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 विभाजन के दर्द को बंया करती फिल्में, छलका था बंटवारे का दर्द

मुंबई। देश के विभाजन ने लोगों को झंकझोर दिया था। देश के बंटवारे को लेकर भारतीय सिनेमा में कई फिल्मों का निर्माण हुआ है। जो वक्त वक्त पर उस बंटवारे के दर्द का अहसास दिलाती हैं। वैसे तो आज हर कोई आजादी का जश्न मना रहा है और सभी को खुश होना चाहिए लेकिन उससे इतर थोड़ा बंटवारे के दर्द पर भी गौर करना चाहिए। भारतीय सिनेमा में बनी 5 फिल्में, जिन्होंने बंटवारे के दौरान मानवीय कहानियों को बयां किया।
बंटवारे पर बनी ऐतिहासिक फिल्म गरम हवा
एमएस सथ्यू की पहली फिल्म गरम हवा हिंदी सिनेमा की एक ऐतिहासिक फिल्म बनी हुई है। यह फिल्म घर,अपनेपन, कारोबार, इंसानियत और राजनीतिक मूल्यों पर बात करती है। इस्मत चुगताई की एक अप्रकाशित उर्दू लघु कहानी पर आधारित यह फिल्म भारत पाकिस्तान बंटवारे पर सेट की गई है। फिल्म में एक उत्तर भारतीय मुस्लिम व्यवसायी सलीम मिर्जाई है, जिसे विभाजन के बाद पाकिस्तान नहीं जाने का कठिन निर्णय लेना पड़ता है। उसे विश्वास होता है कि गांधी जी के विचार रंग लाएंगे और एक दिन माहौल शांत हो जाएगा।
दंगों की कहानियों को बयां किया गया था तमस
भीष्म साहनी के इसी नाम के उपन्यास पर यह फिल्म आधारित है। कहा जाता है कि यह 1947 के रावलपिंडी दंगों की सच्ची कहानी को बयां करती है। गोविंद निहलानी द्वारा बनाई गई इस फिल्म में विभाजन के दौरान दंगों की कहानियों को बयां किया गया है। कैसे कुछ तथाकथित लोगों के कारण दो समुदायों को आपस में भिड़वा दिया गया था। इसमें भीष्म साहनीए ओम पुरी, सुरेखा सीकरी और एके हंगल जैसे दिग्गज कलाकार थे, जिनके अभिनय को खूब सराहा गया।
विभाजन के दौरान बनी परिस्थितियों पर ध्यान आकर्षित करती है अर्थ
दीपा मेहता की ये फिल्म एक मुस्लिम युवा और एक हिंदू आया की प्यार की कहानी पर आधारित है। भारतीय स्वतंत्रता के समय 1947 में भारत के विभाजन से पहले और उसके दौरान लाहौर की स्थिति को फिल्मी पर्दे पर दिखाया गया। फिल्म की कहानी विभाजन के दौरान बनी परिस्थितियों पर ध्यान आकर्षित करती है। इस फिल्म की कहानी को लोगों ने खूब पसंद किया था। इस फिल्म में शबाना आजमी, आमिर खान, नंदिता दास और राहुल खन्ना जैसे कलाकारों ने अहम भूमिका निभाई थी
ट्रेन टू पाकिस्तान
खुशवंत सिंह के क्लासिक उपन्यास ट्रेन टू पाकिस्तान पर आधारित एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाई गई थी। यह पाकिस्तान के साथ भारत की नई सीमा के पास एक प्रमुख रेलवे लाइन पर एक छोटे से पंजाबी शहर मनो माजरा पर केंद्रित है। यहां छोटी सी तादाद मुस्लिम लोगों की है और बहुल संख्या सिखों की है। विभाजन से पहले दोनों समुदाय के लोग आपस में मिल जुलकर रहते हैं लेकिन बंटवारे के बाद यहां की स्थिति भी देश के अन्य भागों की तरह बदल जाती है।
विभाजन की दास्तां पर आधारित पार्टीशन
गुरिंदर चड्ढा की यह फिल्म आजादी और विभाजन की दास्तां पर आधारित है। कहा जाता है कि इसमें सच्ची घटनाओं का जिक्र किया गया है। यह फिल्म 1945 के दौर पर सेट की गई है, जब अंग्रेजी हुकूमत ने भारत को आजाद करने का फैसला लिया था। आजादी के नाम पर कुछ हिंदू मुस्लिमों के बीच उत्साह और तो कुछ के बीच निराशा इस फिल्म के जरिए दिखाई गई। साथ ही फिल्म में एक लव स्टोरी भी थी, जिस पर विभाजन का गहरा असर पड़ा।

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