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- केप केनावेरल (अमेरिका). अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के मंगल ग्रह पर भेजे गए रोवर ‘पर्सिवरेंस' ने एक सूखी नदी की धारा में चट्टानें खोज निकाली हैं जिनमें प्राचीन सूक्ष्म जीवन के संभावित संकेत हो सकते हैं। वैज्ञानिकों ने बुधवार को यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले ‘पर्सिवरेंस' द्वारा वहां एकत्र किए गए नमूनों का पृथ्वी की प्रयोगशालाओं में गहन विश्लेषण जरूरी है। वर्ष 2021 से मंगल ग्रह पर घूम रहा यह रोवर सीधे तौर पर जीवन का पता नहीं लगा सकता। इसके बजाय, यह चट्टानों और नलियों में छेद करने के लिए एक ड्रिल लेकर चलता है ताकि अरबों साल पहले जीवन के लिए सबसे उपयुक्त माने गए स्थानों से एकत्र किए गए नमूनों को रखा जा सके। नमूनों को पृथ्वी पर वापस लाने की प्रतीक्षा है। यह एक महत्वाकांक्षी योजना है, जो नासा द्वारा सस्ते, त्वरित विकल्पों की तलाश के कारण रोक दी गई है। दो वैज्ञानिकों एसईटीआई संस्थान के जेनिस बिशप और मैसाचुसेट्स एमहर्स्ट विश्वविद्यालय के मारियो पेरेंटे ने इसे एक "रोमांचक खोज" बताते हुए कहा कि इसके लिए गैर-जैविक प्रक्रियाएं जिम्मेदार हो सकती हैं। स्टोनी ब्रुक विश्वविद्यालय के प्रमुख शोधकर्ता जोएल ह्यूरोविट्ज़ ने कहा, "यही कारण है कि हम यह नहीं कह सकते कि यह जीवन का सकारात्मक प्रमाण है।"
- गुवाहाटी. आईआईटी-गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने कैंसर पैदा करने वाले जल प्रदूषकों का तुरंत पता लगाने के लिए दूध प्रोटीन और थाइमिन से नैनोसेंसर विकसित किया है। संस्थान ने सोमवार को यह जानकारी दी। कार्बन डॉट्स और पराबैंगनी प्रकाश का उपयोग करके, यह सेंसर 10 सेकंड से भी कम समय में पारे और हानिकारक एंटीबायोटिक संदूषणों का पता लगा सकता है। संस्थान ने एक बयान में कहा कि तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण, औद्योगिक गतिविधियों और दवाओं के अत्यधिक उपयोग के कारण जल संदूषण एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है, जिससे दुनिया भर में पारिस्थितिकी तंत्र और मानव स्वास्थ्य को खतरा हो रहा है।टेट्रासाइक्लिन एंटीबायोटिक दवाओं का एक वर्ग है, जिसका उपयोग आमतौर पर निमोनिया और श्वसन संक्रमण के लिए किया जाता है। यदि इसका उचित निपटान नहीं किया जाता है, तो यह आसानी से पर्यावरण में प्रवेश कर सकता है और पानी को दूषित कर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप एंटीबायोटिक प्रतिरोध और अन्य स्वास्थ्य संबंधी खतरे हो सकते हैं। इसी प्रकार, पारा, अपने कार्बनिक रूप में, कैंसर, तंत्रिका संबंधी विकार, हृदय रोग और अन्य जानलेवा बीमारियों का कारण बन सकता है। जल गुणवत्ता और जन स्वास्थ्य, दोनों की रक्षा के लिए इन प्रदूषकों का सटीक और शीघ्रता से पता लगाना आवश्यक है। इस चुनौती का समाधान करने के लिए, आईआईटी-गुवाहाटी की शोध टीम ने नैनोसेंसर बनाया है, जो एक मीटर के कुछ अरबवें हिस्से के आकार के अत्यंत सूक्ष्म पदार्थों से बना एक सेंसर है।यह सेंसर कार्बन डॉट्स का उपयोग करता है, जो पराबैंगनी प्रकाश में चमकते हैं। इसमें कहा गया है कि पारा या टेट्रासाइक्लिन जैसे हानिकारक पदार्थों की उपस्थिति में, इन कार्बन डॉट्स की चमक मंद हो जाती है, जिससे संदूषण का त्वरित और स्पष्ट संकेत मिलता है। आईआईटी-गुवाहाटी ने कहा कि इसकी बहुमुखी उपयोगिता सुनिश्चित करने के लिए, शोधकर्ताओं ने सेंसर का परीक्षण विभिन्न वातावरणों- जैसे नल और नदी के पानी, दूध, मूत्र और सीरम के नमूनों में किया है। यह शोध प्रयोगशाला स्तर पर है और निष्कर्षों का आगे सत्यापन किया जाना बाकी है।
- मंगल ग्रह हमेशा अपने रहस्यों से वैज्ञानिकों को हैरान करता रहता है. इस बार भी ऐसा ही हुआ है. नासा के क्यूरियोसिटी रोवर को मंगल ग्रह पर डायनासोर के अंडे वाले निशान मिले हैं. दरअसल, ये निशान वहां की चट्टानों पर हैं. चट्टानें डायनासोर के अंडे जैसी दिखती हैं. क्यूरियोसिटी रोवर की इस खोज ने वैज्ञानिकों की जिज्ञासा बढ़ा दी है.यह खोज माउंट शार्प की ढलानों पर गेडिज वैलिस रिज के ‘द बॉक्सवर्क्स’ (The Boxworks) नामक इलाके में हुई है. मंगल की इन चट्टानों में नसों जैसी दरारें और लकीरें हैं, जो इस ग्रह की अतीत की याद दिलाती है, जब यहां पर कभी नदियां और झीलें बहती थीं. इनकी परतदार संरचना और उभरी हुई आकृतियां यह संकेत देती हैं कि यहां कभी नमी थी, जो धीरे-धीरे सूख गई.वैज्ञानिक कैसे कर रहे हैं इसकी जांच?दरअसल, क्यूरियोसिटी रोवर ने अपने हाईटेक उपकरणों के साथ मंगल की सतह की गहन जांच कर रहा है. Mastcam से इलाके की तस्वीरें ली जा रही हैं. वहीं, केमकैम (ChemCam) चट्टानों की रासायनिक संरचना का विश्लेषण कर रहा है. इसके अलावा सतह की सूक्ष्म बनावट को कैद करने के लिए MAHLI और APXS जैसे उपकरणों का इस्तेमाल किया जा रहा रहा है.खास बात यह है कि वैज्ञानिक इन बक्सेनुमा चट्टानों की तुलना पृथ्वी पर हाइड्रोथर्मल प्रक्रियाओं से कर रहे हैं, जहां गर्म पानी और खनिजों की गतिविधि से अनोखी संरचनाएं बनती हैं. इससे मंगल ग्रह के प्राचीन इतिहास का पता चलता है.इस मिशन का अगला चरण क्या होगा?नासा का क्यूरियोसिटी रोवर फिलहाल यहीं रुकेगा और नसों और दरारों का विश्लेषण करेगा. इसके बाद यह कुकेनान की तरफ बढ़ेगा, जहां और ज्यादा परतदार चट्टानें दिखाई दे सकते हैं. क्यूरियोसिटी रोवर का हर कदम वैज्ञानिकों की इस तस्वीर को और पुख्ता करता है कि प्राचीन मंगल ग्रह का विकास कैसे हुआ. रोवर की यह खोज अतीत में जीवन की संभावना के बारे में नए सवालों को जन्म देती हैं. क्या इन चट्टानों को आकार देने वाले तरल पदार्थों ने कभी सूक्ष्मजीवों का पोषण किया होगा? फिलहाल जवाब पत्थर में ही कैद है.
- सोशल मीडिया के दौर में आए दिन कुछ न कुछ नया ट्रेंड आता रहता है। वर्तमान समय की बात करें तो आज-कल माचा टी के बारे में आपने अवश्य सुना होगा। इंस्टाग्राम, यू-ट्यूब, फेसबुक समेत हर एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इसका क्रेज दिख रहा है। सिलेब्स भी इसे पीना काफी पसंद करते हैं। जापान की ये चाय भारत में भी लोगों को काफी पसंद आ रही है, क्योंकि ये काफी हेल्दी होती है, और सेहत को दुरुस्त करने में भी मददगार रहती है। इस चाय में तमाम एंटीऑक्सीडेंट्स पाए जाते हैं, जो सेहत और त्वचा दोनों के लिए फायदेमंद हैं। इसी के चलते हम आपको यहां तीन प्रकार से माचा टी बनाने की रेसिपी बताएंगे, ताकि आप घर पर आसान विधि से इसे तैयार कर पाएं।क्लासिक माचा टीइसे बनाने के लिए आपको 1/2 छोटा चम्मच माचा पाउडर और 60-100 ml गर्म पानी की जरूरत पड़ेगी।विधिक्लासिक माचा टी बनाना काफी आसान है। इसके लिए सबसे पहले माचा पाउडर को कप या कटोरी में छान लें ताकि गांठें न रहें। इसके बाद इसमें थोड़ा-थोड़ा गर्म पानी एड करें। अब इसे चम्मच की मदद से W के आकार में फेंटे। ऐसे फेंटने से इसमें झाग बन जाएगा। जब झाग बन जाए तो ये तैयार है, अब आप इसे पी सकते हैं।माचा लाटेमाचा लाटे बनाने के लिए आपको 1/2 छोटा चम्मच माचा पाउडर, 30 ml गर्म पानी, 150 ml गर्म दूध और स्वादानुसार शहद या मेपल सिरप की जरूरत पड़ेगी।विधियदि आपको दूध वाली माचा टी पसंद है तो इसके लिए पहले थोड़े से माचा पाउडर को गर्म पानी में घोलें और अच्छी तरह फेंटें। इसके बाद गर्म दूध को फेंटकर उसमें झाग बना लें। अब एक कप में पहले माचा टी डालें और फिर उसके बाद दूध डालें। इसके बाद इसके ऊपर दूध का झाग भी डाल दें। सबसे आखिर में इसमें थोड़ा माचा पाउडर छिड़क दें।आइस्ड माचा टीइसे बनाने के लिए आपको 1/2 छोटा चम्मच माचा पाउडर, 60 ml गुनगुना पानी, 1 कप ठंडा पानी या दूध, बर्फ के टुकड़े और शहद की जरूरत पड़ेगी।विधिइसे बनाना भी काफी आसान है। इसके लिए आपको सबसे पहले तो माचा पाउडर को गुनगुने पानी में घोल लें। यानि कि सबसे क्लासिक माचा टी बना लें। इसके बाद एक गिलास में बर्फ डालें, फिर क्लासिक माचा टी डालें। सभी चीजों को मिक्स करें और फिर ठंडा ही परोसें।
- घर की बालकनी में कुछ पौधे जो जरूर लगाने चाहिए उनमे से एक है करी पत्ता यानी मीठी नीम। करी पत्ते का इस्तेमाल वैसे तो सांभर, चटनी में तड़के के लिए किया जाता है। लेकिन इसे खाने के काफी सारे फायदे भी हैं। अगर रोजाना करी पत्ता के कुछ पत्तों को चबाया जाए तो ये डाइजेशन को सही करने से लेकर मेटाबॉलिज्म को बूस्ट करने और लिवर को डिटॉक्स करने का काम भी करते हैं। इसलिए काफी सारे लोग घर में करी पत्ते का पौधा लगाते हैं। लेकिन कई बार ये पौधा घना नहीं होता और इसमे पत्तियां बहुत कम निकलती है। अगर आपके साथ ही ये दिक्कत रहती है तो जान लें करी पत्ते के पौधे को घना बनाने की बिल्कुल आसान सी ट्रिक।करी पत्ते के पौधे को घना और पत्तेदार बनाने की ट्रिककरी पत्ते को लंबा ना होने देंकरी पत्ते का पौधा अगर आपका लंबा हो रहा है तो सबसे पहले तो उसके तने को बीच से काट दें। इससे तने के छोर से दो भाग हो जाएंगे और नई पत्तियों का कनखा वहां से फूटेगा। इसके अलावा पौधे के जिस तने पर तीन टहनियां निकल रही हों, उसे भी काट दें। इससे करी पत्ते में और ज्यादा टहनियां निकलना शुरू हो जाएंगी।ऑर्गेनिक खाद है जरूरीक्योंकि आप करी पत्ते को खाने में इस्तेमाल करते हैं तो इसलिए हमेशा ऑर्गेनिक खाद का ही इस्तेमाल करें। गाय के गोबर को सड़ाकर करी पत्ते की मिट्टी में डालें। इससे पौधे को पर्याप्त पोषण मिलेगा और पौधा बढ़ेगा।बारिश में डाले छाछबारिश का मौसम चल रहा है तो इस वक्त पौधे को बचाने के लिए गमले की मिट्टी में छाछ डालें। इससे करी पत्ते का पौधा खराब नहीं होगा और आसानी से बढ़ेगा।करी पत्ते की मिट्टी कैसी होकरी पत्ते को गमले में लगा रहे हैं तो छोटे पौधे लें। जिसकी जड़े लंबी रहती है। अब गमले में मिट्टी तैयार करें। इसके लिए आधा मिट्टी और आधा गाय का गोबर लें। इसको मिक्स कर उसमे छोटे करी पत्ते के पौधे को लगाएं। अगले साल इसे फिर से दूसरे गमले में शिफ्ट करें। ऐसा करने से करी पत्ते का पौधा कभी खराब नहीं होगा और ढेर सारी पत्तियां देगा।धूप है जरूरीकरी पत्ते का पौधा इनडोर प्लांट्स नहीं है। इसलिए कभी भी इसे छाया वाली जगह पर ना रखें। हमेशा जिस जगह पर धूप आती है वहीं पर करी पत्ते का पौधा रखें।पानी ना जमने देंबारिश के मौसम में ज्यादा बारिश से अगर गमले में पानी जम गया है तो फौरन इसे बाहर कर दें। अपने पौधे में पानी की निकासी की व्यवस्था जरूर रखें। जिससे पौधा बारिश में ज्यादा पानी पीकर ना मर जाए।
- हिंदू परिवार हों या मंदिर, रोज सुबह पूजा करने से पहले और बाद में शंख बजाने की परंपरा सनातन धर्म में सदियों पुरानी है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रोजाना सुबह उठकर शंख बजाने से घर से नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं और लाइफ में पॉजिटिविटी बनी रहती है। अगर अब तक शंख का उपयोग आपके लिए भी सिर्फ इतना ही रहा है तो आपको बता दें, शंख ना सिर्फ आपके धर्म बल्कि सेहत की भी रक्षा करता है। जी हां, आयुर्वेद के अनुसार, शंख बजाने का सिर्फ धार्मिक महत्व ही नहीं है बल्कि इसे रोज बजाने से सांस से जुड़ी कई बड़ी समस्याओं के साथ पाइल्स, त्वचा रोग, कमजोर फेफड़े और तनाव जैसी समस्याओं से भी राहत मिल सकती है। इतना ही नहीं अगर आपका पार्टनर रात को आपके खर्राटों की वजह से सो नहीं पाता तो ये अच्छी नींद और खर्राटों की समस्या को भी दूर करने में शंख मदद कर सकता है।रोजाना शंख बजाने के 5 बड़े फायदेखर्राटों की समस्या में राहतआयुर्वेद के अनुसार रोजाना शंख बजाने से सेहत को फायदा मिलता है। अगर व्यक्ति रोज कुछ देर शंख बजाए तो खर्राटों की समस्या यानी स्लीप एप्निया से राहत मिल सकती है। दरअसल, शंख बजाने से गले की मसल्स मजबूत होती हैं। जिससे नींद की क्वालिटी में सुधार होता है। बता दें, स्लीप एप्निया नींद से जुड़ा एक रोग है, जिससे पीड़ित व्यक्ति की सांसें सोते समय बार-बार रुक जाती हैं। ऐसा गले की मांसपेशियां बहुत ज्यादा ढीली होने की वजह से बंद हुई सांस की नली की वजह से होता है। जिसकी वजह से शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती हैपाइल्स की समस्याशंख बजाने से गुदा और प्रोस्टेट पर दवाब पड़ता है। जिससे गुदा की मांसपेशियां मजबूत होने के साथ पाइल्स जैसी समस्या में आराम पहुंचा सकती है। नियमित रूप से शंख बजाने से पुरुषों में प्रोस्टेट से जुड़ी बीमारियां नहीं होती हैं।अंगों का व्यायामशंख बजाना मूत्र मार्ग, मूत्राशय, निचले पेट, डायाफ्राम, छाती और गर्दन की मांसपेशियों के लिए काफी कारगर साबित होता है। शंख बजाने से इन अंगों का व्यायाम हो जाता है। बता दें, बार-बार सांस भरकर छोडने से फेंफड़े भी स्वस्थ्य रहते हैं। बता दें, शंख बजाने से योग की तीन क्रियाएं एक साथ होती है – कुम्भक, रेचक, प्राणायाम।तनाव दूर होता हैशंख बजाने से तनाव दूर करने में मदद मिलती है। ऐसे में जो लोग पहले से ही बहुत ज्यादा तनाव में रहते हैं उन्हें शंख जरूर बजाना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि शंख बजाते समय घर से ही नहीं दिमाग से भी सारी नेगेटिविटी निकल जाती है और व्यक्ति खुद को हल्का महसूस करने लगता है।सांस फूलने की समस्याविशेषज्ञों के अनुसार, एक महीने तक रोजाना शंख बजाने से श्वसन प्रणाली पर सकारात्मक असर पड़ने लगता है। यह अभ्यास उन लोगों के लिए खासतौर पर फायदेमंद है, जो सांस फूलने की समस्या से परेशान रहते हैं। नियमित अभ्यास से श्वास लेने की क्षमता में सुधार होता है, जिससे थायरॉयड ग्रंथियों का भी व्यायाम हो जाता है। जिन व्यक्तियों को बोलने से जुड़ी कोई समस्या (जैसे हकलाना), है तो उन्हें भी शंख बजाने से फायदा मिल सकता है।
- उत्तर प्रदेश भारत का चौथा सबसे बड़ा राज्य है, जो कि अपनी विविध संस्कृति और अनूठी परंपराओं के लिए जाना जाता है। भारत का यह राज्य कुल 240,928 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, जो कि पूरे भारत का करीब 7.33 फीसदी हिस्सा है। प्रदेश में कुल 75 जिले हैं, जो कि 18 मंडलों में आते हैं। इनमें से एक जिला मेरठ जिला है, जो कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश का जिला है। हालांकि, क्या आप जानते हैं कि यह मेरठ नाम कहां से आया है और क्या है इसके पीछे का इतिहास ।सन् 1950 में यहाँ से 23 मील उत्तर-पूर्व में स्थित एक स्थल विदुर का टीला की पुरातात्विक खुदाई से ज्ञात हुआ, कि यह शहर प्राचीन नगर हस्तिनापुर का अवशेष है, जो महाभारत काल मे कौरव राज्य की राजधानी थी। यह बहुत पहले गंगा नदी की बाढ़ में बह गयी थी।क्या रामायण काल से है संबंधमेरठ का नाम संभवतः मयराष्ट्र से विकसित है अर्थात मय का प्रदेश। मय हिन्दु पौराणिक मान्यताओं के अनुसार असुरों का राजा था। उसकी पुत्री मंदोदरी रावण की पत्नी थी जो किं रामायण महाकाव्य में राम के विरोधी के रुप में था। महाभारत काल में कौरवों की राजधानी हस्तिनापुर थी जो किं वर्तमान में मेरठ जिले के अंतर्गत आता है। ऐसा कहा जाता है कि मायासुर ने यहां एक महल बनवाया, जिसे मयराष्ट्र कहा जाता था। बाद में यह बदलकर मैरथ हुआ और कुछ समय बाद इसे मीराठ कहा जाने लगा। अंत में यह मेरठ हो गया।क्या महाभारत काल से है संबंधजिले के नाम के लेकर एक और मान्यता है। मान्यता के मुताबिक, महाकाव्य महाभारत के मुताबिक, यहां पांडवों की मां कुंती ने एक कुआं खुदवाया था। इस कुएं का नाम मीरा-ए-कूप हुआ। कुछ इतिहासकार बताते हैं कि इसका नाम बाद में मीराठ हुआ था, जिसे लोगों ने बोलते हुए बदलकर मेरठ कर दिया।जैन धर्म से बताया जाता है संबंधकुछ पुराने लेखों पर गौर करें, तो इसका संबंध जैन धर्म से भी जुड़ा हुआ बताया जाता है। ऐसा माना जाता है कि प्राचीन समय में यहां जैन मंदिर था, जो कि मेरू नाम के पर्वत पर हुआ करता था। इस वजह से इसका नाम मेरू-पुर पड़ा। हालांकि, बाद में इसका नाम बदलकर मेरठ हो गया।प्राचीन अभिलेखों में क्या है जिक्रइतिहास उठाकर देखें, तो हमें विभिन्न अभिलेखों में मेरठ का जिक्र मिलता है। एक शिलालेख में अशोका का मेरठ का स्तंभ भी लिखा गया है। वहीं, चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने 7वीं शताब्दी में इस क्षेत्र का दौरा किया और इसे माये-लू-चा नाम दिया।
- नई दिल्ली। सांपों की रहस्यमय दुनिया... जिसके बारे में आप जितना जानेंगे, उतनी ही दिलचस्पी बढ़ती चली जाएगी। जहरीले सांप, बिना जहर वाले सांप, शर्मीले सांप और हवा में उछलकर वार करने वाले सांप। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि सांपों की दुनिया में भी इनका एक बादशाह होता है, जो न सिर्फ जहरीला होता है, बल्कि दिमाग से बहुत तेज भी होता है। ये इतना दिमागदार है कि कई लोगों की भीड़ में भी अपने हैंडलर, यानी उस आदमी को पहचान सकता है, जो उसकी देखभाल करता है।सांपों की इस बुद्धिमान प्रजाति का नाम है किंग कोबरा। दुनिया के सबसे जहरीले सांपों में से एक किंग कोबरा को अपनी कुछ खास बातों के लिए बाकी सांपों से कहीं ज्यादा दिमागदार माना जाता है। इनके अंदर घोंसला बनाने की एक अनोखी कला होती है। शिकार करने के इनके तरीकों के बारे में जानकर वैज्ञानिक तक हैरान रह जाते हैं।घोंसला बनाने वाले एकमात्र सांपबात अगर मादा किंग कोबरा की करें, तो मादा अपने अंडे देने के लिए घोंसला बनाती है। इसमें वह पत्तियों, टहनियों और दूसरी सामग्रियों को इकट्ठा करती है। ये एकमात्र ऐसे सांप हैं जो घोंसला बनाते हैं और यही कला उनकी बुद्धिमानी का सबूत है। लंबाई में कभी-कभी 18 फीट तक मिलने वाले किंग कोबरा लगभग 20 साल तक जीते हैं।जितना शर्मीला उतना ही खतरनाक भीकिंग कोबरा भले ही शर्मीला और एकांतप्रिय सांप हो, लेकिन यह बेहद खतरनाक भी है। इसका जहर एक न्यूरोटॉक्सिन है, जो इंसान के केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर असर करता है। यह जहर असहनीय दर्द, लकवा और यहां तक कि कोमा का कारण भी बन सकता है। अगर पीड़ित को सही समय पर विशेष रूप से बनाए गए दो प्रकार के एंटीवेनिन में से एक न दिया जाए, तो इसके काटने से मौत हो सकती है।कैसे इलाकों में रहते हैं किंग कोबराकिंग कोबरा मुख्य तौर पर भारत, चीन, इंडोनेशिया, मलय प्रायद्वीप और फिलीपींस जैसे इलाकों में पाया जाता है। झील और नदियों जैसे पानी के स्रोतों वाले इलाके और ऊंचे जंगलों में रहना इन्हें पसंद है। इसका निचला हिस्सा पीला या क्रीम रंग का होता है और अक्सर इसमें गहरे रंग की धारियां होती हैं, जो ऊपरी हिस्से की पीली धारियों को दिखाती हैं।बड़ा सिर और मजबूत जहरीले दांतकिंग कोबरा का सिर बड़ा होता है और इसमें मुंह के आगे की ओर मजबूत जहरीले दांत होते हैं। इनके मुंह खोलने पर ये दांत साफ दिखाई देते हैं। किंग कोबरा की सबसे खास पहचान इसके सिर के चारों ओर का फन है, जो गर्दन में लंबी सर्वाइकल पसलियों से बना होता है और ढीली त्वचा को फैलाता है।
- झारखंड के साहिबगंज जिले में स्थित उधवा झील में पहली बार दुर्लभ स्पॉट बिल्ड पेलिकन पक्षी देखा गया है। यह दुर्लभ पक्षी वन विभाग के अधिकारियों को उस वक्त नजर आया, जब वे झील का जायजा ले रहे थे। हजारीबाग के पक्षी विशेषज्ञ सत्य प्रकाश के मुताबिक, यह पक्षी विलुप्त होने के कगार पर है और भारत में गुजरात, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में देखा जाता है। सत्य प्रकाश ने इसपर कहा कि उधवा झील दुर्लभ पक्षियों के लिए एक उपयुक्त प्राकृतिक वास बनता जा रहा है। ऐसा पहली बार है, जब उधवा झील में स्पॉट बिल्ड पेलिकन को देखा गया है। इससे पहले यह पक्षी झारखंड में सिर्फ जादूगोड़ा, सिंहभूम में कुछ साल पहले देखा गया था। स्पॉट बिल्ड पेलिकन बत्तख की प्रजाति का है और इसकी चोंच के नीचे एक थैली होती है, जिसकी मदद से यह मछली और दूसरा भोजन खाता है। पेलिकन की गिनती बड़े पक्षियों में होती है। इनकी लंबाई 125 से 150 सेमी (लगभग 49-59 इंच) और पंखों का फैलाव 2.5 मीटर (8.2 फीट) तक होता है। वजन में ये 4 से 6 किलोग्राम तक पाए जाते हैं। इनके पंख ज्यादातर सफेद होते हैं और सिर पर भूरे-काले रंग का मुकुट जैसा बना होता है। साथ ही माथे पर एक अलग पीले रंग का निशान भी होता है। स्पॉट बिल्ड पेलिकन एक मांसाहारी पक्षी है, जो मछली, क्रस्टेशियंस और छोटे जलीय जानवरों को खाता है। मछली पकड़ने के लिए यह अपनी थैलीनुमा चोंच का इस्तेमाल करता है। पेलिकन की चोंच के नीचे बनी थैली में लगभग 11 लीटर (3.4 गैलन) तक पानी समा सकता है।इनकी रफ्तार भी बेहद तेज होती है। ये पक्षी 50 किमी प्रति घंटा तक की गति से उड़ान भर सकता है।चोंच पर चित्तीदार निशानएशिया के दलदली इलाकों में पाया जाने वाला यह पक्षी अपनी चोंच पर चित्तीदार निशानों के लिए जाना जाता है। हालांकि, पेलिकन विलुप्त होने के कगार पर खड़े हैं। आईयूसीएन रेड लिस्ट में इसे ‘निकट संकटग्रस्त’ के तौर पर रखा गया है। लगातार घटते आवास, शिकार और प्रदूषण से इनकी संख्या घट रही है। ऐसे में इस पक्षी को बचाने के लिए बड़े स्तर पर प्रयासों की जरूरत है।दलदल में रहना पसंदभारत और श्रीलंका से लेकर दक्षिण पूर्व एशिया, कंबोडिया, लाओस, थाईलैंड और वियतनाम में मिलने वाला यह पक्षी नदियों, झीलों और दलदलों में रहना पसंद करता है। इस पक्षी के मांस, पंखों और चोंच के लिए इसका शिकार किया जाता है। साथ ही प्रदूषण और कीटनाशकों के इस्तेमाल से भी इसके भोजन की समस्या खड़ी होती है।
- नई दिल्ली। भारत ने गुरुवार को दो महत्वपूर्ण मिसाइलों का सफल परीक्षण किया। रक्षा मंत्रालय के अनुसार, भारत ने पृथ्वी-II और अग्नि-I शॉर्ट रेंज बैलिस्टिक मिसाइलों के परीक्षण किए हैं, दोनों ही मिसाइलों के टेस्ट फायर पूरी तरह सफल रहे। ये परीक्षण ओडिशा के चांदीपुर स्थित इंटीग्रेटेड टेस्ट रेंज (आईटीआर) से किए गए। दोनों मिसाइल परीक्षण स्ट्रैटेजिक फोर्सेज कमांड (एसएफसी) के तत्वावधान में किए गए। परीक्षण के दौरान भारतीय मिसाइलों ने सभी संचालनात्मक और तकनीकी मानकों को सफलतापूर्वक प्रमाणित किया है।दोनों मिसाइल देश की सामरिक क्षमता को सुदृढ़ करती हैं और न्यूनतम प्रतिरोधक नीति के तहत भारत की सुरक्षा संरचना का अहम हिस्सा हैं।24 घंटे में यह दूसरा महत्वपूर्ण सफल परीक्षण है। इससे पहले बुधवार को भारत ने अपने एयर डिफेंस सिस्टम को बेहतर करने के मिशन में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की थी। बुधवार को भारतीय सेना ने लद्दाख सेक्टर में करीब 15 हजार फीट की ऊंचाई पर ‘आकाश प्राइम’ एयर डिफेंस सिस्टम का सफल परीक्षण किया था।यह एयर डिफेंस सिस्टम भारत ने स्वदेशी रूप से विकसित किया है।‘आकाश प्राइम’ एयर डिफेंस सिस्टम का सफल परीक्षण थल सेना की एयर डिफेंस विंग के वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी में हुआ। इस दौरान रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद रहे। डीआरडीओ ने ही यह एयर डिफेंस सिस्टम विकसित किया है।रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक, एयर डिफेंस सिस्टम का परीक्षण करते समय सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों ने तेज गति से उड़ रहे दो लक्ष्यों पर सटीक वार किए। यह परीक्षण अत्यधिक ऊंचाई और विरल वायुमंडल वाले क्षेत्र में किया गया, जहां सामान्य संचालन भी कठिन होता है। आकाश प्राइम सिस्टम को भारतीय सेना की तीसरी और चौथी ‘आकाश रेजिमेंट’ में शामिल किया जाएगा। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान भारत की एयर डिफेंस प्रणाली ने पाकिस्तानी सेना के चीनी लड़ाकू विमानों और तुर्की ड्रोन से किए गए हवाई हमलों को नाकाम करने में अहम भूमिका निभाई थी।
- मानसून में कपड़े सूखाना बड़ी झंझट बन जाता है. इस मौसम में धूप तो कम निकलती ही है. साथ ही हवा में नमी भी बढ़ जाती है, जिससे कपड़ों में सीलन जैसी महक आती है और वो सीले-सीले से रहते हैं. ऐसे में कपड़ें पहनना तक मुश्किल हो जाता है. कई लोग घर के अंदर रस्सी बांधकर कपड़ों को सुखाते हैं. लेकिन इसके बावजूद भी कपड़ों गीले के गीले ही पड़े रहते हैं.ये समस्या बहुत आम है. हर भारतीय घर में आपको कमरे के अंदर कपड़ें सूखते मिल जाएंगे. इस वजह से तो कई बार लोग अपने मनपसंद कपड़े भी नहीं पहन पाते. अगर आप भी मानसून में कपड़ें सूखाने से परेशान हैं तो ये आर्टिकल आपके लिए ही है. यहां हम आपको कुछ ऐसे ईजी और स्मार्ट ट्रिक्स बताने जा रहे हैं, जिनकी मदद से आप मानसून में बिना धूप के भी कपड़ों को सूखा सकेंगे.पंखे के नीचे सुखाएंअगर आपके कपड़े धूप न निकलने की वजह से हल्के से गीले और नम रह गए हैं तो उन्हें सुखाने के लिए सीलिंग या टैबल फैन का इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके लिए आपको अपने कपड़ों को सीलिंग फैन के नीचे बिछा देना है. अगर टैबल फैन का इस्तेमाल कर रहे हैं, कपड़ों को रस्सी या किसी दीवार पर भी टांग सकते हैं.हीटर का करें इस्तेमालवैसे तो हीटर का इस्तेमाल सर्दियों में ज्यादा किया जाता है. लेकिन आप गर्मियों में इसका यूज कपड़ों को सुखाने के लिए कर सकते हैं. इसके लिए आप अपने हीटर को एक रूम में लगा दें और उस कमरें में हल्के गीले कपड़ों को डाल दें. हीटर से निकलने वाली गर्मी को कपड़ों को अच्छे से सुखा देगी. साथ ही कपड़ों में से आने वाली बदबू भी दूर हो जाएगी.हेयर ड्राई भी है कारगरअब तक तो आपने हेयर ड्रायर का इस्तेमाल सिर्फ अपने बालों को सुखाने के लिए होगा . लेकिन मानसून में इसका यूज कपड़े सुखाने के लिए भी कर सकते हैं. इसके लिए अपने हल्के गील कपड़े को लें और उसे किसी हैंगर में टांग दें. फिर फुल स्पीड में ड्रायर को चलाकर कपड़ों को सुखा सकते हैं. हेयर ड्रायर का फायदे ये है कि इसे आप कपड़ें के उन सभी हिस्सों पर लगा सकते हैं जहां पर वो गीले रह गए हैं.कपड़ों पर करें आयरनमानसून में आप कपड़ों पर प्रेस करके भी उन्हें सुखा सकते हैं. जहां-जहां कपड़े गीले रह गए हैं वहां, प्रेस को कुछ सेकेंड के लिए रखें और फिर हटा लें. प्रेस की गर्माहट कपड़ों से सारी नमी सोख लेती है और कपड़े ड्राई हो जाते हैं. लेकिन ध्यान रहे कि ये ट्रिक्स सिर्फ हल्के गीले कपड़ों पर ही काम करेंगी. इसलिए कपड़ो को धोकर तुरंत उन्हें इस ट्रिक्स से न सुखाएं.
- बारिश का मौसम जहां एक ओर खुशनुमा माहौल होता है, वहीं दूसरी ओर यह कई छोटी-मोटी परेशानियां भी साथ लाता है। इनमें से एक आम समस्या है- बारिश में भीगने के कारण ऑफिस या कॉलेज बैग से आने वाली अजीब सी बदबू। कपड़े, किताबें या अन्य सामान के गीला होने और नमी के कारण बैग के अंदर फफूंद या बैक्टीरिया पनपने लगते हैं, जिसकी वजह से इसमें से असहनीय बदबू आने लगती है। यह आपको असहज महसूस कराने के साथ-साथ आपके आत्मविश्वास को भी कम कर सकती है। अगर आपका पसंदीदा ऑफिस या कॉलेज बैग भी बारिश की वजह से बदबू मारने लगा है और आप इस गंध से जल्द से जल्द छुटकारा पाना चाहती हैं, तो चिंता बिल्कुल न करें। आपको महंगे क्लीनर खरीदने या बैग को लॉन्ड्री में देने की जरूरत नहीं पड़ेगी। हम आपको कुछ ऐसे आसान और घरेलू उपाय बताएंगे, जिन्हें आप अपने घर में मौजूद चीजों का इस्तेमाल करके बिना कोई खर्च किए मिनटों में अपना सकती हैं। ये देसी जुगाड़ आपके बैग को बदबू-मुक्त करेंगे और उसे फिर से ताजा और इस्तेमाल के लायक बना देंगे। तो चलिए बिना देर किए इन टिप्स के बारे में जान लेते हैं।बारिश में भीगे ऑफिस बैग से बदबू हटाने के आसान और मुफ्त तरीकेबारिश में बैग का गीला होना और उससे आने वाली बदबू एक आम समस्या है। लेकिन, इसे ठीक करने के लिए आप अपने घर में मौजूद कुछ साधारण चीजों का इस्तेमाल कर सकती हैं।कॉफी पाउडर का इस्तेमालये दोनों ही चीजें गंध सोखने में अद्भुत काम करती हैं और अक्सर हर घर में आसानी से उपलब्ध होती हैं। एक छोटे सूती कपड़े या पुरानी मोजें में 1-2 चम्मच सूखा कॉफी पाउडर डालें और उसे अच्छी तरह बांध लें। इस पोटली को रात भर या कम से कम कुछ घंटों के लिए बैग के अंदर रख दें। कॉफी की तेज खुशबू और गंध सोखने की क्षमता बदबू को बेअसर कर देगी। कॉफी एक प्राकृतिक डीओडोराइजर है, जो बदबू पैदा करने वाले कणों को सोख लेते हैं।नींबू के छिलकों का जादूनींबू की ताजी और खट्टी खुशबू बैग से आने वाली बदबू को दूर कर सकती है। यह एक प्राकृतिक एंटीबैक्टीरियल एजेंट के रूप में भी काम करती है। इसके लिए कुछ ताजे नींबू के छिलके लें। इन्हें बैग के अंदर फैलाकर रख दें। बैग को कुछ घंटों या रात भर के लिए खुला छोड़ दें ताकि हवा का संचार हो सके। आप चाहें तो एक-दो नींबू के स्लाइस को भी बैग के अंदर रख सकती हैं, लेकिन ध्यान रहे कि वे ज़्यादा देर तक न रहें, वरना नमी बढ़ सकती है। नींबू के छिलकों में मौजूद सिट्रिक एसिड और प्राकृतिक तेल बदबू को बेअसर करते हैं और एक ताज़ी, साफ खुशबू छोड़ते हैं।धूप और हवा में सुखाएं ऑफिस बैगयह सबसे आसान और सबसे प्रभावी तरीका है, जिसमें आपका कोई खर्च नहीं होगा। सबसे पहले अपने बैग से सारा सामान बाहर निकाल दें। बैग को पूरी तरह से खोलकर उसकी सभी जिपर और पॉकेट खोल दें। बैग को सीधी धूप वाली जगह पर खुली हवा में रख दें। अगर संभव हो, तो उसे लटका दें, ताकि हवा आर-पार हो सके। उसे कम से कम कुछ घंटों तक धूप में रहने दें या जब तक वह पूरी तरह से सूख न जाए और बदबू गायब न हो जाए। दरअसल, सूरज की पराबैंगनी किरणें प्राकृतिक कीटाणुनाशक के रूप में काम करती हैं, जो बदबू पैदा करने वाले बैक्टीरिया और फफूंद को मारती हैं।
- नई दिल्ली। क्या आप बाजार में कभी सब्जी खरीदने गए हैं? अगर हां, तो महज 1000 रुपए झोला भर के सब्जियां खरीद लाए होंगे। इससे महंगी सब्जी शायद ही कोई खरीदता होगा। लेकिन, क्या आपने कभी 40,000 की कोई सब्जी खरीदी है? जी हां, सही सुना आपने शाही जायका और अनमोल खजाना, जिसकी कीमत सुनकर बड़े-बड़े अमीर भी सोच में पड़ जाएं, ऐसी है हिमालय की ऊंची-पहाड़ियों और बर्फ से ढके जंगलों में होने वाली गुच्छी मशरूम। इस स्वादिष्ट फफूंदी को दुनिया की सबसे महंगी मशरूम में गिना जाता है, जिसकी कीमत 40,000 रुपए प्रति किलोग्राम तक है। लेकिन, ये मशरूम इतनी महंगी क्यों है चलिए हम आपको बताते हैं। गुच्छी मशरूम किसी भी आम मशरूम की तरह उगाई नहीं जा सकती। यह सिर्फ जंगली इलाकों में प्राकृतिक रूप से उगती है। जो कि हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और नेपाल के पहाड़ी क्षेत्रों में यह विशेष रूप से पाई जाती है।इतना ही नहीं, ये मशरूम केवल सर्दियों या बसंत के मौसम में जब बर्फ पिघलने लगती है तब ही उगती है। इसे ढूंढना आसान नहीं होता। यह घने जंगलों में, पत्तों और मिट्टी के नीचे छिपी होती है, इसे खोजते समय लगता है कि आप किसी खजाने को ढूंढ रहे हैं। यही कारण है कि इसे ढूंढने के लिए स्थानीय ग्रामीण और पहाड़ी इलाकों के लोग हफ्तों तक जंगलों में घूमते हैं।शाही पकवानों की जानगुच्छी मशरूम सिर्फ अपनी दुर्लभता की वजह से नहीं, बल्कि अपने लाजवाब स्वाद के कारण भी खास है। इसका स्वाद मिट्टी की सौंधी खुशबू और हल्के अखरोट जैसे स्वाद का मिश्रण होता है। इसे शाही बिरयानी, पुलाव, करी और सूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा, इटालियन और फ्रेंच किचन में भी इसकी मांग बहुत ज्यादा है। मशहूर शेफ इसे पास्ता, रिसोट्टो और सॉस में मिलाकर इसके स्वाद को बढ़ाते हैं। यही कारण है कि दुनिया भर के होटलों और महंगे रेस्तरां में गुच्छी मशरूम की जबरदस्त मांग रहती है।जंगलों की गोद में छिपा अनमोल खजानाइनका सफर सिर्फ कठिन नहीं, बल्कि खतरनाक भी होता है। हिमालय के दुर्गम इलाकों में घंटों पैदल चलकर, ऊंची-नीची पहाड़ियों को पार कर, और घने जंगलों के बीच मशरूम की तलाश करनी पड़ती है। कई बार इस सफर में जंगली जानवरों जैसे भालू और तेंदुओं से भी सामना हो सकता है। गुच्छी मशरूम को सही समय पर खोज निकालना भी एक चुनौती है। अगर ज्यादा नमी हो जाए तो ये खराब हो जाती है, और अगर पर्याप्त नमी न मिले तो उगती ही नहीं। इसके अलावा, इस मशरूम को तोड़ने के बाद इसे सूरज की रोशनी में सूखाना पड़ता है, ताकि इसकी क्वालिटी बनी रहे।स्वाद के साथ सेहत के लिए है नं.1इतना ही नहीं, ये मशरूम अपने औषधीय गुण के लिए भी जानी जाती है। पुराने जमाने में इसे कई बीमारियों के इलाज के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है, जिससे इसकी कीमत और बढ़ती चली गई। इसके सात ही गुच्छी मशरूम सिर्फ खाने में स्वादिष्ट और महंगी ही नहीं, बल्कि यह हजारों ग्रामीणों के जीवन का भी सहारा है। हिमालयी क्षेत्रों के कई परिवार इसी मशरूम को इकट्ठा कर बाजार में बेचते हैं और इससे उनकी सालभर की आजीविका चलती है।ये है दुनिया कि सबसे महंगी मशरूम!हालांकि, जब हमने इस बात को लेकर रिसर्च किया तो सामने आया कि दुनिया के सबसे महंगे मशरूम के तौर पर जापान के मात्सुतेक मशरूम हैं। जिसकी कीमत $500 यानी 41,708 रुपए प्रति पाउंड है।
- लंदन। हमारी दुनिया कितनी विचित्र है, इसके बारे में आपको तभी पता चलेगा, जब आप अपने आसपास मौजूद जीव-जंतुओं को देखेंगे। सांप को ही ले लीजिए। आपने सांपों को लंबा, खतरनाक सूरत वाला, जहरीला ही पाया होगा, पर क्या आप जानते हैं कि दुनिया में एक ऐसा भी सांप है, जो इतना छोटा है कि उसे देखकर लोगों को गलतफहमी हो जाती है और लोग उसे केचुआ समझ लेते हैं। सबसे ज्यादा हैरानी की बात तो ये है कि ये सांप दुनिया का सबसे छोटा है और इनमें सिर्फ मादाएं होती हैं, ये बिना नर के बच्चे पैदा कर लेती हैं। जिस सांप की हम बात कर रहे हैं, इनका नाम है ब्राह्मिनी ब्लाइंड स्नेक। इसे भारत ही नहीं, दुनिया का सबसे छोटा सांप माना जाता है। सवाल ये उठता है कि अगर ये इतना छोटा है कि केचुए जैसा लगता है, तो फिर इसकी पहचान कैसे की जाती है? इसकी पहचान करने के लिए आपको इसके मुंह की तरफ देखना होगा। यह सांप भी अन्य सांपों की तरह जीभ निकालता है। यह जहरीले नहीं होते।क्यों खास होते हैं ये सांप?इन सांपों के पास आंखें नहीं होती हैं, बल्कि उनकी जगह पर बहुत छोटे काले बिंदु होते हैं जो उन्हें प्रकाश का अनुभव कराते हैं। इस प्रकार वे समझ जाते हैं कि वे मिट्टी के ऊपर हैं या नीचे। ये सांप छोटे कीड़े, चींटियां और दीमक खाते हैं। सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि अब तक जितने भी सांप मिले हैं, सब मादा हैं। वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि ये सांप केवल मादा होती हैं और ये दुनिया के इकलौते एकलिंग जीव हैं। ये पार्थिनोजेनेसिस नामक प्रक्रिया से बच्चे पैदा करती हैं। इसे वर्जिन बर्थ भी कहा जाता है।
- बारिश के मौसम में कपड़ों से बदबू आना काफी कॉमन प्रॉब्लम है। अगर भीगे कपड़ों से बदबू आने लगी तो इन्हें दूर करना मुश्किल हो जाता है क्योंकि कई बार फ्रेगरेंस वाले डिटर्जेंट और सोप से धोने के बाद भी वो अजीब सी स्मेल पूरी तरह से नहीं जाती है। जिसकी वजह से कपड़े पहनना भी मुश्किल हो जाता है। अगर बारिश में भीगे कपड़ों से बदबू आने लगती है तो ये छोटे और यूनिक उपाय से दूर हो जाएगी।ताजी हवा और धूप में सुखाएंकपड़ों में गीलापन और नमी है तो उन्हें सूखने के लिए धूप और ताजी हवा में डाल दें। इससे बिना धुले ही कपड़ों से आने वाली स्मेल दूर हो जाएगी।अल्कोहल और पानी का स्प्रेअल्कोहल का स्प्रे कपड़ों पर कर दिया तो लोग शराबी बोल देंगे। इसलिए वोदका को पानी में मिलाकर कपड़ों पर स्प्रे करें। तीन भाग वोदका को एक भाग पानी में मिलाएं और कपड़ों पर स्प्रे करें। इस स्प्रे से ना केवल बैक्टीरिया मरते है बल्कि सूखने के बाद सारी बदबू भी गायब हो जाती है।कपड़ों को फ्रीजर में डाल देंये आइडिया भी थोड़ा यूनिक है। भीगे कपड़ों से अगर बदबू आ रही है तो उसे फ्रीजर में डाल दें। किसी प्लास्टिक बैग में कपड़ों को डालकर फ्रीजर में रख दें। कुछ घंटे बाद बाहर निकालें। कम टेंपरेचर में कपड़ों से आने वाली स्मेल दूर हो जाती है।नींबू के रस में भिगोएंपानी में नींबू का रस डालकर उसमे कपड़ों को भिगो दें। इससे ना केवल कपड़ों के बैक्टीरिया खत्म हो जाएंगे बल्कि कपड़ों से बदबू की जगह फ्रेश स्मेल आने लगेगी।कॉफी ग्राउंड्स का इस्तेमाल करेंफिल्टर कॉफी के बचे हुए कॉफी ग्राउंड्स को कपड़ों की बदबू दूर करने के लिए इस्तेमाल करें। प्लास्टिक बैग में कॉफी ग्राउंड के साथ कपड़ों को डाल दें। सुबह बाहर निकालकर सुखा लें। सारी बदबू गायब हो जाएगी।बेकिंग सोडाबेकिंग सोडा का इस्तेमाल बदबू भगाने के लिए खूब किया जाता है। कपड़ों की बदबू हटाने के लिए पानी में बेकिंग सोडा को डालकर कपड़ों को भिगो दें। फिर सुखाएं तो कपड़ों से बदबू दूर हो जाएगी।
- 0 स्वीडन की यूनिवर्सिटी ऑफ काल्मर ने रिसर्च के बाद दी नई जानकारीस्टॉकहोम। स्वीडन की यूनिवर्सिटी ऑफ काल्मर में 14 रिसर्चर्स द्वारा की गई एक स्टडी में साबित हुआ है कि अगर व्यक्ति अपनी उम्र को ध्यान में रखते हुए वॉक करता है, तो इससे ना केवल बढ़ते वजन को कंट्रोल किया जा सकता है, बल्कि ये कई और लाइफस्टाइल संबंधी बीमारियों को काबू करने में भी असरदार है। पैदल चलने के फायदों के बारे में हम अक्सर सुनते रहते हैं। हेल्दी बॉडी और माइंड के लिए वॉक करना बेहद फायदेमंद माना जाता है। इसी कड़ी में हेल्थ एक्सपर्ट्स हर उम्र के व्यक्ति को रोज वॉक करने की सलाह देते हैं। वॉक एक ऐसा वर्कआउट है, जिसमें आपकी पूरी बॉडी एक्टिव रहती है और आपके शरीर का हर अंग तेजी से काम करता है। ऐसे में अगर आप नियमित रूप से पैदल चलते हैं, तो आपको किसी और एक्सरसाइज की भी अधिक जरूरत नहीं होती है। खैर, यह बात अधिकतर लोग जानते होंगे, लेकिन क्या आपको पता है कि किस उम्र के व्यक्ति को कितने कदम रोज चलना चाहिए? अगर नहीं, तो इस लेख में हम आपको इसी के बारे में बताने जा रहे हैं।वजन होता है कंट्रोलस्वीडन की यूनिवर्सिटी ऑफ काल्मर में 14 रिसर्चर्स द्वारा की गई एक स्टडी में साबित हुआ है कि अगर व्यक्ति अपनी उम्र को ध्यान में रखते हुए वॉक करता है, तो इससे ना केवल बढ़ते वजन को कंट्रोल किया जा सकता है, बल्कि ये कई और लाइफस्टाइल संबंधी बीमारियों को काबू करने में भी असरदार है। इससे हार्ट डिजीज, डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर जैसी कई गंभीर बीमारियों पर आसानी से कंट्रोल पाया जा सकता है। इसी रिसर्च के आधार पर आइए जानते हैं कि उम्र के हिसाब से एक व्यक्ति को कितने कदम रोज चलना चाहिए।उम्र के अनुसार हो वाकिंगरिसर्च के मुताबिक, 6 से 17 साल के बच्चे जितना चलते हैं, उतना ही उनके लिए ये फायदा करता है। इस उम्र के लड़कों को एक दिन में कम से कम 15,000 स्टेप्स जरूर लेने चाहिए। जबकि, लड़कियां 12,000 कदम चलें तो अच्छा रहेगा। 18 से 40 साल के पुरुष और महिलाओं दोनों को एक दिन में 12,000 कदम चलना चाहिए। 40 के पार पहुंचने पर स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं अधिक देखने को मिलती है, साथ ही इस उम्र में बेवजह वजन बढ़ने का चांस भी अधिक रहता है, ऐसे में हेल्थ एक्सपर्ट्स इस उम्रे में एक दिन में 11,000 कदम जरूर चलने की सलाह देते हैं। 50 की उम्र के लोगों को प्रतिदिन 10,000 कदमों का अभ्यास जरूर करना चाहिए। 60 साल के लोगों स्वस्थ रहने के लिए हर रोज दिन में 8,000 कदम तो चलना ही चाहिए। हालांकि, ध्यान रहे कि चलने का मतलब सुस्ती के साथ चलना नहीं, बल्कि जोश और तेजी से पैरों को बढ़ाना है। वहीं, 60 से अधिक उम्र के लोगों को ज्यादातर चलने-फिरने में परेशानी का सामना करना पड़ता है, ऐसे में एक्सपर्ट्स उन्हें तब तक वॉक करने की सलाह देते हैं, जब तक वे थकान महसूस नहीं करते।चार्ट से समझें-उम्र लिंग कदम6 से 17 साल पुरुष कम से कम 15,000 कदम6 से 17 साल महिला कम से कम 12,000 कदम18 से 40 साल पुरुष कम से कम 12,000 कदम18 से 40 साल महिला कम से कम 12,000 कदम40 के पार पुरुष कम से कम 11,000 कदम40 के पार महिला कम से कम 11,000 कदम50 साल पुरुष कम से कम 10,000 कदम50 साल महिला कम से कम 10,000 कदम60 साल पुरुष कम से कम 8,000 कदम60 साल महिला कम से कम 8,000 कदम-रिसर्च के मुताबिक पैदल चलने के फायदेगौरतलब है कि केवल पैदल चलने से व्यक्ति कई गंभीर बीमारियों से खुद की हिफाजत कर सकता है। हर रोज वॉक करने से स्ट्रेस लेवल में गिरावट आती है। अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के मुताबिक, रनिंग करने या तेजी के साथ कदम बढ़ाने से दिल में ब्लड सर्कुलेशन बढ़ाता है, जिससे बैड कोलेस्ट्रॉल का खतरा कम हो जाता है। साथ ही ब्लड प्रेशर भी स्थिर रहता है। वॉक करना फेफड़ों के लिए भी फायदेमंद है। इससे ऑक्सीजन का शरीर में ज्यादा बहाव होता है। रोजाना वॉक करने से शरीर की अतिरिक्त चर्बी घटाती है और मसल्स टोन फिट रहते हैं।इन सब के अलावा रोजाना वॉक हड्डियां को मजबूत कर जोड़ों में दर्द, सूजन और अकड़न से भी राहत दिलाने का काम करती है।किस उम्र के व्यक्ति को कितने कदम रोज चलना चाहिए?- स्वीडन की यूनिवर्सिटी ऑफ काल्मर ने रिसर्च के बाद दी नई जानकारीस्टॉकहोम। स्वीडन की यूनिवर्सिटी ऑफ काल्मर में 14 रिसर्चर्स द्वारा की गई एक स्टडी में साबित हुआ है कि अगर व्यक्ति अपनी उम्र को ध्यान में रखते हुए वॉक करता है, तो इससे ना केवल बढ़ते वजन को कंट्रोल किया जा सकता है, बल्कि ये कई और लाइफस्टाइल संबंधी बीमारियों को काबू करने में भी असरदार है। पैदल चलने के फायदों के बारे में हम अक्सर सुनते रहते हैं। हेल्दी बॉडी और माइंड के लिए वॉक करना बेहद फायदेमंद माना जाता है। इसी कड़ी में हेल्थ एक्सपर्ट्स हर उम्र के व्यक्ति को रोज वॉक करने की सलाह देते हैं। वॉक एक ऐसा वर्कआउट है, जिसमें आपकी पूरी बॉडी एक्टिव रहती है और आपके शरीर का हर अंग तेजी से काम करता है। ऐसे में अगर आप नियमित रूप से पैदल चलते हैं, तो आपको किसी और एक्सरसाइज की भी अधिक जरूरत नहीं होती है। खैर, यह बात अधिकतर लोग जानते होंगे, लेकिन क्या आपको पता है कि किस उम्र के व्यक्ति को कितने कदम रोज चलना चाहिए? अगर नहीं, तो इस लेख में हम आपको इसी के बारे में बताने जा रहे हैं।वजन होता है कंट्रोलस्वीडन की यूनिवर्सिटी ऑफ काल्मर में 14 रिसर्चर्स द्वारा की गई एक स्टडी में साबित हुआ है कि अगर व्यक्ति अपनी उम्र को ध्यान में रखते हुए वॉक करता है, तो इससे ना केवल बढ़ते वजन को कंट्रोल किया जा सकता है, बल्कि ये कई और लाइफस्टाइल संबंधी बीमारियों को काबू करने में भी असरदार है। इससे हार्ट डिजीज, डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर जैसी कई गंभीर बीमारियों पर आसानी से कंट्रोल पाया जा सकता है। इसी रिसर्च के आधार पर आइए जानते हैं कि उम्र के हिसाब से एक व्यक्ति को कितने कदम रोज चलना चाहिए।उम्र के अनुसार हो वाकिंगरिसर्च के मुताबिक, 6 से 17 साल के बच्चे जितना चलते हैं, उतना ही उनके लिए ये फायदा करता है। इस उम्र के लड़कों को एक दिन में कम से कम 15,000 स्टेप्स जरूर लेने चाहिए। जबकि, लड़कियां 12,000 कदम चलें तो अच्छा रहेगा। 18 से 40 साल के पुरुष और महिलाओं दोनों को एक दिन में 12,000 कदम चलना चाहिए। 40 के पार पहुंचने पर स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं अधिक देखने को मिलती है, साथ ही इस उम्र में बेवजह वजन बढ़ने का चांस भी अधिक रहता है, ऐसे में हेल्थ एक्सपर्ट्स इस उम्रे में एक दिन में 11,000 कदम जरूर चलने की सलाह देते हैं। 50 की उम्र के लोगों को प्रतिदिन 10,000 कदमों का अभ्यास जरूर करना चाहिए। 60 साल के लोगों स्वस्थ रहने के लिए हर रोज दिन में 8,000 कदम तो चलना ही चाहिए। हालांकि, ध्यान रहे कि चलने का मतलब सुस्ती के साथ चलना नहीं, बल्कि जोश और तेजी से पैरों को बढ़ाना है। वहीं, 60 से अधिक उम्र के लोगों को ज्यादातर चलने-फिरने में परेशानी का सामना करना पड़ता है, ऐसे में एक्सपर्ट्स उन्हें तब तक वॉक करने की सलाह देते हैं, जब तक वे थकान महसूस नहीं करते।चार्ट से समझें-उम्र लिंग कदम6 से 17 साल पुरुष कम से कम 15,000 कदम6 से 17 साल महिला कम से कम 12,000 कदम18 से 40 साल पुरुष कम से कम 12,000 कदम18 से 40 साल महिला कम से कम 12,000 कदम40 के पार पुरुष कम से कम 11,000 कदम40 के पार महिला कम से कम 11,000 कदम50 साल पुरुष कम से कम 10,000 कदम50 साल महिला कम से कम 10,000 कदम60 साल पुरुष कम से कम 8,000 कदम60 साल महिला कम से कम 8,000 कदम-रिसर्च के मुताबिक पैदल चलने के फायदेगौरतलब है कि केवल पैदल चलने से व्यक्ति कई गंभीर बीमारियों से खुद की हिफाजत कर सकता है। हर रोज वॉक करने से स्ट्रेस लेवल में गिरावट आती है। अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के मुताबिक, रनिंग करने या तेजी के साथ कदम बढ़ाने से दिल में ब्लड सर्कुलेशन बढ़ाता है, जिससे बैड कोलेस्ट्रॉल का खतरा कम हो जाता है। साथ ही ब्लड प्रेशर भी स्थिर रहता है। वॉक करना फेफड़ों के लिए भी फायदेमंद है। इससे ऑक्सीजन का शरीर में ज्यादा बहाव होता है। रोजाना वॉक करने से शरीर की अतिरिक्त चर्बी घटाती है और मसल्स टोन फिट रहते हैं।इन सब के अलावा रोजाना वॉक हड्डियां को मजबूत कर जोड़ों में दर्द, सूजन और अकड़न से भी राहत दिलाने का काम करती है।
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एलन मस्क की न्यूरालिंक कॉर्पोरेशन ने एक बड़ा वैज्ञानिक दावा किया है। कंपनी ने एक ऐसे ब्रेन इम्प्लांट डिवाइस का सफल परीक्षण किया है, जो मस्तिष्क के विजुअल हिस्सों को उत्तेजित कर उस दृश्य की कल्पना करवा सकता है जो वहां असल में मौजूद नहीं है। इस तकनीक का नाम है 'Blindsight' और यह नेत्रहीनों को देखने की नई उम्मीद दे सकती है। न्यूरालिंक के इंजीनियर जोसेफ ओ'डोहार्टी ने बताया कि परीक्षण के दौरान बंदर ने दो-तिहाई बार उन वस्तुओं की ओर आंखें घुमाईं, जिन्हें वैज्ञानिकों ने दिमाग को भ्रमित कर दिखाने की कोशिश की। इस प्रयोग को हाल ही में एक कॉन्फ्रेंस में सार्वजनिक किया गया है।
मिल सकती है मानव परीक्षण की मंजूरीओ'डोहार्टी के मुताबिक, यह डिवाइस फिलहाल अमेरिकी एजेंसियों से मानव परीक्षण की मंजूरी का इंतजार कर रही है। मस्क का कहना है कि इसका शुरुआती लक्ष्य दृष्टिहीन लोगों को देखने में मदद करना है, जबकि दीर्घकालिक लक्ष्य ‘इन्फ्रारेड’ जैसी सुपरह्यूमन दृष्टि प्रदान करना है।इंसानों में भी हो रहा न्यूरालिंक का परीक्षणअब तक पांच लोग न्यूरालिंक इम्प्लांट के साथ जी रहे हैं। इनमें से तीन को 2024 में और दो को 2025 में डिवाइस लगाई गई थी। ये यूजर्स हर हफ्ते करीब 60 घंटे तक डिवाइस का इस्तेमाल कर रहे हैं। वहीं, स्पाइनल कॉर्ड स्टिम्युलेशन की दिशा में भी बंदरों पर प्रयोग किए जा रहे हैं जिससे भविष्य में लकवाग्रस्त लोग चलने-फिरने में सक्षम हो सकें। -
लंदन. एथेल कैटरहम नामक 115 वर्षीय सरे की महिला को आधिकारिक तौर पर सबसे बुजुर्ग जीवित इंसान का खिताब दिया गया है। यह समाचार पढ़कर कई लोग सोच रहे होंगे कि कैटरहम के इतने लंबे समय तक जीवित रहने का रहस्य क्या है।
हालांकि आमतौर पर इतने लंबे समय तक जीवित रहने वाले लोगों से स्वास्थ्य और दीर्घायु संबंधी सलाह लेना अच्छा विचार नहीं है (क्योंकि वे अक्सर नियम के बजाय अपवाद होते हैं), फिर भी कुछ जीवनशैली संबंधी सुझाव हैं जिन्हें हम दीर्घायु लोगों के समूहों पर किए गए शोध से ले सकते हैं, जो हमें लंबा जीवन जीने की संभावना बढ़ाने में मदद कर सकते हैं। 1. शारीरिक गतिविधिशारीरिक गतिविधि आपके लिए अच्छी है - कौन जानता था? शोध से पता चलता है कि जो लोग हर दिन शारीरिक रूप से अधिक सक्रिय रहते हैं, वे ज्यादा स्वस्थ जीवन जीते हैं। एक अध्ययन में पाया गया कि बिना किसी शारीरिक गतिविधि के प्रति सप्ताह लगभग 75 मिनट तेज चलने से जीवन प्रत्याशा लगभग दो वर्ष बढ़ जाती है। लेकिन शायद कम ही लोग जानते हैं कि निष्क्रियता आपके स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए कितनी खराब है। इसका मतलब यह है कि आप अधिक सक्रिय रहकर और निष्क्रियता से बचकर अपने स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं। हालांकि व्यायाम आपके लिए अच्छा है, लेकिन यह अकेले निष्क्रियता और पूरे दिन बैठे रहने से होने वाले नुकसान की भरपाई नहीं कर सकता। यदि आप लंबे समय तक जीना चाहते हैं, तो आपको यथासंभव लंबे समय तक बैठने से बचना चाहिए। इसके लिए व्यावहारिक सुझावों में हर 30 मिनट में खड़े होना, किसी को कॉल या ईमेल करने के बजाय कार्यालय में जाकर मिलना और यात्रा के दौरान सार्वजनिक परिवहन में खड़े रहना शामिल है। 2. अपनी सब्जियां खाएंकई बच्चे इस सलाह से डरते हैं: यदि आप लंबे समय तक जीना चाहते हैं तो सब्जियां खाएं।हाल में 30 वर्ष की अवधि में लगभग 100,000 लोगों पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि जो लोग 70 वर्ष की आयु तक अच्छे स्वास्थ्य में रहे (अर्थात उन्हें कोई दीर्घकालिक बीमारी नहीं थी) वे आमतौर पर अधिक फल, सब्जियां, मोटे अनाज, मेवे और फलियां खाते थे तथा वसा, लाल या प्रसंस्कृत मांस, तले हुए खाद्य पदार्थ और शर्करा युक्त खाद्य पदार्थ कम खाते थे। आप कब और कितना खाते हैं, यह भी उम्र बढ़ने में अहम भूमिका निभा सकता है। 3. नींदनियमित, अच्छी गुणवत्ता वाली नींद आजीवन स्वास्थ्य और समग्र दीर्घायु के लिए भी महत्वपूर्ण है।लगभग 500,000 ब्रिटिश लोगों पर किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि अनियमित नींद वाले लोगों में नियमित नींद वाले लोगों की तुलना में समय से पहले मौत का जोखिम 50 प्रतिशत अधिक था। कार्यालयों में पाली में काम करने वाले लोगों में स्ट्रोक का जोखिम अधिक था, और जो नर्सें दशकों तक पाली में काम करती थीं, वे कम स्वस्थ थीं। आंकड़ों के अनुसार अच्छी गुणवत्ता वाली और नियमित नींद अच्छे स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है। वयस्कों को 7-9 घंटे की नींद लेने की सलाह दी जाती है। 4. तनावतनाव का आपके स्वास्थ्य पर कई प्रभाव पड़ते हैं।उदाहरण के लिए, बढ़ते प्रमाणों से पता चलता है कि प्रारंभिक जीवन के तनाव (जैसे माता-पिता की मृत्यु, उपेक्षा या दुर्व्यवहार) बाद के जीवन में स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं जिससे वृद्धावस्था में खराब स्वास्थ्य और मृत्यु का जोखिम बढ़ सकता है। आनुवंशिकी की भूमिकावैसे तो जीवनशैली से जुड़ी कई आदतें हैं जिन्हें हम बदल सकते हैं, लेकिन एक चीज जिसे हम अपने जीवनकाल के मामले में नियंत्रित नहीं कर सकते, वह है आनुवंशिकी। लेकिन अच्छी आनुवंशिकी ही सब कुछ नहीं होती। हालांकि एथेल कैटरहम 115 साल की उम्र तक पहुंच गई हैं और उनकी एक बहन 104 साल तक जीवित रहीं। कैटरहम की दो बेटियों की उनसे पहले 71 और 83 साल की उम्र में ही मृत्यु हो गई। यदि आप लंबे समय तक जीने और यथासंभव स्वस्थ रहने की अपनी संभावनाओं को अधिकतम करना चाहते हैं, तो प्रत्येक दिन अधिक शारीरिक रूप से सक्रिय रहने का लक्ष्य रखें, अच्छा आहार लें, रात को अच्छी नींद लें और तनाव के स्तर को कम रखें। - लखनऊ. उत्तर प्रदेश में 4.2 लाख से अधिक किसानों ने 42 दिन में 2025-26 सत्र के लिए खरीद केंद्रों पर अपना पंजीकरण कराया है, जो औसतन प्रतिदिन 10,000 से अधिक पंजीकरण है। उत्तर प्रदेश सरकार ने रविवार को एक बयान में यह जानकारी दी। गेहूं खरीद 17 मार्च को शुरू हुई थी। इसके बाद से, 1.19 लाख से अधिक किसानों ने लगभग 6.57 लाख टन गेहूं बेचा है। बयान के अनुसार, यह अभियान 15 जून तक जारी रहेगा और इसमें राज्य भर के किसानों की मजबूत भागीदारी देखी जा रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देशों के बाद खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग के अधिकारी किसानों तक पहुंच रहे हैं और जमीनी स्तर पर सुचारू संचालन सुनिश्चित कर रहे हैं। खरीद केंद्रों पर स्वच्छ पेयजल और छायादार प्रतीक्षा क्षेत्रों सहित उचित सुविधाओं की गारंटी के लिए विशेष प्रयास किए जा रहे हैं, जिससे किसान-अनुकूल वातावरण तैयार हो सके। जिन किसानों ने अभी तक गेहूं बिक्री के लिए पंजीकरण नहीं कराया है या पंजीकरण का नवीनीकरण नहीं कराया है, वे एफसीएस.यूपी.जीओवी.आईएन पर या यूपी किसान मित्र मोबाइल ऐप के माध्यम से पंजीकरण करा सकते हैं। गेहूं बेचने के लिए इस पोर्टल/ऐप पर पंजीकरण अनिवार्य है। किसान 18001800150 पर कॉल करके भी अपनी समस्या बता सकते हैं और अधिकारी यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि उनकी समस्याओं का त्वरित समाधान हो। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश के बाद, खरीद केंद्र हर दिन सुबह आठ बजे से रात आठ बजे तक खुले रहते हैं। बयान में कहा गया है कि रविवार को खाद्य एवं रसद विभाग के अधिकारियों ने किसानों से बात की और मोबाइल खरीद केंद्रों के माध्यम से गेहूं खरीदा।
- नयी दिल्ली. क्या पृथ्वी ब्रह्मांड में अकेला ऐसा ग्रह है, जहां जीवन मौजूद है? कैब्रिज विश्वविद्यालय द्वारा किए गए एक अध्ययन से उम्मीद की किरण जगी है कि संभवत: ऐसा नहीं है और पृथ्वी से करीब 120 प्रकाश वर्ष दूर एक ऐसा खगोलीय पिंड हो सकता है, जहां जीवन मौजूद हो सकता है। पिछले सप्ताह ‘एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लेटर्स' में प्रकाशित अध्ययन में के2-18बी नामक सुदूर ग्रह पर जीवन के संकेत मिले हैं। लेकिन खगोलविद इसे लेकर संशय में हैं और उनका कहना है कि अध्ययन के परिणामों और कार्यप्रणाली की अन्य शोधकर्ताओं द्वारा भी जांच-पड़ताल की जानी चाहिए। शोध के अनुसार, ‘एक्सोप्लैनेट' के वायुमंडल पर डाइमिथाइल सल्फाइड और डाइमिथाइल डाइसल्फाइड अणुओं के निशान पाए गए हैं। पृथ्वी पर, ये अणु समुद्री जीवों द्वारा उत्पादित माने जाते हैं। ‘एक्सोप्लैनेट' वे ग्रह होते हैं, जो हमारे सौर मंडल से बाहर, अन्य तारों की परिक्रमा करते हैं।दिलचस्प बात यह है कि सबसे आम परिकल्पना यह है कि पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति समुद्र में हुई।खगोल भौतिकी और बाह्यग्रहीय विज्ञान के प्रोफेसर निक्कू मधुसूदन के नेतृत्व वाली अनुसंधान टीम का दावा है कि यह अध्ययन ‘तीन सिग्मा' के महत्व का साक्ष्य प्रदान करता है कि सौरमंडल के बाहर जीवन के सबसे मजबूत संकेत 99.7 फीसदी तक आकस्मिक नहीं हैं। पिछले सप्ताह मधुसूदन ने कहा कि अध्ययन के निहितार्थों के दायरे को देखते हुए, उनकी टीम भविष्य के शोधों में परिणामों की मजबूती से पुष्टि करने की कोशिश कर रही है। राष्ट्रीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (एनआईएसईआर), भुवनेश्वर के पृथ्वी एवं ग्रह विज्ञान स्कूल के रीडर जयेश गोयल का मानना है कि अध्ययन के निष्कर्ष एक बड़ा कदम हैं और ‘‘यह बाह्यग्रहों के वायुमंडल और उनके रहने योग्य होने के बारे में हमारी समझ की सीमाओं को आगे बढ़ाता है।'' उन्होंने बताया, ‘‘के2-18बी के वायुमंडल पर किए गए अवलोकनों से यह पता चलता है कि उप-नेप्च्यून या सुपर-अर्थ एक्सोप्लैनेट की इस श्रेणी को किस हद तक चिह्नित किया जा सकता है, क्योंकि इन लक्ष्यों का अध्ययन करना बेहद चुनौतीपूर्ण है।'' अमेरिका के मिशिगन विश्वविद्यालय में नासा सागन फेलो रयान मैकडोनाल्ड ने ‘ बताया, ‘‘यह बाह्यग्रह विज्ञान के सामान्य मानकों के अनुसार 'पता लगाना' नहीं है।'' अमेरिका के राइस विश्वविद्यालय से एक्सोप्लैनेट पर केंद्रित पीएचडी करने वाले खगोल वैज्ञानिक आसा स्टाहल ने कहा कि अध्ययन में दूर स्थित ग्रह के वायुमंडल को देखने के लिए एक ‘‘अत्यंत शक्तिशाली उपकरण'' का उपयोग किया गया है। मधुसूदन ने इस बात पर जोर दिया कि शोधकर्ताओं की टीम अध्ययन के परिणामों पर विचार करेगी। उन्होंने यह भी कहा, ‘‘जब आपको बड़ी सफलताएं मिलती हैं, तो आप वास्तव में आश्वस्त होना चाहते हैं, क्योंकि यह विज्ञान और समाज के मूल ढांचे को मौलिक रूप से बदल देता है।'' मधुसूदन की टीम भविष्य के अनुसंधान में इस पहलू पर विचार कर रही है, लेकिन अणुओं की उत्पत्ति के उत्तर विशेष रूप से महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं, क्योंकि अध्ययनों में धूमकेतु और तारों के बीच के स्थान में डाइमिथाइल सल्फाइड पाया गया है। गोयल ने कहा कि वेब टेलीस्कोप का उपयोग करके के2-18बी के और अधिक अवलोकन, साथ ही डाइमिथाइल सल्फाइड और डाइमिथाइल डाइसल्फाइड के प्रयोगशाला स्पेक्ट्रा के विस्तृत अध्ययन से अध्ययन के परिणामों को पुष्ट करने या उन पर सवाल खड़ा करने में मदद मिल सकती है।
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नयी दिल्ली. रोजाना बादाम खाने से एशियाई भारतीयों जैसी कुछ खास आबादी को रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है। एक अध्ययन में इसकी जानकारी दी गयी है। बादाम और कार्डियोमेटाबोलिक स्वास्थ्य पर पहले प्रकाशित शोध का विश्लेषण करते हुए, शोधकर्ताओं और चिकित्सकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने कहा कि बादाम ‘खराब' कोलेस्ट्रॉल को कम करके और आंतों के लाभकारी बैक्टीरिया को बढ़ाकर चयापचय स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं। अध्ययन का निष्कर्ष सर्वसम्मति से प्रकाशित लेख के रूप में पत्रिका ‘करंट डेवलपमेंट्स इन न्यूट्रिशन' में प्रकाशित हुआ है और यह स्वस्थ हृदय और आंत के अनुकूल भोजन के रूप में बादाम की भूमिका को साबित करता है। शोध के लेखक एवं फोर्टिस सेंटर फॉर डायबिटीज, ओबेसिटी एंड कोलेस्ट्रॉल के अध्यक्ष डॉ. अनूप मिश्रा ने ‘पीटीआई-भाषा' को बताया कि निष्कर्ष यह भी बताते हैं कि बादाम संभावित रूप से एशियाई भारतीयों जैसी विशिष्ट आबादी को कैसे लाभ पहुंचा सकते हैं, जहां कार्डियोमेटाबोलिक बीमारियों की बढ़ती दर चिंता का विषय हैं। मिश्रा नेशनल डायबिटीज ओबेसिटी एंड कोलेस्ट्रॉल फाउंडेशन के प्रमुख भी हैं।
बादाम खाने से एलडीएल या ‘खराब' कोलेस्ट्रॉल पांच यूनिट तक कम हो जाता है, और डायस्टोलिक रक्तचाप 0.17-1.3 एमएमएचजी महत्वपूर्ण मात्रा में कम हो जाता है। शोधकर्ताओं ने कहा कि प्री-डायबिटीज वाले एशियाई भारतीयों के लिए, रोजाना बादाम खाने से खाली पेट रहते समय रक्त शर्करा और एचबीए1सी को कम करने में मदद मिल सकती है। अध्ययन में कहा गया है कि विश्लेषण से पता चलता है कि बादाम के सेवन से वजन नहीं बढ़ता है, एलडीएल कोलेस्ट्रॉल और डायस्टोलिक रक्तचाप में थोड़ी कमी आती है, साथ ही कुछ आबादी (यानी एशियाई भारतीय) में ग्लाइसेमिक प्रतिक्रियाओं में सुधार होता है।'' मिश्रा ने कहा, ‘‘ये लाभ ऊर्जा के स्तर को स्थिर करने और भूख में उतार-चढ़ाव को कम करने में मदद करके वजन घटाने के प्रयासों में सहायता करते हैं। संतुलित पोषण और शारीरिक गतिविधि के साथ, बादाम खाना वजन घटाने में सहायक होता है। - आज हम मोबाइल से सिर्फ एक स्कैन में पेमेंट कर लेते हैं या किसी डॉक्यूमेंट को ऑनलाइन वेरिफाई कर लेते हैं। यह सब मुमकिन हो पाया है QR कोड की मदद से। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस टेक्नोलॉजी का अविष्कार आज से 31 साल पहले हो गया था? आइए, जानते हैं QR कोड के बनाने के पीछे किसका दिमाग था…किसने बनाया QR कोड?QR कोड यानी क्विक रिस्पॉन्स कोड को 1994 में जापान के इंजीनियर मसाहिरो हारा ने बनाया था। वह जापान की होसेई यूनिवर्सिटी से पढ़े हुए हैं और उस समय Denso Wave नाम की कंपनी में काम कर रहे थे। यह कंपनी टोयोटा ग्रुप की एक इकाई है।गो गेम से आया आइडियामसाहिरो हारा को QR कोड बनाने का आइडिया एक पारंपरिक जापानी बोर्ड गेम ‘गो गेम’ खेलते समय आया। इस खेल में 19×19 के ग्रिड पर काले और सफेद पत्थरों से चालें चली जाती हैं। उन्होंने सोचा कि अगर इस तरह के ग्रिड में पत्थर रखकर एक गेम खेला जा सकता है, तो इसी तरह एक ग्रिड में बहुत सारी जानकारी भी स्टोर की जा सकती है, जिसे अलग-अलग एंगल से भी पढ़ा जा सके।इसके बाद मसाहिरो ने अपनी टीम के साथ मिलकर QR कोड की शुरुआत की। सबसे पहले इसका उपयोग गाड़ियों के पार्ट्स की पहचान के लिए किया गया। QR कोड में लोकेशन, पहचान और वेब ट्रैकिंग से जुड़ा डेटा रखा जा सकता था। धीरे-धीरे QR कोड का इस्तेमाल बढ़ता गया। अब इसका उपयोग पेमेंट, टिकट, कॉन्टैक्ट शेयरिंग और यहां तक कि आधार वेरिफिकेशन तक में हो रहा है। खास बात यह है कि हर QR कोड यूनिक होता है, यानी कोई भी दो QR कोड एक जैसे नहीं होते।
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नयी दिल्ली. अमेरिका ने उसके बाजारों में आने वाले भारतीय सामानों पर 27 प्रतिशत जवाबी शुल्क या आयात शुल्क लगाने की घोषणा की है। विशेषज्ञों का मानना है कि शुल्क भारतीय सामानों के लिए चुनौतियां उत्पन्न करेंगे, लेकिन भारत की स्थिति अपने प्रतिस्पर्धी देशों की तुलना में बेहतर बनी हुई है जिन्हें उनसे अधिक शुल्क का सामना करना पड़ेगा। इन मुद्दों तथा अमेरिकी कदम के निहितार्थों को कुछ प्रश्न व उतर से समझें-
प्रश्न. शुल्क क्या हैं?
उत्तर. ये वस्तुओं के आयात पर लगाए गए सीमा शुल्क या आयात शुल्क हैं। आयातक को सरकार को यह शुल्क देना होता है। आम तौर पर, कंपनियां इनका बोझ उपयोगकर्ताओं पर डालती हैं।
प्रश्न: जवाबी शुल्क क्या हैं?
उत्तर: ये शुल्क व्यापारिक साझेदारों के शुल्कों में वृद्धि किए जाने या उच्च शुल्कों का मुकाबला करने के लिए देशों द्वारा लगाए जाते हैं..यह एक तरह के प्रतिशोधात्मक शुल्क हैं।
प्रश्न: अमेरिका ने भारत पर कितना शुल्क लगाया है?
उत्तर: भारत से आने वाले इस्पात, एल्युमीनियम और वाहन व उसके घटकों पर पहले ही 25 प्रतिशत शुल्क लगा है। शेष उत्पादों पर भारत पर पांच से आठ अप्रैल के बीच 10 प्रतिशत का मूल (बेस लाइन) शुल्क लगेगा। फिर नौ अप्रैल से शुल्क 27 प्रतिशत तक बढ़ जाएगा। इन कदमों से 60 से अधिक देश प्रभावित होंगे।
प्रश्न: अमेरिका ने इन शुल्कों की घोषणा क्यों की है?
उत्तर: अमेरिका का मानना है कि इन शुल्कों से अमेरिका में घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा मिलेगा और व्यापार घाटे में कमी आएगी। अमेरिका को कुछ देशों, खासकर चीन के साथ भारी व्यापार असंतुलन का सामना करना पड़ रहा है। भारत के साथ अमेरिका का 2023-24 में 35.31 अरब अमरेकी डॉलर का व्यापार घाटा था।
प्रश्न: इन शुल्कों से किन क्षेत्रों को छूट दी गई है?
उत्तर: आर्थिक शोध संस्थान ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई)के विश्लेषण के अनुसार दवा, सेमीकंडक्टर, तांबा और तेल, गैस, कोयला व एलएनजी जैसे ऊर्जा उत्पाद जैसे आवश्यक एवं रणनीतिक वस्तुओं को इन शुल्कों के दायरे से बाहर रखा गया है।
प्रश्न: इन शुल्कों का भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर: एक सरकारी अधिकारी के अनुसार वाणिज्य मंत्रालय अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए 27 प्रतिशत जवाबी शुल्कों के प्रभाव का आकलन कर रहा है। हालांकि, यह भारत के लिए कोई झटका नहीं है। निर्यातक संगठनों के महासंघ फियो का कहना है कि भारत पर लगाया गया अमेरिकी शुल्क निःसंदेह घरेलू निर्यातकों के लिए चुनौती है, लेकिन भारत की स्थिति अपने प्रतिस्पर्धी देशों की तुलना में तुलनात्मक रूप से बेहतर है। निर्यातकों ने कहा कि प्रस्तावित द्विपक्षीय व्यापार समझौता घरेलू उद्योग को इन शुल्कों के संभावित प्रभाव से उबरने में मदद करेगा। जीटीआरआई ने कहा कि कुल मिलाकर अमेरिका की संरक्षणवादी शुल्क व्यवस्था भारत के लिए वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पुनर्संरेखण से लाभ उठाने के लिए मुख्य स्रोत का काम कर सकती है। हालांकि, इन अवसरों का पूरा लाभ उठाने के लिए भारत को अपने व्यापार को आसान बनाना होगा, लॉजिस्टिक्स व बुनियादी ढांचे में निवेश करना होगा और नीति स्थिरता बनाए रखनी होगी।
प्रश्न: भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौता क्या है?
उत्तर: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की फरवरी में अमेरिकी यात्रा के दौरान दोनों देशों ने 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 500 अरब अमेरिकी डॉलर तक बढ़ाने के उद्देश्य से इस समझौते पर बातचीत की घोषणा की थी। वे इस वर्ष की शरद ऋतु (सितंबर-अक्टूबर) तक इस समझौते के पहले चरण को अंतिम रूप देने का लक्ष्य बना रहे हैं।
प्रश्न: व्यापार समझौता क्या है?
उत्तर: ऐसे समझौतों में दो व्यापारिक साझेदार या तो सीमा शुल्क को काफी कम कर देते हैं या अधिकतर वस्तुओं पर उन्हें समाप्त कर देते हैं। वे सेवाओं और निवेश में व्यापार को बढ़ावा देने के लिए मानदंडों को भी आसान बनाते हैं।
प्रश्न: अमेरिका ने भारत के प्रतिस्पर्धी देशों पर क्या शुल्क घोषित किए हैं?
उत्तर: चीन पर 54 प्रतिशत, वियतनाम पर 46 प्रतिशत, बांग्लादेश पर 37 प्रतिशत और थाइलैंड पर 36 प्रतिशत शुल्क लगाया गया है।
प्रश्न: क्या ये पारस्परिक शुल्क डब्ल्यूटीओ के अनुरूप हैं?
उत्तर: अंतरराष्ट्रीय व्यापार विशेषज्ञ अभिजीत दास के अनुसार ये शुल्क स्पष्ट रूप से विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के नियमों का उल्लंघन करते हैं। यह एमएफएन (सबसे तरजीही राष्ट्र) दायित्वों तथा बाध्य दर प्रतिबद्धताओं दोनों का उल्लंघन करते हैं। डब्ल्यूटीओ के सदस्य देश को इन शुल्कों के खिलाफ डब्ल्यूटीओ के विवाद निपटान तंत्र का रुख करने का पूरा अधिकार है।
प्रश्न: भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार कितना है?
उत्तर: वित्त वर्ष 2021-22 से 2023-24 तक अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था। भारत के कुल माल निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी करीब 18 प्रतिशत, आयात में 6.22 प्रतिशत और द्विपक्षीय व्यापार में 10.73 प्रतिशत है। भारत का 2023-24 में अमेरिका के साथ वस्तुओं में 35.32 अरब अमेरिकी डॉलर का व्यापार अधिशेष (आयात व निर्यात के बीच का अंतर) था। यह 2022-23 में 27.7 अरब अमेरिकी डॉलर, 2021-22 में 32.85 अरब अमेरिकी डॉलर, 2020-21 में 22.73 अरब अमेरिकी डॉलर और 2019-20 में 17.26 अरब अमेरिकी डॉलर था। अमेरिका को भारत के मुख्य निर्यात में 2024 में दवा निर्माण तथा जैविक (8.1 अरब अमेरिकी डॉलर), दूरसंचार उपकरण (6.5 अरब अमेरिकी डॉलर), कीमती व अर्ध-कीमती पत्थर (5.3 अरब डॉलर), पेट्रोलियम उत्पाद (4.1 अरब डॉलर), सोना तथा अन्य कीमती धातु के आभूषण (3.2 अरब डॉलर), सहायक उपकरण सहित सूती तैयार वस्त्र (2.8 अरब डॉलर) और लोहा व इस्पात के उत्पाद (2.7 अरब डॉलर) शामिल है। आयात में कच्चा तेल (4.5 अरब डॉलर), पेट्रोलियम उत्पाद (3.6 अरब डॉलर), कोयला, कोक (3.4 अरब डॉलर), तराशे व पॉलिश किए गए हीरे (2.6 अरब डॉलर), इलेक्ट्रिक मशीनरी (1.4 अरब डॉलर), विमान, अंतरिक्ष यान तथा कलपुर्जे (1.3 अरब अमेरिकी डॉलर) और सोना (1.3 अरब डॉलर) शामिल हैं। -
वंडेनबर्ग स्पेस फोर्स बेस (अमेरिका). नासा की नवीनतम अंतरिक्ष दूरबीन को मंगलवार को प्रक्षेपित किया गया जो पूरे आकाश का अध्ययन करेगी। यह शुरुआत से लेकर अब तक करोड़ों आकाशगंगाओं और उनकी साझा ब्रह्मांडीय चमक (कॉस्मिक ग्लो) का व्यापक अध्ययन करेगी। स्पेसएक्स ने कैलिफोर्निया से स्फीरेक्स वेधशाला को प्रक्षेपित किया। सूर्य का अध्ययन करने के लिए सूटकेस के आकार के चार उपग्रह भी साथ में भेजे गए। कुल 48.8 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्फीरेक्स मिशन का उद्देश्य यह पता लगाना है कि अरबों वर्षों में आकाशगंगाएं कैसे बनीं और विकसित हुईं तथा कैसे ब्रह्मांड का इतनी तेजी से विस्तार हुआ। स्फीरेक्स उन तारों के बीच बर्फीले बादलों में पानी और जीवन के अन्य तत्वों की खोज करेगा जहां नए सौर मंडल उभर रहे हैं। ‘कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी' के मिशन के मुख्य वैज्ञानिक जेमी बॉक ने कहा कि ब्रह्मांडीय चमक ब्रह्मांड के इतिहास में अब तक जितना भी प्रकाश उत्सर्जित हुआ है, उसे अपने अंदर समेटे हुए है। उन्होंने कहा कि यह ब्रह्मांड को देखने का एक बहुत ही अलग तरीका है, जिससे वैज्ञानिकों को यह पता लगाने में मदद मिलेगी कि अतीत में प्रकाश के कौन से स्रोत छूट गए थे। बॉक ने कहा कि वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि सामूहिक चमक का अवलोकन करके वे शुरुआती आकाशगंगाओं से प्रकाश संबंधी जानकारी जुटा सकेंगे तथा यह जान सकेंगे कि वे कैसे बनीं।
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नयी दिल्ली. चंद्रयान-3 मिशन के दौरान एकत्र किए गए आंकड़ों के अध्ययन से पता चला है कि पूर्व के अनुमानों की तुलना में चंद्रमा के ध्रुवों पर अधिक स्थानों पर सतह के ठीक नीचे बर्फ मौजूद हो सकती है। अहमदाबाद स्थित भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला के संकाय सदस्य एवं प्रमुख लेखक दुर्गा प्रसाद करणम ने कहा कि सतह के तापमान में बड़े, लेकिन अत्यधिक स्थानीय परिवर्तन सीधे बर्फ के निर्माण को प्रभावित कर सकते हैं और इन बर्फ कणों को देखने से ‘‘उनके उद्गम एवं इतिहास के बारे में अलग-अलग कहानियां सामने आ सकती हैं।'' उन्होंने कहा, ‘‘इससे हमें यह भी पता चल सकता है कि समय के साथ बर्फ कैसे जमा हुई और चंद्रमा की सतह पर कैसे पहुंची, जिससे इस प्राकृतिक उपग्रह की शुरुआती भूगर्भीय प्रक्रियाओं के बारे में जानकारी मिल सकती है।'' इससे संबंधित निष्कर्ष पत्रिका ‘कम्युनिकेशंस अर्थ एंड एनवायरनमेंट' में प्रकाशित हुआ है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा बेंगलुरु से प्रक्षेपित चंद्रयान-3 ने 23 अगस्त, 2023 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास ‘सॉफ्ट लैंडिंग' की थी। इसके तीन दिन बाद 26 अगस्त को ‘लैंडिंग' स्थल का नाम ‘शिव शक्ति पॉइंट' रखा गया। चंद्रमा पर बर्फ के पानी में बदलने की संभावना के बारे में करणम ने कहा, ‘‘चंद्रमा की सतह पर अत्यधिक उच्च निर्वात के कारण तरल रूप में पानी मौजूद नहीं रह सकता। इसलिए, बर्फ तरल में परिवर्तित नहीं हो सकती, बल्कि वाष्प रूप में परिवर्तित हो जाएगी।'' करणम ने कहा, ‘‘वर्तमान समझ के अनुसार, चंद्रमा पर अतीत में रहने योग्य स्थितियां नहीं रही होंगी।''