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-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
हम हैं हरिश्चंद्र के वंशज, पर इसका अभिमान न था।
शक्ति बहुत है हममें लेकिन, इसका किंचित भान न था।।
वीर शिवा का साहस हममें, पाँव उखाड़ें दुश्मन के।
बुद्धि धैर्य सामर्थ्य बहुत है, दुश्मन भी अनजान न था।।
राम सरिस मर्यादित हैं पर, वार न पहले हम करते।
रावण ने सीता हरण किया, शील हरे शैतान न था।।
माँस काट कर प्राण बचाए, जन्मे राजा शिवि जैसे।
दिया कर्ण दधीचि बलि ने, ऐसा कोई दान न था ।।
विश्व विजय कर के आया था, शीश झुकाया भारत ने।
पोरस के साहस के आगे, सिकंदर महान न था।। -
-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
पाँच सितंबर है जन्मदिवस, पंडित राधाकृष्णन का।
भारत के उपराष्ट्रपति प्रथम, सुमन महकता आँगन का।।
काज किया शिक्षक का पहले, सम्मान करें वे गुरु का।
जन्मदिवस निज किया समर्पित, श्रद्धा आदर हो गुरु का।
अच्छाई गुरु फैलाते ज्यों, वृक्ष महकता चंदन का ।।
पाँच सितंबर है जन्मदिवस, पंडित राधाकृष्णन का।।
आधारशिला होते जग के, राह सही गुरु दिखलाते।
कच्ची मिट्टी बालक का मन, मूरत अच्छी गढ़ जाते।
दिवस आज का है मनभावन, गुरु वंदन अभिनंदन का।।
पाँच सितंबर है जन्मदिवस, पंडित राधाकृष्णन का ।।
दीपक जैसे जलकर शिक्षक, जग को रोशन हैं करते।
विद्या के उज्ज्वल प्रकाश से, अज्ञानता तमस हरते।
पारस पत्थर बन लोहे को, रूप दिलाते कुंदन का ।।
पाँच सितंबर है जन्मदिवस, पंडित राधाकृष्णन का।। - - डॉ. ओम डहरिया , सहा. जनसंपर्क अधिकारीरायपुर। देश की आजादी के बाद यह पहला अवसर है जब किसी सरकार ने जनजातीय समाज के जीवन स्तर को उपर उठाने के लिए देशव्यापी अभियान छेड़ा है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने जनजातीय समाज के लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार जैसे मूलभुत सुविधाओं से जोड़ने और इनका लाभ दिलाने के लिए आदि कर्मयोगी अभियान की शुरूआत की है। यह अभियान देशभर के 30 राज्यों में संचालित किया जा रहा है। यह अभियान देश भर के 550 से ज्यादा जिलों और 1 लाख से अधिक आदिवासी बहुल गांवों में बदलाव के लिए काम करेगी।बता दें कि जब भारत 2047 में अपनी आज़ादी के 100 वर्ष पूरा करेगा। उस समय तक विकसित भारत की परिकल्पना को साकार करने के लिए यह जरूरी है कि समाज का कोई भी वर्ग पीछे न छूटे। आदिवासी समाज को आगे बढ़ाए बिना यह सपना अधूरा रहेगा। आदि कर्मयोगी अभियान इस अंतर को भरने के लिए एक ठोस कदम है। यह अभियान शासन और समाज के बीच की दूरी को कम करेगा, पारदर्शिता लाएगा और योजनाओं को ज़मीनी स्तर तक पहुँचाएगा।मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय ने इस अभियान को सेवा पर्व का रूप दिया है। उनका कहना है कि यह केवल योजनाओं की जानकारी देने का प्रयास नहीं, बल्कि समाज और शासन को जोड़ने वाला पुल है। छत्तीसगढ़ में इस अभियान के लिए वृहद स्तर पर आदिकर्म योगियों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। ये कर्मयोगी जनजातीय परिवारों से घर-घर संपर्क कर उनकी आवश्यकताओं और जरूरतों को समझेंगे तथा केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ दिलाने में मदद करेंगे, राज्य और जिला स्तर पर इसकी मॉनिटरिंग की जाएगी। राज्य सरकार के सभी विभागों के अधिकारी इस कार्य में संवेदनशीलता के साथ सीधे जुड़ेंगे।आदिकर्मयोगी अभियान का महत्व राष्ट्रीय स्तर पर इसलिए भी है क्योंकि भारत की जनजातीय आबादी लगभग 10 करोड़ से अधिक है। इतने बड़े समुदाय को मुख्यधारा में लाए बिना 2047 तक विकसित भारत का सपना अधूरा रहेगा। यह अभियान प्रधानमंत्री की उस सोच से जुड़ा है, जिसमें हर क्षेत्र, हर समाज और हर नागरिक को विकसित भारत” की यात्रा में समान अवसर देना है। भारत का विकास केवल शहरों और औद्योगिक क्षेत्रों तक सीमित नहीं रह सकता। एक सशक्त और आत्मनिर्भर राष्ट्र वही कहलाएगा, जहाँ समाज के हर तबके को समान अवसर मिले और उसकी संस्कृति को उचित सम्मान दिया जाए। इसी सोच को मूर्त रूप ‘आदि कर्मयोगी अभियान’ के जरिए दिया जा रहा है। यह वस्तुतः जनजातीय समाज को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने की दिशा में एक क्रांतिकारी पहल है।छत्तीसगढ़ देश का वह राज्य है जहाँ सर्वाधिक जनजातीय जनसंख्या निवास करती है। इसीलिए इस अभियान का यहां विशेष महत्व है। आदिवासी समाज की असली चुनौती यही रही है कि अनेक योजनाएँ होते हुए भी उनकी जानकारी और लाभ ज़रूरतमंदों तक समय पर नहीं पहुँच पाते। ऐसे में लाखों कर्मयोगी स्वयंसेवक योजना और समाज के बीच सेतु बन सकेंगे। यह अभियान राज्य के 28 जिलों और 138 विकासखंडों के 6 हजार 650 गांवों में 1 लाख 33 हजार से अधिक वालंटियर्स तैयार करने का लक्ष्य रखा है। छत्तीसगढ़ में यह अभियान 17 सितम्बर से 2 अक्टूबर तक पूरे राज्य में ग्राम पंचायत स्तर पर सेवा पखवाड़ा के रूप में मनाया जाएगा।आदिम जाति कल्याण मंत्री श्री राम विचार नेताम में अधिकारियों को पंचायतों में आदि सेवा केंद्र स्थापित करने और जनजातीय परिवारों को पेंशन, स्वास्थ्य बीमा, छात्रवृत्ति, रोजगार, कौशल विकास जैसी सुविधाओं के लिए मार्गदर्शन और योजनाओं का लाभ दिलाने में मदद करने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा है कि इस अभियान को सेवा पर्व के रूप में मनाया जाए और जनजातीय योजनाओं को घर-घर तक पहुँचाने का ठोस प्रयास किया जाए।आदि कर्मयोगी अभियान के पीछे एक गहरी सामाजिक सोच है। जब कोई स्थानीय युवा, महिला या स्वयंसेवक अपने ही गाँव में जाकर योजनाओं की जानकारी देता है, तो लोग उस पर भरोसा करते हैं और यह विश्वास ही बदलाव की असली ताकत है। अभियान का असर शिक्षा और स्वास्थ्य से लेकर आजीविका तक हर क्षेत्र में दिखेगा। जब एक वालंटियर किसी परिवार को यह बताता है कि उनकी बेटी को छात्रवृत्ति मिल सकती है, या बुजुर्ग को पेंशन का हक़ है, तो यह केवल सूचना नहीं होती, बल्कि उस परिवार की ज़िंदगी बदलने वाला अवसर होता है।
- आलेख- हरदीप एस. पुरी, केन्द्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रीभारतीय सभ्यता में अरसे से यह मान्यता रही है कि कामयाबीसे पहले परीक्षा होती है। समुद्र मंथन, जहां मथने की प्रकिया से अमृत निकला था,इसी तरह हमारे आर्थिक मंथन ने भी हमेशा ही नवीनता का मार्ग प्रशस्त किया है। वर्ष1991के संकट से जहां उदारीकरण का जन्म हुआ; वहीं महामारी से डिजिटल उपयोग तेज हुआ।और आज, भारत को एक “मृत अर्थव्यवस्था” कहने वाले संशयवादियों के शोर-शराबे के बीच-तीव्र विकास, मजबूत बफर, और व्यापक अवसर - की एक तथ्यपरक कहानी उभर कर सामने आई है।जीडीपी के ताजा आंकड़ों पर जरागौर करें। वित्तीय वर्ष 2025-26 की पहली तिमाही में वास्तविक जीडीपी 7.8 प्रतिशत की दर से बढ़ी। यह वृद्धि दरपिछली पांच तिमाहियों में सबसे अधिक है। महत्वपूर्ण बात यह है कि यह वृद्धि व्यापक है: सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) 7.6 प्रतिशत बढ़ा है, जिसमें मैन्यूफैक्चरिंग 7.7 प्रतिशत, निर्माण 7.6 प्रतिशत और सेवा क्षेत्र लगभग 9.3 प्रतिशतबढ़ा है। नॉमिनल जीडीपी में 8.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यह कोईमनमाने तरीके से बताई गई तेजी नहीं है।यह बढ़ते उपभोग, मजबूत निवेश और निरंतरसार्वजनिक पूंजीगत व्यय वपूरी अर्थव्यवस्था में लागत कम करने वाले लॉजिस्टिक्स संबंधी सुधारों से हासिल नतीजोंका सबूत है।भारत अब दुनिया की चौथी सबसे बड़ी और सबसे तेज गति से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था है। यह तेजी के मामले में दुनिया की पहली और दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं क्रमशःअमेरिका और चीनसे भी आगे निकल गई है। वर्तमान गति से, हम इस दशक के अंत तक जर्मनी को पीछे छोड़कर बाजार-विनिमय के संदर्भ में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर हैं। हमारी गति वैश्विक स्तर पर मायने रखती है।स्वतंत्र अनुमान बताते हैं कि भारत पहले से ही वैश्विक वृद्धि में 15 प्रतिशत से अधिक का योगदान दे रहा है। प्रधानमंत्री ने एक स्पष्ट लक्ष्यरखा है —सुधारों के मजबूत होने और नई क्षमताओं के सामने आने के साथ-साथ वैश्विक वृद्धि में हमारी हिस्सेदारी बढ़कर 20 प्रतिशत तक पहुंचे।विभिन्न बाजारों और रेटिंग एजेंसियों ने हमारे इस अनुशासन को मान्यता दी है। एसएंडपी ग्लोबल ने मजबूत विकास, मौद्रिक विश्वसनीयता और राजकोषीय सुदृढ़ीकरण का हवाला देते हुए, 18 वर्षों में पहली बार भारत की ‘सॉवरेन रेटिंग’ को उन्नत किया है। इस अपग्रेड से उधार लेने की लागत कम होती है और निवेशक आधार का विस्तार होता है। यह “मृत अर्थव्यवस्था” की धारणा को भी झुठलाता है। जोखिम के स्वतंत्र मूल्यांकनकर्ताओं ने अपनी रेटिंग के साथ अपना मत दिया है।उतना ही महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि आखिर इस सबका लाभ किसे मिला है। वर्ष 2013-14 और 2022-23 के बीच, 24.82 करोड़ भारतीय बहुआयामी गरीबीसे बाहर निकल आए हैं। यह बदलाव उन बुनियादी सेवाओं - बैंक खाते, रसोई के लिए स्वच्छ ईंधन, स्वास्थ्य बीमा, नल का जलऔर प्रत्यक्ष हस्तांतरण - की बड़े पैमाने पर आपूर्ति पर निर्भर है जो गरीबों को विकल्प चुनने का अधिकार देता है। दुनिया के सबसे जीवंत लोकतंत्र और उल्लेखनीय जनसांख्यिकीय चुनौतियों के बीच विकास का यह पैमाना बेहद खास है। विकास का भारत का यह मॉडल आम सहमति के निर्माण, प्रतिस्पर्धी संघवाद और डिजिटल माध्यमों के उपयोग से अंतिम छोर तक सेवा प्रदान करने को महत्व देता है। यह घोषणा के मामले में धीमा,क्रियान्वयन के मामले में तेज और निर्माण की दृष्टि से टिकाऊ है। जब आलोचक हमारी तुलना तेज भागने वाले सत्तावादियों से करते हैं, तो वे इस तथ्य को नजरअंदाज कर देते हैं किहम मैराथन धावक की तर्ज पर लंबी दूरी तय करने वाली एक अर्थव्यवस्था का निर्माण कर रहे हैं।भारत के पेट्रोलियम मंत्री के रूप में, मैं इस बात की पुष्टि कर सकता हूं कि हमारी ऊर्जा सुरक्षा इस तीव्र विकास में किस प्रकार सहायक की भूमिका निभा रहीहै। आज, भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता, चौथा सबसे बड़ा तेलशोधक (रिफाइनर) और एलएनजी का चौथा सबसे बड़ा आयातक है। हमारी तेलशोधन (रिफाइनिंग) क्षमता 5.2 मिलियन बैरल प्रतिदिन से अधिक हैऔर इस दशक के अंत तक इसे 400 मिलियनटन प्रति वर्ष (एमटीपीए) से आगे बढ़ाने का एक स्पष्ट रोडमैप हमारे पास उपलब्ध है।भारत की ऊर्जा संबंधी मांग - जो 2047 तक दोगुनी होने का अनुमान है - बढ़ती वैश्विक मांग का लगभग एक-चौथाई हिस्सा होगी, जिससे हमारी सफलता वैश्विक ऊर्जा स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण बन जाएगी। सरकार का दृष्टिकोण सुरक्षा को सुधार के साथ जोड़ने का रहा है। तेल की खोज का क्षेत्र 2021 में तलछटी घाटियों के 8 प्रतिशत से बढ़कर 2025 में 16 प्रतिशत से अधिक हो गया है। हमारालक्ष्य2030 तक इसे बढ़ाकर 10 लाख वर्ग किलोमीटर करना है। तथाकथित ‘निषिद्ध’ (नो-गो)क्षेत्रों में 99 प्रतिशत की भारी कमी ने अपार संभावनाओं को जन्म दिया है, जबकि ओपन एकरेज लाइसेंसिंग पॉलिसी (ओएएलपी)पारदर्शी वप्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया सुनिश्चित करती है। गैस मूल्य निर्धारण से संबंधी नए सुधारों - जिनमें कीमतों को भारतीय कच्चे तेल की टोकरी से जोड़ा गया है और गहरे पानी एवं नए कुओं के लिए 20 प्रतिशत प्रीमियम की पेशकश की गई है - ने निवेश को बढ़ावा दिया है।हमारी ऊर्जा की कहानी सिर्फ हाइड्रोकार्बन की ही नहीं,बल्कि बदलाव की भी कहानी है। वर्ष 2014 में इथेनॉल मिश्रण 1.5 प्रतिशत से बढ़कर आज 1.25 लाख करोड़ रुपये से अधिक की विदेशी मुद्रा की बचत के बराबर हो गईहै और किसानों को सीधे एक लाख करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान हुआ है। सतत के तहत 300 से ज़्यादा संपीड़ित बायोगैस संयंत्र स्थापित किए जा रहे हैं, जिनका लक्ष्य 2028 तक 5 प्रतिशत मिश्रण का है और तेल से जुड़ी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां हरित हाइड्रोजन के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं।भारत द्वारा रूस से कच्चे तेल की खरीद को लेकर कुछ जगहों में काफी शोरगुलहुआ है। आइए तथ्यों को इस शोरशराबे से अलग करके देखें। रूस की तेल पर ईरान या वेनेज़ुएला के कच्चे तेल की तरह कभी प्रतिबंध नहीं लगाया गया।यह जी7/ईयूमूल्य-सीमा प्रणाली के अंतर्गत है जिसे जानबूझकर राजस्व को सीमित रखते हुए तेल प्रवाह को बनाए रखने के लिए डिजाइन किया गया है। ऐसे पैकेजों के 18 दौर हो चुके हैंऔर भारत ने हरेक दौर का पालन किया है। प्रत्येक लेनदेन में कानूनी लदान(शिपिंग)एवं बीमा, अनुपालन करने वाले व्यापारियों और लेखा-परीक्षण (ऑडिट) किए गए चैनलों का उपयोग किया गया है। हमने कोई नियम नहीं तोड़े हैं।हमने बाजारों को स्थिर किया है और वैश्विक कीमतों को बढ़ने से रोका है।कुछ आलोचकों का आरोप है कि भारत रूस के तेल के लिए एक “लौंड्रोमैट” बन गया है। इससे अधिक निराधार बात और कुछ नहीं हो सकती। भारत इस संघर्ष से काफी पहले दशकों से पेट्रोलियम उत्पादों का चौथा सबसे बड़ा निर्यातक रहा है और हमारे रिफाइनर विश्व भर से इस प्रकार के क्रूड का एक समूह बनाते हैं।निर्यात आपूर्ति श्रृंखलाओं को सक्रिय रखता है। वास्तव में, रूस के कच्चे तेल पर प्रतिबंध लगाने के बाद यूरोप ने भी भारतीय ईंधनों की ओर रुख किया। निर्यात की मात्रा और रिफाइनिंग मार्जिन (जीआरएम) मोटे तौर पर समान ही हैं।मुनाफे लेने का इसमें का कोई सवाल ही नहीं है।यह तथ्य भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि भारत ने यूक्रेन संघर्ष के बाद वैश्विक कीमतों में उछाल आने पर अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए निर्णायक रूप से कदम उठाए। तेल से जुड़े सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) ने डीजल पर 10 रुपये प्रति लीटर तक के नुकसान को सहन किया।सरकार ने केन्द्रीय और राज्य के करों में कटौती कीऔर निर्यात से जुड़े नियमों ने यह अनिवार्य किया कि विदेशों में पेट्रोल और डीजल बेचने वाले रिफाइनर को घरेलू बाजार में कम से कम 50 प्रतिशत पेट्रोल और 30 प्रतिशतडीजल बेचना होगा।इन उपायों ने, काफी राजकोषीय लागत पर, यह सुनिश्चित किया कि एक भी खुदरा दुकान खाली न रहे और परिणामस्वरूप भारतीय घरों के लिए कीमतेंस्थिररहीं। बड़ा सच यह है किवैश्विक तेल का लगभग 10 प्रातशत आपूर्ति करने वाले दुनिया के इस दूसरे सबसे बड़े उत्पादक का कोई विकल्प ही नहीं है। जो लोग उंगली उठा रहे हैं, वे इस तथ्य की अनदेखी करते हैं।वसुधैव कुटुम्बकम के अपने सभ्यतागत मूल्यों के अनुरूपभारत द्वारा सभी अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का पालन करने से 200 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल के विनाशकारी झटके को रोका गया।यह वही 'मेड इन इंडिया' है जो विश्व दृष्टिकोण के लिए भारत में आकार ले रही नई औद्योगिक क्रांति को आकार देता है। इस औद्योगिक क्रांति में सेमीकंडक्टर, इलेक्ट्रॉनिक्स, नवीकरणीय ऊर्जा, रक्षा और विशेष रसायन शामिल हैं - जो उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहनों (पीएलआई)और पीएम गतिशक्ति लॉजिस्टिक्स के सहारे संचालित हैं। सेमीकंडक्टर के उत्पादन में तेजी अब एक नए स्तर पर पहुंच रही है - जो नीतिगत गंभीरता और क्रियान्वयन का प्रमाण है। मंत्रिमंडल ने हाल ही में भारत सेमीकंडक्टर मिशन के तहत चार अतिरिक्त सेमीकंडक्टर मैन्यूफैक्चरिंग परियोजनाओं को मंजूरी दी हैऔर प्रधानमंत्री का जापान में एक सेमीकंडक्टर उत्पादन केन्द्र का हालिया दौराऔर जापान की निवेश संबंधी नवीनीकृत प्रतिबद्धताएं एक सुदृढ़ एवं विश्वसनीय तकनीकी आपूर्ति श्रृंखलाओं से संबंधित एक साझा रोडमैप को रेखांकित करती हैं।डिजिटल अर्थव्यवस्था इन लाभों को कई गुना बढ़ा देती है। भारत वास्तविक समय में भुगतान के मामले में दुनिया भर में अग्रणी है। यूपीआई की सर्वव्यापकता छोटे व्यवसायों की उत्पादकता बढ़ाती हैऔर हमारा स्टार्टअप इकोसिस्टम नवाचार को सेवाओं एवं समाधानों के निर्यात में बदल रहा है। जब डिजिटल तेजीवास्तविक बुनियादी ढांचे के साथ मिलती है, तो प्रभाव बढ़ता है और परिणाम स्वरूप कम टकराव, सुव्यवस्थितऔर निवेश एवं उपभोग का एक बेहतर चक्र सुनिश्चित होता है।आगे का रास्ता आशाजनक है। स्वतंत्र अनुमानों (ईवाई) के अनुसार, 2038 तक भारत पीपीपी के आधार पर दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है, जिसका सकल घरेलू उत्पाद 34 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक होगा। यह प्रगति सतत सुधारों, मानव पूंजी और प्रत्येक उद्यम व परिवार के लिए प्रचुर, स्वच्छ एवं विश्वसनीय ऊर्जा पर निर्भर है।एक महान सभ्यता की परीक्षा उसके कठिन क्षणों में होती है। अतीत में जब भी भारत की क्षमता पर संदेह किया गया, इस देश ने हरित क्रांतियों, आईटी क्रांतियों और शिक्षा व उद्यम के जरिए लाखों लोगों के गौरवपूर्ण उत्थान के साथ उसका जवाब दिया। आज का समय भी इससे कुछ अलग नहीं है। हम अपने दृष्टिकोण पर टिके रहेंगे, अपने सुधारों को निरंतर जारी रखेंगेऔर अपने विकास को तीव्र, लोकतांत्रिक एवं समावेशी बनाए रखेंगेताकि लाभ सबसे वंचित लोगों तक पहुंच सके। आलोचकों के लिए, हमारी उपलब्धियां ही हमाराजवाबहोंगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में, विकसित भारत महज एक आकांक्षा ही नहीं, बल्कि उपलब्धि का एक सार हैऔर विकास के ये आंकड़े उस व्यापक कहानी का ताजा अध्याय मात्र हैं।
- छत्तीसगढ़ी कहानी-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)सावित्री हर होत बिहनिया उठ के अंगना कुरिया मनला बहार डारिस अउ नहा धो के ओनहा मन ला तको फटकार के छत मा सुखो के आगे । कंघी करत करत कुरिया डाहर झाँकिस ,अभी दुनो लइका निंदिया रानी के कोरा मा मस्त माते रिहिन। नोनी रानी हर बारह बछर के रहिस अउ नानचुन बाबू ल ए साल नौ बछर हो जाही। ओखर गोंसइया सरवन हर घलो खटिया म करवट बदलत सुते रिहिस । आज ऊंखर छुट्टी ए त जम्मो झन अराम ले उठहीं, फेर महतारी मन के का छुट्टी अउ का डिप्टी। सबो दिन एक बरोबर लागथे, स्कूल,आफिस के छुट्टी रहिथे पेट ल तो सबो दिन भोजन चाही । हाँ फेर टाइम म करे के ओतेक हड़बड़ी नइ राहय, सावित्री ल ओखर गोंसइया हर देरी ले उठे बर कहिथे फेर सालों के आदत परे कइसे छूटही । नींद ह अपन टाइम म खुलेच जाथे।सावित्री हर सोझे नामे के सावित्री नोहय। अपन सत ले सत्यवान के परान यमराज ले मांग के लवइया सावित्री ले ओखर पत हर कोनो जिनिस म कमती नोहय । ओहर अपन गोसइया ले अबड़ मया करय, हारी बीमारी म बिकट सेवा करय । सास ससुर, घर परिवार के बड़ तोरा जतन करय तेखर पाय के जम्मो नता रिश्तेदार ओला बड़ मया करयँ । फेर कोनो के जिनगी हर पूरा नइ राहय , कोनो ल तन के दुख त कोनो ल मन के । सबके जिनगी म एकाध ठन कमी रहि जाथे। ज इसे गोड़ के पनही ल मुड़ म नइ पहिर सकयँ वइसनहेसरवन हर कतनो मया दय मइके के पूर्ति नइ कर सकय। छत्तीसगढ़ के बहिनी महतारी मन बर भादो के महीना हर खुशहाली लेके आथे काबर कि भादो के तृतीया म हरितालिका तीजा के तिहार आथे। एमा मइके ले बाप भाई मन ब्याहता बहिनी, फूफू ल लेहे बर जाथें । उमन मइके म निराहार बिना अन्न जल के उपास रहिथें अउ शंकर पार्वती के पूजा कर के अपन सुहाग ल अमर बनाय बर प्रार्थना करथें। दूसर दिन चौथ के भिनसरहे नहा धो पूजा पाठ करके मइके के नवा लुगरा पहिर के फरहार करथें। कका,बड़ा नाते रिश्तेदार घर तको फरहार करे के नेवता आथे। सबो बहिनी , फूफू संगे संग खाये पिये जाथें, बचपन के गोठ करथें, संगी जहुँरिया के सुरता करथें। अपन अतीत ल फेर जीथें। आजकल के भाई भौजी मन ए मरम ल नइ जानै , नेंग जोग ल फोकट के खर्चा कहिके बोझा मानथें। हजारों रूपिया गहना कपड़ा बर फूँक दिहीं फेर बहिनी ल देत खानी ऊँखर हाथ नइ खुलय । फेर ए घर बर तीजा हर त बिक्कट दुख के कारन बन जाथे।सावित्री अउ सरवन नानपन के संगी एके पारा म रहँय। एके स्कूल म संगे संग पढ़ें जाँय । दुनो परिवार म आना जाना घलो रिहिस। नान्हे पन के दोस्ती हर कब मया के रूप धर लीसा कोनो गम ना पाइन । ऊंखर संगी जहुंरिया मन तको नइ जानिंन दुनों झन के अंतस म का चुरत हे। सरवन के नौकरी लगे के बाद जब दुनों झन के घर मा बिहाव के गोठ बात होय लागिस तब ऊमन अपन घर म मया अउ बिहाव के गोठ ल गोठियाइन। आगबबूला होगे सावित्री के बाबूजी –” अइसनहा गोठियाय के तैं हिम्मत कइसे करे ? हमन मालगुजार अउ ओ बिसउहा हमर नौकर । ओहर मोर समधी बनही, मर जहूँ फेर ए गजब तमाशा नइ होन दंव “। बाबूजी हर अपन जिद म अड़े रिहिस , जात-पात के सुरसा हर सरवन-सावित्री के मया ल खाय बर मुँह फार दे रिहिस । सरवन अउ सावित्री बालिग होगे रिहिन भाग के बिहाव कर लिन। बाबूजी हर त भरे समाज म कहि दिस “आज ले मर गे सावित्री मोर बर “। बाप बर बहुतसरल रहिथे ए कहना , काबर के ओहर नौ महीना ओला अपन कोख म नइ धरे रहय । माँ हर बपरी अब्बड़ कलप-कलप रोइस –” मोर एक ठिन मयारू बेटी , चार भाई के बाद आय रिहिस । सबके जोरा करइया, एक ठिन गलती करिस तो ओखर सब गुण ल भुला देव । कतेक सउँख रिहिस बेटी के सुग्घर बिहाव करतेंव , बपरी ल अकेल्ला छोड़ दिस । सगा समाज बेटी के खुशी ले बड़े होगे । कोन आही सेवा करे,अपनेच खून काम आही । हाय रे ,मोर दुलउरीन बेटी ।”गौंटिया बाड़ा ले कपड़ा लत्ता अउ दिगर जरुरत के समान लेहे बर नौकर-चाकर रायपुर आत-जात रहँय। महतारी के मन नइ मानय, बेटी बर घर के दूध-दही ,साग भाजी , कपड़ा लत्ता कुछु कांही एक झन विश्वास पात्र जून्ना नौकर तिर भेजत राहय। ए गोठ ल सावित्री के बाबू ल कोनो दुश्मन बता दिस तो ओहर बिक्कट चिल्लाईस– “ तोला बड़ मया हे बेटी के त जा घर छोड़ के , उहें रहिबे “।अतेक बछर होगे बिहा के आये ए घर मा । सास-ससुर, ननद,देवर , लइका बाला सबके तोरा ल करेंव। फेर मोर कोनो मान नइहे। सब निर्णय खुदेच लेथें ,कभू मोर अंतस के पीरा ल नि समझिन। बेटी हर बनेच करिस,अइसन जीवन साथी खोजिस जउन ओखर मन ल समझिस, जउन जिंदगी भर ओखर कदर करही , मया करही । सावित्री के माँ हर बड़बड़ा के रहिगे।रिश्ता के मरजाद रखे बर कतनो महतारी अपन मन ल मार के रहि जाथें। सावित्री के माँ हर कइसनहो करके तीजा आय त बेटी बर लुगरा खच्चित भेजवातिस। साल भर मन ल मार के रहि जाय फेर तीजा म मन नइ मानय। दू बछर होगे बाप के कलेजा न इ पिघलिस। माँ हर जब ले सुने रिहिस सावित्री सरवन के घर बेटी आय हे , ओखर खुशी के ठिकाना नइ रिहिस । नतनीन ल देखे के सउँख हर ओला अतेक हिम्मत दिस के ए तीजा म ओहर बेटी के घर जाय के मन बना लिस। घर म गोठियाय ले कोनो चिटपोट नइ करिन। भाई मन तको लुका-लुका बहिनी ल भेंटें जांय फेर बाप के आघू म बोले के कोनो हिम्मत ना करँय। मां हर सावित्री तिर अपन जाय के गोठ कहिस त सावित्री के बाबू जी हर धमकाइस -” तैं उहाँ जाबे त मोर मरे मुख देखबे। “ कोन जानी गौंटनिन के मन म का रिहिस। तीजा के लुगरा लेहे बर जाथंव कहिके रायपुर जाय बर निकलिस । सोलह श्रृंगार करके मन भर के समान बेटी दमाद, नतनिन बर बिसाइस अउ बेटी के घर गिस। कतेक बछर के बाँधे मया आँसू के धार बन के बोहाय लागिस। मन भर दुनो झन दुख सुख गोठियाइन। बेटी ल खुश देख के दाई के जी जुड़ा गे । लहुटती खानी रद्दा के बड़े तरिया तिर गाड़ी ल रुकवाइस । नौकर मन ल थिराय बर कहिके एती ओती पठो दिस। फेर चुप्पे तरिया म उतर के जल समाधि ले लिस । गाँव भर गोहार परगे। सावित्री के बाबू हर ओखर लहाश ल देख के मूर्छा खाके गिर गे। होश आवय तो छाती पीट-पीट रोवय पछतावय । “ काबर अतेक बड़ कदम उठाए ,मैं मूरख अपन रुतबा, रुपिया पइसा अउ उच्च जात के घमंड म अपन घर के सत्यानाश कर डारेंव। तैं ए उमर ममोला अकेल्ला छोड़ के कइसे चल दे । तैं कहिते त अपन अहंकार ल छोड़ के महूं तोर संग सावित्री घर चल देतेंव..।” जम्मो झन इही गोठियात रिहिन अब का फायदा पछताय के ओखर प्रान के चिरैया हर त उड़ागे।सावित्री के तो जइसे जान निकलगे,बड़ मुश्किल से सरवन हर ओला सँभालिस , लइका के मुँह ल देख के सँभलगे नइते उहू पगला जाय रहितिस । सावित्री के माँ के जाय ले कई बेर ओखर बाबूजी हर ओला देवाय भेजिस फेर सावित्री नइ गिस । ओखर नाती नतनिन ले ओला दूरिहा नइ करिस । उमन ममाघर आथे जाथें, ममा मामी घलो आथें। हर बछर तीजा म लुगरा आथे फेर सावित्री ओला छुवय नहीं। एकेच ठन लुगरा ल पहिर के तीजा के दिन फरहार करथे जेला देहे बर ओखर माँ हर अपन जान दे दिस । तीजा के ओ लुगरा म सावित्री हर अपन माँ ले भेंट करथे साल म एक घं । महतारी के ममता भरे छुअन, मया अउ दुलार भरगे हे ओ लुगरा मा, ओखर प्रान समा गये हे ओ तीजा के लुगरा मा ।
- -लेखक- हरदीप एस पुरी, केन्द्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रीमुझे अपने स्कूल के दिनों से ही 15 अगस्त के भाषणों में भाग लेने का सौभाग्य प्राप्त होता रहा है, लेकिन शुक्रवार को प्रधानमंत्री मोदी का 12वें स्वतंत्रता दिवस का भाषण अभूतपूर्व और असाधारण था। इसमें विकसित भारत के पथ पर भारत की गति बढ़ाने के दिशा में सीधे तौर पर लक्षित–ब्रह्मास्त्र- अर्जुन का अकाट्य पौराणिक अस्त्रे - छोड़ा गया।वैश्विक अर्थव्यवस्था में व्या्प्त असामान्यअ उथल-पुथल के दौर के बीच, विकसित भारत का सपना संजोए भारत सबसे तेज़ी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में निरंतर आगे बढ़ना जारी रखे हुए है। यह भाषण केवल अपनी व्यापकता के लिए ही नहीं, बल्कि अपने दायरे— साहसिक, भविष्योन्मुखी और 1.4 बिलियन लोगों के भाग्य को नया आकार देने में सक्षम अगली पीढ़ी के सुधारों —और उस विजन के प्रति स्पष्टता के लिए भी उल्लेखनीय है, जिसका यह राष्ट्र इससे पहले कभी साक्षी नहीं रहा।उदाहरण के लिए, डिजिटल इंडिया स्टैक को ही लें, यूपीआई दुनिया के आधे रीयल-टाइम लेनदेन के लिए उत्तिरदायी है और साल के अंत तक होने वाला, पहली मेड-इन-इंडिया चिप का लॉन्च , वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था में भारत की अग्रणी स्थिति को दर्शाता है। ऐसे समय में जब राष्ट्रों की नियति सेमीकंडक्टर निर्धारित करते हैं, महत्वपूर्ण तकनीकों पर संप्रभुता का भारत का यह दावा किसी डिजिटल स्वराज से कम नहीं है।ऊर्जा सुरक्षा लंबे समय से भारत के विकास की राह की सबसे बड़ी कमज़ोरी रही है। दशकों तक, झिझक और “नो गो” क्षेत्रों ने अन्वेषण को बाधित किया और आयात पर निर्भरता बढ़ा दी। वह दौर अब बीत चुका है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में, भारत ने ईईजेड में “नो गो” क्षेत्रों को लगभग 99% तक कम कर दिया है, जिससे 10 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र ईएंडपी के लिए मुक्त हो गया है। ओएएलपी के साथ, इसने भारतीय और वैश्विक दिग्गजों, दोनों के लिए समान रूप से एक विशाल क्षेत्र खोल दिया है—हमारे हाइड्रोकार्बन बेसिन अब निष्क्रिय नहीं रहेंगे, बल्कि राष्ट्रीय प्रगति के लिए उपयोग में लाए जाएँगे।लाल किले की प्राचीर से घोषित ऐतिहासिक राष्ट्रीय गहरे जल अन्वेषण मिशन, बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में एक महत्वाकांक्षी दूरदर्शी एजेंडा निर्धारित करता है। इस मिशन का लक्ष्य लगभग 40 वाइल्डकैट कुओं की ड्रिलिंग के माध्यम से 600-1200 मिलियन मीट्रिक टन तेल और गैस भंडारों का पता लगाना है। पहली बार, बंगाल की खाड़ी से लेकर अरब सागर तक भारत अपनी जटिल अपतटीय सीमाओं को व्यवस्थित रूप से खोलेगा, एक ऐसे ढाँचे के साथ जो सूखे कुओं की स्थिति में 80 प्रतिशत तक और व्यावसायिक खोज पर 40 प्रतिशत तक लागत की वसूली की अनुमति देकर निवेश के जोखिम को कम करता है।यह पहल एक व्यापक योजना का हिस्सा है, जिसके तहत 2032 तक घरेलू तेल और गैस उत्पादन को तिगुना बढ़ाकर 85 मिलियन टन और राष्ट्रीय भंडार को दोगुना करके एक से दो बिलियन टन के बीच किया जा सकता है। लगभग 8 मिलियन टन उत्पादन के बराबर, अतिरिक्त 100-250 बिलियन क्यूिबिक मीटर गैस उपलब्ध कराने के लिए प्लग-एंड-प्ले आधार पर अपतटीय साझा बुनियादी ढाँचा बनाया जाएगा। ये सभी उपाय न केवल पहले से अटकी हुई खोजों का मुद्रीकरण करेंगे, बल्कि एक आत्मनिर्भर ईएंडपी इकोसिस्टटम का निर्माण भी करेंगे, जहाँ स्थानीय आपूर्ति श्रृंखलाओं की हिस्सेदारी आज के 25-30 प्रतिशत से बढ़कर 70 प्रतिशत से अधिक हो जाएगी। यह आज़ादी के बाद से भारत का सबसे व्यापक अपस्ट्रीम सुधार है।साथ ही, ऊर्जा परिवर्तन के क्षेत्र में भारत वैश्विक स्तमर पर अग्रणी बनकर उभरा है। भारत 2030 के लक्ष्य से पाँच साल पहले ही 2025 तक 50% स्वच्छ ऊर्जा के लक्ष्य तक पहुँच गया है। जैव ईंधन और हरित हाइड्रोजन प्रायोगिक स्तर से उत्पादन की ओर बढ़ रहे हैं; इथेनॉल मिश्रण और सीबीजी स्केल-अप एक नए ग्रामीण-औद्योगिक आधार का निर्माण कर रहे हैं; एलएनजी के बुनियादी ढाँचे का विस्तार जारी है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि असैन्य परमाणु ऊर्जा को निजी भागीदारी के लिए खोल दिया गया है। वर्तमान में, 10 नए परमाणु रिएक्टर चालू हैं, और भारत का लक्ष्य अपनी स्वतंत्रता के 100वें वर्ष तक अपनी परमाणु ऊर्जा क्षमता को दस गुना बढ़ाना है। यह महत्वाकांक्षी लक्ष्य 2047 तक ऊर्जा स्वतंत्रता प्राप्त करने की भव्य योजना का हिस्सा है।प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन की घोषणा हमारी औद्योगिक रणनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। ऐसे समय में जब दुनिया लिथियम, दुर्लभ मृदा तत्व , निकल और कोबाल्ट के सामरिक महत्व को पहचान रही है, भारत ने 1,200 से अधिक स्थलों पर अन्वेषण शुरू किया है और साझेदारी, प्रसंस्करण और पुनर्चक्रण का ढाँचा तैयार कर रहा है ताकि नवीकरणीय ऊर्जा, सेमीकंडक्टर, ईवी और उन्नत रक्षा क्षेत्र कभी भी बाहरी अवरोधों के अधीन न रहें।राष्ट्रीय सुरक्षा लाल किला चार्टर का एक अन्य, स्तंभ था। ऑपरेशन सिंदूर ने परमाणु ब्लैकमेल के युग का अंत करते हुए वास्तविक समय में भारत की सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया और यह संदेश दिया कि आक्रमण का जवाब तेज़ी और कुशलता से दिया जाएगा। सिंधु जल संधि को स्थेगित करना संप्रभुता का साहसिक दावा है। सबसे बढ़कर, मिशन सुदर्शन चक्र का अनावरण, युद्धभूमि में भगवान श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन की रक्षा से प्रेरित है, जो मोदी की शैली— सभ्यतागत प्रतीकवाद के अत्याधुनिक तकनीक से मेल का प्रतीक है।एक बहुस्तरीय स्वदेशी सुरक्षा कवच भारत के महत्वपूर्ण संस्थानों की साइबर, भौतिक और हाइब्रिड खतरों से रक्षा करेगा। प्रधानमंत्री ने हमारे लड़ाकू विमानों को शक्ति प्रदान करने वाले इंजनों के डिज़ाइन और निर्माण के लिए एक राष्ट्रीय चुनौती जारी की है, और वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और संस्थानों से संयोजन या असेंबली से ऑथरशिप तक की छलांग लगाने का आह्वान किया है।प्रधानमंत्री ने कठोर सत्यों से भी परहेज नहीं किया। उन्होंने उद्योग जगत और किसानों से आत्मनिर्भरता अपनाने और उर्वरकों का संतुलित उपयोग करने का आग्रह किया। हालाँकि भारत दुनिया की फार्मेसी है, जो वैश्विक टीकों का 60% का उत्पादन करता है, अब इसे नई दवाओं, टीकों और उपकरणों के क्षेत्र में भी अग्रणी बनने की दिशा में अग्रसर होना चाहिए। यह बायोई3 नीति के तहत बायोफार्मा को निर्णायक बल देने के साथ-साथ है, जहाँ हमारी महत्वाकांक्षा ऐसी दवाओं का पेटेंट और उत्पादन करना है जो किफायती और विश्वस्तरीय दोनों हों।घोषित किए गए कर और कानूनी सुधार भी उतने ही साहसिक हैं। महत्वसपूर्ण बात यह है कि 1961 का आयकर अधिनियम, जो स्वयं उस युग का अवशेष है, अब बदला जा रहा है। नया आयकर विधेयक जटिलता को कम कर रहा है, 280 अनावश्यक धाराओं को समाप्त कर रहा है और 12 लाख रुपये तक की राहत प्रदान कर रहा है। फेसलेस मूल्यांकन की शुरुआत ने प्रणाली को पारदर्शी, कुशल और भ्रष्टाचार-मुक्त बना दिया है।दिवाली तक लॉन्चल किया जाने वाला अगली पीढ़ी का जीएसटी 2.0, दरों को और अधिक तर्कसंगत बनाएगा और अनुपालन को बढ़ावा देगा। 40,000 से ज़्यादा अनावश्यक अनुपालनों को समाप्त करने, 1,500 से ज़्यादा पुराने कानूनों को निरस्त करने और दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता के साथ, यह नेहरू के आर्थिक पिंजरे को तोड़ने जैसा है। ये सुधार केवल बैलेंस शीट में ही नहीं, बल्कि जीवन में भी सुधार लाते हैं। 25 करोड़ से ज़्यादा लाभार्थियों तक पहुँचकर प्रत्यक्ष लाभ अंतरण - ने कल्याण में जवाबदेही को अंतर्निहित किया है और 25 करोड़ से ज़्यादा भारतीयों को गरीबी से बाहर निकाला है।रोज़गार पर फोकस को भी केंद्र में लाया गया है। पीएम विकसित भारत रोज़गार योजना 1 लाख करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ लॉन्चक की गई है; नए रोज़गार पाने वाले युवाओं को 15,000 रुपये प्रति माह मिलेंगे, नए रोज़गार के अवसरों का सृजन करने वाली कंपनियों को प्रोत्साहन दिया जाएगा, और इस कार्यक्रम का लक्ष्य लगभग 3.5 करोड़ युवा भारतीयों तक पहुँचना है।महत्वाकांक्षा को वास्तपविकता में बदलने के लिए प्रधानमंत्री ने अगली पीढ़ी के सुधारों के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया है—इस निकाय को आर्थिक गतिविधियों के पूरे इकोसिस्टसम को नया रूप देने के लिए बनाया गया है। इसका अधिदेश जितना साहसिक है, उतना ही लंबे अर्से से अपेक्षित भी है: हमारे स्टार्टअप्स और एमएसएमई पर बोझ डालने वाली अनुपालन लागत में कटौती करना, उद्यमों को निरंतर मनमानी कार्रवाई की छाया में रहने से छुटकारा दिलाना, तथा जटिल कानूनों को सरल, पूर्वानुमानित और व्यवस्थित ढांचे में ढालना।15 अगस्त को घोषित सुधार, केवल अगले दिन की सुर्खियों के लिए नहीं, बल्कि 2047 के भारत से संबंधित हैं। जैसा कि प्रधानमंत्री ने हमें याद दिलाया, दुनिया एक प्राचीन सभ्यता को - अपनी जड़ों को त्यागकर नहीं, बल्कि उनसे शक्ति प्राप्त करके आधुनिक शक्ति में तब्दी्ल होते हुए देख रही है।
- -लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)पार्थ लक्ष्य-दिग्भ्रमित खड़ा है , सही राह दिखलाओ ।चक्र सुदर्शन आज उठा फिर , नटवर नागर आओ ।।शीश उठाए भ्रष्ट आचरण , मर्यादा को तोड़े ।झूठ अहं छल के पाहन से, सच की गगरी फोड़े ।कंस दमित करता अपनों को , सत्ता-सुख को पाने ।दैत्य कुचलते हैं सपनों को , निज वर्चस्व बचाने ।जीवन-मूल्य ध्वस्त होते हैं , ज्ञान-मार्ग बतलाओ ।।रास रचाकर वृंदावन में , सबको नाच नचाया ।इंद्र- दर्प का मर्दन करने , पूजन बंद कराया ।गोपी मीरा राधा ने भी , कुछ खोया कुछ पाया ।केवल पाना प्रेम नहीं है , तुमने यह समझाया ।जटिल प्रेम की परिभाषा है , सरल इसे कर जाओ ।।मोह गिराता है महलों को ,खोकर सब कुछ रोते ।स्वार्थी चक्रव्यूह में फँसकर ,अपनों को हैं खोते ।लोभ-लालसा दुर्योधन की ,अब भी जग में पलती ।जरासंध-सी काम-पिपासा , ललनाओं को छलती।शील-हरण करता दुःशासन ,आकर चीर बढ़ाओ ।।राह गलत भी अपनाते हैं , लोग सफलता पाने ।तार-तार रिश्तों के रेशे , कर जाते अनजाने ।क्षणभंगुर है जीवन फिर भी , जाल स्वार्थ का बुनते ।कर्ण , भीष्म , शिशुपाल कई हैं , गलत पक्ष को चुनते ।कर्मफलों में सबका हिस्सा ,बात पुनः समझाओ ।।
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लेख : श्री नसीम अहमद खान, उप संचालक
रायपुर। कभी देश में नक्सलवाद के गढ़ के रूप में जाना जाने वाला बस्तर अब विकास, विश्वास और बदलाव की नई इबारत लिख रहा है। छत्तीसगढ़ सरकार के मजबूत राजनीतिक संकल्प और सुरक्षा बलों के संयुक्त प्रयासों से यहाँ शांति बहाल हो रही है और विकास तेज़ी से अपना पाँव पसार रहा है।मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में सरकार ने डेढ़ साल में ऐसा निर्णायक अभियान चलाया है कि नक्सलवाद अपनी अंतिम साँसें गिन रहा है। इस अवधि में 435 नक्सली मुठभेड़ों में मारे गए, 1,432 ने आत्मसमर्पण किया और 1,457 गिरफ्तार किए गए। सुरक्षाबल के जवानों ने माओवादियों के कंेद्रीय समिति के महासचिव बसवराजू को न्यूट्रलाईज करने में सफलता पाई है। बसवराजू माओवादी विचारधारा का केंद्र बिंदु था। बीजापुर के कर्रेगुड़ा में 31 नक्सलियों के मारे जाने को माओवादी आतंक के ताबूत में आखिरी कील माना जा रहा है।आत्मसमर्पण करने वालों के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने देश की सबसे बेहतर पुनर्वास नीति लागू की है। इसमें तीन वर्ष तक प्रतिमाह दस हजार रुपये स्टाइपेंड, कौशल विकास प्रशिक्षण, स्वरोजगार से जोड़ने की व्यवस्था तथा नकद इनाम व कृषि अथवा शहरी भूमि प्रदान करने का प्रावधान रखा गया है। सरकार का लक्ष्य है कि मार्च 2026 तक छत्तीसगढ़ को नक्सलवाद से मुक्त कर बस्तर को शांति और प्रगति की भूमि बनाया जाए। मुख्यमंत्री श्री साय का कहना है कि बस्तर में बंदूक की जगह अब किताब, सड़क और तरक्की की गूंज सुनाई दे रही है। हमारा लक्ष्य बस्तर को विकास के मार्ग में अग्रणी बनाना है।नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे के विकास को भी अभूतपूर्व गति प्रदान की गई है। आज़ादी के बाद पहली बार अबूझमाड़ के रेकावाया गाँव में स्कूल बन रहा है, जहाँ कभी माओवादी अपने स्कूल चलाते थे। हिंसा के कारण बंद पड़े लगभग 50 स्कूल पुनः खोले गए हैं, नए भवन तैयार हुए हैं और सुरक्षा कैंप खुलने के साथ-साथ शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएँ तेजी से पहुँच रही हैं। बिजली के मामले में भी बस्तर ने एक नया इतिहास रचा है, हिड़मा के पैतृक गाँव पूवर्ति समेत कई दुर्गम गाँवों में पहली बार विद्युत व्यवस्था पहुँची है। बीजापुर के चिलकापल्ली में 77 वर्षों बाद 26 जनवरी 2025 को पहली बार बिजली का बल्ब जला।बस्तर में सड़क निर्माण में भी उल्लेखनीय प्रगति हुई है, माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में 275 किलोमीटर लंबी 49 सड़कें और 11 पुल तैयार हो चुके हैं। केशकाल घाटी चौड़ीकरण व 4-लेन बाईपास निर्माण के साथ-साथ इंद्रावती नदी पर नया पुल बनने से कनेक्टिविटी आसान हुई है। रावघाट से जगदलपुर 140 किलोमीटर नई रेल लाईन परियोजना की स्वीकृति मिली है। इस परियाजना से बस्तर के विकास को चौमुखी प्रगति मिलेगी। बस्तर में के.के लाईन के दोहरीकरण का काम तेजी से कराया जा रहा है। तेलंगाना के कोठागुडेम से दंतेवाड़ा किरंदूल को जोड़ने वाली 160 किलोमीटर रेल लाईन का सर्वे अंतिम चरण में है इसका 138 किलोमीटर हिस्सा छत्तीसगढ़ में होगा, साथ ही 607 मोबाइल टावर चालू किए गए हैं जिनमें से 349 को 4जी में बदला गया है।दूरदराज़ गाँवों तक योजनाओं के लाभ पहुँचाने के लिए नियद नेल्ला नार अर्थात आपका अच्छा गाँव योजना लागू की गई है जिसके तहत 54 सुरक्षा कैंपों के 10 किलोमीटर के दायरे में 327 से अधिक गाँवों में सड़क, बिजली, स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र, राशन कार्ड, आधार कार्ड, किसान क्रेडिट कार्ड, प्रधानमंत्री आवास, मोबाइल टावर व वन अधिकार पट्टे जैसी सुविधाएँ दी जा रही हैं। नियद नेल्ला नार योजना के चलते 81 हजार से अधिक ग्रामीणों के आधार कार्ड, 42 हजार से अधिक ग्रामीणों के आयुष्मान कार्ड, 5 हजार से अधिक परिवारों को किसान सम्मान निधि, 2 हजार से अधिक परिवारों को उज्जवला योजना तथा 98 हजार से अधिक हितग्राहियों को राशन कार्ड प्रदाय किये गए है। इस योजना ने विश्वास का ऐसा वातावरण बनाया है कि कई गाँवों में पहली बार पंचायत चुनाव, ध्वजारोहण और सरकारी योजनाओं की पहुँच संभव हो पाई है।बस्तर की जीवन दायिनी इंद्रावती नदी पर प्रस्तावित महत्वाकांक्षी बोधघाट परियोजना को लेकर मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने प्रभावी पहल शुरू कर दी है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी से मुलाकात कर उन्होंने बोधघाट सिंचाई परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना में शामिल करने का आग्रह भी किया है। 50 हजार करोड़ रूपये की लागत वाली इस परियोजना के माध्यम से बस्तर अंचल में लगभग 8 लाख हेक्टेयर में सिंचाई सुविधा का विस्तार होगा और 200 मेगावाट विद्युत उत्पादन भी होगा। सिंचाई सुविधा के विस्तार हेतु इंद्रावती नदी और महानदी को जोड़ने का भी प्रस्ताव है।आर्थिक मोर्चे पर भी बस्तर में नए अवसर तैयार किए जा रहे हैं। तेंदूपत्ता मानक बोरे की दर 4000 से बढ़ाकर 5500 रूपये कर दी गई है, जिससे 13 लाख परिवारों को सीधा लाभ मिल रहा है। तेंदूपत्ता संग्रहकों के लिए श्री विष्णु देव साय की सरकार ने चरण पादुका योजना फिर से आरंभ की है, और 13 लाख तेंदूपत्ता संग्राहक परिवारों को इसका लाभ मिला रहा है। मुख्यमंत्री कौशल विकास योजना के तहत 90,273 युवाओं को प्रशिक्षित कर 39,137 को रोजगार मिला है। नई उद्योग नीति 2024-30 में बस्तर के लिए विशेष पैकेज है, जिसके तहत यहाँ स्थापित सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों को 45 प्रतिशत पूँजी अनुदान और आत्मसमर्पित नक्सलियों को रोजगार देने पर पाँच वर्षों तक 40 प्रतिशत वेतन सब्सिडी दी जा रही है। नागरनार स्टील प्लांट के सहायक उद्योगों को ध्यान में रखते हुए नियानार में नया औद्योगिक क्षेत्र विकसित किया जा रहा है।सांस्कृतिक और सामाजिक क्षेत्र में भी बस्तर नई पहचान बना रहा है। जहाँ कभी गोलियों की आवाज सुनाई देती थी, वहाँ अब “बस्तर ओलंपिक” और “बस्तर पंडुम” जैसे आयोजनों की धूम है। बस्तर ओलंपिक में 1.65 लाख से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया, वहीं बस्तर पंडुम में 47 हजार कलाकारों ने जनजातीय संस्कृति को वैश्विक मंच दिया। बैगा, गुनिया और सिरहा जैसे पारंपरिक जनजातीय जनों को 5000 रुपये वार्षिक सम्मान निधि दी जा रही है।सुरक्षा और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को मजबूत करने के लिए ‘बस्तर फाइटर्स’ बल में 3202 पदों का सृजन किया गया है, जिससे स्थानीय युवाओं को रोजगार मिलेगा और इलाके में सुरक्षा रहित गाँवों को संरक्षित किया जा सकेगा। एनआईए और एसआईए के माध्यम से माओवादियों के सप्लाई व फंडिंग नेटवर्क पर प्रभावी प्रहार हो रहा है।छत्तीसगढ़ सरकार के प्रयासों से बस्तर में विकास की नई किरण फैल रही है, और यह क्षेत्र अब शांति, विकास ओर समृद्धि का क्षेत्र बनता जा रहा है। मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय का कहना है कि बस्तर का विकास ही नवा छत्तीसगढ़ का आधार है। हमारा सपना है कि यहाँ का हर बच्चा पढ़े, हर युवा आगे बढ़े और हर गाँव विकास की मुख्यधारा में जुड़े। निश्चित ही बस्तर अब नई कहानी बयां कर रहा है। एक ऐसी कहानी जिसमें कभी भय और हिंसा थी, और आज उम्मीद और विकास की नई सुबह है। - भोजली गीत-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)खोंचा खोंचा भोजली, ले जा पाछू कान।आ ओ मोर जहूरिया, बनी जाबो मितान।।देवी मइया आ जहू, हमरो घरे दुआर।पाये बर आशीष हम, तोर करथन पुकार।माटी भर लव टोकनी, छींचव गेहूं धान।।आ ओ मोर जहूरिया, बनी जाबो मितान।।सँझा दिया बाती करव, गावव सेवा गीत।बाढ़य हरियर भोजली, मोरे मन के मीत।संगी मन झन छूटही, छूटय भले परान।।आ ओ मोर जहूरिया, बनी जाबो मितान।।देवी माँ के छाँव मा, भरे अन्न भंडार।रोग शोक हो दूरिहा, तुहर महिमा अपार।सुनता के अंजोर मा, सुख के नवा बिहान।आ ओ मोर जहूरिया, बनी जाबो मितान।।
- - 7 अगस्त 2025 को 95वीं जयंती पर विशेषराजनीति, उद्योग, समाजसेवा और जनकल्याण को नई दिशा देने वाले बाऊजी श्री ओमप्रकाश जिन्दल करोड़ों लोगों के प्रेरणास्रोत हैं। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि संकल्प, सेवा और समर्पण से कोई भी व्यक्ति समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकता है।7 अगस्त 1930 को हिसार के नलवा गांव के एक साधारण किसान परिवार में जन्मे श्री ओमप्रकाश जिन्दल ने अपनी दूरदृष्टि, मेहनत और लगन के बल पर शून्य से शिखर को छुआ। वे न केवल इस्पात उद्योग के पुरोधा माने जाते हैं, बल्कि गरीबों-जरूरतमंदों की सेवा में भी उन्होंने एक नया अध्याय रचा। वे गांव-गांव तक शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य आधुनिक सुविधाएं पहुंचाने के लिए आजीवन संघर्षरत रहे।बाऊजी ने जिन्दल ग्रुप की स्थापना कर भारत को औद्योगिक महाशक्ति बनने की दिशा में अग्रसर किया। लेकिन उनका दृष्टिकोण केवल व्यापार तक सीमित नहीं था—उन्होंने अपने संसाधनों को समाज के उत्थान में लगाया। स्कूल, कॉलेज, महिला प्रशिक्षण केंद्र, मेडिकल वैन, स्वास्थ्य शिविर समेत अनेक योजनाएं उनके सामाजिक सरोकारों का जीवंत उदाहरण हैं।हरियाणा सरकार में ऊर्जा मंत्री के रूप में उन्होंने 24 घंटे बिजली देने का सपना देखा। वे अक्सर कहते थे—"जो किसान दिनभर खेत में मेहनत करता है, वह रात को अंधेरे में क्यों रहे?" उनकी प्रेरणा से आज हरियाणा ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर है और हर गांव रोशन है।बाऊजी का मानना था कि शिक्षा ही समृद्धि का सबसे सशक्त माध्यम है। उन्होंने हिसार, दिल्ली, रायगढ़ जैसे अनेक स्थानों पर शैक्षिक संस्थानों की स्थापना की। विशेषकर बेटियों की शिक्षा के लिए वे अत्यंत प्रतिबद्ध थे। उनका विश्वास था—"बेटा पढ़ता है तो एक घर बसता है, लेकिन बेटी पढ़ती है तो दो घर बसते हैं।" इसी सोच से उन्होंने हिसार में विद्यादेवी जिन्दल स्कूल की स्थापना की, जो आज अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त संस्थान है।उनकी इसी विचारधारा को आगे बढ़ाते हुए उनके बेटे श्री नवीन जिन्दल ने ओ.पी. जिन्दल ग्लोबल यूनिवर्सिटी (सोनीपत) और ओ.पी. जिन्दल यूनिवर्सिटी (रायगढ़) जैसी संस्थाएं स्थापित कीं, जो आज विश्व स्तर पर भारत की शैक्षिक पहचान बन चुकी हैं। इनमें से ओ.पी. जिन्दल ग्लोबल यूनिवर्सिटी भारत की नंबर-1 प्राइवेट यूनिवर्सिटी के रूप में प्रतिष्ठित है।ओ.पी. जिन्दल ग्रामीण जनकल्याण संस्थान के माध्यम से शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सेवा की जो जोत जलाई गई है, वो लोगों को स्वस्थ और खुशहाल जीवन जीने के लिए प्रेरित कर रही है। बाऊजी का जीवन मेहनतकश वर्ग के प्रति समर्पित था—किसान, मजदूर, व्यापारी, महिला, युवा—हर वर्ग के कल्याण के लिए उन्होंने योजनाएं बनाईं और स्वयं धरातल पर उतरकर उन्हें लागू किया। वे कहते थे—"राजनीति सेवा का माध्यम है, न कि स्वार्थ का साधन।"हिसार से तीन बार विधायक और कुरुक्षेत्र से सांसद रहते हुए उन्होंने अपने हर कार्य में लोकहित को सर्वोपरि रखा। जनता से उनका संबंध आत्मीय था, और इसी आत्मीयता के कारण उन्हें आज भी "बाऊजी" कहकर श्रद्धा से याद किया जाता है।आज उनके सपनों को साकार करने में श्री नवीन जिन्दल उसी समर्पण के साथ जुटे हैं। वे शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण, कौशल विकास, महिला सशक्तिकरण और युवा उत्थान के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं। छत्तीसगढ़, ओडिशा और झारखंड में ओपी जिन्दल कम्युनिटी कॉलेज, कुरुक्षेत्र में महात्मा फुले इंटरनेशनल स्किल सेंटर, कुरुक्षेत्र इंटरनेशनल स्किल सेंटर, और करियर काउंसलिंग जैसी पहल युवाओं को आत्मनिर्भर भारत की ओर अग्रसर कर रही हैं।7 अगस्त 2025 को जब हम बाऊजी की 95वीं जयंती मना रहे हैं तो यह सिर्फ एक स्मरण नहीं, बल्कि उस महान आत्मा को श्रद्धांजलि देने का अवसर है, जिन्होंने अपने विचारों, कार्यों और सेवा से भारत के भविष्य को नई दिशा दी। आज देशभर से लोग उन्हें श्रद्धा से याद कर रहे हैं और उनके दिखाए रास्ते पर चलकर राष्ट्र निर्माण में योगदान देने की प्रेरणा ले रहे हैं।
- -कहानी-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)आज मानस भैया रिद्धिमा की शादी का आमंत्रण पत्र लेकर आये थे । रिद्धिमा ...मेरे बड़े भैया महेशकान्तशर्मा की बेटी है। बड़े भैया स्वयं आने की हिम्मत नहींकर पाये थे ....इसलिए शायद छोटे भैया यहाँ थे । शोभाकी मनःस्थिति विचलित सी हो गई थी । यंत्रचालितमशीन की तरह भैया को चाय - नाश्ता देकर सामान्यव्यवहार निभाती रही ..पर मन किसी चुलबुले बच्चे कीतरह अतीत के झरोखों में झाँकने की चेष्टा करता रहा ।उसकी स्थिति भुरभुरी मिट्टी के मेंड़ से बंधे उस खेत कीतरह हो रही थी जिसमें पानी भरा हो ....मिट्टी का कण-कण जल अवशोषित कर ढीला होता जा रहा था..न जाने कब खेत का पानी मेंड़ को भी अपने साथ बहा लेजाये । अतीत की यादों का प्रबल वेग उसके वर्तमानको उड़ा ले जाने को बेकरार था पर मानस भैया औरघर के अन्य सदस्यों की उपस्थिति उसे वर्तमान में रोकेहुए थी ।सबके इधर - उधर हो जाने के बाद निमंत्रण पत्र देखने बैठी तो लगा जैसे किसी जादूगर का जादुईशीशा देख रही हो...अक्षर धुंधले पड़ने लगे और उसेअपना घर , माँ , पिताजी , भाइयों का लाड़ भरा आँगनदिखने लगा । पूरे घर में चहकने वाली चंचल , अल्हड़शोभा दिखने लगी जो तरह - तरह के सपने देखा करतीथी ...आसमान में उड़ने , भौरों की तरह गुनगुनाने , मानस भैया की तरह खूब पढ़ - लिख कर कुछ बननेके सपने.....लगभग बीस वर्ष पहले की बात है...तबलड़कियों की शिक्षा उतनी जरूरी नहीं मानी जाती थी..बन्दिशों भरी दिनचर्या होती थी ...फिर भी पिता का स्नेह उम्मीद बंधाता था कि उसे अवसर जरूर मिलेगा...आगे बढ़ने , अपनी ख्वाहिशें पूरी करने का , अपने सपनों में रंग भरने का । महेश भैया को पढ़ाई में विशेषरुचि नहीं थी इसलिए वे जल्दी ही पिताजी का व्यवसायसम्भालने लगे । मानस भैया शहर में इंजीनियरिंग कीकी पढ़ाई कर रहे थे । उनके द्वारा शहर की लड़कियोंकी समझदारी व आगे पढ़ने की जानकारी शोभा के मनमें भी उच्च शिक्षा प्राप्त करने की हसरत जगाने लगी ।जब वह बारहवीं में थी , बीमारी की वजह सेपिताजी का देहांत हो गया । भैया पर पूरे घर की जिम्मेदारी आ गई । वह दिन उसकी जिंदगी का सबसेमनहूस दिन था जब उसकी प्रायोगिक परीक्षा थी , परीक्षा खत्म होने की खुशी में उन्होंने खूब मस्ती , हुड़दंग किया । पता नहीं कहाँ से भैया ने उसे मनीषके साथ हँस - हँस कर बातें करते हुए देख लिया ...फिर तो उन्होंने हंगामा खड़ा कर दिया औरउसकी आगे की पढ़ाई बन्द करने का ऐलान कर दिया..शोभा की तो मानो जिंदगी ही रुक गई....उसके जीने का उद्देश्य ही न रहा ....उसके सपनों का महल बननेके पहले ही बिखर गया था ...एक खूबसूरत फूल खिलकर अपनी खुशबू बिखेरता , उसके पहले ही उसपौधे की जड़ें खींच दी गई थी । एक छोटी सी उम्मीदबाकी थी कि बारहवीं का परीक्षाफल देख कर कहींभैया पिघल जायें ; सचमुच उसने बहुत अच्छे अंक पाये थे पर वह भैया के अडिग निर्णय को बदलने मेंसफल नहीं हुए । भाभी और मानस भैया चाहकर भीभैया को नहीं मना पाये ।भैया उम्र में शोभा से बहुत बड़े थे इसलिए वहभी कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाई लेकिन उसनेभैया से बात करना बंद कर दिया ; वैसे उसे यह एहसासथा कि भैया की उससे कोई दुश्मनी नहीं है ...यह निर्णयतो उस समय के पुरूष समाज का एक स्त्री के प्रतिनजरिये की परिणति थी । कई बार उसने अपने आपकोखत्म कर देने के बारे में सोचा किन्तु दिमाग ऐसी कायराना हरकत करने के लिए तैयार नहीं हुआ । हाँ ,यह इच्छाशक्ति जरूर बलवती होती गई कि शिक्षा कीजो मशाल अपने लिए न जला पाई , कभी अवसर मिला तो दूसरों के लिए अवश्य जलायेगी । सूरज नसही , एक दिया बनकर कुछ अंधेरा तो मिटाया ही जासकता है ।भैया ने अपनी अन्य जिम्मेदारियाँ अच्छी तरहनिभाई थी । शोभा का विवाह एक सभ्य , सुसंस्कृतपरिवार में रमेश के साथ धूमधाम से हुआ । समय केसाथ वह अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों में बंधतीचली गई । शिक्षा के प्रति उसका लगाव रमेश कीनिगाहों से छुप नहीं सका था । उदारमना रमेश नेशोभा को उसकी पढ़ाई पूरी करने की प्रेरणा दी । बच्चोंके लालन -पालन में उसका सहयोग कर पढ़ने काअवसर प्रदान किया । दोनों बच्चों की परवरिश केसाथ - साथ शोभा पढ़ाई भी करती रही । समय के जैसेपर लग गये ....भैया की दोनों लड़कियाँ बड़ी हो गई ...भैया ने उन्हें पढ़ाया , बड़ी बेटी रिद्धिमा ने तो दो वर्ष शोभा के पास रहकर ही उच्च शिक्षा प्राप्त की ।शोभा ने कभी भी भैया के प्रति अपनी नाराजगी भाभीया बच्चों पर जाहिर नहीं किया । अपने बच्चों के साथसाथ उसने रिद्धिमा का भी बहुत ध्यान रखा । एम. बी.ए. की पढ़ाई पूरी कर रिद्धिमा पुणे के एक संस्थान मेंनौकरी भी करने लगी ।पुणे जाने के कुछ समय बाद जब रिद्धिमा नेशोभा को फोन पर अपनी पसंद के बारे में बताया तोवह स्तब्ध रह गई थी । पुरातन विचारधारा वाले भैयाक्या रिद्धिमा के इस प्यार को अपनायेंगे ...इसी उधेड़बुन में फँसकर रह गई थी वह । फिर से बरसों पुरानी चोट में टीस उठने लगी थी ।आज रिद्धिमा की शादी का कार्ड देखकर वहभैया का निर्णय जान गई थी....कल और आज में कितना फर्क आ गया है । कल जिस भैया ने एक लड़केके साथ बातें करते देखकर उसकी पढ़ाई बन्द करवा दी थी , आज बड़े गर्व के साथ अपनी बेटी के प्यार को अपना रहे हैं । उन्होंने अपनी बेटियों को उच्च शिक्षादिलाई , नौकरी करने बाहर भेजा , उन्हें अपना जीवनसाथी चुनने का अवसर दिया ...क्या बड़े भैयासचमुच बदल गये हैं या उनका रूढ पन सिर्फ शोभाके लिए ही था । बेटी और बहन में भेद कर ही दिया नउन्होंने....शोभा का गुस्सा आँसुओं के रूप में ढल रहाथा और उसके हाथों में रखा कार्ड भीग गया था ।आखिर किसे दोष दे वह ? भैया को , उस समाज को या काल चक्र को ! पहले जहाँ लड़कियाँएक टुकड़ा आसमान को तरस जाती थीं , आज उनकेउड़ने के लिए खुला आसमान है...जिस पीड़ा को उसनेमन की कई परतों के भीतर राख में दबी चिंगारी कीतरह छुपा रखा था ...आज वह उभर आई थी और उसके तन - मन को बेचैन कर रही थी । इतने दिनों तकमौन रही पर अब मुखर होने का वक्त आ गया है ।रिद्धिमा की शादी में न जाने का निर्णय लेकर शोभा नेबच्चों को पहले ही शामिल होने मामा के घर भेज दिया था ।उनके जाने के दो दिन बाद फोन पर भैया कीआवाज सुनकर शोभा स्तम्भित सी खड़ी रह गई । वर्षोंबाद भैया ने उससे प्रत्यक्ष रूप से बात की थी ; नहीं तोभाभी , बच्चे या छोटे भैया के माध्यम से ही उनकीबातें उस तक पहुँचती थी । वे कह रहे थे - शोभा , मैंजीवन भर तुम्हारे प्रति किये गये अपने उस गलत फैसले का दंश झेल रहा हूँ ...मुझे अपराधबोध है इसीलिए अपनी दोनों बेटियों को पढ़ने , नौकरी करनेका अवसर देकर मैंने अपनी उसी गलती का पश्चातापकिया है । रिद्धिमा के प्यार को स्वीकृति भी अपने उसरूढ़िग्रस्त मन को हराने के लिए प्रदान की है जिसनेतुम्हारे होठों से हँसी छीन ली ....मैं तुम्हारे उन पलों कोतो वापस नहीं ला सकता , लेकिन तुम हमेशा खुश रहो,ईश्वर से यह यह प्रार्थना करता रहा हूँ । हो सके तोमुझे माफ कर देना और शादी में अवश्य शामिल होना।रिद्धिमा मेरी बेटी है लेकिन उसकी असली पहचान तुमहो , उसकी हर सफलता में मैंने तुम्हारी मुस्कान देखीहै और उसकी हर मुस्कान में तुम्हारी झलक ...रिद्धिमाके साथ मैंने तुम्हें एक बार फिर से बढ़ते हुए देखा है ..तुम्हारी भावनाओं को समझने की कोशिश की है , तुम्हारे सपनों में रंग भरने का प्रयास किया है ...रिद्धिमा को तुम्हारा ही पुनर्जन्म मानकर उसे उसी तरह बढ़नेदिया जिस तरह तुम बढ़ना चाहती थी ...तुम्हारे लियेजो न कर सका उसके लिये करके अपनी गलती कापश्चाताप करने की कोशिश की है ; पता नहीं इसमें सफल हो पाया कि नहीं .....भैया का गला रुंध गया था...शायद उनकी आँखों से आँसू बह निकले थे ।शोभा के अन्तस् में जमा अवसाद पिघल रहाथा....अपनी पीड़ा रूपी जिन जलकणों को बर्फ कीतरह जमा कर उसने अंतर्मन की गहराइयों में फेंक दिया था , आज वह भैया के पश्चाताप की ऊष्मा पाकर पिघल रहे थे और शोभा कीआँखों के रास्ते बरस रहे थे । बारिश के बाद धुलेपत्तों की तरह उसका मन भी शांत हो गया था । भैयाका यह पश्चाताप उसके तन - मन को पुलकित करगया था और वह शीघ्र ही मायके पहुँच कर भैया को भीअपराधबोध के उस पिंजरे से मुक्त कर देना चाहती थीजिसकी चाबी थी उसकी उन्मुक्त हँसी ।
- आलेख- धर्मेन्द्र प्रधान, केंद्रीय शिक्षा मंत्री- राष्ट्रीय शिक्षा नीति के पाँच वर्ष पूरे होने पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने कहा कि भाषा के चयन से लेकर कौशल पर बल तक, इसकी अवधारणाओं ने कक्षा के अनुभव को मूल रूप से बदलदिया है2020 में भारत ने केवल एक नई नीति नहीं अपनाई, बल्कि एक प्राचीन आदर्श को फिर से जीवंत किया। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) ने सीखने को राष्ट्र निर्माण का आधार बनाया और इसे हमारी सभ्यतागत परंपराओं से जोड़ा। स्वर्गीय डॉ. के. कस्तूरीरंगन जी के नेतृत्व में तैयार की गई यह नीति इतिहास की सबसे व्यापक जन-सहभागिता वाली नीति-निर्माण प्रक्रिया में से एक थी। यह एक ऐसा दूरदर्शी रूपरेखा थी जो सांस्कृतिक मूल्यों में निहित था। यह एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था की कल्पना थी जो रटने की प्रवृत्ति, कठोर ढाँचों और भाषाई ऊँच-नीच से परे हो—समावेशी, सर्वांगीण और भविष्य के लिए तैयार।पाँच वर्षों में NEP का असर केवल नीतियों तक नहीं, बल्कि कक्षाओं तक स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। अब प्राथमिक कक्षाओं में खेल आधारित शिक्षण, रटने की पद्धति की जगह ले चुका है; बच्चे अपनी मातृभाषा में सहजता से पढ़ रहे हैं; छठी कक्षा के विद्यार्थी व्यावसायिक प्रयोगशालाओं में हाथों-हाथ कौशल सीख रहे हैं। अनुसंधान संस्थानों में भारत का पारंपरिक ज्ञान आधुनिक विज्ञान के साथ संवाद कर रहा है। NEP की सोच STEM क्षेत्रों में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी और वैश्विक मंचों पर भारतीय संस्थानों की उपस्थिति में भी झलकती है।निपुण भारत मिशन (NIPUN Bharat Mission) ने बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान को कक्षा 2 तक सुनिश्चित किया है। ASER 2024 और परख (PARAKH) राष्ट्रीय सर्वेक्षण 2024 जैसी रिपोर्टों में यह प्रगति परिलक्षित होती है—आज की कक्षाएं जिज्ञासा और समझ का केंद्र बन चुकी हैं। विद्या प्रवेश और बालवाटिका जैसी पहलें अब प्रारंभिक बाल्यावस्था की देखभाल और शिक्षा को व्यवस्थित रूप से एकीकृत कर रही हैं। 22 भारतीय भाषाओं में जादुई पिटारा और ई-जादुई पिटारा, नई पीढ़ी की पाठ्यपुस्तकों के साथ, शिक्षा को रुचिकर बना रहे हैं। NISHTHA प्रशिक्षण के माध्यम से 14 लाख से अधिक शिक्षक प्रशिक्षित हो चुके हैं और DIKSHA जैसे प्लेटफॉर्म शिक्षण सामग्री को देशभर में सुलभ बना रहे हैं।NEP ने यह स्पष्ट किया कि भाषा कोई बाधा नहीं, बल्कि सशक्तिकरण का माध्यम है। 117 भाषाओं में प्राइमर विकसित किए गए हैं और भारतीय सांकेतिक भाषा को एक विषय के रूप में शामिल किया गया है। भारतीय भाषा पुस्तक योजना और राष्ट्रीय डिजिटल भंडार (National Digital Depository) for Indian Knowledge Systems जैसी योजनाएं भाषाई और सांस्कृतिक ज्ञान को लोकतांत्रिक बना रही हैं।National Curriculum Framework (NCF) और कक्षा 1 से 8 की नई किताबें अब जारी हो चुकी हैं। प्रेरणा (PRERNA) एक सेतु कार्यक्रम है जो छात्रों को नई पाठ्यचर्या में सहजता से ढालने के लिए मार्गदर्शन करता है, ताकि वे अभिभूत न हों, बल्कि हर चरण में सहयोग प्राप्त करें।समग्र शिक्षा (Samagra Shiksha) और पीएम पोषण (PM Poshan) जैसी योजनाओं ने लगभग सार्वभौमिक नामांकन को संभव बनाया है। NEP का प्रभाव वंचित समूहों तक भी पहुँचा है। 5,138 से अधिक कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों में 7.12 लाख से अधिक वंचित समुदायों की बालिकाएं नामांकित हैं। धर्ती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान के तहत 692 और PVTG छात्रों के लिए 490 से अधिक छात्रावास स्वीकृत किए गए हैं। प्रशस्त कार्यक्रम के माध्यम से दिव्यांगता की पहचान कर शिक्षा व्यवस्था को और अधिक समावेशी व सशक्त बनाया गया है।NEP 2020 के परिवर्तन का एक प्रमुख स्तंभ हैं 14,500 पीएम-श्री स्कूल (PM SHRI Schools), जो आधुनिक, समावेशी और पर्यावरण के अनुकूल हैं। ये विद्यालय NEP के विजन के अनुरूप आदर्श मॉडल स्कूल बन रहे हैं, जो बुनियादी ढाँचे और शिक्षण पद्धति दोनों को पुनर्परिभाषित कर रहे हैं। विद्यांजलि प्लेटफॉर्म ने 8.2 लाख स्कूलों को 5.3 लाख से अधिक volunteers और 2,000 CSR पार्टनर्स से जोड़ा है, जिससे 1.7 करोड़ छात्रों को सीधा लाभ मिला है।उच्च शिक्षा में कुल नामांकन 3.42 करोड़ से बढ़कर 4.46 करोड़ हो गया है—30.5% की बढ़ोत्तरी। इनमें लगभग 48% छात्राएं हैं। महिला PhD नामांकन 0.48 लाख से बढ़कर 1.12 लाख हो गया है। SC, ST, OBC और अल्पसंख्यक छात्रों का बढ़ता नामांकन उच्च शिक्षा में समावेशिता का ऐतिहासिक संकेत है। महिला GER लगातार छह वर्षों से पुरुषों से अधिक रहा है।मल्टीपल एंट्री-एग्जिट, Academic Bank of Credits, और National Credit Framework जैसे नवाचारों ने शिक्षा को विकल्पों से भरपूर और छात्र-केंद्रित बनाया है। 21.12 करोड़ APAAR IDs उपलब्ध कराई गईहैं। 153 विश्वविद्यालयों में मल्टीपल एंट्री और 74 में एग्जिट विकल्प उपलब्ध हैं—अब सीखना क्रमबद्ध नहीं, बल्कि मॉड्यूलर है।NEP के अनुसंधान और नवाचार पर ज़ोर ने भारत के Global Innovation Index को 81वें स्थान से 39वें तक पहुंचाया है। 400 से अधिक उच्च शिक्षा संस्थानों में 18,000 से अधिक स्टार्टअप इनक्यूबेट किए गए हैं। अनुसंधान NRF, PMRF 2.0, और ₹6,000 करोड़ की वन नेशन वन सब्सक्रिप्शन योजना शोध को विकेंद्रीकृत और सुलभ बना रही हैं।Swayam और Swayam Plus जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर 5.3 करोड़ से अधिक नामांकन हो चुके हैं। DIKSHA और PM e-Vidya के 200+ DTH चैनलों के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण सामग्री देश के हर कोने में उपलब्ध हो रही है। द्विवार्षिक प्रवेश, डुअल डिग्री जैसी व्यवस्थाएं उच्च शिक्षा को और अधिक समावेशी, बहुविषयक और उद्योगोन्मुखी बना रही हैं। QS वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2026 में भारत के 54 संस्थान शामिल हुए हैं, जबकि 2014 में केवल 11 थे। Deakin, Wollongong, और Southampton जैसे वैश्विक विश्वविद्यालय भारत में कैंपस स्थापित कर रहे हैं।परिवर्तन की इस यात्रा का उत्सव अखिल भारतीय शिक्षा समागम के माध्यम से मनाया जा रहा है, लेकिन इसका मूल्यांकन शिक्षार्थियों, शिक्षकों और अभिभावकों के शांत आत्मविश्वास में हो रहा है। हमें अपने परिसरों को हराभरा बनाना, महत्वपूर्ण अनुसंधान अवसंरचना का विस्तार करना और सीखने के परिणामों को और अधिक गहरा करना जारी रखना होगा। प्रधानमंत्री के नेतृत्व में शिक्षा केवल एक नीति नहीं, बल्कि सबसे बड़ा राष्ट्रीय निवेश बन चुकी है। जहाँ शिक्षा है, वहीं प्रगति है। एक अरब जागरूक और सशक्त नागरिक केवल जनसांख्यिकीय लाभांश नहीं हैं, बल्कि नए भारत का सुपरनोवा हैं।
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आलेख- डॉ. जितेन्द्र सिंह, केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार); पृथ्वी विज्ञान और प्रधानमंत्री कार्यालय, परमाणु ऊर्जा विभाग, अंतरिक्ष विभाग, कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन राज्य मंत्री
आम आदमी के क्षितिज को अनुप्राणित करती है भारत की अंतरिक्ष यात्रा ।इसकी शुरुआत बमुश्किल दिखाई दे रही एक दरार से हुई—जो फाल्कन-9 बूस्टर की प्रेशर फीडलाइन के वेल्ड जॉइंट में छिपी हुई थी। यह अंतरिक्ष उड़ान की विशाल मशीनरी में संभवत: एक छोटी सी खामी रही होगी। लेकिन भारत के लिए, यह निर्णायक घड़ी थी। इसरो के हमारे सचेत और अटल वैज्ञानिकों ने जवाब माँगा। उन्होंने कामचलाऊ उपायों की बजाए,मरम्मत पर ज़ोर दियाऔर ऐसा करके, उन्होंने न सिर्फ़ एक मिशन की रक्षा की बल्कि—एक सपने की भी हिफाजत की ।उस सपने ने 25 जून, 2025 को उड़ान भरी, जब भारतीय वायु सेना के अधिकारी और इसरो-प्रशिक्षित अंतरिक्ष यात्री, ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला, एक्सिओम-4 मिशन के ज़रिए कक्षा में पहुँचे। एक दिन बाद अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) से जुड़कर, वह —न सिर्फ़ अंतरिक्ष में, बल्कि मानव-केंद्रित विज्ञान, चिकित्सा और प्रौद्योगिकी के भविष्य में भीभारत की अगली बड़ी छलांग का चेहरा बन गए।यह कोई रस्मीे यात्रा नहीं थी। यह एक वैज्ञानिक धर्मयुद्ध था। शुक्ला अपने साथ सात माइक्रोग्रैविटीप्रयोग लेकर गए थे। इनमें से प्रत्येक प्रयोग को भारतीय शोधकर्ताओं ने उन सवालों के उत्तबर जानने के लिए सावधानीपूर्वक डिज़ाइन किया था, जो न केवल अंतरिक्ष यात्रियों के लिए, बल्कि हमारे समूचे देश के किसानों, डॉक्टरों, इंजीनियरों और छात्रों के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।अंतरिक्ष में मेथी और मूंग के बीजों के अंकुरित होने के बारे में विचार कीजिए। यह सुनने में सरल, लगभग काव्यात्मक प्रतीत होता है। लेकिन इसके निहितार्थ गहरे हैं। अंतरिक्ष यान के सीमित क्षेत्र में, जहाँ पोषण का प्रत्ये्क ग्राम मायने रखता है, वहाँ यह समझना कि माइक्रोग्रैविटीमें भारतीय फसलें कैसे व्यवहार करती हैं, लंबी अवधि के मिशनों के लिए चालक दल के आहार को नए सिरे से परिभाषित कर सकता है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह पृथ्वी पर, विशेष रूप से मृदा क्षरण और जल की कमी से जूझ रहे क्षेत्रों में, ऊर्ध्वाधर खेती और हाइड्रोपोनिक्स में नवाचारों को प्रेरित कर सकता है।इसके अलावा भारतीय टार्डिग्रेड्स का अध्ययन—इन सूक्ष्म जीवों को इनकी मजबूती के लिए जाना जाता है। सुप्तावस्था से जागे इन सूक्ष्म जीवों का अंतरिक्ष में जीवित रहने, प्रजनन और जेनेटिक एक्सरप्रेशन की दृष्टि से अवलोकन गया। उनका व्यवहार जैविक सहनशक्ति के रहस्यों को उजागर कर सकता है, जो टीके के विकास से लेकर जलवायु-प्रतिरोधी कृषि तक, हर चीज़ में सहायक हो सकता है।शुक्ला ने मायोजेनेसिस प्रयोग भी किया। इस प्रयोग में इस बात की पड़ताल की गई कि मानव मांसपेशी कोशिकाएँ अंतरिक्ष की परिस्थितियों और पोषक तत्वों के प्रति कैसी प्रतिक्रिया देती हैं। ये निष्कर्ष मांसपेशीय क्षय के उपचार में क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं, जिससे न केवल अंतरिक्ष यात्रियों को, बल्कि वृद्ध रोगियों और आघात या ट्रामा से उबर रहे लोगों को भी लाभ होगा।अन्य जारी प्रयोगों में सायनोबैक्टीरिया की वृद्धि—ये ऐसे जीव हैं, जो संभवत: किसी दिन अंतरिक्ष में जीवन-रक्षक प्रणालियों की सहायता कर सकते हैं—तथा चावल, लोबिया, तिल, बैंगन और टमाटर जैसे भारतीय फसलों के बीजों का माइक्रोग्रैविटीके संपर्क में आना शामिल है।इन बीजों को पीढ़ी दर पीढ़ी उगाया जाएगा ताकि वंशानुगत परिवर्तनों का अध्ययन किया जा सके, जिससे संभावित रूप से चरम वातावरण के अनुकूल नई फसल किस्में विकसित हो सकें।यहाँ तक कि मानव-मशीन संपर्क को भी परखा गया। शुक्ला ने यह समझने के लिए वेब-आधारित आकलन किया कि इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले के साथ बातचीत करने की हमारी क्षमता को माइक्रोग्रैविटी किस प्रकार प्रभावित करती है - जो भविष्य के अंतरिक्ष स्टेशनों और अंतरिक्ष यान के लिए सहज ज्ञान युक्त इंटरफेस डिजाइन करने के लिए एक महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि है।ये कोई अमूर्त प्रयास नहीं हैं। ये समाज के लिए विज्ञान के भारतीय लोकाचार में गहराई से निहित हैं। एक्सिओम-4 का हर प्रयोग पृथ्वी पर जीवन को प्रभावित करने की क्षमता रखता है—चाहे वह ओडिशा का कोई जनजातीय किसान हो, शिलांग का कोई स्कूली बच्चा हो, या लद्दाख का कोई फ्रंटलाइन डॉक्टर हो।इस मिशन ने वैश्विक अंतरिक्ष कूटनीति में भारत के बढ़ते कद को भी दर्शाया। सुरक्षा प्रोटोकॉल पर हमारे द्वारा ज़ोर दिए जाने ने स्पेसएक्स को एक संभावित विनाशकारी खामी की पहचान करने और उसे ठीक करने में मदद की। नासा, ईएसए और एक्सिओम स्पेस के साथ हमारा सहयोग समान साझेदारी के एक नए युग को दर्शाता है, जहाँ भारत केवल भाग ही नहीं ले रहा है, बल्कि नेतृत्व भी कर रहा है।पूरे मिशन के दौरान, इसरो के फ़्लाइट सर्जनों ने शुक्ला के स्वास्थ्य पर नज़र रखते हुए उनकी शारीरिक और मानसिक सेहत का ध्यान रखा। वे पूरे जोश में रहे और लखनऊ से लेकर त्रिवेंद्रम, बैंगलोर से लेकर शिलांग तक, पूरे भारत के छात्रों से बातचीत करते रहे और युवा मन में विज्ञान और अंतरिक्ष की संभावनाओं के प्रति उत्साह जगाते रहे।शुक्ला अब लौट आए हैं, और वह अपने साथ प्रचुर मात्रा में डेटा, नमूने लाए हैं और उनके द्वारा लाई गई अंतर्दृष्टि भारत के आगामी गगनयान मिशन और भारत अंतरिक्ष स्टेशन को शक्ति प्रदान करेगी।यह सिर्फ़ एक अंतरिक्ष यात्री की बात नहीं है। यह एक राष्ट्र के उत्थान की बात है। यह अंतरिक्ष विज्ञान को जनसेवा में बदलने की बात है। यह माइक्रोग्रैविटीअनुसंधान के लाभ भारत के कोने- कोने तक —दूरदराज के गाँवों में सैटेलाइट इंटरनेट से लेकर शहरी अस्पतालों में पुनर्योजी चिकित्सा तक पहुँचाना सुनिश्चित करने की बात है ।हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शब्दों में, गगनयान का आशय है किसी भारतीय को भारतीय साधनों के द्वारा अंतरिक्ष में पहुँचाना। एक्सिओम-4 एक पूर्वाभ्यास है, अवधारणा का प्रमाण है, आकांक्षा और उपलब्धि के बीच का सेतु है।और जब हम तारों को देखते हैं, तो हम उन्हेंभ सिर्फ़ अचरज भरी निगाहों से ही नहीं निहारते, बल्कि इरादे से देखते हैं। क्योंकि भारत के लिए आकाश कोई सीमा नहीं, बल्कि प्रयोगशाला है। -
-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
छत्तीसगढ़ की संस्कृति पौराणिक , धार्मिक लोकगाथाओं से समृद्ध है । यहाँ की वसुंधरा बहुमूल्य खनिजों के साथ साथ तीज - त्यौहार , रीति - रिवाज व परम्पराओं की सोंधी महक से सुवासित है । छत्तीसगढ़ में त्यौहारों का विशेष महत्व है । सूखी धरती पर बारिश की फुहार की तरह हैं ये त्यौहार जो हमारे अंतर्मन को भिगो जाते हैं । तीज - त्यौहार और परम्पराएं लोक के मानस से जुड़ी हैं और जीवन को अद्भुत रस प्रदान करती हैं । आस्था , पवित्रता , भक्तिऔर विश्वास जनमानस को अपनी परम्पराओं से जोड़े रखती हैं । अगर ये त्यौहार न होते तो हमारा जीवन बेरंग हो जाता । इनके बहाने मिलना - जुलना , आपसी प्रेम , भाईचारे की भावना में वृद्धि होती है , पारिवारिक रिश्ते प्रगाढ़ होते हैं , सामाजिक संरचना मजबूत होती है।हमारे सारे त्योहारों , परम्पराओं के पीछे कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं जो मनुष्य को नैतिक मूल्यों की शिक्षा प्रदान करती हैं , परिवार में बुजुर्गों की महत्ता प्रतिपादित करती हैं , साथ ही स्वास्थ्य व पर्यावरण की सुरक्षा के लिए प्रेरित करती हैं । इन पौराणिक कथाओं का संसार अत्यंत वृहद है जो पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक रूप से स्थानांतरित होती आई हैं । ये देवी देवता , ऋषि मुनि , दैत्य , राजा रानी , परी , जीव जंतु , पेड़ पौधे , सूर्य , चाँद , वायु , जल , अग्नि , नदी , पर्वत इन सभी अवयवों से सम्बंधित हैं और मानव - प्रकृति सम्बन्ध को पुष्ट करती हैं ।इन्हें पढ़कर , सुनकर सहज ही जीवन - मूल्यों की शिक्षा प्राप्त होती है तथा बदलते मौसम के साथ स्वास्थ्य की देखभाल के महत्वपूर्ण सुझाव भी मिलते हैं। मौसम के अनुकूल व्यंजन बनाने की परम्परा हमें अपने पूर्वजों की वैज्ञानिक सोच पर स्तम्भित कर देती हैं। औषधीय पौधों जैसे तुलसी , नीम , हल्दी , आँवला का प्रयोग , ऑक्सीजन प्रदान करने वाले वृक्षों जैसे पीपल , बरगद आम , बेल की अधिकाधिक अनुष्ठानों में अनिवार्यता लोगों को इनके संरक्षण को बढ़ावा देती है । तालाब , कुंआ खोदवाने , पेड़ लगाने , धर्मशाला बनवाने जैसे कार्यों को पुण्य - प्राप्ति के साधन बताकरलोक कल्याण की भावना को सबल बनाती हैं ये कथाएं । लगभग सभी कथाओं में बुराई पर अच्छाई की जीत का वर्णन व्यक्ति को कुछ अच्छा करने व बनने को प्रेरित करता है । सभी पौराणिक कथाओं की चर्चा करना असम्भव है पर कुछ प्रचलित कथाओं का वर्णन अपरिहार्य है ।छत्तीसगढ़ में मनाए जाने वाले वट - सावित्री ( बरसाइत ) की कथा में सावित्री अपने पति की प्राणरक्षा के लिए यमराज से लड़ जाती है और सफल होती है । इस व्रत में स्त्रियाँ बरगद की पूजा कर अपने पति के दीर्घायु जीवन की प्रार्थना करती हैं । देवउठनी एकादशी की कथा में वृन्दा ( तुलसी ) और विष्णु के विवाह की कथा है जिसमें विष्णु वृन्दा के पति दैत्य बाणासुर की मृत्यु के लिए उसका रूप लेकर वृन्दा के पास जाते हैं और इस छल के लिए वह उन्हें पत्थर बनने का श्राप देती हैइसलिए विष्णु अगले जन्म में उनसे विवाह का वचन देते हैं । देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी और विष्णु का विवाह होता है जिसमें गन्ने का मंडप बनाया जाता है । इस अवसर पर कृष्ण द्वारा सत्यभामा के गर्व को तोड़ने की भी कहानी कही जाती है जो कृष्ण को सोने चाँदी से तौलने चली थी परन्तु सब कुछ चढ़ाने पर भी तुला सम पर नही आया था , अंत में जब रूखमणी ने तुलसी का एक पत्ता चढ़ाया तो तराजू झुक गया । इसीप्रकार सोमवती अमावस्या में पीपल व शीतला अष्टमी में नीम की शाखा का महत्व बताया गया है। हलषष्ठी भाद्र पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है जिसमें तालाब ,दूध - दही , छः प्रकार की भाजी व अनाज का महत्व है । इसकी कथाओं में ईमानदारी , प्रेम , सहयोग सहित अनेक मानव - मूल्यों की रक्षा की प्रेरणा मिलती है।भादो माह में मनाये जाने वाले पोला में बैल की पूजा की जाती है जो कर्मशीलता को महत्व प्रदान करती है ।हरितालिका तीज में विवाहित पुत्री को मायके लाने की परम्परा है । पति की लंबी उम्र या अच्छे वर की प्राप्ति के लिए किए जाने वाले इस व्रत में माता पार्वती व शिवविवाह की कथा सुनाई जाती है । तीज की पूर्व संध्या पर करुभात (करेला) खाने का रिवाज है जो स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम है । इसमें ठेठरी और खुरमी नामक व्यंजन बनाया जाता है जो पौष्टिक होता है ।अश्विन माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी को बेटा जुतिया मनाया जाता है जिसमें सन्तान प्राप्ति या उसकी रक्षा के लिए व्रत रखा जाता है । इसकी कथा में एक ब्राह्मण के अल्पायु सन्तान की उम्र बढ़ने की कहानी है । इसमें पीपल वृक्ष की पूजा, जलाशय के पास जाकर सूर्य को अर्ध्य देना , फलाहार इत्यादि नियम वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी उचित माना जाता है । सूर्य की रोगनाशक शक्ति और विटामिन डी देने की क्षमता के बारे में सभी जानते हैं ।भादो माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला व्रत बहुला चौथ में राजा द्वारा ब्राह्मण को भेंट किये गए गाय की कहानी है जिसकी सच्चाई व ईमानदारी वनराज को अपना फैसला बदलने को मजबूर करती है । इसी प्रकार कृष्ण जन्माष्टमी , हरेली ,रक्षाबंधन , नागपंचमी , दशहरा , दीपावली , होली प्रत्येक त्यौहार की अपनी विशिष्ट कथा है जो परस्पर प्रेम , सौहार्द , स्नेह के रेशमी धागे से हमें बांधती है।इन सभी कथाओं का अंत एक वाक्य से होता है " जइसे वोखर दिन बहुरिस , तइसे सबके बहुरय ।" अर्थात जैसे कहानी के पात्र के साथ अच्छा हुआ वैसे हमारे साथ भी हो । पौराणिक कथाओं का हमारे जीवन पर , संस्कारों पर बहुत गहरा प्रभाव है क्योंकि ये हमारी आस्था से जुड़ी हैं साथ ही पर्यावरण संरक्षण , मानव मूल्यों की रक्षा और सम्बन्धों की प्रगाढ़ता को पोषित करती हैं ।ये हमें विपरीत परिस्थितियों से लड़ना सिखाती हैं , अपने मनोमालिन्य को दूर कर विशालहृदयी बनने को प्रेरित करती हैं तथा प्राकृतिक स्त्रोतों के संरक्षण को बढ़ावा देती हैं । आधुनिक पीढी के पास इन्हें पढ़ने ,सुनने का समय नहीं है परन्तु यही किस्से किसी मोटिवेशनल गुरु की स्पीच का हिस्सा बनते हैं तो वे इन्हें बड़ी खुशी से सुनते हैं । वर्तमान में व्हाट्सएप या फ़ेसबुक में इन कहानियों को पढ़ती हूँ तो खुशी होती है कि किसी माध्यम से इनका प्रसार तो हो रहा है । कुछऐसे प्रयास अवश्य किये जाने चाहिए कि इन पौराणिक कथाओं का संरक्षण किया जा सके तथा युवा पीढ़ी के आगे सरलतम रूप में रखा जा सके ताकि वे इन्हें अक्षुण्ण बनाये रख सकें और इनसे लाभान्वित होते रहें । -
मोहम्मद रफी- पुण्यतिथि-31 जुलाई पर विशेष
आलेख - प्रशांत शर्मासुहानी रात ढल चुकी , न जाने तुम कब आओगे, यह गाना मोहम्मद रफी साहब ने गाया है और आज उनकी पुण्यतिथि के मौके पर इसी गाने और इस फिल्म तथा इसके कलाकारों की चर्चा हम यहां कर रहे हंै।फिल्म थी दुलारी और इसका निर्माण 1949 में हुआ था। फि़ल्म के मुख्य कलाकार थे सुरेश, मधुबाला और गीता बाली। फि़ल्म का निर्देशन अब्दुल रशीद कारदार साहब ने किया था। 1949 का साल गीतकार शक़ील बदायूनी और संगीतकार नौशाद के लिए ढेर सारी खुशियां लेकर आया। 1949 में महबूब ख़ान की फि़ल्म अंदाज़ , ताजमहल पिक्चर्स की फि़ल्म चांदनी रात , तथा ए. आर. कारदार साहब की दो फि़ल्में दिल्लगी और दुलारी प्रदर्शित हुई थीं और ये सभी फि़ल्मों का गीत संगीत बेहद लोकप्रिय सिद्ध हुआ था। फिल्म दुलारी 1 जनवरी 1949 को प्रदर्शित हुई थी। पूरी फिल्म ब्लैक एंड व्हाइट है।आज जब दुलारी के इस गाने की चर्चा हो रही है, तो हम बता दें कि इसी फिल्म में लता मंगेशकर और रफ़ी साहब ने अपना पहला डुएट गीत गाया था और यह गीत था-मिल मिल के गाएंगे दो दिल यहां, एक तेरा एक मेरा । फिल्म में दोनों का गाया एक और युगल गीत था -रात रंगीली मस्त नज़ारे, गीत सुनाए चांद सितारे । लता और रफी की यह जोड़ी काफी पसंद की गई और उसके बाद तो उन्होंने ऐसे- ऐसे यादगार गाने दिए हैं कि यदि उनका जिक्र करते जाएं तो न जाने कितने ही दिन गुजर जाएंगे, लेकिन बातें खत्म नहीं होंगी।फिल्म में मोहम्मद रफ़ी की एकल आवाज़ में नौशाद साहब ने सुहानी रात ढल चुकी गीत.. -राग पहाड़ी पर बनाया । इसी फि़ल्म का गीत तोड़ दिया दिल मेरा.. भी इसी राग पर आधारित है। राग पहाड़ी नौशाद साहब का काफी लोकप्रिय शास्त्रीय राग रहा है और उन्होंने इस पर आधारित कई गाने तैयार किए हैं। इसमें से जो गाने रफी साहब की आवाज में हैं, वे हैं-1.. आज की रात मेरे दिल की सलामी ले ले (फिल्म-राम और श्याम)2. दिल तोडऩे वाले तुझे दिल ढ़ूंढ रहा है (सन ऑफ़ इंडिया)3. दो सितारों का ज़मीं पर है मिलन आज की रात (कोहिनूर)4. कोई प्यार की देखे जादूगरी (कोहिनूर)5. ओ दूर के मुसाफिऱ हम को भी साथ ले ले (उडऩ खटोला)फिल्म दुलारी में कुल 12 गाने थे। 14 रील की इस फिल्म में ये गाने कहानी की तरह ही चलते हैं । नायिका मधुबाला के लिए लता मंगेशकर ने अपनी आवाज दी थी। वहीं गीता बाली के लिए शमशाद बेगम ने दो गाने गाए थे। जिसमें से शमशाद बेगम का गाया एक गाना - न बोल पी पी मोरे अंगना , पक्षी जा रे जा...काफी लोकप्रिय हुआ था। नायक सुरेश के लिए रफी साहब ने आवाज दी थी। इसमें से 9 गाने लता मंगेशकर ने गाए जिसमें रफी साहब के साथ उनका दो डुएट भी शामिल है। रफी साहब ने केवल एक गाना एकल गाया और वह है -सुहानी रात ढल चुकी जिसे आज भी रफी साहब के सबसे हिट गानों में शामिल किया जाता है। पूरा गाना इस प्रकार है-सुहानी रात ढल चुकी, ना जाने तुम कब आओगेजहां की रुत बदल चुकी, ना जाने तुम कब आओगेअंतरा-1. नज़ारे अपनी मस्तियां, दिखा-दिखा के सो गयेसितारे अपनी रोशनी, लुटा-लुटा के सो गयेहर एक शम्मा जल चुकी, ना जाने तुम कब आओगेसुहानी रात ढल...अंतरा- 2- तड़प रहे हैं हम यहां, तुम्हारे इंतज़ार मेंखिजां का रंग, आ-चला है, मौसम-ए-बहार मेंहवा भी रुख बदल चुकी, ना जाने तुम कब आओगेसुहानी रात ढल......गाने में नायक की नायिका से मिलने की बैचेनी और इंतजार का दर्द शकील साहब ने अपनी कलम से बखूबी उतारा है, तो रफी साहब ने अपनी आवाज से इस गाने को जीवंत बना दिया है। गाने में शब्दों का भारी भरकम जाल नहीं है बल्कि बोल काफी सिंपल हैं, जो बड़ी सहजता से लोगों की जुबां पर चढ़ जाते हैं। गाने की यही खासियत इसे आज तक जिंदा रखे हुए है। गाने के शौकीन आज भी किसी कार्यक्रम में इसे गाना नहीं भूलते हैं। राग पहाड़ी के अनुरूप इसका फिल्मांकन भी हुआ है और दृश्य में नायक चांदनी रात में सुनसान जंगल में नायिका का इंतजार करते हुए यह गाना गाता है। दृश्य में एक टूटा फूटा खंडहर भी नजर आता है, तो नायक की विरान जिंदगी को दर्शाता है, जिसे बहार आने का इंतजार है।दुलारी फिल्म की कहानी कुछ इस प्रकार थी-प्रेम शंकर एक धनी व्यावसायिक का बेटा होता है जिसकी शादी उसके माता-पिता रईस खानदान में करना चाहते हंै। प्रेम शंकर को एक बंजारन लडक़ी दुलारी से प्यार हो जाता है। यह लडक़ी बंजारन नहीं बल्कि एक रईस खानदान की बेटी शोभा रहती है, जिसे बंजारे लुटेरे बचपन में उठा लाए थे। यह रोल मधुबाला ने निभाया है। प्रेमशंकर इस लडक़ी को इस नरक से निकालने के लिए उससे शादी करने का फैसला लेता है। बंजारन की टोली में एक और लडक़ी रहती है कस्तूरी जिसका रोल गीता बाली ने निभाया है। वह इसी टोली के एक बंजारे लडक़े से प्यार करती है, लेकिन उसकी नजर दुलारी पर होती है। प्रेमशंकर के पिता इस शादी के खिलाफ हैं। काफी जद्दोजहद के बाद प्रेमशंकर , दुलारी को इस नरक से निकालने में कामयाब हो जाता है और उनके पिता को भी इस बात का पता चल जाता है कि दुलारी और कोई नहीं उनके ही मित्र की खोई हुई बेटी है जिसे वे बचपन से ही अपनी बहू बनाने का फैसला कर चुके थे। फिल्म के अंत में सब कुछ ठीक हो जाता है और नायक को अपना सच्चा प्यार मिल जाता है। फिल्म में मधुबाला से ज्यादा खूबसूरत गीता बाली नजर आई हैं, लेकिन उनके हिस्से में सह नायिका की भूमिका ही थी। लेकिन फिल्म के प्रदर्शन के एक साल बाद ही उन्हें फिल्म बावरे नैन में राजकपूर की नायिका बनने का मौका मिला और इसके कुछ 5 साल बाद उन्होंने शम्मी कपूर के साथ शादी कर ली। दुलारी फिल्म मधुबाला की प्रारंभिक फिल्मों में से है। मधुबाला ने जब यह फिल्म की उस वक्त उनकी उम्र मात्र 16 साल की थी।फिल्म की पूरी कहानी चंद पात्रों के इर्द-गिर्द ही घूमती है। सुरेश के पिता के रोल में अभिनेता जयंत थे जिनका असली नाम जकारिया खान था, लेकिन उन्हें जाने-माने फिल्म निर्माता और निर्देशक विजय भट्ट ने जयंत नाम दिया था। विजय भट्ट आज की फिल्मों के निर्माता-निर्देशक विक्रम भट्ट के दादा थे। जयंत के बेटे अमजद खान हैं जिन्हें आज भी गब्बर सिंह के रूप में पहचाना जाता है। फिल्म दुलारी में नायक सुरेश की मां का रोल प्रतिमा देवी ने निभाया था, जो ज्यादातर फिल्मों में मां का रोल में ही नजर आईं। उनकी फिल्मों में अमर अकबर एंथोनी, पुकार प्रमुख हैं। आखिरी बार वे वर्ष 2000 में बनी फिल्म पलकों की छांव में दिखाई दी थीं। मधुबाला के पिता के रोल में अभिनेता अमर थे। अभिनेता श्याम कुमार ने खलनायक का रोल निभाया था, जो बाद में रोटी, जख्मी जैसी कई फिल्मों में खलनायक के रूप में नजर आए।कभी फुरसत मिले तो इस फिल्म को जरूर देखिएगा, अपने दिलकश गानों की वजह से यह फिल्म दिल तो सुकून देती है। हालांकि अब इसके प्रिंट काफी धुंधले पड़ गए हैं। फिल्म की तकनीक और कहानी आज की पीढ़ी को भले ही पुरानी लगे, लेकिन अपने दौर की यह हिट और क्लासी फिल्म है। -
29 जुलाई पुण्यतिथि पर विशेष
आलेख - प्रशांत शर्माहिंदी फिल्मों में जब भी अच्छे कॉमेडियन की बात चलती है तो उनमें जॉनी वॉकर का नाम प्रमुखता से शामिल किया जाता है। अपनी फिल्मों के जरिए वे आज भी हमें हंसाते और गुदगुदाते रहते हैं।जॉनी वॉकर वास्तव में हिंदी फिल्म जगत के हास्य सम्राट थे। जॉनी को फिल्म में लाने का श्रेय बलराज साहनी को जाता है। जब वे फिल्म बाजी की कहानी लिख रहे थे, तब एक ऐसे हास्य कलाकार की जरूरत महसूस हुई, जो एक विशेष चरित्र में पटकथा के साथ सही मायनों में न्याय कर सके। एक दिन उनकी नजर एक बस कंडक्टर बदरुद्दीन पर पड़ी, जो यात्रियों को हंसाने में लगा था। बस फिर क्या था, वे उसे लेकर गुरु दत्त के पास पहुंचे। गुरु दत्त ने उन्हें तुरंत अपनी फिल्म के लिए फाइनल कर लिया। बाजी फिल्म से ही गुरुदत्त और जॉनी वॉकर की जोड़ी हिट हुई थी और दोनों ने इस दोस्ती को आखिरी दम तक बनाए रखा। जॉनी कहा करते थे कि अगर गुरु दत्त नहीं होते, तो मैं बस कंडक्टर ही रह जाता। जॉनी वाकर के आदर्श थे चार्ली चैपलिन और नूर मोहम्मद।जॉनी वॉकर का जन्म 1925 में इंदौर में हुआ था और उनका वास्तविक पूरा नाम बदरुद्दीन काजी था। वे 1942 में इंदौर से मुंबई आ गए थे और बतौर बस कंडक्टर काम करने लगे। हिंदी फिल्म उद्योग में बाजी फिल्म से स्थापित होने के बाद उन्होंने मधुमती, प्यासा, नया दौर, सीआईडी और मेरे महबूब में अपने अभिनय का लोहा मनवाया था। उन्हें फिल्म शिकार के लिए 1968 में फिल्मफेयर का बेस्ट कॉमेडियन अवार्ड भी मिला था। उनकी अभिनय क्षमता के सभी कायल थे और उस समय के निर्माताओं और निर्देशकों में उन्हें अपनी फिल्म में लेने की जैसे होड़ मची रहती थी। जॉनी वाकर की सफलता और लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें फिल्म में लेने के लिए विशेष तौर पर उन पर फिल्माए जाने वाले गीत बनाए जाते थे। उन पर फिल्माए गए वे दो गीत- सर जो मेरा चकराए या दिल डूबा जाए और ये है मुंबई मेरी जान आज भी लोगों की जुबान पर है। लेकिन उनका सबसे पसंदीदा गाना था- जीना यहां मरना यहां.. जो राजकपूर की फिल्म मेरा नाम जोकर, का था।कुछ बातें कुछ यादेंजॉनी वॉकर फिल्मों में काम करते-करते एकाएक फिल्मों से दूर हो गए थे, मगर लंबे अरसे बाद उन्हें कमल हसन निर्देशित फिल्म चाची-420 में देखा गया था। फिल्म के प्रदर्शन के पहले उन्होंने एक पत्रिका को इंटरव्यू दिया था, पेश है उसके कुछ अंश-उनके मुताबिक मैं अपने समय में सभी फिल्में साइन नहीं करता था, बल्कि जिस भूमिका में मुझे अपनापन दिखता था, मैं उसे झट से साइन कर लेता था। हमारे समय में फिल्मों में काम करना आसान नहीं था। माहौल आज की तरह नहीं था, बल्कि बहुत मेहनत करनी होती थी। यदि आपका रोल सिर्फ दो दिनों के लिए है, तो पांच दिनों के लिए साइन किया जाता था और पांचों दिन मैकअप करके सेट पर बैठे रहना होता था। फिल्मों से एकाएक दूर होने के बारे में उन्होंने बताया- एक तो फिल्मों में अश्लीलता आ गई है। दूसरा मैं अपने परिवार से दूर होता जा रहा था। एक बार तो हद हो गई जब मैं शूटिंग से लौटा तो बच्चों ने पहचानने से इनकार कर दिया। तब अहसास हुआ कि फिल्मों ने मुझे परिवार से दूर कर दिया है। फिर क्या था फिल्मों से मैंने अपना किट पैक किया और फिल्मों को टाटा-बाय-बाय कह कर घर में सुकून की जिंदगी जीने का फैसला किया। फिल्मों के चक्कर में मैंने अपने बच्चों को बड़े होते नहीं देखा, मगर अब अपने नाती-पोती को बड़ा होते देखने का मोह नहीं छोड़ सकता। उन्होंने बताया कि युवावस्था में पैसा कमाने के अलावा उनका और कोई सपना नहीं था। जॉनी वाकर के अनुसार फिल्मों में मसखरे और चालबाज जैसे काम करते-करते लोग उन्हें चाचा 420 कहने लगे थे। उनके मुताबिक उन्हें दोस्तों के बीच हंसी मजाक पसंद था और फुर्सत के समय में बीते दिनों को याद करना उनका शौक था। - पुण्यतिथि 28 जुलाई पर विशेषआलेख -प्रशांत शर्मा50- 60 के दशक में हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में बला की खूबसूरत एक अभिनेत्री हुआ करती थी, जिनका नाम था लीला नायडू। एक ऐसी एक्ट्रेस जिनके चेहरे से लोगों की नजरें नहीं हटती थीं तभी वेे 10 साल तक दुनिया की सबसे खूबसूरत महिलाओं की लिस्ट में शामिल रहीं। पूर्व मिस इंडिया और फिल्म अनुराधा और द हाउस होल्डर जैसी फिल्मों में सशक्त अभिनय करने वाली अदाकारा लीला नायडू का निधन 28 जुलाई 2009 हुआ था।लीला नायडू वर्ष 1954 में फेमिना मिस इंडिया का खिताब जीतकर चर्चा में आई। उस वक्त उनकी उम्र मात्र 14 की थी। उसी दौरान वोग मैग्जीन की दुनियाभर में 10 सबसे ज्यादा खूबसूरत महिलाओं की लिस्ट में भी लीला नायडू का नाम शामिल किया गया। इस लिस्ट में रानी गायत्री देवी भी शामिल थीं।उन्होंने काफी कम फिल्में की , लेकिन अपने अभिनय और खूबसूरती से सबको प्रभावित किया। राजकपूर तो उन्हें अपनी फिल्म में लेने के लिए बार- बार कोशिश करते रहे, लेकिन उन्हें 3 बार नाकामी हाथ लगी।कहा जाता है कि राजकपूर लीला नायडू की खूबसूरती के कायल हो गए थे और उन्हें लेकर फिल्म बनाने वाले थे। फिल्म की कहानी मुल्कराज आनंद ने लिखी। जब लीला स्क्रीन टेस्ट के लिए पहुंची को उन्हें पता चला कि फिल्म की कहानी गांव की पृष्ठभूमि की है। जेनेवा और स्विटजरलैंड में पली बढ़ी लीला गांव की जिंदगी से नावाकिफ थी। उसी दौरान राजकपूर ने लीला को बताया कि वे उन्हें अपनी चार फिल्मों के लिए साइन करना चाहते हैं। लेकिन लीला तो गांव की जिंदगी पर बनी राजकपूर की पहली फिल्म में अपने आप को एडजस्ट नहीं कर पा रही थीं। लीला को लगा कि वे इस फिल्म की भूमिका के साथ न्याय नहीं कर पाएंगी। आखिरकार उन्होंने फिल्म से हाथ खींच लिया। इसतरह से राजकपूर की एक नहीं बल्कि चार-चार फिल्में उनके हाथ से निकल गईं। इसी दौरान लीला ने विदेश का रास्ता पकड़ा और फिर पांच साल बाद उनकी वापसी फिल्म अनुराधा से हुई। दरअसल लीला का जन्म भले ही मुंबई में हुआ था, लेकिन उनकी दीक्षा-शिक्षा जेनेवा और स्विटजरलैंड में हुई थी। उनके पिता पट्टीपति रामैया नायड़ू परमाणु भौतिकविद थे और नोबेल पुरस्कारर विजेता मैरी क्यूरी के लिए काम कर चुके थे। .बाद में उन्होंने यूनेस्को से लेकर टाटा कंपनी में सलाहकार के पद पर भी काम किया।वर्ष 1960 में लीला नायडू विदेश से लौटी और मशहूर फिल्मकार ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म अनुराधा से बॉलीवुड में कदम रखा। फिल्म में उन्होंने अभिनेता बलराज साहनी की पत्नी का किरदार निभाया था। इस फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया था। इस फिल्म का संगीत मशहूर सितारवादक रविशंकर ने तैयार किया था। जिसके गाने काफी लोकप्रिय हुए थे। फिल्म के लता मंगेशकर के गाए दो गाने काफी मशहूर हुए- हाय रे वो दिन क्यूं न आए... और जाने कैसे सपनों में खो गई अंखिया...। दोनों ही गाने लीला नायडू पर फिल्माए गए थे।लीला को वास्तविक पहचान वर्ष 1963 में रिलीज हुई फिल्म ये रास्ते हैं प्यार के , से मिली। फिल्म में उनके साथ अभिनेता सुनील दत्त हीरो थे। फिल्म की कहानी चर्चित नानावटी कांड पर आधारित थी। लीला ने बहुत कम फिल्में कीं। उन्होंने वही फिल्में स्वीकार की जिसके लिए उनका मन गवाही देता था। लीला ने मर्चेंट आइवोरी प्रोडक्शन द्वारा निर्मित फिल्म द हाउसहोल्डर में भी उन्होंने अभिनय किया, जिसका निर्देशन जेम्स आइवोरी ने किया था। फिल्म में उनकी जोड़ी शशिकपूर के साथ काफी पसंद की गई। वर्ष 1969 में द गुरू फिल्म में काम करने के बाद लीला ने फिल्मी दुनिया को अलविदा कह दिया।लीला ने मात्र 17 साल की उम्र में होटल व्यवसायी तिलक राज ओबराय (टिक्की ओबराय) से शादी कर ली, जो उनसे 16 साल बड़े थे। तिलक राज मशहूर होटल ओबेराय के मालिक थे। उनकी जुड़वा बेटियां हुईं माया और प्रिया। बाद में दोनों में तलाक हो गया। ओबेराय ने दोनों बेटियों की कस्डटी ली। कुछ समय बाद उन्होंने अपने बचपन के मित्र और साहित्यकार डॉम मॉरिस से शादी कर ली एवं हांगकांग चली गईं। दस वर्ष वहां बिताने के बाद वे फिर भारत वापस आ गईं। 1985 में श्याम बेनेगल की फिल्म त्रिकाल से इन्होंने हिंदी फिल्मी दुनिया में फिर प्रवेश किया। 1992 में प्रदीप कृष्णन द्वारा निर्देशित फिल्म इलेक्ट्रिक मून में इन्होंने आखिरी बार अभिनय किया था।लीला नायडू की निजी जिंदगी उथल-पुथल भरी रही। अपने आखिरी दिनों में उन्होंने खुद को सभी से अलग कर लिया और गुमनाम जिंदगी बिताने लगीं। आर्थरायटिस की बीमारी के कारण उनका चलने-फिरना भी लगभग बंद हो गया था। इसी दौरान आर्थिक तंगी से भी वे परेशान रहीं। आखिरकार उन्हें अपने घर में किराएदार रखने पड़े। 2009 में उन्हें इन्फ्लूएंजा की बीमारी हुई जिसकी वजह से उनके फेफड़ों ने काम करना बंद कर दिया। 28 जुलाई 2009 को उन्होंने इस संसार को गुमनामी में ही अलविदा कह दिया।
- पुण्यतिथि - 27 जुलाईआलेख प्रशांत शर्माआज भी जब हास्य फिल्मों की बात होती है, तो इसमें फि़ल्म जाने भी दो यारो का नाम भी होता है। इसी फिल्म के एक कलाकार रवि वासवानी की 27 जुलाई को पुण्यतिथि है। वर्ष 2010 को दिल का दौरा पडऩेे से उनका निधन हो गया। उस वक्त वे 64 साल के थे।उन्होंने 1981 में फि़ल्म चश्मेबद्दूर से अपने फि़ल्मी कॅरिअर की शुरुआत की थी। जाने भी दो यारो और चश्मेबद्दूर जैसी फि़ल्मों में रवि वासवानी के अभिनय को काफी सराहा गया। रवि का जब निधन हुआ, वे एक फिल्म पर काम कर रहे थे। वे अपनी ही फिल्म जाने भी दो यारो जैसी महान ऐतिहासिक फि़ल्म की अगली कड़ी बनाने के लिए वो हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों में पहुंचे थे। इसके अलावा रवि वासवानी हिमाचल में अपनी पहली फि़ल्म का निर्देशन करने के लिए भी आए थे, लेकिन 27 जुलाई 2010 को शिमला से दिल्ली लौटते हुए उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वे अपना काम अधूरा छोडक़र ही इस दुनिया से चले गए।चश्मे के पीछे वो लंबूतरा चेहरा, बड़ी और हैरानी से फैली हुई सी आंखें, लंबा कद और व्यक्तित्व का ऐसा निरालापन की उनमें लोगों को हमेशा एक आम इंसान ही नजर आया। यही उनके अभिनय की सहजता भी थी।रवि वासवानी सिनेमा में हास्य और विद्रूप और विडंबना और मार्मिकता के अभिनय की उस महान कलाकार बिरादरी का हिस्सा थे जो चार्ची चैप्लिन से शुरू होती थी। वे हिंदी सिनेमा में अपने ढंग के चैप्लिन थे। उन्होंने बेशुमार ताबड़तोड़ फि़ल्में नहीं की, लेकिन जितनी की और जैसी भी भूमिका निभाई उसमें अपनी छाप छोड़ दी। किरदार की जटिलता तनाव और ऊंच-नीच को रवि वासवानी जज़्ब कर लेने के माहिर अभिनेता थे।जाने भी दो यारो फिल्म में अपने हास्य किरदार के लिए उन्हें 1984 में फि़ल्म फ़ेयर पुरस्कार भी मिला था।‘जाने भी दो यारों’ में रवि वासवानी ने नसीरुद्दीन शाह के साथ और ‘चश्मे बद्दूर’ में फारुख शेख के साथ काम किया। नसीरुद्दीन शाह और फारुख शेख इस बीच कहां से कहां पहुंच गए, लेकिन रवि वासवानी उस तेजी से आगे नहीं बढ़े। उन्होने जिस तरह की कॉमेडी फिल्मों में प्रस्तुत की, वह स्तरीय कॉमेडी कही जा सकती है। यानी असरानी, जगदीप आदि की कॉमेडी से अलग हटकर कुछ सार्थक देने की कोशिश। अच्छे कलाकार होने के बाद भी रवि वासवानी बाद में भीड़ में कहीं खो से गए।वासवानी को उनके विनोदी स्वभाव और बेहतरीन कॉंमिक टाइमिंग के लिए जाना जाता था। दिल्ली स्थित राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के छात्र रहे वासवानी ने कभी घर नहीं बसाया। उन्होंने 30 से भी ज़्यादा फि़ल्मों के साथ-साथ कुछ टीवी धारावाहिकों में भी काम किया था।रवि का व्यक्तित्व बंजारा किस्म का था। वे हमेशा ख़ुश रहने वाले और दूसरों की मदद के लिए तैयार रहने वाले इंसान के रूप में पहचाने जाते थे। रवि वासवानी ने बंटी और बबली , प्यार तूने क्या किया जैसी कई सफल हिंदी फि़ल्मों में चरित्र अभिनेता के रूप में भी काम किया।
- छत्तीसगढ़ का परंपरागत तिहार हरेलीविशेष लेख- छगन लाल लोन्हारे,उप संचालक जनसंपर्कप्रदेश सरकार किसानों के आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। गांव, गरीब और किसान सरकार की पहली प्राथमिकता में हैं। देश की जीडीपी में कृषि का बड़ा योगदान है, छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था का मूल आधार भी कृषि ही है और छत्तीसगढ़ धान का कटोरा कहलाता है। मुख्यमंत्री श्री साय के नेतृत्व में प्रदेश सरकार की इन डेढ़ साल के अवधि में किसानों के हित में लिए गए नीतिगत फैसलों से खेती किसानी को नया संबल मिला है। बीते खरीफ विपणन वर्ष में किसानों से समर्थन मूल्य पर 144.92 लाख मीेट्रिक टन धान की खरीदी कर रिकॉर्ड कायम किया है। छत्तीसगढ़ में हरेली त्यौहार का विशेष महत्व है। हरेली छत्तीसगढ़ का पहला त्यौहार है। इस त्यौहार से ही राज्य में खेती-किसानी की शुरूआत होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह त्यौहार परंपरागत् रूप से उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन किसान खेती-किसानी में उपयोग आने वाले कृषि यंत्रों की पूजा करते हैं और घरों में माटी पूजन होता है। गांव में बच्चे और युवा गेड़ी का आनंद लेते हैं। इस त्यौहार से छत्तीसगढ़ की संस्कृति और लोक पर्वों की महत्ता भी बढ़ गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में गेड़ी के बिना हरेली तिहार अधूरा है।मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में प्रदेश सरकार द्वारा पंजीकृत किसानों से समर्थन मूल्य पर प्रति एकड़ 21 क्विंटल 3100 रूपए प्रति क्विंटल की मान से धान खरीदीकर न सिर्फ किसानों को मान बढ़ाया, बल्कि किसानों को उन्नति की ओर ले जाने में भी उल्लेखनीय कार्य किया है। साथ ही किसानों के खाते में रमन सरकार के पिछले दो वर्ष का बकाया धान के बोनस 3716.38 करोड़ रूपए अंतरित कर किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत कर दी है। मुख्यमंत्री का मानना है कि भारत गांवों में बसता है। जब किसान खुशहाल होंगे तो प्रदेश का व्यापार, उद्योग बढे़गा।परंपरा के अनुसार वर्षों से छत्तीसगढ़ के गांव में अक्सर हरेली तिहार के पहले बढ़ई के घर में गेड़ी का ऑर्डर रहता था और बच्चों की जिद पर अभिभावक जैसे-तैसे गेड़ी भी बनाया करते थे। हरेली तिहार के दिन सुबह से तालाब के पनघट में किसान परिवार, बड़े बजुर्ग बच्चे सभी अपने गाय, बैल, बछड़े को नहलाते हैं और खेती-किसानी, औजार, हल (नांगर), कुदाली, फावड़ा, गैंती को साफ कर घर के आंगन में मुरूम बिछाकर पूजा के लिए सजाते हैं। माताएं गुड़ का चीला बनाती हैं। कृषि औजारों को धूप-दीप से पूजा के बाद नारियल, गुड़ के चीला का भोग लगाया जाता है। अपने-अपने घरों में अराध्य देवी-देवताओं की साथ पूजा करते हैं। गांवों के ठाकुरदेव की पूजा की जाती है।हरेली पर्व के दिन पशुधन के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए औषधियुक्त आटे की लोंदी खिलाई जाती है। गांव में यादव समाज के लोग वनांचल जाकर कंदमूल लाकर हरेली के दिन किसानों को पशुओं के लिए वनौषधि उपलब्ध कराते हैं। गांव के सहाड़ादेव अथवा ठाकुरदेव के पास यादव समाज के लोग जंगल से लाई गई जड़ी-बूटी उबाल कर किसानों को देते हैं। इसके बदले किसानों द्वारा चावल, दाल आदि उपहार में यादवों को भेंट करने की परंपरा रही हैं।सावन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को हरेली पर्व मनाया जाता है। हरेली का आशय हरियाली ही है। वर्षा ऋतु में धरती हरा चादर ओड़ लेती है। वातावरण चारों ओर हरा-भरा नजर आने लगता है। हरेली पर्व आते तक खरीफ फसल आदि की खेती-किसानी का कार्य लगभग हो जाता है। माताएं गुड़ का चीला बनाती हैं। कृषि औजारों को धोकर, धूप-दीप से पूजा के बाद नारियल, गुड़ का चीला भोग लगाया जाता है। गांव के ठाकुर देव की पूजा की जाती है और उनको नारियल अर्पण किया जाता है।हरेली तिहार के साथ गेड़ी चढ़ने की परंपरा अभिन्न रूप से जुड़ी हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग सभी परिवारों द्वारा गेड़ी का निर्माण किया जाता है। परिवार के बच्चे और युवा गेड़ी का जमकर आनंद लेते है। गेड़ी बांस से बनाई जाती है। दो बांस में बराबर दूरी पर कील लगाई जाती है। एक और बांस के टुकड़ों को बीच से फाड़कर उन्हें दो भागों में बांटा जाता है। उसे नारियल रस्सी से बांध़कर दो पउआ बनाया जाता है। यह पउआ असल में पैर दान होता है जिसे लंबाई में पहले कांटे गए दो बांसों में लगाई गई कील के ऊपर बांध दिया जाता है। गेड़ी पर चलते समय रच-रच की ध्वनि निकलती हैं, जो वातावरण को औैर आनंददायक बना देती है। इसलिए किसान भाई इस दिन पशुधन आदि को नहला-धुला कर पूजा करते हैं। गेहूं आटे को गूँथ कर गोल-गोल बनाकर अरंडी या खम्हार पेड़ के पत्ते में लपेटकर गोधन को औषधि खिलाते हैं। ताकि गोधन को रोगों से बचाया जा सके। गांव में पौनी-पसारी जैसे राऊत व बैगा हर घर के दरवाजे पर नीम की डाली खोंचते हैं। गांव में लोहार अनिष्ट की आशंका को दूर करने के लिए चौखट में कील लगाते हैं। यह परम्परा आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यमान है।पिहले के दशक में गांव में बारिश के समय कीचड़ आदि हो जाता था उस समय गेड़ी से गली का भ्रमण करने का अपना अलग ही आनंद होता है। गांव-गांव में गली कांक्रीटीकरण से अब कीचड़ की समस्या काफी हद तक दूर हो गई है। हरेली के दिन गृहणियां अपने चूल्हे-चौके में कई प्रकार के छत्तीसगढ़ी व्यंजन बनाती है। किसान अपने खेती-किसानी के उपयोग में आने वाले औजार नांगर, कोपर, दतारी, टंगिया, बसुला, कुदारी, सब्बल, गैती आदि की पूजा कर छत्तीसगढ़ी व्यंजन गुलगुल भजिया व गुड़हा चीला का भोग लगाते हैं। इसके अलावा गेड़ी की पूजा भी की जाती है। शाम को युवा वर्ग, बच्चे गांव के गली में नारियल फेंक और गांव के मैदान में कबड्डी आदि कई तरह के खेल खेलते हैं। बहु-बेटियां नए वस्त्र धारण कर सावन झूला, बिल्लस, खो-खो, फुगड़ी आदि खेल का आनंद लेती हैं।
- -इस तरह हुए सुपरहिट-24 जुलाई -जयंती पर विशेष-आलेख प्रशांत शर्माशानदार अभिनेता मनोज कुमार ने इसी साल 4 अप्रैल को 87 वर्ष की आयु में इस दुनिया को अलविदा कह दिया। यदि वे जीवित होते तो आज अपना 88 वांं जन्मदिन मना रहे होते।भारत कुमार कहे जाने वाले इस अभिनेता ने अपनी देशभक्ति पूर्ण फिल्मों के जरिए काफी लोकप्रियता अर्जित की। मनोज कुमार अपने दौर में जनता के साथ नेताओं के भी फेवरेट अभिनेता थे। मनोज कुमार ने बहुत सी भूमिकाएं निभाई, रोमांटिक रोल भी किए , लेकिन उनकी देशभक्ति वाली भूमिकाओं के सामने सब फीके पड़ गए।1937 में जन्मे अभिनेता ने 20 वर्ष की आयु में बॉलीवुड में फिल्म फैशन से डेब्यू किया था, जिसे वे स्वयं अपनी पसंदीदा फिल्म मानते हैं। मनोज कुमार राज कपूर की फिल्म मेरा नाम जोकर में भी गजब का अभिनय किया है। फिल्म कांच की गुडिय़ा में उन्होंने पहली बार मुख्य भूमिका निभाई है। मनोज कुमार न सिर्फ एक अच्छे अभिनेता हैं बल्कि निर्देशक एवं फिल्म निर्माता के रूप में भी उन्होंने बहुत अच्छा काम किया है। फिल्म उपकार के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया था।एक समय ऐसा था जब लोग मनोज कुमार को भारत कुमार ही कहने लगे थे, इसके पीछे वजह यह थी कि अधिकतर फिल्मों में उनके किरदार का नाम भारत था। हालांकि, उनका वास्तविक नाम हरिकृष्णा गिरी गोस्वामी था लेकिन वह दिलीप कुमार और अशोक कुमार से प्रेरित थे , इसलिए उन्होंने अपना नाम मनोज कुमार रखा।मनोज कुमार का जन्म पाकिस्तान के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। दस वर्ष की आयु में वे परिवार के साथ एबटाबाद, पाकिस्तान छोडक़र भारत विभाजन के समय भारत आए। कुछ समय परिवार के साथ विजय नगर के किंग्सवे कैंप में शरणार्थियों के रूप में रहे और बाद में दिल्ली आ गए।मनोज कुमार ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उनके नेताओं से अच्छे संबंध रहे । लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी उनकी फिल्मों को पसंद किया करते थे। उपकार फिल्म की प्रेरणा उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नारे 'जय जवान-जय किसान' से मिली थी। वर्ष 1965 में मनोज कुमार ने स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह के जीवन पर आधारित फिल्म शहीद में काम किया था, जिसके बाद उनकी छवि एक देशभक्त की बन गई थी।मिल चुके हैं इतने अवॉड्र्सबॉलीवुड में देशभक्ति का दौर लाने वाले का श्रेय मनोज कुमार को जाता है। फिल्म उपकार के लिए 1968 में नेशनल फिल्म अवॉर्ड मिला था। 1972 में बेईमान के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला। 1992 में कला में योगदान के लिए पद्मश्री से नवाजा गया। साल 1999 में फिल्मफेयर का लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड मिला। उन्हें साल 2016 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार भी मिला।इन फिल्मों को अपने दम पर कराया है हिटफिल्मों की बात करें तो 'हरियाली और रास्ता', 'हिमालय की गोद में', 'दो बदन', 'सावन की घटा', 'पत्थर के सनम', 'उपकार', 'पूरब और पश्चिम', 'वो कौन थी', 'रोटी कपड़ा और मकान' और 'क्रांति' जैसी मूवीज में काम किया। निजी जिंदगी की बात करें तो मनोज कुमार और शशि के दो बेटे हैं, जिनका नाम विशाल और कुणाल हैं। मनोज कुमार ने जिसतरह से साफ- सुधरी फिल्में की, उनकी निजी जिंदगी भी साफ थी। उन्होंने अपने दौर की टॉप नायिकाओं के साथ काम किया, लेकिन उनका नाम कभी किसी हीरोइन के साथ अफेयर या फिर स्कैंडल में नहीं जुड़ा। उन्हें एक आइडियल फैमिली मैन के रूप में देखा जाता था। मनोज कुमार ने अपनी जिंदगी बिल्कुल वैसे ही जी जैसे देशभक्ति और आदर्श से भरी वो फिल्में किया करते थे- साफ-सीधे और ईमानदार।
- विशेष लेख - जी.एस. केशरवानी, उप संचालक, सुनील त्रिपाठी, सहायक संचालकराजधानी रायपुर और उसके आस-पास का एरिया, स्टेट कैपिटल रीजन (एससीआर) के रूप में विकसित होने जा रहा है। यह क्षेत्र छत्तीसगढ़ का नया ग्रोथ ईंजन बनेगा। विधानसभा में इस संबंध में विधेयक को मंजूरी मिलने के साथ ही स्टेट कैपिटल रीजन‘ ने रफ्तार पकड़ ली है। राजधानी रायपुर सहित दुर्ग-भिलाई और नवा रायपुर अटल नगर के क्षेत्र कैपिटल रीजन में शामिल किया गया है। यह पूरा क्षेत्र राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) की तर्ज पर विकसित होगा।भौगोलिक दृष्टि से छत्तीसगढ़ देश के केन्द्र में स्थित होने के साथ-साथ व्यापार, वाणिज्य और उद्योग के प्रमुख केन्द्र के रूप में उभर रहा है। मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय की यह पहल पर स्टेट कैपिटल रीजन में योजनाबद्ध और शहरी विकास की बढ़ती आवश्यकता को देखते हुए, स्टेट कैपिटल रीजन को विकसित करने की योजना बनाई गई है। इससे राजधानी और आसपास के शहरों का प्लान्ड डेव्हलपमेंट होगा। साथ ही शहरी सुविधाएं, शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यापार और वाणिज्य के लिए बेहतर और अनुकूल वातावरण तैयार होगा। इस क्षेत्र में ट्रांसपोर्ट की बेहतर कनेक्टिविटी और आधुनिक इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसी सुविधाएं बढ़ेंगी।स्टेट कैपिटल रीजन में शामिल शहरों में वर्ष 2031 तक 50 लाख से अधिक की आबादी रहने का अनुमान है। बढ़ते शहरीकरण और आबादी के दबाव को कम करने तथा बेहतर नागरिक सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए यहां राजधानी क्षेत्र विकास प्राधिकरण का गठन करने का प्रावधान रखा गया है। यह प्राधिकरण, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, हैदराबाद महानगर विकास प्राधिकरण, मुंबई महानगर क्षेत्र विकास प्राधिकरण आदि के अनुरूप होगा।राजधानी क्षेत्र विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष मुख्यमंत्री होंगे। इसके साथ ही आवास एवं पर्यावरण, नगरीय प्रशासन एवं विकास, लोक निर्माण विभाग के मंत्री, राज्य के मुख्य सचिव सहित विभिन्न विभागों के सचिव, राज्य शासन द्वारा नामित सदस्यों में राजधानी क्षेत्र विकास प्राधिकरण का प्रतिनिधित्व करने वाले चार विधायक, स्थानीय प्राधिकरण का प्रतिनिधित्व करने वाले चार निर्वाचित सदस्य होंगे। मुख्य कार्यपालन अधिकारी, राजधानी क्षेत्र विकास प्राधिकरण इसके सदस्य संयोजक होंगे।यह प्राधिकरण भूमि का प्रभावी उपयोग और पर्यावरण अनुकूल योजनाबद्ध विकास सुनिश्चित करेगा। वर्ष 2024-25 के बजट में स्टेट केपिटल रीजन कार्यालय की स्थापना के लिए सर्वेक्षण एवं डीपीआर बनाने के लिए भी 5 करोड़ का प्रावधान किया गया है। रायपुर से दुर्ग तक मेट्रो रेल सुविधा के सर्वे कार्य के लिए भी 5 करोड़ का प्रावधान किया गया है।राजधानी क्षेत्र विकास प्राधिकरण का उद्देश्य राजधानी और आसपास के शहरों के व्यापक विकास के लिए योजना बनाने के साथ नियामक और समन्वय सस्थान के रूप में कार्य करना है। इसके प्रमुख कार्यों में स्थानीय स्तर पर योजनाएं बनाना, निवेश, आर्थिक योजनाओं और इनका कार्यान्वयन, विभिन्न सरकारी और गैर-सरकारी हितधारकों के बीच समन्वय, आर्थिक और अधोसंरचनात्मक विकास को बढ़ावा देना भी है।प्राधिकरण की एक कार्यकारी समिति होगी, जिसके अध्यक्ष मुख्य कार्यपालन अधिकारी होंगे। इसके अलावा नगर तथा ग्राम निवेश के संचालक, नगरीय प्रशासन विभाग के विकास संचालक, शहरी योजनाकार, अभियंता, वित्त, संपदा, पर्यावरण नामांकित सदस्य होंगे। इसके अलावा राजधानी क्षेत्र में शामिल सभी जिलों के कलेक्टर इसके सदस्य होंगे।स्टेट कैपिटल रीजन के विकास के लिए राज्य सरकार द्वारा राजधानी क्षेत्र विकास निधि बनाई जाएगी। इसके साथ ही एक पुनरावृत्ति निधि भी होगी। इसे राजधानी अवसंरचना परियोजनाओं के लिए विशेष उपकर लगाने की शक्ति भी होगी। यह वार्षिक बजट भी तैयार करेगा तथा राज्य सरकार को प्रत्येक वर्ष वार्षिक योजना एवं प्रतिवेदन भी प्रस्तुत करेगा।
- -अमर गायक मुकेश की जयंती पर विशेषफिल्म फेयर पुरस्कार पाने वाले पहले पुरुष गायक थे मुकेशआलेख- प्रशांत शर्माआज हिन्दी फिल्मों में गाने वाले कलाकारों की फेहरिश्त इतनी लंबी हो चुकी है कि उन्हें उंगलियों में गिनना मुश्किल हो गया है। रोज एक नया कलाकार नई आवाज के साथ नजर आ जाता है। जिनकी आवाज कुछ समय के बाद गुम सी हो जाती है। लेकिन हिन्दी फिल्मों ने के. एल. सहगल, लता मंगेशकर, रफी साहब, मुकेश, किशोर कुमार जैसे महान कलाकारों का भी दौर देखा है। जिनके गाने आज भी एक छोटा बच्चा दिल से गुनगुना लेता है।आज हम बात कर रहे हैं ऐसे ही महान गायक मुकेश चंद माथुर यानी मुकेश की। मुकेश की आवाज़ बहुत खूबसूरत थी। अभिनेता बनने का सपना देखने वाले मुकेश को उनके रिश्तेदार अभिनेता मोतीलाल गायक बनाने के लिए बम्बई ले गये और अपने घर में रहने दिया। यही नहीं उन्होंने मुकेश के लिए रियाज़ का पूरा इंतजाम किया। 'निर्दोष' फि़ल्म में मुकेश ने अदाकारी करने के साथ-साथ गाने भी खुद गाए। इसके अतिरिक्त उन्होंने 'माशूका', 'आह', 'अनुराग' और 'दुल्हन' में भी बतौर अभिनेता काम किया। पाश्र्व गायक के तौर पर उन्हें अपना पहला काम 1945 में फि़ल्म पहली नजऱ में मिला। मुकेश ने हिन्दी फि़ल्म में जो पहला गाना गाया, वह था दिल जलता है तो जलने दे ....जिसमें अदाकारी मोतीलाल ने की। इस गीत में मुकेश के आदर्श गायक के एल सहगल के प्रभाव का असर साफ़-साफ़ नजऱ आता है। बाद में उन्होंने अपना पेटर्न बदला और फिर तो जैसे वे छा ही गए। अभिनेता राजकपूर पर उनकी आवाज सबसे ज्यादा पसंद की गई। फिर राजकपूर की फिल्मों में मुकेश मुख्य गायक होने लगे।60 के दशक में मुकेश का करिअर अपने चरम पर था और अब मुकेश ने अपनी गायकी में नये प्रयोग शुरू कर दिये थे। उस वक्त के अभिनेताओं के मुताबिक उनकी गायकी भी बदल रही थी। जैसे कि सुनील दत्त और मनोज कुमार के लिए गाये गीत। 70 के दशक का आगाज़ मुकेश ने जीना यहां मरना यहां गाने से किया। यह फिल्म भी राजकपूर ने बनाई थी।इस दौर में मुकेश ज़्यादातर कल्याणजी-आंनदजी, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल और आर. डी. बर्मन जैसे दिग्गज संगीतकारों के साथ काम कर रहे थे। अपने उत्कृष्ट गायन के लिये ऐसा कौन सा पुरस्कार है जिसे मुकेश ने प्राप्त न किया हो। वे फिल्मफेयर पुरस्कार पाने वाले पहले पुरुष गायक थे। वे उस ऊंचाई पर पहुंच गए थे कि पुरस्कारों कि गरिमा उनसे बढऩे लगी थी, लोकप्रियता के उस शिखर पर विद्यमान थे जहां पहुंच पाना किसी के लिए एक सपना होता है। करोड़ों भारतवासियों के हृदयों पर मुकेश का अखंड साम्राज्य था और रहेगा।मुकेश ने अपने करिअर का आखिरी गाना अपने दोस्त राज कपूर की फि़ल्म के लिए ही गाया था। मुकेश की राजकपूर के साथ अच्छी दोस्ती थी, लेकिन उन्होंने दिलीप कुमार के लिए सबसे अधिक गाने गाए।अपने करीब 35 साल के कॅरिअर में मुकेश ने हजारों कर्णप्रिय और लोकप्रिय गाने गाए जो आज भी उतने ही हसीन लगते हैं जितने पहली बार लोगों ने इन्हें सुना था। मुकेश रियाज़ से सन्तुष्ट होने पर ही रिकार्डिंग की सहमति देते थे। मेरा नाम जोकर का कालजयी गीत, जाने कहां गए वो दिन, उन्होंने सत्रह दिनों के अभ्यास के बाद रिकार्ड कराया था। मुकेश को अपने दो गीत बेहद पसंद थे- "जाने कहां गए वो दिन...." और "दोस्त-दोस्त ना रहा..।"मुकेश का निधन 27 अगस्त, 1976 को अमेरिका में एक स्टेज शो के दौरान दिल का दौरा पडऩे से हुआ। उस समय वह गा रहे थे, एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल, जग में रह जाएंगे प्यारे तेरे बोल । उस कार्यक्रम का लता मंगेशकर और नितिन मुकेश भी हिस्सा थे।मुकेश साहब के गाए 15 लोकप्रिय गाने..1. दिल जलता है, तो जलने दे2. जाने कहां गए वो दिन3. सावन का महीना4. चंदन सा बदन चंचल चितवन5. कहीं दूर जब दिन ढल जाए6. कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है7. ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना8. जीना यहां मरना यहां9. तारो में सजके अपने सूरज से10. कई बार यूं भी देखा है11. मेरा जूता है जापानी12. मेहबूब मेरे13. आवारा हूं14. दुनिया बनाने वाले15. डम डम डिगा डिगा
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23 जुलाई : महमूद की पुण्यतिथि पर विशेष
आलेख - प्रशांत शर्मा
-कॉमेडी को भारतीय फिल्मों के कथानक का बनाया अंतरंग हिस्सा
लोगों को हंसाने की विलक्षण प्रतिभा के धनी प्रख्यात हास्य कलाकार महमूद को कॉमेडी को भारतीय फिल्मों का अभिन्न अंग बनाने का श्रेय जाता है। हंसी-मजाक में बड़ी खूबसूरती से जिंदगी का फलसफा बयान करने का हुनर रखने वाले इस कलाकार ने हास्य भूमिका को नए आयाम और मायने दिये।
महमूद ने भारतीय फिल्मों में महज औपचारिकता मानी जाने वाली कॉमेडी को एक अलग और विशेष स्थान दिलाया। उन्होंने कॉमेडी को एक नया स्तर और ऊंचाई देने के साथ-साथ यह भी साबित किया कि फिल्म का हास्य कलाकार उसके नायक पर भी भारी पड़ सकता है।
महमूद को भारतीय फिल्मों में कॉमेडी के नए युग की शुरुआत करने वाला कलाकार माना जाता है। इस फनकार ने कॉमेडी को भारतीय फिल्मों के कथानक का अंतरंग हिस्सा बनाया। उन्हीं के प्रयासों का नतीजा था कि 60 के दशक में फिल्मों पर कॉमेडी हावी होने लगी थी और महमूद अभिनय की इस विधा के बेताज बादशाह बन गए थे। महमूद ने 60 के दशक में अपने अभिनय की विशिष्ट शैली के जादू से हिन्दी फिल्मों में कॉमेडियन की भूमिका को विस्तार दिया और एक वक्त ऐसा भी आया जब महमूद दर्शकों के लिये अपरिहार्य बन गए। महमूद का जन्म 29 सितम्बर 1932 को मुम्बई में हुआ था। महमूद अभिनेता और नृत्य कलाकार मुम्ताज़ अली की नौ संतानों में से एक थे। महमूद ने शुरुआत में बाल कलाकार के तौर पर कुछ फि़ल्मों में काम किया था।
बॉलीवुड में कदम रखने के लिए महमूद सभी तरह के प्रयास करते थे। महमूद ने इसके लिए ड्राइविंग तक सीख ली और निर्माता ज्ञान मुखर्जी के ड्राइवर बन गए। महमूद ने सोचा की अब उन्हें कलाकारों और निर्माता, निर्देशक के करीब जाने का मौका मिलेगा और हुआ भी कुछ ऐसा ही। यहीं से खुली महमूद की किस्मत और उन्हें दो बीघा जमीन , प्यासा जैसी फिल्मों में छोटे-मोटे रोल मिल गए। 1958 में आई फिल्म परवरिश से महमूद को बड़ा ब्रेक मिला। इस फिल्म में उन्होंने राजकपूर के भाई की भूमिका निभाई थी। महमूद के अभिनय को हर किसी ने पसंद किया। इसके बाद छोटी बहन फिल्म उनके कॅरिअर की अहम फिल्म साबित हुई। इन फिल्मों की सफलता के बाद तो महमूद के लिए बॉलीवुड के दरवाजे पूरी तरह से खुल गए। महमूद ने फिल्म गुमनाम में एक दक्षिण भारतीय रसोइये का कालजयी किरदार अदा किया। उसके बाद उन्होंने प्यार किये जा, प्यार ही प्यार, ससुराल, लव इन टोक्यो और जिद्दी जैसी हिट फिल्में दीं।
बॉलीवुड में महमूद की धाक का अंदाज आप इस तरह से लगा सकते हैं कि उन्होंने अमिताभ बच्चन को पहला सोलो रोल दिया था। ये वही महमूद हैं जिन्होंने आर.डी बर्मन यानी पंचम दा जैसे संगीत के धुरंधरों को पहला ब्रेक दिया था। अपनी अनेक फिल्मों में महमूद नायक के किरदार पर भारी नजर आए। यह उनके अभिनय की खूबी थी कि परदे पर उनके कदम रखते ही दर्शक उनसे जुड़ जाते थे।
फिल्मों में अपनी बहुविविध कॉमेडी से दर्शकों को दीवाना बनाने के बाद महमूद ने अपनी फिल्म निर्माण कम्पनी पर ध्यान देने का फैसला किया। उनकी पहली होम प्रोडक्शन फिल्म छोटे नवाब थी। बाद में उन्होंने बतौर निर्देशक सस्पेंस-कॉमेडी फिल्म भूत बंगला बनाई। जिसमें उन्होंने अपने दोस्त और संगीतकार आर. डी. बर्मन को भी अभिनय करने का मौका दिया। उसके बाद उनकी फिल्म पड़ोसन 60 के दशक की जबरदस्त हिट कॉमेडी फिल्म साबित हुई। पड़ोसन को हिंदी सिने जगत की श्रेष्ठ हास्य फिल्मों में गिना जाता है। इसमें सुनील दत्त भी एक अच्छे कॉमेडी कलाकार बनकर उभरे।
आई एस जौहर के साथ उनकी जोड़ी काफ़ी मशहूर हुई थी और दोनों ने जौहर महमूद इन गोवा और जौहर महमूद इन हाँगकाँग के नाम से फि़ल्में भी कीं। निर्देशक के रूप में महमूद की अंतिम फि़ल्म थी दुश्मन दुनिया का। 1996 में बनी इस फि़ल्म में उन्होंने अपने बेटे मंज़ूर अली को पर्दे पर उतारा था। यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर नाकाम रही। अपने जीवन के आखिरी दिनों में महमूद का स्वास्थ्य काफी खराब हो गया। उन्हें अनेक बीमारियां हो गई थीं। वह इलाज के लिये अमेरिका गए जहां 23 जुलाई 2004 को उनका निधन हो गया। उनकी बीमारी का एक कारण उनका अत्यधिक धूम्रपान करना भी था।
महमूद ने अभिनेत्री मीना कुमारी की बहन मधु से शादी की थी। आठ संतानों के पिता महमूद के दूसरे बेटे लकी अली जाने-माने गायक और अभिनेता हैं।
- ग़ज़ल-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)कभी फूल पढ़ना कभी खार पढ़नालिखा जिंदगी में वही सार पढ़ना ।चुराती नजर में छुपा प्यार पढ़ना ।।प्रभावित करें बाहरी रंग रोगन ।टिकाकर रखे नींव आधार पढ़ना ।।किनारे सदा बैठ कर मौज करते ।नदी को नहीं नदी-धार पढ़ना ।।सभी देखते हैं चमक रोशनी की ।अँधेरी निशा भी कई बार पढ़ना ।।रहें पागलों की तरह घूमते वे ।नहीं आशिकों को गुनहगार पढ़ना ।।
- -लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)जब भी घर जाओ,चूम लेतीं हैं हथेली।ले लेतीं हैं बच्चों की,सौ-सौ बलैंया।माँ ने पाले पोसेअपने बच्चे।फिर देखभाल की अपनेनाती, पोते, पोतियों की।सबकी खुशियों का रखा ध्यान,जीवन भर।सबके लिए अचार, बड़ियोंकी व्यवस्था।त्यौहारों पर आटे,तिल के लड्डूदही-बड़े,पीड़िया।जन्मदिवस पर खीर,थोड़ा-थोड़ा सबके हिस्से,बँटती रही माँ ।सबकी पसंद, नापसंद को लेकरखटती रही माँ ।बच्चों की सफलता परगर्वित होतीं।दुहरातीं कई-कई बारउनके बचपन के किस्से।शरारतों को याद करआती मधुर मुस्कान।वर्तमान में अतीत को जीतींमाँ के बाईस्कोप मेंचलती रहती हैं स्मृतियोंकी तस्वीरें खटाखट।पुरानी बातें याद करते अक्सरवह खो जातीं हैं ,समय की भूल-भुलैया में।।