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  नए ट्राई नियमों से ब्लॉक हो सकते हैं OTP और जरूरी मैसेज

 नई दिल्ली। टेलीकॉम कंपनियों ने भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (TRAI) के नए निर्देश को लेकर अपनी चिंता जताई है, जिससे जरूरी ट्रांजेक्शनल और सर्विस मैसेज की डिलीवरी में बाधा आ सकती है। इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, यह नियम 1 नवंबर से लागू होगा, जिसके तहत बैंकों, ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों और वित्तीय संस्थानों जैसे प्रमुख संस्थानों (PEs) द्वारा भेजे गए मैसेज की ट्रेसबिलिटी अनिवार्य होगी।
अगस्त में ट्राई ने टेलीकॉम कंपनियों को निर्देश दिया कि बैंकों और अन्य संस्थानों द्वारा भेजे गए मैसेज का ट्रैक रखना जरूरी है। अगर मैसेज भेजने की प्रक्रिया में शामिल टेलीमार्केटर्स की पूरी चेन ठीक से तय नहीं है या सही क्रम में नहीं है, तो ऐसे मैसेज को रोक दिया जाएगा। इसका मतलब है कि यदि मैसेज भेजने वाली चेन स्पष्ट नहीं है, तो वह मैसेज ग्राहकों तक नहीं पहुंचेगा और ब्लॉक कर दिया जाएगा।
टेलीकॉम कंपनियों ने चेतावनी दी है कि नए नियमों के चलते वन-टाइम पासवर्ड (OTP) और अन्य जरूरी मैसेज ग्राहकों तक नहीं पहुंच सकते। इसकी वजह यह है कि कई टेलीमार्केटर्स और प्रमुख संस्थान (PEs) अभी तक इन नियमों का पालन करने के लिए जरूरी तकनीकी बदलाव नहीं कर पाए हैं।
टेलीकॉम कंपनियों का कहना है कि अगर टेलीमार्केटर्स और PEs नए निर्देशों का पालन नहीं करते हैं, तो OTP जैसे महत्वपूर्ण मैसेज डिलीवर नहीं हो पाएंगे।उद्योग के आंकड़ों के अनुसार, भारत में रोजाना करीब 1.5-1.7 अरब कमर्शियल मैसेज भेजे जाते हैं। अगर इन नियमों के कारण मैसेज ब्लॉक या डिले होते हैं, तो इसका व्यापक प्रभाव हो सकता है।
 नियमों के लिए समय सीमा बढ़ाने की मांग
टेलीकॉम कंपनियों ने रेगुलेटर को जानकारी दी है कि उनके सिस्टम 1 नवंबर से लागू होने वाले नए नियमों का पालन करने के लिए तैयार हैं, लेकिन कई टेलीमार्केटर्स और प्रमुख संस्थानों (PEs) को जरूरी तकनीकी अपडेट्स के लिए और समय चाहिए। इसके चलते PEs ने अपनी तैयारियों को अंतिम रूप देने के लिए दो महीने की समय सीमा बढ़ाने का अनुरोध किया है।
टेलीकॉम कंपनियां चरणबद्ध तरीके से नियमों को लागू करने का प्रस्ताव दे रही हैं, जिसमें 1 नवंबर से ‘लॉगर मोड’ में इन नियमों को लागू करने की बात कही गई है। इसका मतलब है कि अगर किसी मैसेज में हैश मिसमैच या रजिस्ट्रेशन की समस्या होती है, तो उस मैसेज को ब्लॉक नहीं किया जाएगा, ताकि कम से कम बाधा हो और इस दौरान सुधारात्मक कदम उठाए जा सकें। टेलीकॉम कंपनियों ने वादा किया है कि वे 1 दिसंबर तक ‘ब्लॉकिंग मोड’ में पूरी तरह से शिफ्ट हो जाएंगी।
टेलीकॉम कंपनियों ने दी जल्दी पालन की गारंटी
संभावित रुकावटों को कम करने के लिए, टेलीकॉम कंपनियों ने टेलीमार्केटर्स और PEs को प्रतिदिन रिपोर्ट भेजने का वादा किया है, जिसमें किसी भी समस्या का विवरण होगा ताकि तुरंत सुधारात्मक कार्रवाई की जा सके। इस दृष्टिकोण का उद्देश्य है कि इस बदलाव के दौरान मैसेजिंग ट्रैफिक पर न्यूनतम प्रभाव पड़े।यह दूसरी बार है जब टेलीकॉम सेक्टर ने TRAI के कमर्शियल मैसेज से जुड़े नियमों को पूरा करने के लिए समय सीमा बढ़ाने की मांग की है। इससे पहले, TRAI ने URLs, OTT लिंक और इसी तरह के कंटेंट वाले मैसेज व्हाइटलिस्ट करने की समय सीमा टेलीकॉम कंपनियों की मांग पर सितंबर से बढ़ाकर 1 अक्टूबर कर दी थी। तब से अधिकांश PEs और टेलीमार्केटर्स ने नियमों का पालन किया है, और सिस्टम सुचारू रूप से काम कर रहा है।
व्हाइटलिस्टिंग कैसे काम करती है?
व्हाइटलिस्टिंग सिस्टम के तहत, जो संस्थान कमर्शियल मैसेज भेजते हैं, उन्हें अपने मैसेज में उपयोग किए जाने वाले URLs, कॉलबैक नंबर और अन्य जरूरी जानकारी टेलीकॉम ऑपरेटर्स को देनी होती है। यह जानकारी ऑपरेटर्स के ब्लॉकचेन आधारित डिस्ट्रीब्यूटेड लेजर टेक्नोलॉजी (DLT) प्लेटफार्म में दर्ज की जाती है। अगर मैसेज की जानकारी ऑपरेटर्स के सिस्टम से मेल खाती है, तो ही वह मैसेज डिलीवर किया जाता है; अन्यथा, उसे ब्लॉक कर दिया जाता है।TRAI ने मैसेज हेडर और कंटेंट टेम्पलेट्स के गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए कई कदम उठाए हैं, ताकि टेलीकॉम सेक्टर को अधिक सुरक्षित और प्रभावी बनाया जा सके। रेगुलेटर ने मई 2023 में टेलीकॉम कंपनियों को व्हाइटलिस्टिंग सिस्टम लागू करने की सलाह दी थी। 1 अक्टूबर से TRAI ने टेलीकॉम कंपनियों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि मैसेज टेम्पलेट्स में केवल व्हाइटलिस्ट किए गए URLs, APKs, OTT लिंक और कॉलबैक नंबर ही शामिल हों। इसके साथ ही टेलीकॉम कंपनियों को 45 दिनों के भीतर अनुपालन रिपोर्ट जमा करने के निर्देश दिए गए हैं।

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