शुद्ध तथा अशुद्ध वस्तु से प्यार के फल में क्या अन्तर है? अलौकिक प्रेम का क्या अर्थ है और वो किसके पास होता है?
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 251
साधक का प्रश्न ::: शुद्ध वस्तु से प्यार व अशुद्ध वस्तु से प्यार के परिणाम में क्या अन्तर है? अलौकिक प्यार का अर्थ क्या है व किसके पास है?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: शुद्ध वस्तु से जो अशुद्ध वस्तु प्यार करेगी तो वो शुद्ध हो जायेगी। वो किसी भी भाव से प्यार करे। और अगर वो अशुद्ध वस्तु से प्यार करती है तो चाहे जो भाव हो, उसका परिणाम अशुद्ध ही मिलेगा।
कृष्ण भक्त: सकामोऽपि वरोऽन्य सेवकात्खलु।
निष्कामादपि तत्कामो यतो मोक्षाय कल्पते।।
शुद्ध वस्तु से प्यार करने वाला सकाम भी हो तो गोलोक जायेगा और संसार से कोई निष्काम प्रेम भी करे तो भी संसार मिलेगा। चौरासी लाख योनियाँ मिलेंगी उसी में आओ-जाओ। अरे! अनन्त पिता बनाये हम लोगों ने, अनन्त माँ बनाई, अनन्त बेटा-बेटी बनाये, अनन्त स्त्री-पति बनाये, हर जन्म में बनाते ही हैं, कहाँ है वो? बड़ी-बड़ी डींग हाँकते थे - ये हमारा बेटा है, ये हमारी बीवी है, ये हमारी माँ है। काहे की बीवी, बेटा, माँ? सब मर गये, अपने-अपने कर्म के अनुसार गये। एक नरक गया, एक स्वर्ग गया, एक मृत्युलोक में आया, वो किसी का बेटा बना, वो किसी की बीवी बनी फिर दुबारा। केवल भगवान् का नाता ही ऐसा नाता है जो सनातन है और सब नाते क्षणिक हैं, नश्वर हैं। उसका परिणाम दु:ख है, वर्तमान में भी और भविष्य में भी।
एक पिता एक बेटे से कहता है, कि बेटा! पानी पिला दे और बेटा दौड़कर जाता है, तो पिता कहता है - 'शाबाश! कितना बढिय़ा बेटा है हमारा, हम तो बड़े लकी हैं।' दस मिनट बाद फिर दोबारा पिता कहता है बेटे से - 'जरा चश्मा ला दे!' वो नहीं उठता। 'मैंने कहा वो मेज पर चश्मा रखा है ला दे।' फिर भी नहीं उठा। 'राक्षस पैदा हुआ है।' लो! अभी श्रवण कुमार था, अभी राक्षस हो गया।
संसार वालों का काम कर दो, उनकी गुलामी कर दो, तो आप बड़े अच्छे हो। बीवी बड़ी अच्छी, पिता बड़ा अच्छा, माँ बड़ी अच्छी। काम न करो उनका तो सब बुरे हैं, गोलियाँ चल जाती हैं, जहर दे देते हैं एक दूसरे को, मर्डर कर देते हैं, तलाक दे देते हैं, ये सब संसार में होता है। और दावा ये करते हैं लोग कि बेटा! हम तुमसे प्यार करते हैं। प्यार! तुम प्यार शब्द का अर्थ नहीं जानते हो, क्या प्यार करोगे? तुम क्या जानो प्यार क्या होता है?
'प्यार' तो अलौकिक वस्तु है। ये भगवान् और महापुरुष के पास है। तुम तो प्यार के भूखे हो, भिखारी हो। पिता से प्यार माँग रहे हो, माँ से प्यार माँग रहे हो, बीवी से माँग रहे हो, बेटे से माँग रहे हो। तुम क्या प्यार दोगे किसी को? जिसको आनन्द अभी मिला ही नहीं है, दूसरे को क्या देगा वो? एक गरीब अनाउंस कर दे कि जो व्यक्ति जो माँगेगा हम देंगे, कल सबेरे आ जाएं। भीड़ इकट्ठी हो जायेगी। वो कह देगा मेरे पास जो है वो ले लो। क्या है? कुछ नहीं है। तुमने तो अनाउंस किया था जो माँगेगा। हाँ-हाँ तो जो मेरे पास है वो माँगो, हम दे देंगे। कुछ है ही नहीं मेरे पास, तो हम क्या देंगे? हाँ, सब भिखारी हैं आनन्द के, प्रेम के और वह है नहीं किसी के पास। धोखा सबको है। एक दूसरे से माँग रहे हैं। अनेक चार सौ बीस करके उसको बेवकूफ बना रहे हैं, लेकिन वो बेचारा क्या देगा? है ही नहीं उसके पास, वो तो तुमसे सुख चाहता है । गोपियों का प्रेम शुद्ध पर्सनैलिटी के प्रति था, इसलिये उनको शुद्ध फल मिला।
(प्रवचनकर्ता : जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)
00 सन्दर्भ : 'प्रश्नोत्तरी' भाग - 2 (पृष्ठ 171-173)
00 सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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