पंच केदार मंदिर , जहां होती है शिव के विभिन्न रूपों की पूजा
पंचकेदार (पांच केदार) हिन्दुओं के पांच शिव मंदिरों का सामूहिक नाम है। ये तमाम मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के गढ़वाल क्षेत्र में स्थित हैं। माना जाता है कि इन मंदिरों का निर्माण समय-समय पर पाण्डवों ने किया था। इनमें शामिल हैं- केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मद्महेश्वर और कल्पेश्वर।
1. केदारनाथ मंदिर-समुद्र तल से 3583 मीटर की ऊंचाई पर है। गंगोत्री यात्रा के बाद केदारनाथ यात्रा का विधान है जो गंगोत्री से लगभग 343 किलोमीटर दूरी पर जनपद रुद्रप्रयाग में स्थित है। केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्राचीन मंदिर की ऊंचाई 80 फीट है, जो एक विशाल चबूतरे पर खड़ा है। इस मंदिर के निर्माण में भूरे रंग के पत्थरों का उपयोग किया गया है। यह भव्य मंदिर पाण्डवों की शिव भक्ति, उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति तथा उनके बाहुबल का जीता जागता प्रमाण है। मंदिर के गर्भ गृह में केदारनाथ का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है, जो अनगढ़ पत्थर का है। पुराणों के अनुसार केदार महिष अर्थात् भैंसे का पिछला अंग है।
2. भगवान मद्महेश्वर- द्वितीय केदार के रूप में भगवान शिव के मद्महेश्वर रूप की पूजा की जाती है। मद्महेश्वर चौखंभा शिखर की तलहटी में 3289 मीटर की ऊंचाई स्थित मद्महेश्वर मंदिर में भगवान शिव की पूजा नाभि लिंगम् के रूप में की जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार नैसर्गिक सुंदरता के कारण ही शिव-पार्वती ने मधुचंद्र रात्रि यहीं मनाई थी। मान्यता के अनुसार यहां का जल इतना पवित्र है कि इसकी कुछ बूंदें ही मोक्ष के लिए पर्याप्त मानी जाती हैं।
3. तुंगनाथ मंदिर - तृतीय केदार के रूप में प्रसिद्ध तुंगनाथ मंदिर सबसे अधिक समुद्र तल से 3680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां भगवान शिव की भुजा के रूप में पूजा-अर्चना होती है। चंद्रशिला चोटी के नीचे काले पत्थरों से निर्मित यह मंदिर हिमालय के रमणीक स्थलों में सबसे अनुपम है। मन्दिर स्वयं में कई कथाओं को अपने में समेटे हुए है। कथाओं के आधार पर यह माना जाता है कि जब कुरुक्षेत्र के मैदान में पांडवों के हाथों काफ़ी बड़ी संख्या में नरसंहार हुआ, तो इससे भगवान शिव पांडवों से रुष्ट हो गये। भगवान शिव को मनाने व प्रसन्न करने के लिए पांडवों ने इस मन्दिर का निर्माण कराया।
4. रुद्रनाथ मंदिर- यह मंदिर चौथे केदार के रूप में जाना जाता है। यह मंदिर समुद्र तल से 2286 मीटर की ऊंचाई पर एक गुफ़ा में स्थित है, जिसमें भगवान शिव की मुखाकृति की पूजा होती है। रुद्रनाथ के लिए एक रास्ता उर्गम घाटी के दमुक गांव से गुजरता है। लेकिन बेहद दुर्गम होने के कारण श्रद्धालुओं को यहां पहुंचने में दो दिन लग जाते हैं, इसलिए वे गोपेश्वर के निकट सगर गांव होकर ही यहां जाना पसंद करते हैं। भारत में शिव को समर्पित तमाम मंदिरों में उनके लिंग की ही पूजा की जाती है। केवल रुद्रनाथ मंदिर में उनके मुख की पूजा होती है। मंदिर से जुड़ा यही अद्वितीय तथ्य इस मंदिर को सबसे अलग और रोचक बनाता है। यहां पूजे जाने वाले शिव जी के मुख को नीलकंठ महादेव कहते हैं। रुद्रनाथ मंदिर में भगवान शंकर के एकानन यानि मुख की पूजा की जाती है, जबकि संपूर्ण शरीर की पूजा नेपाल की राजधानी काठमांडू के पशुपतिनाथ में की जाती है।
5. कल्पेश्वर मंदिर- पांचवे केदार के रूप में कल्पेश्वर को पूजे जाने की परम्परा है। यहां भगवान शिव की जटा की पूजी जाती हैं। मान्यता है कि इस स्थल पर दुर्वासा ऋषि ने कल्प वृक्ष के नीचे घोर तपस्या की थी। जिसके कारण यह क्षेत्र कल्पेश्वर या कल्पनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। एक किवदंती के अनुसार देवताओं ने असुरों के अत्याचारों से त्रस्त होकर कल्पस्थल में भगवान की आराधना की अभय का वरदान प्राप्त किया था। मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव की जटा जैसी प्रतीत होने वाली चट्टान की पूजा की जाती है।
हर साल सावन के महीने में खासकर इन मंदिरों में भक्तों की भीड़ लगी रहती है।
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