जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज विरचित 'प्रेम-रस-सिद्धान्त' ग्रन्थ की विलक्षणता अकथनीय है
- 'प्रेम-रस-सिद्धान्त' ग्रन्थ के सम्बन्ध में कतिपय सम्मतियाँ ::::
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित अनेक भगवदीय साहित्य हैं, जिससे भगवत्प्रेम पिपासु जीवों ने अद्भुत लाभ प्राप्त किया है, कर रहे हैं और आगे भी करेंगे। इन समस्त ग्रन्थ-साहित्यों में 'प्रेम-रस-सिद्धान्त' उनका मूल ग्रन्थ है। इनकी विलक्षणता के सम्बन्ध में कुछ कहना यूँ तो तुच्छ, रसहीन मायिक जीव के लिये अनाधिकार चेष्टा ही है। किन्तु कुछ तो जानकारी परम आवश्यक है ताकि हमारे हृदय में इस रस-ग्रन्थ का पठन करने के लिये उत्सुकता जागे। इसी विचार को ध्यान में रखकर इस संबंध में कुछ बातें लिखी जा रही हैं। यूँ तो लेख कुछ लम्बा है तथापि सुधि पाठक-जन भावयुक्त हृदय से पढ़कर आनंदानुभूति अवश्य करेंगे ::::::
जगद्गुरु श्री कृपालु जी विरचित ग्रन्थ : प्रेम-रस-सिद्धान्त
(1) जगदगुरुत्तम स्वामी श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित ग्रन्थ 'प्रेम-रस-सिद्धान्त' भगवदीय मार्गीय साधक तथा प्रेम पिपासु जिज्ञासु जीवों के लिये अमूल्य निधि है।
(2) जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने इसकी रचना अपने जगद्गुरु बनने के पूर्व ही कर दी थी, इसका प्रथम संस्करण वर्ष 1955 में कानपुर से प्रकाशित हुआ था। श्री महाराज जी (श्री कृपालु जी) उस समय मात्र 32 वर्ष के थे। तब वे अपना नाम कृपालुदास लिखते थे। वर्ष 2015 में इस ग्रंथ के प्रकाशन/प्रगटीकरण का 60 वाँ वार्षिकोत्सव मनाया गया।
(3) इस विलक्षण 'प्रेम-रस-सिद्धान्त' ग्रन्थ में क्या है ::::
श्री कृपालु जी महाराज ने वेदों, शास्त्रों के प्रमाणों के साथ साथ दैनिक अनुभवों के उदाहरणों द्वारा सर्वसाधारण के लाभ को ध्यान में रखकर विषयों का निरुपण किया है। भगवान के प्रेम, सेवा तथा उनके माहात्म्य ज्ञान आदि के प्रति जिज्ञासु जीव इस ग्रन्थ के माध्यम से निश्चय ही अपने इच्छित को प्राप्त करेंगे। भगवान श्रीराधाकृष्ण की सर्वोच्च माधुर्यमयी भक्ति 'गोपीभाव' की साधना का भी इसमें निरुपण है। पूर्ववर्ती समस्त आचार्यों, मूल जगदगुरुओं, विविध शास्त्रों के सिद्धान्तों तथा उनके सिद्धांतों में आये विरोधाभासों का भी बड़ा सुन्दर समन्वय इस ग्रन्थ में किया गया है। कम शब्दों में अधिक कहा जाय तो यह ग्रन्थ गागर में सागर ही है, जिसका पात्र जितना बड़ा होगा वह उतना ही अधिक लाभ ले सकेगा।
(4) इस ग्रन्थ के प्राक्कथन में श्री कृपालु जी महाराज ने लिखा था ::::
'...मेरे प्रवचनों को सुन-सुनकर अधिकांश लोगों ने कहा कि महाराज जी! यदि ये प्रवचन छप जायँ तो बड़ा लाभ हो। मैंने बिना कुछ सोचे-विचारे ही लोगों के कहने में आकर, जो बुद्धि में आया लिख दिया। साथ में शास्त्रों, वेदों, पुराणों एवं अन्यान्य धर्मग्रंथों तथा महापुरुषों के आप्त-प्रमाण भी लिख दिये। अब जो कुछ भी है, आप लोगों के समक्ष है। मुझ अकिंचन की भेंट स्वीकार कीजिये एवं मुझे आशीर्वाद दीजिये कि मैं श्री राधाकृष्ण के चरणारविन्द मकरन्द का यत्किंचित पान कर सकूँ..' (कृपाकांक्षी, जगदगुरु: कृपालु:)
(5) 'प्रेम-रस-सिद्धान्त' ग्रन्थ की विषय-वस्तु क्या है?
अध्याय (1) जीव का चरम लक्ष्य, (2) ईश्वर का स्वरूप, (3) भगवत्कृपा, (4) शरणागति, (5) आत्म-स्वरुप, संसार का स्वरुप तथा वैराग्य का स्वरुप, (6) महापुरुष, (7) ईश्वर-प्राप्ति के उपाय, (8) कर्म मार्ग, (9) ज्ञान एवं ज्ञानयोग, (10) ज्ञान एवं भक्ति, (11) निराकार-साकार-ब्रम्ह एवं अवतार रहस्य, (12) भक्तियोग, (13) कर्मयोग की क्रियात्मक साधना, (14) कुसंग का स्वरुप।
इस ग्रन्थ के अन्त में कर्मयोग सम्बन्धी प्रतिपादन पर विशेष जोर दिया गया है, क्योंकि सम्पूर्ण संसारी कार्यों को करते हुये ही संसारी लोगों को अपना लक्ष्य प्राप्त करना है।
(6) प्रथम संस्करण के शुरुआती पृष्ठ पर श्री महाराज जी के स्वयं की हैंड राइटिंग में छपा था ::::
'साधकों को सादर समर्पित'
'मूल्य - परम प्रियतम श्रीकृष्ण के मधुर मिलन की व्याकुलता'.
(7) प्रथम प्रकाशन के समय श्री कृपालु जी महाराज ने प्रकाशक का नाम 'गोलोक धाम' दिया और यह संयोग कह लीजिए अथवा उनकी पूर्व निर्धारित योजना कि अपने सम्पूर्ण साहित्य के प्रकाशनार्थ उन्होंने कई वर्ष पूर्व 'राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली' को कॉपीराइट दिया था, यहाँ भी बिल्डिंग का नाम 'गोलोक धाम' ही है।
(8) 'प्रेम-रस-सिद्धान्त' ग्रन्थ के सम्बन्ध में कतिपय सम्मतियाँ ::::
'...श्री कृपालुदास जी कृत 'प्रेम रस सिद्धांत' पुस्तक मैंने देखी। प्रेम जैसे गहन विषय को उन्होंने सरल सुबोध भाषा में व्यक्त किया है...... प्रेम पथ के पथिकों को इस प्रेममयी पुस्तक को प्रेमपूर्वक पढऩा चाहिए, यही मेरी पाठकों से पुनीत प्रार्थना है। भगवान करें संसार में सभी प्रभुप्रेमी बनें और प्रभु के प्रेमामृत का पान करके कृतार्थ हो जायें...'. (श्री चैतन्य चरितावली के रचयिता प्रभुदत्त ब्रम्हचारी, संकीर्तन भवन, झूँसी प्रयाग)
'...श्रीपरमहंस कृपालुदासजी लिखित 'प्रेम रस सिद्धांत' नामक ग्रंथ का मैंने बड़े प्रेमपूर्वक अवलोकन किया। परमहंस (कृपालु जी) जी न केवल अधिकारी विद्वान हैं किंतु भक्तिरस के रसिक भी हैं। अतएव उनका यह सिद्धांत ग्रंथ सर्वथा पठनीय और मननीय है। जिज्ञासुओं के लिए इसमें प्रत्येक ज्ञातव्य बातें मिल जाएंगी और साधकों के लिए रस-विशेष की अच्छी जानकारी भी हो सकेगी। मैं इस ग्रंथ के अधिकाधिक प्रचार का आकाँक्षी हूँ...' (डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र ,MA, LLB, D Litt, सिविल लाइंस, राजनांदगाँव)
(9) कितनी भाषाओं में उपलब्ध है ::::
हिन्दी, अंग्रेजी ( (Philosophy of Divine Love),), सिन्धी, गुजराती, उडिय़ा तथा तेलगू भाषा।
(10) ग्रन्थ प्राप्ति के स्थान ::::
जगद्गुरु कृपालु परिषत के मुख्य आश्रम,
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के प्रचारक-गण,
जगद्गुरु कृपालु परिषत की साहित्य वेबसाइट www.jkpliterature.org
सन्दर्भ ::: प्रेम-रस-सिद्धान्त, साधन साध्य पत्रिका (मार्च 2018 अंक)
सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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