मूर्ति में भगवान होने की भावना न हो तो मूर्ति पूजा पत्थर-पूजा ही है!!!
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से नि:सृत प्रवचनों में से साधनोपयोगी 5 सार बातें :::::::
(1) जिस साधक की जितनी ऊंची स्प्रिचुअल कक्षा होगी, उसी लिमिट में श्यामसुन्दर उसको अच्छे-बुरे दिखाई देंगे।
(2) अगर मूर्ति में पूर्ण भगवान होने की भावना नहीं है और मूर्ति पूजा की, तो उसको भगवतपूजा न कह कर पत्थर पूजा कहेंगे।
(3) जीव के शरीर और उसकी चित्तवृत्ति का कोई भरोसा नही है। अत: किसी का अहंकार श्रेयस्कर नहीं है।
(4) हमारा संबंध केवल श्रीकृष्ण से ह। उस संबंध को पक्का करेगी भक्ति। पुरस्कार मिलेगा प्रेम। उसका अंतिम लाभ मिलेगा सेवा।
(5) भगवान का कोई भी कार्य अमंगलकारी नहीं है फिर माया हमारा अमंगल कैसे करेगी? माया का झापड़ खाकर ही हमें संसार से वैराग्य होता है, हम ईश्वर की ओर बढ़ते हैं।
(संदर्भ- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य
सर्वाधिकार सुरक्षित -राधा गोविन्द समिति, नई दिठ्ठस्रठ्ठके आधीन।)
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