाते हैं।
- छत्तीसगढ़ में खासकर बस्तर में तीखुर बहुतायक में मिलता है। इसका उपयोग आदिवासी बरसों से करते आए हैं। यह एक सुपर फूड है। अब हमें इसका परिष्कृत रूप मिलता है। अपने अनेक औषधीय गुणों के कारण तीखुर की मांग देश -विदेश में बढ़ती जा रही है।आमतौर पर इसे फलाहार के रूप में हम इस्तेमाल करते हैं। इसकी खीर, हलुआ, बर्फी, सेव, जलेबी जैसी अन्य मिठाइयां बनाई जाती हैं। अब तो तीखुर की बनी आइस्क्रीम भी लोगों की खास पसंद बनती जा रही है। बच्चों के लिए यह अच्छा पोषक आहार है। तीखुर की खासियत यह है कि इससे पाचन क्रिया तो ठीक रहती ही है, टीबी, खांसी, दमा, डायरिया, डिसेंटरी, जलन, घाव या जख्म, पथरी, प्रसव पीड़ा, कमर दर्द आदि के लिए भी यह रामबाण है। तीखुर की जड़ों से स्टार्च, आरारोट व लिक्विड ग्लूकोज का भी निर्माण होता है। चिकित्सकों की मानें तो गर्मियों में तीखूर से बनी शरबत पीने से लू नहीं लगती। अल्सर व पेट के विकार दूर होते हंै। इसके प्रकंद को पीसकर सिर में एक घंटे तक लेप लगाने सिर दर्द दूर होता है। औषधीय गुणों से परिपूर्ण व सुपाच्य होने के कारण इसे कमजोर व कुपोषित बच्चों को खिलाया जाता है। तीखुर कैल्शियम और कार्बोहायड्रेट का एक प्रमुख स्रोत है।तीखुर कुरकुमा अंगेस्टीफोलिया हल्दी की जाति का एक पौधा है। इसकी जड़ का सार सफेद चूर्ण के रुप में होता है। तीखुर को आरारोट व तवखीरा भी कहते हैं। तिखुर का नाम एरोरूट इसलिए पड़ा, क्योंकि यह विष बुझे तीरों के जख्म के उपचार में बेहद कारगर होता है। प्राचीन माया सभ्यता के लोग और मध्य अमेरिकी जनजातियां, जमैका की लोक परंपराओं सहित दुनियाभर में विभिन्न जनजातियों के लोग इसका इस्तेमाल तीरों के जहर के उपचार के लिए करते थे। इसके अलावा वेस्टइंडीज के आदिवासी तीखुर के जड़ का इस्तेमाल सर्पदंश सहित अन्य जहरीले कीटों के काटने पर जहर के प्रभाव को नष्ट करने और घावों के उपचार के लिए करते रहे हैं।--
- कलौंजी, (अंग्रेजी-निजेला) एक वार्षिक पादप है जिसके बीज औषधि एवं मसाले के रूप में प्रयुक्त होते हैं। कलौंजी रनुनकुलेसी कुल का झाड़ीय पौधा है, जिसका वानस्पतिक नाम निजेला सेटाइवा है, जो लैटिन शब्द नीजर (यानी काला) से बना है, यह भारत सहित दक्षिण पश्चिमी एशियाई, भूमध्य सागर के पूर्वी तटीय देशों और उत्तरी अफ्रीकाई देशों में उगने वाला वार्षिक पौधा है, जो 20-30 सेमी लंबा होता है।इसका प्रयोग औषधि, सौंदर्य प्रसाधन, मसाले तथा खुशबू के लिए पकवानों में किया जाता है। निजेला सेटाइवा को अंग्रेजी में फेनेल फ्लावर, नटमेग फ्लावर, लव-इन-मिस्ट (क्योंकि इसका फूल लव-इन-मिस्ट के फूल जैसा होता है), रोमन कारिएंडर, काला बीज, काला केरावे और काले प्याज का बीज भी कहते हैं। अधिकतर लोग इसे प्याज का बीज ही समझते हैं क्योंकि इसके बीज प्याज जैसे ही दिखते हैं। लेकिन प्याज और काला तिल बिल्कुल अलग पौधे हैं।इसे संस्कृत में कृष्णजीरा, उर्दू में- कलौंजी, बांग्ला में कालाजीरो, मलयालम में करीम जीराकम, रूसी में चेरनुक्षा, तुर्की में कोरेक ओतु, फारसी में शोनीज, अरबी में हब्बत-उल-सौदा, हब्बा-अल-बराका, तमिल में करून जीरागम और तेलुगु में नल्ला जीरा कारा कहते हैं।कलौंजी में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और हेल्थी फैट जैसे पोषक तत्व होते है। साथ ही इसमें आवश्यक वसीय अम्ल ओमेगा-6 (लिनोलिक अम्ल), ओमेगा-3 (एल्फा- लिनोलेनिक अम्ल) और ओमेगा-9 (मूफा) भी होते हैं। कलौंजी में एंटी-आक्सीडेंट भी मौजूद होता है जो कैंसर जैसी बीमारी से बचाता है। एक शोध के अनुसार, कलौंजी में मौजूद आवश्यक घटक, थाइमोक्विनोन में अस्थमा के लक्षणों पर काबू पाने की शक्ति होती है।कलौंजी के तेल में दो बेहद ही प्रभावकारी थाइमोक्विनोन और थाइमोहाइड्रोक्विनोन नामक तत्व पाये जाते हैं जो अपने हीलिंग गुणों के कारण जाने जाते हैं। यह दोनों तत्व साथ में मिलकर सभी बीमारियों से लडऩे में मदद करते हैं। इसके औषधीय गुणों के कारण कलौंजी को हर मर्ज की दवा माना जाता है। कलौंजी का तेल शरीर में कैंसर की कोशिकाओं को विकसित होने से रोकता है और उन्हें नष्ट करता है। यह कैंसर रोगियों में स्वस्थ कोशिकाओं की रक्षा करता है। इसमें मौजूद थाइमोक्विनोन एक बायो-एक्टिव तत्व, एंटीऑक्सीडेंट, एंटी इंफ्लेमेटरी और एंटी कैंसर कारक है। कैंसर से पीडि़त व्यक्ति को कलौंजी के तेल की आधी बड़ी चम्मच को एक गिलास अंगूर के रस में मिलाकर दिन में तीन बार लेने की सलाह दी जाती है।डायबिटीज, अस्थमा और सिरदर्द के उपचार में भी इसके तेल का उपयोग किया जाता है। यहीं नहीं वजन कम करने के लिए आधा चम्मच कलौंजी के तेल और 2 चम्मच शहद को मिक्स करके गुनगुने पानी के साथ दिन में तीन बार लें। कुछ ही दिनों में आपको फर्क महसूस होने लगेगा। अगर आप भी हमेशा स्वस्थ और तंदरुस्त रहना चाहते हैं तो रोजाना कलौंजी का तेल इस्तेमाल कीजिए।
- ड्रैगन फ्रूट छत्तीसगढ़ में अब एक लोकप्रिय फल बन चुका है। यहां के किसान इसकी खेती करने में रुचि ले रहे हैं। इसके सुपर गुण के कारण बाजार में इसकी मांग भी बढ़ गई है। यह सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है। इस फल को सलाद, जेली या फिर मुरब्बे के रूप में खाया जाता है।यह कैक्टस फैमिली से संबंधित गुलाबी रंग का एक रसीला फल है। इसका वैज्ञानिक नाम हिलोकेरेस अंडटस है। ड्रैगन फ्रूट में कई तरह के पोषक तत्व पाए जाते हैं जो हमें विभिन्न बीमारियों से बचाते हैं और शरीर को पोषण प्रदान करते हैं। आइये जाने इसके बेहतरीन गुण..पोषक तत्व- ड्रैगन फ्रूट में आमतौर पर विटामिन ए, विटामिन सी, आयरन, कैल्शियम, फाइबर और मैग्नीशियम जैसे पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। एक ड्रैगन फ्रूट में 60 कैलोरी, 2.9 ग्राम फाइबर और किसी भी तरह का हानिकारक फैट नहीं पाया जाता है। इसलिए यह वजन कम करने में सहायक है।इम्यून सिस्टम को बेहतर बनाए- इसमें पर्याप्त मात्रा में विटामिन सी होता है, जो इम्यून सिस्टम को बेहतर बनाता है और वजन घटाने में मदद करता है। यह विटामिन सी से भरपूर होता है और एजिंग की समस्या को कम करने के साथ ही स्किन को हेल्दी और जवान बनाने में मदद करता है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट और एंटी टॉक्सिक गुण पाया जाता है जो शरीर को बीमारियों से लडऩे मे मदद करता है।हृदय को स्वस्थ रखे- ड्रैगन फ्रूट एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर होता है जो कोलेस्ट्रॉल के ऑक्सीकरण को रोकने में मदद करता है और रक्त वाहिकाओं को डैमेज होने से बचाता है। इसके साथ ही हार्ट स्ट्रोक और उच्च कोलेस्ट्रॉल की समस्या से बचाता है।एजिंग के लक्षण घटाए- ड्रैगन फ्रूट फैटी एसिड और कोशिका झिल्ली को मुक्त कणों से बचाता है। इसके अलावा यह त्वचा के लचीलेपन को बनाए रखता है और झुर्रियों से बचाता है। ड्रैगन फ्रूट में पाया जाने वाले विटामिन्स डैमेज कोशिकाओं को रिपेयर करते हैं और त्वचा को बढ़ती उम्र के असर से बचाते हैं।डायबिटीज में लाभदायक- एक शोध के अनुसार लाल ड्रैगन फ्रूट में बीटा सायनिन मौजूद होता है जो पेट में अच्छे बैक्टीरिया को बढ़ाता है और मोटापे को घटाता है। सिर्फ इतना ही नहीं डायबिटीज को नियंत्रित करने में भी ड्रैगन फ्रूट बेहद फायदेमंद है। ड्रैगन फ्रूट में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट शरीर में कैंसर कोशिकाओं से लड़ता है और इसमें पाये जाने वाला विटामिन सी और लाइकोपिन ब्रेस्ट कैंसर से बचाने में सहायक होता है।---
- बाजार में बिकने वाले कई साबुन कीटाणुओं को मारने का दावा करते हैं तो कुछ हाथों को नरम बनाने का। दावा किया जाता है कि एंटीबैक्टीरियल साबुन आम साबुनों की तुलना में ज्यादा फायदेमंद होते हैं।आपने इन साबुनों के विज्ञापनों में सुना होगा कि आपका ये एंटी-बैक्टीरियल साबुन कीटाणुओं से छुटकारा दिलाने और आपको व आपके परिवार को सुरक्षित रखने के लिए अधिक प्रभावी है। दरअसल इन साबुनों में सबसे आम एंटीबैक्टीरियल घटक ट्राइक्लोसन इस्तेमाल किया जाता है, जबकि कुछ में अल्कोहल, बेंजालोनियम क्लोराइड और अन्य एंटीबैक्टीरियल एजेंट भी हो सकते हैं। इसके परिणामस्वरूप ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं है, जो कीटाणुओं और जीवाणुओं से दूर रहने के लिए एंटी-बैक्टीरियल साबुन और हैंडवाश को ढूंढते हैं और प्रयोग करते हैं।जब भी बात बीमार होने के खतरे, कीटाणुओं को फैलाने और संक्रमित होने के जोखिम को कम करने की आती है तो एंटी-बैक्टीरियल साबुन और हैंडवाश आपके लिए अच्छे विकल्प साबित हो सकते हैं। हालांकि ये सिर्फ एक धारणा हो सकती है। अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) के अनुसार, ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है कि ये एंटी-बैक्टीरियल साबुन नियमित या आम साबुन की तुलना में अधिक प्रभावी होते हैं। हां, आज तक या यूं कहें कि अभी तक कोई गहन अध्ययन या शोध नहीं हुआ है, जो इन एंटी-बैक्टीरियल साबुन के लाभ को साबित कर सकता हो और जो ये बताता हो कि यह साबुन कीटाणुओं और रोगाणुओं को दूर रखने में बेहतर काम करते हैं।एंटी-माइक्रोबायल साबुन की प्रभावशीलता के अलावा एफडीए इस बात को लेकर भी चिंतित है कि क्या इन साबुन में मौजूद रसायन और तत्व लंबे समय तक रोजाना उपयोग के लिए सही है या नहीं। इसके साथ ही जब तब साबुन बनाने वाले निर्माता ये साबित नहीं कर पाते हैं तब तक एफडीए इस पर कोई अंतिम नियम जारी नहीं करेगा कि एंटी-बैक्टीरियल साबुन पूर्ण रूप से सुरक्षित है।एंटी-बैक्टीरियल साबुन का उपयोग आपके मन को शांति प्रदान करता है लेकिन इसके प्रयोग का नियम अभी भी वही है यानी कि आपको गंदगी और कीटाणुओं से छुटकारा पाने के लिए कम से कम 30 सेकंड के लिए अपने हाथों को अच्छी तरह से धोना होगा। अगर साबुन और पानी आसानी से उपलब्ध नहीं हैं, तो आप अल्कोहल-बेस्ड हैंड सैनिटाइजऱ का उपयोग कर सकते हैं, जिसमें कम से कम 60 प्रतिशत तक अल्कोहल होता है।---
- नमकीन व्यंजन खाने के बाद अक्सर लोगों को सुबह ब्लोटिंग जैसे परेशानियां हो जाती है। ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि नमक शरीर के पानी को मार देता है, जिसके कारण अक्सर लोगों को ब्लोटिंग हो जाती है। इसलिए भी लोगों को बहुत अधिक नमक खाने की सलाह नहीं दी जाती है। वहीं यह आपके रक्तचाप पर भी बुरा प्रभाव डालता है। साथ ही हालिया अध्ययन की मानें, तो यह शरीर की प्रतिरक्षा यानी कि इम्यूनिटी के लिए भी बुरा है। दरअसल जर्मनी में एक अध्ययन में पाया गया है कि उच्च नमक वाला आहार न केवल एक व्यक्ति के रक्तचाप के लिए खराब हो सकता है, बल्कि प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए भी खराब है। आइए जानते हैं ज्यादा नमक खाने का इम्यून सिस्टम यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता पर क्या प्रभाव पड़ता है-नमक कैसे इम्यूनिटी घटाता है?जर्मनी में यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल बॉन के शोधकर्ताओं ने पाया कि एक उच्च नमक वाला आहार बहुत अधिक गंभीर जीवाणु संक्रमण से पीडि़त होता है। यहां तक कि एक दिन में 6 ग्राम नमक भी आपकी प्रतिरक्षा को नष्ट कर सकता है। साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, जो लोग एक दिन में 6 ग्राम से ज्यादा नमक का सेवन करते हैं उनकी इम्यूनिटी लगातार कमजोर होने लगती है। वहीं पांच ग्राम नमक का सेवन करना ही एक दिन में नमक की अधिकतम मात्रा है, जिसे वयस्कों को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की सिफारिशों के अनुसार सेवन करना चाहिए।शोधकर्ताओं ने कहा कि यह लगभग एक स्तर के चम्मच से मेल खाता है। सोडियम क्लोराइड, जो नमक का रासायनिक नाम है, रक्तचाप बढ़ाता है और जिससे दिल का दौरा या स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है। बॉन विश्वविद्यालय के शोधकर्ता क्रिश्चियन कुर्ते की मानें, तो हम अब पहली बार साबित करने में सक्षम हुए हैं कि अत्यधिक नमक का सेवन भी प्रतिरक्षा प्रणाली की एक महत्वपूर्ण शाखा को कमजोर करता है। शोधकर्ता कहते हैं कि आपके आहार में कम नमक भी आपको तेजी से ठीक करेगा, क्योंकि ये आपकी इम्यूनिटी को क्षति नहीं पहुंचाएगा।शरीर पर ज्यादा नमक खाने का असरखून में जब नमक की एकाग्रता बढ़ जाती है तो शरीर की कई जैविक प्रक्रिया काम नहीं करती हैं। भले ही सोडियम क्लोराइड का अतिरिक्त सेवन कुछ त्वचा रोगों के लिए काम करता है, लेकिन आमतौर पर शरीर के लिए ये सही नहीं है।उच्च नमक का सेवन पेट के कैंसर से जुड़ा हुआ हैपेट का कैंसर, जिसे गैस्ट्रिक कैंसर के रूप में भी जाना जाता है, कुछ आम कैंसरों में से भी एक है। यह दुनिया भर में कैंसर से होने वाली मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण है, और प्रत्येक वर्ष 7 लाख से अधिक मौतों के लिए जिम्मेदार है। कम नमक खाने वाले लोगों की तुलना में अधिक नमक के सेवन से पेट के कैंसर का खतरा 68 प्रतिशत अधिक होता है।बैक्टीरिया का विकासनमक का ज्यादा सेवन करना हेलिकोबैक्टर पाइलोरी के विकास को बढ़ा सकता है। वहीं शरीर में बैक्टीरिया से जुड़े सूजन और गैस्ट्रिक अल्सर को जन्म दे सकता है। इससे पेट के कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। वहीं इससे गट हेल्थ को खासा नुकसान पहुंचता है।पेट की परत को नुकसाननमक में उच्च आहार, पेट की परत को नुकसान पहुंचा सकता है और इसमें सूजन कर सकता है। इस प्रकार भी ये कार्सिनोजेन्स को उजागर कर सकता है। वहीं कई लोगों के शरीर में ज्यादा नमक खाने से सूजन हो जाता है क्योंकि ये टिशू को फैला कर मोटा कर देते हैं।
- मुल्लेन चाय एक प्रकार की हर्बल चाय है, जो कि मुल्लेन नाम के पौधे की पत्तियों से बनाई जाती है, जो विशेषकर यूरोप में पाई जाती है। इस पौधे को स्वर्णधान्य का पौधा भी कहा जाता है। वर्षों से, इस चाय का उपयोग पारंपरिक चिकित्सा में स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज के लिए किया जाता आ रहा है और इसके कई स्वास्थ्य लाभ भी हैं।इस हर्बल चाय का उपयोग पेट के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए भी किया जा सकता है। यह पाचन तंत्र को दुरुस्त करने में मदद करती है और पाचन संबंधी समस्याओं जैसे कब्ज, अपच, दस्त और आंत्र संबंधी समस्याओं से निजात पाने में आपकी मदद करती है।मुल्लेन में एंटी-बैक्टीरियल और एंटीवायरल गुण पाए जाते हैं और इतना ही नहीं ये अपने-आप में एंटीऑक्सिडेंट से समृद्ध भी होता है। स्वाद से भरी मुल्लेन हर्बल चाय का उपयोग कई बीमारियों का इलाज करने के लिए किया जाता है और इसमें बहुत अच्छी सुगंध के साथ -साथ स्वाद भी होता है।मुल्लेन चाय एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों के लिए जाना जाती है और ये आपके श्वसन पथ की मांसपेशियों को आराम देने में मदद करती है। इसके अलावा ये चाय अस्थमा के मरीजों को भी राहत प्रदान कर सकती है। इसका उपयोग अन्य श्वसन समस्याओं जैसे ब्रोंकाइटिस, टॉन्सिलिस, निमोनिया और अन्य समस्याओं के इलाज के लिए भी किया जाता है।माना जाता है कि मुल्लेन चाय में एंटीवायरल गुण भी होते हैं और शोधकर्ताओं के अनुसार, इसका उपयोग हल्के वायरल संक्रमण और इन्फ्लूएंजा वायरस से लडऩे के लिए किया जा सकता है।इस चाय में एंटी-बैक्टीरियल गुण भी होते हैं और ये बैक्टीरिया के विकास को कम कर सकते हैं। यही कारण है कि बैक्टीरियल संक्रमण के इलाज के लिए भी मुल्लेन चाय को एक बेहतरीन उपाय माना जाता है।इस चाय में ऐसे पदार्थ पाए जाते हैं, जो प्राकृतिक शामक की तरह काम करते हैं और आपके दिमाग और शरीर को आराम देने में मदद करते हैं। यह नींद से जुड़ी समस्याओं के इलाज में मदद कर सकते हैं और इससे राहत दिला सकते हैं।---
- यदि आप वजन कम करने के बारे में सोच रहे हैं, तो एक बार खीरे और पोदीने के सूप को ट्राइ कर सकते हैं। यह सूप, पोषक तत्वों का खजाना है। इसमें ज्यादातर पानी होता है और यह शरीर की कैलोरी भार को कम किए बिना शरीर को पोषण देता है।जूस पीने के एक नुकसान ये है कि आपको उसमें फाइबर नहीं मिलता लेकिन सूप पीने से आपको पोषक तत्वों के साथ फाइबर भी मिलता है। यह जब आपके शरीर में जाता है तो प्राकृतिक तरीके से आपके मेटाबॉलिज्म में सुधार होता है, जिससे आपका वजन आसानी से कम होता है। इसमें आप काली मिर्च और रेड चीली मिलाकर भी सेवन कर सकते हैं।ऐसे बनाए सूप- खीरे का ये सूप बनाना बहुत ही आसान है। सबसे पहले एक छोटा खीरा ले लीजिए, फिर एक छोटी कटोरी में दही, चार कली लहसुन की, और एक नीबू के साथ 8 से 10 पुदीने के पत्ते लें।इसे बनाने के लिए आप सबसे पहले जरूरत के अनुसार सभी सामग्री इक_ा कर लीजिए। इसके बाद बाद उन्हें मिक्सर में एक साथ मिक्स कर लीजिए और आखिर में नींबू का रस मिलाकर सेवन करें।खीरा को गर्मियों की औषधि कहा जाता है, जो आपकी कमर के लिए चमत्कार कर सकता है। खीरे में लगभग 98 प्रतिशत सिर्फ पानी होता है। यह एंटीऑक्सिडेंट, महत्वपूर्ण विटामिन और खनिजों से भरा हुआ है। खीरे सुपर फिलिंग होते हैं और फाइबर से भरपूर होते हैं जो तृत्पि करते हैं। यदि आपका पेट भरा रहेगा तो आपका मन बाकी की अस्वस्थ्य चीजों की तरफ नहीं जाएगा।वहीं दही प्रोटीन और कैल्शियम से युक्त होते हैं, दोनों ही वजन घटाने और वसा संश्लेषण के लिए आवश्यक हैं। दही में गुड बैक्टीरिया होते हैं, जिसके कारण आपकी आंते स्वस्थ रहती हैं।लहसुन एक तरह की तीखी जड़ी बूटी है जो शरीर के मेटाबॉलिज्म यानी चयापचय के लिए चमत्कार से कम नहीं है। शरीब का अच्छा मेटाबॉलिज्म कैलोरी के तेजी से बर्न करने में सक्षम बनाता है।नीबू का रस और पुदीने के पत्ते, दोनों ही गर्मी में शरीर के लिए अच्छे पोषक तत्व का काम करते हैं, यह आपके शरीर में अतिरिक्त ज़िंग को जोड़ते हैं, बल्कि चयापचय को भी बढ़ावा देते हैं। वे पाचन की सुविधा के लिए भी बहुत प्रभावी हैं।---
- प्राय: हर घर में मिलने वाली तुलसी कई बीमारियों के खतरे से दूर करने का काम करती है साथ ही इंसान को स्वस्थ भी रखती है। इसलिए प्राचीन काल से इसके पूजन की परंपरा है।आज जानें इसके बीजों के औषधीय गुण-तुलसी में ऐसे गुण पाए जाते हैं जो हमारे शरीर से सूजन को कम करते हैं और शरीर में मौजूद संक्रमण को खत्म करने का काम करते हैं। तुलसी के अलावा इसके बीज भी बहुत फायदेमंद है। तुलसी के बीज जिसे हम मंजरी कहते हैं, को आयुर्वेदिक उपचार में भी इस्तेमाल किया जाता है। इसमें प्रोटीन, फाइबर और लौह की उच्च मात्रा होती है। आमतौर पर तुलसी के बीज पाचन, वजन घटाने, खांसी और ठंड का इलाज, प्रतिरक्षा को बढ़ावा देने के अलावा और कई स्वास्थ्य फायदे देता हैं।पाचन तंत्र को सुधारता हैकई लोग अक्सर पेट संबंधित समस्याओं से परेशान रहते हैं। तुलसी के बीज पाचन तंत्र को सुधारता है। इसे पानी में डालने पर फूल जाता है और ऊपर एक जिलेटिन की परत बना लेता है। इसे पानी में डालकर पीने से पेट सही रहता है। इसमें मौजूद फाइबर आंतों की अच्छी तरह से सफाई करता है। यह कब्ज, एसिडिटी और अपच की समस्या को दूर करता है।वजन होता है कमतुलसी के बीज में कैलोरी कम मात्रा में होती है और यह भूख को कम करता है। इस प्रकार यह वजन घटाने में मदद कर सकता है। तुलसी के बीज में उच्च फाइबर सामग्री आपको लंबे समय तक भूख नहीं लगने देती। वजन कम करने के लिए आप इन्हें आहार में शामिल कर सकते हैं।सूजन को करता है कमतुलसी के बीज में एंटी इंफ्लामेट्री गुण पाए जाते हैं जो शरीर की सूजन को कम करते हैं। यह शरीर में सूजन पथों पर उनके अवरोधक प्रभाव के कारण दस्त से निपटने में भी मदद कर सकता है।इम्यूनिटी सिस्टम भी होती है मजबूततुलसी के बीज में मौजूद फ्लैवोनोइड्स और फेनोलिक शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को सुधारता है। तुलसी के बीज एंटी-ऑक्सीडेंट्स से समृद्ध होते हैं जो शरीर में मुक्त कणों के कारण होने वाली क्षति से सुरक्षा प्रदान करते हैं। फ्री रेडिकल्स यानी मुक्त कणों के डैमेज की वजह से उम्र से पहले बुढ़ापे आने लगता है। इसके साथ ही अगर आपको सर्दी-जुकाम है तो आप तुलसी के बीज का काढ़ा बना सकते हैं। आप चाय में भी तुलसी के बीजों को डालकर उनका सेवन कर सकते हैं।---
- आहार विशेषज्ञों का मानना है कि एक इंसान की रोजाना खुराक में 5 फीसदी से ज्यादा हिस्सा चीनी का नहीं होना चाहिए। इसका मतलब है महिलाओं के लिए 5-6 चम्मच और पुरुषों के लिए 7-8 चम्मच काफी है। आइये जाने की किस चीज में कितनी चीनी छिपी होती है?चीनी- चीनी दो प्रकार की होती है। एक जो प्राकृतिक रूप से खाने पीने की चीजों में पाई जाती है, जैसे फलों में फ्रक्टोज और दूध में लैक्टोज। दूसरी, जो अप्राकृतिक रूप से मिलाई जाती है। रोजाना हम जिस चीनी का इस्तेमाल करते हैं उसमें सुक्रोज मिला होता है।आईस टी-एक गिलास में 5 से 7 चम्मच चीनी होती है। यानी अगर आप एक गिलास आईस टी पी चुके हैं, तो अब आप दिन भर और कुछ भी मीठा नहीं ले सकते। आहार विशेषज्ञ मीठी आईस टी की जगह नमकीन नींबू पानी पीने की सलाह देते हैं।कोल्ड ड्रिंक-कोका कोला के एक कैन में 9 से 10 चम्मच चीनी मिली होती है। पानी के बाद कोक में सबसे बड़ी मात्रा चीनी की ही होती है। यकीन नहीं होता, तो उबाल कर देख लीजिए. पानी उड़ जाने के बाद चीनी बची मिलेगी।ब्रेड- क्या आप अंदाजा लगा सकते हैं कि ब्रेड के दो स्लाइस में कितनी चीनी मिली होती है? लगभग 10 चम्मच। जी हां, मैदे और चीनी से भरी हुई व्हाइट ब्रेड सेहत के लिए बिलकुल भी अच्छी नही मानी जाती है।केचप-बच्चों की मनपसंद टोमैटो केचप के हर चम्मच में कम से कम आधा चम्मच चीनी होती है। इसीलिए बच्चों को इससे दूर ही रखने की सलाह दी जाती है। सैंडविच और पकौडिय़ों के साथ केचप की जगह घर की बनी चटनी का इस्तेमाल करना ज्यादा फायदेमंद होता है।चॉकलेट-थोड़ी मात्रा में चॉकलेट सेहत के लिए अच्छी होती है लेकिन बाजार में अधिकतर चॉकलेट बार चीनी से लैस मिलती हैं। मिसाल के तौर पर एक स्निकर्स बार में लगभग 8 चम्मच चीनी होती है।कोल्ड कॉफी- घर पर ही बना रहे हैं, तब तो ठीक है लेकिन कैफे से खरीद रहे हैं, तो सावधान रहें। स्टारबक्स की फ्रैपुचीनो में 8 से 10 चम्मच चीनी होती है और अगर आप मैकडॉनल्ड्स वाले शेक के शौकीन हैं, तो ध्यान से पढ़ें क्योंकि एक ग्लास में 28 चम्मच चीनी होती है।आइसक्रीम- आजकल फ्रोजन योगर्ट का चलन चल पड़ा है। इन्हें आइसक्रीम से बेहतर बताया जाता है लेकिन कई बार दही को मीठा करने के लिए इनसे आइसक्रीम की तुलना में ज्यादा चीनी डाली जाती है। एक कप आइसक्रीम (100 ग्राम) में 5 चम्मच चीनी होती है।-----
- नई दिल्ली। कोविड-19 वैश्विक महामारी के प्रकोप से दुनिया भर में पूरी मानव जाति पीडि़त है। ऐसे में शरीर की प्राकृतिक प्रतिरक्षा प्रणाली (रोग प्रतिरोधक क्षमता) को बेहतर करना शरीर को निरोगी बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।जीवन का विज्ञान होने के नाते आयुर्वेद स्वस्थ एवं प्रसन्न रहने के लिए प्रकृति के उपहारों के इस्तेमाल पर जोर देता है। आयुष मंत्रालय श्वसन संबंधी स्वास्थ्य के विशेष संदर्भ के साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और निवारक स्वास्थ्य देखभाल के लिए निम्नलिखित दिशानिर्देशों की सिफारिश करता है।सामान्य उपाय1. पूरे दिन गर्म पानी पिएं।2. आयुष मंत्रालय की सलाह के अनुसार प्रतिदिन कम से कम 30 मिनट योगासन, प्राणायाम और ध्यान का अभ्यास करें।3. खाना पकाने में हल्दी, जीरा, धनिया और लहसुन जैसे मसालों के उपयोग की सलाह दी जाती है।रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए आयुर्वेदिक उपाय1. प्रतिदिन सुबह 1 चम्मच यानी 10 ग्राम च्यवनप्राश लें। मधुमेह रोगियों को शुगर फ्री च्यवनप्राश लेना चाहिए।2. तुलसी, दालचीनी, कालीमिर्च, सौंठ और मुनक्का से बना काढ़ा/ हर्बल टी दिन में एक या दो बार लें। यदि आवश्यक हो तो अपने स्वाद के अनुसार गुड़ या ताजा नींबू का रस मिलाएं।3. गोल्डन मिल्क- 150 मिली गर्म दूध में आधी चम्मच हल्दी पाउडर- दिन में एक या दो बार लें।सरल आयुर्वेदिक प्रक्रियाएं1. नाक का अनुप्रयोग - सुबह और शाम को नाक में तिल का तेल/ नारियल का तेल या घी लगायें।2. ऑयल पुलिंग थेरेपी- 1 चम्मच तिल या नारियल का तेल मुंह में लें। उसे पियें नहीं बल्कि 2 से 3 मिनट तक मुंह में घुमाएं और फिर थूक दें। उसके बाद गर्म पानी से कुल्ला करें। ऐसा दिन में एक या दो बार किया जा सकता है।सूखी खांसी/ गले में खराश के दौरान1. ताजे पुदीना के पत्तों या अजवाईन के साथ दिन में एक बार भाप लिया जा सकता है।2. खांसी या गले में जलन होने पर लवंग (लौंग) पाउडर को गुड़/ शहद के साथ मिलाकर दिन में 2 से 3 बार लिया जा सकता है।3. ये उपाय आमतौर पर सामान्य सूखी खांसी और गले में खराश का इलाज करते हैं। लेकिन लक्षण के बरकरार रहने पर डॉक्टर से परामर्श लेना सबसे अच्छा रहेगा।देश भर से प्रख्यात वैद्यों के नुस्खों के आधार पर इन उपायों की सिफारिश की गई है। उन वैद्यों में कोयम्बटूर के पद्मश्री वैद्य पीआर कृष्णकुमार, दिल्ली के पद्म भूषण वैद्य देवेंद्र त्रिगुणा, कोट्टाकल के वैद्य पीएम वारियर, नागपुर के वैद्य जयंत देवपुजारी, ठाणे के वैद्य विनय वेलंकर, बेलगांव के वैद्य बीएस प्रसाद, जामनगर के पद्म वैद्य गुरदीप सिंह, हरिद्वार के आचार्य बालकृष्णजी, जयपुर केवैद्य एमएस बघेल, हरदोई के वैद्य आरबी द्विवेदी, वाराणसी के वैद्य केएन द्विवेदी, वाराणसी के वैद्य राकेश, कोलकाता के वैद्य अबीचल चट्टोपाध्याय, दिल्ली कीवैद्य तनुजा नेसारी, जयपुर के वैद्य संजीव शर्माऔर जामनगर के वैद्य अनूप ठाकर शामिल हैं।(उपरोक्त सलाह कोविड-19 के इलाज के लिए दावा नहीं करती है।)
- छत्तीसगढ़ में मुनगा बहुतायक मात्रा में होता है। इसकी सब्जी शौक से खाई जाती है। इसकी पत्तियां भी कम पौष्टिक नहीं होती हैं। अब तो इसकी पत्तियों की दवा भी बाजार में उपलब्ध है।मुनगे को इसे कई नामों जैसे सहजन, सइहन, मोरिंगा, सूरजने की फली आदि। मुनगे के अलग-अलग हिस्सों में 300 से ज्यादा रोगों के रोकथाम के गुण हैं। इसमें 92 तरह के मल्टीविटामिन्स, 46 तरह के एंटी ऑक्सीडेंट गुण, 36 तरह के दर्द निवारक और 18 तरह के एमिनो एसिड मिलते हैं। इसकी फली के अचार और चटनी कई बीमारियों से मुक्ति दिलाने में सहायक होते हैं।मुनगे की पत्तियां कई बीमारियों के खतरे को दूर करने में फायदेमंद होती हंै।कैल्शियम और विटामिन से है भरपूरमुनगे की पत्तियों में कैल्शियम और विटामिन सी भरपूर मात्रा में होती है। 100 ग्राम मुनगा की पत्तियों में 5 ग्लास दूध के बराबर कैल्शियम होता है। इसके अलावा नींबू की तुलना में इसमें 5 गुना ज्यादा विटामिन सी पाया जाता है।मोटापा कम करने में करता है मददमोटापा और वजन कम करने में मुनगे की पत्तियां काफी फायदेमंद साबित हो सकती हैं। इसमें मौजूद एंटी-ओबेसिटी गुण मौजूद होते हैं, जिससे मोटापे या वजन की परेशानी से लडऩे में मदद मिल सकती है।डायबिटीज में है फायदेमंदमुनगे की पत्तियों में ऐसे गुण मौजूद होते हैं, जो डायबिटीज की समस्या के लिए गुणकारी साबित हो सकते हैं। ये शरीर में ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करने का काम करती है। पर इसका सेवन करने से पहले डॉक्टर से सलाह अवश्य ले लें।हड्डियों को रखता है हमेशा स्वस्थमुनगे की पत्तियां हड्डियों की देखभाल और उन्हें स्वस्थ रखने का काम करता है। इसे कैल्शियम, मैग्नीशियम और फास्फोरस का अच्छा स्रोत माना जाता है, जो हड्डियों के लिए जरूरी हैं। इसके साथ ही मुनगा ऑस्टियोपोरोसिस जैसी हड्डी की बीमारी के जोखिम को कम करने में मदद कर सकते हैं। फिलहाल, अभी इस पर और शोध की जरूरत है।कैल्शियम और विटामिन से है भरपूरमुनगा की पत्तियों में कैल्शियम और विटामिन सी भरपूर मात्रा में होती है। 100 ग्राम मुनगा की पत्तियों में 5 ग्लास दूध के बराबर कैल्शियम होता है। इसके अलावा नींबू की तुलना में इसमें 5 गुना ज्यादा विटामिन सी पाया जाता है। ब्लड को डिटॉक्सिफाई यानि खून की सफाई भी आसानी से कर सकता हैं। इसके लिए आप रोजाना सहजन की पत्तियों का रस पी सकते हैं। इससे शरीर में मौजूद हानिकारक पदार्थ यूरिन के रास्ते से बाहर निकल जाते हैं।पेट की समस्याओं को करता है दूरमुनगा या मुनगे की पत्तियों का सेवन करने से पेट से संबंधी समस्याओं दूर होती हैं। मुनगा का सेवन करने से पेट दर्द और अल्सर से बचाव किया जा सकता है। इसमें मौजूद गुण अल्सर के जोखिम से बचाव करने में हमारी मदद करते हैं।एनीमिया को करता है दूरमुनगा एनीमिया जैसी बीमारी को भी दूर करने में मदद करता है। मुनगे की पत्तियों का सेवन करने से एनीमिया यानी लाल रक्त कोशिकाओं की कमी से बचाव के लिए भी कर सकते हैं। मुनगे में एंटी-एनीमिया गुण मौजूद होते हैं और इसके सेवन से शरीर में मौजूद खून में हीमोग्लोबिन के स्तर में सुधार हो सकता है, जिससे लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन में मदद मिल सकती है।---
- नाशपाती एक लोकिप्रय फल है। नाशपाती सेब से जुड़ा एक उप-अम्लीय फल है। भारतवर्ष में पैदा होने वाले ठंडे जलवायु के फलों में नाशपाती का महत्व सेब से अधिक है। यह हर साल फल देती है। इसकी कुछ किस्में मैदानी जलवायु में भी पैदा की जाती है और उत्तम फलन देती हैं। नाशपाती के फल खाने में कुरकुरे, रसदार और स्वदिष्ट होते हैं। ये सेब की अपेक्षा सस्ती बिकती हैं। भारत में नाशपाती यूरोप और ईरान से आई और धीरे-धीरे इसकी काश्त बढ़ती गई। अनुमान किया जाता है कि अब हमारे देश में लगभग 4 हजार एकड़ में इसकी खेती होने लगी है। पंजाब को कुलू घाटी तथा कश्मीर में यूरोपीय किस्में पैदा की जाती हैं और इनके फलों की गणना संसार के उत्तम फलों में होती है।प्राकृतिक दृष्टि से नाशपाती कब्ज़दायक होती है परंतु वह बुखार को भगाने में बहुत सहायक है। नाशपाती में जो शर्करा होती है वह मधुमेह से ग्रस्त व्यक्तियों के लिए हानिकारक नहीं है। नाशपाती में जो छोटे-छोटे दाने होते हैं वे आंत को स्वच्छ करने का कारण बनते हैं। अगर नाशपाती पकी हो तो गर्म प्रकृति के लोगों का खाना उचित नहीं है, विशेषकर उन लोगों के लिए जिनका अमाशय कमज़ोर होता है। नाशपाती के पत्तों का सेवन मूत्रवर्धक होता है। उच्च रक्तचाप के उपचार के लिए कई दिन लगातार नाशपाती का सेवन करना चाहिये यहां तक कि रक्तचाप संतुलित हो जाए।आयुर्वेद के अनुसार नाशपाती शरीर के विषैले पदार्थों को बाहर निकाल देती है। सीने की बीमारियों के उपचार के लिए नाशपाती अच्छा फल है। नाशपाती के पत्तों का काढ़ा पीने से गुर्दे से पथरी निकल जाती है। इस फल को खाने से भोजन जल्द पचता है । नाशपाती विटामिन से मालामाल है और उसमें प्राकृतिक लवण, लोहा, कैल्शियम, फास्फोरस, मैग्निजियम, पोटैशियम पाया जाता है जिन लोगों का अमाशय कमज़ोर है उन्हें नाशपाती को छिलके के साथ खाने से बचना चाहिये। नाशपाती पूरी पकी होनी चाहिये अन्यथा बहुत देर से पचती है। भारत में इसकी जो प्रजातियां उगाई जाती हैं उनमें हैं- चाइना या साधारण नाशपाती, यूरोपीय नाशपाती और यूरोपीय और चाइना नाशपाती के संकर। आजकल इसकी एक प्रजातिं पियर नाम से छत्तीसगढ़ के बाजार में भी बिकने लगी हैं। यह स्वाद में रसीली और मीठी होती है, जो काफी पसंद की जा रही है।---
- मखाना या फॉक्स नट एक सुपरफूड माना जाता है, यह कई पोषक तत्वों से भरपूर होने के साथ-साथ शरीर के ब्लड शुगर लेवल को कम करने में मदद कर सकता है। मखाना में कैलोरी, बैड फैट्स और सोडियम बहुत कम होता है। क्योंकि मखाने में अच्छे काब्र्स, प्रोटीन, विटामिन बी 1, बी 2 और बी 3, फोलेट, कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटेशियम, फॉस्फोरस और जिंक होता है, जो आपके समग्र स्वास्थ्य के लिए बेहतर है।ब्लड शुगर को कम करता है मखानाडायबिटीज रोगियों को अक्सर लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाले खाद्य पदार्थों के सेवन की सलाह दी जाती है और मखाना में भी लो जीआई होता है। मखाना में चावल और रोटी या ब्रेड की तुलना में काफी कम जीआई होता है। इसके अलावा, मैग्नीशियम और कम सोडियम, इसे डायबिटीज रोगियों के लिए एक स्वस्थ स्नैक का विकल्प बनाती है।हाई ब्लड प्रेशर के रोगियों के लिए भी अच्छा विकल्प है। माना जाता है, कि मखाने के नियमित इस्तेमाल से इस गंभीर समस्या से काफी हद तक राहत पाई जा सकती है। कारण यह है, कि इसमें पाया जाने वाला एक विशेष एल्केलाइड हाइपरटेंशन की समस्या को नियंत्रित करने का काम करता है। हाइपरटेंशन के कारण ही हाई ब्लड प्रेशर की समस्या जन्म लेती है।यह एंटी-ऑक्सीडेंट से भी भरपूर होता है, जो शरीर को फ्री रेडिकल्स से लडऩे में मदद करता है। इसका सेवन मसूढ़ों को मजबूत करता है और किडनी को भी स्वस्थ रखता है।कब्ज में मखाना खाने के फायदेमखाने का उपयोग कब्ज की शिकायत को दूर करने में भी सहायक माना जाता है। मखाने में कई उपयोगी पौष्टिक तत्वों के साथ प्रचुर मात्रा में फाइबर पाया जाता है। विशेषज्ञों के मुताबिक, फाइबर कब्ज की शिकायत को दूर करने में सहायक साबित होता है।पालक मखाना या ग्लूटेन फ्री रोटी बनाकरयदि आप डायबिटीज रोगी हैं, तो आप मखाने को भूनकर, सूप या सलाद में मिलाकर खा सकते हैं। इसके अलावा, आप पीसकर सोयाबीन, बाजरा और ज्वार के आटे में मिलाकर ग्लूटेन फ्री रोटियां बनाकर खा सकते हैं। कुछ लोग पालक पनीर के बजाय पालक मखाना, मखाना रायता और मखाना चाट या टिक्की बनाकर हेल्दी डिशेज के रूप में भी खाते हैं।घी में भुना हुआ मखाना है बेस्टआप मखाने को अपनी डाइट में शामिल करने के लिए उसे घी में भूनकर भी खा सकते हैं। मखाने को डाइट में शामिल करने का यह सबसे आसान तरीका है। आप इसे घी में भूनकर इसमें स्वाद के लिए हल्का नमक या चाट मसाला डाल सकते हैं।---
- इन दिनों चिया सीड का नाम बहुत सुनने में आ रहा है। स्वास्थ्य जगत में चिया सीड पोषक तत्वों के शानदार स्रोत के रूप में उभर रहा है। कुछ लोग चिया सीड के पोषक तत्वों को देखते हुए इसे एक पौष्टिक आहार के रूप में अपना रहे हैं । इसे सुपर फूड नाम दिया गया है। इसमें कोई शक नहीं की यह एक अच्छा आहार साबित हो सकता है। इसमें ताकतवर एंटीऑक्सीडेंट्स , खनिज तथा कई विटामिन आदि पाए गए है। यह मिंट फैमिली की एक फूल वाली प्रजाति है जिसकी उत्पत्ति मेक्सिको और ग्वाटेमाला से हुई है। विदेशों में इसका उपयोग लंबे समय से होता आ रहा है।चिया सीड में प्रोटीन , फाइबर , कैल्शियम , मैग्नेशियम , फास्फोरस , प्रचुर मात्रा में होते है। इसके अलावा इसमें मैगनीज , जि़ंक , पोटेशियम , विटामिन बी1 , विटामिन बी 2 , विटामिन बी 3 भी पर्याप्त मात्रा में होते है । यह पचने में हल्का होता है तथा किसी भी प्रकार की डिश में इसका उपयोग किया जा सकता है। ओमेगा -3 फैटी एसिड ह्रदय रोग के लिए , अर्थराइटिस तथा कोलेस्ट्रॉल के लिए बहुत लाभदायक होता है। ओमेगा -3 फैटी एसिड होते है। अत: चिया सीड ह्रदय रोग से बचाव के लिए उपयोगी हो सकते है ।चिया सीड में भरपूर कैल्शियम होता है। हड्डियों तथा दांतों की मजबूती कैल्शियम पर ही टिकी होती है। इसके अतिरिक्त इसमें बोरोन नामक तत्व भी होता है जो हड्डियों के लिए आवश्यक होता है। बोरोन के कारण ही कैल्शियम , मैग्नेशियम , फास्फोरस आदि खनिज अवशोषित होकर मांसपेशियों तथा हड्डियों के उपयोग में आते है। इस प्रकार चिया सीड से हड्डियां , दांत और मांसपेशियों को ताकत मिलती है। चिया सीड अपने वजन का लगभग 10 गुना पानी सोख सकता है। पानी सोखने के बाद यह फूल जाता है। इसे खाने के बाद पेट भरा हुआ महसूस होता है। जल्दी भूख नहीं लगती। आप अधिक खाने से बच जाते है। इस तरह यह मोटापा और वजन कम करने में सहायक होता है। चिया सीड में बहुत से एंटीऑक्सीडेंट होते है जो हानिकारक फ्री रेडिकल्स से बचाते है। फ्री रेडिकल्स के कारण कैंसर जैसी बीमारी होने की संभावना होती है तथा इनका त्वचा पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके उपयोग से इन परेशानियों से बचाव हो सकता है।कुछ लोगों के शरीर में गर्मी के कारण या किसी और कारण से पानी की कमी जल्दी हो जाती है। खिलाडिय़ों को को तथा बच्चों को यह ज्यादा होता है। इस वजह से कब्ज आदि हो जाती है। चिया सीड से इस समस्या का समाधान हो सकता है। चिया सीड के पानी सोखने की अद्भुत शक्ति के कारण हाइड्रेशन बनाये रखने में इसका उपयोग किया जा सकता है। चिया सीड को अच्छे से पानी भिगोकर खाने से हाइड्रेशन बना रहता है। चिया सीड से रक्त में इन्सुलिन की मात्रा नियमित होती है। यह कार्बोहाइड्रेट को शक्कर में बदलने की गति कम कर देता है। इससे रक्त में अत्यधिक इन्सुलिन की मात्रा को कम कर देता है। इस प्रकार डायबिटीज में यह लाभदायक होता है।---
- गर्मियों के दौरान ताडग़ोला या आइस एप्पल को स्वास्थ्य के लिए लाभकारी फलों में से एक माना जाता है। ताड़ के पेड़ का मांसल और रसदार फल गर्मियों की तेज धूप और लू से बचने में मदद करता।यह कब्ज और एसिडिटी सहित पाचन मुद्दों से पीडि़त रोगियों के लिए एक प्रभावी प्राकृतिक उपचार है। वहीं पेट को साफ करके ये मोटापे को घटाने में मदद करता है। वहीं इसके कुछ गुण उन लोगों के लिए भी फायदेमंद हैं, जो अपने बढ़ते हुए वजन को लेकर हमेशा चिंतित रहते हैं।फैट कम करेसूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर ताडग़ोला में सोडियम और पोटेशियम जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों का अच्छा संतुलन होता है, जो शरीर में तरल पदार्थ और इलेक्ट्रोलाइट संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। जिन लोगों के शरीर में एक्सट्रा फैट होता है उनके लिए ये फैट को करने में ये काफी मददगार साबित हो जाता है। जो लोग सुबह-सुबह इसका सेवन कर लेते हैं उन्हें अच्छी मात्रा में दिन भर के लिए कैलोरी मिल जाती है, जो उनके बड़े भूख को रोकने में भी प्रभावी ढग़ से काम करता है। इस तरह ये डाइट बैलेंस करने में भी मदद करता है।ये गोला पानी से भरा हुआ होता है और रंग में सफेद है और बनावट में एक लीची जैसा दिखता है। इस फल को मराठी और हिंदी में ताडगोला कहा जाता है, तमिल और तेलुगु में ताती मुंजली और नुंगु को कहा जाता है। दोपहर या शाम को एकत्र किए गए गाड़ गोला में फर्मेंटेशन हो जाता है, जिससे ये स्वाद में खट्टा या कसैला होता है और फिर इसे कच्ची शराब के रूप में बेचा जाता है।उम्र बढऩे की गति को धीमा करता हैआइस एप्पल में कई मजबूत फाइटोकेमिकल्स पाए जाते हैं जिनमें एंटीऑक्सिडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं, जो उम्र बढऩे को धीमा करने में मदद करते हैं और कई प्रकार के बैक्टीरियल इंफेक्शन को रोकने में भी मदद करते हैं।कैसे बनाएं जूससबसे पहले ताड़ के फलों को अच्छी तरह से साफ करके पीस लें। फिर इसे मिलाते हुए फेंटें और गाढ़ा दूध डालें। इसके ऊपर कुछ साबुजा के बीज और कटे हुए बादाम डालें। ब्लेंडेड शेक में स्वाद के लिए आप इसमें ऊपर से चीनी या शुगर फ्री मिला कर भी ब्लेंड कर सकते हैं। अब इसे ठंडा कर सर्व करें।---
- मजीठ (RUNIA CARDIFOLIA) (मंजिष्ठा) भारत के पर्वतीय प्रदेशों में पाई जाती है।मजीठ के फूलों का रंग सफेद और फल का रंग काला होता है। मजीठ का रस मधुर (मीठा), तीखा और कषैला होता है। मजीठ बेल के पत्ते झाड़ीनुमा होते हैं, जिसकी जड़ें जमीन में दूर-दूर तक फैली होती हैं। इसकी टहनियां कई फुट लंबी, नर्म, खुरदरी और जड़ की तरफ कठोर होती हैं। टहनियों का आंतरिक रंग तोडऩे पर जड़ की तरह ही लाल ही लाल निकलता है। इसकी बेलें अक्सर दूसरे पेड़ों पर सहारा लेकर चढ़ जाती हैं। मजीठ की पत्तियां चारों तरफ लगती हैं, जिसकी 2 छोटी और 2 बड़ी पत्तियां होती हैं। इसके फूल गुच्छों में छोटे-छोटे होते हैं। इसके फल चने के आकार के होते हैं। मजीठ की जड़ लंबी होती है। वैज्ञानिकों के अनुसार मजीठ की रासायनिक संरचना का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि मजीठ की जड़ में राल, शर्करा, गोन्द, चूने के योग, और रंजक पदार्थ पाए जाते हैं। रंजक पदार्थों में मुख्य रूप से गेरेनसिन, पर्पुरिन, मंजिष्ठिन, अलाजरिन और जेन्थीन मिलते हैं।मजीठ की तासीर गर्म होती है। मजीठ भारी, कडुवी, विष, कफ और सूजननाशक होती है। यह पीलिया (कामला), प्रमेह, खून की खराबी (रक्तविकार), आंख और कान के रोग, कुष्ठ (कोढ़), खूनी दस्त (रक्तातिसार), पेशाब की रुकावट, वात रोग, सफेद दाग, मासिक-धर्म के दोष, चेहरे की झांई, त्वचा के रोग, पथरी, आग से जले घाव में अत्यन्त गुणकारी है।विभिन्न भाषाओं में नाम - हिन्दी, मजीठ, संस्कृत, मंजिष्ठा, मराठी, मंजिष्ठा, गुजराती, मजीठ, बंगाली, मंजिष्ठा, अंग्रेजी-मेडर रूट, लैटिन-रूबिआ कोर्डिफोलिया---
- स्वास्थ्य गुणों से भरपूर हल्दी का सेवन लोग कई समस्याओं में करते हैं। हल्दी का पानी के साथ सेवन काफी लाभदायक होता है। आइये जाने इसके 7 फायदे-1. एंटी-कैंसर गुणों से भरपूर- हल्दी में करक्यूमिन नामक केमिकल की मौजूदगी इसे एक ताकतवर एंटीऑक्सीडेंट बनाता है। जो कैंसर पैदा करने वाली कोशिकाओं से लड़ती है।2. पाचन दुरुस्त रखें- कई शोधों से यह बात साबित हुई है कि नियमित रूप से हल्दी का सेवन करने से पित्त ज्यादा बनता है, जिससे आपका आहार आसानी से हजम हो जाता है और आहार के अच्छे से हजम होने से आप पेट संबंधी बीमारियों से बचे रहते हैं।3. शरीर की सूजन कम करें- हल्दी में करक्यूमिन नामक केमिकल की मौजूदगी के कारण यह दवा के रूप में काम करता है और यह शरीर की सूजन कम करने में सहायक होता है। इसके अलावा करक्यूमिन के कारण यह जोड़ों के दर्द और सूजन को दूर करने में दवाइयों से भी ज्यादा अच्छी तरह से काम करता है4. दिमाग तेज करें- हल्दी दिमाग के लिए बहुत अच्छी होती है, अगर आप सुबह के समय गर्म पानी में हल्दी मिलाकर पीते हैं यह आपके दिमाग के लिए बहुत अच्छा रहता है। भूलने की बीमारी जैसे डिमेंशिया और अल्जाइमर को भी इसके नियमित सेवन से कम किया जा सकता है।5. दिल को दुरुस्त रखें- हल्दी वाला पानी दिल को दुरूस्त रखता है।6. लिवर की रक्षा करें- हल्दी का पानी टॉक्सिक चीजों से आपके लिवर की रक्षा करता है और खराब लिवर सेल्स को दोबारा ठीक करने में मदद करता है। इसके अलावा यह पित्ताशय के काम को ठीक करने में मदद करता है, जिससे आपके लिवर की रक्षा होती है।7. उम्र के असर को करें बेअसर- गर्म पानी में नींबू, हल्दी पाउडर और शहद मिलाकर पीने से यह शरीर के विषैले पदार्थ बाहर निकालने में बहुत मददगार होता है। इसके अलावा इसे नियमित रूप से पीने से फ्री रैडिकल्स से लडऩे में मदद मिलती है जिससे शरीर पर उम्र का असर कम और धीरे-धीरे पड़ता है।हल्दी वाला पानी बनाने का तरीका- 1/2 - नींबू, 1/4 - टी स्पून हल्दी, 1 गिलास - गर्म पानी, थोड़ी सी शहद।एक गिलास में आधा नींबू निचोड़ कर उसमें हल्दी और गर्म पानी मिलाकर अच्छे से मिला दें। फिर उसमें स्वादानुसार शहद मिलाकर पीएं।---
- बसंत के आगमन के साथ ही सेमल के पेड़ों पर लाल- लाल दहकते अंगारों की तरह बड़े-बड़े फूल आते हैं। ये न केवल देखने में खूबसूरत होते हैं, बल्कि इसका कई बीमारियों के उपचार में भी उपयोग किया जाता है।सेमल या कॉटन ट्री एक औषधीय पेड़ है, जिसकी छाल, जड़ और फूल कई बीमारियों को दूर करने में सहायक है। सेमल को सिल्क कॉटन ट्री और शाल्मली भी कहा जाता है। इसके अलावा इससे रूई भी प्राप्त होती है, जिसका इस्तेमाल तकिया या गद्दे बनाने में किया जाता है।सेमल के स्वास्थ्य के लिए कई फायदे हैं-1.दस्त - सेमल के पत्तों और डंठल का काढ़ा बनाकर पीने से राहत मिलती हैं। .2. मुंह के घालों और घाव भरने में सेमल के तने से निकलने वाला गोंद या जिसे मोचरत कहते हैं, के चूर्ण का सेवन फायदेमंद होता है।3. खूनी बवासीर में सेमल के फूल, मिश्री, खसखस को बराबर मात्रा में दूध में मिलाकर और उसे गर्म किया जाता है। फिर इसे ठंडा कर पीने से राहत मिलती है।4. ल्यूकोरिया या व्हाइट डिसचार्ज में भी सेमल फायेदमंद है।5. सेमल एक ऐसा औषधीय पेड़ है, जो खांसी से लेकर पित्त की पथरी में भी फायदेमंद है।----