होली के आगमन का प्रतीक है यह दिन, जानिए इसका महत्व और तिथि
फाल्गुन माह की द्वितीया तिथि को फुलैरा दूज के रूप में मनाया जाता है। इस बार फुलैरा दूज 15 मार्च 2021 दिन सोमवार को मनायी जाएगी। यह दिन होली के आगमन का प्रतीक माना जाता है। इस दिन से होली के पर्व की तैयारियां आरंभ हो जाती हैं। इस दिन से उत्तर भारत के गांवो में जिस स्थान पर होली रखी जाती हैं वहां पर प्रतीकात्मक रूप में उपले या फिर लकड़ी रख दी जाती हैं। कई जगहों पर इस दिन को उत्सव की तरह मनाया जाता है। इस दिन से लोग होली में चढ़ाने के लिए गोबर की गुलरियां भी बनाई जाती हैं।
जानते हैं इस दिन का महत्व
फाल्गुन माह में फुलैरा दूज का विशेष महत्व माना गया है। इस दिन को अबूझ मुहूर्त भी मानते हैं। फुलैरा दूज को मांगलिक कार्यों को करने के लिए बहुत ही शुभ दिन माना जाता है। माना जाता है कि फुलैरा दूज के दिन किसी भी मुहूर्त में शादी संपन्न की जा सकती है। इस दिन उत्तर भारत में भगवान कृष्ण और राधा का फूलों से श्रंगार करके पूजन किया जाता है। इस दिन से लेकर लोग होली के दिन तक अपने घरों में शाम के समय प्रतिदिन गुलाल और आटे से रंगोली बनाते हैं।
फुलैरा दूज तिथि आरंभ और समाप्त समय
फाल्गुन द्वितीया आरंभ- 14 मार्च 2021 को शाम 05 बजकर 06 मिनट से
फाल्गुन द्वितीया समाप्त- 15 मार्च 2021 को शाम 06 बजकर 49 मिनट पर
क्या होती हैं गुलरियां
गुलरियां गोबर से बनाई जाती हैं। इन्हें बनाने का कार्य फुलैरा दूज से ही शुरू कर दिया जाता है। इसमें महिलाएं गोबर के छोटे-छोटे गोले बनाकर उसमें उंगली से बीच में सुराख बना देती हैं। सूख जाने के बाद इन गुलरियों की पांच सात मालाएं बना ली जाती हैं और होलिका दहन के दिन इन गुलरियों को होली की अग्नि में चढ़ा दिया जाता है।
ब्रज और वृंदावन में होता है खास उत्सव
फुलैरा दूज के दिन ब्रज और वृंदावन में बहुत ही धूम देखने को मिलती है। इस दिन मथुरा वृंदावन और ब्रज में मंदिरों को फूले से सजाया जाता है, इसके साथ ही फूलों की होली खेली जाती है। मंदिरों में भगवान कृष्ण के होली के भजन गाए जाते हैं। हर तरफ गुलाल और फूलों से वातावरण सराबोर हो जाता है।
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