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अब तक आपने अदरक या फिर दूसरी तरह की चाय का सेवन किया होगा, लेकिन आज हम आपको लहसुन की चाय के अद्भुत फायदों के बारे में बता रहे हैं। लहसुन की चाय के बारे में सुनकर आपको भले ही अजीब सा लगे, लेकिन यह सच है कि यह चाय काफी फायदेमंद है। दरअसल, लहसुन में जीवाणुरोधी और एंटीवायरल गुण होते हैं। यह चाय एक शक्तिशाली एंटीबायोटिक ड्रिंक है, जो शरीर के इम्यून सिस्टम में सुधार करता है। इस चाय को औषधीय काढ़ा भी कहा जा सकता है।
लहसुन की चाय के फायदेलहसुन की चाय डायबिटीज मरीजों के लिए बेहद फायदेमंद होती है। इससे शरीर में ब्लड शुगर लेवल कम होता है। साथ ही मेटाबॉलिज्म की स्थिति में मदद करती है।वजन घटाएलहसुन की चाय से आप अपना वजन कम कर सकते हैं। ये चाय आपके शरीर के ज्यादातर हिस्सों में वसा को घोलने का काम करती है। इसमें चयापचय बढ़ाने वाले गुण पाए जाते हैं, जो वजन घटाने का काम करते हैं।दिल की सेहत सुधारेलहसुन की चाय दिल की सेहत में भी सुधार कर सकती है। इसका सेवन करने से रक्त परिसंचरण में सुधार होता है, ये खराब कोलेस्ट्रॉल के स्तर को भी कम करती है। जिससे दिल के रोगों से बचा जा सकता है।श्वसन संबंधी बीमारियों में लाभप्रदलहसुन की चाय श्वसन संबंधी बीमारियों से बचा सकती है। इसका सेवन सर्दियों में बुखार खांसी को ठीक करने के लिए भी कर सकते हैं।सूजन कम करेलहसुन की चाय शरीर के विभिन्न अंगों में होने वाली सूजन भी कम करने का काम करती है।कैसे बनाएं लहसुन की चायअब हम आपको लहसुन की चाय बनाने का तरीका बता रहे हैं। एक बर्तन में एक कप पानी उबालें.।थोड़ी देर बाद लहसुन को कूटकर डाल दें। इसके साथ ही एक चम्मच काली मिर्च डाल दें और फिर पांच मिनट तक चाय को उबलने दें.। पांच मिनट बाद गैस बंद कर दें और चाय को किसी बर्तन में छान लें। इसे गर्मागर्म सेवन करें। आप चाहें तो लहसुन की चाय में थोड़ा अदरक और दालचीनी भी मिला सकते हैं। जिससे कि स्वास्थ्य लाभ में सुधार हो सके और चाय स्वाद भी बढ़ सके। - यष्टिमधु या मुलहठी (लैटिन में Glycyrrhiza glabra) एक प्रसिद्ध और सर्व-सुलभ जड़ी है। स्वाद में मीठी होने के कारण इसे यष्टिमधु कहा जाता है । हिंदी में इसे - मुलहठी , संस्कृत में यष्टीमधु, बंगाली में यष्टिमधु, गुजराती में जेठोमधु, अंग्रेजी में लाहकोरिस रुट, पंजाबी में मुलहठी, अरबी में असलुस्सूस, तेलगु में यष्टिमधुकम, मराठी में जेष्टिमध, फारसी में बिखेमहक।मुलहठी खांसी, जुकाम, उल्टी व पित्त को बंद करती हैं। मुलहठी की अम्लता (लवण) में कभी व क्षतिग्रस्त व्रणों(जख्मों) में सुधार लाता हैं। अम्लोत्तेजक पदार्थ को खाने पर होने वाली पेट की जलन, और दर्द को ठीक करता हैं। पेप्टिक अल्सर तथा इससे होने वाली खून की उल्टी में मुलहठी अच्छा प्रभाव छोड़ती हैं। मुलहठी का कड़वी औषधियों का स्वाद बदलने के लिये काम में लिया जाता हैं। मुलहठी अंखों के लाभदायक, वीर्यवर्धक, बालों, आवाज सुरीला बनाने वाली, सूजन में लाभकारी हैं। मुलहठी विष, खून की बीमारियों, प्यास और क्षय (टी.बी.) को समाप्त करती हैं।सामान्यतया मुलहठी ऊंचाई वाले स्थानों पर ही होती है । भारत में जम्मू-कश्मीर, देहरादून, सहारनपुर तक इसे लगाने में सफलता मिली है । वैसे बाजार में अरब, तुर्किस्तान, अफगानिस्तान से आई मुलहठी ही सामान्यतया पाई जाती है । पर ऊंचे स्थानों पर इसकी सफलता ने वनस्पति विज्ञानियों का ध्यान इसे हिमालय की तराई वाले खुश्क स्थानों पर पैदा करने की ओर आकर्षित किया है । बोटानिकल सर्वे ऑफ इण्डिया इस दिशा में मसूरी, देहरादून फ्लोरा में इसे खोजने और उत्पन्न करने की ओर गतिशील है । इसी कारण अब यह विदेशी औषधि नहीं रही ।मुलहठी में मिलावट बहुत पाई जाती है । मुख्य मिलावट वेल्थ ऑफ इण्डिया के वैज्ञानिकों के अनुसार मचूरियन मुलहठी की होती है। एक अन्य जड़ जो काफी मात्रा में इस सूखी औषधि के साथ मिलाई जाती है, व्यापारियों की भाषा में एवस प्रिकेटोरियम (रत्ती, घुमची या गुंजा के मूल व पत्र) कहलाती है ।असली मुलहठी अन्दर से पीली, रेशेदार और हल्की गंध वाली होती है । ताजा मुलहठी में 50 प्रतिशत जल होता है जो सुखाने पर मात्र दस प्रतिशत रह जाता है । इसका प्रधान घटक जिसके कारण यह मीठे स्वाद की होती है, ग्लिसराइजिन होता है जो ग्लिसराइजिक एसिड के रूप में विद्यमान होता है । यह साधारण शक्कर से भी 50 गुना अधिक मीठा होता है । यह संघटक पौधे के उन भागों में नहीं होता जो जमीन के ऊपर होते हैं । विभिन्न प्रजातियों में 2 से 14 प्रतिशत तक की मात्रा इसकी होती है । ग्लिसराइजिन के अतिरिक्त इसमें आएसो लिक्विरिटन (एक प्रकार का ग्लाइकोसाइड स्टेराइड इस्ट्रोजन) (गर्भाशयोत्तेजक हारमोन), ग्लूकोज (लगभग 3.5 प्रतिशत), सुक्रोज (लगभग 3 से 7 प्रतिशत), रेसिन (2 से 4 प्रतिशत), स्टार्च (लगभग 40 प्रतिशत), उडऩशील तेल (0.03 से 0.35 प्रतिशत) आदि रसायन घटक भी होते हैं ।मुलहठी का पीला रंग ग्लाइकोसाइड-आइसोलिक्विरिटन के कारण है । यह 2.2 प्रतिशत की मात्रा में होता है एवं मुख में विद्यमान लार ग्रंथियों को उत्तेजित कर भोज्य पदार्थों के पाचन में सहायक सिद्ध होता है। मुलहठी का उत्पत्ति स्थान अफगान प्रदेश होने के कारण सामान्यतया वहीं की भाषा में इसे रब्बुस्सू नाम से पुकारते हैं ।---
- कभी कभी हम कुछ न कुछ ऐसा खा लेते हैं जिससे हमारा पेट खराब हो जाता है। वहीं, कभी-कभी कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिन्हें खाने के बाद हमें एहसास होता है कि ये चीजें सेहत के साथ स्किन के लिए भी ठीक नहीं है। खासतौर पर किसी फेस्टिवल या पार्टी में हम कुछ ज्यादा खा लेते हैं ऐसे में बॉडी डिटॉक्स करके हम काफी हद तक समस्याओं से छुटकारा पा सकते हैं। जानिए डिटॉक्सीफिकेशन के कुछ नेचुरल तरीके-डिटॉक्सिफिकेशन क्या है और क्यों है जरूरीगंदगी सिर्फ हमारे आसपास ही मौजूद नहीं होती है, बल्कि यह हमारे शरीर में भी होती है। इसके कारण ही कई प्रकार की बीमारियां जैसे- तनाव, अनिद्रा, कोल्ड एंड फ्लू, अपच, वजन बढऩा आदि होने लगती हैं। समय रहते इनका उपचार न किया जाए, तो ये सामान्य बीमारियां गंभीर रूप ले सकती हैं। इसलिए इन सामान्य लक्षणों को जानकर इनका उपचार करना जरूरी है। शरीर को विषैले पदार्थों से मुक्त करवाना, पोषण देना और आराम पहुंचाना डिटॉक्सिफिकेशन कहलाता है।डिटॉक्सिफिकेशन के दौरान शरीर से विषैले पदार्थ निकल जाते हैं और शरीर को पोषक तत्व मिलते हैं, जिससे किडनी, त्वचा, फेंफड़े, आंत आदि स्वस्थ रहते हैं। शरीर को डिटॉक्स करने के लिए आपको कुछ खाद्य और पेय पदार्थों का सेवन करना बहुत जरूरी होता है। डिटॉक्स, शरीर और दिमाग को स्वस्थ और तरोताजा रखने की प्रक्रिया है। इससे मानसिक तनाव और दूसरे विकार दूर भागते हैं और नई ऊर्जा का संचार होता है। इन कारणों से सप्ताह में एक बार जरूर बॉडी को डिटॉक्स करना चाहिए।नींद पूरी करें7 से 8 घंटे की नींद आपकी सेहत के लिए बेहद जरुरी है। दिवाली के दौरान हम सो नहीं पाते, ऐसे में सेहत पर इसका असर पड़ता है। नींद बॉडी डिटॉक्सीफिकेशन के लिए बेहद जरुरी है।वर्कआउट करेंएक्सरसाइज का मतलब जिम जाना और भारी वजन उठाना या कार्डियो करना नहीं है। आप स्पीड वाकिंग, साइकिल चलाने या घर पर दस मिनट की बॉडीवेट एक्सरसाइज की तरह कुछ हल्के-फुल्के वर्कआउड कर सकते हैं।फल खाएंविटामिन और मिनरल जहां कोशिकाओं के निर्माण के लिए बहुत जरुरी है। साथ ही फलों में मौजूद एंटीऑक्सिडेंट कोशिकाओं को मुक्त कणों से होने वाले नुकसान से बचाते हैं, इसलिए मिठाईयों के बाद जमकर फल खाने चाहिए।भरपूर मात्रा में पानी पिएंपानी आपके शरीर से सभी अतिरिक्त फैट और शुगर को बाहर निकालने में मदद करता है और आपके पेट पर्याप्त रूप से साफ करता है। आपको दिन भर में 2 लीटर पानी पीना चाहिए।हरी सब्जियां खाएंहरी सब्जियां शरीर के लिए बहुत जरुरी है। आप हरी सब्जियों को पकाने की बजाय उबालकर खा सकते हैं, इससे शुगर और फैट कम हो जाएगा।
- बचपन में इमली के बीजों से पचीसा सबने खेला होगा। यहीं नहीं घी में भूनकर और इसमें नमक डालकर सुपारी की तरह इसके मजे भी लिए होंगे। अब घरों में बिना बीज की इमली आ रही है, तो इसके बीजों का यह उपयोग खत्म सा हो गया है। दरअसल इमली ही नहीं बल्कि इसके बीज भी हैं शरीर के लिए फायदेमंद हैं। आइये आज हम जानें इमली के बीजों के फायदे....इमली का बीज दिखने में बहुत छोटा होता है, लेकिन सेहत को उतने ही बड़े फायदे देता है। इमली के बीज से आयुर्वेदिक दवा बनाई जाती है। इमली में मैग्नीशियम, सोडियम, जिंक, कॉपर, पोटेशियम, मैंगनीज, आयरन, कैल्शियम जैसे पोषक तत्व होते हैं। जो सेहत के लिए बहुत फायदेमंद हैं।इमली के बीज के फायदे1.पुरुषों को होने वाली परेशानियों का है रामबाण इलाजइमली का बीज पुरुषों को होने वाली परेशानी शीघ्रपतन में सहायक है। इमली यौन दुर्बलताओं को दूर करने में बहुत मददगार है। इस समस्या को दूर करने के लिए इमली के बीजों का चूर्ण बनाया जा सकता है। इसके लिए 250 ग्राम इमली के बीजों को पानी में चार दिन के लिए भिगोना है। चार दिन बाद इमली के छिलके उतार दें फिर छाया में सुखाएं, जब यह बीज सूख जाएं तब जितनी मात्रा में इमली के बीज लिए हैं उतनी मात्रा में ही मिश्री मिलाएं फिर इमली और मिश्री पीस लें। इसके बाद इस मिश्रण में गाय का घी मिला लें। इस चूर्ण की चौथाई चम्मच सुबह-शाम दो बार दूध के साथ खाएं। लगभग डेढ़ महीने इसका सेवन करें।2. दांतों की सफेदी के लिएइमली के बीजों को भूनकर उनका छिलका उतार लें और बीजों को पीस लें। इसका पाउडर बनाकर एक कंटेनर में बंद कर लें। पाउडर को रोज सुबह-शाम दांतों पर रगड़ें, ऐसा करने से पीले दांत सफेद हो जाएंगे। जो लोग तंबाकू का सेवन करते हैं और दांत पीले पड़ जाते हैं, उन लोगों को भी इस पाउडर का इस्तेमाल करना चाहिए, उनके दांत साफ हो जाएंगे।3. भोजन में प्रोटीन की गुणवत्ता को बेहतर करनाकई जगहों पर इमली के बीज को आटे में मिलाकर इस्तेमाल किया जाता है। यह बीज आटे में मिलकर प्रोटीन की गुणवत्ता को बेहतर करते हैं। दूसरा इमली के बीजों में कैल्शियम ज्यादा होता है जो हड्डियों के लिए मददगार है।4. बीज की चटनीइमली के बीज का स्वाद कसैला होता है। इसलिए इसके बीज को तवे पर भूनकर, स्वाद अनुसार नमक, मिर्च मिला लें और आपकी चटनी तैयार हो गई। कई दुकानों में अब ये चटनी बिकने लगी है।5. जैली, जैम बनाने मेंइमली के बीजों का प्रयोग जैली, जैम बनाने में भी किया जाता है।6. डायबीटिज के मरीजों के लिए गुणकारीइमली के बीज में एंटीडायबेटोजेनिक गुण होते हैं जो खून में मौजूद शुगर के स्तर को कम करते हैं। डायबिटीज की समस्या तब होती है जब खून में शुगर की मात्रा बढ़ जाती है। इमली के बीज उस मात्रा को कम करते हैं। इसमें भी इमली के बीज का पाउडर बनाकर दिन में दो बार पानी के साथ खाएं। लगभग तीन महीने तक खाएं।7. इम्यूनिटी बढ़ाने में सहायकइमली के बीज में पॉलीसैकराइड व जायलोग्लूकन घटक होते हैं। ये गुण शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं। इमली में बहुत अधिक मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जो शरीर में होने वाली टूट-फूट को भी ठीक करते हैं।8. गठिया में सहायकइमली के बीज में एंटी-अर्थराइटिस और एंटीइन्फ्लेमेटर गुण पाए जाते हैं जो गठिया के दर्द और सूजन को कम करने में मदद करते हैं। डॉक्टर के मुताबिक बीज का पाउडर सुबह-शाम एक चम्मच खाएं।9. बालों को मजबूत बनाए इमलीबालों को मजबूत करने और झडऩे से रोकने के लिए इमली का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके लिए आपको इमली को दस मिनट के लिए पानी में भिगोना होगा फिर इस इमली के पानी से सिर की मसाज करें। अब गर्म पानी में तौलिया भिगोकर उसका पानी निचोड़कर इस तौलिए को सिर पर आधे घंटे के लिए लपेट लें। इससे सिर को गर्माहट मिलती रहेगी। आधे घंटे के बाद शैंपू से बालों को धो लें। यह काम आपको हफ्ते में दो बार करना है। ऐसा करने से बाल मजबूत होंगे और झडेंगे नहीं।10. बवासीर के रोगियों के लिएइमली बवासीर के मरीजों के लिए बहुत मददगार है। इसके लिए आपको एक से डेढ़ चम्मच इमली के फूल का रस, एक गिलास दही, एक चम्मच अदरक, एक चम्मच धनिया पाउडर और एक चम्मच अनार को अच्छे से मिला लें। इसे मिलाने के बाद एक काढ़ा बन जाएगा। इस काढ़े का सेवन रोजाना दोपहर के खाने के बाद करें।
- डिल यानि सोआ के बीज, बीजों का तेल, पत्ते और जड़ों का इस्तेमाल सदियों से औषधी के रूप में होता आ रहा है। धनिये की पत्तों की तरह दिखने वाले देसी सुपरफूड सोआ के पत्ते डायबिटीज और गठिया मरीजों के लिए तो यह किसी वरदान से कम नहीं है। आज हम इसके फायदों के बारे में जानते हैं....सोआ के पत्तों के जबरदस्त फायदे-इंसुलिन रहेगा कंट्रोलडायबिटीज कंट्रोल करने के लिए कई प्राकृतिक तरीके हैं , लेकिन सोआ के पत्ते किफायती के साथ काफी फायदेमंद इलाज है। इससे ना सिर्फ शरीर में इंसुलिन का स्तर समान्य रहता है बल्कि यह ब्लड शुगर लेवल को भी काबू रखता है।कैंसर-रोधी गुणों से भरपूरइसमें मौजूद एंटी-कैंसर, एंटी-बैक्टीरियल गुण शरीर में कैंसर सेल्स कोशिकाओं को बढऩे नहीं देते। इससे आप कई तरह के कैंसर से बचे रहते हैं।शरीर को करेगा डिटॉक्सइसमें मौजूद एंटी-ऑक्सीडेंट गुण होते हैं, जो शरीर से विषैले टॉक्सिन्स और फ्री रैडिकल्स को निकालने में मदद करते हैं। इससे दिल के रोगों का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है।पाचन क्रिया को रखे दुरुस्तनियमित इसकी पत्तियों का सेवन करने से पाचन तंत्र भी सही तरीके से काम करता है। इससे आप कब्ज, एसिडिटी, दस्त से बचे रहते हैं।गठिया दर्द का अचूक इलाजइसके पत्तों का पेस्ट, अलसी और अरंडी के बीज मिलाकर 1 गिलास दूध के साथ लें। इससे गठिया, आर्थराइटिस, जोड़ों में दर्द और सूजन से छुटकारा मिलेगा।गर्भवती महिलाओं के लिएगर्भवती और स्तनपान करवाने वाली औरतों के लिए इसका इसका सेवन फायदेमंद होता है। यह दूध की मात्रा बढ़ाने के साथ ओव्यूलेशन को रोकने में भी मददगार है।उच्च रक्तचाप को करे कमडिल और मेथी के बीजों को बराबर मात्रा में पीसकर रख लें। रोजाना दिन में 2 बार 1 गिलास पानी के साथ इसके 2 चम्मच लें। इससे हाई ब्लड प्रेशर भी कंट्रोल होगा और हड्डियों व मांसपेशियों में भी मजबूती आएगी।सोआ के नुकसानजहां हर चीज के कुछ फायदे होते हैं वहीं उसके कुछ नुकसान भी होते हैं। उसी तरह सोआ के पत्तों का अधिक मात्रा में सेवन शरीर में पित्त की समस्या बढ़ा सकता है क्योंकि इसकी तासीर गर्म होती है। इससे सीने व शरीर में जलन, गैस्ट्राइटिस की समस्या हो सकती है। इसलिए जब भी इसका सेवन करें, चिकित्सक की सलाह अवश्य ले लें।स्वाद में थोड़े तीखे व कड़वे होने के कारण हरी सब्जियों के साथ इसका सेवन ज्यादा सही रहता है।1. सोआ के पत्तों का इस्तेमाल आप करी या सब्जी बनाने के लिए कर सकते हैं। राई, जीरा, प्याज, लहसुन-अदरक, हरी मिर्च के साथ इसका तड़का लगाएं।2. सोआ के पत्तों को धोकर इसका जूस बना लें। इसमें नींबू का रस और एक चुटकी काला नमक मिलाकर सुबह-शाम पीएं।3. इसकी पत्तियों को आटे के साथ गूंदकर परांठा बनाकर खाएं।4. इसके अलावा आप सोआ के पत्तों को सूप, अचार, सलाद के रूप में अपनी डाइट का हिस्सा बना सकते हैं।
- महिलाओं को बढ़ती उम्र के साथ उन्हें तरह-तरह की समस्याएं होने लगती हैं। 35 की उम्र के बाद जोड़ों का दर्द, कमर दर्द होना बहुत सामान्य बात है लेकिन समस्या की बात यह है कि शरीर में हो रही इन समस्याओं को महिलाएं नजरअंदाज करती जाती हैं जो कि आगे चलकर किसी बड़ी बीमारी का रूप ले लेती हैं लेकिन यदि आप चाहती हैं कि 35 के बाद भी आप एकदम फीट रहें तो बहुत जरूरी है कि आप अपनी जीवनशैली में योग को शामिल कर लें। अगली स्लाइड्स से जानिए किन आसनों को करने से महिलाएं बढ़ती उम्र के साथ भी रहती हैं एकदम स्वस्थ।अर्ध हलासनपीठ के बल सीधे लेट जाएं। दोनों हाथ छाती की बगल में हथेली के बल जमीन पर रखें। अब पैरों को आपस में मिलाकर धीरे-धीरे ऊपर उठाएं। इन्हें 90 डिग्री के कोण पर रखें। कोशिश करें कि पैर ना मुड़ें। सांस सामान्य रूप से लें। कुछ देर इसी स्थिति में रूकें और फिर धीरे-धीरे पैर जमीन पर लाएं। यह क्रिया 3 से 4 बाद दोहराएं।लाभ-इससे पैर में सूजन और झनझनाहट कम होती है7कमर की अतिरिक्त चर्बी को कम करता है तथा वजऩ घटाने में सहायक है।यह रक्तसंचार बढ़ाता है, साथ ही भूख बढ़ाने में भी सहायक है।धनुरासनपेट के बल लेट जाएं। अपने दोनों पैरों को मोड़कर ऊपर की ओर लाएं। अब दोनों हाथों से पैरों के पंजों को पकड़ें। फिर सांस लेते हुए पैरों को ऊपर की ओर खींचें। कुछ देर इसी अवस्था में रहने के बाद वापस सामान्य अवस्था में आ जाएं।लाभ-मेरूदंड को लचीला एवं स्वस्थ बनाता है। सर्वाइकल, स्पोंडोलाइटिस, कमर दर्द एवं उदर रोगों में लाभदायक आसन है।सूर्यकेंद्र (नाभि) के खिसकने से बचाता है।मासिक धर्म सम्बंधी विकृतियों में लाभदायक है।पश्चिमोत्तानासनरीढ़ को सीधा कर बैठ जाएं। अपने दोनों हाथों को सामने की ओर ले आएं। अब धीरे-धीरे आगे की ओर झुकते हुए अपने पैरों के पंजों को छूने की कोशिश करें। जितना मुड़ सकें उतनी ही कोशिश करें, जबरदस्ती आगे न झुकें।लाभ-लिवर, गुर्दे, अंडाशय और गर्भाशय की कार्यक्षमता में सुधार लाता है।मस्तिष्क को शांत रखता है और तनाव को से राहत दिलाता है।रजोनिवृत्ति और मासिक धर्म की असुविधा से बचाता है।
- बढ़ती उम्र के साथ सफेद बाल होना एक आम बात है लेकिन अगर आपके बाल 25 की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते ही सफेद होने लगे हैं, तो चिंता करना लाजिमी है। बाल सफेद होने के कई कारण हो सकते हैं। आमतौर पर पोषण की कमी और आनुवंशिक कारणों के चलते भी कई बार ऐसा होता है। लेकिन तंबाकू का अत्यधिक सेवन, धूम्रपान और भावनात्मक तनाव भी इसका कारण हो सकता है। सफेद बालों की समस्या से निजात पाने के कुछ घरेलू उपाय भी है, जिन्हें आप अपना सकते हैं।आंवलायह बालों का प्राकृतिक काला रंग बनाए रखने में मदद करता है।तरीका: आंवले को मसल कर उसकी गुठली निकाल दें। अब इसका पेस्ट बनाएं और सिर पर लगा लें। इसके बाद इससे बालों की जड़ों पर मालिश करें।नारियल तेल और नीबू रसयह सिर की त्वचा का रक्त संचार बढ़ाता है। इस तेल में बायोटीन, नमी और दूसरे तत्व होते हैं, जो बालों को सफेद होने से रोकते हैं और उन्हें मुलायम बनाते हैं।तरीका : इसमें दो भाग नारियल का तेल और एक भाग नीबू का रस मिलाएं। इस मिश्रण से सिर और बालों की मालिश करें।करी पत्तायह बालों की जड़ों की मजबूती बढ़ाता है और बालों को जरूरी पोषक तत्व देता है।तरीका : करी पत्ते को नारियल के तेल में डाल कर चटखने तक गर्म करें। इसके बाद इसे छान लें और इससे बालों की मालिश करें। करीब 30-45 मिनट बाद सिर धो लें। यह प्रक्रिया हफ्ते में दो बार अपनाएं।चाय या कॉफीये बालों का प्राकृतिक रंग बनाए रखने में मदद करते हैं।तरीका : पानी में चाय की पत्ती या कॉफी पाउडर डाल कर उसे 10 मिनट तक उबालें। बालों का रंग काला बनाए रखने के लिए चाय की पत्ती का प्रयोग कर लें और भूरा बनाए रखने के लिए कॉफी पाउडर का प्रयोग करें।काला तिलयह भी सफेद बालों को काला बनाने में काफी मददगार है।तरीका : हर रोज खाली पेट कच्चे तिल के बीजों को पानी के साथ खाना फायदेमंद होगा।प्याज का पेस्टइससे बालों को पोषण मिलता है।तरीका : बालों पर प्याज का पेस्ट लगा लें। इसे एक घंटे बाद धो डालें। ऐसा करने से भी सफेद बाल काले हो जाएंगे।मेहंदी और तेजपत्ताये दोनों ही वनस्पतियां बालों के रंग को गहरा करती हैं।तरीका : आधा कप सूखी मेहंदी और तेजपत्ते में दो कप पानी मिला कर उबालें। इस मिश्रण को कुछ देर तक रखा रहने दें। अब इसे छान लें और बालों को शैंपू से धोने के बाद उन पर इसे अच्छी तरह लगा दें। 15-20 मिनट के बाद दोबारा बाल धो लें। हर हफ्ते ऐसा करें।चौलाईयह भी बालों का काला रंग वापस लाने में मदद करती है और साथ ही बालों के विकास में भी मदद करती है।तरीका : चौलाई की पत्तियों को पीस लें और इसका पेस्ट अपने सिर पर लगा लें।
- स्वास्थ्य के लिए मेथी बहुत ही फायदेमंद है। मेथी का साग सभी को बहुत ही पसंद होता है। यह सेहत के लिए उतना ही फायदेमंद है। इसके साथ ही मेथी के दाने भी स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद है। मेथी का दाना रूखे और बेजान बालों की समस्या को दूर करने में काफी फायदेमंद है। आइए जानते हैं मेथी हेयर मास्क के फायदे और इस्तेमाल करने का तरीका-बालों को करे मजबूतमेथी के दाने से बाल अंदर से मजबूत होते हैं। मेथी के दाने में विटामिन सी, प्रोटीन, विटामिन सी, आयरन, पोटैशियम और लेसीथिन होता है। ये सभी तत्व बालों को अंदर से मजबूती प्रदान करते हैं। बालों की चमक बनाए रखने में मेथी के दाने काफी फायदेमंद हो सकते हैं। बालों को मजबूत करने के लिए मेथी के दानों को रातभर पानी में छोड़ दें। सुबह इस पानी और दानों का सेवन करने से बालों की मजबूती बढ़ेगी। साथ ही बालों की चमक भी बढ़ेगी। इसके अलावा इसे य हेयर मास्क के रूप में भी लगा सकते हैं।कैसे तैयार करें हेयर मास्कमेथी हेयर मास्क बनाने के लिए सबसे पहले 5 चम्मच मेथी दानों को रातभर पानी में भिगोकर छोड़ दें। इसके बाद सुबह इस दानों को दही के साथ अच्छे से पीस लें। अब इस तैयार पेस्ट को अपने बालों में लगाएं। करीब 40 मिनट बाद अपने बालों को धो लें। सप्ताह में 2 बार इस पैक को लगाने से हेयर फॉलिंग की परेशानी दूर हो जाएगी।झड़ते बालों की परेशानी होगी दूरअगर आपके बाल काफी ज्यादा झड़ रहे हैं, तो मेथी हेयर मास्क आपके लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकते हैं। झड़ते बालों की परेशानी को दूर करने के लिए मेथी के दानों को रातभर पानी में भिगो कर छोड़ दें। अब सुबह इन दानों को अच्छे से पीस लें। इस पेस्ट में 1 चम्मच ऑलिव ऑयल मिस्क करें। अगर आपके पास ऑलिव ऑयल नहीं है, तो नारियल तेल भी इस पेस्ट में मिक्स कर सकते हैं। अब इस पेस्ट को अपने बालों में लगाएं और करीब 30 मिनट के लिए छोड़ दें। पेस्ट सूखने के बाद बाल को शैंपू से धो लें। सप्ताह में 2 बार इस पेस्ट को अपने बालों में जरूर लगाएं। इससे गंजेपन की परेशानी दूर हो सकती है।बालों को करे मुलायमसर्दियों में बाल काफी उलझने लगते हैं। अपने फ्रिजी बालों की समस्या से राहत पाने के लिए आप मेथी के दानों का इस्तेमाल कर सकते हैं। बेजान और उलझे बालों के लिए मेथी पा पेस्ट काफी फायदेमंद साबित हो सकता है। बालों को सॉफ्ट बनाए रखने के लिए मेथी के दानों को पीस कर इसका पेस्ट तैयार कर लें। अब इस पेस्ट में अंडे का पीला हिस्सा मिलाएं। करीब 30 मिनट तक इस पेस्ट को अपने बालों में लगाएं। सप्ताह में दो बार इस पेस्ट को बालों में लगाने से बालों से संंबंधित सारी समस्याएं दूर होंगी।
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इलेक्ट्रॉनिक गैजेट खासकर मोबाइल, लैपटॉप के ज्यादा इस्तेमाल से चेहरे पर ऑयल जमा होने लगता है जिससे पिम्पल की समस्याएं भी होने लगती है। ऐसे में बहुत जरूरी है कि इस परेशानी को शुरुआत में ही रोका जाए। हम आपको ऐसे तीन टोनर बना रहे हैं, जिसका इस्तेमाल करके न सिर्फ आपके तैलीय त्वचा से छुटकारा पा सकते हैं बल्कि इससे आपकी स्किन प्रॉब्लम्स भी दूर हो जाएंगी।
टोनर क्या होता हैटोनर का इस्तेमाल त्वचा को साफ करने और बड़े त्वचा छिद्रों को सिकोडऩे के लिए किया जाता है। टोनर के इस्तेमाल से पोर्स को इसलिए छोटा किया जाता है, क्योंकि इनके बड़े होने पर चेहरा खुरदरा और दागदार नजर आता है। इसलिए, टोनर चेहरे को सुदंर और स्वच्छ बनाने में कारगर माना जाता है।एलोवेरा जेल टोनरएलोवेरा जेल टोनर बनाने के लिए आप पीने वाले पानी में एक चम्मच एलोवेरा जेल डाल लें। आपकी त्वचा अगर बहुत सेंसटिव है, तो आप टी ट्री ऑयल की 4-5 बूंदें भी डालें। इसे 10-15 दिन प्रिजर्व रखने के लिए आप इसमें आधा चम्मच एप्पल साइडर विनेगर (सेब का सिरका) डालें। इससे दिन में कम से कम तीन बार चेहरे पर स्प्रे या कॉटन से लगाएं।गुलाब जल टोनरजिन्हें एलोवेरा जेल सूट नहीं करता उनके लिए गुलाब जल बेस्ट ऑप्शन है। गुलाब जल में आधा चम्मच ग्लिसरीन डाल लें। इसे भी 10-15 दिन प्रिजर्व रखने के लिए आप इसमें आधा चम्मच एप्पल साइडर विनेगर (सेब का सिरका) डालें। इससे दिन में कम से कम तीन बार चेहरे पर स्प्रे या कॉटन से लगाएं।नीम टोनरइसके लिए नीम की पत्तियों को पानी में उबाल लें। उस पानी को स्प्रे बॉटल में भर लें। आपको इसे प्रिजर्व रखने के लिए सिर्फ आधा चम्मच एप्पल साइडर विनेगर ही डालना है। यह एक्ने को हटाने के लिए सबसे बेस्ट नेचुरल टोनर है। - नई दिल्ली। देशभर में अलग-अलग चाय के फ्लेवर के लोग दीवाने हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं खाने-पीने की बाकी चीजों की ही तरह चाय पीने के भी कुछ खास नियम होते हैं। अगर आप भी चाय पीना पसंद करते हैं तो चाय का शौक रखने से पहले जान लें ये जरूरी नियम वरना हो सकते हैं कई गंभीर रोगों के शिकार।खाली पेट न पिएं चाय-कभी भी खाली पेट चाय पीने की गलती न करें। ऐसा करने से आप गंभीर रोगों की चपेट में आ सकते हैं। ऐसा करने से व्यक्ति को गैस और एसिडिटी की शिकायत हो सकती है।चाय से पहले पिएं गुनगुना पानी-खाली पेट चाय पीने से आंतों को नुकसान होता है। चाय पीने से पहले कुछ हल्का खाकर एक ग्लास गुनगुना पानी जरूर पी लें। ऐसा करने से व्यक्ति को गैस की शिकायत नहीं होती।खाने के तुरंत बाद न पिएं चाय-अक्सर लोगों को खाना खाने के तुरंत बाद चाय पीने की आदत होती है। ऐसा करने से आपका शरीर खाने में मौजूद पोषक तत्वों को ठीक से अवशोषित नहीं कर पाता है और शरीर को कई तरह के रोग घेरने लगते हैं। ध्यान रखें हमेशा भोजन और चाय के बीच में 1 घंटे का अंतर जरूर रखें।सोते समय न करें चाय का सेवन-रात को सोने से पहले जो लोग चाय पीते हैं, उन्हें नींद न आने की समस्या हो सकती है। ऐसा इसलिए चाय में मौजूद कैफीन नींद विरोधक होता है।दिन में दो कप चाय पीना ही फायदेमंद-पूरे दिन में दो कप चाय का सेवन सेहत को नुकसान नहीं पहुंचाता है। लेकिन इससे ज्यादा चाय का सेवन करने पर व्यक्ति की भूख मर जाती है और उसे नींद न आने की भी समस्या परेशान करने लगती है।
- आपने कई लोगों को देखा होगा कि उन्हें सौंफ चबाने की आदत होती है। सौंफ को नेचुरल माउथ फ्रेशनर ही नहीं माना जाता बल्कि आयुर्वेद के अनुसार इसके कई फायदे हैं। यह शरीर का वजन कम करने में भी मददगार साबित होता है। वहींं आंखों की समस्या है, तो सौंफ के साथ मिश्री लेने से फायदा मिलता है। सौंफ में विटामिन सी, पोटैशियम, मैंगनीज, लोहा, फोलेट और फाइबर शामिल है।सौंफ खाने के फायदे.- इसके जीवाणुरोधी और एंटी इंफ्लेमेटरी गुण पीड़ादायक मसूड़ों को शांत करने में सहायक होता है। इससे मुंह की बदबू दूर होती है।- सौंफ के बीज अपच, सूजन को कम करने और पाचन शक्ति को बढ़ाने में मदद करते हैं। इसके इस्तेमाल से पेट में दर्द और पेट के अंदर सूजन से राहत मिलती है।- इससे पेशाब की रुकावट भी दूर होती है इसलिए सौंफ की चाय पीने से पेशाब के रास्ते की समस्या दूर होती है। साथ ही आंखों की सूजन भी कम करता है।- यह भूख को कम करता है। सौंफ का ताजा बीज प्राकृतिक वसा नाशक के रूप में कार्य करता है। इसलिए इसके इस्तेमाल से वजन घटता है।- सर्दी-खांसी, फ्लू और साइनस से श्वसन तंत्र के संक्रमण से राहत दिलाने में भी यह मददगार साबित होता है।- यह पोटेशियम का अच्छा स्त्रोत है। यह बीपी को कम करता है। विटामिन सी एंटी ऑक्सीडेंट के रूप में काम करता है। यह ह्दय रोग से बचाता है।
- बावची का नाम शायद ही आपने सुना हो, यह एक आयुर्वेदिक औषधीय पौधा है। इस पौधे का इस्तेमाल आयुर्वेदिक और चीनी दवाईयों में किया जाता है। इसका इस्तेमाल मुख्य रूप से स्किन संबंधी समस्याओं के लिए किया जाता है। इसके अलावा इसमें कई औषधीय गुण हैं, जो कई रोगों का इलाज करने में सहायक होते हैं। इसे साधारण भाषा में बकुची भी कहा जाता है। बावची का इस्तेमाल सोसायसिस, ल्यूकोडर्मा , स्किन के चकते, स्किन पर होने वाले संक्रमण और एलर्जी इत्यादि को रोकने के लिए किया जाता है। इसके साथ ही बाबची चूर्ण का इस्तेमाल कफ और वात दोष को संतुलित करने के लिए किया जाता है।इसमें प्राकृतिक रूप से एंटी-माइक्रोबियल गुण होता है। इस पौधे की सबसे खास बात यह है कि इसके हर एक हिस्से का इस्तेमाल आप कर सकते हैं। अधिकतर बीमारियों को दूर करने के लिए इसके बीजों का इस्तेमाल किया जाता है। इसके बीज में कामोत्तेजक , एंटी-बैक्टीरियल, कसैले, साइटोटोक्सिक उत्तेजक और मूत्रवर्धक गुण पाए जाते हैं।बावची के फायदेबकुची के सेवन से कई बीमारियों से बचा जा सकता है। इसके बीजों से तैयार तेल का इस्तेमाल करने से पुरुषों की कई समस्याएं दूर होती है। इतना ही नहीं, बाबची शरीर को ताकत, शक्ति और जीवन शक्ति में सुधार करने में आपकी मदद कर सकता है। इसके सेवन से दिमाग काफी तेज होता है। साथ ही दिल की कार्यक्षमता और पाचन क्रिया में सुधार होता है। एनीमिया, नपुंसकता जैसी समस्याओं को दूर करने में बावची काफी फायदेमंद साबित हो सकता है।श्वसन रोगों में है फायदेमंदश्वसन तंत्र संबंधी परेशानियों को दूर करने में बावची काफी मददगार साबित हो सकता है। इसके इस्तेमाल से अस्थमा, सर्दी-जुकाम, नेफ्रैटिस, डिस्पेनिया, ब्रोंकाइटिस जैसी कई बीमारियों को दूर किया जा सकता है।कैंसर से बचाव करे बाकुचीबाकुची के बीजों में कैंसररोधी गुण पाए जाते हैं। इसमें सोरिलिफोलिनिन, बावाचिनिन और सोरेलन के गुण पाए जाते है। इसमें मौजूद गुण ओस्टियोसारकोमा और फेफड़ों के कैंसर की कोशिकाओं के विकास को रोकने में मददगार साबित होते हैं। इसके साथ ही इसके इस्तेमाल से फाइब्रोसारकोमा और पेट में पानी भरने की समस्या से बचाव कर सकते हैं।ब्लड को साफ करने में फायदेमंद है बावचीब्लड से विषाक्त पदार्थों को दूर करने में बावची काफी फायदेमंद होता है। इसमें प्राकृतिक रक्त शोधक गुण पाया जाता है, जो शरीर से अशुद्धियों को दूर करने में असरकारी होता है। इसके साथ ही इसके इस्तेमाल से इम्यूनिटी बूस्ट की जा सकती है। आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाहनुसार आप इसका सेवन कर सकते हैं।दांतों के लिए फायदेमंद है बावची चूर्णदांत खराब होने पर आप बावची का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके इस्तेमाल से दांतों से संबंधित परेशानी को दूर किया जा सकता है। इसके इस्तेमाल दांतों की सडऩ, पायरिया, दांत में दर्द जैसी परेशानियों को दूर किया जा सकता है। यह दांतों में होने वाले सडऩ को दूर करता है।बालों के लिए फायदेमंद है बावचीबालों की परेशानियों को दूर करने में बावची काफी अच्छा साबित हो सकता है। इसके इस्तेमाल से आपके बाल मजबूत होते हैं। साथ ही बालों में चमक आती है। बालों की मजबूती और चमक को बढ़ाने में आप बावची का इस्तेमाल कर सते हैं। यह एक बेहतरीन हेयक टॉनिक के रूप में आपके लिए बेहतर हो सकता है। इसके इस्तेमाल से झड़ते बाल, रूसी इत्यादि की परेशानियों को दूर किया जा सकता है। बालों के रंगों की गुणवत्ता सुधारने में यह आपके लिए फायदेमंद हो सकता है।
- भोजन और जल का बहुत ही घनिष्ठ संबंध है। आमतौर पर भोजन करते समय सभी लोग पानी पीते हैं। परन्तु भोजन करते समय व भोजन करने के आधे घंटे या 1 घंटे तक पानी न पीना ही लाभकारी होता है। भोजन के समय पानी न पीना पाचन क्रिया के लिए अच्छा होता है। भोजन के समय पानी न पीने से पानी की अनुपस्थिति में भोजन को पचाने वाला रस भोजन में मिलकर भोजन को जल्दी रस बनाने में "पाचनतंत्र" की मदद करता है। जब भोजन करने के आधे घंटे या 1 घंटे बाद पानी पीते हैं तो वह रस पानी में मिलकर शुद्ध होकर धमनी के द्वारा आसानी से शरीर के पूरे अंग तक पहुंच जाता है। परन्तु भोजन के समय पानी का सेवन न करना भोजन के प्रकार पर निर्भर करता है।यदि भोजन सादा हो तो भोजन के समय पानी न पीना लाभकारी होता है। लेकिन जब भोजन अधिक तीखा, मिर्च-मसालेदार, नमकीन, खट्टा हो तो पानी पीना आवश्यक है, क्योंकि ऐसे भोजन से शरीर में मौजूद नमी को बनाए रखने वाली ग्रंथि में उत्तेजना पैदा होती है और उसे शांत करने के लिए पानी की आवश्यकता होती है। ऐसे में भोजन करते समय यदि पानी न पिया जाए तो शरीर को हानि हो सकती है। ऐसे पदार्थों के सेवन से प्यास उत्पन्न होती है तथा भोजन की तेज गर्मी को शांत करने के लिए पानी की आवश्यकता होती है। इसके विपरीत यदि भोजन सात्विक (सादा) व प्राकृतिक हो और भोजन को अच्छी तरह से चबा-चबाकर खाते हैं तो भोजन के बीच पानी पीने की कोई आवश्यकता नहीं होती।भोजन करते समय पानी पीने के संबन्ध में प्राचीन आयुर्वेद के महर्षियों ने उपदेश देते हुए कहा है-" अत्यम्बुपानान्न विपच्यतेनं निरम्बुपानांच स एव दोषतामान्नरो बन्हिविवर्धनय, मुहुर्मुर्वारि विवेद् भूरि।अर्थात भोजन करते समय जिसे खुश्की आती हो और भोजन के बीच-बीच में पानी पीने की आवश्यकता हो तो ऐसी स्थिति में यदि पानी के स्थान पर दही या मठे का सेवन करें तो पानी से अधिक लाभ होता है। प्राचीन वैद्यक ग्रंथों में भोजन के समय पानी पीने के संबन्ध में लिखा गया है-भुक्तस्यादौ जलं पीतं काश्र्य मन्दाग्नि दोष कृतअर्थात वैद्यक ग्रंथों में कहा गया है कि भोजन करने के लिए बैठते समय पानी पीने से मन्दाग्नि उत्पन्न होती है।आदावन्ते विषं वारि मध्येयासृतोममअर्थात भोजन करने से पहले और भोजन कर चुकने के बाद पानी पीना विष के समान है।भोजन और पानी के संबन्ध में भोजन करते समय पानी न पीने का एक अन्य कारण भी हो सकता है। हम जानते हैं कि जो भोजन हम करते हैं, उसमें दो तिहाई से तीन चौथाई भाग पानी होता है। इसलिए भोजन के समय पानी बहुत ही कम मात्रा में पीना चाहिए। परन्तु बिल्कुल पानी को नहीं छोडऩा चाहिए। इससे भोजन को पचाने के लिए उत्पन्न पाचक रस की उत्पत्ति में कमी होकर चर्वण क्रिया अर्थात भोजन को अच्छी तरह चबाने की क्रिया में रुकावट उत्पन्न हो सकती है, जिससे भोजन के प्रत्येक ग्रास को बिना सही रूप से चबाए ही निगल जाने की आदत पड़ जाती है और स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है। भोजन करने और पानी पीने का समय अलग-अलग होना चाहिए। इस तरह मनुष्य भोजन के समय पानी को न पीने की आदत बना सकते हैं, परन्तु इसके लिए भोजन का सात्विक व प्राकृतिक होना आवश्यक है।भोजन और पानी के विषय में वैज्ञानिकों का मतयूरोपीय वैज्ञानिकों ने भोजन के समय पानी पीने की दिशा में अनेक प्रयोग किये हैं और उन्होंने सिद्ध किया है कि भोजन के तुरन्त बाद पानी पीना हानिकारक है और भोजन के कम से कम आधा या 1 घंटे बाद पानी पीना लाभकारी है। भोजन करने के लगभग 2 घंटे बाद 2 गिलास पानी पीना लाभकारी होता है। इस तरह भोजन के आधे घंटे या 1 घंटे या 2 घंटे बाद पानी पीने वाले व्यक्ति को पेट का किसी भी प्रकार का कोई रोग नहीं होता। आयुर्वेद शास्त्र में लिखा गया है-तृषितस्तु न चाश्नीयात्क्षुधितो न पिवेज्जलमतृषितस्तु भवेद्गुल्मी क्षुधि तस्तु जलोदरी।।अर्थात आयुर्वेद में लिखा गया है- ंंप्यास लगने पर पानी के स्थान पर भोजन देना हानिकारक होता है। इससे व्यक्ति में गुल्म (गैस) आदि पेट के रोग उत्पन्न होते हैं और भूख लगने पर भोजन के स्थान पर पानी पिलाने से व्यक्ति में जलोदर (ड्राप्सी) रोग होने का खतरा रहता है। अत: प्यास लगने पर पानी पीना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है।
- पूरी दुनिया इस समय कोरोना वायरस के कहर से जूझ रही है। कोरोना वायरस से बचाव के लिए कई लोग एल्कोहल से बने हैंड सैनिटाइजर का इस्तेमाल कर रहे हैं। एल्कोहल से तैयार हैंड सैनिटाइजर भले ही कोरोना वायरस से बचाव करने में सक्षम हो, लेकिन यह छोटे बच्चों के लिए खतरनाक साबित हो रहा है। फ्रांस में हुए रिसर्च के अनुसार एल्कोहल से तैयार हैंड सैनिटाइजर का इस्तेमाल करने से साल 2020 में 2019 की तुलना में बच्चे अधिक बीमार हुए हैं। ये आंकड़े 7 गुना अधिक हैं। इसमें बच्चों के आंख खराब होने की समस्या सबसे अधिक है।क्या कहते हैं आंकड़े?फ्रांस के शोधकर्ताओं के अनुसार, अगर एल्कोहल वेस्ड हैंड सैनिटाइजर बच्चों की आंखों में चला जाए, तो इससे बच्चे की देखने की शक्ति पर प्रभाव पड़ता है। फ्रेंच प्वाइजन कंट्रोल सेंटर के आंकड़ों के मुताबिक, 1 अप्रैल 2020 से 24 अगस्त 2020 तक के बीच हैंड सैनिटाइजर से जुड़ी करीब 232 घटनाएं सामने आई हैं। वहीं, 2019 की बात की जाए, तो महज 33 घटनाएं सामने आई थीं। रिसर्चर्स ने दावा किया है कि एल्कोहल बेस्ड हैंडसैनिटाइजर की एक बूंद भी अगर बच्चे की आंखों में चली जाए, तो इससे बच्चे की आंखों की रोशनी भी जा सकती है। ऐसे में परिजनों को अधिक सतर्क रहने की जरूरत है।फ्रेंच पीसीसी रिसर्च ग्रुप के साइंटिस्ट ने जेएएमए एफथाल्मोलॉजी में प्रकाशित स्टडी में बताया कि, ''एल्कोहल बेस्ड हैंड सैनिटाइजर का इस्तेमाल मार्च 2020 से बड़े स्तर पर हुआ है, जिसने अनजाने में होने वाली बीमारियों का खतरा बढ़ाया है। '' एक्पसर्ट बताते हैं कि इससे बच्चों को ऑक्युलर इंजरी होने का खतरा अधिक है। हैंड सैनिटाइजर के कारण कई बच्चों की आंखे जा चुकी हैं।हैंड सैनिटाइजर के अन्य नुकसानइन दिनों हैंड सैनिटाइजर का इस्तेमाल काफी ज्यादा होने लगता है। हैंड सैनिटाइजर के इस्तेमाल से सिर्फ बच्चों के आंखों की रोशनी पर ही असर नहीं पड़ता, बल्कि इसके इस्तेमाल से कई अन्य नुकसान भी हो सकते है। आइए जानते हैं इस बारे में-मांसपेशियों के ऑर्डिनेशन को होता है नुकसानहैंड सैनिटाइजर को तैयार करने के लिए इसमें ट्राइक्लोसान नामक केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है, जिसे हमारे हाथ की स्किन आसानी से सोख लेती है। हैंड सैनिटाइजर का अधिक इस्तेमाल करने से यह केमिकल हमारी स्किन से होते हुए हमारे ब्लड में मिलने लगती है। यह केमिकल ब्लड में मिलने के बाद हमारी मांसपेशियों के ऑर्डिनेशन को नुकसान पहुंचा सकता है।स्किन में हो सकती है खुजली और जलनकई हैंड सैनिटाइजर में बेंजाल्कोनियम क्लोराइड मिलाया जाता है, जो हमारे हाथों से कीटाणुओं और बैक्टीरिया को बाहर निकालने में हमारी मदद करता है। लेकिन यह हमारी स्किन के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। इस केमिकल के अधिक इस्तेमाल से हाथों में खुजली और जलन की परेशानी होने लगती है।लिवर, किडनी और फेफड़ों की बढ़ा सकती है परेशानीहैंड सैनिटाइजर में खूशबू लाने के लिए इसमें फैथलेट्स नामक केमिकल मिलाया जाता है। ऐसे में अधिक खूशबू वाले हैंड सैनिटाइजर आपके लिए नुकसानदेय हो सकते हैं। अधिक खूशबूदार हैंड सैनिटाइजर से लिवर, किडनी, फेफड़ों की समस्या और प्रजनन क्षमता पर असर डाल सकती है।हैंड सैनिटाइजर से बढ़ सकती है एलर्जी की समस्याअधिक हैंड सैनिटाइजर के इस्तेमाल से बच्चों में एलर्जी की शिकायतें देखी गई है। बाजार में मिलने वाले हैंड सैनिटाइजर में कई तरह के केमिकल्स मिलाए जाते हैं, जिससे एलर्जी बढऩे की आंशका होती है। ऐसे में इन सैनिटाइजर के बदले हबर्ल या फिर ऑर्गेनिक सैनिटाइजर का इस्तेमाल करना अधिक बेहतर होता है। इससे आपको किसी तरह से कोई साइड-इफेक्ट्स नहीं होते हैं।मेथानॉल को लेकर एफडीए की चेतावनीएफडीए ने मेथनॉल युक्त हैंड सैनिटाइजर को लेकर कहा था कि इस तरह के सैनिटाइजर का इस्तेमाल आम लोगों और स्वास्थ्य कर्मियों को नहीं करना चाहिए। यह उनके सेहत पर बुरा असर डाल सकती है।बच्चों की इम्यूनिटी करता है कमजोरकई रिसर्च में इस बात का भी दावा किया गया है कि अधिक हैंड सैनिटाइजर के इस्तेमाल से बच्चों की इम्यूनिटी पावर पर बुरा असर पड़ता है।साबुन से हाथ धुलाना है अधिक बेहतरहैंड सैनिटाइजर को लेकर फ्रांस के शोधकर्ताओं का कहना है कि 'एल्कोहॉल युक्त हैंड सैनिटाइजर के इस्तेमाल से मार्च 2020 से लेकर अब तक कई बच्चे बीमार पड़े हैं।" भारत में भी दो ऐसे मामले सामने आए हैं, जिसमें बच्चों की आंखों में सैनिटाइजर जाने के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। ऐसे में सुरक्षा के लिहाज से साबुन से हाथ धुलाना ही बेहतर होगा।
- हम जानते हैं कि हाइट एक निश्चित उम्र तक बढ़ती है। वहीं, आनुवांशिक कारणों के साथ कई ऐसी बातें हैं जिससे किसी व्यक्ति की लंबाई कितनी बढ़ेगी, इसका पता चलता है। कई पहलुओं के साथ डाइट भी एक खास वजह है जिससे किसी बच्चे की लंबाई प्रभावित होती है। आज हम आपको ऐसी चीजें बता रहे जिन्हें खाने से लंबाई बढ़ती है।बैरीजब्लूबैरी, स्ट्रॉबेरी, ब्लैकबेरी या रास्पबैरी भी कई प्रकार के न्यूट्रिशन से लैस होती हैं। इसमें मौजूद विटामिन-सी कोशिकाओं को बेहतर करता है और टिशू रिपेयर करने का काम करता है। विटामिन-सी कॉलेजन के सिंथेसिस को भी बढ़ाता है, एक ऐसा प्रोटीन जिसकी मात्रा आपके शरीर में सबसे ज्यादा होती है।पत्तेदार सब्जियांपालक, केल, अरुगुला, बंदगोभी जैसी पत्तेदार सब्जियों में भी कई तरह के पोषक तत्व होते हैं। इन सब्जियों में विटामिन-सी, कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम और पोटैशियम के अलावा विटामिन-के भी पाया जाता है जो हड्डियों के घनत्व को बढ़ाकर लंबाई बढ़ाने का काम करता है।अंडाअंडा न्यूट्रिशन का पावरहाउस है। इसमें प्रोटीन की भरपूर मात्रा पाई जाती है। इसमें हड्डियों की सेहत के लिए जरूरी कई तरह के पोषक तत्व पाए जाते हैं। 874 बच्चों पर हुए एक अध्ययन में पाया गया है कि नियमित रूप से अंडा खाने वाले बच्चों की हाइट बढ़ती है। अंडे के पीले भाग (यॉक) में मौजूद हेल्दी फैट भी शरीर को फायदा दे सकता है।बादामबादाम में मौजूद कई प्रकार के विटामिन और मिनरल भी लंबाई के लिए बेहद जरूरी हैं। इसमें हेल्दी फैट के अलावा, फाइबर, मैग्नीज और मैग्नीशियम भी पाया जाता है। इसके अलावा, इसमें विटामिन-ई भी होता है, जो एंटीऑक्सिडेंट के रूप में दोगुना हो जाता है। एक स्टडी के मुताबिक, बादाम हमारी हड्डियों के लिए भी फायदेमंद चीज है।साल्मन फिशओमेगा-3 फैटी एसिड से भरपूर साल्मन फिश भी सेहत के लिए बड़ी फायदेमंद है। ओमेगा-3 फैटी एसिड दिल की सेहत को फायदा पहुंचाने वाला एक फैट है, जो शरीर की ग्रोथ और डेवलपमेंट के लिए भी अच्छा माना जाता है। कुछ शोधकर्ताओं का कहना है कि ओमेगा फैटी-3 एसिड हड्डियों की ग्रोथ को भी बढ़ावा दे सकता है। ये बच्चों में नींद की समस्या को भी दूर कर सकता है, जो कि उनकी ग्रोथ पर बुरा असर डालती है।शकरकंदविटामिन-ए से युक्त शकरकंद हड्डियों की सेहत को सुधारकर लंबाई बढ़ाने में मदद करती है। इसमें सॉल्यूबल और इनसॉल्यूबल दोनों प्रकार के तत्व होते हैं, जो आपकी डायजेस्टिव हेल्थ को प्रमोट करते औंर आंतों के लिए अच्छे बैक्टीरिया के विकास को बढ़ावा देते हैं। यह विटामिन-सी के अलावा मैग्नीज, विटामिन बी6 और पोटेशियम का भी अच्छा स्रोत है।
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आयुर्वेद में आंवले का काफी महत्व होता है। नियमित रूप से आंवले का सेवन करने से कई गंभीर से गंभीर बीमारियों से बचा जा सकता है। आंवला विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर होता है। इतना ही नहीं, आंवले में कैल्शियम, पोटैशियम, कैरोटीन, आयरन, फाइबर, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन ए और बी जैसे कई पोषक तत्व मौजूद होते हैं। आंवले का सेवम किसी भी रूप में करने से आपके सेहत को फायदा पहुंच सकता है। आयुर्वेद में आंवला का फल, बीज, पत्ते, छाल और जड़ों का इस्तेमाल किया जाता है। आंवले की गुठलियों का सेवन स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद हैं। आइए जानते हैं आंवले की गुठलियों के फायदे और किस तरह करें इसका सेवन-
आंखों के लिए है फायदेमंदआंखों की समस्याओं को दूर करने में आंवले की गुठली काफी फायदेमंद होती है। इसके सेवन से आप आंख में खुजली, जलन, लालिमा जैसी शिकायत को दूर कर सकते हैं। नियमित रूप से आंवले की गुठली को पीसकर पानी में मिलाकर पीने से आपकी आंखे स्वस्थ रहेंगी। इसके अलावा आंवले का रस आंख में डालने से आंखों की रोशनी अच्छी होगी।पित्त की पथरी से मिलता है छुटकाराकई रिसर्च में भी इस बात का खुलासा हुआ है कि आंवले की गुठली के सेवन से किडनी, पित्त और मूत्राशय की पथरी से छुटकारा पाया जा सकता है। इसके बीज से तैयार चूर्ण हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी अच्छा है। मूत्राशय की पथरी में होने वाली समस्याओं से निजात दिलाने में यह बहुत ही असरकारी साबित हो सकता है।स्किन के लिए फायदेमंदस्किन के लिए भी आंवले की गुठली से तैयार चूर्ण काफी फायदेमंद हो सकता है। इसके इस्तेमाल से स्किन पर होने वाली दाद-खाज या खुजली की समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। आंवले की गुठली से तैयार चूर्ण को नारियल तेल में मिक्स करके लगाने से स्किन पर निखार आने लगता है। इसके इस्तेमाल से स्किन पर होने वाले इंफेक्शन से राहत मिलता है। इस पेस्ट को कुछ दिनों तक स्किन पर लगाने से स्किन की सभी समस्याएं दूर रहेंगी।पित्त दोष की समस्या होगी दूरआयुर्वेद के अनुसार, आंवले की गुठली के इस्तेमाल से बुखार और पित्त की परेशानी को दूर किया जा सकता है। इसके सेवन से प्यास शांत होता है। यह सर्दी-खांसी की परेशानी को दूर करने में आपकी मदद कर सकता है। इम्यूनिटी को बूस्ट करने और फेफड़ों को मजबूत करने में आंवले की गुठली फायदेमंद साबित हो सकती है - कृष्णबीज नाम से शायद इस फूल को पहचानना मुश्किल हो सकता है ,अंग्रेजी में इसको ब्लू मॉर्निंग ग्लोरी कहते हैं। इसके सुन्दर नीले फूल सुबह में ही खिलते है; इसलिए इसे मार्निंग ग्लोरी कहा जाता है। यह एक प्रकार की औषधि भी है।कृष्णबीज की दो प्रजातियां होती है, एक कालादान और दूसरा कृष्णबीज।कालादान -यह प्रकृति से कड़वा होता है। इसके अलावा यह पाचक, कृमि को निकालने में सहायक, विरेचक, सूजन कम करने वाला, रक्त को शुद्ध करने वाला, बुखार के लक्षणों को दूर करने वाला, वेदना कम करने वाला, तथा मूत्र संबंधी रोगों के इलाज में सहायक होता है। इसके बीज सूजन, कब्ज, खुजली, पेट फूलने की बीमारी, सांस की बीमारी, खांसी, जलोदर, सिरदर्द, नासास्राव, रक्त में वात की समस्या, बुखार, वातविकार, प्लीहा या स्प्लीन , श्वित्र या ल्यूकोडर्मा, खुजली, कृमि, खाने की इच्छा में कमी, संधिविकार तथा जोड़ो के दर्द को कम करने में सहायक होता है। इसके अलावा पूरा पौधा कैंसररोधी गुणों वाला होता है।करपत्री कृष्णबीज- इसका प्रयोग अर्श या पाइल्स, रोमकूप के सूजन तथा फोड़ों की चिकित्सा में किया जाता है। इसके अलावा जड़ का प्रयोग विरेचनार्थ किया जाता है। और पत्तों को पीसकर पुटली की तरह बनाकर लगाने से व्रण या अल्सर, दद्रु या खाज-खुजली आदि त्वचा संबंधी रोगों में लाभप्रद होता है। 5 मिली ताजे पञ्चाङ्ग के रस को पिलाने से अलर्क या रैबीज़ रोग के इलाज में फायदेमंद होता है। करपत्री कृष्णबीज के सूखे पत्ते को धूम्रपान की तरह सेवन श्वासनलिका संबंधी समस्या में आराम मिलता है। बीजों को पीसकर नारियल तेल में मिलाकर त्वचा में लगाने से त्वचा के विकारों का शमन होता है तथा व्रण में लगाने से शीघ्र ही व्रण या घाव ठीक हो जाता है।कृष्णबीज के फायदे और उपयोगकालादान या कृष्णबीज देखने में जितना मनमोहक होता है उतना ही औषधी के रूप में कौन-कौन से बीमारियों के लिए फायदेमंद है।- कालादाना का काढ़ा बनाकर गरारा करने से मुखपाक या गले के दर्द या मुँह संबंधी रोगों से निजात पाने में आसानी होती है।- उदावर्त रोग में मल-मूत्र का निष्कासन सही तरह से नहीं हो पाता है। इसके लिए कालादान का सेवन इस तरह से करने पर जल्दी आराम मिलता है।- अगर कब्ज की समस्या से परेशान रहते हैं तो इससे राहत पाने के लिए कालादान का सेवन फायदेमंद हो सकता है।- लीवर और स्प्लीन के सूजन को कम करने के इलाज में फायदेमंद होता है कालादान।- -50 ग्राम कालादाना को 400 मिली जल में पकायें और जब आधा शेष बचे तो छानकर रख लें। इसे जल में मिलायें इससे स्नान कराने से कण्डु या खुजली, दद्रु आदि चर्मरोगों दूर होता है तथा सिर के जुंए भी नष्ट होते हैं।- अगर बार-बार बुखार आता है तो 1 ग्राम कालादाना चूर्ण में 1 ग्राम काली मरिच चूर्ण तथा 500 मिग्रा अतीस चूर्ण मिलाकर सुबह शाम गुनगुने जल के साथ सेवन करने से ज्वर कम होता है।(नोट- कोई भी उपाय चिकित्सक की सलाह पर ही करें)
- हम जब भी घर में चावल पकाते हैं तो उसका पानी यानी पसिया या मांड (पेज) को फेंक देते हैं, जबकि यह सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है। यह सेहत, स्किन और बालों के लिए बहुत फायदेमंद, जानें इसका कैसे करें इस्तेमाल।पसिया या मंाड में में कई पोषक तत्व हैं, जिसके कारण इस पानी का सेवन करने से कई फायदे होते हैं और सही तरीके से इस्तेमाल करने पर बालों और त्वचा को भी कई फायदे मिलते हैं। चावल के पानी को फर्मेंट करके इम्यूनिटी बूस्ट करने वाला और पाचन सही रखने वाला कांजी ड्रिंक बनाया जा सकता है।चावल के पानी के फायदे-शरीर के तापमान को सामान्य करता है।-कब्ज ठीक करने में सहायक।-फर्मेंटेड चावल का पानी पाचन को ठीक करता है।-चावल के पानी से मुंह धोने पर स्किन सॉफ्ट बनती है और ग्लो बढ़ता है।-चावल के बचे हुए पानी से बाल धोने से बाल भी लंबे, घने व मुलायम बनते हैं।ज्यादा एनर्जी कम कैलोरीजचावल का पानी पीने से काफी मात्रा में ऊर्जा मिलती है। इसका सेवन आपके शरीर की एनर्जी लेवल को कम नहीं होने देता। आप इस पानी का सेवन खाने के एक घंटा पहले व बाद में कर सकते हैं। चावल के पानी के एक कप में 140 कैलोरीज़ होती हैं। कम कैलोरीज़ मात्रा से ही आप का वजन कम होगा।शरीर को शांत करता हैचावल के पानी से मिलने वाले अन्य लाभों में से एक लाभ है कि यह शरीर व दिमाग को रिलैक्स करता है। ऐसा करने के लिए आप अपने नहाने के पानी में थोड़ा सा चावल का पानी मिला सकते हैं और इस पानी से नहाने से आप को बहुत आराम मिलेगा।पाचन मे सहायकवजन कम करने के लिए अच्छा पाचन होना बहुत जरूरी है। सुबह के नाश्ते में इस पानी का सेवन करने से आपका पाचन ठीक रहेगा क्योंकि इस चावल के पानी में फाइबर होता है। यही नहीं ये पानी दस्त को कम करने के लिए भी बेहतरीन औषधि है।हाइड्रेशन में मदद करता हैचावल का पानी शरीर को हाइड्रेटेड रहने में मदद करता है और आप जितना अधिक हाइड्रेटेड रहेंगे, उतना ही आप का शरीर अच्छे ढंग से वर्क आउट कर पाने में सक्षम होगा और तेजी से वजन कम होगा।रखें ये सावधानीडायबिटीज के मरीजों को नहीं करना चाहिए सेवनचावल के पानी में स्टार्च होता है इसका मतलब है कि शुगर व कार्ब एक साथ आप के शरीर में जाता है। इसलिए डायबिटिक लोगों को चावल का पानी बिलकुल नहीं पीना चाहिए चाहे आप ने चावलों को पानी के साथ बनाया हो या दूध के साथ। आप को इस पानी का प्रयोग बिल्कुल नहीं करना चाहिए।
- पीले रंग के केले तो बाजार में आते ही हैं और केले खाने के फायदे भी हैं। वहीं केले की एक प्रजाति में लाल रंग के फल आते हैं। लाल केलों को "रेड डक्का" के रूप में भी जाना जाता है। इसमें लाल रंग का बाहरी छिलका होता है और ये दक्षिण पूर्व एशिया से केले के एक उपसमूह में आता है। लाल केले पीले केले की तुलना में काफी छोटे और मीठे होते हैं, इसके साथ ही ये ज्यादा पोषक तत्व भरे भी होते हैं। लाल केले ब्लड शुगर के स्तर को कम करने, प्रतिरक्षा को बढ़ाने और पाचन में सहायता करते हैं।लाल केलों के फायदेपोषक तत्वों से भरपूरएक सामान्य लाल केले करीब 100 ग्राम का होता है, इसमें काफी कम मात्रा में फैट होता है और भारी मात्रा में फाइबर होता है। लाल केले कार्बोहाइड्रेट का एक अच्छा स्रोत होता है, जैसे सुक्रोज और फ्रुक्टोज। यह तुरंत ऊर्जा देने का काम करता है और इससेशरीर में रक्तप्रवाह में तेजी आती है। इसके अलावा लाल केलों में भारी मात्रा में विटामिन सी, थीआमिन, विटामिन बी-6 और फोलेट जैसे तत्व होते हैं।डायबिटीज करता है कंट्रोललाल केले शरीर में डायबिटीज को कंट्रोल करने का काम करते हंै, इसके साथ ही ये ब्लड शुगर लेवल में अचानक स्पाइक को कम करते हैं। एक अध्ययन में पाया गया है कि लाल केले की कम ग्लाइसेमिक प्रतिक्रिया डायबिटीज से पीडि़त लोगों के लिए फायदेमंद हो सकता है।एंटीऑक्सीडेंट तत्वलाल केले में भारी मात्रा में फेनॉल्स और विटामिन-सी होते हैं, इसके साथ ही इसमें काफी मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट तत्व भी होते हैं जो स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद होते हैं। मुक्त कणों की अधिकता से ऑक्सीडेटिव तनाव हो सकता है और ये मधुमेह, हृदय रोग और कैंसर जैसे चयापचय संबंधी समस्याओं के खतरे को कम कर सकते हैं।ब्लड प्रेशर को करे कमनियमित रूप से लाल केले का सेवन करने से ये ब्लड प्रेशर को बढऩे से रोकते हैं और उसे नियंत्रित करने में सहायक होते हंै। लाल केले में भरपूर मात्रा में पोटैशियम मौजूद होता हैं। रक्तचाप को बनाए रखने और हृदय रोग के जोखिम को कम करने में पोटेशियम की अहम भूमिका होती है।आंखों के लिए फायदेमंदलाल केले में ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो हमारी आंखों के लिए काफी अच्छे होते हैं साथ ही ये हमारी आंखों की रोशनी को बढ़ाने का काम करते हैं। लाल केले ल्यूटिन और जेक्सैंथिन होते हैं। इसके साथ ही लाल केले में बीटा-कैरोटेनॉइड भी होता है। इसमें विटामिन ए की मात्रा भी पाई जाती है जो आंखों की रोशनी के लिए फायदेमंद होती है।---
- आंख, नाक और कान की तरह दांत भी हमारे शरीर का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। जहां जीभ हमें तमाम तरह के स्वादिष्ट पदार्थों के टेस्ट से परिचय कराती है, तो वहीं दांतों के जरिए हम इन पदार्थों को चबाते हैं। लिहाजा दांतों की देखभाल हमारे लिए बेहद आवश्यक है। इनकी सफेदी और अपनी मुस्कुराहट बरकरार रखने के लिए आपको दिन में दो बार ब्रश करना चाहिए।आयुर्वेद भी दांतों की दो बार सफाई पर जोर देता है। पुराने दौर के लोग अपने दांतों को साफ करने के लिए विशिष्ट पौधों की टहनियों का इस्तेमाल करते थे और देश की तमाम हिस्सों में इस परंपरा का आज भी पालन किया जाता है। जानकारी के लिए आपको बता दें कि ब्रश करने और आयुर्वेदिक तरीके से दांत साफ करने में एक बड़ा अंतर है। हालांकि, जो लोग आज भी पारंपरिक तरीके को अपनाते हैं उन्हें दांतों की समस्या बेहद कम होती है। जानिए, आखिर क्यों दांतों को ब्रश से साफ करने से बेहतर है आयुर्वेद का पारपंरिक तरीका?दांतों को साफ करने का पारंपरिक तरीकाजब आधुनिक युग की शुरुआत नहीं हुई थी तब पुराने जमाने लोग अपने दांतों की सफाई के लिए कड़वे पेड़ों जैसे नीम, बबूल, शीशम, आम और पीपल की टहनियों का प्रयोग करते थे। इनकी कड़वाहट से न सिर्फ मुंह की दुर्गंध दूर होती है बल्कि दांत और मसूड़ों में भी मजबूती आती है। मालूम हो कि कड़वी जड़ी-बूटियां मुंह से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालती हैं और सांसों की बदबू से भी लड़ती हैं। कड़वे पेड़ों की टहनियां बैक्टीरियारोधी चिकित्सकीय गुणों से भरपूर औषधि की तरह होती हैं । पेड़ों की दातुन न सिर्फ आपके दांतों को स्वच्छ रखती बल्कि पाचन क्रिया में मदद करती है। साथ ही स्किन संबंधी समस्या से भी निजात मिलती है। दातुन को आप एक देसी यानी नेचुरल माउथफ्रेशनर के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं।टहनी का उपयोग कैसे करेंबबूल, नीम, शीशम, आम या पीपल जैसे पेड़ डाल की किसी भी टहनी को तोड़ लें। दातुन के लिए आप 20 से 25 सेंटीमीटर की टहनी होनी चाहिए जो कि आपकी उंगलियों में आसानी से आ जाए। इसके बाद आप टहनी को थोड़ी देर तक चबाएं। जब टहनी की नोक पर हल्के से ब्रिसल निकलने शुरू हो जाएं तो इसे ब्रश की तरह दांतों पर रगड़ें। धीरे-धीरे ये टहनी घिसने लगेगी और ऑटोमैटिक ही ब्रशनुमा बन जाएगी। इसे दांतों के अलावा जीभ पर भी लेकर जाएं। दातुन को आप जितनी देर तक मुंह में रखेंगे उतना ही आपको फायदा होगा। ग्रामीण लोग एक घंटे या इससे अधिक समय तक दातुन करते हैं जब तक कि पूरी टहनी टूट न जाए।फेंसी टूथपेस्ट की जगह खरीदें हर्बल दंत मंजनअच्छी बात ये भी है कि आधुनिक युग में भी आपको बाजार में तमाम टूथपेस्ट ऐसे मिल जाएंगे जो पारंपरिक दातुन की तरह फायदेमंद हैं। बाजार में यदि आप टूथपेस्ट खरीदने जाते हैं तो बेहतर होगा यदि आप हर्बल टूथपेस्ट का चुनाव करें। इस तरह के टूथपेस्ट हर्बल पौधों से बने होते हैं और रासायनिक-मुक्त होते हैं। लिहाजा हर्बल टूथपेस्ट केमिकलयुक्त फेंसी टूथपेस्ट से कहीं बेहतर है। दिलचस्प ये है कि इसके लिए आपको पैसे खर्च करने की जरूरत नहीं है क्योंकि ये पेड़ आपको अपने मुहल्ले में भी मिल जाएंगे या किसी पार्क में।टूथ ब्रश करने का सही तरीकाविज्ञान के अनुसार, आपको अपने दांतों को कम से कम दो मिनट तक अच्छी तरह से ब्रश करना चाहिए। ब्रश करते समय आपको मुंह के हर कोने को कवर करना चाहिए। आजकल ब्रश में मुलायम स्ट्रोक भी आते हैं जो मसूड़ों और दांतों के अंतराल के बीच छिपी गंदगी को साफ करने में मदद करते हैं। इस तरह के ब्रश भी टहनियों की तरह दांतों की सफाई करते हैं। ब्रश को दांतों पर रगड़ने से पहले इसे अच्छे से साफ करें और इसे समय-समय पर बदलते रहें।टूथपेस्ट के बाद जरूरी है स्क्रैपिंगआयुर्वेद दांतों को ब्रश करने के तुरंत बाद जीभ की सफाई यानी स्क्रेप करने की सलाह देता है। क्योंकि हमारे दांतों से अधिक जीभ पर कीटाणु लगे होते हैं। लिहाजा दांतों के अलावा जीभ की सफाई भी जरूरी है तभी आपका मुंह पूरी तरह से साफ माना जाएगा।
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आजकल समय से पहले लोगों के आखों की रोशनी कमजोर होने लगी है, क्योंकि बदलती लाइफ स्टाइल के साथ ही हम सभी को कुछ घंटे मोबाइल या कम्यूटर स्क्रीन के सामने रहना होता है। लेकिन यदि हम अपने खान-पान में थोड़ी ध्यान दें तो शायद इस समस्या को बढऩे से रोका जा सकता है।
जानें उन चीजों के बारे में जिनके रोज खाने से आंखों की रोशनी दुरुस्त रहती है-
हरी सब्जियां
अपनी डाइट में हरी पत्तेदार सब्जियां को शामिल करें। हरी पत्तेदार सब्ज?ियों में आयरन की भरपूर मात्रा पायी जाती है, जो आंखों के लिए बहुत ही जरूरी है।
गाजर
गाजर का जूस पीना सेहत के लिए तो अच्छा है ही साथ ही आंखों के लिए भी बहुत फायदेमंद है। रोजाना एक गिलास गाजर का जूस पीने से आंखों पर चढ़ा चश्मा तक उतर सकता है।
बादाम का दूध
सप्ताह में कम से कम तीन बार बादाम का दूध पिएं। इसमें विटामिन ई होता है जो कि आंखों में किसी भी बीमारी से लडऩे के लिए फायदेमंद है।
अंडे
अंडे में अमीनो एसिड, प्रोटीन, सल्?फर, लैक्?टिन, ल्?युटिन, सिस्?टीन और विटामिन बी2 होता है। विटामिन बी सेल के कार्य करने में महत्?वपूण होता है।
मछली
मछली में हाई प्रोटीन होता है। मछली आंखों के अलावा बालों के लिए भी बहुत अच्छी होती है।
सोयाबीन
आप अगर नॉन वेज नहीं खाते, तो आप सोयाबीन खा सकते हैं, यह आपकी आंखों के लिए बहुत फायदेंमंद है।
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ऐसा होता है कि खाने बनाते समय जिन चीजों का इस्तेमाल स्वाद बढ़ाने के लिए किया जाता है, उनके गुणों के बारे में जानकारी नहीं होती। जैसे जीरा, धनिया, हींग, कस्तूरी मेथी का इस्तेमाल खाने का स्वाद बढ़ाने के लिए किया जाता है लेकिन इन छोटी-छोटी चीजों के गुण बड़े होते हैं। साथ ही इनका रोजाना सेवन करने से इम्युनिटी पावर भी मजबूत होती है। मेथी के पत्तों को सुखाकर कस्तूरी मेथी बनाई जाती है। आज हम आपको कस्तूरी मेथी के फायदे बता रहे हैं-
पेट के लिए फायदेमंद
पीरियड्स से लेकर मेनोपॉज तक, महिला के शरीर को कई बदलावों का सामना करना पड़ता है। चूंकि, इनमें से अधिकांश पेट से संबंधित हैं, इसलिए यह पाचन स्वास्थ्य को गड़बड़ा देता है। अपने भोजन में मेथी के सूखे पत्तों को शामिल करना एक अच्छा विकल्प है। कब्ज से राहत पाने के लिए कस्तूरी मेथी को पांच मिनट के लिए उबाल लें। इसे बिना छाने ठंडा होने दें और फिर थोड़ा शहद मिला दें। कब्ज से छुटकारा पाना है तो मिश्रण का सेवन दिन में दो बार करें।
संक्रमणों से लड़ता है
जिन लोगों के पेट में इंफेक्शन रहता है, उन्हें हर दिन कस्तूरी मेथी का सेवन करना चाहिए। इसके अलावा, कस्तूरी मेथी का रोजाना सेवन करने से दिल, गैस्ट्रिक और आंतों की समस्या नहीं होती है। अगर पेट की समस्या है, तो पत्तियों को सुखाकर पीस लें और इसमें कुछ बूंदें नींबू की मिलाएं। इसके बाद इसे उबले पानी के साथ लें।
एनीमिया का इलाज
भारत में हर 4 में से 3 महिलाएं एनीमिया से पीडि़त हैं। ऐसी स्थिति में महिलाओं के लिए मेथी का सेवन करना फायदेमंद होता है, क्योंकि इसमें बहुत अधिक मात्रा में आयरन होता है, जो शरीर में हीमोग्लोबिन के स्तर को बढ़ाता है। इसलिए, यदि एनीमिया से जूझ रहे हैं, तो आहार में मेथी के पत्तों को जरूर शामिल करना चाहिए।
वजन घटाने में मददगार
कस्तूरी मेथी के पत्तों को चबाकर बहुत ही कम समय के अंदर वजन को कम कर सकते हैं। इसका खाली पेट सेवन करें। इसमें मौजूद घुलनशील फाइबर से पेट जल्दी भर जाता है और बार-बार भूख नहीं लगती है।
ब्लड शुगर को नियंत्रित करती है
डायबिटीज से पीडि़त लोगों को अतिरिक्त देखभाल की आवश्यकता होती है। दिन के दौरान कुछ भी खाने से अक्सर शरीर में ब्लड शुगर का स्तर बढ़ जाता है। मेथी में एंटी-डायबिटीज गुण होते हैं जो कि ब्लड शुगर को नियंत्रित कर सकते हैं। यह टाइप-2 डायबिटीज होने की आशंका को भी कम करती है। यदि डायबिटीज के रोगी इसे नियमित रूप से खाते हैं, तो उनका ब्लड शुगर कंट्रोल में रहेगा। - अक्सर लोग करेला बनाते समय इसे ऊपर से छिल देते हैं और इसका बीज भी निकाल देते हैं। पर करेले के ये बीज असल में शरीर के लिए बहुत काम की चीज हैं। वहीं करेले के छिलके के अपने फायदे हैं।करेले में विटामिन ए, विटामिन-सी, जिंक और फोलेट आदि पाया जाता है। डायबिटीज की बीमारी से पीडि़त लोगों के लिए यह काफी फायदेमंद है क्योंकि यह ब्लड शुगर को आसानी से नियंत्रित करने में मदद करता है। करेले के बीज में भी ये गुण पाए जाते हैं, इसलिए करेला पकाते समय इसके बीच न फेेंके, बल्कि इसके साथ ही सब्जी पकाएं।करेले के बीज के फायदेडायबिटीज में कब्ज की परेशानी दूर करेजब करेले को इसके बीज समेत खाया जाता है तो ये शरीर में एक तरह के रफेज का काम करता है, इसके चलते हमारे मेटाबोलिज्म सही रहता है और शरीर की पाचन क्रिया सही से काम करती है। यही काम ये डायबिटीज के मरीज के लिए करता है, जिस वजह से डायबिटीज में होने वाली कब्ज की परेशानी कम हो जाती है।इंसुलिन बढ़ाता हैइंसुलिन की कमी से शरीर शुगर पचा नहीं पाता है, जिससे शुगर की मात्रा बढ़ जाती है और ये खून में मिल कर पूरे शरीर में सर्कुलेट होने लगता है। करेला इसी प्रोसेस को सही करता है। दरअसल, डायबिटीज में करेले का बीज का सेवन करने से ये शरीर में ब्लड शर्करा को कम करने में मदद करता है। ऐसा इसलिए है करेले में इंसुलिन की तरह काम करने वाले गुण होते हैं, जो ऊर्जा के लिए कोशिकाओं में ग्लूकोज लाने में मदद करते हैं। फिर इसके बीज पाचनतंत्र को ठीक करके इंसुलिन के रिलीज को और बढ़ाते हैं, जो कुल मिला कर कोशिकाओं को ग्लूकोज का उपयोग करने और इसे आपके लिवर, मांसपेशियों और वसा में स्थानांतरित करने में मदद करते हैं।कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करेडायबिटीज के मरीज में कोलेस्ट्रोल की मात्रा ज्यादा होना दिल की बीमारियों का जोखिम बढ़ाता है। दरअसल, कोलेस्ट्रॉल का उच्च स्तर धमनियों में फैटी पट्टिका का निर्माण कर सकता है, जिससे हृदय को ब्लड पंप करने में परेशानी आती है। करेले का बीज एलडीएल यानी कि खराब कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स के स्तर में कमी लाता है और गुड कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ाता है।वजन संतुलित रखेकरेले को बीज सहित खाने से वजन भी संतुलित रहता है।इम्यूनिटी बढ़ाएशरीर में यदि पाचन क्रिया सही होती है, तो ये शरीर के इम्यून सिस्टम को मजबूत करेगा। इसके अलावा करेले में आयरन, मैग्नीशियम, पोटेशियम, विटामिन सी और फाइबर की अच्छी मात्रा होती है, जो कि इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए जरूरी है।ऐसे करें करेले के बीज का इस्तेमाल-करेले को बीज समेत सूखा कर इसका पाउडर बना लें और इसका रोज गर्म पानी के साथ सेवन करें, इससे पेट साफ रहेगा।करेले के बीज और लहसुन को पीस कर इसकी प्यूरी तैयार करें। भरवा करेला बनाते समय इसे प्याज के साथ मिला दें और तल लें। ये सब्जी डायबिटीज के मरीजों के लिए बहुत फायदेमंद है।- करेला नमक उबालकर लें और इसके बीज समेत इसको पीस लें। फिर राई और कड़ी पत्ते के साथ इसका तड़का लगाएं। ऊपर से गुड़ डाल कर मिला लें और हो गई तैयार करेले की चटनी।इस तरह करेले के बीज को फेकें नहीं बल्कि इसका इन तरीकों से इस्तेमाल करें। कोशिश करें कि जब भी करेला बनाएं पूरा बनाएं ताकि डायबिटीज के मरीज को करेले का पूरा फायदा मिले और शुगर कंट्रोल रहे।
- अधिकांश लोग बैंगन को बेगुन मानकर उसकी सब्जी खाना पसंद नहीं करते हैं। जबकि ऐसा नहीं है, बैंगन हमारी सेहत के लिए बहुत ही गुणकारी है। बैंगन की सब्जी या भरता तो हम सब ने खाया है लेकिन शायद ही किसी को मालूम हो कि बैंगन का स्वाद जितना अच्छा है उतना ही यह सेहत के लिए गुणकारी भी है। यह पेट के रोगों से लेकर बवासीर जैसी गंभीर बीमारियों के इलाज में फायदा पहुंचाता है।बैंगन कटु, तिक्त, मधुर, उष्ण, लघु, तीक्ष्ण, स्निग्ध, क्षारीय, कफवातशामक, दीपन, शुक्रकारक, रुचिकारक, हृद्य, वृष्य, बृंहण, ग्राही, निद्राकर, चक्षुष्य, पित्तल तथा शोणितवर्धक होता है। यह ज्वर, कास, अरुचि, कृमि, अर्श, हृल्लास तथा श्वासनाशक है। अंगार में भुना हुआ बैंगन अत्यन्त लघु, अग्निदीपन तथा पित्तकारक होता है।तेल तथा नमक युक्त भुना बैंगन गुरु तथा स्निग्ध होता है। श्वेत बैंगन अर्श में हितकर तथा बैंगन की अपेक्षा हीन गुण वाला होता है। बैंगन का पक्व फल क्षार युक्त, गुरु, पित्तकारक तथा वातकोपक होता है। बैंगन की मूल श्वासकष्टरोधी, रेचक, वेदनाहर एवं हृद्य होती है। यह तत्रिकाशूल, हृद्दौर्बल्य, शोथ, नासागत व्रण, अजीर्ण, ज्वर, हृदयगत रोग, श्वासगतरोग, श्वासनलिकाशोथ, श्वासकष्ट, विसूचिका एवं मूत्रकृच्छ्र शामक होता है।कान के दर्द से राहत- अगर आप कान दर्द से परेशान हैं तो बैंगन का उपयोग करके आप इस समस्या से राहत पा सकते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार बैंगन के जड़ के रस की 1-2 बूँद मात्रा कान में डालने से कान का दर्द और सूजन कम होता है।दांत दर्द से राहत-दांत में दर्द होना एक आम समस्या है, ठीक से दांतों की साफ-सफाई का ध्यान ना रखना इसका मुख्य कारण है। बैंगन की जड़ का पाउडर बना लें और इसे दांतों पर रगड़ें, इससे दांतों का दर्द दूर होता है। पेट के रोगों में उपयोगी है- पेट फूलना, अपच और भूख ना लगने जैसी समस्याओं से राहत पाने के लिए भी बैंगन का उपयोग किया जा सकता है। इन समस्याओं से राहत पाने के लिए कच्चे बैंगन की सब्जी बनाकर खाएं।उल्टी रोकने में मदद करता है -अगर आपको उल्टी हो रही है या जी मिचला रहा है तो इसे रोकने के लिए बैंगन का उपयोग करें। विशेषज्ञों के अनुसार, 5 मिली बैंगन की पत्तियों के रस में 5 मिली अदरक का रस मिलाकर पीने से उल्टी रुक जाती है।बवासीर के रोगियों के लिए उपयोगीखराब खानपान और गलत जीवनशैली के कारण कई लोग कब्ज की समस्या से परेशान रहते हैं और आगे चलकर बवासीर जैसी गंभीर बीमारी से पीडि़त हो जाते हैं। बवासीर के मरीज ब्लीडिंग और दर्द से राहत पाना चाहते हैं तो बैंगन का आगे बताए गए तरीके से उपयोग करें। इसके लिए बैंगन के पत्तों को महीन पीसकर उसमें जीरा और शक्कर मिलाकर सेवन करें। इसके सेवन से रक्तस्राव और दर्द दोनों से आराम मिलता है।पेशाब के समय होने वाले दर्द से राहत दिलाता है बैंगनकई लोग पेशाब करते समय जलन एवं दर्द की समस्या से परेशान रहते हैं। इसके लिए बैंगन के जड़ के रस की 5 मिली मात्रा का सेवन करें। इस समस्या से जुड़ी अधिक जानकारी के लिए नजदीकी आयुर्वेदिक चिकित्सक से संपर्क करें।जोड़ों के दर्द से राहत दिलाएजाड़ों का मौसम आते ही कई लोग जोड़ों के दर्द से परेशान हो जाते हैं, खासतौर पर बुजुर्गों में यह समस्या ज्यादा देखने को मिलती है। इसके लिए बैंगन को भूनकर उसे पीस लें और दर्द वाली जगह पर कपड़े में लपेटकर बांधें। इससे दर्द जल्दी दूर होता है।(नोट-कोई भी उपाय योग्य चिकित्सक की सलाह पर ही करें)
- अपनी फिटनेस पर ध्यान देने वाले लोग चावल खाने से परहेज करते हैं क्योंकि चावल खाने से न सिर्फ शरीर का फैट बढ़ता है बल्कि इससे बार-बार भूख भी लगती है। विशेषज्ञों के अनुसार अगर आप ब्राउन राइस खा रहे हैं, तो वजन बढऩे का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है। ज्यादातर लोगों को ब्राउन और वाइट राइस में अंतर नहीं पता होता। आइए, जानते हैं ब्राउन राइस आखिर क्या है और इसके क्या-क्या फायदे हैं-ब्राउन राइस और वाइट राइस में क्या अंतर है?सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि ब्राउन राइस और सफेद चावल में क्या अंतर है। दरअसल, ब्राउन राइस का भूसा नहीं उतारा जाता, जिससे इसके पोषक तत्व साबुत अनाज जितने ही रहते हैं। सफेद चावल का भूसा उतार कर उसे प्रोसेसिंग करके सफेद पॉलिश युक्त कर दिया जाता है। इस प्रोसेसिंग के दौरान चावल में मौजूद कई पोषक तत्व कम हो जाते हैं। हालांकि, ब्राउन राइस को इसके स्वाद, पकने में ज्यादा समय लेने और ज्यादा समय तक न रख पाने की वजह से भारत में अकसर लोग इसे लेना पसंद नहीं करते, लेकिन अब बेहतर तकनीक की मदद से ब्राउन राइस को ज्यादा समय तक रखा जा सकता है। इसका स्वाद भी अब काफी लोगों को पसंद आने लगा है। ब्राउन राइस में भी नॉन बासमती फायदेमंद है। इसके दाने का आकार छोटा और जीआई (ग्लाइसेमिक इंडेक्स) कम होता है।नॉन बासमती ब्राउन राइस के फायदेसफेद चावल की तुलना में ब्राउन राइस के कई फायदे हैं। ब्राउन राइस में विटामिन, कुछ खनिज, लिगनान और फाइटो कैमिकल व एंटी ऑक्सीडेंट से भरपूर पोषक तत्व होते हैं। इनमें विटामिन ई, सिलेनियम, मैंगनीज होता है। इसे नियमित रूप से अपनी डाइट में शामिल करना चाहिए। ब्राउन राइस, साबुत अनाज के सबसे बेहतरीन रूपों में से एक है। इसमें शरीर के ऑक्सीडेटिव तनाव और बीमारियों को रोकने के लिए एंटी ऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में होते हैं।ब्राउन राइस के फायदेकोलेस्ट्रोल नियंत्रित करेशरीर में कोलेस्ट्रोल की मात्रा बढऩे से ह्रदय रोग हो सकता है। कोलेस्ट्रोल को नियंत्रित करने के लिए ब्राउन राइस जैसे साबुत अनाज खाने की सलाह दी जाती ह । ब्राउन राइस में कुछ मात्रा फाइबर की होती ह । फाइबर खाने को धीरे-धीरे पचाने में मदद करता है, जिससे भूख कम लगती है और कोलेस्ट्रोल को खून में धीरे-धीरे घुलने में मदद करता है। साथ ही एलडीएल कोलेस्ट्रोल यानी खराब कोलेस्ट्रोल के स्तर को कम करने में मदद करता है ।मधुमेह के लिए ब्राउन राइस के फायदेवैज्ञानिक शोध के अनुसार, ब्राउन राइस टाइप 2 मधुमेह को नियंत्रित रखने में मदद कर सकता है। इसमें फाइबर, प्रोटीन, फाइटोकेमिकल्स और मिनरल्स की अच्छी मात्रा पाई जाती है। व्हाइट राइस की तुलना में ब्राउन राइस में लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है, जो शरीर में ब्लड शुगर के स्तर को कम रखता है।कैंसर विरोधी गुणब्राउन राइस के स्वास्थ लाभ की बात करें, तो यह कैंसर को रोकने में मदद कर सकता है। शोध के अनुसार, अंकुरित ब्राउन राइस में गामा-एमिनोब्यूटिरिक एसिड पाया जाता है, जो ल्यूकेमिया (रक्त कैंसर) की कोशिकाओं को रोकने में मदद करता है ।हड्डियों के लिए ब्राउन राइस के फायदेहड्डियों को तंदुरुस्त रखने के लिए मैग्नीशियम बहुत फायदेमंद मिनरल है और यह ब्राउन राइस में भरपूर मात्रा में पाया जाता है । यह बोन मिनरल डेंसिटी को बढ़ाने में मदद करता है ।तंत्रिका तंत्र के लिए फायदेमंदतंत्रिका तंत्र के सही प्रकार से काम न करने पर अल्जाइमर, पार्किंसंस व माइग्रेन जैसी समस्या हो सकती है। इन बीमारियों से उबरने में मैग्नीशियम जरूरी तत्व साबित हो सकता है । वहीं, ब्राउन राइस में मैग्नीशियम पर्याप्त मात्रा में होता है और इसका सेवन करने से तांत्रिक तंत्र को स्वस्थ बनाया जा सकता है ।रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाएब्राउन राइस खाने के फायदे में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर करने का गुण भी शामिल है। इसमें विटामिन-ई मौजूद होता है, जो एंटी-ऑक्सीडेंट का काम करता है। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहतर होती है और विभिन्न बीमारियों से बचना आसान हो जाता है ।