आज है होली का महामहोत्सव, पढ़ें जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा होली के महत्व पर दिया गया प्रवचन!!
'होली महामहोत्सव 2021'
पर समस्त भगवत्प्रेमी जनों को हार्दिक शुभकामना!!
भूमिका ::: आज होली का महापर्व है। 'जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन' के आज के 238 वें भाग में जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'होली' के सम्बन्ध में रचित दोहा तथा इसके माहात्म्य पर उनके द्वारा निःसृत प्रवचन के कुछ अंशों द्वारा वास्तविक होली मनाने के विषय में ज्ञान प्राप्त करेंगे। 'होली' पर श्री कृपालु जी महाराज ने अनगिनत दोहों व पदों की रचना की है, उन सबका वर्णन यहाँ संभव नहीं है, अतः सबके आत्मिक लाभार्थ कुछ अंश प्रस्तुत किये गये हैं :::
०० जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'होली' के संबंध में रचित दोहा तथा उसका सरलार्थ :::
सब पर्व लक्ष्य एक गोविंद राधे,
जग ते हटा के मन हरि में लगा दे..
(सभी पर्वों का एकमात्र लक्ष्य यही होता है कि हम अपना मन संसार से हटाकर भगवान में लगाने का अभ्यास करें.)
ऐसा रंग डारो श्याम गोविंद राधे,
तनु ही न मन श्याम रंग में डुबा दे..
(जीवात्मा भगवान श्रीकृष्ण से कहती है कि हे श्यामसुन्दर! मुझे सांसारिक रंगों की चाह नहीं है, मेरी तो कामना यही है कि आप मुझ पर अपने प्रेम का ऐसा रंग डालें जिसमें मेरा तन ही नहीं, अपितु सर्वस्व ही आपके प्रेम-रंग में रँग जाय.)
०० जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'होली-माहात्म्य' या 'होली के उद्देश्य' के संबंध में दिये गये प्रवचन का एक भाग :::
'..होली और भक्ति पर्यायवाची ही मानना चाहिए. होली का पर्व निष्काम प्रेम का पर्व है। भक्ति की विजय का द्योतक है। भक्त शिरोमणि प्रह्लाद की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान् ने नृसिंह अवतार लेकर हिरण्यकशिपु राक्षस का संहार किया जो केवल राक्षस ही नहीं था, इतना बड़ा तपस्वी था कि उसके तप से स्वर्गलोक भी जलने लगा था। किन्तु इतना बड़ा तपस्वी भी भक्ति से हार मान गया। अतः प्रह्लाद चरित्र यह सिद्ध करता है कि समस्त ज्ञान-योग आदि से भी अनंत गुना उच्च स्थान है भक्ति का। इसी खुशी में यह उत्सव मनाया जाता है। उत्सव मनाने का ढंग लोगों ने अनेक प्रकार से अपना लिया। होली मनाने का सर्वश्रेष्ठ ढंग यही है कि रूपध्यान युक्त श्री राधा कृष्ण नाम, रुप, लीला, गुण, धाम, जन का गुणगान करुणक्रन्दन करते हुए किया जाय...'
०० जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'होली-माहात्म्य' या 'होली के उद्देश्य' के संबंध में दिये गये प्रवचन का दूसरा भाग :::
'..अधिकतर लोग यही समझते हैं कि रंग, गुलाल से खेलना, हुड़दंगबाजी करना, तरह तरह के स्वादिष्ट व्यंजन खाना यही होली मनाने से तात्पर्य है। वास्तव में होली का पावन पर्व श्रीकृष्ण की निष्काम अनन्य भक्ति का पर्व है। होली मनाने का अभिप्राय ही है प्रह्लाद चरित्र को समझते हुए उनके भक्ति सम्बन्धी सिद्धान्तों का अनुसरण करना। अत: होली मनाने का सर्वश्रेष्ठ ढंग यही है कि रूपध्यान युक्त श्री राधा कृष्ण नाम, रूप, लीला, गुण, धाम, जन का गुणगान करुणक्रन्दन करते हुये किया जाय। अहर्निश भगवन्नाम संकीर्तन ही होली महोत्सव है। यही कलयुग में भगवत्प्राप्ति का सर्वश्रेष्ठ साधन है..'
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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