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- कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को तुलसी विवाह कराया जाता है. इस तिथि को देवोत्थान एकादशी, देवउठनी एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा से जागते हैं. इन चार महीनों को चातुर्मास कहा जाता है, जिनमें भगवान विष्णु विश्राम अवस्था में रहते हैं. जब वे इस दिन पुनः जागृत होते हैं, तो समस्त सृष्टि में शुभ कार्यों का प्रारंभ होता है. इसी दिन तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है, जो धार्मिक रूप से अत्यंत शुभ माना गया है. तुलसी विवाह के दिन माता तुलसी का विशेष प्रकार से श्रृंगार किया जाता है. जानते हैं कि तुलसी विवाह के दिन माता तुलसी का श्रृंगार कैसे करें ताकि उनका आशीर्वाद प्राप्त हो सके.तुलसी विवाह की तैयारी और पूजन विधिसबसे पहले घर या आंगन में जहां तुलसी का पौधा स्थापित है, उस स्थान की सफाई करें, उसके बाद गंगाजल या पवित्र जल का छिड़काव करें. तुलसी माता को नए वस्त्र पहनाएं, पास में एक सुंदर आसन पर शालिग्राम भगवान को स्थापित करें, उन्हें पीले वस्त्र पहनाएं, चंदन, फूल और तुलसी दल अर्पित करें. इस दौरान मंगल गीत, विवाह मंत्र, और आरती गाई जाती है. पूजा के बाद प्रसाद स्वरूप पंचामृत, मिठाई या खीर का भोग लगाया जाता है. इस दिन देवउठनी एकादशी का व्रत रखा जाता है. संध्या समय तुलसी जी की आरती की जाती है.तुलसी विवाह का महत्वतुलसी विवाह में माता तुलसी (जिसे वृंदा देवी भी कहा जाता है) और श्री शालिग्राम भगवान (जो भगवान विष्णु का स्वरूप हैं) का विवाह होता है. मान्यता है कि इस विवाह से घर में सुख, समृद्धि, और सौभाग्य का वास होता है. जो लोग अपने घर में यह विवाह कराते हैं, उन्हें भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है. मान्याता है कि इस दिन व्रत रखने से अविवाहित कन्याओं को अच्छा वर मिलता है. वहीं विवाहित दंपतियों के जीवन में इस व्रत को रखने से खुशहाली आती है.तुलसी माता का श्रृंगारमां तुलसी का श्रृंगार करना तुलसी विवाह का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है. इस दिन विशेष रूप से माता तुलसी को दुल्हन की तरह सजाया जाता है. सबसे पहले तुलसी के गमले या स्थान को अच्छी तरह साफ करें. पवित्र जल से शुद्ध करें. इसके बाद तुलसी माता को लाल या पीले रंग की साड़ी पहनाएं, क्योंकि ये रंग शुभता और मंगल के प्रतीक माने जाते हैं.मां तुलसी को चुनरी, चूड़ी, नथनी, मांग टीका, हार, कंगन, बिंदी, फूल, कमरबंद और अन्य हल्के आभूषणों से सजाएं. उनके चारों ओर सुंदर रंगोली बना कर दीपक जलाएं.
- हिंदू धर्म में तुलसी विवाह को पवित्र और बेहद ही शुभ माना जाता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को यह त्योहार मनाया जाता है। कार्तिक द्वादशी तिथि को मनाया जाने वाला यह पर्व देव उठनी एकादशी के अगले दिन मनाया जाता है। इसलिए इसे देव उठान द्वादशी भी कहा जाता है। इस दिन माता तुलसी का विवाह भगवान विष्णु के शालीग्राम रूप से कराया जाता है।तुलसी विवाह के दिन भगवान विष्णु के शालीग्राम स्वरूप और माता तुलसी का विधि-विधान से विवाह संस्कार किया जाता है। मान्यता है कि तुलसी विवाह में कराने से घर-परिवार में सुख, समृद्धि और सौभाग्य का आगमन होता है। वैवाहिक जीवन में आ रही कठिनाइयों दूर होती हैं और विवाह में देरी जैसी समस्याओं का समाधान निकलता है। कहा जाता है कि तुलसी विवाह वैवाहिक जीवन में प्रेम को बढ़ाता है।पौराणिक मान्यता के अनुसार, धर्म की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने असुरराज जालंधर का वध किया था, जिससे क्रोधित होकर उसकी पत्नी वृंदा ने भगवान को श्राप दिया कि वे शालीग्राम पत्थर के रूप में पूजे जाएंगे। बाद में वृंदा ने शरीर त्याग दिया और उनका पुनर्जन्म तुलसी के रूप में हुआ। अपनी भक्ति के प्रभाव से उन्होंने भगवान विष्णु को पति रूप में प्राप्त किया। तभी से हर वर्ष तुलसी विवाह परंपरा प्रचलित है।हल्दी के उपाय से दूर होगी विवाह में देरीतुलसी विवाह के दिन हल्दी का उपाय करने से विवाह में आ रही बाधाएं दूर होती हैं। तुलसी विवाह के दिन स्नान से पहले पानी में एक चुटकी हल्दी मिलाएं। यह उपाय शरीर-मन की शुद्धि और गुरु ग्रह की शक्ति बढ़ाने के लिए शुभ माना जाता है। स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनकर तुलसी और शालीग्राम की पूजा करें। पूजा में हल्दी या हल्दी मिले दूध का लेप अर्पित करें। ऐसा करने से कुंडली में बृहस्पति मजबूत होते हैं और शुभ विवाह के योग बनते हैं।
- पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी (31 अक्टूबर 2025) से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक भगवान विष्णु आंवले के वृक्ष पर निवास करते हैं, इसलिए इसे आंवला नवमी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन की गई पूजा-अर्चना और दान का अक्षय फल मिलता है, इसलिए इसे अक्षय नवमी भी कहा जाता है। आंवला नवमी के दिन ही कृष्ण ने कंस के आमंत्रण पर वृंदावन छोड़कर मथुरा की ओर प्रस्थान किया था।भारतीय शास्त्रों में आंवले को दैवीय फल माना जाता है। ‘पद्म’ और ‘स्कंद’ पुराण में वर्णन है कि आंवला ब्रह्माजी के आंसुओं से उत्पन्न हुआ। वहीं, एक अन्य कथा कहती है कि समुद्र मंथन के समय निकले अमृत कलश से पृथ्वी पर अमृत की बूंदें गिरने से आंवले अस्तित्व में आया।एक बार देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण कर रही थीं। उनकी इच्छा हुई कि भगवान विष्णु और शिव की एक साथ पूजा की जाए। उन्होंने विचार किया कि विष्णु को तुलसी अत्यधिक प्रिय है और शिव को बेल। इन दोनों के गुण एक साथ आंवले में हैं। देवी लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक मानकर उसकी पूजा की। उनकी पूजा से प्रसन्न होकर विष्णु और शिव प्रकट हुए। माता लक्ष्मी ने आंवले के पेड़ के नीचे उन्हें भोजन कराया और उसके बाद स्वयं भोजन को प्रसाद रूप में ग्रहण किया। उस दिन से ही यह तिथि आंवला नवमी के नाम से प्रसिद्ध हुई।ऐसी मान्यता है कि इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा, आंवले से स्नान, आंवले को खाने और आंवले का दान करने से अक्षय पुण्य मिलता है। चरक संहिता में उल्लेख मिलता है कि कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन ही महर्षि च्यवन ने आंवले के सेवन से सदा युवा रहने का वरदान प्राप्त किया था। एक मान्यता यह भी है कि सतयुग की शुरुआत कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को हुई थी।एक अन्य कथा के अनुसार इसी दिन आदि शंकराचार्य को एक निर्धन स्त्री ने भिक्षा में सूखा आंवला दिया था। उस निर्धन स्त्री की गरीबी से द्रवित होकर शंकराचार्य ने मां लक्ष्मी की मंत्रों द्वारा स्तुति की, जो ‘कनकधारा’ स्तोत्र के रूप में जानी जाती है। उस निर्धन स्त्री के भाग्य में धन न होते हुए भी शंकराचार्य की विनती पर मां लक्ष्मी ने उसके घर स्वर्ण आंवलों की वर्षा करके उसकी दरिद्रता दूर की।
- सुख-संपत्ति, वैभव व ऐश्वर्य आदि के कारक शुक्र समय-समय पर अपनी राशि व नक्षत्र में बदलाव करते रहते हैं। 7 नवंबर 2025, शुक्रवार को शुक्र रात 09 बजकर 13 मिनट पर स्वाति नक्षत्र में गोचर करेंगे। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, स्वाति नक्षत्र का स्वामी राहु है। राहु के नक्षत्र में शुक्र का गोचर मेष से लेकर मीन राशि तक अपना प्रभाव डालेगा। शुक्र के नक्षत्र परिवर्तन से कई राशि वालों की लाइफ में सकारात्मक बदलाव होंगे और यह अवधि वित्त, करियर व व्यावसायिक रूप से लाभकारी सिद्ध होगी। जानें शुक्र का नक्षत्र गोचर किन राशियों के लिए रहेगा अच्छा।1. वृषभ राशि- वृषभ राशि वालों को शुक्र नक्षत्र परिवर्तन से अच्छे फलों की प्राप्ति होगी। इस समय आपको करियर में नई उपलब्धि हासिल हो सकती है। नौकरी करने वालों को अच्छे प्रस्ताव मिल सकते हैं। इनकम के नए साधन बनेंगे और पुराने स्रोत से भी रुपए-पैसे आएंगे। परिवार का साथ मिलेगा। भौतिक सुखों में वृद्धि होगी।2. कुंभ राशि- कुंभ राशि वालों के लिए शुक्र नक्षत्र परिवर्तन अच्छा रहने वाला है। इस समय आपकी आय में आकस्मिक वृद्धि हो सकती है। अटके हुए धन की वापसी होने से आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। मानसिक तौर पर आप मजबूत महसूस करेंगे। व्यावसायिक रूप से आपकी स्थिति सुदृढ़ होगी। नौकरी चाकरी के लिहाज से समय अनुकूल रहने वाला है।3. मीन राशि- मीन राशि वालों के लिए शुक्र नक्षत्र गोचर लाभकारी रहने वाला है। इस समय आपकी आय में वृद्धि के साथ प्रमोशन मिलने के संकेत हैं। व्यापारिक विस्तार मिल सकता है। यात्रा लाभकारी रहेगी। पारिवारिक परेशानियां सुलझाने में सफल रहेंगे। अपनों का साथ मिलेगा। भाग्य का साथ मिलेगा और कार्यों में सफलता पाएंगे।
- गोवर्धन पर्वत ने एक बार ब्रज के गोप-गोपियों की रक्षा की थी। गोवर्धन पर्वत उठाने की यह घटना तब की है, जब भगवान कृष्ण को आत्मबोध हुआ था। भगवान आत्मबोध होने के बाद एक संकेत की प्रतीक्षा कर रहे थे। जब गुरु गर्गाचार्य ने कृष्ण को याद दिलाया कि वह कौन हैं और उनके जीवन का ध्येय क्या है, तो गोवर्धन पर्वत पर खड़े-खड़े कृष्ण को एक तरह का बोध हुआ। फिर भी, गोकुलवासियों के लिए अपने प्यार के कारण उनका मन अब भी ऊहापोह में था।जो ध्येय अभी बहुत दूर है, क्या उसके लिए उन्हें वाकई यह सब भूल जाना चाहिए, जो वह जानते हैं और जो उन्हें पसंद है? अपने अंदर कहीं वह इसे पक्का करने का एक संकेत ढूंढ़ रहे थे कि उन्हें जो बोध हुआ है, और जो उन्हें याद दिलाया गया है, वह इतना अहम मकसद है कि उसके लिए उन्हें वह सब कुछ भूल जाना चाहिए, जो उन्हें पसंद है।इंद्रोत्सव मनाना बंद करने और गोपोत्सव का नया उत्सव शुरू करने के इस क्रांतिकारी कदम के बाद गोवर्धन पहाड़ की तराई में हर कोई खुशी मना रहा था। अचानक बारिश की जोरदार बौछारों के साथ एक भयानक तूफान उठा और नदी उफनने लगी। गोकुल के सीधे-सादे लोगों को लगा कि इंद्रोत्सव न मनाने के कारण इंद्र देव उनसे कुपित हो गए हैं और बारिश की इन बौछारों में उन्हें डुबाने वाले हैं। यमुना का पानी बढ़ता जा रहा था। कृष्ण इस इलाके को अच्छी तरह से जानते थे। उन्होंने गोवर्धन पहाड़ में कई जगह सुराख देखे थे। वह गोकुल के युवाओं को वहां लेकर गए। जब उन्होंने ज्यादा जगह बनाने के लिए कुछ चट्टानें हटाईं, तो वहां एक विशाल गुफा का पता चला। पशुओं सहित हर कोई उस विशाल गुफा के अंदर जाने लगा, मगर वह जगह काफी नहीं थी।फिर अचानक पूरा पहाड़ जमीन से छह फीट ऊपर उठ गया और वह गुफा इतनी बड़ी हो गई कि जानवरों समेत ब्रज का सारा जनसमूह उसमें समा सकता था। वे आराम से कुछ दिनों तक उसमें रहे। बाढ़ का पानी उतरने के बाद ही वे बाहर निकले। इस प्रकार कृष्ण ने अपनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की और इंद्र का मान-मर्दन किया।
- दिवाली का पवित्र त्योहार आने वाला है. इस साल दीपावली 20 अक्टूबर को मनाई जाएगी. कहते हैं कि दिवाली-धनतेरस जैसे शुभ त्योहार आने से पहले घर की अच्छी तरह सफाई कर लेनी चाहिए और कुछ अशुभ चीजों को बाहर निकाल देना चाहिए, जिनके कारण घर में दरिद्रता पांव पसारती है. ऐसी ही कुछ चीजों के बारे में ज्योतिषाचार्य प्रवीण मिश्र ने बताया है.खंडित मूर्तियां-दिवाली से पहले घर के मंदिर की साफ-सफाई जरूर करनी चाहिए. इस दौरान टूटी या खंडित मूर्तियों को घर से बाहर निकाल दें. इन मूर्तियों को कूड़े-कचरे में बिल्कुल न फेंके. इन्हें या तो नदी-तालाब में विसर्जित कर दीजिए या फिर किसी पवित्र या खाली स्थान पर रख दीजिए.बंद घड़ीआपके घर में जितनी भी बंद घड़ियां हैं या तो उन्हें चालू करवा लें या फिर घर से बाहर कर दें. घर में बंद घड़ियों का होना शुभ नहीं माना जाता है. वास्तु शास्त्र के अनुसार, बंद घड़ियां इंसान के दुर्भाग्य का कारण बन सकती हैं. ऐसे लोगों के घर में दरिद्रता बहुत जल्दी पांव पसारती है.जंग लगी चीजेंयदि घर में जंग लगा हुआ लोहा या अनुपयोगी सामान पड़ा है तो उसे तुरंत बाहर कर दीजिए. कोई भी ऐसा सामान जो बहुत दिनों से उपयोग नहीं हुआ है. टूटा-फूटा या खराब हो चुका है, उसे फौरन बाहर कर दें. जंग लगा हुआ ताला, पुराने खोटे सिक्के, पुराने बर्तन या कोई भी गैर-जरूरी सामान घर में बिल्कुल न रहने दें.खराब फर्नीचरदिवाली की सफाई में टूटा हुआ फर्नीचर भी घर से बाहर करें. दीमक लगा सोफा, टूटी हुई कुर्सी या जंग खाई मेज घर में रहने रहने से नकारात्मक ऊर्जा का संचार बढ़ता है. यदि वो रिपेयर कराने की स्थिति में है तो करवा लीजिए, अन्यथा घर से बाहर करना ही एकमात्र विकल्प है.टूटा शीशादिवाली की सफाई में कांच का टूटा हुआ सामान भी घर से बाहर कर दें. अक्सर लोग कांच का महंगा सामान घर ले आते हैं. लेकिन उसके टूटने के बावजूद उसे बाहर नहीं फेकते हैं. ऐसा करना गलत है. घर में टूटा हुआ कांच रखना अशुभ होता है. कांच के टूटे बर्तन या आईना रखना भी ठीक नहीं माना जाता है.फटे-पुराने कपड़ेअपने घर में फटे-पुराने कपड़े बिल्कुल न रखें. जो कपड़े पुराने हो चुके हैं. फट चुके हैं और आप अब उनका इस्तेमाल नहीं करते हैं, उन्हें तुरंत घर से बाहर कर दीजिए. ऐसे कपड़े आदमी को बदकिस्मत बनाते हैं.
- कार्तिक मास की शुरुआत 7 अक्टूबर, मंगलवार से हो चुकी है। इस महीने का हिंदू धर्म में खास महत्व होता है और इसे बेहद पवित्र माना गया है। इस दौरान विष्णुजी नारायण रूप में जल में विराजमान रहते हैं। ऐसे में इस माह को धर्म मास भी कहा जाता है। इसलिए इस महीने के दौरान कुछ बातों का ध्यान जरूर रखना चाहिए और खान-पान से जुड़े नियमों का ख्याल रखना भी आवश्यक होता है। शास्त्रों में कार्तिक मास में खान-पान के कई नियम बताए गए हैं। इनका पालन करने से स्वास्थ्य बेहतर रहता है और लक्ष्मी-नारायण की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि आने के संयोग बनते है। ऐसे में आइए विस्तार से जानें की कार्तिक मास में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए...कार्तिक मास में बैंगन से करें परहेजमान्यता है कि कार्तिक मास में बैंगन खाने से बचना चाहिए। कहा जाता है कि इस महीने के दौरान पित्त दोष संबंधित समस्याएं होने का भय अधिक रहता है। वहीं, बैंगन खाने से पित्त दोष बढ़ सकता है। यही कारण है कि कार्तिक के महीने में बैंगन खाने के मनाही होती है। उत्तेजना वर्धन होने के चलते बैंगन को धार्मिक दृष्टि से शुद्ध नहीं माना जाता है और इस महीने के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।कार्तिक मास में न खाएं दहीइस अवधि के दौरान दही खाने की मनाही होती है, क्योंकि इसे कार्तिक मास में स्वास्थ्य के लिए सही नहीं माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि कार्तिक के महीने में दही खाना संतान के लिए अच्छा नहीं होता है। हालांकि, इस अवधि में आप दही की जगह दूध का सेवन कर सकते हैं।भूलकर भी न खाएं मछलीकार्तिक के महीने में तामसिक भोजन करना वर्जित माना जाता है। धार्मिक दृष्टि से इस अवधि में विशेष रूप से मछली का सेवन करना शुभ नहीं माना जाता है। कहा जाता है कि इस महीने में भगवान विष्णु जल में अपने मत्स्य अवतार के रूप में होते हैं। यही कारण है कि कार्तिक के महीने में मछली का सेवन करना वर्जित माना गया है। इसके अलावा, आषाढ़ में अधिक वर्षा और बाढ़ आने से जल प्रदूषित हो जाता है। ऐसे में वैज्ञानिक दृष्टि से भी इसका सेवन करना सही नहीं माना जाता है।करेले का सेवन करना है वर्जितमाना जाता है कि कार्तिक मास में करेला का सेवन करने से भी बचना चाहिए। इसे वातकारक माना गया है और इसमें कभी-कभी कीड़े भी लग जाते हैं। ऐसे में अगर आप इस समय करेला खाते हैं तो स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। यही कारण है कि कार्तिक मास में करेले का सेवन करना सही नहीं माना जाता है।मूली का सेवन करने से मिलेगा लाभकार्तिक मास में कुछ चीजों को खाना सही नहीं माना जाता है। लेकिन कुछ चीजों का सेवन करना बेहद फायदेमंद माना गया है। माना जाता है कि इस महीने में मूली खाना बेहद लाभदायक सिद्ध हो सकता है। इस मौसम में कफदोष और पित्तदोष जैसी समस्याएं होने का भय होता है। ऐसे में मूली का सेवन करना स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हो सकता है।कार्तिक मास में खाएं आंवलाइस महीने में आंवला नवमी मनाई जाती है, जिसमें आंवले के वृक्ष और भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान होता है। स्वास्थ्य के लिहाज से भी कार्तिक के महीने में आंवला खाना बहुत फायदेमंद माना गया है। इससे जातक के सेहत पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। कार्तिक के महीने में आंवला नवमी पर आंवले की वृक्ष की पूजा करने से लक्ष्मी-नारायण का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है।कार्तिक के महीने में जरूर करें ये कामइस अवधि में खान-पान से जुड़े नियमों का ध्यान रखने के साथ-साथ एक काम भी अवश्य करना चाहिए। मान्यता है कि कार्तिक के महीने में नियमित रूप से भगवान विष्णु को तिल जरूर अर्पित करने चाहिए। साथ ही, इस दौरान तिल का सेवन करना भी लाभदायक माना जाता है। ऐसा करने से आपको विष्णुजी की कृपा प्राप्त हो सकती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
- कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है. कहते हैं कि इसी दिन भगवान धनवंतरी समुद्र मंथन से अमृत का कलश लेकर प्रकट हुए थे. धनतेरस पर धनवंतरी, मां लक्ष्मी और कुबेर महाराज की पूजा करने से बहुत लाभ मिलता है. इस दिन कुछ खास चीजों को खरीदना भी बहुत शुभ माना जाता है. इस साल 18 अक्टूबर को धनतेरस का पर्व मनाया जाएगा. आइए जानते हैं कि धनतेरस पर कौन सी चीजें खरीदने से आपकी तकदीर संवर सकती है.लक्ष्मी जी की प्रतिमादिवाली के शुभ अवसर पर भगवान गणेश और लक्ष्मी जी की पूजा का विधान है. इस दिन मां लक्ष्मी और बुद्धि के देवता गणेश दोनों की संयुक्त पूजा की जाती है. धनतेरस पर माता लक्ष्मी और गणेश की मूर्ति खरीदें. लक्ष्मी और गणेश की मूर्तियां अलग-अलग होनी चाहिए. ध्यान रहे कि इस दिन कमल पर विराजित लक्ष्मी को घर लाना उत्तम होता है.दक्षिणावर्ती शंखसमुद्र मंथन से निकलने वाले दक्षिणावर्ती शंख को मां लक्ष्मी का भाई माना जाता है. इस शंख की ध्वनि बेहद मंगलकारी होती है. धनतेरस पर दक्षिणाणवर्ती शंख खरीदें और उसे घर के मंदिर में रख दें. दीपावली पर इसकी पूजा करना बेहद फलदायी माना जाता है.कुबेर यंत्रधनतेरस के त्योहार पर घर में कुबेर यंत्र की स्थापना करना भी बहुत शुभ होता है. इस दिन कुबेर यंत्र लेकर आएं और घर के मंदिर में स्थापित करें. पूरे साल धन लाभ होगा.चांदीचांदी सुख-समृद्धि देने वाली धातु मानी जाती है. धनतेरस पर चांदी के आभूषण या चांदी का सिक्का खरीदना शुभ माना जाता है. दिवाली पूजा में इस सामान को देवी लक्ष्मी के समक्ष रखा जाता है.गोमती चक्रगोमती चक्र एक खास तरह का पत्थर होता है. यह कई रंगों का होता है, लेकिन सफेद गोमती चक्र सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. आप इसे रत्न की तरह अंगूठी में डाल सकते हैं. धनतेरस पर आप दो या पांच गोमती चक्र खरीद सकते हैं. गोमती चक्र दीपावली के दिन मां लक्ष्मी को अर्पित किया जाता है.खील बताशेधनतेरस के दिन खील बताशे खरीदना बहुत शुभ माना जाता है. खील बताशे शुक्र का प्रतीक होते हैं और सुख-संपन्नता बढ़ाते हैं. दिवाली की पूजा के दौरान मां लक्ष्मी को खील बताशे अर्पित किए जाते हैं. खील बताशे को मिटटी के पात्र में रखकर पूजा करना उत्तम होता है.कौड़ीकौड़ी समुद्री जीवों का खोल है. धन के रूप में इसका प्रयोग प्राचीन काल से होता आया है. धनतेरस पर पांच या नौ कौड़ियां खरीदें. कौड़ी को दीपावली के दिन अर्पित करने या पूजा में इस्तेमाल करने से आर्थिक मोर्चे पर लाभ होता है और घर में सुख-शांति बनी रहती है.झाड़ूशास्त्रों में झाड़ू को शुभता और संपन्नता का प्रतीक माना जाता है. इसलिए धनतेरस पर झाड़ू खरीदने की परंपरा है. धनतेरस और दिवाली के दिन इसकी पूजा भी करनी चाहिए. इसके बाद ही इसका उपयोग करें.बर्तनधनतेरस पर आप किसी भी तरह का बर्तन खरीद सकते हैं. हालांकि इस त्योहार पर पानी का पात्र खरीदना सबसे अच्छा है. इस दिन आप गिलास, कलश या लोटा खरीद सकते हैं. इन बर्तनों को दीपावली के बाद प्रयोग करें.धनियाधनतेरस के दिन साबुत धनिया खरीदना भी बहुत शुभ माना जाता है. इस दिन धनिया लाने के बाद उन्हें पूजन स्थल पर रखें. कहते हैं कि इससे भगवान कुबेर और धनवतंरी प्रसन्न होते हैं. दिवाली के बाद सुबह इन्हें गमले में डाल दें.
- छोटे से कमरे के लिए रंगोली की डिजाइनदिवाली की सजावट रंगोली के बिना अधूरी लगती है। लेकिन बड़े शहरों में छोटे घरों में रहने वाले लोगों को बिना रंगोली बनाए ही दिवाली की सजावट करनी होती है। अगर आपको रंगोली बनाना पसंद है तो छोटे से कमरे में एक कोने में रंगोली की ये छोटी और सरल डिजाइन बनाएं।दीये वाली डिजाइनकमरे के कोने में छोटी सी जगह में दिवाली के दीये सी जगमगाती इस डिजाइन को बनाएं। कम रंगों के इस्तेमाल से ये डिजाइन फटाफट बनकर तैयार हो जाती है।शुभ लाभ वाली रंगोलीपूजा घर के कोने में रंगोली बनाना चाहती हैं तो इस तरह की शुभलाभ वाली रंगोली को बनाकर ट्राई कर सकती हैं। किनारों पर रंगों के ढेर रखने के साथ दीये जलाना ना भूलें।फूलों वाला कोनारंगोली के नाम पर वहीं पुराने टाइम वाला अल्पना ना बनाएं. बल्कि ये यूनिक, सिंपल और छोटी सी डिजाइन को घर के फ्रंट में एक कॉर्नर पर बनाकर डेकोरेशन को पूरा करें।मां लक्ष्मी के चरणपूजा घर के फ्रंट में छोटी सी जगह में मां लक्ष्मी के चरण के साथ रंगों को यूं बिखेर दें। बस दीया जलाकर रंगोली की डिजाइन को पूरा कर दें।मां लक्ष्मी के चरण और फूलसबसे छोटी और दिखने में सुंदर होने के साथ ही बनाने में बिल्कुल आसान सी है ये रंगोली। साथ ही इसमे आपको मां लक्ष्मी के चरण अलग से बनाने की भी जरूरत नहीं होगी।बनाएं फूलों के साथ दीयाघर के किसी कोने में थोड़ी जगह है तो दीया के साथ फूलों वाली इस डिजाइन को बना लें। ये बनाने में बहुत आसान है और फटाफट बनकर तैयार हो जाएगी।बना लें अल्पनारंगोली बनाने के लिए कोई डिजाइन नहीं बन पा रही है तो बस ये सुंदर से फूल को रंगों की मदद से सजा लें। बन जाएगी छोटे से कमरे के दरवाजे पर ये रंगोली डिजाइन।
- दिवाली, जिसे दीपावली भी कहा जाता है, हिंदू धर्म का प्रमुख पर्व है जो अंधकार पर प्रकाश, बुराई पर अच्छाई और अज्ञानता पर ज्ञान की विजय का प्रतीक है. यह पर्व पांच दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें छोटी दिवाली और बड़ी दिवाली दो प्रमुख दिन होते हैं. इन दोनों में तिथियों, पूजा विधियों और धार्मिक महत्व के आधार पर अंतर होता है.छोटी दिवाली (नरक चतुर्दशी)छोटी दिवाली, जिसे नरक चतुर्दशी या रूप चौदस भी कहते हैं, दीपावली से एक दिन पहले मनाई जाती है. इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध कर 16,100 कन्याओं को मुक्त किया था. इसी कारण इस दिन को नरक चतुर्दशी कहा जाता है. इस दिन सूर्योदय से पहले उबटन और स्नान करने की परंपरा है, जिससे समस्त पाप समाप्त होते हैं. साथ ही यमराज की पूजा करके अकाल मृत्यु से मुक्ति की कामना की जाती है और घर में दीपक जलाकर वातावरण को शुद्ध किया जाता है.बड़ी दिवाली (लक्ष्मी पूजन)बड़ी दिवाली, जिसे मुख्य दिवाली या लक्ष्मी पूजन भी कहते हैं, कार्तिक माह की अमावस्या को मनाई जाती है. इस दिन भगवान रामचन्द्रजी 14 वर्षों का वनवास समाप्त कर अयोध्या लौटे थे, तभी अयोध्यावासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया. इसी कारण इस दिन को दीपावली कहा जाता है. इस दिन देवी लक्ष्मी, भगवान गणेश और सरस्वती की पूजा करके घर में सुख, समृद्धि और ज्ञान की प्राप्ति की कामना की जाती है. घर को दीपों और रंग-बिरंगी झालरों से सजाया जाता है.छोटी और बड़ी दिवाली: उत्सव और परंपराओं में अंतरछोटी दिवाली के दिन लोग सामान्य रूप से हल्का भोजन करते हैं और साधारण पूजा-अर्चना में ही अपने दिन की शुरुआत करते हैं. इस दिन का मुख्य उद्देश्य आत्म-शुद्धि और अंधकार पर विजय है, इसलिए उत्सव सरल और शांतिपूर्ण रहता है. इसके विपरीत, बड़ी दिवाली पर पूरे घर और परिवार में उल्लास और खुशी का माहौल होता है. लोग पूरे परिवार और मित्रों के साथ मिलकर दीप जलाते हैं, रंगोली बनाते हैं, मिठाइयां बांटते हैं और विशेष पूजा-अर्चना के साथ समृद्धि और खुशहाली की कामना करते हैं. बड़ी दिवाली का उत्सव न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और पारिवारिक रूप से भी आनंदपूर्ण होता है.
- पांच दिवसीय दीपोत्सव पर्व को दिवाली या दीपावली भी कहा जाता है. इस पर्व में धनतेरस, नरक चतुर्दशी (छोटी दिवाली), दिवाली (लक्ष्मी पूजा), गोवर्धन पूजा और भाई दूज शामिल हैं. यह पर्व कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से शुरू होता है और शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि तक मनाया जाता है. यह प्रकाश और समृद्धि का प्रतीक है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतिनिधित्व करता है. इस उत्सव में हर दिन का अपना विशेष महत्व और अनुष्ठान होता है. पंंचांग के अनुसार, साल 2025 में दिवाली का पर्व 20 अक्टूबर दिन सोमवार को मनाया जाएगा.पांच दिवसीय दीपोत्सव पर्व कब है?पांच दिवसीय प्रकाश पर्व की शुरुआत धनतेरस के साथ होती है और भाई दूज पर इसका समापन होता है. पांच दिनों तक मनाया जाने वाला यह त्योहार इस बार 6 दिनों का होने वाला है. इस साल पंच दीपोत्सव की शुरुआत 18 अक्टूबर से हो रही है, जिसका समापन 23 अक्टूबर 2025 को होगा. इस तरह से दीपोत्सव 5 नहीं, बल्कि 6 दिनों तक मनाया जाएगा.इस बार 6 दिन का होगा दीपोत्सवपांच दिवसीय दीपोत्सव का 6 दिन पड़ने के पीछे का कारण है त्रयोदशी तिथि में बढ़ोतरी. इस बार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि दो दिन पड़ेगी. जिसकी वजह से दीपोत्सव 6 दिनों का हुआ है. इस साल छोटी दिवाली और बड़ी दिवाली दोनों एक ही दिन मनाई जाएगी. आइए जानते हैं किस तिथि पर कौन से त्योहार मनाए जाएंगे.दीपावली के 5 दिन कौन से हैं?धनतेरस:- दिवाली पर्व की शुरुआत धनतेरस से होती है, जिसे धनत्रयोदशी भी कहते हैं. इस दिन भगवान धन्वंतरी, कुबेर और लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और लोग बर्तन, धातु व आभूषण खरीदते हैं.नरक चतुर्दशी (छोटी दिवाली):- धनतेरस के अगले दिन छोटी दिवाली का पर्व मनाया जाता है. इस दिन भगवान कृष्ण द्वारा नरकासुर राक्षस का वध किया गया था, जो कि बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है.दिवाली (बड़ी दिवाली):- दिवाली का त्योहार कार्तिक अमावस्या के दिन मनाया जाता है और इसमें लक्ष्मी-गणेश जी की पूजा के साथ दीपक जलाए जाते हैं. यह दीपावली का मुख्य दिन होता है.गोवर्धन पूजा:- यह पांच दिवसीय दीपोत्सव का चौथा दिन होता है. इस दिन भगवान कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत को उठाने का स्मरण किया जाता है, जिसे अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है.भाई दूज:- पांच दिवसीय उत्सव का आखिरी दिन भाई दूज भाई-बहन के रिश्ते को समर्पित है, जिसमें भाई अपनी बहन के घर जाकर भोजन करते हैं और बहन भाई की लंबी उम्र की कामना करती है.
- धनतेरस के त्यौहार से ही दिवाली की शुरुआत मानी जाती है. धनतेरस का पर्व सुख समृद्धि और नई शुरुआत का संदेश देता है. प्राचीन काल से ही धनतेरस के दिन सोना-चांदी और नए बर्तन खरीदने की परंपरा चली आ रही है. हर साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस का पर्व मनाया जाता है. इस दिन सोना,-चांदी और नए बर्तन खरीदने के साथ-साथ भगवान धन्वंतरि देव की पूजा की जाती है.इस दिन को ‘धन त्रयोदशी’ भी कहा गया है. इस दिन धातु और नई वस्तुएं खरीदने को शुभ माना जाता है, लेकिन क्या कभी आपने इस पर विचार किया है कि आखिर इस दिन सोना-चांदी और नए बर्तन क्यों खरीदे जाते हैं? तो चलिए जानते हैं कि प्राचीन काल से लोग इस परंपरा को क्यों निभाते चले आ रहे हैं?कब है धनतेरस?हिंदू पंचांग के अनुसार, शनिवार 18 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर 18 मिनट पर कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरुआत हो रही है. इसके अगले दिन 19 अक्टूबर को दोपहर 01 बजाकर 51 मिनट पर ये त्रयोदशी तिथि समाप्त हो जाएगी. इस प्रकार 18 अक्टूबर को धनतेरस मनाया जाएगा.इसलिए धनतेरस पर की जाती है खरीदारीहिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को समुद्र मंथन के दौरान धन्वंतरि देव अमृत कलश लेके प्रकट हुए थे. धन्वंतरि देव जो कलश लेकर प्रकट हुए थे वो सोने का था, इसलिए इसे ‘धन त्रयोदशी’ भी कहा जाता है. माना जाता है कि इस दिन सोना,-चांदी या नए बर्तन खरीदने से मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे घर में धन-धान्य बढ़ता है. धनतेरस के दिन लोग सिर्फ सोना-चांदी ही नहीं, बल्कि तांबे, पीतल और स्टील के बर्तनों की भी खरीदारी करते हैं. ये धातुएं शुद्धता और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है. यही कारण है कि धनतेरस पर सोना-चांदी और नए बर्तन खरीदने की परंपरा है. वहीं, धनतेरस के दिन काले रंग की वस्तुएं भूलकर भी नहीं खरीदना चाहिए. धनतेरस के दिन काले रंग की वस्तुएं खरीदना अशुभ होता है.
- हिंदू धर्म में हर पर्व का अपना विशेष धार्मिक और पौराणिक महत्व होता है. दिवाली, जो अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है इसका समुद्र मंथन से भी गहरा संबंध है. पुराणों में उल्लेख मिलता है कि प्राचीन समय में देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था, ताकि अमृत कलश प्राप्त कर अमरता का वरदान प्राप्त कर सके. इस मंथन से कई दिव्य रत्न और अद्भुत वस्तुएं प्रकट हुईं. सबसे महत्वपूर्ण था धन्वंतरि देव का प्रकट होना, जिनके हाथ में अमृत कलश था. धन्वंतरि देव को आयुर्वेद और स्वास्थ्य के देवता माना जाता है, इसलिए उनका प्रकट होना स्वास्थ्य और समृद्धि का प्रतीक बन गया.दिवाली और समुद्र मंथन में संबंधइस पौराणिक घटना का प्रत्यक्ष संबंध धनतेरस से है, जो दिवाली से दो दिन पहले आता है और इसे धन त्रयोदशी कहा जाता है. मान्यता है कि इस दिन धन्वंतरि देव सोने का अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे. इसी कारण इस दिन सोना, चांदी और नए बर्तन खरीदने की परंपरा शुरू हुई. यह केवल एक धार्मिक रिवाज नहीं, बल्कि घर में मां लक्ष्मी की कृपा लाने, धन-वैभव बढ़ाने और परिवार में सुख-शांति बनाए रखने का माध्यम माना जाता है.धनतेरस पर होने वाले शुभ कार्य और परंपराएं--धनतेरस के दिन कुछ विशेष उपाय और परंपराएं अपनाने से घर में सुख-शांति, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है.सोना, चांदी और धातु के बर्तन खरीदें: केवल सोना और चांदी ही नहीं, बल्कि तांबे, पीतल और स्टील के बर्तन खरीदना भी शुभ माना जाता है. ये धातुएं शुद्धता और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक मानी जाती हैं.घर की साफ-सफाई: घर को अच्छे से साफ करना बहुत शुभ होता है. इससे नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और घर में शांति और खुशहाली बनी रहती है.दीपक जलाना: मुख्य द्वार, खिड़कियों और घर के महत्वपूर्ण स्थानों पर दीपक जलाने से उजाला और सकारात्मक ऊर्जा फैलती है. यह मां लक्ष्मी और धन की देवी को आमंत्रित करने का भी प्रतीक है.कुबेर यंत्र स्थापित करना: घर में धन के देवता कुबेर का यंत्र रखने से आर्थिक स्थिरता और धन-वैभव बढ़ता है.दान करना: जरूरतमंदों को भोजन, कपड़े या अन्य आवश्यक वस्तुएं दान करने से पुण्य मिलता है और मन में संतोष और करुणा का भाव बढ़ता है.
- दीपोत्सव की शुरुआत का प्रतीक, धनतेरस का त्योहार हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है. इस दिन सोना, चांदी, और नए बर्तन खरीदना बेहद शुभ माना जाता है. धार्मिक मान्यता है कि धनतेरस पर खरीदारी करने से घर में धन-धान्य और सौभाग्य में तेरह गुना वृद्धि होती है. पंचांग के अनुसार, इस साल धनतेरस का शुभ पर्व शनिवार, 18 अक्टूबर को मनाया जाएगा. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस दिन खरीदारी को इतना शुभ क्यों माना जाता है? इसके पीछे दो प्रमुख पौराणिक कथाएं हैं, जो इस पर्व के महत्व को और बढ़ा देती हैं.धनतेरस पर खरीदारी का महत्व, भगवान धन्वंतरि की कथासमुद्र मंथन और अमृत कलशपौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार देवताओं और असुरों ने मिलकर अमृत प्राप्त करने के लिए क्षीर सागर में समुद्र मंथन किया था. कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ही, मंथन के दौरान, भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए थे. जब वह प्रकट हुए, तो उनके हाथों में अमृत से भरा एक स्वर्ण/पीतल का कलश था. यह कलश धन और आरोग्य का प्रतीक था. चूंकि भगवान धन्वंतरि अपने साथ अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए इस तिथि को ‘धन त्रयोदशी’ कहा गया.इस दिन किसी भी धातु या नई वस्तु (विशेषकर बर्तन और धातु) को खरीदना बहुत शुभ माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि इससे घर में धन और आरोग्य का वास होता है, और धन की कमी दूर होती है. खास तौर पर पीतल के बर्तन खरीदना बहुत ही शुभ माना जाता है क्योंकि भगवान धन्वंतरि के हाथ में पीतल का कलश था.धनतेरस पर सोना-चांदी खरीदने की दूसरी पौराणिक कथाएक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने राजा बलि के अहंकार को तोड़ने के लिए वामन अवतार लिया था, तब उन्होंने राजा बलि से तीन पग भूमि दान में माँगी थी. राजा बलि ने दान देने का वचन दिया.वामन भगवान ने अपने पहले पग में पूरी पृथ्वी को नाप लिया.दूसरे पग में स्वर्गलोक को नाप लिया. तीसरा पग रखने के लिए जब कोई स्थान नहीं बचा, तो राजा बलि ने अपना सिर वामन भगवान के चरणों में रख दिया.इस तरह राजा बलि ने अपना सब कुछ दान में गंवा दिया. माना जाता है कि राजा बलि ने देवताओं से जो धन-संपत्ति छीन ली थी, उससे कई गुना धन-संपत्ति देवताओं को वापस मिल गई थी. इस उपलक्ष्य में भी धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है, जिससे धन-संपत्ति की वृद्धि का संदेश मिलता है.
- कार्तिक मास हिंदू कैलेंडर का आठवां महीना होता है, जो कि बहुत ही पवित्र माना गया है. यह मास जगत के पालनहार भगवान विष्णु को समर्पित माना गया है. इस दौरान भगवान विष्णु के साथ ही तुलसी की पूजा को बहुत महत्व दिया गया है. इसके अलावा, कार्तिक मास में दीपदान करना बेहद खास माना जाता है. इस लेख में हम आपको बताएंगे कि दीपदान क्या होता है, दीपदान करने की विधि और कार्तिक मास में दीपदान का क्या महत्व होता है.दीपदान क्या होता है?दीपदान का अर्थ है दीपक जलाकर किसी उपयुक्त स्थान पर दान करना या रखना. दीपदान किसी देवता, पवित्र नदी या किसी विद्वान ब्राह्मण के घर किया जाता है. मुख्य रूप से दीपदान जीवन में सुख-शांति और समृद्धि की कामना के लिए किया जाता है. दीपदान को ज्ञान और उज्ज्वल भविष्य का प्रतीक भी माना जाता है. खासकर कार्तिक मास में दीपदान का विशेष महत्व है और इससे अक्षय पुण्य मिलता है.कार्तिक मास में दीपदान का महत्वकार्तिक मास में दीपदान बहुत शुभ फल देने वाला माना जाता है. कार्तिक मास में दीपदान करने से व्यक्ति को दिव्य कान्ति से युक्त होने और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होने का लाभ मिलता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, कार्तिक मास में दान करने से व्यक्ति को जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल सकती है और अगले जन्म में महान कुल में जन्म लेने का आशीर्वाद भी मिलता है.मोक्ष और पुनर्जन्म से मुक्ति:- कार्तिक मास में दीपदान करने से व्यक्ति जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जाती है.दिव्य कान्ति की प्राप्ति:- कार्तिक मास में श्रीकेशव के निकट अखंड दीपदान करने से व्यक्ति दिव्य कान्ति से युक्त हो जाता है.पुण्य की प्राप्ति:- कार्तिक माह में दीपदान करने से सभी यज्ञों और तीर्थों का फल प्राप्त होता है, जो कि अन्य दान-पुण्य से प्राप्त होने वाले फल से कहीं ज्यादा है.पापों का नाश:- कार्तिक मास में सूर्योदय से पहले स्नान करके दीपदान करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है.अगले जन्म में शुभ फल:- कार्तिक मास में तुलसी के सामने दीपक जलाने से व्यक्ति के अगले जन्म में एक महान कुल में जन्म लेने की संभावना बनती है.कार्तिक मास में दीपदान करने से कौन सा लोक प्राप्त होता है?धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक मास में दीपदान करने से विष्णु लोक, लक्ष्मी लोक और मोक्ष जैसे लोक प्राप्त होते हैं. साथ ही, कार्तिक मास में दीपदान करने से अक्षय पुण्य भी मिलता है. कार्तिक मास में मंदिर में दीपदान से विष्णु लोक की प्राप्ति होती है. वहीं, नदी घाट पर दीपदान दान करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति और मोक्ष मिलता है. घर के मुख्य द्वार या तुलसी के पौधे के पास दीपदान करने से धन और समृद्धि आती है और सभी पाप नष्ट होते हैं.दीपदान कब करें?दीपदान विशेष रूप से कार्तिक मास में किया जाता है, जो दीपदान का महीना कहलाता है. इसके अलावा, दीपावली, नरक चतुर्दशी और कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर भी दीपदान करना महत्वपूर्ण माना जाता है. दीपदान इसे अंधेरा होने पर यानी सूर्योदय से पहले (ब्रह्म मुहूर्त) या सूर्यास्त के बाद करना चाहिए. दीपदान घर के पूजा स्थान, तुलसी के पौधे के पास, नदी या तालाब के घाट पर और मंदिरों में किया जाता है.दीपदान करते समय कौन सा मंत्र बोलना चाहिए?कार्तिक मास में दीपदान करते समय ‘शुभं करोति कल्याणं’ मंत्र बोलना चाहिए, जिसका अर्थ है कि शुभ और कल्याण करने वाली, आरोग्य और धन-संपदा देने वाली और शत्रु बुद्धि का विनाश करने वाली दीपक की ज्योति को नमस्कार है.कार्तिक मास में दीप दान कैसे करें?दीपक तैयार करें:- एक मिट्टी का दीपक लेकर उसमें घी या तिल का तेल भरें. फिर एक रुई की बत्ती बनाकर दीपक में रखें.स्थान चुनें:- किसी नदी या तालाब के किनारे, घर के मंदिर या तुलसी के पौधे के पास दीपदान कर सकते हैं.दीपदान करें:- दीपक को सीधे जमीन पर रखने के बजाय चावल या सप्तधान के ऊपर रखें, ताकि भूमि को नुकसान न पहुंचे.प्रार्थना और मंत्र:- दीपक जलाते समय भगवान का स्मरण करें और अपनी मनोकामना बोलनी चाहिए.जल अर्पित करें:- दीपक के साथ थोड़ा जल भी अर्पित करें.वापस घर आएं:- दीपक जलाने और पूजन करने के बाद बिना देखे वापस घर आ जाएं.दीपदान करने के नियम---दीपदान में दीपों की संख्या और बत्तियां मनोकामना के अनुसार तय की जाती हैं.अगर नदी के पास नहीं जा सकते, तो घर पर ही नदी का आवाहन करके दीपदान कर सकते हैं.दीपदान करते समय एक दीपक से दूसरा दीपक नहीं जलाना चाहिए.
- बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्यायसूर्य 17 अक्तूबर 2025 को दोपहर 1 बजकर 36 मिनट पर तुला राशि में प्रवेश करेंगे। अगले दिन यानी 18 अक्तूबर 2025 को धनतेरस का पर्व मनाया जाएगा। 19 अक्तूबर 2025 को गुरु राशि परिवर्तन करने वाले हैं। वह इस दिन दोपहर 12 बजकर 57 मिनट पर कर्क में गोचर करेंगे। इस दिन छोटी दिवाली भी मनाई जाएगी। इसके बाद चंद्रमा कन्या से तुला में प्रवेश करेंगे। 23 अक्तूबर को भाई दूज का पर्व मनाया जाएगा। फिर वृश्चिक राशि में 24 अक्तूबर 2025 को बुध आएंगे। मंगल भी 27 अक्तूबर 2025 को दोपहर 02 बजकर 43 मिनट पर वृश्चिक में प्रवेश करेंगे। ऐसे में ग्रहों के इस दुर्लभ संयोग का खास प्रभाव कुछ राशि वालों पर बना रहेगा। इन जातकों को धन लाभ, शुभ समाचार और हर क्षेत्र में सफलता मिल सकती हैं। आइए इनके बारे में जानते हैं।सिंह राशियह समय सिंह राशि वालों के लिए शुभ रहेगा। व्यापारियों को नए सौदे मिलेंगे। आप वाहन की खरीदारी करेंगे। निवेश करने पर अच्छा रिटर्न आएगा। पार्टनरशिप का प्रस्ताव भी आपको मिल सकता है। इस दौरान जो लोग नौकरीपेशा हैं, उनको नए मौके मिलेंगे। भाग्य का साथ मिलेगा।कन्या राशिआपके लिए ग्रहों की ये चाल बदलावों से भरी रहेगी। आप जो भी काम करेंगे, उसमें धन लाभ, विस्तार और नए लोगों का साथ आपको मिलेगा। इस दौरान कोर्ट के मामले पक्ष में आ सकते हैं। आप अपनी नौकरी के साथ-साथ कोई दूसरा काम भी करेंगे।तुला राशितुला राशि वालों के विवाह की बात बन सकती हैं। कार्यक्षेत्र में नए-नए तरह के अवसरों की प्राप्ति होने से प्रभाव बढ़ेगा। इस समय आप सोना-चांदी या वाहन खरीदने का सपना अपना पूरा करेंगे। विदेश यात्रा या विदेश व्यापार संबंधी योजनाओं में सफलता मिलने की संभावना बन रही है।वृश्चिक राशिआपके लिए समय कई उम्मीदें और सकारात्मक बदलाव लेकर आ सकता है। रिश्तों में बदलाव आपके तनाव को कम करेंगे और विश्वास और बढ़ेगा। विवाह के अच्छे प्रस्ताव आ सकते हैं। संतान सुख की प्राप्ति होगी। अच्छा आर्थिक लाभ मिलेगा।
- कार्तिक मास में जो कार्तिक के नियमों का पालन करता है, वो भगवान विष्णु की कृपा पाता है। कार्तिकके महीने में मोन-व्रत का पालन करना चाहिए। इस महीने में कई नियमों का पालन होता है, जैसे तिल से मिले हुए जल में स्नान, धरत पर सोना, ऐसा करने वालों के युग-युग के पापों का नाश कर डालता है। जो कार्तिक मासमें भगवान् विष्णुके सामने जागरण करता है, उसे सहस्त्र गोदानों का फल मिलता है। इस महीने में दिवाली, धनतेरस, करवा चौथ, आदि पर्व और त्योहार आते हैं।08 अक्टूबर 2025 : कार्तिक मास का प्रारंभ।10 अक्टूबर शुक्रवार: करवा चौथ, वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी।13 अक्टूबर सोमवार: अहोई अष्टमी (अहोई अष्टमी), कालाष्टमी।17 अक्टूबर शुक्रवार: रमा एकादशी, गोवत्स द्वादशी, सूर्य तुला संक्रांति।18 अक्टूबर शनिवार: धनतेरस (धन त्रयोदशी), यम दीपदान, प्रदोष व्रत19 अक्टूबर रविवार: काली चौदस (रूप चतुर्दशी), नरक चतुर्दशी (छोटी दिवाली)।20 अक्टूबर सोमवार: दीपावली (लक्ष्मी-कुबेर पूजन), नरक चतुर्दशी (उदया तिथि), कार्तिक अमावस्या।21 अक्टूबर मंगलवार: स्नान-दान कार्तिक अमावस्या।22 अक्टूबर बुधवार: गोवर्धन पूजा, अन्नकूट।23 अक्टूबर गुरुवार: भाई दूज (यम द्वितीया), चित्रगुप्त पूजा।25 अक्टूबर शनिवार: छठ पूजा का प्रारंभ (नहाय खाय), विनायक चतुर्थी।26 अक्टूबर रविवार: छठ पूजा (खरना) पंचमी।27 अक्टूबर सोमवार: छठ पूजा (संध्या अर्घ्य) षष्ठी।28 अक्टूबर मंगलवार: छठ पूजा (उषा अर्घ्य) सप्तमी।30 अक्टूबर गुरुवार: गोपाष्टमी पर्व।31 अक्टूबर शुक्रवार: आंवला नवमी (अक्षय नवमी)।02 नवंबर रविवार: देवउठनी एकादशी (प्रबोधिनी एकादशी)।03 नवंबर सोमवार: तुलसी विवाह, सोम प्रदोष व्रत।05 नवंबर 2025 बुधवार: कार्तिक पूर्णिमा (देव दिवाली), गुरु नानक जयंती।
- कार्तिक मास कल से शुरू होने वाला है। इस मास में मां तुलसी और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि इस महीने में विष्णु भगवान जल में निवास करते हैं। इस महीने में तुलसी और जो मनुष्य कार्तिक में आंवले की जड़ में भगवान् विष्णुकी पूजा करता है, उसके सभी कष्ट का निवारण श्री विष्णु करते हैं। है। जैसे भगवान् विष्णुकी महिमाका पूरा-पूरा वर्णन नहीं किया जा सकता है, उसी प्रकार आंवले और तुलसी के माहात्म्य का भी वर्णन नहीं हो सकता | जो आंवले और तुलसी की उत्पत्ति-कथा को भक्तिपूर्वक सुनता वो मोक्ष को पाता है। जो लोग कार्तिक मास में तुलसी का वृक्ष लगाते हैं, वे कभी यमराजको नहीं देखते। कार्तिक स्नान क्या होता है और इसमें क्या करना चाहिए, यहां पढ़ें सब कुछकार्तिक स्नान में सूर्योदय से पहले स्नान करता है, वो भगवान विष्णु की कृपा पाता है। इसकी बाद तुलसी के पास दीपक जलाकर कार्तिक स्नान की कथा सुनी जाती है। पद्म पुराण में लिखा है कि पुष्कर आदि तीर्थ, गंगा आदि नदियां तथा वासुदेव आदि देवता--ये सभी तुलसीदल में निवास करते हैं। जो मनुष्य तुलसीकाष्ठ का चन्दन लगाता है, उसके शरीरको पाप नहीं लगता है।कार्तिक मास के दौरान सात्विक आहार और संयम का खास महत्व है। इस दौरान तामसिक चीजों को ग्रहण नहीं किया जाता है। इस समय प्याज, लहसुन, मांस और मद्यपान का पूर्ण त्याग कर फल, दूध और सादा आहार लेने का विधान है। मां तुलसी की विशेष अराधना करनी चाहिए। सुबह-शाम तुलसी के सामने दीपक जलाना चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि इस मास में तुलसी का एक दीप कई दीप के बराबर माना जाता है।
- वास्तु शास्त्र में उत्तर दिशा को धन और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है, जो कुबेर और जल तत्व से संबंधित है। इस दिशा की दीवारों के लिए हल्का हरा, नीला या सफेद रंग शुभ है। ये रंग सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करते हैं और आर्थिक प्रगति में मदद करते हैं। गहरे रंगों से बचें, क्योंकि वे ऊर्जा को बाधित कर सकते हैं।पूर्व दिशा के लिए रंगपूर्व दिशा सूर्य और स्वास्थ्य से जुड़ी है। वास्तु के अनुसार, इस दिशा में हल्का पीला, क्रीम या सफेद रंग का उपयोग करें। ये रंग सकारात्मकता, ऊर्जा और स्वास्थ्य को बढ़ावा देते हैं। विशेष रूप से, दीपावली के समय पीले रंग का उपयोग सूर्य की सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है। गहरे लाल या काले रंगों से बचें।दक्षिण दिशा के लिए रंगदक्षिण दिशा मंगल ग्रह और शक्ति से संबंधित है। वास्तु के अनुसार, इस दिशा में हल्का लाल, गुलाबी या कोरल रंग शुभ है। ये रंग ऊर्जा और स्थिरता लाते हैं। हालांकि, बहुत गहरे लाल रंग से बचें, क्योंकि यह आक्रामकता को बढ़ा सकता है। दीपावली से पहले इस दिशा को संतुलित रंगों से सजाएं।पश्चिम दिशा के लिए रंगपश्चिम दिशा शनि और वरुण से जुड़ी है, जो शांति और रचनात्मकता का प्रतीक है। इस दिशा के लिए हल्का नीला, ग्रे या सफेद रंग उपयुक्त है। ये रंग मानसिक शांति और रचनात्मकता को बढ़ाते हैं। दीपावली के समय इन रंगों का उपयोग परिवार में सौहार्द और शांति लाता है। गहरे काले रंग से बचें।पूजा कक्ष के लिए रंगवास्तु शास्त्र में पूजा कक्ष उत्तर-पूर्व दिशा में होना चाहिए। इसकी दीवारों के लिए सफेद, हल्का पीला या हल्का नारंगी रंग शुभ है। ये रंग आध्यात्मिक ऊर्जा और शुद्धता को बढ़ाते हैं। दीपावली पर पूजा कक्ष को इन रंगों से सजाने से लक्ष्मी-गणेश की कृपा प्राप्त होती है। गहरे या चटकीले रंगों से बचें, क्योंकि वे ध्यान भटका सकते हैं।वास्तु टिप्स और सावधानियांरंगों को दिशा के अनुसार चुनें। हल्के और सौम्य रंगों को प्राथमिकता दें। गहरे काले, भूरे या बहुत चटकीले रंगों से बचें। दीपावली से पहले घर को साफ करें और फिर पेंट करें। रंगाई से पहले वास्तु विशेषज्ञ से सलाह लें। ये उपाय घर में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि लाते हैं।शुभ रंगों से सजाएं घरवास्तु शास्त्र के अनुसार, दिवाली से पहले घर को शुभ रंगों से पेंट करना सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि को आकर्षित करता है। उत्तर में हरा, पूर्व में पीला, दक्षिण में गुलाबी और पश्चिम में नीला रंग चुनें। पूजा कक्ष में हल्के रंगों का उपयोग करें। सही रंगों का चयन कर घर को दीपावली के लिए सजाएं और सुख-शांति का स्वागत करें।
- शरद पूर्णिमा हिंदू धर्म में एक बहुत ही पवित्र और शुभ रात मानी जाती है। इसे कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस रात देवी लक्ष्मी धरती पर आती हैं और भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। इस पवित्र रात में चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है और उसकी किरणों से अमृत बरसता है। इस साल शरद पूर्णिमा 6 अक्टूबर को है। शरद पूर्णिमा की रात को खीर बनाने और चंद्रमा की रोशनी में रखने का खास महत्व है। कहा जाता है कि ऐसा करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है और मां लक्ष्मी की कृपा मिलती है। इसके अलावा इस रात कुछ और उपाय भी किए जा सकते हैं, जो घर में सुख-समृद्धि और खुशहाली लाते हैं।शरद पूर्णिमा पर करें ये उपाय:चंद्रमा को अर्घ्य दें: एक लोटे में पानी भरें, उसमें चावल और फूल डालकर चंद्रमा की ओर मुख करके अर्पित करें। ऐसा करने से चंद्र देव की कृपा मिलती है और घर में शांति व धन का वास होता है।खीर का महत्व: खीर बनाकर रात में खुले आसमान के नीचे रखें, preferably मिट्टी के बर्तन में। इससे अच्छी सेहत और मां लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलता है।मंत्र जप: “ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं त्रिभुवन महालक्ष्म्यै अस्मांक दारिद्र्य नाशय प्रचुर धन देहि देहि क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ” का 108 बार जाप करें। इससे धन-संपत्ति और समृद्धि बढ़ती है।घी का दीपक जलाएं: तुलसी के पौधे के पास शुद्ध घी का दीपक जलाएं और तुलसी माता को प्रणाम करें। इससे घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है।पूजा सामग्री: धान की बाली, ईख, नारियल और ताड़ के फल से बने खूजा का उपयोग पूजन में करें। यह पूजा अधिक प्रभावी होती है।जागरण करें: रातभर जागरण करें और मां लक्ष्मी की पूजा करें। इससे मां लक्ष्मी की विशेष कृपा करती हैं और घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है।
- सोमवार को शरद पूर्णिमा के अवसर पर मां कोजागरी लक्ष्मी व लक्खी पूजा होगी। पारंपरिक रीति रिवाज के अनुसार पूजा व अनुष्ठान किया जाता है। विवाहित स्त्रियां जहां परिवार की सुख-समृद्धि और उन्नति के लिए व्रत रखती हैं। पंडित के अनुसार 6 अक्टूबर की रात घी का दीपक जलाकर महालक्ष्मी का पूजन करने का विधान है। इस दिन लक्ष्मी घर घर घूमती है। और रात्रि जागरण कर पूजन करने वाले को सुख समृद्धि प्रदान करती हैं। शरद पूर्णिमा की अमृतोमय चांदनी से सिक्त खीर दूसरे दिन प्रात: प्रसाद स्वरूप ग्रहण करने से धन ऐश्वर्य और बल में वृद्धि होती है।इस दिन 100 दीपक जलाने का विधान है। पश्चिम बंगाल से सटे इलाकों के हर गांव व घर में होती है पूजा बोकारो से सटे पश्चिम बंगाल की सीमा से सटे क्षेत्र में सोमवार हर गांव और प्रत्येक घर में मां लक्खी की पूजा होगी। मंदिरों में विधि-विधान से मां की मूर्ति स्थापित की जाएगी। जिनके बाद ग्रामीण इस दौरान विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम कर सारी रात मां की आराधना में विलिन रहते हैं। चंदनकियारी, कसमार, चास सहित कई स्थानों में शरद पूर्णिमा पर मां की मूर्ति स्थापित कर मां का पूजन विधि पूर्वक किया जाता है। चंदनकियारी में हर दशकों से बांग्ला यात्रा का आयोजन होता है, जिसमें लोग मां की आराधना करने के पश्चात बांग्ला यात्रा देख रातजग्गा करते हैं।कैसे करें कोजागिरी पूर्णिमा पूजाकोजागिरी पूर्णिमा के संध्या समय में स्नान करने के पश्चात स्वर्ण, रजत अथवा मिट्टी के कलश स्थापित कर मां लक्ष्मी की स्वर्णमयी प्रतिमा लाल वस्त्र में लपेटकर कलश के ऊपर स्थापित कर उसकी उपलब्ध सामग्रियों से पूजा करनी चाहिए रात्रि में भजन, कीर्तन और जागरण निश्चित रूप से करनी चाहिए। चंदनकियारी में यात्रा का आयोजन लक्खी पूजा के अवसर पर हर बार की तरह इस बार भी चंदनकियारी में कोलकाता के प्रसिद्ध यात्रा का आयोजन किया जाएगा। इस बाबत पंडित ने जानकारी देते हुए बताया कि चंदनकियारी में इस बार नीलाम होलो सिथेर सिंदूर बांग्ला यात्रा का आयोजन किया जाएगा। जिसमें पश्चिम बंगाल के पसिद्ध कलाकार यात्रा में भाग लेंगे। इस दौरान भारी संख्या में आम लोगों की भीड़ उमड़ने की संभावना है। पूरे देश में मनाया जाता हैत्योहार : उड़िया मान्यता के अनुसार शरण पूर्णिमा के दिन भगवान शिव के पराक्रमी पुत्र कुमार कार्तिकेय का जन्म हुआ था। इसलिए ओड़िशा में इसे कुमार पूर्णिमा कहते हैं। गुजराती समुदाय के लोग आज शरद पूनम मनाते हैं।मराठी समुदाय में शरद पूर्णिमा को परिवार के जेष्ठ संतान को सम्मानित करने की परंपरा है। बंगाली समुदाय के लोग शरद पूर्णिमा को हर्षोल्लास के साथ मां लक्खी की पूजा करते हैं, जिसे कोजोगोरी लक्खी पूजा कहा जाता है। लोग रातभर जागकर समृद्धि की देवी मां लक्ष्मी की आराधना करते हैं।
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शरद पूर्णिमा का त्योहार 6 अक्टूबर को मनाया जाएगा. ऐसी मान्यताएं हैं कि इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण रहता है और मां लक्ष्मी पृथ्वी लोक पर भ्रमण करती हैं. ज्योतिषविद ऐसा मानते हैं कि शरद पूर्णिमा के दिन कुछ खास बातों का विशेष ख्याल रखना चाहिए. इस दिन एक छोटी सी गलती आपको आर्थिक मोर्चे पर कंगाल बना सकती है. आइए जानते हैं कि ये गलतियां कौन सी हैं.
1. दूध, चीनी और चावल का उधारशरद पूर्णिमा की रात चांद की रोशनी में खीर रखकर खाने की परंपरा है. कहते हैं कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता है. इसलिए इसकी छाया में रखी खीर खाने से इंसान का भाग्योदय होता है. खीर दूध, चीनी और चावल से मिलकर बनती है और ज्योतिष में इन तीनों चीजों को चंद्रमा से जोड़कर देखा जाता है. इसलिए कहते हैं कि शरद पूर्णिमा के दिन खीर बनाने के लिए इसकी सामग्री को किसी से उधार नहीं लेना चाहिए. इन्हें अपनी मेहनत की कमाई से खरीदकर ही खीर बनाएं और मां लक्ष्मी को भोग लगाएं.2. भोजन का अपमानइंसान के घर में अन्न-धन का अंबार लगाने वाली मां अन्नपूर्णा और मां लक्ष्मी जब तक कृपा बरसाती हैं, तब तक आदमी का जीवन खुशियों से भरा रहता है. लेकिन एक बार देवी नाराज हुईं तो दुख-कष्ट पीछा नहीं छोड़ते हैं. कहते हैं कि अन्न का अपमान करने से मां लक्ष्मी और अन्नपूर्णा नाराज होती हैं. शरद पूर्णिमा के दिन भूलकर भी घर में यह गलती न करें.3. सूर्यास्त के बाद धन का लेन-देनज्योतिषविद कहते हैं कि शरद पूर्णिमा के शुभ अवसर पर शाम को सूर्यास्त के समय पैसों का लेन-देन करने की भूल न करें. इस एक गलती से भी मां लक्ष्मी रुष्ट हो सकती हैं. सूर्यास्त के बाद न तो किसी से पैसा उधार लें और न ही किसी को पैसा दें. यदि इस दिन धन का लेन-देन करना आवश्यक है तो इस काम को शाम होने से पहले ही निपटा लें4. मुख्य द्वार पर गंदगीमां लक्ष्मी को साफ-सफाई अत्यंत प्रिय है. इसलिए शरद पूर्णिमा के दिन घर में बिल्कुल गंदगी न करें. खासतौर से मुख्य द्वार और उत्तर दिशा में तो साफ-सफाई का विशेष ख्याल रखें. अन्यथा मां लक्ष्मी घर में वास नहीं करेंगी. एक बात का और ख्याल रखें कि इस दिन शाम होने के बाद घर में झाड़ू न लगाएं. घर की साफ-सफाई से जुड़े कार्य दोपहर तक निपटा लें. -
6 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जाएगा. मान्यता है कि इस रात चंद्रमा धरती के सबसे निकट होता है. शरद पूर्णिमा के व्रत की भी विशेष महिमा बताई गई है. कहते हैं कि इसी दिन धन की देवी मां लक्ष्मी का अवतरण हुआ था. ऐसा विश्वास है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है.
नारद पुराण के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात माता लक्ष्मी उल्लू पर सवार होकर पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं. इसलिए इस दिन माता लक्ष्मी की विशेष पूजा-अर्चना करने का विधान है. कहा जाता है कि इस दिन लक्ष्मी जी अपने श्रद्धालुओं को धन, वैभव, यश और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं. इसलिए घर के मुख्य द्वार पर दीप जलाकर देवी का स्वागत करना चाहिए.शरद पूर्णिमा की रात होती है बेहद खासशास्त्रों के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात ही भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन में राधा और गोपियों संग अद्भुत महारास का आयोजन किया था. कहा जाता है कि इस दिन भगवान कृष्ण ने गोपियों संग नृत्य करने के लिए अनेक रूप प्रकट किए थे. यह दिव्य रासलीला केवल नृत्य नहीं, बल्कि प्रेम, भक्ति और आनंद का अद्वितीय प्रतीक भी मानी जाती है.मां लक्ष्मी का अवतरणशरद पूर्णिमा की रात ही समुद्र मंथन के समय माता लक्ष्मी प्रकट हुई थीं. यही कारण है कि शरद पूर्णिमा का दिन लक्ष्मी पूजन के लिए बेहद खास माना जाता है. कई जगहों पर इस दिन कुंवारी कन्याएं सूर्य और चंद्र देव की पूजा करती हैं. और उनसे आशीर्वाद लेती हैं.क्यों खुले आसमान के नीचे रखी जाती है खीर?शरद पूर्णिमा के दिन आसमान के नीचे खीर रखने की परंपरा है. कहते हैं कि इस रात चंद्रमा की रोशनी से अमृत वर्षा होती है. इस खीर को खाने से अच्छी सेहत का वरदान और मां लक्ष्मी का आशीर्वाद भी मिलता है. इसलिए लोग शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की छाया में खीर रखते हैं और फिर उसे अगले दिन सुबह खाते हैं. कहते हैं कि शरद पूर्णिमा की रात चांद की रोशनी में रखी खीर खाने से इंसान का भाग्योदय होता है और परिवार को रोग-बीमारियों से मुक्ति मिलती है. -
अक्टूबर माह का नया सप्ताह शुरू होने वाला है. यह सप्ताह 6 अक्टूबर से लेकर 12 अक्टूबर तक रहेगा. खास बात यह है कि इस सप्ताह की शुरुआत शरद पूर्णिमा से हो रही है. शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण रहता है और इस दिन मां लक्ष्मी पृथ्वी लोक पर भ्रमण भी करती हैं. ज्योतिषविदों का कहना है कि यह दुर्लभ संयोग तीन राशि के जातकों को शुभ परिणाम दे सकता है. आइए इन लकी राशियों के बारे में जानते हैं.
मिथुन राशि- आपके रुके हुए काम पूरे होंगे. धन लाभ होगा. कहीं से उधार दिया हुआ या फंसा हुआ पैसा वापस मिल सकता है. करियर की समस्याएं हल हो सकती हैं. पारिवारिक समस्याएं हल होंगी. स्वास्थ्य बेहतर होता जाएगा. घर में जिन बुजुर्गों की सेहत खराब चल रही थी, उसमें सुधार आने वाला है. धार्मिक कार्यों में व्यस्तता रहेगी. परिवार में खुशहाली आएगी. शिवजी को जल अर्पित करें.तुला राशि- अचानक धन लाभ के योग बनते दिख रहे हैं. आपका कोई महत्वपूर्ण काम बन जाएगा. मानसिक तनाव कम होगा. घर-परिवार में चल रही कोई बड़ी चिंता दूर हो सकती है. ऑफिस की समस्या हल हो सकती है. कार्यस्थल पर आपके काम से लोग प्रसन्न रहेंगे. छोटी यात्रा हो सकती है. परिवार संग किसी धार्मिक स्थल पर दर्शन के लिए जा सकते हैं. स्वास्थ्य में सुधार होगा. शिवजी को जल अर्पित करें.कुंभ राशि- धन लाभ के उत्तम योग बनने वाले हैं. आय के स्रोतों में वृद्धि होगी. गुप्त स्रोतों से धन की प्राप्ति हो सकती है. करियर में सफलता मिलेगी. क्रिएटिव फील्ड में कार्यरत लोगों को विशेष लाभ मिल सकता है. आपके लंबे समय से रुके हुए काम अब पूरे होंगे. करियर की रुकावट दूर होगी. प्रमोशन-इन्क्रीमेंट की प्रबल संभावनाएं बन रही हैं. स्वास्थ्य अच्छा रहेगा.उपायइस बार शरद पूर्णिमा सोमवार के दिन पड़ रही है. यह वार भगवान शिव को समर्पित है. ऐसे में शरद पूर्णिमा और सोमवार के संयोग में भगवान शिव को प्रसन्न करने से बहुत लाभ मिल सकता है. इस दिन सुबह स्नानादि के बाद शिवलिंग का जलाभिषेक करें. शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाएं. फिर महादेव के मंत्रों का जप करें. यह एक उपाय आपके जीवन की दिशा-दशा बदल सकता है. - साल 2025 में दशहरा या विजयादशमी 2 अक्टूबर, गुरुवार को है। हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। इसी दिन भगवान श्रीराम ने रावण का वध कर माता सीता को मुक्त कराया था। यह त्योहार पूरे भारत में अलग-अलग रूपों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध करके राक्षसों से पृथ्वी को मुक्त किया था। इसलिए, दशहरा बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। कहीं रावण दहन होता है तो कहीं देवी दुर्गा की मूर्तियों का विसर्जन।तिथि और शुभ मुहूर्त-दशमी तिथि: 1 अक्टूबर 2025 की शाम 7:01 बजे से 2 अक्टूबर 2025 की शाम 7:10 बजे तक।विजय मुहूर्त: 2 अक्टूबर को 2:09 PM से 2:56 PM तक।अपराह्न पूजा मुहूर्त: 1:21 PM से 3:44 PM तक।रावण दहन का समय: सूर्यास्त के बाद, लगभग 6:05 बजे के बाद।पूजा विधि:सुबह-सुबह उठकर स्नान करें, साफ वस्त्र पहनें।घर के मंदिर या पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें। यह भी माना जाता है कि घर के दरवाजे पर हल्दी या लाल रंग से स्वस्तिक बनाने से शुभता बढ़ती है।दुर्गा प्रतिमा या तस्वीर के सामने दीपक जलाएं और धूप-अगरबत्ती लगाएं।सिंदूर, अक्षत (चावल), लाल पुष्प, नारियल, मिठाई और मौसमी फल रखें। देवी को लाल चुनरी अर्पित करना भी शुभ माना जाता है।दशहरा पर शस्त्र, औजार, किताबें और वाहन की पूजा करना परंपरा है। यह विजय और सफलता का प्रतीक माना जाता है।आरती और मंत्रोच्चारण- दुर्गा चालीसा, रामरक्षा स्तोत्र या दुर्गा मंत्र का पाठ करें। अंत में आरती करें और परिवार के सभी सदस्य आरती में शामिल हों।रावण दहन- शाम को रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण की पुतलियों का दहन करना अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है।महत्व- दशहरा को “विजयादशमी” कहा जाता है। ‘विजय’ यानी जीत और ‘दशमी’ यानी दसवां दिन। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि चाहे बुराई कितनी भी बड़ी क्यों न हो, अंततः अच्छाई की ही जीत होती है। इस दिन को लेकर कई मान्यताएं हैं। कई लोग इस दिन शमी वृक्ष की पूजा करते हैं और उसके पत्तों को “सोना” मानकर एक-दूसरे को भेंट करते हैं। व्यवसायी वर्ग इस दिन अपने पुराने खातों को बंद कर नए खातों की शुरुआत करते हैं। विद्यार्थी अपनी किताबों और पेन की पूजा करते हैं, ताकि ज्ञान और सफलता बनी रहे। दक्षिण भारत में इसे “आयुध पूजा” कहा जाता है।उपायनए कार्य का आरंभ: विजय मुहूर्त में नया व्यवसाय, नौकरी या निवेश शुरू करने से सफलता मिलती है।दान-पुण्य: जरूरतमंदों को अन्न, कपड़े, मिठाई या धन दान करने से पुण्य मिलता है।मां दुर्गा की आराधना: इस दिन मां दुर्गा को लाल पुष्प अर्पित करना और दुर्गा मंत्र का जाप करना शुभ माना जाता है।शमी पत्तों का आदान-प्रदान: रिश्तों में मजबूती के लिए लोग शमी पत्तों को “सोना” मानकर आदान-प्रदान करते हैं।रावण दहन की परंपरारावण दहन केवल एक उत्सव नहीं है, बल्कि यह प्रतीक है अहंकार, लोभ और अन्य बुराइयों को जलाने का। बड़े-बड़े मैदानों में पुतले बनाए जाते हैं, जहां हजारों लोग इकट्ठा होकर आतिशबाजी के बीच रावण दहन देखते हैं। यह दृश्य बच्चों और बड़ों, दोनों के लिए आकर्षण का केंद्र होता है।

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