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विशेष लेख- • डॉ. दानेश्वरी संभाकर
भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि,हम सबके जीवन मां का दर्जा सबसे ऊंचा होता है, मां हर दुःख सहकर भी अपने बच्चों का पालन पोषण करती है, हर मां अपने बच्चों पर हर स्नेह लुटाती जन्मदात्री मां का यह प्यार हम सब पर एक कर्ज की तरह होता है जिसे कोई चुका नहीं सकता। प्रधानमंत्री श्री मोदी का सोचना है कि अब हम मां को कुछ दे तो सकते नहीं लेकिन और कुछ कर सकते हैं। इसी सोच में इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस पर एक विशेष अभियान शुरू किया गया है इस अभियान का नाम है ‘‘एक पेड़ मां के नाम’’।विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने (5 जून) को बुद्ध जयंती पार्क, नई दिल्ली में पीपल का पौधा लगाकर ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान की शुरुआत की। प्रकृति के पोषण के लिए धरती माता और मानव जीवन के पोषण के लिए हमारी माताओं के बीच समानता दर्शाते हुए पीएम मोदी ने दुनिया भर के लोगों से अपनी माँ के प्रति प्रेम, आदर और सम्मान के प्रतीक के रूप में एक पेड़ लगाने और धरती माता की रक्षा करने का संकल्प लेने का आह्वान किया।केंद्र और राज्य सरकार के विभाग भी ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान के लिए सार्वजनिक स्थानों की पहचान करेंगे। गौरतलब है कि इस बार विश्व पर्यावरण दिवस की थीम भूमि क्षरण को रोकना और उलटना, सूखे से निपटने की क्षमता विकसित करना और मरुस्थलीकरण को रोकना का मुख्य उद्देश्य है।मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने नवा रायपुर के अटल नगर स्थित जैव विविधता पार्क में ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान का शुभारंभ पीपल के पौधे का रोपण कर किया। इस अभियान के तहत वन विभाग द्वारा छत्तीसगढ़ में 4 करोड़ वृक्ष लगाये जाएंगे। इस अभियान में स्कूली बच्चे, आम नागरिक और जनप्रतिनिधि भी उत्साह के साथ हिस्सा ले रहे हैं। शासकीय, अशासकीय संस्थाओं और समितियों द्वारा पौधारोपण जोर-शोर से किया जा रहा है।पेड़ का महत्वपेड़ लंबे समय तक प्रदूषण मुक्त वातावरण की कुंजी हैं क्योंकि वे ऑक्सीजन प्रदान करने, हवा की गुणवत्ता में सुधार, जलवायु सुधार, जल संरक्षण, मिट्टी संरक्षण और वन्य जीवन का समर्थन करने के लिए जिम्मेदार हैं। इन सभी कारणों से वर्तमान परिदृश्य में वृक्षारोपण आवश्यक हो गया है क्योंकि प्रदूषण चरम पर है। कुछ हद तक प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए वृक्षारोपण ही एकमात्र उपाय है। पेड़ों के बिना, पृथ्वी पर जीवन नहीं होता। पेड़-पौधे कई तरह से पर्यावरण को स्वस्थ रखने में बहुत योगदान देते हैं।मार्च 2025 तक 140 करोड़ पेड़ लगाने की योजनाएक पेड़ माँ के नाम अभियान के साथ इस साल सितंबर तक 80 करोड़ और मार्च, 2025 तक 140 करोड़ पेड़ लगाने की योजना बनाई गई है। इसके लिए “संपूर्ण सरकार” और “संपूर्ण समाज” नीति का पालन किया जाएगा। ये पेड़ पूरे देश में व्यक्तियों, संस्थाओं, समुदाय आधारित संगठनों, केंद्र और राज्य सरकार के विभागों और स्थानीय निकायों द्वारा लगाए जाएंगे। -
- गीत
- लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
गुरु की कर आराधना , पाना है जो ज्ञान ।
ईश्वर को पाना अगर , गुरु का कहना मान ।।
माता होती प्रथम गुरु , देती ज्ञान , विचार ।
शिक्षा और संस्कार से , चरित्र मिले निखार ।
मात-पिता-गुरु को नमन , करता यह संसार ।
दीक्षा-विवेक- ज्ञान ही , जीवन के आधार ।।
दीपक सम जलकर सदा , मन में भरें उजास ।
ज्योति जलाएँ ज्ञान की , भरते पंथ प्रकाश ।।
राह दिखाते हैं जगत , नहीं बिना गुरु ज्ञान ।
गुरु-चरणों की वंदना , करें सदा सम्मान ।।
महिमा गुरुवर की सदा , जग यह गाए आज ।
कलुष अज्ञान का मिटा , करते स्वच्छ समाज ।
- -मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय की पहल पर सभी स्कूलों में गुरूओं का होगा सम्मानविशेष लेख- डॉ. दानेश्वरी संभाकर, सहायक संचालक, जनसंपर्कभारतीय संस्कृति में गुरू को ब्रह्मा, विष्णु और महेश के बराबर दर्जा दिया गया है। गुरू ही सच्चा मार्गदर्शक होता है जिसके मार्गदर्शन से हम अपने लक्ष्यों को प्राप्त करते हैं। गुरू गूढ़ ज्ञान को सरल शब्दों में समझाने का कार्य करते हैं। कहा जाता है कि माता-पिता बच्चे को संस्कार देते हैं, लेकिन गुरू बच्चों व्यक्तित्व विकास के साथ-साथ उनमें ज्ञान भरते हैं, इसलिए उनका दर्जा समाज में सबसे ऊपर है।छत्तीसगढ़ में गुरू-शिष्य की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए सभी स्कूलों में चालू शैक्षणिक सत्र में मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय की पहल पर इस वर्ष गुरू पूर्णिमा का पर्व मनाने का निर्णय लिया गया है। गुरू पूर्णिमा पर्व के पीछे शासन की मंशा है कि स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों और उनके शिक्षकों के बीच मधुर संबंध बने। गुरूओं के प्रति बच्चों में सम्मान की भावना जगे इसके साथ ही गुरू-शिष्य के बीच बेहतर संबंध बनाने के पीछे यह भी धारणा है कि गुरू भी बच्चों को अपनत्व भाव से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने में तत्पर रहे।छत्तीसगढ़ शासन के स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा सभी स्कूलों में 22 जुलाई से गुरू पूर्णिमा का पर्व मनाने की निर्देश दिए गए हैं। इस आयोजन में गुरूजनों और स्कूली बच्चों अलावा स्थानीय जनप्रतिनिधि भी शामिल होंगे। कार्यक्रम की शुरूआत सरस्वती वंदना और गुरू वंदना से होगी। स्कूली बच्चों के द्वारा जीवन में गुरूओं के महत्व पर व्याख्यान भी दिए जाएंगे। इस अवसर पर वरिष्ठ शिक्षकों द्वारा भी अपने उत्कृष्ट विद्यार्थियों के बारे में यादगार पलों का स्मरण किया जाएगा। इसी प्रकार स्कूली बच्चे भी अपने गुरूओं के साथ हुए अनेक प्रसंगों की चर्चा करेंगे। कार्यक्रम में निबंध लेखन और कविता पाठ का भी आयोजन होगा।छत्तीसगढ़ निर्माण के बाद पहली बार स्कूलों में गुरू पर्व मनाने का आयोजन हो रहा है। इस नवाचारी पहल से शिक्षकों में जहां सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना आएगी, वहीं बच्चों में भी गुरूओं के सम्मान के साथ-साथ बेहतर चरित्र निर्माण और पूरे समर्पण भाव से अध्ययन की ओर अग्रसर होंगे।मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय की पहल पर हो रहे इस आयोजन से छत्तीसगढ़ के स्कूलों में फिर से एक बार शैक्षणिक वातावरण में उत्साह जगेगा। गुरू और शिष्य के बीच प्रगाढ़ संबंधों की परंपरा आगे बढ़ेगी। गुरू और शिष्य के बीच पवित्र रिश्ता बनेगा। इससे निश्चित रूप से राज्य में बच्चों के लिए उत्कृष्ट शैक्षणिक वातावरण बनाने में मदद मिलेगी।
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- (कहिनी)
- लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
संझौती के बेरा चिरई-चिरगुन मन चिचियात एके संघरा अपन-अपन खोन्दरा डहर लहुटत रिहिन हे । जम्मो कमइया मन घलो दिन भर के कमाई करे के बाद थके-मांदे घर पहुँचे के जल्दी करत रिहिन । जाड़ के बेरा झटकुन मुंधियार होय के सेतिर सब्बो ल घर जाय के जल्दी लागे रिहिस । मंदिर के घंटी बाजत रहिस अउ आरती के आवाज हर चारों खूंट गूंजत रहिस । जम्मो झन कर्मचारी मन तको अपन घर कोती निकर गे रिहिन हे दास बाबू ल छोड़ के । नगर निगम के ऑफिस म हेडकलर्क दास बाबू के घरवाली मीरा ल मरे दू बछर होवत हे , फेर सुन्ना घर म जाय के अभो ले मन नई लागय । लइका मन अपन गोड़ म खड़े होगे अउ शहर ले बाहिर निकरगें । दास बाबू काम म अपन आप ल ब्यस्त राखथे , ठीक टाइम म ऑफिस आ जाथे अउ सबले पाछू घर जाथे । उहां के चपरासी हर कहिथे चलव न बाबूजी जाबो तब उठथे अपन जगह ले ।
घर लहुटीस त दू झन लइका मन ओला अगोरत बैठे रिहिन । घर सुन्ना-सुन्ना लागथे कइके ऊपर के घर ल किराया देबर विज्ञापन देहे रहिस ओखरे सेतिर ओमन आय रिहिन ।
घर ल देखाइस तह ले एडवांस , बिजली बिल जम्मो बात ल गोठिया के हाँ कही दिस । ओ लइका मन पढ़े बर आय रिहिन त तुरते एडवांस तको दे दिन।
सुन्ना घर मां चिराई चिरगुन तको आ जथे त ओ घर हर बसे सही लागे लगथे फेर उमन त जीयत जागत लइका रिहिन ।
दास बाबू ल बोले बताय बर एक ठिन सहारा होगे। अपने घर के लइका सही ओमन के तोरा करय । रवाना खाये हव के नहीं ,बने पढाई करत हें कि नहीं, अइ सन हे दू चार ठिन गोठ बात के सहारा होगिस। दास बाबू
तको अब समय म घर लहूटे लागीस । परीया परे भुंया म एक ठन अंकुर के फुटे तको बड़ सुख देथे , अपन लइका बर मेहनत करना मा बाप के जुम्मेदारी समझे जाथे फेर दूसर बर उही काम करे ले ओमन जिनगी भर सुरता राखथे अउ मान गौन तको करथें। लइका मन दास बाबू बर अब्बड़ मया करय। प्रेम अइसे जिनीस ए तैं हर एक देबे त तोला दुगुना चौगुना होके मिलही।
लइका मन फोन मा बाबूजी के तोरा ल लेवत रहिथें अउ कहिथें -”रिटायर होय के बाद हमरे संघरा रहे बर आ जाहु बाबूजी, हमन ल तुंहर स्वास्थ्य के चिंता लागे रहिथे ।”
ले अभी त टाइम हे कइके उमन ल भुलवार देथे फेर अब नौकरी के एक साल बाँचे म दास बाबू घलो फिकिर म परगे रिहिसे। बहू बने सेवा जतन करथे फेर थोरकिन बर आथें त बात-ब्यवहार अलग होथे अउ हरदम बर रहिबे तव अब्बड़ कन बात के धियान राखे बर परथे।
ओ दिन ऑफिस ले लहुटत खानी ओखर बचपन के मितान श्याम संग भेंट होगे त ओला लेवा के दास बाबू हर अपन घर ले आईस। श्याम ल तभे मीरा के इंतकाल के पता चलिस।”बिन घरनी भूत के डेरा “ केहे जाथे फेर ओहर इहाँ परगट रूप देखत रिहिस। दास बाबू हर रांधय-गढ़य नहीं खाना बनवइया राखे रिहिस ,ओहर अपन मर्जी ले घर के जतना जतन कर देथे दास बाबू ओमा सन्तुष्ट रहिथे। ओहर जादा खिचिर-पिचिर नई करय। श्याम ल चाय बना के पियाइस अउ बचपन के सुरता के नदी म दुनों संगवारी बोहाय लागीन । ओही बीच म किराया म रहइया लइका मन दास बाबू तीर आ के कोनो कुछु माँग के लेगे अउ कोनो दास बाबू बर साग त कोनो दवाई लेके आइन। श्याम हर अचंभा म उमन के बात ब्यवहार ल देखत रिहिस, उंखर जाय ले कहिथे -” बने ए लइका मन तोर सहारा होगे हे ,इही ल कहिथे आम के आम अउ गुठली के दाम ।”
“हव जी, इही बात ल मने मन गुनत रहिथव के रिटायर होय के बाद कइसे करव। लइका मन त अपन घर म आय बर कहत हावय फेर मैं कुछु निर्णय नई ले पावत हव। तैं हर अपन बिचार ला बता”।
“काली तैं हर रात कुन मोर घर मा तोर नेवता हे, तैं आ तब तक मेंहर सोच के बताहूँ ।”
“ले का होही “ कइके उंखर सभा खतम होइस।
.दूसर दिन रात कुन दास बाबू हर भोजन करे श्याम के घर पहुँच गे ओतका टेम श्याम हर घर म नई रिहिस, ओखर बहु हर दरवाजा ल खोलिस अउ ओला बैठक म बइठार के पानी पियाइस ,बने गोठियाइस। ओहर बताइस के श्याम हर अपन दु बछर के नतनीन ल घुमाय बर लेगे हे आवत होही। मोला ओहर खाना बनावन नई देत रिहिस कका त बाबूजी हर ओला भुलवार के लानत हव कइके लेगिस हे। थोरकिन समय बाद दुनो झन आगे, ओकर नतनीन हर चाकलेट अउ कुरकुरे धरे बड़ प्रसन्न दिखत रिहिस अउ अपन मम्मी तीर चल दिस। ऊंखर बोलत बतावत ले बेटा घलो आगे फेर जम्मो झन जुरमिल के बने खाना खाईन। खाना लाय के बाद म श्याम हर बहु ल तको बुलाइस -”आजा बेटा तहूं संगे म खा, अउ कुछु लेना होही त हमन निकाल लेबो। उहाँ सबो झन काम ल बाँट लेवत रिहिन। श्याम हर तको बहु के मदद करय नई तो लइका ल धर के बहु ल मुक्त कर दय। बेटा बहु नतनीन के संग म श्याम हर खुश दिखत रिहिस। दास बाबू समझगे के श्याम हर ओखर प्रश्न के उत्तर दे दे हवय।
लइका मन के घलो अपन जिनगी रहिथे, अपन शौक ,दिनचर्या रहिथे । बड़े-बुजुर्ग मन ऊंखरेच ले जम्मो आस लगा के राखथे अउ अब्बड़ उम्मीद बना के राखथे अउ ओहर पूरा नई होवय त दुखी होथें के बेटा बहु बने तोरा ल नई करय। दुनो ल अपन-अपन हिस्सा के जुम्मेदारी ल निभाय बर परथे। उंखर तकलीफ ल बुजुर्ग मन ल तको समझे बर परही, अपनेच स्वारथ ल नई देख के उंखरों परिस्थिति ल समझे बर परही तभे लइका मन ल ओमन बोझ नई लागय। वैसनहे लइका मन ल तको ए सोच रखना चाही के माँ-बाप मन उंखर जिनगी के ,घर के रौनक हावय अउ उंखर उपस्थिति हर लइका मन बर वरदान ए, बड़े-बुजुर्ग के रहे ले लइका मन सुसंस्कारी बनथें, परिवार म सुनता रहिथे। लइका मन ल माता पिता के उमर अउ स्वास्थ्य के हिसाब से ब्यवहार करना चाही। दुनो के बीच म संतुलन बनाये ले घर हर चलथे अउ इही प्रेम अउ सुख के आधार ए। दास बाबू के मन के सब्बो दुविधा हर खतम होगे रिहिस अउ उहू जिनगी के दूसर पारी चालू करे बर तइयार होगे रिहिस। -
विशेष लेख- एल.डी. मानिकपुरी , सहायक जनसंपर्क अधिकारी
रायपुर, / भारतीय संस्कृति में माँ सदैव पूजनीय रही हैं। माँ की महिमा को अलग-अलग धर्मों में विभिन्न तरीकों से वर्णित किया गया है। हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने करोड़ों देशवासियों से आह्वान किया है कि आइए माँ के नाम एक पेड़ लगाइए। इस पहल का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण को सुधारना और धरती माँ को हरियाली से सजाना है। भारत भूमि पर पेड़-पौधों का महत्व हमारे धर्मग्रंथों में व्यापक रूप से वर्णित है। जिस तरह अलग-अलग अंचलों में विभिन्न बोली-भाषाओं का चलन है, उसी प्रकार यहाँ विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे भी पाए जाते हैं। प्रदेश के लोकप्रिय मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय ने प्रदेशवासियों से अपील करते हुए कहा है कि प्रधानमंत्री श्री मोदी की इस पहल को साकार करने के लिए हर व्यक्ति माँ के नाम पर एक पौधा अवश्य लगाए।धरती माँ का श्रृंगार हरियाली में निहित है। हमारी धरती को माँ के रूप में माना गया है और माटी को भी माँ का दर्जा दिया गया है। छत्तीसगढ़ को प्रकृति ने अनुपम सौगात दी है, जहाँ लगभग 44 प्रतिशत भू-भाग वनों से आच्छादित है। सरगुजा संभाग हरियाली का मुकुट धारण किए हुए है और बस्तर अंचल हरियाली के श्रृंगार से सजा हुआ है। यहाँ के मोहला और गरियाबंद के जंगल भी मन को मोह लेते हैं। इस समय प्रदेश में ‘एक पेड़ माँ के नाम‘ अभियान के लिए वन विभाग सहित शासकीय, अशासकीय संस्थाओं और समितियों द्वारा पौधारोपण जोर-शोर से किया जा रहा है। धरती को उर्वरा, मौसम को खुशनुमा, स्वच्छ पर्यावरण, प्रदूषण रहित हवा, जलस्रोत को बढ़ावा और जल-जमीन-जंगल और जीवों के जतन की जिम्मेदारी हम सबकी सहभागिता से पूरी होगी। ग्लोबल वार्मिंग को रोकने और धरती को फिर से बेहतर बनाने के लिए हमें ‘एक पेड़ माँ के नाम‘ अभियान में हिस्सेदारी करते हुए पौधे लगाना होगा। परिवार के हर सदस्य को एक पौधा रोपण करने की आवश्यकता है इनकी देखभाल छोटे बच्चों की तरह देखभाल करनी होगी। जब यह पौधा पेड़ बनेगा, तो यह प्राणवायु के साथ फल देगा, माँ के आँचल की तरह इसके पत्ते लह-लहाएँगे, पेड़ों में चिड़ियों का वास होगा और उनकी चह-चहाहट सुनने को मिलेगी। इससे वर्तमान और नई पीढ़ी पेड़-पौधों की महत्ता को समझ सकेगी। आओ, हम सब मिलकर इस पहल में भाग लें और धरती माँ को हरियाली का श्रृंगार पहनाएँ। एक पेड़ माँ के नाम लगाकर हम पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाएँ। इससे न केवल धरती हरी-भरी होगी, बल्कि हमारा भविष्य भी सुरक्षित रहेगा। -
*शेड निर्माण से अस्वच्छता संबंधी समस्याओं का हुआ निदान*
*कचरे से जैविक खाद बनाकर जीवन में हो रहा आर्थिक सुधार*
बिलासपुर/जैविक खेती की ओर कदम बढ़ा कर जिले के किसान अब खेती-किसानी में क्रांति ला रहे है। भूमि की गुणवत्ता में सुधार लाने में भी अपना बहुमूल्य योगदान दे रहे है। बिल्हा विकासखण्ड के ग्राम गोंदईया में समूह की महिलाएं कचरा प्रबंधन कर एवं अपशिष्ट से तैयार जैविक उर्वरक एवं खाद का उपयोग कर सब्जी उत्पादन कर रहीे हैं। इस खेती से उन्हें 60 हजार से लेकर 70 हजार तक का वार्षिक लाभ हो रहा है। महिलाओं के जीवन में आर्थिक सुधार आया है और वे अपने परिवार की जिम्मेदारियों में बखूबी अपना योगदान दे रही हैं।
समूह की महिलाओं ने बताया कि गांव में मनरेगा के तहत एसएलडब्ल्यूएम शेड, नाडेफ एवं वर्मी टेंक निर्माण किया गया है। इन कार्याें के लिए मनरेगा अंतर्गत लगभग 9.28 लाख रूपये की राशि स्वीकृत हुई थी। शेड के माध्यम ठोस एवं तरल अपशिष्ट के रूप में निकलने वाले कचरे का प्रबंधन कर जैविक खाद बनाया जा रहा है। अपशिष्टों को विभिन्न स्त्रोतों से एकत्र कर अपशिष्ट प्रबंधन प्रक्रिया के माध्यम से उनका निपटान किया जाता है। ग्रामीण बताते हैं कि शेड निर्माण कार्य से अस्वच्छता संबंधी समस्याओं का निदान हुआ है। ग्राम पंचायत में स्वच्छता का माहौल बना है। ठोस एवं तरह अपशिष्ट प्रबंधन का कार्य प्रतिदिन किया जा रहा है। जिसमें प्रत्येक परिवार को डस्टबीन दी गई एवं तिपहिया वाहन खरीदे गए है। जिसके माध्यम से कचरा का प्रबंधन किया जा रहा है।
ग्रामीणों ने बताया कि ग्राम पंचायत सरपंच, रोजगार सहायक एवं अधिकारी-कर्मचारी प्रशंसा के पात्र है, जिन्होंने शेड निर्माण के संबंध में उन्हें अवगत कराया एवं निर्माण हेतु प्रेरित किया। सभी ग्रामीण इस कार्य से अत्यंत खुश है। उनके जीवन स्तर में सुधार हुआ है। पहले गंदगी का वातावरण रहता था। ठोस एवं तरल कचरा खुल में इधर उधर पड़ा रहता था। उक्त निर्माण से अब कचरा का प्रबंधन हुआ है। स्व सहायता समुहों को रोजगार एवं आजीविका का साधन प्राप्त हुआ, जिससे उनके जीवन में आर्थिक सुधार संभव हो पाया है। - -बाजार में रौनक,महिलाओं में उत्साह और घर परिवार में खुशियां बिखेर रही है यह योजना*विशेष लेख: कमलज्योति, सहायक संचालकयह महतारी वंदन योजना है। एक ऐसी योजना ,जिसमें सुनहरे भविष्य की उम्मीद और बेबस, लाचार महिलाओं के साथ-साथ अपने जरूरी खर्चों के लिए पैसों की मोहताज महिलाओं की खुशियां ही नहीं छिपी है, इन खुशियों के पीछे आर्थिक सशक्तिकरण का वह आधार भी है, जो कि महतारी वंदन जैसी योजना के बलबूते छत्तीसगढ़ की गरीब महिलाओं में आत्मनिर्भरता की नींव को शनैः-शनैः मजबूत करती जा रही है। महज चार महीनों में ही विष्णु सरकार की इस महतारी वंदन योजना ने छत्तीसगढ़ की न सिर्फ महिलाओं में अपितु घर-परिवार में भी खुशियों की वह मिठास घोल दी है, जिसका परिवर्तन उनके जीवनशैली में भी बखूबी नजर आने लगा है। आर्थिक रूप से सशक्तिकरण ने परिवार के बीच रिश्तों की गाँठ को और भी मजबूती से बाँधना शुरू कर दिया है। इस योजना से महिलाओं का सम्मान भी बढ़ा है।छत्तीसगढ़ में इस साल के 10 मार्च से महिलाओं के खाते में भेजी गई पहली किश्त एक हजार रुपए से आरंभ हुई छत्तीसगढ़ महतारी वंदन योजना का लाभ प्रदेश की लगभग 70 लाख 12 हजार से अधिक महिलाओं को मिल रहा है। साल में 12 हजार रुपये कोई छोटी रकम नहीं है..यह जरूरतमंद गरीब महिलाओं के लिए आर्थिक आधार भी है। मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय विगत चार महीनों से लगातार हर महीने के पहले सप्ताह में महिलाओं के बैंक खाते में इस योजना अंतर्गत एक हजार की राशि ऑनलाइन माध्यम से अंतरित करते हैं। मुख्यमंत्री के बटन दबाते ही महिलाओं के खाते में पहुँचने वाली यह राशि प्रदेश की लाखों महिलाओं की खुशियों का पर्याय बन जाती है। पहले कुछ रुपयों के लिए मोहताज महिलाओं को एक हजार की राशि मिलने पर उनकी अपनी छोटी-छोटी जरूरतों का सपना भी पूरा होता है। इस राशि का उपयोग वह सिर्फ अपने ही लिए नहीं करती...घर के राशन से लेकर अचानक से पति को कुछ रुपयों की पड़ी आवश्यकता, बच्चों के लिए कुछ जरूरी सामान, नाती-नतनी की खुशियों के ख़ातिर स्नेहपूर्वक उन्हें उनकी जरूरतों का उपहार देने में भी करती हैं। महिलाओं को हर महीने इस राशि का बेसब्री से इंतजार रहता है। ऐसी ही इस योजना की हितग्राही मीरा बाई हैं। पति शारिरिक रूप से असमर्थ है। किसी तरह मजदूरी कर घर के खर्चों को पूरा करती है। तीन बच्चे हैं और वे स्कूलों में पढ़ाई करते हैं। स्कूल खुलते ही अपने बच्चों के लिए आई जरूरतों को पूरा करने के साथ घर की जरूरतों में भी महतारी वंदन योजना की राशि का उपयोग करती हैं। उन्होंने बताया कि घर के प्रति उनकी जिम्मेदारी है और हर महीने मिलने वाली एक हजार रुपये की राशि उनके लिए एक बहुत बड़ा योगदान है। इस राशि से ऐन वक्त पर बच्चों और पति को आई जरूरतों को भी पूरा कर पाती हैं। गाँव में रहने वाली सविता बाई के पति खेतों में काम करते हैं। बारिश में चाय की चुस्कियां लेती सविता बाई ने महतारी वंदन न्याय योजना का नाम आते ही चेहरे पर मुस्कान लाकर इस योजना से मिल रही खुशियों को प्रकट किया। उन्होंने कहा कि गाँव की महिलाओं के लिए एक हजार की राशि एक बड़ी राशि होती है। उन्होंने बताया कि महिलाओं की आदत होती है कि दो-चार-पाँच रुपए बचा कर सौ-दो सौ जोड़ लें। यहां तो एक हजार रुपए मिल रहे हैं ऐसे में उनकी जरूरतों के लिए यह रकम कठिन समय में संजीवनी की तरह साबित हो रही है। बच्चों के लिए भी वह इस राशि को खर्च कर पाती है। उन्होंने बताया कि पैसा खाते में आने के बाद छोटी जरूरतों के लिए पति से अनावश्यक पैसा मांगना भी नहीं पड़ता।वनांचल में रहने वाली श्रीमती बुधवारों बाई राठिया गाँव के हाट बाजार पहुँची थीं। अपने नाती आशीष को लेकर आईं बुधवारो बाई ने बाजार में नाती को न सिर्फ उनके पसंद का मिष्ठान खिलाया अपितु अन्य नाती-नतनिनों के लिए बाजार से मिष्ठान लिया और उनका नाती आशीष बारिश में नंगे पैर न घूमे इसे ध्यान रखते हुए महतारी वंदन योजना की राशि से स्नेहपूर्वक चप्पलें भी खरीदी। उन्होंने बताया कि उनका जो कुछ है उनके बेटे और नाती-नतनी ही हैं और बहुत ही खुशी मिलती है कि वृद्धावस्था में वह अपने नाती-नतनियों की कुछ जरूरतों को पूरा कर पाती हैं। यह सब मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय और उनकी सरकार की बदौलत ही हो पाया है। उन्होंने हमारे संघर्षमय जीवन में खुशियों की मिठास घोल दी है।।।
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- गीत
- लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
हरियाली बिखरी कण-कण में ,शोभन है सुख-साज प्रिये ।
कब के बिछड़े आज मिले हैं , हम सावन में आज प्रिये ।
तृण-तृण झूमे नाचे मग में , फूलों से झुकती डाली ।
मलय सुवासित करता जग को ,संध्या के गालों लाली ।
रूठे-से तुम क्यों लगते हो , क्यों मुझसे नाराज प्रिये ।
कब के----
मोती की लड़ियों से सज्जित ,तालें नदियाँ निर्झर हैं ।
खिलते रक्तिम नीले नीरज , स्वागत करते हँस कर हैं ।
पावस की भीगी फुहार में , वनदेवी का राज प्रिये ।।
कब के—
पीहू-पीहू मोर नाचते , चिड़िया मंगल गान करें ।
फुदक-फुदक कर दादुर बोले ,पिकी सुरमयी तान भरें ।
सृष्टि मनोहर प्रेम जगाए ,प्रकृति बढ़ाती लाज प्रिये ।।
कब के---- -
एक जुलाई जयंती पर विशेष
आलेख: डॉ परदेशीराम वर्मावीर शहीदों पर हम अपने समय के बड़े कवियों के लेखन में भी भावांजलियां कम पाते हैं। जबकि 1940 से 1970 तक वीरों के यशगान की कविताएं बहुतायत से लिखी गई। श्रेष्ठ, धुरंधर और अपने समय के सभी दिग्गज कवियों के साथ ही नई पीढ़ी के रचनाकारों ने भी ऐसा लेखन किया। दिनकर, से लेकर श्री कृष्ण सरल तक एक लंबी परंपरा है वीरों, शहीदों के लिये काव्य लेखन की।हमारे छत्तीसगढ़ में भी ऐसा लेखन खूब हुआ लेकिन हम पाते हैं कि प्रायः स्वतंत्रता संग्राम में सेनानियों या सेनानी परिवार के कवियों ने तो लेखन किया ही उस दौर के सभी पीढ़ी के रचनाकारों ने महत्वपूर्ण राष्ट्रीय भावना से जुड़ी कविताओं का सृजन किया। इनमें स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी जी प्रमुख हैं। वे स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़े दादा और पिता की परंपरा को समृध्द करते हुए साहित्य, समाजसेवा के क्षेत्र में आजीवन सक्रिय रहे।उनकी बहुत प्रेरक कविताएॅं है। जिनका मूल भाव उनकी इस चर्चित कविता की पंक्तियों की तरह भावपूर्ण हैं।तुम गए मिटे रह गई एककहने को अमर कहानी है।दिल में तस्वीर तुम्हारी है,आंखों में खारा पानी है।है याद जहां इस भारत में,मिट्टी में मिली जवानी है।उन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन का इतिहास अपनी कविताओं में लिखा है। उनकी बहुतेरी कविताओं में 1930 से 1947 तक के कालखंड की सभी महत्वपूर्ण घटनाएॅं हैं। एक छोटा सा उदाहरण-जब बजा शंख सन् ब्यालिस में,आजादी कातो रूक न सके बूढ़े जवाननन्हे बच्चेचुप रह न सकींमॉं बहनें भीजागे पशु जागे नद नालेजागे विन्ध्या, हिमगिरि विशालकैलाश शिखर से लंका तकबज उठा शंख आजादी का।स्वराज प्रसाद त्रिवेदी जी हमारी पीढ़ी के साहित्यकारों के संरक्षक और गुरू थे। उनका जन्म एक जुलाई 1920 को रायपुर में हुआ। उनके पिता गयाचरण त्रिवेदी समाज सेवा और स्वतंत्रता आंदोलन के क्षेत्रों के पुरोधा रहे। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री द्वारिका प्रसाद मिश्र तथा छत्तीगढ़ के साहित्यकार और पत्रकार कन्हैयालाल वर्मा उनके मित्र थे। उनके ये दोनो मित्र साहित्य समाज सेवा और आगे चलकर स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी बने इनका गहरा असर स्वाभाविक रूप से पंडित गयाचरण जी पर भी पड़ा। उन्होंने भी अपने मित्रों के अभिरूचि के क्षेत्रों में खूब काम किया।प्रथम विश्वयुध्द के समाचारों को संकलित कर नयापारा मुहल्ले में श्यामपट्ट पर वे प्रतिदिन लिखा करते थे। यह पत्रकारिता का बीज मंत्र भी सिध्द हुआ जो कालान्तर में उनके यशस्वी पुत्र स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी जी को विरासत में प्राप्त हुआ।माता कलावती और पिता गयाचरण त्रिवेदी ने अपने बच्चों का नाम समकालीन स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास के उतार-चढ़ाव के अनुरूप रखा। यह नामकरण प्रसंग रोचक, प्रेरक और अनुपम है।स्वराज्य प्रसाद, स्वतंत्र प्रसाद, स्वाधीन कुमारी, शांति कुमारी, ये नाम रखे गए। स्वराज्य हमारा जन्मसिध्द अधिकार है, इस नारे का असर स्वराज्य प्रसाद जी के नामकरण के समय प्रभावी था। स्वतंत्रता का सिंहनाद हो चुका था इसलिए स्वतंत्र प्रसाद नामकरण हुआ। देश अब जल्दी स्वाधीन होगा यह विश्वास जब जगा तब जन्मी पुत्री का नाम स्वाधीन कुमारी रखा गया। और आजादी के बाद देश शांति के पथ पर चलकर अग्रसर होगा इस सपने से जुड़ा नाम पुत्री शांतिकुमारी का रखा गया। उनके पुत्र-पुत्रियों में उनके पुत्र स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी ने भरपूर यश अर्जित किया। चौथी कक्षा से ही वे प्रथम श्रेणी के विद्यार्थी के रूप में लगातार चिन्हित हुए।रमाप्रसन्न नायक, कौशल प्रसाद चौबे विश्वनाथ मिश्र, श्यामलाल गुप्त, रामकृष्ण सिंह, लखन लाल तिवारी उनके मित्र और सहपाठी रहे। ये सभी दिग्गज आगे चलकर अपने-अपने क्षेत्रों में यशस्वी बने। कानपुर के सनातन धर्म कालेज में पढ़ते हुए उन्होंने साहित्य सृजन के क्षेत्र में साधना का संकल्प लिया। वे तब से पढ़ते हुए, स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेते हुए लेखन से जुड़े रहे।1938 में रायपुर में जनस्वामी योगानंदन ने छत्तीसगढ़ कालेज की स्थापना रायपुर में की। यह उच्च शिक्षा के क्षेत्र में युगांतरकारी कदम सिध्द हुआ। स्वराज्य प्रसाद जी अपने गृहनगर आ गए। इसी छत्तीसगढ़ कालेज से उन्होंने बी.ए.किया। 1940 में वे कांग्रेस पार्टी के मुखपत्र कांगेस पत्रिका से जुड़े। फिर रायपुर से प्रकाशित आलोक के संपादक मंडल में वे सम्मिलित हो गए।वे प्रतिभाशाली व्यक्ति थे। उनका परिवार भी समृध्द था। बी.ए. करने के बाद वे 23 जुलाई 1942 को साप्ताहिक अग्रदूत में सहायक संपादक बने। यह अग्रदूत न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि समस्त महाकौशल का प्रमुख समाचार पत्र बन गया।राष्ट्रीय आन्दोलन में खुलकर भाग लेने के कारण उन्हें ब्रिटिश शासन का कोपभाजन बनना पड़ा। उनके घर भी तलाशी ली गई। 1943 में उन्हें रायपुर छोड़ना पड़ा। 1943-44 में वे सागर के जैन हाई स्कूल में शिक्षक रहे। 1945 में वे पुनः रायपुर लौट आये। वे यहां लारी हाईस्कूल में शिक्षक हो गए। तब तक पंडित रविशंकर शुक्ल जेल से छूटकर आ गए थे। उन्होंने स्वराज्य प्रसाद जी के सम्मुख महाकोशल साप्ताहिक के संपादन का प्रस्ताव रखा। उन्होंने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। जनवरी 1951 से महाकोशल के संपादक बने। 1954 तक उन्होंने बहुत सफलता के साथ संपादन का दायित्व निभाया। इसी बीच मध्यप्रदेश शासन ने उन्हें जनसम्पर्क अधिकारी के पद का प्रस्ताव दिया और वे उस पद पर काम करने भोपाल चले गए।4 मार्च 1954 से 1978 तक वे जनसम्पर्क में विभिन्न पदों पर रहे। उपसंचालक के पद से वे सेवानिवृत्ति हुए। फिर वापस आकर वे अग्रदूत में 1983 से 1998 तक सलाहकार संपादक रहे। जब अग्रदूत दैनिक हो गया तब 1998 से 2002 तक की अवधि में वे भोपाल में दैनिक अग्रदूत ओर महाकोशल के विशेष प्रतिनिधि रहे।वे गोंडवाना की जंगली जड़ी बूटियॉं तथा कृषि पंचांग पत्रिकाओं के परामर्शदाता भी रहे। उनके परिवार पर सरस्वती और लक्ष्मी दोनों की भरपूर कृपा सदा रही। उनके पड़े पुत्र डा. सुशील त्रिवेदी हिन्दी के जाने माने लेखक, चिंतक और संपादक हैं। छत्तीसगढ़-मित्र का पुनः प्रकाशन उन्हीं के प्रेरणा से रायपुर से इन दिनों हो रहा है जिसे प्रख्यात साहित्यकार, शिक्षाविद डा. सुधीर शर्मा नियमित मासिक के रूप में निकाल रहे हैं। डा. सुशील त्रिवेदी के दिशानिर्देश का पालन करते हुए संपादन प्रकाशन हेतु बेहद स्तरीय रचनाओं का चयन कर इस पत्रिका को सम्मान, पुरस्कार योग्य बनाने में कामयाब हुए।छत्तीसगढ़ मित्र मासिक अपने विशेषांकों के कारण भी देश भर में चर्चित है। कठोर चयन प्रक्रिया और सही दृष्टि के कारण इस पत्रिका का यश चतुर्दिक फैलता ही जा रहा है। स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी जी जब अग्रदूत में सलाहकार संपादक बनकर पुनः रायपुर आए तब हमारी पीढ़ी के रचनाकार धीरे-धीरे अपनी पहचान के साथ सामने आ रहे थे। उन्होंने हम सबको पिता तुल्य स्नेह और प्रोत्साहन देकर लगातार लिखने का साहस दिया।अग्रदूत मे साहित्य संपादन का काम उन्होेंने हिन्दी के यशस्वी लेखक विनोद शंकर शुक्ल को सौंपा। अग्रदूत में ही लिमतरा गांव के हमारे बड़े भाई टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा स्तंभ लेखन कर इतिहास बनाते रहे। उन्होंने दैनिक अग्रदूत में नियमित प्रतिदिन अग्रलेख लिखने का भी कीर्तिमान बनाया। स्वराज्य प्रसाद जी ने स्वयं लेखन तो किया ही अपने आर्शीवाद से एक पूरी नई पीढ़ी को भी लेखन का संस्कार दिया।उन्हें सादर श्रध्दांजलि देते हुए अक्षर की महत्ता में लिखी उनकी कविता का प्रेरक अंश प्रस्तुत है-कागज पर प्राणों की पीड़ा उतार दे,अक्षर प्रति अक्षर को रूप से संवार दे,गायक आज एक बार प्यार से पुकार दे,देख विश्व प्यासा है,शब्दकार ऐसे में,एक किरण आशा है। -
- गीत
-लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
कोलाहल करते ये पंछी ,
ईश्वर की शुचि सौगातें हैं ।
शरद ग्रीष्म पावस वसंत ये,
मौसम सब आते-जाते हैं ।।
पात बिना हैं शाखें सूनी ,
सुख आधे ही दुख दूनी है ।
दिवस-निशा हैं आते-जाते ,
आज अमावस कल पूनी है ।
परिवर्तन होता जीवन में ,
सबक सभी को दे जाते हैं ।।
गहन अँधेरा पथ में आया ,
मुश्किलों ने पग को डिगाया ।
गह्वर भटकाते मानव-मन ,
उम्मीदों ने आस बँधाया ।
आकर के मार्तंड भोर में,
धवल रोशनी भर जाते हैं ।।
हिम- शिखरों से सरिता फूटे ,
गिरि गुह पाहन श्रम से टूटे ।
निर्झर निर्भय बहते अविरल,
वन-कांतर से नाते छूटे ।
रोड़े ,कानन ,चट्टानों को ,
राहों को सुगम बनाते हैं।।
खाली हाथ मनुज यह आया,
जंगल ,गिरि को गेह बनाया ।
बुद्धि ज्ञान अनुसंधानों से ,
आदिम को इंसान बनाया ।
कठिन परिश्रम कर जीवन को ,
शुभ सरल सुखद कर जाते हैं ।। - रायपुर / अपने पहले ही जनदर्शन में मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने अपने संवेदनशील पहल और त्वरित निर्णयों से लोगों के मन में एक नई आशा का संचार कर दिया है। प्रदेश के सभी कोने से लोग मुख्यमंत्री के जनदर्शन में जुटे। जनदर्शन का समय एक बजे तक रखा गया था लेकिन पहले ही जनदर्शन को लेकर लोगों में इतनी उत्सुकता थी कि इस समय तक काफी लोग जुट गये थे। इसमें से कुछ के मन में आशंका थी कि मुख्यमंत्री के शेड्यूल के काफी टाइट होने की वजह से समय न समाप्त हो जाए और मुख्यमंत्री जी न मिल पाएं। यह आशंका निर्मूल साबित हुई।विष्णु के सुशासन का अहसास सभी आवेदकों को उस समय हुआ जब मुख्यमंत्री श्री साय ने पूरे धैर्य के साथ लोगों की समस्याओं को सुनकर मौके पर ही इनका निराकरण करने के निर्देश दिये। जब तक आखरी आवेदक कतार में था, मुख्यमंत्री भी अपनी कुर्सी से हिले नहीं, पूरे समय तक तन्मयता से लोगों को सुनते रहे। जनदर्शन में बड़ी संख्या में भीड़ महिलाओं की थी।महतारी वंदन योजना की संवेदनशील पहल को साकार कर मुख्यमंत्री ने माताओं-बहनों के जीवन में जो उजाला फैलाया, उससे इनके सपनों में पंख लग गये हैं। एक युवा लड़की आयुषी आई और उसने प्रदेश के मुखिया से कहा कि मुझे यूपीएससी की तैयारी करनी है। मेरे पिता कोविड में नहीं रहे, उनका सपना था कि मैं यूपीएससी करूं और मेरा भी यही सपना है। मुख्यमंत्री ने आयुषी बिटिया को भरोसा दिलाया। जब प्रदेश के मुखिया का आशीर्वाद किसी बिटिया को मिले तो निश्चित ही उसके सपनों को पर लग जाते हैं। मुख्यमंत्री न केवल इनके सपनों को पूरा करने मदद कर रहे हैं अपितु उनका हौसला भी बढ़ा रहे हैं।जनदर्शन की खास बात यह है कि मुख्यमंत्री न केवल लोगों के आवेदन पर कार्रवाई सुनिश्चित कर रहे हैं अपितु पूरी संवेदनशीलता से उनकी तकलीफ भी सुन रहे हैं। मुख्यमंत्री की ख्याति प्रदेश में इस बात को लेकर भी है कि केंद्र में राज्य मंत्री रहने के दौरान और अपने लंबे संसदीय जीवन में उन्होंने छत्तीसगढ़ के कई मरीजों का एम्स में इलाज करवाया। इस ख्याति को देखते हुए लोग अपनी स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें लेकर भी पहुंचे और मुख्यमंत्री ने इसका समाधान किया। एक दिव्यांग बालक के इलाज के लिए उन्होंने जनदर्शन में ही निर्देश दिए और बच्चे को तत्काल अस्पताल ले जाकर एडमिट कर दिया गया।पूरे जनदर्शन के दौरान सबसे दिल छूने वाला पल वो रहा जब मुख्यमंत्री सीधे दिव्यांगजनों के पास पहुंचे। दिव्यांगजनों को किसी तरह की तकलीफ न हो, इस बात का जनदर्शन में खास ध्यान रखा गया था। जिन दिव्यांगजनों के दिव्यांगता प्रमाणपत्र बनाने में दिक्कत आ रही थी, उनके दिव्यांग प्रमाणपत्र उसी दिन बनाकर दे दिये गये।जनदर्शन के तुरंत पश्चात आये सभी आवेदनों के प्रभावी निराकरण के लिए अधिकारियों को निर्देशित कर दिया गया। इसकी मानिटरिंग भी आरंभ कर दी गई है। सुशासन और पारदर्शिता को बढ़ावा देने की सबसे अहम कड़ी जनता से प्रत्यक्ष संवाद है। जनदर्शन के माध्यम से छत्तीसगढ़ में सुशासन को और भी प्रभावी बनाने में ठोस मदद मिलेगी।
- आलेख- डॉ. दानेश्वरी संभाकर, सहायक संचालक, जनसंपर्करायपुर, / महिला सशक्तिकरण से महिलाओं में उस शक्ति का प्रवाह होता है, जिससे वो स्वयं को सकारात्मक भूमिका देने में अहम योगदान कर सकती है। जीवन से जुड़े हर फैसले स्वयं ले सकती हैं और परिवार और समाज में अच्छे से रह सकती हैं। समाज में उनके वास्तविक अधिकार को प्राप्त करने के लिए उन्हें सक्षम बनाना ही महिला सशक्तिकरण है।प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की नीतियों की वजह से आज भारत देश विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों में है। विकसित भारत बनाने के साथ विकसित छत्तीसगढ़ बनाने के लिए यहां की माताओं और बहनों का बड़ा योगदान रहने वाला है। मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ सरकार राज्य की महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए प्रतिबद्ध हैैं और इसके लिए राज्य में महतारी वंदन योजना की शुरुआत की गई है। छत्तीसगढ़ में तीज-त्यौहारों और खुशी में महिलाओं को तोहफे, पैसे और नेग देने का रिवाज है। महतारी वंदन योजना के माध्यम से उसी परंपरा को छत्तीसगढ़ शासन निभा रहा है।उल्लेखनीय है कि महतारी वंदन योजना के तहत राज्य में विवाहित महिलाओं को 1,000 रुपए प्रतिमाह (कुल 12,000 रुपए सालाना) वित्तीय सहायता दी जा रही है, जो प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) के माध्यम से सीधे उनके बैंक खातों में जमा की जा रही है। महिलाएं खुश है कि वो महतारी वंदन योजना से मिली राशि से अपने बच्चों और परिवार की छोटी-छोटी जरूरतें पूरी कर पा रहीं हैं साथ ही कई महिलाएँ भविष्य के लिए निवेश भी कर रहीं हैं।महिलाएं विशेषकर विवाहित महिलाएं घर-परिवार की देखभाल, प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। अपनी छोटी-मोटी बचत का उपयोग ज्यादातर परिवार और बच्चों के पोषण में खर्च करती हैं। लेकिन आर्थिक मामलों में उनकी सहभागिता अभी भी बहुत कम है। इसे देखते हुए राज्य सरकार महिलाओं की आर्थिक सहभागिता बढ़ाने के लिए काम कर रही है। महिलाओं के स्वास्थ्य की बात की जाए तो 2020-21 में हुए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-5 के अनुसार 23.1 प्रतिशत महिलाएं मानक बॉडी मास इंडेक्स से कम स्तर पर हैं। 15 से 49 वर्ष के आयु की महिलाओं में एनीमिया का स्तर 60.8 प्रतिशत और गर्भवती महिलाओं में यह 51.8 प्रतिशत है। ऐसे में महतारी वंदन योजना उनके लिए बड़ी राहत बनकर आई हैं।मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय कहते हैं कि उनका प्रयास आने वाले पांच वर्षों में राज्य की जीडीपी को दोगुना करने का होगा। इसी लिए राज्य की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए बजट में महतारी वंदन योजना के लिए 3,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। 10 मार्च से प्रथम किश्त महिलाओं के बैंक खाते में भेजने से प्रारंभ हुई महतारी वंदन योजना में प्रदेश के कुल 70 लाख 12 हजार 417 हितग्राहियों को महतारी वंदन योजना का लाभ प्राप्त हो रहा है, जून माह में चतुर्थ क़िस्त की राशि महिलाओं के बैंक खाते में ज़ारी की जा चुकी है।
- -मुख्यमंत्री जनदर्शन कार्यक्रम जनता से जुड़ने का है सशक्त माध्यम-आमजनमानस में बढ़ेगा सरकार के प्रति विश्वास-कमलज्योति,सहायक संचालकरायपुर /जनदर्शन कार्यक्रम महज जनता से भेंट करने का माध्यम ही नहीं है, यह एक ऐसा विश्वास का सेतु है, जिसमें संवाद भी है और समस्याओं के समाधान के साथ प्रदेश का विकास भी समाहित है। अरसे बाद एक बार फिर मुख्यमंत्री निवास में जनदर्शन कार्यक्रम प्रारंभ होने जा रहा है। इस जनदर्शन कार्यक्रम का लोगों को बेसब्री से इंतजार भी था। वे अपने मुखिया से मिलकर अपना सुख-दुख साझा तो करते ही है, इसके साथ ही संवाद के माध्यम से प्रदेश के विकास की अवधारणा को लेकर अपना मंतव्य प्रकट करते हैं। आदिवासी मुख्यमंत्री होने के साथ ही सरलता, सहजता का पर्याय श्री विष्णुदेव साय अपने मुख्यमंत्री निवास में 27 जून से प्रातः 11 बजे जनदर्शन कार्यक्रम के माध्यम से सीधे संवाद स्थापित करेंगे।मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय द्वारा जनदर्शन कार्यक्रम के माध्यम से जनता से सीधे जुड़ने का प्रयास उनके धरातल से जुड़े रहने का अहसास कराता है। साधारण से ग्रामीण परिवार वाले पृष्ठभूमि से आए मुख्यमंत्री श्री साय गरीबों के साथ जरूरतमंदों के लिए अब आसानी से उपलब्ध होंगे। मुख्यमंत्री जैसे पद पर जहां निरन्तर व्यस्तताएं होती है और सभी लोगों तक पहुंच पाना और उनकी समस्याओं को, उनकी बातों को सुन और समझ पाना चुनौती है, ऐसे में जनदर्शन कार्यक्रम का आयोजन करके प्रदेश भर की जरूरतमंद जनता से मुलाकात करने का निर्णय साहसिक और सराहनीय भी है।वैसे तो प्रदेश के मुखिया श्री विष्णुदेव साय राजधानी स्थित अपने निवास में और जिलों के कार्यक्रमों में आम जनता से निरन्तर मुलाकात करते रहते हैं और उनकी समस्याएं भी सुनते रहते हैं। उन्होंने अपने गृहग्राम बगिया में आम जनता की समस्याओं को सुनने और निराकृत करने अलग से कैम्प भी बनवाया है। वे जब अपने गृहग्राम जाते हैं तो भी बड़ी सहजता से आमजनों से मुलाकात कर समस्या का निराकरण करते नजर आते हैं। वे जब नहीं होते हैं तो उनके मार्गदर्शन में उनकी पत्नी द्वारा भी आमजनों से मुलाकात की जाती है। जरूरतमंदों को मार्गदर्शन किया जाता हैं। गृहग्राम बगिया में जनदर्शन के माध्यम से मुख्यमंत्री ने अनेक लोगों की समस्याओं का निराकरण किया है। एम्बुलेंस भेजकर गंभीर बीमारी से पीड़ित मरीज को अस्पताल में भर्ती कराकर उपचार भी कराए हैं। ऐसे ही जशपुर जिले की निवासी सुकांति बाई चौहान है, जिनका पैर खाना बनाते समय आग में झुलस गया था। वह चलने में असहाय थी। जनदर्शन के माध्यम से जब मुख्यमंत्री के संज्ञान में यह बात आई तो उन्होंने रायपुर में सुकांति बाई का उपचार करवाया। उपचार के बाद स्वस्थ हुई सुकांति बाई जब अपने पैरों में खड़ी हो गई तो मुख्यमंत्री श्री साय ने उनसे फोन पर बात कर हालचाल भी जाना। आर्थिक तंगी झेल रही सुकांति बाई के लिए मुख्यमंत्री के गृहग्राम बगिया का जनदर्शन कितना लाभदायक साबित हुआ यह तो वह ही जानती है, लेकिन असहाय और जरूरतमंद महिला के प्रति मुख्यमंत्री ने जो किया, यह उनकी संवेदनशीलता को दर्शाता है।मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय न सिर्फ गृहग्राम बगिया में लोगों की समस्याएं सुनते हैं, वे राजधानी रायपुर निवास में और विभिन्न कार्यक्रमों में भी आमजनों के आवेदन प्राप्त कर उसके निराकरण की दिशा में कार्यवाही करते हैं। मुख्यमंत्री निवास में प्रतिदिन सैकड़ों लोग उनसे मिलने आते हैं। वे बहुत ही सहृदयता से उनकी बातें सुनते, समझते हैं। अब जबकि उन्होंने सप्ताह में गुरूवार के दिन अपने निवास में जनदर्शन कार्यक्रम प्रारंभ करने का निर्णय लिया है, ऐसे में प्रदेश भर की जनता से उनका सीधा संवाद होगा। सरगुजा से लेकर बस्तर तक के आमजनों की समस्याएं-शिकायतें मुख्यमंत्री द्वारा आसानी से सुनी जाएगी और जाहिर है कि प्रदेश के मुखिया तक बात पहुंचने से उनकी समस्याओं के समाधान में गतिशीलता नजर आयेगी। आम जनता की मुख्यमंत्री तक पहुंच, एक ओर शासन-प्रशासन में सुशासन के वातावरण को और प्रकाशमान करेगा, वहीं जनमानस का विश्वास सरकार के प्रति मजबूत होकर निखरेगा। मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय द्वारा सप्ताह में गुरूवार के दिन जनदर्शन कार्यक्रम करने का यह निर्णय आम जनता के प्रति उनकी निकटता, उनके समस्याओं के प्रति संवेदनशीलता और जनता के प्रति एक जिम्मेदार मुख्यमंत्री होने का फर्ज निभाने जैसा है और निःसंदेह इस कार्यक्रम से समस्याओं के समाधान और जनता से संवाद आसान होगा।
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-कहानी
-लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
बरसों बाद आज जयपुर में महेश से मिलकर शिखर का मन फिर अतीत के गलियारों में भटकने चला गया था । इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए उसका चयन एन. आई टी . भोपाल में हुआ था। एक तो पहली बार घर छोड़कर बाहर आने की झिझक ,ऊपर से रैगिंग का डर दोनों वजहों ने उसकी हालत खराब कर दी थी ।डरते-डरते सामान सहित कॉलेज हॉस्टल पहुँचा , पापा जी छोड़ने आये थे ..उनके साथ होने से थोड़ा ठीक लग रहा था पर उसका कमरा अलॉट होने के बाद वे घर चले गये । प्रथम वर्ष के तीन लड़कों को एक कमरे में रहना था , सबकी हालत एक जैसी थी इसलिए जल्दी ही उसके कई मित्र बन गये ।
बॉयज हॉस्टल में रैगिंग की मनाही थी , पर सीनियर्स का दबदबा रहता था । वार्डन पुरोहित सर बड़े कठोर मिजाज और अनुशासन प्रिय थे और नियम तोड़ने पर सख्त दण्ड भी देते थे । उनकी पीठ पीछे सीनियर भी अपने नियम - कानून बताया करते थे लेकिन पढ़ाई में उनका सहयोग भी मिलता था । उनकी किताबें , नोट्स आदि की मदद भी उन्हें खूब मिलती थी । हॉस्टल का एक कमरा किसी को अलॉट नहीं किया गया था , वहाँ रहते - रहते मालूम हुआ कि वह कमरा हॉन्टेड होने के कारण किसी को नहीं दिया जाता । बहुत पहले वहाँ रहने वाले एक लड़के मोहित ने खुदकुशी कर ली थी । उसके बाद जितने लोगों को वह कमरा मिला , उन लोगों ने भी खुदकुशी कर ली । सबको यह यकीन हो गया था कि वहाँ कुछ न कुछ अदृश्य शक्ति है जिसकी वजह से लड़के मर रहे हैं ।
शिखर और उसके दोस्त रात को ही पढ़ते थे क्योंकि दिन में कक्षा लगने के कारण सेल्फ स्टडी के लिए समय नहीं मिल पाता था । वे देर रात तक पढ़ते और सुबह दस - ग्यारह बजे तक सोते रहते । वह रात बहुत ही भयावह थी । बारिश का मौसम था । बादलों की गरज और बिजली की गड़गड़ाहट रह रहकर चौंका देती थी । बिजली गुल होने के कारण वे हॉस्टल के गलियारों में टहलने लगे थे ..तभी दीवार पर कुछ आकृतियाँ उभरीं , उसके दोस्त तो भाग गए पर शिखर के पैर मानो जमीन में धँस गये हों । वह स्तम्भित सा वहीं खड़ा रहा मानो किसी ने उसे सम्मोहित कर दिया हो । शायद वह आत्मा कुछ कहना चाहती थी , वह उस परछाई के साथ चलता रहा । शायद यह मनुष्य की प्रवृत्ति ही है कि उसे जिस बात के लिए मना किया जाए ,उसकी रुचि उसमें और अधिक बढ़ जाती है । वह जान लेना चाहता है भूत - भविष्य के सारे रहस्य...शायद इसलिए वह नवीन सन्धान करता रहता है । डर के साथ अतीत को जानने की उत्सुकता में शिखर के कदम बढ़े चले जा रहे थे । उन परछाइयों में वह उस रात को देख रहा था ,, वहाँ चार - पाँच लड़के और दो लड़कियाँ भी दिख रही थीं । वे मोहित के कमरे में पार्टी कर रहे थे ,टेबल पर प्लेट्स और बोतलें दिख रही थीं , सभी बहुत खुश दिख रहे थे । मोहित ने एक लड़की का हाथ पकड़ा था और किसी दूसरे लड़के ने उस पर आपत्ति की थी । कुछ पलों में वहाँ का माहौल बदल गया था । गाली - गलौच के साथ हाथापाई भी शुरू हो गई थी । तभी मोहित के सिर पर किसी ने वार किया था और वह बेहोश होकर गिर गया था । घबराए हुए उन लोगों ने उसके बिस्तर से चादर खींच कर उसका फंदा बनाया और मोहित को पंखे से लटका दिया था । किसी चलचित्र की भाँति सारी घटनाएं शिखर की नजरों के आगे उद्घाटित हुई थी । भयाक्रांत सा वह चुपचाप अपने कमरे में आ गया था और चेतनाशून्य होकर बिस्तर पर गिर गया था । शिखर की जब आँख खुली तो वह अस्पताल में था और दोस्तों के अनुसार वह दो दिन से सो रहा था ।
जागकर भी शिखर वह सब भूल नहीं पा रहा था , वह क्या करे ,किसी को बताए कि नहीं । वह खुदकुशी नहीं हत्या थी और इसीलिए मोहित की आत्मा भटक रही है । शिखर ने पुराने कर्मचारियों , पुस्कालय और कार्यालय के माध्यम से वहाँ मरने वाले बाकी लड़कों का पता लगाया । वे सब मोहित की बैच के ही विद्यार्थी थे । शिखर उन्हें पहचान तो नहीं पाया था ,पर यह जान गया था कि मोहित ने उन्हें उनके किये की सजा दे दी है और यह घटनाएं शायद तभी खत्म होंगी जब तक वे सभी गुनहगार सजा नहीं पा जाते जो उस घटना से जुड़े हैं ।
बार - बार भयावह घटनाएँ होने के कारण अब उस कमरे को अलॉट करना बंद कर दिया गया था । कमरा बन्द रहने पर भी वहाँ से गुजरने पर शिखर को एक डर सा लगता था , कई बार अजीब सी आकृतियाँ रात को दिखाई देती थीं । अजीबोगरीब आवाजें सुनाई देती थीं मानो कोई सिसक रहा हो । इसी कारण उस कमरे के बगल वाले कमरों के लड़के एक साल में कमरा खाली कर शहर में किराये के घर में चले जाते थे । धीरे - धीरे उस हॉन्टेड कमरे की कहानियों की वजह से वह विंग लगभग खाली हो गया था। शिखर और उसके दोस्त दूसरे विंग में रहते थे ,साथ ही हॉस्टल सस्ता पड़ता था और वहाँ मेस होने के कारण खाने की सुविधा थी इसलिए बहुत लोगों के लिए वहाँ रहना मजबूरी थी ।
जब शिखर छठवें सेमेस्टर की तैयारी कर रहा था । वह और उसके दोस्त देर रात तक पढ़ रहे थे कि बाहर हॉल में जोर से बहस व झगड़े की आवाजें सुनाई पड़ीं । वे बाहर आये तो देखा उनके सीनियर राहुल और प्रेम आपस में लड़ रहे थे ,वे एक - दूसरे को किसी बात के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे थे और मार डालने की धमकी दे रहे थे...वहाँ उपस्थित सभी लोगों ने उन्हें समझाने की कोशिश की पर नतीजा बेअसर रहा । फिर वे अपने कमरे में चले गए ...वह रात बड़ी मनहूस थी , सबको डर लग रहा था पर किसी ने वार्डन को खबर नहीं किया । आँखों में ही रात गुजर गई , लगभग तीन या चार बजे शिखर सोने गया और सुबह नींद खुली तो हॉस्टल में हंगामा
मचा हुआ था , राहुल मरा हुआ पाया गया था । उसका चेहरा बहुत वीभत्स हो गया था , कपड़े फ़टे हुए थे ...उसके खून के छीटे यहाँ - वहाँ बिखरे पड़े थे मानो मरने से पहले उसने बहुत संघर्ष किया हो और दीवार पर लिखा था 220 । वो बड़े दहशत भरे दिन थे । पुलिस की पूछताछ की कार्यवाही बहुत दिनों तक चलती रही । पुलिस प्रेम पर हत्या का शक कर उसे पूछताछ के लिए पकड़कर ले गई थी । वह तो पागल सा हो गया था । हॉस्टल में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति होने के कारण यह केस सी. बी. आई. को सौंप दिया गया था ।
पढ़ाई में व्यवधान होने के कारण शिखर ने भी हॉस्टल छोड़ दिया था और किराये का घर लेकर रहने लगा था । वहीं उसने अपनी पढ़ाई पूरी की , तब तक कमरा नम्बर 220 के मुकदमे का कोई फैसला नहीं हुआ था । अपनी पढ़ाई पूरी कर वह जयपुर आ गया था , उसके बाद वह कभी भोपाल नहीं गया । आज उसका रूममेट महेश मिला तो फिर वही डर ,वही खौफ उसके सामने आ खड़ा हुआ था । उससे मालूम हुआ कि बाद में कोई सुबूत नहीं मिलने के कारण प्रेम
छूट गया था । वह राहुल की मौत के बाद अपने होशोहवास खो बैठा था । पढ़ाई छोड़कर बस इधर - उधर भटकता रहता । एक दिन हॉस्टल के ही पीछे बगीचे में पेड़ से लटककर उसने खुदकुशी कर ली । मोहित ने सबसे बदला ले लिया था , शिखर को आज तक समझ नहीं आया कि उसने अपना रहस्य उसके आगे क्यों खोला । हो सकता है वहाँ रह रहे और भी लोग इस रहस्य से परिचित हों और यह चाहते रहे हों कि मोहित उन सभी दोषियों को सजा दे । उस हॉन्टेड कमरा नम्बर 220 का रहस्य हॉस्टल के बन्द होने पर बाकी लोगों के लिए रहस्य ही बना रहा । -
-लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
खेला बचपन , सींचा यौवन,
यादों के कितने दर्पण।
घर की हर दीवार पर छाप है मेरी ,
हर कोने में समाई हूँ ।
पापा मैं आपकी परछाई हूँ।।
पालन-पोषण और दुलार,
मर्यादा का दृढ़ आधार।
नियम-संयम,आचार-विचार,
आपने दिए जो सुसंस्कार।
अपनाया है उन्हें, नहीं भुलाई हूँ ।।
पापा मैं आपकी परछाई हूँ।।
मेरी सफलता मेरी जीत,
सब आपको समर्पित।
आपसे है मेरा अस्तित्व,
सँवरा निखरा व्यक्तित्व ।
सुविचार,सदव्यवहार सब,
आपसे ही पाई हूँ।।
पापा मै आपकी परछाई हूँ।।
पौधा कितना ही बढ जाए,
जड़ से दूर रह न पाए।
अलग रहकर जुड़ी हूँ ,
साथ आपके खड़ी हूँ ।
महसूस किया आपका दर्द
सदैव आपकी नही पराई हूँ
पापा मै आपकी परछाई हूँi . -
विशेष लेख
आनंद प्रकाश सोलंकी, सहायक संचालकरायपुर / आजादी के 100 वर्ष पूरे होने पर छत्तीसगढ़ एक समृद्ध और विकसित राज्य के रूप में आकार लेगा तथा प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के ‘‘विकसित भारत‘‘ के संकल्प को पूरा करने में महत्वपूर्ण योगदान देगा। इस संकल्प को पूरा करने के प्रथम कदम के रूप में मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय और राज्य मंत्रिमण्डल के सदस्यों ने ‘विकसित छत्तीसगढ़’ के विजन पर गत दिनों भारतीय प्रबंधन संस्थान रायपुर में नीति निर्माताओं और विभिन्न क्षेत्रों के विषय विशेषज्ञों के साथ दो दिनों तक विचार मंथन किया गया।छत्तीसगढ़ प्राकृतिक संसाधनों, खनिज और वन सम्पदा तथा कुशल मानव संसाधन से सम्पन्न राज्य है। छत्तीसगढ़ को वर्ष 2047 तक विकसित राज्य बनाने के लिए विशेषज्ञों ने शासन-प्रशासन के विभिन्न क्षेत्रों में आधुनिक तकनीकी के दक्षतापूर्ण उपयोग, नवाचार, राज्य के संसाधनों के कुशलतापूर्वक उपयोग की आवश्यकता बताई। इसे पूरा करने के लिए ‘‘विकसित छत्तीसगढ़‘‘ का स्पष्ट विजन तय कर उस पर दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ना होगा।विकसित छत्तीसगढ़ निर्माण के लिए विशेषज्ञों ने स्वास्थ्य, अधोसंरचना, प्राकृतिक संसाधनों के कुशल उपयोग, खनन क्षेत्र में सुधार, प्रगतिशील अर्थव्यवस्था के लिए कुशल वित्त प्रबंधन, सुशासन के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी और डेटा विश्लेषण, कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्रों के विकास, शिक्षा और लोगों के जीवन को आसान बनाने की दिशा में कार्य करने की आवश्यकता बताई। प्रदेश के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाएं विकसित करने, कृषि के क्षेत्र में भण्डारण सुविधा बढ़ाने, मंडी विकास, सिंचाई सुविधा में बढ़ोत्तरी, उत्पादकता में वृद्धि, फसल विविधिकरण और फूड प्रोसेसिंग को प्रोत्साहन, पर्यटन से जुड़ी अधोसंरचना के विकास, उद्योग हितैषी नीतियों के निर्माण और विभिन्न क्षेत्रों में निजी क्षेत्रों के सहयोग से आगे बढ़ने पर विशेषज्ञों ने बल दिया।मजबूत निगरानी और नियंत्रण तंत्रविकास परियोजनाओं के क्रियान्वयन में राज्य सरकार की भूमिका के संबंध में विशेषज्ञों का सुझाव था कि विकास योजनाओं के निर्माण के साथ-साथ विकसित छत्तीसगढ़ के विजन के क्रियान्वयन की निगरानी और नियंत्रण का लगातार कार्य राज्य सरकार को करना होगा। इसके लिए कुशल निगरानी तंत्र बनाने की जरूरत होगी, उन्होंने कहा कि वर्तमान में निगरानी और नियंत्रण तंत्र को और अधिक मजबूत बनाने की जरुरत है। इसके साथ ही साथ आर्थिक प्रगति के लिए राज्य की नई क्षमताएं पहचाननी होगी। यह भी आवश्यक है कि स्थानीय स्तर पर योजनाएं बनाई जाए और नागरिकों के साथ निजी क्षेत्र की सक्रिय भागीदारी का प्रयास सुनिश्चित की जाए।सरप्लस रिवेन्यू अर्थव्यवस्था की ताकतसाथ ही निजी क्षेत्र को परियोजनाओं में निवेश और संचालन के लिए प्रोत्साहित किया जाए। विशेषज्ञों ने छत्तीसगढ़ की बेहतर अर्थव्यवस्था का उल्लेख करते हुए कहा कि सरप्लस रिवेन्यू, अच्छा फिजिकल डिसीप्लिन, लो डेब्ट एण्ड जीडीपी रेश्यो राज्य की अर्थव्यवस्था की ताकत है। भौगोलिक रूप से देश के मध्य में स्थित छत्तीसगढ़ के आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है। प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता के आधार पर उद्योगों के विकास और उद्यमिता को बढ़ावा देना अर्थव्यवस्था को और अधिक मजबूती प्रदान करेगा।योजना में जियो टैगिंग का उपयोगखनन, पर्यावरण, स्वाईल हेेल्थ, विकास परियोजनाओं के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी और डेटा विश्लेषण का उपयोग कर अच्छे परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य है, जहां सैटेलाईट मैपिंग का कार्य 1990 के दशक में हो चुका है। जियो टैगिंग ऑफ विलेज का काम पूरा होने पर जिला, तहसील, गांव, सर्वे नंबर, ऑनरशिप, क्षेत्रफल, टाइप ऑफ लैंड सहित अनेक जानकारियां एक क्लिक पर उपलब्ध हो सकेंगे, इससे नीतियों का निर्माण और परियोजनाओं का क्रियान्वयन कुशलतापूर्वक और तेजी से किया जा सकेगा। छत्तीसगढ़ को विकसित राज्य बनाने के लिए ‘विजन डाक्यूमेंट’ बनाने का काम राज्य योजना आयोग को सौंपा गया है। उम्मीद है कि आने वाले समय में समृद्ध और विकसित छत्तीसगढ़ राज्य जन-आकांक्षाओं को पूरा करने वाला एक हरित राज्य भी होगा। -
-नसीम अहमद खान, उप संचालक
देश की जीडीपी में कृषि का बड़ा योगदान है। छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था का मूल आधार भी कृषि ही है और यह धान का कटोरा कहलाता है। मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में प्रदेश सरकार ने अल्पावधि में राज्य के किसानों के हित में कई फैसले लिए हैं, इससे राज्य में खेती-किसानी को नया सम्बल मिला है। किसान बेहद खुश है। उनके मन में एक नई उम्मीद जगी है।
छत्तीसगढ़ की नई सरकार ने प्रति एकड़ 21 क्विंटल धान की समर्थन मूल्य पर खरीदी तथा दो साल के बकाया धान बोनस की राशि 3716 करोड़ रूपए का भुगतान करके एक ओर जहां अपना संकल्प पूरा किया है, वहीं दूसरी ओर किसानों से बीते खरीफ विपणन वर्ष में 144.92 लाख मेट्रिक टन धान की रिकार्ड खरीदी की है। किसानों को समर्थन मूल्य के रूप में 31,914 करोड़ रूपए का भुगतान एवं किसान समृद्धि योजना के माध्यम से मूल्य की अंतर की राशि 13,320 करोड़ का भुगतान करके यह बता दिया है कि छत्तीसगढ़ की खुशहाली और अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने का रास्ता खेती-किसानी से ही निकलेगा।
किसानों का मानना है कि राज्य सरकार के अब तक के फैसलों से यह स्पष्ट हो गया है कि यह सरकार किसानों की हितैषी है। खेती-किसानी ही छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार है। कृषि के क्षेत्र में सम्पन्नता से ही छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होगी और विकसित राज्य बनाने का सपना साकार होगा। इस बात को ध्यान में रखते हुए छत्तीेसगढ़ सरकार ने इस साल कृषि के बजट में 33 प्रतिशत की वृद्धि की है।
छत्तीसगढ़ सरकार ने अपने संकल्प के मुताबिक समर्थन मूल्य पर खरीदे गए धान में प्रति क्विंटल 917 रूपए के मान से अंतर की राशि भी दे दी है। किसानों को प्रति क्विंटल के मान से 3100 रूपए के भुगतान की यह राशि देश में सर्वाधिक है। छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा इस साल के बजट में कृषक उन्नति योजना के अंतर्गत 10 हजार करोड़ की व्यवस्था की गई है।
छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा राज्य में कृषि को बढ़ावा देने के लिए कई अभिनव पहल की जा रही है। जशपुर जिले के कुनकुरी में कृषि व्यवसाय प्रबंधन महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र तथा बलरामपुर जिले के रामचंद्रपुर में पोस्ट हार्वेस्ट मैनेजमेंट एवं प्रोसेसिंग टेक्नोलॉजी महाविद्यालय, सूरजपुर जिले के सिलफिली एवं रायगढ़ में शासकीय उद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय, तथा मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिले के खडगंवा में कृषि महाविद्यालय खोलने की व्यवस्था बजट में की है।
कृषि में आधुनिक उपकरणों के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए कृषि अभियांत्रिकी संचालनालय की स्थापना एवं राज्य स्तरीय नवीन कृषि यंत्र परीक्षण प्रयोगशाला के भवन का निर्माण, दुर्ग एवं सरगुजा जिले में कृषि यंत्री कार्यालय तथा रासायनिक उर्वरकांे की जांच के लिए सरगुजा जिले में गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशाला की स्थापना की जाएगी।
राज्य के किसानों को सहकारी एवं ग्रामीण बैंकों से ब्याज मुक्त कृषि ऋण उपलब्ध कराने के लिए 8 हजार 500 करोड़ का लक्ष्य तथा भूमिहीन कृषि मजदूरों की सहायता हेतु दीनदयाल उपाध्याय भूमिहीन कृषि मजदूर योजना के तहत भूमिहीन परिवारों को प्रतिवर्ष 10 हजार रूपये की आर्थिक सहायता देने के लिए बजट में 500 करोड़ रुपए का प्रावधान है।
छत्तीसगढ़ में किसानों को सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने के लिए प्रधानमंत्री सिंचाई योजना, सौर सुजला योेजना के माध्यम से सिंचित रकबे में बढ़ोत्तरी का प्रयास किया जा रहा है। नवीन सिंचाई योजना के लिए 300 करोड़ रूपए, लघु सिंचाई की चालू परियोजनाओं के लिए 692 करोड़ रूपए, नाबार्ड पोषित सिंचाई परियोजनाओं के लिए 433 करोड़ रूपए एवं एनीकट तथा स्टाप डेम निर्माण के लिए 262 करोड़ रूपए का बजट प्रावधान छत्तीसगढ़ सरकार ने किया है।
छत्तीसगढ़ में किसानों एवं भूमिहीन मजदूरों की स्थिति में सुधार, कृषि एवं सहायक गतिविधियां के लिए समन्वित प्रयास पर राज्य सरकार का फोकस है। चालू वित्तीय वर्ष कृषि बजट 33 प्रतिशत की वृद्धि करते हुए 13 हजार 435 करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है। किसानों को सहकारी एवं ग्रामीण बैंकों से ब्याज मुक्त कृषि ऋण उपलब्ध कराने के लिए 8500 करोड़ रूपए की साख सीमा छत्तीसगढ़़ सरकार ने तय की है।मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने वर्तमान खरीफ सीजन को देखते हुए राज्यभर की सहकारी समितियों में सोसायटियो में गुणवत्तापूर्ण खाद-बीज भंडारण एवं उठाव की स्थिति पर निरंतर निगरानी रखने को कहा है। मुख्यमंत्री ने कहा है कि किसानों को खाद-बीज के लिए किसी भी तरह की दिक्कत का सामना न करना पड़े, इसलिए पर्याप्त व्यवस्था की जानी चाहिए।
मुख्यमंत्री ने अपने खेती-किसानी के दीर्घ अनुभव के आधार पर कहा है कि खरीफ सीजन में किसान भाईयों द्वारा डी.ए.पी. खाद की मांग ज्यादा की जाती है। इसको ध्यान में रखते हुए डी.ए.पी. खाद की मांग और सप्लाई पर विशेष निगरानी रखी जानी चाहिए। खाद-बीज की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए सेंम्पलिंग एवं प्रयोगशाला के माध्यम से जांच का विशेष अभियान संचालित किया जाए।
खरीफ सीजन 2024-25 के लिए राज्य में 13.68 लाख मैट्रिक टन उर्वरकों की मांग के विरूद्ध अब तक 9.13 लाख मैट्रिक टन उर्वरक की उपलब्धता सुनिश्चित कर ली गयी है, जो मांग का 67 प्रतिशत है। सोसायटियों में विभिन्न खरीफ फसलों के बीज पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। खरीफ सीजन 2024-25 में 5 लाख 59 हजार 203 क्ंिवटल बीज की मांग के विरूद्ध 6 लाख 39 हजार 4 क्ंिवटल बीज उपलब्ध है, जो कि मांग का 114 प्रतिशत है। सोसायटियों से किसान लगातार बीज का उठाव कर रहे है। अब तक 03 लाख 75 हजार क्ंिवटल बीज का उठाव किसानों ने किया है, जो कि बीज की डिमांड का 67 प्रतिशत है।
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- गीत
-लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
हर पल गीत खुशी के गाओ
हर पल गीत खुशी के गाओ ।
मन-मंदिर में दीप जलाओ ।।
सद्भावों की पावन धरती ।
पीड़ा तन-मन जन की हरती ।
पुष्पित सुरभित यौवन डाली ।
नीति पत्र से रहे न खाली ।
दंभ-द्वेष के कलुष मिटाओ ।।
मन-मंदिर में दीप जलाओ ।। 1 ।।
जीवन-सरिता बहती जाए ।
बाधा पथ को रोक न पाए ।
मृदुल मंद शुचि मंथर लहरें ।
शुभ्र चंद्रिका आकर ठहरें ।
आभा मुख की दीप्त बनाओ ।।
मन-मंदिर में दीप जलाओ ।। 2।।
सुविचारों का बृहद गगन हो ।
सुखदा शीतल मंद पवन हो ।
शुचिता शुभता करें नमन हम ।
कुसुमित सुरभित करें चमन हम ।
शस्य-श्यामला धरा सजाओ ।।
मन-मंदिर में दीप जलाओ ।। 3 ।। - 2 जून पुण्यतिथि पर विशेषआलेख- प्रशांत शर्मा , वरिष्ठ पत्रकार2 जून 2024 को जाने-माने फिल्मकार, अभिनेता और फिल्म इंडस्ट्री के शो मैन राजकपूर को इस दुनिया से अलविदा कहे पूरे 36 साल हो जाएंगे। .2 जून 1988 को फिल्मी दुनिया का एक चमकता सितारा सदा के लिए एक किवदंती बन गया। उनकी पुण्यतिथि जब भी आती है, सोशल मीडिया हो या फिर रेडियो, टीवी की दुनिया, उनके गाने जरूर बजते हैं। उन पर फिल्माए ऐसे- ऐसे सुरीरे नगमे हैं, जब कभी सुनाई दे जाएं तो लोग अपने आप को गुनगुनाने से रोक नहीं पाते हैं। गीत जब मधुर होता है और लोकप्रिय भी तो लोग उसके संगीतकार और गायक कलाकारों को याद करते हैं, लेकिन राजकपूर के साथ ऐसी बात नहीं थी, वे बकायदा गाने में रुचि लेते थे और जब भी उसकी रिकॉर्डिंग होती थी, वे वहां पहुंच जाते थे और फिर चाहे पूरा दिन ही उन्हें क्यों ना देना पड़े वे एक - एक गाने को वक्त देते थे। इसलिए हर गाना उनका अपना गाना बन जाता था। फिल्म के निर्माता राजकपूर होते थे तो वे फिर क्या कहने। दरअसल इसके पीछे उनका संगीत के प्रति प्रेम ही था। वे अच्छे गायक भी थे और ठीकठाक हारमोनियम और तबला भी बजा लिया करते थे। इसलिए रिकॉर्डिंग स्टुडियो में उनकी आखिरी तक दखल रही।फिल्म हीना का निर्देशन का जिम्मा भी उन्होंने उठाया था। इसी फिल्म एक गाने की रिकॉर्डिंग का एक वीडियो अक्सर सोशल मीडिया में दिख जाता है जिसमें राजकपूर साहब रिकर्ॉंिडग स्टुडियो के बाहर बैठे हुए हैं और लता मंगेशकर माइक में गाना गा रही हैं-गीत "चि_ीए नि दर्द फिऱाक वालिये" । संगीतकार रवीन्द्र जैन भी वहां पर मौजूद थे। फिल्म में एकमात्र यही गाना था जिसे नक्श लायलपुरी ने लिखा बाकी सभी गाने रवीन्द्र जैन की रचना थे। यह दूसरी फिल्म थी, जिसमें राजकपूर ने रवीन्द्र जैन को संगीत का जिम्मा सौंपा था। फिल्म के गाने सभी लोकप्रिय हुए थे। फिल्म 28 जून 1991 को रिलीज हुई थी। राजकपूर ने संगीतकार रवीन्द्र जैन ने पहली बार 1985 में राम तेरी गंगा मैली फिल्म में मौका दिया था। लता मंगेशकर टेक 6 में यह गाना शुरू करती हैं- चिट्ठी.. ना ना ना और वे दोबारा टेक 7 में गाना शुरू करती हैं। इस गाने को रिकॉर्ड करने के दौरान राजकपूर आंखे मूंदकर लता की आवाज और गाने के भाव को महसूस करते नजर आते हैं। उनके चेहर पर एक संतोषजनक मुस्कान हैं जो यह बताती हैं कि वे इस गाने को लेकर कितने संतुष्ट हैं। पर इस फिल्म का वे निर्देशन कर पाते उसके पहले ही भगवान के घर से उनका बुलावा आ गया। बाद में उनके बड़े बेटे रणधीर कपूर ने फिल्म के निर्देशन का जिम्मा उठाया।खैर हम बात कर रहे थे राजकपूर के संगीत पक्ष की खूबियों की, तो इस महान कलाकार की एक आदत थी कि उन्हें यदि कोई धुन पसंद आ जाती थी तो वे अपनी अगली फिल्म में उसे लेकर एक गाना जरूर बनाते थे और वो गाना फिल्म का टाइटिल सॉग हुआ करता था। यही बात गाने की थी। राजकपूर को यदि कोई गाना पसंद आ जाता तो वे तत्काल उसे अपने फिल्म के लिए बुक कर लेते थे फिर उस फिल्म को बनने में कितना ही वक्त क्यों ना लगे उस दौर में गीतकारों को वाहवाही तो मिलती थी, लेकिन उन्हें मेहनताना कम मिलता था। राजकपूर ने यह ट्रैंड बदला और गीतकारों को तवज्जो भरपूर दी।राजकपूर की फिल्मों के गाने लोगों को इसलिए भी पसंद आते हैं, क्योंकि उनमें जान हुआ करती है। उन्होंने बहुत से संगीतकारों - गीतकारों के साथ काम किया , लेकिन सबसे ज्यादा मौका शंकर- जयकिशन और गीतकार शैलेन्द्र को दिया।आज उनके एक लोकप्रिय गीत रमैया वस्तावैया' पर हम चर्चा करते हैं। इस गाने के बनने के पीछे की एक रोचक कहानी है। दरअसल, ‘वस्ता वैया’ तेलुगू शब्द है। जब 1955 को श्री 420 फि़ल्म की शूटिंग चल रही थी, तो पूरी म्यूजिक टीम मस्ती करने के लिए खंडाला जाया करती थी।इस टीम में शंकर,-जयकिशन , गीतकार शैलेन्द्र और हजऱत जयपुरी शामिल थे और वो अक्सर चाय और नाश्ता के लिए रोड साइड रेस्टोरेंट में चले जाया करते थे। उसी रेस्टोरेंट में एक वेटर था जिसका नाम 'रमैया' था।संगीतकार शंकर हमेशा अपना आर्डर उस वेटर को ही देते थे क्योंकि शंकर भी हैदराबाद से ही थे और उन्हें तेलगु भी आती थी। उस दिन भी शंकर ने ऑर्डर के लिए रमैया को आवाज़ दी , लेकिन वह किसी और काम में व्यस्त था तो उसने उन्हें इंतज़ार करने को कहा। थोड़ा इंतजार करने के बाद उन्होंने फिर कहा 'वस्तावैया?' जिसका मतलब होता है 'जल्दी आओ'। इसके बाद शंकर 'रमैया वस्तावैया' गुनगुनाने लगे जिसके साथ साथ जयकिशन टेबल बजाने लगे। लेकिन सिर्फ एक लाइन से मामला न जमते देख, शैलेन्द्र ने तुरंत जोड़ा- 'मैंने दिल तुझको दिया।' इस तरह बेहतरीन गाना बन गया। राज कपूर को भी यह गाना काफी पसंद आया और उन्होंने फिल्म में इसे शामिल किया। गाने का फिल्मांकन जरा भी बनावटी नहीं है। यह राजकपूर की अपनी सादगी थी जो लोगों को छू जाती थी।गीतकार शैलेन्द्र के साथ उनका ऐसा अटूट रिश्ता बना कि लोग उनकी जोड़ी को कभी भूला नहीं पाए। शैलेन्द्र को इप्टा के एक कार्यक्रम में राजकपूर ने सुना था। शैलेन्द्र ने गीत पढ़ा था - 'जलता है पंजाब हमारा जलता है पंजाब.' कार्यक्रम समाप्त होने के बाद राज कपूर शैलेन्द्र के पास गए. बोले ,'मैं राज कपूर हूँ. पृथ्वीराज कपूर का बेटा। फिल्म 'आग' बना रहा हूँ. आप उसके लिए गीत लिखेंगे। ' उन दिनों शैलेन्द्र का आदर्शवाद चरम पर था। उन्होंने उत्तर दिया ,'मैं साहित्य रचता हूँ फि़ल्मों - इल्मों में पैसे के लिए नहीं लिखता। ' राज कपूर उदास लौट आए। बात आई गई हो गई.। इसी बीच शैलेन्द्र की पत्नी शकुंतला माँ बनने वाली ली। बंबई में शैलेन्द्र के पास घर नहीं था। पत्नी शकुन झाँसी की रहने वाली थीं। शैलेन्द्र ने सोचा उन्हें झाँसी भेज दिया जाए. कम से कम आने वाले मेहमान का स्वागत अच्छा हो जाएगा। उस वक्त शैलेन्द्र कडक़ी में थे। जेब में दो चार सौ रूपए भी नहीं थे कि शकुन को दे सकते। उन्हें तब राज कपूर की याद आई। वे राज कपूर के महालक्ष्मी दफ़्तर में जा पहुँचे। राजकपूर से कहा-, 'आपको याद है. एक दिन आप मुझसे गाना मांगने आए थे। ' राजकपूर ने कहा ,'कविराज ! बिलकुल याद है। ' शैलेन्द्र ने कहा ,'मुझे पाँच सौ रूपए अभी चाहिए। आपको जो भी काम कराना है करा लीजिए। ' राज कपूर ने उन्हें पाँच सौ रूपए तुरंत दे दिए. बोले ,'कविराज ! आप चिंता न करें। कोई जल्दी नहीं है, मैं आपको बता दूँगा। 'शैलेन्द्र ने पाँच सौ रूपए पत्नी शकुन के हाथ में रखे और कहा ,'जाओ, अच्छी तरह झाँसी जाओ और नए मेहमान का स्वागत धूम धाम से होना चाहिए। 'इसके बाद वे पिता बने और कुछ पैसा आया तो शैलेन्द्र राज कपूर के पास गए और पाँच सौ रूपए लौटाने लगे। राज कपूर ने कहा 'कविराज ! इसे अपने पास रखो। मेरी फि़ल्म 'बरसात' के दो गीत बचे हैं। आपका मन हो तो लिख दीजिए। ' फिर शैलेन्द्र ने दो गीत दिए, जो बरसात के सुपर हिट गीत थे। एक गीत उसका टाइटल सांग था - 'बरसात में हमसे मिले तुम सनम, तुमसे मिले हम। 'इसके बाद शैलेन्द्र फि़ल्मी दुनिया के पहले टाइटल सांग राइटर बन गए।शीर्षक गीत लिखने का यह रिकॉर्ड हमेशा शैलेन्द्र के नाम रहा। इस फि़ल्म के बाद शैलेन्द्र और राजकपूर की जोड़ी ऐसी जमी कि लोग देखते रह गए। राज कपूर उन्हें अपना पुश्किन कहते थे। जब शैलेन्द्र ने फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी 'मारे गए गुलफ़ाम' के आधार पर फि़ल्म 'तीसरी क़सम' बनाने का फ़ैसला किया तो उसके नायक राज कपूर ही थे। हीरामन के अनूठे रोल में। दिलचस्प यह है कि एक दिन राज कपूर ने शैलेन्द्र से कहा ,'मेरा मेहनताना दो। ' शैलेन्द्र के पास उन्हें देने के लिए सौ रूपए भी नहीं थे। फिर भी उन्होंने दुखी होकर पूछा ,'भाई ! कितना मेहनताना चाहिए तुम्हें ?'राज कपूर ने शैलेन्द्र की जेब में हाथ डाला और उसमें से एक रूपए का सिक्का निकाला। बोले ,'मुझे मेरा मेहनताना मिल गया।' तो यह था राज कपूर का सोने का दिल।
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- गीत
-लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
नाविक तूफानों में फँसकर, संयम धीरज मत खोना ।
भावी तो होकर रहता है , बीते पर अब क्या रोना ।।
सोया गहन अँधेरे में वह, बीज मृदा के अंतस में।
धूप थपथपाकर है कहती, भोर हुई अब क्या सोना ।।
नहीं धुले कीचड़ से कीचड़, स्वच्छ नीर ही चाहें सब।
करके शुभ कर्मों का सिंचन, पाप-पंक को तुम धोना ।।
बुरे कर्म से महल बनाए , औरों ने यह मत सोचो।
शूल बिछाए लोगों ने पर , फूल राह में तुम बोना ।।
नहीं विकल्प परिश्रम का है ,सरल राह मत ढूँढो तुम ।
कर्मठता से जीत मिलेगी ,नहीं चले जादू-टोना ।। -
-कहानी
माँ मैं कॉलेज जा रही हूँ... कहते हुए विधि घर से बाहर निकली तो माँ ने अंदर से ही कई हिदायतें दे डालीं.
देर मत करना ...समय पर खा लेना आदि आदि । विधि बी. एस. सी. प्रथम वर्ष की छात्रा थी , अपनी सहेलियों के साथ वह सुबह नौ बजे घर से निकलती..उसकी क्लास चार बजे खत्म होती थी.. पहला साल होने के कारण सीनियर द्वारा उनका इंट्रोडक्शन होता था और उनके लिए ढेर सारे नियम बनाये गए थे जैसे बिना चुनरी के सूट नहीं पहनना , स्लीवलेस कपड़े नहीं पहनना , सीनियर्स को नाइंटी डिग्री झुककर विश करना आदि..तो उन्हें बहुत डर कर रहना पड़ता ताकि वे परेशान न करें । अंतिम वर्ष के सीनियर निनाद सर उसे बहुत अच्छे लगते थे.. उन्होंने कई बार उसकी मदद की थी और अपने साथियों की डाँट पड़ने से भी बचाया था । फिजिक्स का प्रैक्टिकल समझ न आने पर वह निनाद सर से समझने गई .. उन्होंने बहुत अच्छे से उसे समझाया था.. वह कॉलेज के ब्रिलिएंट स्टूडेंट्स में से एक थे । कहीं भी मिलते वे बहुत अच्छी बातें करते व विधि को सृजनात्मक कार्यों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करते । वाद - विवाद प्रतियोगिता में पक्ष में विधि और विपक्ष में निनाद सर का चयन हुआ था और उन्हें यूनिवर्सिटी में भाग लेने के लिए जाना था । कॉलेज की मैडम भी साथ गई थी , निनाद सर के साथ दो दिन रहकर उनके बीच अच्छी दोस्ती हो गई थी , वैसे ही विधि उनके व्यक्तित्व और प्रतिभा से बहुत प्रभावित थी । मासूमियत लिए उसकी उम्र भी थी सपने बुनने की..वह निनाद सर के लिए आदर के साथ कुछ और भी महसूस करने लगी थी.. शायद यह एहसास प्यार ही है.. वह सोचने लगी थी । घर में रहती तो उनके बारे में ही सोचती..पढ़ते - पढ़ते किताबों के बीच बरबस उनका चेहरा आ जाता और वह कल्पनालोक में खो जाती । उसके हर क्रियाकलाप में निनाद सर उसके साथ होते..वह पढ़ाई में ध्यान नहीं लगा पा रही थी.. कितना ही वक्त उनके बारे में सोचकर व्यतीत कर देती । परंतु बाद में पछतावा भी होता कि समय व्यर्थ बीता जा रहा है और वह पढ़ाई नहीं कर पा रही है । सबसे बड़ी बात तो यह थी कि उसका प्यार व लगाव एकतरफा था । निनाद सर के प्रति उसका लगाव बढ़ता ही जा रहा था और वह भावनाओं के मकड़जाल में फँसती ही चली जा रही थी । पल्लवित हुए नये कोंपल की तरह उसकी भावनाएँ बहुत ही मासूम थीं पर यह उसके जीवन की उलझन बढ़ा रही थी । निनाद सर ने कभी अपना झुकाव उसकी तरफ नहीं दिखाया था.. वह तो सिर्फ उसकी मदद कर दिया करते थे... उसे आगे बढ़ने को प्रेरित करते थे । विधि के बदलते व्यवहार ने शायद उन्हें भी यह एहसास करा दिया था कि विधि क्या महसूस कर रही है । अचानक उन्हें अपने सामने पाकर उसका ठिठकना , अक्सर उसकी नजरों का निनाद को ढूँढना , उसका अधिक साथ पाने के बहाने बनाना...इस उम्र का प्यार महज शारीरिक आकर्षण होता है.. समझदारी भरा निर्णय नहीं होता है वह जानते थे । लेकिन विधि को कैसे समझाया जाए वह सोच में पड़ गए थे । प्रैक्टिकल परीक्षा के बाद निनाद सर से उसकी मुलाकात हुई तो उन्होंने उसकी पढ़ाई के बारे में पूछा और परीक्षा की ठीक ढंग से तैयारी करने के लिए विधि को कुछ टिप्स भी दिये । परीक्षा की तैयारी में वे दोनों ही व्यस्त हो गये थे । विधि का मन होता उन्हें फोन कर बात कर ले पर वे भी अपनी पढ़ाई में व्यस्त होंगे यह सोचकर नहीं कर पाई ।
विधि जानना चाहती थी कि निनाद सर के दिल में उसके लिए कोई जगह है या नहीं । न भी हो तो उसे फ़र्क नहीं
पड़ता क्योंकि चकोर का काम चाँद को चाहते रहना है ..चाँद को यह खबर भी नहीं तो उसे कोई फर्क नहीं पड़ता..वह तो अपने प्रेम के मधुर एहसास में डूबा रहता है । प्रेम कभी प्रतिदान नहीं चाहता.. विधि प्रेम की मधुरता से सराबोर थी...यथार्थ के ठोस धरातल पर उसने कदम ही नहीं रखा था ।
निनाद बेहद समझदार व सुलझे व्यक्तित्व का लड़का था.. वह नहीं चाहता था कि विधि के साथ कभी कुछ गलत हो..इस उम्र में सही दिशा निर्देश मिलना अत्यंत आवश्यक होता है नहीं तो कदम भटकने की पूरी गुंजाइश रहती है । कम उम्र में ही मोहब्बत में नाकाम युवा मौत को गले लगा लेते हैं.. अति भावुकता सोचने - समझने की क्षमता को खत्म कर देती है । निनाद ने विधि को परीक्षा के बाद उससे बात करने का निश्चय किया और उसे मिलने के लिए बुलाया । विधि बेहद प्रसन्न थी उसके लिए तो "अंधा क्या चाहे दो आँखें" वाली कहावत सार्थक हो रही थी । उसका दिल जोरों से धड़क रहा था पता नहीं क्या कहने बुला रहे हैं निनाद सर...कहीं उन्हें भी तो...इससे आगे सोचने में भी उसे शर्म आ रही थी । खैर , हल्के गुलाबी सूट में तैयार होकर वह निनाद सर से मिलने लायब्रेरी गई । पेपर के बारे में बात करने के बाद निनाद ने उससे कहा..विधि , मैं आगे की पढ़ाई करने के लिए बाहर जा रहा हूँ... मैं चाहता था उससे पहले तुमसे बात करूँ । तुम एक बहुत अच्छी लड़की हो..पढ़ाई में भी अच्छी हो । अभी का समय बहुत महत्वपूर्ण रहता है , इधर - उधर ध्यान दोगी तो अपने करियर पर फोकस नहीं कर पाओगी ।
प्रेम और श्रद्धा में थोड़ा सा ही अंतर होता है... कई बार किसी के प्रति हमारे मन में श्रद्धा या आदर भाव प्रेम का एहसास कराता है... पर वह प्रेम नहीं होता है ।श्रद्धा में कोई बुराई नहीं है ,हम ईश्वर के प्रति भी श्रद्धा रखते हैं पर उन्हें सिर्फ अपना कहकर अधिकार नहीं जताते । प्रेम एकाधिकार चाहता है.. कई ख्वाहिशें जगाता है.. और उन ख्वाहिशों के पूरे न होने पर मन में निराशा घर कर लेती है और हम जिंदगी में बहुत पीछे रह जाते हैं ।
मैं यह सब तुम्हें इसीलिए बताना चाहता हूँ कि कुछ वर्ष पहले मेरी एक कजिन ने प्रेम में निराश होकर खुदकुशी कर ली थी । शायद उसे कोई समझा नहीं पाया कि जीवन में और भी राहें हैं.. जीने के हजार तरीके हैं । निराशा और तनाव ये दो बातें हमारे मन को कुंठाग्रस्त कर देती हैं और हमें कुछ भी सोचने नहीं देती..हम अच्छे - बुरे का फर्क नहीं कर पाते । मैं एक बड़े और दोस्त के रूप में तुम्हें समझा रहा हूँ इसे अन्यथा मत लेना और बहुत सोच समझ कर जीवन की राहें तय करना । मैं यहाँ नहीं रहूँगा पर फोन के जरिये तुम अपनी बातें मुझसे शेयर कर सकती हो..एक सीनियर , दोस्त के रूप में मैं हमेशा तुम्हारी मदद करूँगा ।
विधि समझ गई थी निनाद सर क्या कहना चाह रहे थे.. नहीं सर मैं भावुकता में कभी भी कोई गलत कदम नहीं उठाउँगी.. क्योंकि मुझे आप जैसे समझदार और दूसरों का भला सोचने वाले सर मिले हैं । आप बिलकुल सच कह रहे हैं , अभी अपने करियर के बारे में सोचने का वक्त है.. मैं इस पर पूरा ध्यान दूँगी । शुक्रिया ! आपने मुझे जीवन की एक बहुत बड़ी उलझन से बाहर निकाला.. अब मैं किसी बात से बहकने वाली नहीं । पर आप मुझसे बात करने व मुझे दिशा निर्देश देने के लिए समय जरूर निकलेंगे, वादा कीजिये । निनाद सर के मुस्कुराते हुए हाँ सुनकर विधि की आँखें खुशी से नम हो गई थीं । - - 22 मई अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस पर विशेषदुनिया के जैव विविधता के मुद्दों को बढ़ावा देने और जैव विविधता के संरक्षण और उचित उपयोग के लिए बनाए जा रहे सतत विकास लक्ष्यों को अपनाने के लिए हर साल 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस मनाया जाता है इस क्रम में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर छत्तीसगढ़ अपने माननीय कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल के नेतृत्व में कृषि-जैव विविधता संरक्षण और जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए इसके सतत उपयोग के क्षेत्र में काम कर रहा है। विश्वविद्यालय में अनेक अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय परियोजनाएँ संचालित की जा रही हैं। पौधा किस्म और किसान अधिकार संरक्षण प्राधिकरण, भारत सरकार, नई दिल्ली किसानों की विभिन्न फसलों की किस्मों को सुरक्षा प्रदान करती है इसी श्रृखला में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर ने कुल १८३० पौधा किस्मो के पंजीकरण के आवेदन जमा किये हैं जिनमे से ५२६ कृषक प्रजातियों को पंजीकरण प्रमाणपत्र जारी किया जा चुका है. पौधा किस्म और किसान अधिकार संरक्षण प्राधिकरण विशेष गुणों वाली दुर्लभ भूमि प्रजातियों का संरक्षण करने वाले प्रमुख किसानों को पुरस्कारों से सम्मानित किया करती है। कृषक प्रजातियाँ युगों से कृषको द्वारा उपयोग की जा रही है इसलिए यह किस्मे विशेष गुणों से ओत-प्रोत है तथा इनमे जलवायु परिवर्तन से जूझने के गुण मौजूद हैं. ऐसी ही किस्मो के संरक्षण करने के लिए पौधा किस्म और किसान अधिकार संरक्षण प्राधिकरण, भारत सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ के कुल १७ किसानों को पुरस्कार दिये गये हैं, जिसमें 0२ कृषक सामुदायों को १०-१० लाख रुपए का पुरस्कार, ०६ कृषकों को १.५-१.५ लाख रूपये, ०९ किसानों को १ लाख रूपये के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने राज्य में कुल ०९ जैव विविधता हॉटस्पॉट की पहचान की गई है जहाँ असीमित जैव विविधता की विवेचना की गई है तथा छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र को देश के मेगा जैव विविधता हॉटस्पॉट बनाने के लिए राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (एनबीए), चेन्नई को प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया है। विश्वविद्यालय की संयुक्त राष्ट्र वैश्विक पर्यावरण वित्त पोषित परियोजना के माध्यम से किसानों की किस्मों को मुख्यधारा में लाया गया तथा कृषक किस्मो को बौना और शीघ्र पकने वाली किस्म के रूप में, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के सहयोग से विकसित किया गया है। हाल ही में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने जर्मप्लाज्म से विकसित जलवायु स्मार्ट किस्मों, टीसीडीएम-1 (छोटी ऊंचाई और प्रारंभिक दुबराज), विक्रम टीसीआर (छोटी ऊंचाई और अवधि सफ़री -17), टीसीवीएम (छोटी और प्रारंभिक विष्णुभोग), बाउना लुचाई (छोटी और प्रारंभिक) के साथ आए। लुचाई), टीसीएसएम (अधिक उपज देने वाली और मजबूत कद वाली सोनागाथी)। कृषि-जैव विविधता के उत्सव में एक विशेष योगदान संजीवनी चावल है जो राज्य और देश की पहली औषधीय चावल किस्म है जो शरीर की रोग प्रतिरोध क्षमता को बढ़ाने और कैंसर कोशिका की वृद्धि को रोकने में सक्षम साबित हुई है। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय को जर्मप्लाज्म के उपयोग के लिए दो पुरस्कार जीते हैं, पहला डॉ. एस. के. वासल पुरस्कार २०२२ और दूसरा वार्षिक चावल समूह बैठक नई दिल्ली में सर्वश्रेष्ठ केंद्र पुरस्कार २०२३। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर छत्तीसगढ़ इसी तारात्यम में सैदव कृषको का विकास कृषको के साथ करने की अभिलाषा रखता है.
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लघुकथा
- स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
स्वाति आज पहली बार सीमा के साथ बाजार गई थी । उसने देखा सीमा कुछ चुनिंदा दुकानदारों से ही खरीदारी कर रही थी । उसके कई काम की चीजें उनके पास न होने पर वह किसी और से वह सामान नहीं खरीद रही थी बल्कि उन्हें ही अगली बार मँगाकर रखने के लिए कह रही थी । स्वाति ने सीमा को किसी भी दूसरे दुकानदार से वह सामान खरीदने को कहा तो उसने मना कर दिया यह कहकर कि वे ईमानदार नहीं हैं ।
थोड़ी देर में किसी का चेहरा देखकर तुम कैसे कह सकती हो कि यह ईमानदार है या बेईमान ?" स्वाति ने अपनी शंका प्रकट करते हुए कहा । " मैं जान - बूझकर कई बार उन्हें दो - चार रुपये अधिक दे देती हूँ जो ईमानदार होते हैं वे सच बताते हुए पैसे वापस कर देते हैं , खोटी नीयत वाले चंद रुपयों के लाभ का मोह नहीं छोड़ पाते और ग्राहकों का विश्वास खो देते हैं । बस , यही है मेरा ईमानदारी परखने का थर्मामीटर "।स्वाति को भी भा गया था यह थर्मामीटर । -
-लघुकथा
- स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
काम माँगने आये उस लड़के को देखकर संदीप को अपना गाँव, अपना बचपन और उनसे जुड़ी हर वो बात याद आ गई थी जो जीवन की आपाधापी में वे भुला बैठे थे। साधारण से कपड़े और चेहरे में मासूमियत , वह बातचीत में भी सीधा सा लगा था ...संदीप ने तुरंत उसे काम पर रख लिया था। वह भी तो एक दिन ऐसे ही चला आया था गाँव से.. काम तलाशने। एक अदद डिग्री , निश्छल मन और परिश्रम करने की जिजीविषा बस यही साथ लेकर निकला था घर से। किसी ने उसके भीतर अपने आप को ढूँढा था और उसे मौका दिया। अब उसकी बारी है ...शायद माली दिन भर के सूखे पौधों में पानी दे रहा था... मिट्टी की सोंधी महक उसके तन - मन को सुवासित कर गई थी। -
- गीत
-लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
मर्यादित करने इस जग को , हे राम पुनः आ जाओ ।
माया छल में लिप्त मनुज को , शुचिता की राह दिखाओ ।।
भाई-भाई में स्नेह नहीं है , माया आँगन को बाँटे ।
स्वजन स्वार्थ की तुला विराजे , ढुलमुल होते हैं काँटे ।
मात-पिता का अंतस छलनी , होकर निज सुध बुध खोता ।
सिंचित ममता की धारा से, तुलसी का बिरवा रोता ।
लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न जैसे, भ्रातृप्रेम इन्हें बताओ ।
राजा होकर भी निषाद को, राम आपने गले लगाया ।
मित्र की वेदना के आगे, अपना दुख भी बिसराया ।
निश्छल प्रेम भक्ति को माना, वंचित को अपना कर ।
चखे बेर जूठे शबरी के, जाति वर्ग सभी भुला कर ।
जाति पाति की गहरी खाई , बढ़ती है इन्हें मिटाओ ।।
सिया राम की थी परछाई, विलग हुई वह तुमसे क्यों कर ।
धन वैभव सुख त्याग चली जो, मोहित वह स्वर्ण हिरण पर ।
ज्ञानी बुद्धि अतुल बलशाली, परनारी का हरण किया ।
ध्वस्त हुई रावण की लंका, दानव दल का क्षरण किया ।
पैठे दुष्ट कई उनको भी, स्त्री का सम्मान सिखाओ ।।