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- सरसों के तेल का इस्तेमाल शरीर की मालिश से लेकर भोजन पकाने और आयुर्वेद में किया जाता है। सर्दियों में खासतौर से सरसों तेल से शरीर की मालिश फायदेमंद होती है। यदि आप भी शरीर में सरसों तेल लगाते हैं, तो एक बार इसके फायदे भी जान लें....शुद्ध सरसों के तेल का प्रयोग न सिर्फ भोजन बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है बल्कि इसके उपयोग से कई समस्याओं को दूर किया जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी सरसों के तेल को खाने के अलावा शरीर की मालिश करने और अन्य समस्याओं में प्रयोग किया जाता है।सरसों के तेल में कई मेडिसिनल प्रॉपर्टीज ( पाए जाते हैं। इसमें एंटीबैक्टीरियल और एंटीफंगल गुण पाए जाते हैं। सेलेनियम और मैग्नीशियम की उच्च मात्रा होने के चलते इसमें एंटीइंफ्लामेट्री गुण भी पाए जाते हैं। यह पसीने की ग्रंथियों को उत्तेजित करने में मदद करता है और शरीर के तापमान को कम करता है। पारंपरिक दवाओं में, सरसों के तेल का उपयोग गठिया, मांसपेशियों की मोच और तनाव से जुड़े दर्द को दूर करने के लिए किया जाता है। सरसों का तेल पेट के रोग, त्वचा और बालों के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। .जानिए सरसों के तेल के फायदे.....- शोध से यह बात सामने आई है कि सरसों के तेल में सब्जियां पकाने से पेट के रोग दूर हो जाते हैं। वैसे भी खाने में सरसों के तेल का इस्तेमाल सबसे ज्यादा होता है। अगर आप किसी तेल में सब्जी पका रहे हैं तो सरसों का तेल सबसे अच्छा माना जाता है। यह तेल एक उत्तेजक के रूप में जाना जाता है और आंत को पाचन रस का उत्पादन करने में मदद करता है, जो पाचन प्रक्रिया सुधारने में मदद करता है। साथ ही यही प्रक्रिया हमारे सिस्टम में गैस्ट्रिक रस के उत्पादन को बढ़ाकर भूख बढ़ाने में मदद करती है।सरसों के तेल से करें शरीर की मालिशसरसों के तेल की शरीर में मालिश करने से न सिर्फ शरीर का ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है, बल्कि मांसपेशियां मजबूत हो जाती हैं। त्वचा में कसाव आता है। सप्ताह में 3 दिन आप सरसों का तेल मालिश कर सकते हैं। सरसों का तेल मालिश करने का सही तरीका यह है कि आप इसे एक कटोरी में गुनगुना कर लें और सुबह सवेरे उठकर सुर्योदय से पहले इसकी मालिश करें। अगर आप जोड़ों के दर्द से परेशान हैं तो जोड़ों में नियमित रूप से सरसों के तेल की मालिश करें।उबटन में करें सरसों और सरसों के तेल का इस्तेमालसरसों का उबटन बहुत फायदेमंद होता है। इसका इस्तेमाल बच्चों के साथ-साथ वयस्क भी कर सकते हैं। यह ब्लड सर्कुलेशन, चेहरे की झुर्रियां, त्वचा संबंधी संक्रमण को दूर करने के साथ नमी को बरकरार रखता है। इसे आमतौर पर सर्दियों में लगाना फायदेमंद होता है। उबटन बनाने के लिए सरसों को पीसकर उसमें थोड़ी मात्रा में तेल मिलाकर तैयार किया जाता है।नाभि में लगाएं सरसों का तेलआयुर्वेद के अनुसार, नाभि में सरसों का तेल लगाने आपके होंठ मुलायम रहते हैं। आंखों की रोशनी बढ़ाने में मददगार हो सकता है। सोने से पहले नाभि में सरसों का तेल लगाना फायदेमंद होता है।बालों में लगाएं सरसों का तेलसिर में सरसों के तेल की मसाज करने से रूसी, बालों का झडऩा और असमय सफेद बाल की समस्या दूर हो जाती है। इसके लिए सप्ताह में 3 दिन सरसों के तेल से सिर में मसाज की जा सकती है।सर्दी -खांसी मेंसरसों का तेल सर्दी - खांसी से त्रस्त लोगों के लिए फायदेमंद होता है क्योंकि यह बंद छाती और नाक की रुकावट को खोलने में मदद करता है। सरसों के तेल की तासीर गर्म होती है जो खांसी- जुकाम को ठीक करती है। लहसुन के साथ सरसों के तेल की छाती और पीठ में मालिश करने से सर्दी- जुकाम में फायदा होता है। सरसों के तेल को गर्म पानी में डालकर उसकी भाप लेने से भी फायदा पहुंचता है। सरसों के तेल की तेज गंध श्वसन प्रणाली को गर्म करेगी और इस तरह से यह कफ को बनाने से रोककर शरीर को सुरक्षा प्रदान करती है।----
- देश के जंगलों में बहुत सारी ऐसी जड़ी - बूटी की पौधे होते हैं जिसके बार में आम लोगों को कम जानकारी होती है उनमें से एक है काली हल्दी । काली हल्दी को पीली हल्दी से ज्यादा फायेदमंद और गुणकारी माना जाता है। इसमें अद्भुत शाक्ति होती है। काली हल्दी बहुत ही दुर्लभ मात्रा में पाई जाती है और देखी जाती है। काली हल्दी दिखने में अंदर से हल्के काले रंग की होती है। माना जाता है कि तंत्र शास्त्र में काली हल्दी का प्रयोग वशीकरण, धन प्राप्ति और अन्य तांत्रिक कार्य के लिए किया जाता है। काली हल्दी को सिद्ध करने के लिए होली का दिन बहुत ही लाभकारी माना जाता है। माना जाता है कि काली हल्दी में वशीकरण की अद्भुत क्षमता होती है।रोगों के उपचार में काली हल्दी का प्रयोगआदिवासी समुदायों के द्वारा इसका उपयोग निमोनिया, खांसी और ठंड के उपचार के लिए किया जाता है। इसके ताजे राइजोम को माथे पर पेस्ट के रूप में लगाते है। जो माइग्रेन से राहत के लिए या मस्तिष्क और घावों पर शरीर के लिए किया जाता है। ल्यूकोडार्मा, मिर्गी, कैंसर, और एच आई वी एड्स की रोकथाम में भी यह उपयोग होती है।चीनी चिकित्सा में कैंसर के इलाज में इसका उपयोग किया जाता है। इसमें सुंगधित वाष्पशील तेल पाया जाता है जो रक्त से अत्यधिक लिपिड निकालने के लिए, प्लेटलेट्रस के एकत्रीकरण को कम करने और सूजन को कम करने में मदद करता है।देखें इसके औषधीय उपयोग-1. ऑस्टियोआर्थराइटिस जोड़ों में दर्द और जकडऩ पैदा करने वाली बीमारी है। यह रोग मुख्यत: जोड़ों की हड्डियों के बीच रहने वाली आर्टिकुलर कार्टिलेज को नुकसान देता है। काली हल्दी में इबुप्रोफेन पाया जाता है जिससे पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस का दर्द ठीक किया जा सकता है।2. त्वचा की खुजली रोके- यह रोग अधिकतर खून की खराबी से उत्पन्न होते हैं। इसके बचाव के लिए स्वच्छ वातावरण में रहना चाहिए ! इसके साथ आप काली हल्दी का भी प्रयोग कर सकती है। इसमें एंटी इन्फ्लैमटॉरी गुण होते हैं जिससे त्वचा की खुजली ठीक की जाती है।3. लाल चकत्ते मिटाए- रूई के फाहे को काली हल्दी वाले दूध में भिगो कर चकत्ते वाले भाग पर 15 मिनट के लिये लगायें, इससे त्वचा पर लाली और चकत्ते कम होंगें। साथ ही इससे आपकी त्वचा पर निखार और चमक आयेगी।4. पेट ठीक करे- हल्दी के सेवन से आंतों के अच्छे बैक्टीरिया को पर्याप्त मात्रा में पैदा होते हैं। फलस्वरूप एसिड इत्यादि से पेट की बल्क्हेड सुरक्षित रहती हैं तथा पेप्टिक अलसर की संभावनाएं बहुत कम रह जाती हैं। ॉ5. अल्सर -अल्सर रोग के रोगियों को मेगोनंसम हल्दी के उपयोग से कतराना नहीं चाहिए। क्योंकि हल्दी में कुछ ऐसे तत्व पाए जाते हैं जिससे पेट में एसिड नहीं बनता और अल्सर जैसी गंभीर बीमारी नहीं होती।6. कोलन कैंसर से बचाव- हल्दी में मौजूद एक महत्वपूर्ण तत्व करक्युमिन कोलन कैंसर से लडऩे में मददगार हो सकता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक सूजन दूर करने वाली एक महत्वपूर्ण दवा के साथ मरीज को करक्युमिन देना उसके लिए फायदेमंद हो सकता है।7. फेफड़े की बीमारियों में राहत- काली हल्दी का उपयोग अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, न्यूमोनिया जैसी बीमारियों में किया जाता है। अगर आप नयी या पुरानी किस भी प्रकार की सुखी गीली खांसी से परेशान हैं तो हल्दी इसके लिए रामबाण इलाज है।--
- भारतीय संस्कृति और खानपान में काले तिन का काफी महत्व है। काला तिल सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है। यह न सिर्फ उच्च रक्तचाप को ठीक रखता है बल्कि पाचन की समस्या को भी दूर करता है। सफेद तिल की तरह ही काले तिल भी एक तरह के बीज होते हैं। जो आमतौर हर भारतीय घरों में उपलब्ध होता है। काले तिल अलग-अलग व्यंजनों में जायका बढ़ाने के लिए शामिल किया जाता है। काला तिल आवश्यक पोषक तत्वों से भी भरे होते हैं जो हमारे संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए जादू की तरह काम करते हैं। आज जानते हैं, इसके सेवन से क्या - क्या लाभ मिलते हैं।रक्तचाप को नियंत्रित करता हैउच्च रक्तचाप को आमतौर पर उच्च रक्तचाप के रूप में जाना जाता है जो दुनिया भर में सबसे आम स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है। ये छोटे बीज मैग्नीशियम से भरे होते हैं, जो उच्च रक्तचाप को रोकने में फायदेमंद है। बीज भी पॉलीअनसेचुरेटेड फैट और सेसमिन में समृद्ध हैं, जो रक्तचाप को विनियमित करने में मदद करता है।पाचन में सुधार करता हैकाला तिल कब्ज जैसे पाचन के मुद्दों के इलाज में फायदेमंद होते हैं क्योंकि ये फाइबर और असंतृप्त फैटी एसिड की मात्रा से भरपूर होते हैं। वे मल त्याग में सुधार करते हैं और पाचन प्रक्रिया को सुचारू बनाते हैं।कैंसर को रोकता हैकाला तिल एंटीऑक्सिडेंट और फाइटोकेमिकल्स होते हैं जो शरीर को कैंसर पैदा करने वाली कोशिकाओं से बचाते हैं। तिल के बीज में मौजूद सेसमिन आपके शरीर को फ्री रैडिकल्स को नुकसान पहुंचाने से रोकता है।मूड में सुधार होता हैकाले तिल में कैल्शियम और मैग्नीशियम की उच्च मात्रा तनाव से राहत दे सकती है। इन बीजों के सेवन से सेरोटोनिन का उत्पादन होता है, जो मूड को संतुलित करता है और दर्द को कम करता है।श्वसन स्वास्थ्य के लिए अच्छा हैकोरोना वायरस महामारी की शुरुआत के बाद से हर कोई अपने श्वसन स्वास्थ्य को लेकर अधिक सतर्क हो गए हैं। अस्थमा सहित श्वसन संबंधी समस्याओं से पीडि़त लोगों के लिए तिल के बीज में मैग्नीशियम अत्यधिक फायदेमंद होता है।दिल की सेहत में सुधारतिल के बीज में मौजूद पोषक तत्व कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में मदद करते हैं। तिल के बीज का नियमित रूप से सेवन करने से शरीर में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित करने और दिल की गंभीर समस्याओं को रोकने में मदद मिल सकती है।काले तिल का सेवन कैसे करें?अपने दैनिक आहार में तिल के बीज को जोडऩे का सबसे आसान तरीका उन्हें अपने सलाद में शामिल करना है। यह आपके सलाद को स्वादिष्ट और पौष्टिक बना देगा। इसके अलावा, अपनी रोटियों के आटे में कुछ तिल मिलाएं। यह आपकी चपातियों में एक बढिय़ा स्वाद जोड़ देगा और पोषण मूल्य को बढ़ा देगा। फिर तिल के लड्डू और पापड़ी तो एक विकल्प हैं ही।
- अपराजिता एक ऐसा पौधा है, जो कई औषधीय गुणों से भरपूर होता है, इसका इस्तेमाल कई रोगों को दूर करने के लिए किया जाता है। अपराजिता का वानस्पतिक नाम है जिसे बहुत सी शारीरिक दुर्बलताओं को खत्म करने के लिए जाना जाता है। यह सफेद और नीले रंगों का होता है। नीली अपराजिता लोगों को आसानी से मिल जाती है लेकिन सफेद रंग की अपराजिता का मिलना दुर्लभ माना जाता है। श्वेत और नीले अपराजिता दोनों के गुण समान होते हैं। आयुर्वेद में अपराजिता को बहुत ही उपयोगी जड़ी बूटी के रूप में माना गया है। ये एक ऐसा पौधा है, जिसके कई औषधीय उपयोग है और साथ ही ये एक बहुत ही सुंदर घास से बनी होती है। आयुर्वेद के मुताबिक, अपराजिता का पौधा शरीर की संचार तंत्रिका और मनोवैज्ञानिक सिस्टम पर एक ही बहुत सुखदायक प्रभाव पड़ता है।अपराजिता, एक औषधि पौधा है, जिसका आयुर्वेद में अनेक रोगों के इलाज में प्रयोग होता आ रहा है। यह एक सुंदर सा दिखने वाला पौधा है, और इसके फूल का आकार गाय के कण जैसा होने से इसे गोकर्णिका भी कहा जाता है। दुनियाभर में अपराजिता पौधे के कई औषधीय रूपों में इस्तेमाल किया जाता हैं। अपराजिता पौधा सामान्य तौर पर पंचकर्म उपचार में प्रयोग किया जाता है। पंचकर्म उपचार शरीर में मौजूद विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालकर शरीर के संतुलित बनाने में मदद करता है। आयुर्वेद की मानें तो अपराजिता एक ऐसी जड़ी बूटी है, जिसे मेध्या श्रेणी के अंतर्गत वर्गीकृत किया जाता है।अपराजिता पौधे के स्वास्थ्य लाभमेध्या जड़ी बूटियां याददाश्त और लर्निंग जैसी चीजों को बेहतर बनाने में बहुत मदद करती है। इतना ही नहीं ये मस्तिष्क के विकास की समस्याओं और इम्पैरेड कॉग्निटिव फंक्शन जैसी समस्याओं से पीडि़त बच्चों के लिए बेहद फायदेमंद मानी जाती है। अपारिजता का प्रयोग डिटॉक्सिफिकेशन और मस्तिष्क की आल राउंड क्लीनिंग में भी काफी मदद करती है- ऐसा माना जाता है कि अपराजिता शरीर के अंदर मौजूद विषाक्त पदार्थों के लिए ये एक ही बहुत प्रभावी उपचार है। इसके साथ-साथ इसका प्रयोग नर्वस सिस्टम को ठीक करने के लिए के लिए भी किया जाता है। अपराजिता पौधे की जड़ का लेप बनाकर अक्सर त्वचा पर प्रयोग किया जाता है, जिससे चेहरे की चमक बढ़ती है। यह आंखों पर एक बहुत ठंडा प्रभाव डालती है साथ ही आंखों की रोशनी में सुधार करने में मदद करता है।-अपराजिता पौधा स्माल पॉक्स जैसी बीमारी में भी फायदेमंद माना जाता है। इसके अलावा यह स्पर्म जनरेशन,बुखार, दस्त, गेस्ट्राइटिस, मतली, उल्टी, जैसी आम स्थितियों में कारगर माना जाता है। यह हृदय और श्वसन प्रणाली को मजबूत बनाने में भी मदद करता है।-उदर, कफ विकार, ज्वर, मूत्रविकार, शोथ, नेत्ररोग, उन्माद, आमवात, कुष्ठ, विष विकार में अपराजिता का भी उपयोग होता है।-आधासीसी जैसी समस्या से जूझ रहे लोगों को अपराजिता की जड़, फली, बीज को बराबर भाग में लेना चाहिए। सभी को पीस कर थोड़ा पानी मिलाएं और इसकी कुछ बूंदे नाक में डालें। ऐसा करने से इस रोग में फायदा होता है।-अपराजिता में मौजूद दर्द निवारक, जीवाणुरोधी गुण होते है, जो दांतों के दर्द में आराम के लिए जाने जाते हैं। इसके लिए आप अपराजिता की जड़ का पेस्ट और काली मिर्च का चूर्ण को मिलाकर मुंह में रख लें।-गले के रोग (गलगण्ड) में श्वेत अपराजिता की जड़ का पेस्ट बनाकर उसमें घी अथवा गोमूत्र मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है।-अपराजिता जड़ के चूर्ण को गर्म पानी या दूध के साथ दिन में 2 से 3 बार लेने से पेशाब में होने वाली जलन दूर होती है।(नोट- कोई भी उपाय करने से पहले योग्य चिकित्सक की अवश्य सलाह लें)-
- रूइबोस चाय कई बीमारियों के इलाज के लिए पी जाती है। ये बेहतर एंटीऑक्सीडेंट का स्रोत है जो पाचनतंत्र प्रणाली को ठीक रखती है।पिछले कुछ सालों से रूइबोस चाय ने लोगों पर अपनी गहरी छाप छोड़ी है। इसकी एक बड़ी वजह यह है यह हर्बल चाय स्वास्थ्य को बेहतर करने में महति भूमिका अदा करता है। रूइबोस चाय हालांकि मूलत: दक्षिण अफ्रीका के केप आफ गुड होप से सम्बंधित है। इसमें इस्तेमाल होने वाली जड़ी बूटी महज केप आफ गुड होप के स्लोप में ही पायी जाती है। यहां के स्थानीय लोग रूइबोस चाय सैकड़ों सालों से पी रहे हैं। इसका बाजारीकरण होना सन् 1904 से ही शुरु हो गया है। मौजूदा समय में इस चाय की ख्याति देश विदेश में फैल रही है। भारत भी इसकी ख्याति से अछूता नहीं रह सका। इस चाय का हल्का और सुगंधित स्वाद है। विशेषज्ञों के मुताबिक बीमार पडऩे पर यह चाय पीना स्वास्थ्यवर्धक होता है।रूइबोस चाय न सिर्फ भारत में ख्याति प्राप्त कर रहा है बल्कि जापान, जर्मनी, हालैंड और इंग्लैंड भी इसके फायदों से अनछुआ नहीं है। यह ग्रीन टी के मुकाबले 50 गुना ज्यादा बेहतर है। इसमें एंटीआक्सीडेंट बहुत ज्यादा हैं। यह एंटीआक्सीडेंट सेल्स के स्वास्थ्य को बेहतर करता है। यही नहीं कैंसर सम्बंधित लक्षणों को दूर भगाने में सहायक करता है। यह विटामिन सी का बेहतरीन स्रोत है। इसके अलावा इसमें टेनिन्स कम होता है परिणामस्वरूप पाचनतंत्र प्रणाली सुचारू रूप से काम करता है।जो लोग अस्थमा, एक्जीमा, त्वचा सम्बंधी बीमारी आदि से परेशान हैं, उनके लिए रूइबोस चाय लाभकर है। इसके अलावा जो लोग हाइपरटेंशन के मरीज है, उनके लिए भी यह चाय किसी रामबाण इलाज की तरह है। रूइबोस चाय पोलीफेनल्स का बेहतरीन स्रोत हैं साथ ही इसमें एस्पेलेथीन और नोथोफेगिन भी मौजूद हैं। यही नहीं सामान्यत बुखार में भी रूइबोस चाय बेहतरीन विकल्प है। हाइपरटेंशन के मरीजों के लिए रूइबोस चाय बेहतरीन विकल्प है। असल में रूइबोस चाय पीने से रक्तचाप को कम किया जा सकता है। रूइबोस चाय हड्डियों और दांत को स्वस्थ रखने के लिए उपयोगी है। इसमें कई किस्म के मिनरल पाए जाते हैं जो हड्डियों और दांतों को मजबूत बनाए रखने में मदद करते हैं। रूइबोस चाय में मैंगनीज़, कैल्शियम और फ्लोरीड बहुतायत में पाया जाता है। परिणामस्वरूप रूइबोस चाय पीने से कमजोर हड्डियां, ज्वाइंट्स में दर्द आदि समस्याओं से आसानी से निपटा जा सकता है। रूइबोस चाय में एल्फा हाइड्रोक्सी एसिड और जिंक होता है। ये दोनों ही पौष्टिक तत्व हमारी त्वचा के लिए बेहतर होते हैं।
- नई दिल्ली। ये बात सच है कि भारत में कोरोना वायरस का फैलना अभी रुका नहीं है, लेकिन इसकी गति में थोड़ी कमी जरूर आई है। इसके अलावा अब कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद गंभीर मरीजों की संख्या बहुत कम हो गई है। ज्यादातर मरीज या तो हल्के-फुल्के लक्षणों वाले होते हैं या फिर बिना लक्षणों वाले। आयुष मंत्रालय ने ऐसे हल्के और बिना लक्षणों वाले मरीजों को ठीक करने के लिए आयुर्वेद और योग पर आधारित एक नैशनल क्लीनिकल मैनेजमेंट प्रोटोकॉल जारी किया है।इसका अर्थ है कि आयुर्वेद और योग की मदद से कोरोना वायरस के हल्के या बिना लक्षण वाले लोगों का उपचार किया जाएगा। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने इस गाइडलाइन को जारी किया है। इस गाइड लाइन में खाने-पीने की चीजों के बारे में सलाह, योगासन, आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों का फार्मूला आदि बताएं गए हैं, जिनसे कोरोना वायरस के इंफेक्शन वाले हल्के या बिना लक्षण वाले मरीजों को ठीक किया जा सकता है।
इस गाइडलाइन में बताई गई महत्वपूर्ण बातें-
-गुनगुने पानी में एक चुटकी हल्दी और नमक डालकर इससे गरारा करें। त्रिफला या मुलेठी (यष्टिमधु) को डालकर उबाले गए पानी से भी गरारा किया जा सकता है।- दिन में 1-2 बार अपनी नाक में तिल या नारियल का तेल अथवा गाय का घी डालें, खासकर घर से बाहर जाते और लौटते समय।- दिन में 1 बार अजवाइन या पुदीना या यूकेलिप्टस के तेल को उबलते पानी में डालकर नाक में इसका भाप लें।-6 से 8 घंटे की नींद हर रोज लें।-थोड़ी एक्सरसाइज और योग करें।खाने-पीने से जुड़ी गाइडलाइन्स
-पीने के लिए सादा पानी पीने के बजाय पानी में अदरक/धनिया के बीज/तुलसी/जीरा डालकर उबाल लें और इस पानी को पिएं।-ताजा बना हुआ गर्म खाना ही खाएं और बैलेंस्ड डाइट को फॉलो करें।-रात में हर रोज हल्दी वाला दूध (150 ग्राम गर्म दूध में आधा चम्मच हल्दी) पिएं। अपच की समस्या है, तो इसे न पिएं।-दिन में 1 बार आयुष काढ़ा या आयुष क्वाथ का गर्म-गर्म सेवन करें।-दिन में 1 बार 10 ग्राम च्यवनप्राश गर्म पानी के साथ खाएं।-मरीज के सीधे संपर्क में आए लोगों के लिए गाइडलाइन
-अगर कोई व्यक्ति मरीज के सीधे संपर्क में आया है, तो उसे हाई रिस्क कैटेगरी में माना जाएगा। ऐसे मरीजों के लिए आयुष मंत्रालय ने आयुर्वेदिक औषधियां लेने की गाइडलाइन जारी की है।-15 दिन तक अश्वगंधा का अर्क (500 मिलीग्राम) या अश्वगंधा पाउडर (1-3 ग्राम) दिन में 2 बार गर्म पानी के साथ लें। अथवा चिकित्सक की सलाह के अनुसार 1 महीने या इससे ज्यादा समय तक ले सकते हैं।-15 दिन तक गिलोय घनवटी का अर्क (500 मिलीग्राम) या इसका पाउडर (1-3 ग्राम) दिन में 2 बार गर्म पानी के साथ लें। अथवा चिकित्सक की सलाह के अनुसार 1 महीने या इससे ज्यादा समय तक ले सकते हैं।-दिन में 1 बार 10 ग्राम च्यवनप्राश गर्म पानी के साथ लें।कोरोना वायरस के बिना लक्षण वाले मरीजों के लिए गाइडलाइन्स
-15 दिन तक गिलोय घनवटी का अर्क (500 मिलीग्राम) या इसका पाउडर (1-3 ग्राम) दिन में 2 बार गर्म पानी के साथ लें। अथवा चिकित्सक की सलाह के अनुसार 1 महीने या इससे ज्यादा समय तक ले सकते हैं।-15 दिन तक गिलोय+पिप्पली का पाउडर 375 मिलीग्राम दिन में 2 बार तक लें। (अथवा चिकित्सक के परामर्श अनुसार करें)-15 दिन तक आयुष 64 का सेवन 500 मिलीग्राम दिन में 2 बार गर्म पानी से करें। (अथवा चिकित्सक के परामर्श अनुसार करें)कोरोना वायरस के हल्के लक्षण वाले मरीजों के लिए गाइडलाइन्स
कोरोना वायरस के ऐसे हल्के लक्षणों वाले मरीज, जिन्हें सांस की तकलीफ नहीं है और सिर्फ बुखार, सिरदर्द, थकान, सूखी खांसी, गले में खराश, बंद नाक आदि की समस्या है, उनका उपचार आयुष मंत्रालय की गाइडलाइन्स द्वारा किया जा सकता है।-15 दिन तक गिलोय+पिप्पली का पाउडर 375 मिलीग्राम दिन में 2 बार गर्म पानी के साथ लें। (अथवा चिकित्सक के परामर्श अनुसार करें)-15 दिन तक आयुष 64 का सेवन 500 मिलीग्राम दिन में 2 बार गर्म पानी से करें। (अथवा चिकित्सक के परामर्श अनुसार करें)कोरोना संक्रमित मरीजों को ठीक करने के लिए योगासन से जुड़ी गाइडलाइन्स
ताड़ासन, पद-हस्तासन, अर्ध चक्रासन, त्रिकोणासन, अर्ध ऊष्ट्रासन, शशकासन, सिंहासन, उत्थान मंडूकासन, मर्जरीआसन, कपाल भांति आदि आसन, प्राणायाम और क्रियाओं की लिस्ट जारी की गई है, जिन्हें हर रोज 45 मिनट तक करना है। - कदंब भारतीय उपमहाद्वीप में उगने वाला शोभाकर वृक्ष है। सुगंधित फूलों से युक्त बारहों महीने हरे, तेज़ी से बढऩे वाले इस विशाल वृक्ष की छाया शीतल होती है। इसका वानस्पतिक नाम एन्थोसिफेलस कदम्ब या एन्थोसिफेलस इंडिकस है, जो रूबिएसी परिवार का सदस्य है। हिंदू धर्म में कदंब के वृक्ष का बहुत ही बड़ा महत्व है । यह पेड़ पूजनीय इसलिए है क्योंकि इसका वैज्ञानिक कारण भी है। भगवान श्रीकृष्ण कदंब के पेड़ के नीचे बैठकर ही बांसुरी बजाकर अपनी गोपियों को मंत्रमुग्ध किया करते थे। कदंब के पेड़ का आध्यात्मिक व आयुर्वेदिक दोनों ही महत्व है। कदंब आयुर्वेद में अपने औषधीय गुणों के लिए बहुत ही मशहूर है। कदंब का स्वास्थ्यवद्र्धक गुण बहुत सारे रोगों के उपचार के लिए उपयोग किया जाता हैकदंब का फल खांसी, जलन, रक्तपित्त (नाक-कान से खून निकलना), अतिसार (दस्त), प्रमेह (डायबिटीज), मेदोरोग (मोटापा) तथा कृमिरोग नाशक होते हैं। कदंब के पत्ते कड़वे, छोटे, भूख बढ़ाने में सहायक तथा अतिसार या दस्त में फायदेमंद होते हैं। विषैले जंतुओं के काटने पर इसका छाल का प्रयोग कर उसके विष को दूर किया जा सकता है।अक्सर शरीर में पोषण की कमी या असंतुलित खान-पान के कारण मुँह में छाले पड़ जाते हैं। कदंब के पत्तों का काढ़ा बनाकर गरारा करने से मुंह के छालों से राहत मिलती है। वर्षा ऋतु में हीं कदम्ब के पेड़ पर फल लगते हैं। कदंब को कदम्बिका, नीप, प्रियक आदि नामों से भी जाना जाता है। कदंब की जड़, पत्ते व फल सभी चमत्कारिक गुणों से भरे पड़े हैं। इसका फल व पत्ते चर्म रोग , घाव , सूजन मधुमेह आदि रोगों को ठीक करने में उपयोग किये जाते हैं। कदम्ब फंगल इंफेक्शन , बुखार आदि को दूर कर सकता है। अगर इसके छाल को उबाल कर पिया जाय तो ये कई रोगों को ठीक कर सकता है।कदंब की कई जातियां पाई जाती हैं, जिसमें श्वेत-पीत लाल और द्रोण जाति के कदंब उल्लेखनीय हैं। साधारणतया यहां श्वेत-पीप रंग के फूलदार कदंब ही पाए जाते हैं। किन्तु कुमुदबन की कदंबखंडी में लाल रंग के फूल वाले कदंब भी पाए जाते हैं। श्याम ढ़ाक आदि कुछ स्थानों में ऐसी जाति के कदंब हैं, जिनमें प्राकृतिक रुप से दोनों की तरह मुड़े हुए पत्ते निकलते हैं। इन्हें द्रोण कदंब कहा जाता है। गोबर्धन क्षेत्र में जो नवी वृक्षों का रोपण किया गया है, उनमें एक नए प्रकार का कदंब भी बहुत बड़ी संख्या में है। ब्रज के साधारण कदंब से इसके पत्ते भिन्न प्रकार के हैं तथा इसके फूल बड़े होते हैं, किन्तु इनमें सुगंध नहीं होती है। महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में जो कदंब होता है, उसका फल कांटेदार होता है। मध्य काल में ब्रज के लीला स्थलों के अनेक उपबनों में अनेक उपबनों इस वहुत बड़ी संख्या में लगाया गया था। वे उपबन कदंबखंडी कहलाते हैं।कदंब के पेड़ से बहुत ही उम्दा किस्म का चमकदार कागज़़ बनता है। इसकी लकड़ी को राल या रेजिऩ से मज़बूत बनाया जाता है। कदंब की जड़ों से एक पीला रंग भी प्राप्त किया जाता है।----
- गाय या भैंस का पहला या दूसरे दिन का दूध जिसे आम बोलचाल की भाषा में पेउस कहा जाता है, शरीर के लिए काफी फायदेमंद होता है। ये न केवल शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाता है बल्कि मांसपेशियों का निर्माण और वजन घटाने में भी मदद करता है।गाय या भैंस के पहले दूध में कुछ ऐसे एंटीबॉडीज होते हैं, जो कि शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाती है। गाय या भैंस के पहले दूध को बोवाइन कोलोस्ट्रम, खरवस या फिर पेउस कहा जाता है। इसमें कुछ माइक्रो न्यूट्रिएंट्स पाए जाते हैं, जो शरीर को कॉमन फ्लू और इंफेक्शन से बचने में मदद करता है। वहीं स्वास्थ्य के लिए इसके कई और लाभ भी हैं। कोलोस्ट्रम या खरवस आंत के बैक्टीरिया के विकास को बनाए रखने के लिए प्रोबायोटिक और प्रीबायोटिक दोनों के रूप में काम करता है। यह आंत्र सिंड्रोम को रोकने और कम करने में भी मददगार हो सकता है। यह एलर्जी से निपटने के लिए भी काफी प्रभावी है। इस तरह ये शरीर के लिए हर तरह से फायदेमंद है।गो-जातीय कोलोस्ट्रम एक दूधिया तरल पदार्थ है, जो बच्चे को जन्म देने के बाद गायों और भैंसों के स्तनों से आता है। ये बहुत गाढ़ा और हल्का पीला रंग दूध होता है। इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन, खनिज और विशिष्ट प्रकार के प्रोटीन होते हैं जिन्हें एंटीबॉडी कहा जाता है। ये कोलोस्ट्रम बैक्टीरिया और वायरस जैसे रोग पैदा करने वाले एजेंटों से लड़ते हैं। गोजातीय कोलोस्ट्रम में एंटीबॉडी का स्तर नियमित गाय के दूध में स्तरों की तुलना में 100 गुना अधिक हो सकता है। पेउस से विभिन्न रेसिपी तैयार की जाती हैं। एक रेसिपी हम यहां दे रहे हैं....सामग्री-पेउस, (बिना उबाला हुआ) यदि पहले दिन का दूध हो, तो इसमें 3 हिस्सा नार्मल दूध , दूसरे दिन का पेउस हो तो इसमें नार्मल दूध बराबर मात्रा में मिलाएं। इसमें स्वादुसार चीनी या फिर गुड़ मिलाएं। इसमें केसर / जायफल / इलायची पाउडर या अपने स्वाद के आधार पर तीनों का मिश्रण बना लें।- सभी सामग्री को एक साथ अच्छे से मिला लें।-फिर इसे प्रेशर कुकर में तीन सीटी लगा लें और ठंडा होने पर टुकड़ों में काट लें।पेउस के फायदेएथलीट फैट बर्न करने, मांसपेशियों का निर्माण, सहनशक्ति और अपने एथलेटिक प्रदर्शन में सुधार करने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा ये गोजातीय कोलोस्ट्रम भी प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाने, चोटों को ठीक करने, तंत्रिका तंत्र की क्षति की मरम्मत और मूड में सुधार करने में मदद करता है। इसके साथ ही इसके कई और फायदे भी हैं। जैसे कि-कोलोस्ट्रम (पयोस) को इंसुलिन के विकास में मदद करता है। कोलोस्ट्रम मधुमेह और अस्थमा से निपटने में भी मदद करता है।-कोलोस्ट्रम को मैक्रोन्यूट्रिएंट्स, खनिज और विटामिन का एक समृद्ध स्रोत कहा जाता है। यह वयस्कों में कोशिकाओं के निर्माण में भी मदद करता है।
- चम्पा एक खूबसूरत औषधीय पौधा है जिसके पेड़ बगीचों में लगाये जाते हैं। इसके पत्ते लम्बे-लम्बे महुआ के पत्तों की भांति पीले रंग के तथा कोमल होते हैं। इसके फूल पीले 4-5 पंखुडिय़ों सहित 5-7 केसरों से युक्त होते हैं। मालवा देश में इसकी उत्पत्ति अधिक होती है। इसका पेड़ विशाल होता है। चंपा के पत्ते रामफल के पत्तों की समान होते हैं। इसका फूल पीला और सुगंधित होता है। यह कुछ गर्म और शीतल होता है। चंपा भूख को रोकची है। चंपा वीर्य को बढ़ाने वाली, हृदय के लिए लाभकारी, जलन पित्त और खून की खराबी को नष्ट करती है। इसको सूंघने से दिल और दिमाग शक्तिशाली बनता है।हिन्दी में चंपासंस्कृत में चांपेय, चम्पक, हेमपुष्पगुजराती में चंपोमराठी में सोनचांपलैटिन में मिचेलिया चम्पेकाविभिन्न रोगों में सहायक-पुनरावर्चत ज्वर- चम्पा की जड़ की फांट को 40 से 80 मिलीलीटर तक की मात्रा में रोगी को देने से लाभ होता है।-आमाशय का जख्म- चम्पा के फूलों का काढ़ा बनाकर पीने से आमाशय का घाव एवं दर्द ठीक हो जाता है।- चम्पा की जड़ का काढ़ा बनाकर पीने से दस्त आकर कब्ज की शिकायत मिट जाती है।-चम्पा की जड़ का चूर्ण 600 मिलीग्राम से 1.80 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम देने से आर्तव (माहवारी) जारी हो जाती है।-चम्पा के फूलों को पीसकर प्राप्त हुए रस को निकालकर 3 मिलीलीटर की मात्रा में लेकर शहद के साथ चाटने से आंतों के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।-10 मिलीलीटर चम्पा के फूलों के रस को शहद के साथ पीने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।- चम्पा के 20 मिलीलीटर ताजे पत्तों के रस को पीने से पेट के कीड़े मर जाते हैं और पेट के दर्द में लाभ होता है।-10 मिलीलीटर चम्पा के पत्तों का रस लेकर 20 ग्राम शहद के साथ मिलाकर सुबह और शाम सेवन करने से पेट के दर्द में लाभ होता है।-चम्पा के पत्तों को पीसकर शहद में मिलाकर पीने से पेट का दर्द ठीक हो जाता है।- गठिया के रोगी को चम्पा के फूलों से बने हुए तेल से मालिश करने से लाभ मिलता है।-चम्पा की जड़ की छाल को दही में पीसकर फोड़ों पर लगाने से उनकी सूजन ठीक हो जाती है।- हाथ-पैरों पर चम्पा के फूलों का तेल बनाकर मालिश करने से ऐंठन वाला दर्द ठीक हो जाता है।- 3 ग्राम चम्पा की छाल के चूर्ण को दिन में 2 बार पानी के साथ खाने से दूषित रक्त (खून की खराबी) साफ हो जाता है।- पैर के दाद पर चम्पा के फूलों को पीसकर लगाने से लाभ होता है।- शरीर की शक्ति को बढ़ाने के लिए चम्पा के फूलों का चूर्ण बनाकर इस चूर्ण में शहद मिलाकर खाने से शरीर शक्तिशाली बन जाता है।(नोट- कोई भी उपाय करने से पहले एक बार अपने चिकित्सक से सलाह अवश्य लें, क्योंकि हर इंसान के शरीर की तासीर अलग-अलग होती है।)
- भारतीय भोजन का खास हिस्सा रहने वाली चटपटी चटनी स्वाद के साथ सेहत के लिए भी लाभकारी है। चटनी के सेवन से शरीर को पोषण भी मिलता है।चटनी को खाने के साथ खाना ज्यादातर लोग पसंद करते हैं। यह तीखी होने के साथ-साथ स्वादिष्ट भी होती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भोजन के स्वाद को बढ़ाने के साथ इसके सेवन से आपको पोषण भी मिलता है। ऐसी ही कुछ चटनी के बारे में हम आज बता रहे हैं।आंवले की चटनीआंवला काफी सेहतमंद होता है इसलिये इसको किसी ना किसी रूप में सेवन जरुर करना चाहिये। आंवले को आप चटनी के रूप में भी ले सकते हैं। यह स्वादिष्ट होने के साथ पौष्टिक भी होती है। आंवले की चटनी में मौजूद आंवले में विटामिन सी भरपूर मात्रा में होता है। जो इम्यूनिटी बढ़ाने में मदद करता है। अगर हम इस चटनी में थोड़ी सी अदरक और नींबू मिला दें तो इसकी पौष्टिकता बहुत अधिक बढ़ जाती है। आंवले की चटनी बनाने के लिए आंवला, गुड़, नमक ,काला नमक, इलायची पाउडर , लाल मिर्च पाउडर,और गर्म मसाला की जरूरत होती है। इसे बनाने के लिए किसी बर्तन में पानी और आंवला डालकर नर्म होने तक पकायें। जब यह उबलकर तैयार हो जाये तो गैस बंद करके इसे प्याले में निकाल लें। आंवले के बीज हटाकर इसे पीसकर बारीक पेस्ट बना लें। फिर पीसे आंवले वाले पैन को गैस पर रखकर उसमें गुड़, नमक, काला नमक, इलायची पाउडर, लाल मिर्च पाउडर और गर्म मसाला डाल कर मिला लें।धनिया-पुदीने की चटनीधनिया और पुदीने की पत्तियों में कई माइक्रो मिनरल जैसे कैल्शियल, पोटैशियम, मैग्निशियम आदि मौजूद होते हैं। अगर इसमें लहसुन, अदरक और प्याज पीसकर डालें तो अदरक के पाचन संबंधी गुण भी इसमें मिल जाते हैं। इसी तरह से लहसुन में मौजूद एंटी-बैक्टीरियल पेट को हेल्दी रखता है। इस तरह धनिए-पुदीने की चटनी बेहद हेल्दी हो जाती है। इसके अलावा आंतों की समस्या, प्रसव के समय, बुखार और दस्त में भी यह फायदेमंद है। इसे बनाने के लिए हमें पुदीने और धनिये की पत्तियां, लहसुन , थोड़ी सी अदरक, हरी मिर्च, नमक, जीरा ,काला नमक की जरूरत होती है।इमली की चटनीगर्मी के दिनों में इमली की चटनी शरीर की तासीर को ठंडा करता है और गर्मी के दुष्प्रभाव से बचाता है। इसके अलावा यह पाचन के लिए फायदेमंद है और उल्टी, जी मचलाना या दस्त जैसी समस्याओं में भी बहुत लाभकारी होती है। इसे बनाने के लिए इमली, पानी-, हींग ,जीरा , काला नमक , सादा नमक , लाल मिर्च की जरूरत होती है। इसे बनाने के लिए सबसे पहले इमली को कुछ समय तक गुनगुने पानी में गलाकर रखें। अब इसके बीज निकाल लें और गुड़ एवं सभी मसाले डालकर इसे मिक्सी में बारीक पीस लें। अब इस मिश्रण को उबाल लें और बने हुए पेस्ट को जीरे का छौंक लगाएं। इमली की चटनी तैयार है।अमरुद की चटनीअमरुद विटामिन सी का भंडार होता है। अमरूद में मल को रोकने वाले, पौरुष बढ़ाने वाले, शुक्राणु बढ़ाने वाले और मस्तिष्क को सबल करने वाले गुण होते हैं। अमरूद का औषधीय गुण प्यास को शांत करता है, हृदय को बल देता है, कृमियों का नाश करता है, उल्टी रोकता है, पेट साफ करता है औऱ कफ निकालता है। मुंह में छाले होने पर, मस्तिष्क एवं किडनी के संक्रमण, बुखार, मानसिक रोगों तथा मिर्गी आदि में इनका सेवन लाभप्रद होता है। इसकी चटनी बनाने के लिए जीरा, काला और सादा नमक, धनिया पत्ती की जरूरत होती है। आप जिसतरह का अमरूद पसंद करते हैं, जैसे कच्चा या फिर पका, उस हिसाब से इसमें ये चीजें मिलाकर मिक्सी में पीस लें। कच्चे अमरुद की चटनी ज्यादा स्वादिष्ट लगती है।
- कोरोना के गंभीर मरीजों को सांस की समस्या के कारण वेंटिलेटर की जरूरत होती है। आइये जानें InnAccel कंपनी का बनाया Vapcare Device इन मरीजों की जान कैसे बचा रहा है।गंभीर रूप से बीमार मरीजों के लिए वेंटिलेटर कितना महत्वपूर्ण साबित हो सकता है, ये कोरोना वायरस महामारी के समय में हमें पता चल गया है। खासकर ऐसे मरीज, जिन्हें सांस लेने में तकलीफ हो, उनके लिए वेंटिलेटर्स जीवन रक्षक साबित हो सकते हैं। निमोनिया एक ऐसी ही समस्या है, जिसमें बहुत सारे लोग सांस की कमी से जूझते हए मर जाते हैं। ऐसे में बेंगलुरू की स्टार्टअप कंपनी InnAccel ने एक कोरोना वायरस महामारी आने से पहले ही एक ऐसा डिवाइस बना लिया था, जो निमोनिया जैसी स्थिति वाले मरीजों की जान बचाने में बहुत मददगार है। इस डिवाइस को Vapcare Device नाम दिया गया, खबरों की मानें तो इसके इस्तेमाल से कोरोना वायरस महामारी के समय में सैकड़ों लोगों की जान बचाई जा सकी है।कंपनी के अधिकारियों के अनुसार उसने 6 राज्यों में अपने सिस्टम्स की सप्लाई की है। इसी कंपनी के बनाए Vapcare और Fetal Lite डिवाइसेज ने भी महामारी के दौरान हजारों लोगों की जिंदगियां बचाने का काम किया है।क्यों खास है वैपकेयर डिवाइसवैप-केयर उन मरीजों के लिए फायदेमंद है जो गंभीर हालत के चलते आइसीयू में वेंटिलेटर पर पहुंच जाते हैं। ये डिवाइस मरीज के मुंह से ऑटोमैटिक तरीके से अतिरिक्त फ्लुइड को निकाल लेता है, जिससे वो फेफड़ों तक पहुंचकर निमोनिया के संक्रमण का कारण न बन जाए। अगर यही काम नर्स के द्वारा किया जाता है, तो उसमें लगातार देखरेख की भी जरूरत पड़ती है और समय भी ज्यादा लगता है, जबकि इस डिवाइस से ये काम ऑटोमैटिक तरीके से हो जाता है।हर साल 6 लाख लोग होते हैं गंभीर निमोनिया का शिकारवैप का अर्थ है Ventilator-Associated Pneumonia। भारत में इस समस्या से लगभग 6 लाख लोग प्रभावित होते हैं, जिनमें से 30 प्रतिशत की मृत्यु हो जाती है। कोरोना वायरस महामारी के समय में इस डिवाइस का महत्व और अधिक बढ़ जाता है क्योंकि इसके प्रयोग से ऑटोमैटिक मशीन के जरिए ही बिना रोगी के संपर्क में आए उसके मुंह से निकलने वाली गंदगी को साफ किया जा सकता है, जिससे डॉक्टर्स और नर्सेज में इंफेक्शन का खतरा भी कम होता है। इसके अलावा महामारी के समय में इस डिवाइस के प्रयोग से हॉस्पिटल स्टाफ का कीमती समय भी बचा है।इस डिवाइस को InnAccel Technologies के क्रिटिकल केयर यूनिट कोइयो लैब्स ने बनाया है, जिसके लीड इंजीनियर नितेश जांगीर हैं। वैपकेयर को बॉयोटेक्निकल इंडस्ट्री रिचर्स एसिस्डेंस काउंसिल (बीएआरएसी) की तरफ से मान्यता मिल चुकी है और ये 2015 में अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी के 16 हेल्थकेयर टेक्नोलॉजी विनर्स में से एक हैं।
- अश्वगंधा एक आयुर्वेदिक औषधि है। अश्वगंधा का प्रयोग सदियों से आयुर्वेद में किया जा रहा है। यह जड़ी बूटियों के लिए बेहतर विकल्प माना जाता है। भारतीय आयुर्वेदिक चिकित्सा में निहित, यह जड़ी बूटी उन लोगों के लिए तेजी से लोकप्रिय विकल्प बन रही है जो अपने स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और तनाव को कम करने के प्राकृतिक साधनों की तलाश कर रहे हैं।अश्वगंधा एक जड़ी बूटी है जो अपने मेडिकल गुणों के लिए करीब 3 हजार से भी अधिक वर्षों से प्रयोग होती आ रही है। यह जड़ी ब्यूटी आयुर्वेद में सबसे महत्वपूर्ण व प्रसिद्ध है और अब यह पश्चिमी जगत की ओर और भी अधिक प्रचलित हो रही है। इसे विथानिया सोमनीफेरा के नाम से भी जाना जाता है और संस्कृति में इसका अर्थ घोड़े की गंध है। भले ही इसका नाम इसकी गंध से जुड़ा हुआ है, परन्तु यह बहुत ही उपयोगी परंतु कड़वी दवा है। चलिये जानते हैं अश्वगंधा से मिलने वाले लाभ।1. अश्वगंधा स्ट्रेस कम करने में सहायक हैयदि आप को लगता है कि आप की जिंदगी में कुछ भी वैसा नहीं हो रहा है जैसा आप ने सोचा था और इस वजह से आप अधिक स्ट्रेस लेते हैं, तो बता दें इसका सेवन तेल, काढ़ा या औषधि के रुप में बहुत लाभदायक है। स्ट्रेस और एंग्जायटी में अश्वगंधा एसेंशियल ऑयल बहुत फायदेमंद हैं। असल में अश्वगंधा या इसके तेल में नव्र्स को रिलैक्स करने के सभी गुण मौजूद होते हैं। जिसके कारण ये एंजाइटी, स्ट्रेस, तनाव और नींद को कम करने में बहुत प्रभावी है। अश्वगंधा के सेवन से स्ट्रेस हार्मोन कॉर्टिसो़ल बैलेंस होता है व मन शान्त करता है।2. अश्वगंधा ऊर्जा को बढ़ाती हैआपको जानकर हैरानी होगी कि अश्वगंधा शारीरिक कमजोरी को भी दूर करती है। यदि आप वजन बढ़ाना चाहते हैं, तो इसके सेवन से वजन बढ़ता है और नई ऊर्जा का संचार होता है। यदि रोजाना दूध और शक्कर के साथ अश्वगंधा चूर्ण लिया जाए तो शरीर चुस्त दुरुस्त होता है और नई उर्जा स्फूर्ति आती है। व शारीरिक कमजोरी भी दूर होती है।3. अश्वगंधा एकाग्रता बढ़ाती हैक्या आप को भी अपने काम में ध्यान केंद्रित करते समय परेशानी आती है? तो आप को अश्वगंधा का सेवन अवश्य करना चाहिए। इससे आप को ध्यान लगाने में मदद मिलेगी। क्योंकि यह स्मरण शक्ति, ध्यान, एकाग्रता और मेमोरी लॉस के लिए एक लाभदायक प्राकृतिक औषधि है। यह दिमाग के लिए ऊर्जा और पोषण का काम करती है ताकि हमारा तांत्रिक तंत्र स्वस्थ रहे और किसी भी प्रकार का स्ट्रेस ना हो।4. अश्वगंधा सूजन कम करती हैअश्वगंधा सूजन कम करने में और इम्यूनिटी मजबूत करने में सालों से सहायक रही है। इसमें एंटी इन्फ्लामेटरी गुण होते हैं जिसकी वजह से यह कई प्रकार के दर्द ठीक करने में भी सहायक है। अश्वगंधा के सेवन से ट्यूमर का विकास भी अवरुद्ध होता है। यह इन्फ्लेमेशन में बहुत अधिक सहायक माना जाता है। संक्रामक बीमारियों से बचाने और इम्युनिटी को बूस्ट करने में काफी मददगार है, अश्वगंधा की चाय। यही नहीं गठिया के दर्द और जोड़ों की सूजन भी दूर करती है अश्वगंधा।5. अश्वगंधा कैंसर कम करने में सहायक हैशोध बताते हैं कि कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी में भी इसका सेवन लाभकारी है। यह शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है, जिससे रिएक्टिव ऑक्सीजन स्पीशीज बनती है। यही नहीं यदि कीमोथेरेपी से किसी भी प्रकार का कोई साइड इफेक्ट होता है तो यह उसमें फायदा करती है।अश्वगंधा के सेवन का तरीकापहले अश्वगंधा की जड़ों को पानी में मिला कर एक पेस्ट तैयार कर लिया जाता था। जो किसी भी औषधि में मिला कर पिया जाता था। परंतु आज के समय में कैप्सूल या पाउडर की फॉर्म में अश्वगंधा का एक्सट्रेक्ट बहुत आसानी से कहीं पर भी मिल जाता है।अश्वगंधा के प्रयोग में रखें सावधानियांविशेषज्ञों के अनुसार इसका सेवन निश्चित मात्रा में ही करना चाहिए। ज्यादा मात्रा में अश्वगंधा का सेवन करना खतरनाक हो सकता है। इसका ज्यादा सेवन एसिडिटी, गैस्ट्रिक, एलर्जी, रैशेज ,एंजाइटी आदि की समस्या पैदा कर सकता है। प्रेग्नेंट महिलाओं को या ह्रदय रोगियों को इसका सेवन डॉक्टर के मशवरे के बिना नहीं करना चाहिए।
- दुनियाभर में ग्रीन टी से कहीं ज्यादा पॉपुलर ब्लैक टी है। भारत में भी चाय का मतलब, काली चाय पत्ती से बनी चाय ही समझा जाता है। काली चाय दुनिया की सबसे पॉपुलर ड्रिंक होने के बावजूद कई लोग इसे सेहत के लिए नुकसानदायक बताते हैं। वास्तव में अगर गलत तरीके से पी जाए, या ज्यादा मात्रा में पी जाए, तो काली चाय ही क्या सभी चीजें नुकसादायक होती हैं। यही कारण है कि लोग ब्लैक टी की अपेक्षा ग्रीन टी को ज्यादा हेल्दी समझते हैं। ऐसा माना जाता है कि ग्रीन टी वजन घटाती है। तो क्या ब्लैक टी भी वजन घटाती है?आज हम बताएंगे कि ब्लैक टी यानी काली चाय के क्या फायदे हैं और इसे कैसे पीना चाहिए?शरीर के लिए कई तरह से फायदेमंद है काली चायरिसर्च बताती हैं कि ब्लैक टी में कई तरह के एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो शरीर में ऑक्सिडेशन को रोकते हैं और कई बीमारियों को दूर रखते हैं। ये एंटीऑक्सीडेंट्स, खासकर पॉलीफेनॉल आपके शरीर के मेटाबॉलिज्म और पाचन (डाइजेशन) को ठीक रखता है। ये दोनों ही फंक्शन आपके शरीर के वजन को कम करने, चर्बी घटाने और एक्सट्रा कैलोरीज को बर्न करने में मदद करते हैं। इसके अलावा ब्लैक टी के सेवन से स्ट्रेस कम होता है, जिससे नींद अच्छी आती है और दूसरे बायलॉजिकल प्रॉसेस अच्छी तरह फंक्शन करते हैं। इसलिए ब्लैक टी का सेवन अगर सीमित मात्रा में करें, तो आपके शरीर के लिए ये फायदेमंद है।क्या वजन घटाती है काली चाय?वैज्ञानिक शोधों के अनुसार काली चाय यानी ब्लैक टी के सेवन से शरीर की वजन घटाने की प्रक्रिया तेज होती है। 2014 में की गई एक स्टडी में बताया गया कि 3 महीने तक रोजाना दिन में 3 बार ब्लैक टी पीने से अन्य बेवरेज पीने वालों की अपेक्षा ज्यादा वजन घटाया गया। इसी तरह 2017 में चूहों पर की गई एक रिसर्च में भी यही बताया गया था कि ब्लैक टी पीने से वजन सामान्य से ज्यादा घटाया जा सकता है। लेकिन यहां यह ध्यान देना जरूरी है कि ब्लैक टी में कैफीन की मात्रा भी होती है, इसलिए इसका बहुत अधिक सेवन करना भी ठीक नहीं है।एक दिन में कितनी चाय पी सकते हैं?काली चाय यानी ब्लैक टी का ज्यादा सेवन आपके शरीर के लिए नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। इसलिए आपको ब्लैक टी का सेवन सीमित मात्रा में करना चाहिए। वैज्ञानिकों के अनुसार एक दिन में 2-3 कप तक ब्लैक टी का सेवन किया जा सकता है। 4 कप ब्लैक टी से ज्यादा का सेवन रोजाना करना शरीर और स्वास्थ्य के लिए कई तरह की मुश्किलें पैदा कर सकता है। चाय में मौजूद कैफीन दिल की धड़कन को बढ़ा सकता है। इसलिए एक दिन में 3 कप से ज्यादा ब्लैक टी न पिएं।चाय कैसे पीना होता है ज्यादा फायदेमंद?आमतौर पर भारत में लोग ब्लैक टी के साथ दूध मिलाकर पीते हैं। दूध वाली चाय का सेवन बड़े पैमाने पर किया जाता है। हालांकि सामान्य लोगों के लिए इस चाय को पीने में कोई परेशानी नहीं है। लेकिन फुल फैट दूध से बनी चाय पीने से आपके शरीर में फैट बढ़ सकता है। इसलिए अगर आपको ब्लैक टी दूध में पीनी है, तो आप स्किम्ड दूध के साथ बनाकर पिएं। लेकिन जो लोग अपने वेट को लेकर बहुत ज्यादा कॉन्शियस हैं या जिनका वजन ज्यादा है, वो लोग बिना दूध वाली ब्लैक टी पिएं। इसे बनाने के लिए-पानी में थोड़ी सी ब्लैक टी डालकर उबालें।इसे छानकर इसमें आधा नींबू का रस और 1 चम्मच शहद मिलाकर पिएं। इस तरह से बनाई गई ब्लैक टी आपके वजन घटाने के लिए बेस्ट है।----
- इमली का नाम लेते ही हर किसी के मुंह में पानी आ जाता है और इसका खट्टा-मीठा स्वाद बचपन की याद दिला देता है।इमली को अरबी और फारसी भाषा में दिए गए - हिंदी तामर और भारतीय खजूर सही मायने में उद्बोधक नाम है। भूरे रंग की नाज़ुक फली के अंदर जो मांसल खट्टा फल होता है उसमे टारटारिक एसिड और पेक्टिन समाविष्ट है।इमली का वनस्पति शास्त्र में नाम- तामरिंदस इंडिका है। इमली का संस्कृत नाम है- अम्लिका।आमतौर पर महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में क्षेत्रीय व्यंजनों में एक स्वादिष्ट मसाले के रूप में इमली का प्रयोग किया जाता है। खास तौर पर रसम, सांभर, वता कुज़ंबू , पुलियोगरे इत्यादि बनाते वक्त इमली इस्तेमाल होती है और कोई भी भारतीय चाट इमली की चटनी के बिना अधूरी ही है। यहां तक कि इमली के फूलों को भी स्वादिष्ट पकवान बनाने के उपयोग में लिया जाता है।इसके पत्ते शरीर को शीतलता प्रदान करते हैं एवं अपित्तकर हैं और पेट के कीड़ों को नष्ट करने में भी मदद करते हैं। इसके अलावा, इसके पत्तों को पीलिया के इलाज में भी उपयोग में लाया जाता है। इमली के पेड़ की छाल एक स्तम्मक के रूप में काम आती है। इमली के फल का गूदा पाचन प्रणाली को शीतलता प्रदान करता है एवं रेचक और रोगाणु रोधक भी होता है।-पाचन विकार- पके हुए फल का गूदा पित्त की उलटी, कब्ज और गैस की समस्या, अपचन के इलाज मे लाभदायक है। यह कब्ज़ मे भी लाभकारी है। पानी के साथ इसके गूदे को कोमल करके बनाया हुआ निषेध भूख मे कमी, भोजन ग्रहण की इच्छा मे कमी होने पर लाभकारी है। इमली के दूध का पेय भी पेचिश के इलाज मे काफी लाभकारी है।- स्र्कवी या स्कर्वी , विटामिन-सी की कमी- इमली में विटामिन सी की मात्रा प्रचुर होती है और यह स्र्कवी को रोकने और उसके इलाज में लाभदायक है।- सामान्य सर्दी-जुकाम को दूर करने के लिए- इमली और काली मिर्च का रसम, दक्षिण भारत मे सर्दी-जुकाम के इलाज के लिये इसे प्रभावशाली घरेलू नुस्खा माना जाता है।-जलने पर- इमली की कोमल पत्तियां जलने का घाव के इलाज मे काफी लाभकारी है। उसे एक ढंके हुए बर्तन पर आग से गरम करते हंै। फिर उसे अच्छे से पीस कर उसे छान लेते हैं जिससे रेतिले पदार्थ निकल जाये (अलग हो जाए)। छानने के बाद उसे तिल के तेल के साथ मिलाकर जले हुए भाग पर लगाया जाता है। इससे घाव कुछ दिनों में ही ठीक हो जाता है।- आंखों के नीचे या ऊपर की पुतली के लाल हो जाने को गुहेरी कहते हैं। इसमें इमली के बीज को पानी के साथ घिसकर, चंदन की तरह लगाना चाहिए। इससे आंखों की पलकों पर होने वाली पैंसी या गुहेरी (बिलनी) में तुरंत लाभ होता है।- इमली का प्रयोग बालों के लिए फायदेमंद हो सकता है क्योंकि एक रिसर्च के अनुसार बालों में कुछ ऐसे तत्व पाए जाते है जिनकी कमी से बालों का झडऩा शुरू हो जाता है। इमली का सेवन इनकी कमी को दूर कर बालों का झडऩा कम करती है।- इमली का सेवन करने से हृदय संबंधी रोगों से बचा जा सकता है क्योंकि इमली में एंटीऑक्सीडेंट का गुण पाया जाता है जो कि हृदय को स्वस्थ रखने में सहायता करता है।- खून के कमी में इमली का सेवन फायदेमंद हो सकता है क्योंकि इसमें आयरन पाया जाता है जो कि हीमोग्लोबिन को बढ़ा कर खून की कमी को दूर करती है।- इमली का सेवन वजन को कम करने में फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि इसमें रेचन यानि लैक्सटिव का गुण पाया जाता है जो कि शरीर के गन्दगी को दूर करता है जिससे अनावश्यक रूप से बढ़ रहे वजन को रोकने में मदद मिलती है।
- जीरा और धनिया दोनों ही खाने का जायका बढ़ाने के लिए जाने जाते हैं। पर आयुर्वेद की मानें, तो ये दोनों कई औषधीय गुणों की भरमार हैं। दरअसल जीरे और धनिया का पानी पचान तंत्र को ठीक रखता है। एक वैज्ञानिक शोध के अनुसार, जीरे में डाइजेस्टिव एंजाइम की अच्छी मात्रा पाई जाती है, जो पाचन क्रिया को उत्तेजित करने का काम कर सकता है। इससे आहार को पचाने और मल के जरिए शरीर से बाहर निकालने में मदद मिल सकती है। वहीं धनिया न सिर्फ पेट की समस्याओं को दूर करने में मदद करता है, बल्कि यह आपकी पाचन शक्ति को बढ़ाने में भी लाभकारी हो सकता है। पर इन दोनों में कौन सा वजन घटाने के लिए ज्यादा फायदेमंद है? आइए हम आपको बताते हैं इसके बारे में।जीरा और धनिया में कौन सा है ज्यादा फायदेमंद1.फैट बर्न करने के लिएजीरा और धनिया दोनों ही मसाले अपने पाचन गुणों के लिए जाने जाते हैं लेकिन जीरा का पानी बेहतर काम करता है। वहीं हमारे आंत के स्वास्थ्य पर जीरा की क्षारीय कार्रवाई वसा हानि को बढ़ाने में मदद करती है और पाचन में सुधार करती है । हालांकि धनिया भी पाचन तंत्र को बेहतर बनाता है पर ये जीरे की तरह फैट बर्न नहीं कर पाता है।2.शरीर को डिटॉक्सीफाई करने के लिएसुबह-सुबह धनिया और जीरा का पानी पीना आपके शरीर से विषाक्त पदार्थों को छोडऩे में मदद करते हैं, पर जीरा आपको पाचनतंत्र तो ज्यादा तेज बनाता है! इसके अलावा, वे दोनों एंटीऑक्सीडेंट के उच्च स्तर होते हैं, और है कि अपनी प्रतिरक्षा के साथ मदद करते हैं। वहीं आप चाहें, तो इन दोनों को एक साथ मिला कर पाउडर बना कर इस्तेमाल कर सकते हैं।3.कोलेस्ट्रॉल को कम करने के लिएधनिया न सिर्फ खाने को महक देता है बल्कि यह आपके कोलेस्ट्रॉल लेवल को कम करने में फायदेमंद हो सकता है। धनिया में ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो कोलेस्ट्रॉल को कम कर सकते हैं। वहीं जिन लोगों का वजन तेजी से बढ़ रहा है, उनके लिए जरूरी है कि वो अपने कोलेस्ट्रॉल को ठीक रखें। दरअसल मोटापे से पीडि़त लोगों के लिए कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल करना कई सारी बीमारियों से बचा सकता है। इस तरह किसी भी व्यक्ति के लिए धनिया के बीजों को उबालकर इसके पानी को पीना फायदेमंद हो सकता है।4.भूख कम करने के लिएजीरे का इस्तेमाल करने से आपको भूख को कम करने में मदद मिलेगी, क्योंकि यह आपके पेट को लंबे समय तक भरा रखता है और इस तरह मोटापा कम करने में मदद करता है। साथ ही शरीर में उन हेल्दी इंजाइम्स को बढ़ावा देते हैं, जो कि खाना पचाने में मदद करते हैं। इस तरह अगर आप खाने में जीरा पीस कर इस्तेमाल करें, तो खाना आराम से पचेगा और ये शरीरे में फैट के संचय को भी रोकेगा।इस तरह आपने देखा कि विभिन्न तरीकों से जीरा और धनिया वजन घटाने के लिए फायदेमंद हैं। पर इन दोनों में से सबसे ज्यादा फायदेमंद चीज की बात करें, तो वो जीरा है। जीरा सक्रिय फिनोलिक यौगिक आपके शरीर में ग्लूकोज और खराब कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। साथ ही यह वसा और अन्य पोषक तत्वों के बेहतर अवशोषण में मदद करतें, जो कि मेटाबॉलिज्म को ठीक रखता है। तो अगर आपको तेजी से अपना वजन घटाना है, रोज सुबह जरूर पिएं जीरे का पानी।
- गुलकंद एक प्रकार का मुरब्बा होता है जो कि गुलाब की पंखुडिय़ों से बनता है। गुलकंद को सेहत के लिए लाभजनक माना जाता है और इसे खाने से शरीर को विभिन्न तरह की बीमारियों से निजात मिल जाती है। गुलकंद का स्वाद मीठा होता है और इसमें से गुलाब की खुशबू आती है। सामान्यत: गुलकन्द का इस्तेमाल स्वाद के लिए पान में किया जाता है। लेकिन गुलकन्द खाने के बहुत से फायदे हैं। आइये जाने ये फायदे...-गुलकन्द दिमाग और आमाशय की शक्ति को बढ़ाता है। यदि भोजन करने के बाद गुलकन्द खाया जाए तो यह दिमाग के लिए लाभदायक होता है।-गुलकन्द को दूध के साथ रोजाना पीने से कब्ज की समस्या दूर होती है। गुलकन्द को खाकर ऊपर से दूध पी लें, ऐसा 1 सप्ताह तक करने से कब्ज़ की शिकायत नहीं रहती है।-10 से 20 ग्राम गुलकन्द सुबह और शाम सेवन करने से शौच साफ होता है तथा भूख बढ़ती है और शरीर में ताकत आती है और इसके अलावा कब्ज की शिकायत भी दूर होती है।- 2 चम्मच गुलकन्द को 250 मिलीलीटर हल्का गर्म दूध के साथ सोने से पहले लेने से लाभ मिलता है और कब्ज की समस्या भी खत्म हो जाती है।-2 बड़ा चम्मच गुलकन्द, मुनक्का 4 पीस, सौंफ आधा चम्मच इन सब को मिलकार एक कप पानी में उबाल लें फिर इसका सेवन करें इससे कब्ज मिट जाती है।- गुलकन्द, आंवला, मुरब्बा, हर्रे का मुरब्बा, बहेड़ा का मुरब्बा आदि को मिलाकर छोटी-छोटी गोलियां बना लें। रोजाना सुबह, दोपहर और शाम 1-1 गोली गर्म दूध या पानी के साथ कुछ दिनों तक सेवन करने से कब्ज खत्म हो जाती है।- गुलकन्द को मुंह के छाले व घाव पर लगाने से छाले ठीक हो जाते हैं।- गुलकन्द 1 चम्मच, 1 चम्मच त्रिफला या रेंडी का तेल, गर्म पानी के साथ सोने से पहले पीने पेट में बनने वाली गैस खत्म हो जाती है।- 10-20 ग्राम गुलकन्द का सुबह-शाम सेवन करने से शौच साफ आता है, भूख बढ़ती है, शरीर मजबूत हो जाता है। गुलकन्द न मिलने पर इसके चूर्ण का भी प्रयोग किया जा सकता है।- गुलकन्द और शहद का सेवन करने से पाचन-शक्ति में वृद्धि होती है।- गुलकन्द खाने से तेज प्यास भी शांत हो जाती है। गुलाब का गुलकन्द प्रतिदिन सुबह-शाम 3 चम्मच 1 गिलास पानी में मिलाकर पीने से प्यास कम लगती है।- 5 से 20 ग्राम गुलकन्द (गुलाब के पत्तियों से बना) के साथ मिश्री मिलाकर शर्बत बना लें फिर इसे पी लें, इससे शरीर की गर्मी दूर हो जाती है और शांति मिलती है। शरीर में निखार भी आता है। 10 ग्राम गुलकन्द को जल या फिर शहद के साथ मिलाकर पीने से शरीर की गर्मी दूर हो जाती है।- गुलकन्द 50 ग्राम और हरड़ का बक्कल 20 ग्राम, सोंठ 20 ग्राम, सोनामक्खी 50 ग्राम और मुनक्का 20 ग्राम को शहद में मिलाकर छोटी-छोटी गोलियां बना लें फिर इन्ही गोलियों को दूध के साथ 1 दिन में दो बार सुबह और शाम सेवन करने से पेट के अन्दर उपस्थित कीड़े मर जाते हैं।- 10 से 15 ग्राम गुलकन्द को रोजाना सुबह और शाम दूध के साथ खाने से नकसीर का पुराने से पुराना रोग भी ठीक हो जाता है।- उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) से पीडि़त रोगी को प्रतिदिन 25-30 ग्राम गुलकन्द खाने से कब्ज नष्ट होने के साथ बहुत लाभ मिलता है।- खून के खराब होने के कारण से उत्पन्न रोग को ठीक करने के लिए गुलकन्द का सेवन करें। 6 से 10 ग्राम गुलकन्द को दूध या जल के साथ सुबह-शाम सेवन करने से शरीर के बाहरी अंगों जैसे हाथ-पैर की जलन, तलवों की जलन, आंखों की जलन या आंखों से गर्म पानी निकलना आदि रोग ठीक हो जाते हैं।- गुलकन्द और आंवले का मुरब्बा खाने और नारियल के तेल में पानी मिलाकर शरीर पर मालिश करने से शरीर की जलन खत्म हो जाती है।- गुलकन्द या गुलाब के सूखे फूलों में चीनी मिलाकर खाने से हृदय को बल मिलता है तथा इससे सम्बंधित कई प्रकार के रोग भी ठीक हो जाते हैं।- हृदय रोगी को कब्ज के कारण हृदय की धड़कन तेज होने के साथ ही घबराहट अधिक हो रही हो तो ऐसे रोगी की कब्ज की शिकायत को दूर करने के लिए प्रतिदिन आंवले का मुरब्बा सेवन कराएं या दूध के साथ गुलकन्द सेवन कराएं।- 10 ग्राम गुलकन्द को सुबह और शाम खाने से अधिक पसीना आना और शरीर से बदबू आने की शिकायत दूर हो जाती है।- गुलाब की ताजी पत्तियां तथा शहद बराबर मात्रा चीनी के साथ मिलाकर किसी कांच के बर्तन में रखकर लगातार 3 हफ्तों तक धूप में रखें इससे गुलकन्द तैयार हो जायेगा। इस गुलकन्द का सेवन सुबह तथा शाम को करने से शरीर से अधिक पसीना आना तथा बदबू आने की शिकायत दूर होती है।(नोट- गुलकन्द का अधिक मात्रा में सेवन करना ठंडे स्वभाव और गर्म स्वभाव वालों के लिए हानिकारक हो सकता है। इसका अधिक सेवन दिल के लिए भी हानिकारक हो सकता है। इसलिए कोई भी नुस्खा अपनाने से पहले चिकित्सक से एक बार सलाह अवश्य लें)
- स्वास्थ रहने के लिए हर तरह के पोषक तत्वों की पूर्ति होना हमारे लिए बहुत जरूरी होता है, ऐसे ही हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी पोषण विटामिन-डी और विटामिन-सी होते हैं, जो हमे मजबूती देने का काम करते हैं और कई गंभीर बीमारियों से दूर रखने का काम करते हैं। विटामिन डी और सी के स्तर का चयापचय सिंड्रोम घटकों के साथ विपरीत संबंध होता है और उन्हें चयापचय गतिविधियों को खत्म करने के दौरान एंटीऑक्सिडेंट पूरक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। अध्ययनों में अनुमान लगाया कि शारीरिक गतिविधि के साथ विटामिन डी या विटामिन सी का सेवन चयापचय सिंड्रोम के खतरे को कम कर सकता है। लेकिन क्या आप जानते हैं विटामिन डी या विटामिन सी से कौन सबसे ज्यादा बेहतर है और इनके क्या फायदे हैं।विटामिन डी का काम क्या हैहमारे शरीर को मजबूती देने के साथ हड्डियों और दांतों को मजबूत रखने वाले कैल्शियम और फास्फोरस को अवशोषित और विनियमित करने के लिए विटामिन डी की बहुत जरूरत होती है। विटामिन-डी आपके शरीर में इंसुलिन के स्तर को भी नियंत्रित करता है, हमारे प्रतिरक्षा मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र का सक्रिय करता है; हमारे जीन, मांसपेशियां और फेफड़े अच्छी तरह से काम करता है। लेकिन जब हम इसकी कमी को पूरा नहीं कर पाते तो ये हमारी सेहते के लिए गंभीर बन सकता है।विटामिन-डी की पर्याप्त मात्रा कैसे पूरी करेंबच्चे हों या फिर कोई बुजुर्ग हर किसी के लिए शरीर की मजबूती जरूरी होती है, लेकिन जब बात आ जाए कि इसकी पर्याप्त मात्रा कैसे पूरी की जाए तो इसपर कई लोग रुक जाते हैं। क्योंकि उन्हें ये नहीं पता होता कि कैसे इसकी पूर्ति की जाए। तो इसका सीधा जवाब होगा कि सूरज जैसे प्राकृतिक स्रोत और विटामिन डी से भरपूर खाद्य पदार्थ आपके लिए ज्यादा जरूरी हो जाते हैं। जैसे- रोजाना कम से कम 15 मिनट के लिए धूप में रहें और कोई सनस्क्रीन, सनब्लॉक या शेड के बिना ही आप विटामिन डी की कमी को पूरा करें। इसके साथ ही आप विटामिन डी से भरपूर खाद्य पदार्थ खाएं जैसे- सामन, टूना, मछली का तेल, जिगर, पनीर और अंडे की जर्दी का सेवन करें।क्या आप विटामिन-डी बहुत अधिक ले सकते हैं?विटामिन डी वसा में घुलनशील है, जिसका अर्थ है कि यह आपके वसा में जमा होता है। यदि आप बहुत अधिक लेते हैं, तो आपका शरीर इसे आसानी से साफ नहीं कर सकता है, और कैल्शियम का स्तर प्रभावित होगा, जो आपके हृदय और रक्त वाहिकाओं, फेफड़ों और गुर्दे को प्रभावित करता है। आप सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द, आपके मुंह में एक धातु का स्वाद, मतली या उल्टी, कब्ज या दस्त का अनुभव कर सकते हैं।विटामिन-सी का काम क्या हैविटामिन सी हमारे लिए कितना फायदेमंद होता है ये तो आप सभी जानते हैं। ये संक्रमण से लडऩे में हमारी बहुत मदद करता है और ये इम्यून सिस्टम को भी मजबूत करने का काम करता है। विटामिन सी हृदय और प्रतिरक्षा प्रणाली को भी मजबूत करता है, रक्त शर्करा के स्तर को विनियमित करने में मदद करता है और लोहे के अवशोषण में मदद करता है। इसके अलावा विटामिन सी आपके बालों और त्वचा को स्वस्थ रखने में मदद करता है और इन्हें बेहतर बनाता है।क्या विटामिन-सी बहुत अधिक ले सकते हैं?हालांकि बहुत ज्यादा विटामिन-सी से भरपूर आहार लेने से कोई हानिकारक संभावना नहीं है, विटामिन सी की खुराक के कारण मेगाडोज हो सकता है। जैसे- दस्त, जी मिचलाना, उल्टी, पेट में जलन, पेट में मरोड़, सिरदर्द और अनिद्रा की समस्या।विटामिन सी के स्रोत- आंवला , संतरा, अंगूर, टमाटर, नारंगी, नींबू, केला, बेर, अमरूद, सेब, कटहल, शलजम, पुदीना, मूली के पत्ते, मुनक्का, दूध, चुकंदर, चौलाई, बंदगोभी, हरा धनिया और पालक।
- पालक मानव के लिए बेहद उपयोगी है। पालक को आमतौर पर केवल हिमोग्लोबिन बढ़ाने के लिए गुणकारी सब्जी माना जाता है। बहुत कम लोग जानते हैं कि पालक में इसके अलावा और भी कई गुण हैं।पालक में पाए जाने वाले विभिन्न तत्व- 100 ग्राम पालक में 26 किलो कैलोरी उर्जा ,प्रोटीन 2 प्रतिशत ,कार्बोहाइड्रेट 2.9 प्रतिशत, नमी 92 प्रतिशत वसा 0.7 प्रतिशत, रेशा 0.6 प्रतिशत ,खनिज लवन 0.7 प्रतिशत और रेशा 0.6 प्रतिशत होता हैं। पालक में विभिन्न खनिज लवण जैसे कैल्सियम, मैग्नीशियम ,लौह, तथा विटामिन ए, बी, सी आदि प्रचुर मात्रा में पाया जाते हैं। इसके अतिरिक्त यह रेशेयुक्त, जस्तायुक्त होता है। इन्हीं गुणों के कारण इसे जीवन रक्षक भोजन भी कहा जाता हैं।- अगर आप भी बढ़े हुए वजन से परेशान हैं, तो पालक का सेवन वजन घटाने में मदद कर सकता है।- कैंसर के लिए भी पालक का प्रयोग फायदेमंद साबित हो सकता है। दरअसल, पालक बीटा कैरोटीन और विटामिन-सी से समृद्ध होता है और ये दोनों पोषक तत्व विकसित हो रही कैंसर कोशिकाओं से सुरक्षा प्रदान कर सकते है। इसके अतिरिक्त ये एक एंटीऑक्सीडेंट की तरह फ्री-रेडिकल्स और कार्सिनोजन ( एक पदार्थ जिससे कैंसर हो सकता है) को भी रोक सकते हैं।- आंखों की दृष्टि को स्वस्थ रखने के लिए गहरे हरे रंग के पत्तेदार साग का सेवन करने की सलाह दी जाती है, जिनमें से एक पालक भी है। पालक में विटामिन-ए और विटामिन-सी पाया जाता है, जो मुख्य रूप से आंखों में होने वाले मैक्यूलर डीजेनरेशन के खतरे को कम कर सकता है। इसके अलावा, पालक में ल्यूटिन और जियाजैंथिन नामक यौगिक पाए जाते हैं। ल्यूटिन और जियाजैंथिन का सेवन एंटीऑक्सिडेंट गुण की तरह कार्य करता है, जो मैक्युला (रेटिना का केंद्र बिंदु) में पिगमेंट डेनसिटी को सुधारने में अहम भूमिका निभा सकता है।- हड्डियों को स्वस्थ रखने के लिए कैल्शियम सबसे जरूरी पोषक तत्व है, जो हड्डियों के निर्माण से लेकर उनके विकास में मदद करता है और उन्हें मजबूती प्रदान करता है। पालक में कैल्शियम की मात्रा पाई जाती है, इसलिए हड्डियों के स्वास्थ्य को बरकरार रखने के लिए आप पालक को दैनिक आहार में शामिल कर सकते है।- मस्तिष्क स्वास्थ्य के लिए भी पालक के फायदे देखे जा सकते हैं। पालक मस्तिष्क-स्वस्थ के लिए उपयोगी विटामिन-के, ल्यूटिन, फोलेट और बीटा कैरोटीन जैसे पोषक तत्वों से भरपूर होता है। पालक का सेवन याददाश्त शक्ति को मजबूत करने का काम कर सकता है।- पालक नाइट्रेट पोषक तत्व से भरपूर सब्जियों में गिना जाता है, जो स्ट्रोक और हार्ट अटैक की वजह से होने वाली मौत के जोखिम को कम कर सकता है।- पालक खाने के फायदे ब्लड प्रेशर से होने वाले जोखिम को कम कर सकता है। पालक में नाइट्रेट की मात्रा पाई जाती है। नाइट्रेट युक्त पालक ब्लड प्रेशर को कम करने में लाभदायक परिणाम दिखा सकता है।- एनीमिया (शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं की कमी) का सबसे ज्यादा खतरा गर्भावस्था के दौरान देखने को मिलता है। आयरन की कमी के कारण यह स्थिति उत्पन्न हो सकती है । एनीमिया के जोखिम को कम करने के लिए आयरन की भरपूर मात्रा की आवश्यकता होती है, जो पालक के जरिए पूरी की जा सकती है ।- पालक आपके स्वास्थ्य को मजबूत बनाने के लिए एंटी-इन्फ्लामेट्री के रूप में भी कार्य करता है। दरअसल, एंटी-इन्फ्लामेट्री क्रिया सूजन को कम करने और क्रानिक इन्फ्लेमेशन को ठीक करने का गुण रखती है। इसलिए, पालक को एंटी-इन्फ्लामेट्री आहार के रूप में उपयोग करने की सलाह दी जाती है।- रोग मुक्त रहने के लिए इम्यनिटी का मजबूत रहना बहुत जरूरी है। पालक में विटामिन-ई की मात्रा भरपूर रूप में पाई जाती है और विटामिन-ई रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का काम कर सकता है।- गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल पाचन तंत्र से संबंधित होता है। पाचन तंत्र गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट लीवर, अग्न्याशय और पित्ताशय से बना होता है, जो शरीर में भोजन ग्रहण करने से लेकर भोजन को पचाने में मदद करता है। पालक फाइबर से भरपूर होता है। फाइबर मुख्य रूप से खाने को पचाने का कार्य करता है। इसके अलावा, फाइबर गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट को स्वस्थ रखने के लिए पेट के कैंसर से बचाव कर सकता है और कब्ज जैसे समस्याओं पर प्रभावी रूप से काम कर सकता है।- कैल्सीफिकेशन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें कैल्शियम शरीर के टिश्यू में जमा होने लगते हैं, जिससे टिश्यू कठोर जाते हैं। यह एक सामान्य या असामान्य प्रक्रिया हो सकती है । पालक आयरन से समृद्ध होता है और आयरन कैल्सीफिकेशन की प्रक्रिया को रोकने का काम कर सकता है । (नोट- पालक खाने के फायदे हैं, तो नुकसान भी हैं। इसलिए इसका संतुलित मात्रा में ही उपयोग किया जाना चाहिए। )
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नीम एक ऐसा पेड़ है, जिसकी छाल, पत्तियों, तने, लकड़ी और सींक आदि लगभग सभी हिस्से आयुर्वेदिक दृष्टि से बहुत फायदेमंद माने जाते हैं। खासकर नीम की पत्तियों में औषधीय गुण होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार नीम का स्वाद तिक्त (तीखा) और कटु (कड़वा) होता है। लेकिन इसमें कई ऐसे गुण होते हैं जो शरीर और सेहत को कई गंभीर बीमारियों और समस्याओं से बचाते हैं। अगर आप हर रोज सुबह उठकर खाली पेट 5-6 नीम की पत्तियां चबाकर खाते हैं, तो आपको ढेर सारे स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं। आइए आपको बताते हैं खाली पेट नीम की पत्तियां खाने से होने वाले जबरदस्त फायदे।
इम्यूनिटी बढ़ाने का आसान तरीकाइन दिनों लोग इम्यूनिटी को लेकर काफी परेशान हैं। इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए आपको बहुत मंहगी दवाएं या सप्लीमेंट्स लेने की कोई जरूरत नहीं है। आप रोजाना सुबह उठकर नीम की ताजा पत्तियां तोड़कर खा लें, तो आपका इम्यून सिस्टम वैसे ही बहुत मजबूत हो जाएगा और अच्छा रिस्पॉन्स करेगा। नीम की पत्तियों में एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-फंगल, एंटी-इंफ्लेमेट्री, एंटी-ऑक्सीडेंट आदि गुण होते हैं, जिसके कारण ये आपके शरीर में मौजूद इम्यून सिस्टम को बाहरी वायरस, बैक्टीरिया, फंगी आदि से लडऩे के लिए शक्ति देता है।रक्त शोधक गुणआयुर्वेद के अनुसार नीम में रक्त शोधक गुण होते हैं, जिसके कारण सुबह खाली पेट नीम की पत्तियां चबाने से आपके खून की अच्छी तरह सफाई हो जाती है। नीम में एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-इंफ्लेमेट्री गुण तो होते ही हैं, इसलिए ये आपके रक्त में घुली अशुद्धियों को खत्म कर देता है और अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकाल देता है। नीम की पत्तियां हर रोज चबाकर खाने से आपका शरीर कुछ ही हफ्तों में टॉक्सिन फ्री हो जाता है।त्वचा पर निखार और चमक बढ़ता हैरोजाना सुबह नीम की पत्तियां चबाकर खाने से आपकी त्वचा की क्वालिटी सुधरती है और त्वचा पर निखार आता है। दरअसल खून में मौजूद अशुद्धियां ही आपके चेहरे के नीरस और खराब दिखने का कारण होते हैं। जब आपके शरीर से टॉक्सिन्स कम होने लगते हैं, तो त्वचा की चमक बढऩे लगती है। इस तरह नीम की पत्तियां आपके नैचुरल ब्यूटी टॉनिक की तरह भी हैं। त्वचा पर दाग-धब्बों और मुंहासों की समस्या हो या किसी तरह का चर्म रोग, स्किन इंफेक्शन आदि, नीम की पत्तियों को पीसकर लगा लेने से आपकी समस्याएं ठीक हो जाती हैं।कैंसर से बचाती हैं नीम की पत्तियांकैंसर इस समय दुनिया की बड़ी बीमारियों में से एक है, जिसके कारण हर साल करोड़ों लोग मरते हैं। कैंसर का खतरा हर किसी को है। नीम की पत्तियों में विशेष एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो शरीर में कैंसर सेल्स को पनपने से रोकते हैं। इसलिए रोजाना सुबह नीम की 4-5 पत्तियां चबा लेने से आप कैंसर जैसी गंभीर और जानलेवा बीमारियों से बच सकते हैं।डायबिटीज का खतरा होता है कमसुबह-सुबह खाली पेट नीम की पत्तियां चबाने से आपके शरीर का ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल में रहता है और आप स्वस्थ रहते हैं। इसलिए अगर आप पहले से डायबिटीज का शिकार हैं, तो आपका शुगर कंट्रोल रखने में नीम की पत्तियां आपकी मदद करती हैं और यदि आपको डायबिटीज नहीं है तो भविष्य में इसके होने की संभावना कम हो जाती है। डायबिटीज रोगी नीम की पत्तियों का जूस पिएं, तो उनके लिए बहुत फायदेमंद होगा। - दुनियाभर में कितने तरह की सब्जियां खाई जाती हैं, इसकी कोई गिनती नहीं है। हर देश, राज्य, समुदाय और मौसम की अपनी विशेष सब्जियां हैं। लेकिन कुछ सब्जियां ऐसी भी हैं, जिन्हें पूरी दुनिया में उगाया और खाया जाता है। इनमें से कई सब्जियां अपने पोषक तत्वों और फायदों के कारण एक देश से दूसरे देश पहुंचीं। आज हम आपको बता रहे हैं ऐसी ही 5 सब्जियों के बारे में, जिन्हें पूरी दुनिया के न्यूट्रीशनिस्ट और हेल्थ एक्सपट्र्स हेल्दी मानते हैं। इसका कारण यह है कि ये सब्जियां विशेष पोषक तत्वों , एंटीऑक्सीडेंट्स और मिनरल्स से भरपूर हैं, जो इंसान के शरीर को स्वस्थ रखने और कई बीमारियों से बचाने में काम आते हैं। अगर आप भी इन 5 सब्जियों को रोजाना के खानपान में किसी भी तरह से शामिल कर लें, तो आपको भविष्य में कई गंभीर बीमारियों और शारीरिक समस्याओं का खतरा कम होता जाएगा।लहसुनजिस लहसुन को आज हम और आप खाते हैं, वो कितना गुणकारी है, इसकी खोज आज से हजारों साल पहले ही चीन और मिश्र में कर ली गई थी। भारतीय आयुर्वेद में भी लहसुन को बहुत महत्वपूर्ण औषधि माना गया है। लहसुन का सबसे पावरफुल और सबसे खास कंपाउंड है एलिसिन (्रद्यद्यद्बष्द्बठ्ठ)। लहसुन में मौजूद एलिसिन के कारण ही शायद ही दुनिया का कोई देश हो, जहां लहसुन न खाया जाता हो। रिसर्च बताती हैं कि लहसुन खाने से ब्लड शुगर कंट्रोल में रहता है, हार्ट अटैक का खतरा कम होता है, बेड कोलेस्ट्रॉल की सफाई हो जाती है, खून में हानिकारक ट्राईग्लिसराइड्स की मात्रा कम होती है और यहां तक कि कैंसर से भी बचाव रहता है।पालकदुनिया की सबसे हेल्दी सब्जियों में आपकी चिर-परिचित पालक भी शामिल है। पालक इसलिए खास है क्योंकि इसके गहरे हरे रंग की पत्तियों में बीटा-कैरोटीन और ल्यूटिन जैसे पावरफुल एंटीऑक्सीडेंट्स मौजूद होते हैं। ये दोनों ही एंटीऑक्सीडेंट्स कैंसर के खतरे को कम करने का काम करते हैं। इसके अलावा पालक विटामिन ए का सबसे अच्छा स्रोत माना जाता है, जिसके कारण पालक खाने से आंखें लंबी उम्र तक स्वस्थ रहती हैं। सिर्फ 30 ग्राम पालक खाकर ही आप अपने डेली विटामिन ्र की डोज का 56त्न हिस्सा पा सकते हैं। इसके अलावा पालक में विटामिन ्य भी होता है और कैलोरीज बहुत कम होती हैं। पालक खाने से भी हार्ट की बीमारियां और ब्लड प्रेशर का खतरा कम होता है।ब्रोकलीब्रोकली भी हेल्दी सब्जियों की लिस्ट में काफी ऊपर आती है। इसका कारण यह है कि ब्रोकली में 2 सबसे खास कंपाउंड होते हैं, जिन्हें ग्लूकोसाइनोलेट और सल्फोराफेन कहते हैं। ये दोनों कंपाउंड्स भी कैंसर को रोकने में कारगर माने जाते हैं। ब्रोकली के सेवन से कई क्रॉनिक बीमारियों का खतरा कम होता है। ब्रोकली में ढेर सारे पोषक तत्वों के साथ फाइबर बहुत अच्छी मात्रा में होता है। ब्रोकली में फॉलेट, पोटैशियम, मैंग्नीज आदि मिनरल्स होते हैं, जो दिल की बीमारियों से आपको बचाते हैं।हरा मटरमटर हमारे यहां सीजनल सब्जी है, इसलिए इसे लोग चाव से खाते हैं, मगर इसके पोषक तत्वों और फायदों के बारे में लोग कम जानते हैं। हरे मटर में स्टार्च ज्यादा होता है, इसलिए इसमें काब्र्स और कैलोरीज थोड़ी ज्यादा होती हैं इसलिए इसे बहुत ज्यादा खाने से ब्लड शुगर पर थोड़ा प्रभाव पड़ सकता है। लेकिन फाइबर और प्रोटीन के मामले में मटर बहुत ज्यादा समृद्ध सब्जी है। 1 कप मटर खाने से आपको लगभग 9 ग्राम फाइबर और 9 ग्राम ही प्रोटीन मिलता है। इसके अलावा मटर में विटामिन ्र, विटामिन ्य, विटामिन ष्ट, नियासिन, फॉलेट, थायमिन, राइबोफ्लेविन जैसे तत्व होते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि रिसर्च में यह बात सामने आई है कि मटर के सेवन से कैंसर सेल्स का बढऩा न सिर्फ कम हो जाता है बल्कि ये कैंसर सेल्स को मार भी सकती है।स्वीट पोटैटो (शकरकंद)शकरकंद के नाम में ही कंद है। हमारे यहां आने वाली सफेद शकरकंद से कहीं ज्यादा ऑरेंज कलर वाली शकरकंद हेल्दी होती है। इसे दुनियाभर में स्वीट पोटैटो के नामो से जाना जाता है। ये स्वीट पोटैटो भी विटामिन ए और बीटा-कैरोटीन का बहुत अच्छा स्रोत माना जाता है। बीटा-कैरोटीन को फेफड़ों और ब्रेस्ट कैंसर से बचाने में बड़ा महत्वपूर्ण माना जाता है। एक मीडियम साइज के शकरकंद को खाने से आपको 4 ग्राम फाइबर, 2 ग्राम प्रोटीन, विटामिन बी 6, मैंग्नीज, पोटैशियम आदि मिलता है।
- बदलते मौसम में होने वाली बीमारियों की एक बड़ी वजह है कमज़ोर इम्यूनिटी। इसीलिए, अपने परिवार वालों को पिलाइए इम्यूनिटी बूस्ट करने वाली चीज़ों से बना यह ड्रिंक, जो है एक आयुर्वेदिक काढ़ा। यह खऱाब गले और सर्दी-ज़ुकाम से राहत दिलाएगा। आयुर्वेदिक काढ़ा बनाने का तरीका हम यहां लिख रहे हैं। जिसकी मदद से आप घर में इसे आसानी से तैयार कर सकते हैं।काढ़ा बनाने के लिए इन चीज़ों की ज़रूरत पड़ेगी-2 चम्मच शहद या फिर गुड़-2 चम्मच कटी हुई अदरक के टुकड़ें-3 काली मिर्च-6-7 तुलसी की पत्तियां-3-4 लौंगआयुर्वेदिक काढ़ा बनाने का तरीकासबसे पहले किसी बर्तन में आधा लीटर पानी उबलने के लिए रखें। इसमें, कटी हुई अदरक और तुलसी के पत्ते डालें। फिर, काली मिर्च और लौंग के दानों को किसी सिलबट्टे पर पीसकर पाउडर बनाएं। इसे, भी पानी में डाल दें। इन सभी चीज़ों को पानी के साथ उबलने दें। इससे, इन मसालों का फ्लेवर और गुण पानी में मिक्स हो जाएंगे। पसंद के अनुसार काढ़े में मूलेठी के टुकड़े भी डाल सकते हैं।ध्यान रखें पानी को तब तक पकाना या उबालना है, जब तक कि यह आधा ना हो जाएं। जब, मिश्रण अच्छी तरह उबल जाए। तो, आंच बंद कर दें। काढ़ा तैयार है। इस काढ़े को छान कर पानी और इसमें पड़ी चीज़ें अलग कर दें।इस काढ़े में स्वाद के अनुसार शहद मिलाएं या फिर गुड़। इसे, गर्मागर्म और धीरे-धीरे पीने से सर्दी-खांसी, बंद गला और ज़ुकाम की वजह से होने वाले सिरदर्द से राहत मिलती है।----
- इन दिनों ओरिगेनो खाने का चलन हर जगह बढ़ गया है। कई लोग तो ओरिगेनो को खाने का स्वाद और महक बढ़ाने के लिए ओरिगेनाक का इस्तेमाल करते हैं। ओरिगेना, मार्जोरम नामक अन्य हर्बस से काफी नजदीक है। ग्रीक सलाद में ओरिगेना की पत्तियां एक तरह से स्टार हर्बस है। वहां इसे धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा इटालियन खाने में भी ओरिगेनो की धूम है। बिना ओरिगेनो के पिज्जा की कल्पना ही नहीं की जा सकती। ओरिगेनो में एंटीआक्सीडेंट तत्व मौजूद है। कई बार ओरिगेनो को पेट से सम्बंधित समस्याओं से निपटने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। पाचन तंत्र संबंधित परेशानी में भी यह कारगर है।ओरेगेनो को पिज्जा हर्ब के रुप में जाना जाता है। ज्यादातर लोग ओरेगेनो का सिर्फ पिज्जा में स्वाद बढ़ाने वाले तत्व के रुप में जानते हैं। लेकिन ओरेगेनो सेहत के लिए बहुत ही उपयोगी हर्ब में से एक हैं। इसके अलावा लोग इसे कई स्वास्थ्य समस्याओं को दूर करने के लिए भी प्रयोग करते हैं। ताजे और सूखे ओरेगेनो के प्रयोग से पेट में दर्द, वजन घटाने और सर्दी-जुकाम जैसी समस्याओं से निजात पा सकते हैं।ओरेगेनो में विटामिन और मिनरल भरपूर मात्रा में होता है। इसमें विटामिन ए, सी और ई कॉम्पलैक्स के साथ जिंक, मैग्निशियम, आयरन, कैल्शियम, पौटेशियम, कॉपर, मैगनीज भी पाया जाता है। ये सारे तत्व हमारे शरीर के लिए काफी उपयोगी और फायदेमंद हैं।एंटीऑक्सीडेंट और एंटीसेप्टिक से भरपूर ओरेगेनो का सेवन कॉमन कोल्ड से बचने का अच्छा उपाय है। ओरेगेनो में मौजूद एंटीवायरल तत्व जल्द ही फ्लू के लक्षणों से निजात दिलाते हैं। औमतौर पर फ्लू होने पर सिरदर्द , बुखार, उल्टी, कफ, गले में दर्द जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। एक गिलास पानी में ओरेगेनों की कुछ बूंद मिलाकर पीने से इन लक्षणों से निजात मिल सकती है।कई बार आंतों में होने वाले संक्रमण की वजह से पेट में दर्द और गैस जैसी समस्या शुरु हो जाती है। यह समस्या आंतों में मौजूद कुछ खास परजीवी के कारण होती है। ओरेगेनो ऐसे ही परजीवी को मार कर इन समस्याओं से निजात दिलाता है। सूखे हुए ओरेगेनों की मदद से आप इस समस्या से आसानी से छुटकारा पा सकते हैं।यह हर्ब पौटेशियम का एक अच्छा स्रोत है। शरीर के अंगों और कोशिकाओं के लिए यह एक अच्छा तत्व है। यह हृदय की तेज धड़कनों को नियंत्रित करता है और रक्तचाप जैसी गंभीर समस्या से भी छुटकारा दिलाता है। यह ओमेगा-3 फैटी एसिड का प्राकृतिक स्रोत है जो कि हृदय रोग को दूर रखने में मददगार होता है। ओरेगेनो में फेफड़ों को साफ करने वाले तत्व पाए जाते हैं जिसकी वजह से अस्थमा की समस्या से बचा जा सकता है। अगर आप अस्थमा की समस्या से ग्रस्त हैं तो ओरेगेनों टी ले सकते हैं आप चाहें तो उसमें चीनी की जगह शहद का प्रयोग कर सकते हैं।इस हर्ब में कोलेस्ट्रोल नहीं होता है साथ ही यह फाइबर से भरपूर होता है। फाइबर के सेवन से आप बढ़ते वजन को नियंत्रित कर सकते हैं। इसमें कार्वाक्रोल नामक तत्व पाया जाता है जो शरीर पर जमे फैट को कम करने में मददगार होता है। ओरेगेनो में फाइबर का अच्छा स्रोत है जो कैंसर पैदा करने वाले टॉक्सिन को शरीर से बाहर निकाल देता है। एंटीबैक्टेरियल और एंटी इंफलामैटरी से भरपूर ओरेगेनों स्तन कैंसर और प्रोस्टेट कैंसर के खतरे को भी दूर रखता है।---
- मौसम में बदलाव के साथ लगभग हर कोई खांसी और सर्दी का शिकार हो जाता है। घर के अंदर रहने, साफ-सफाई बनाए रखने, खुद को वायरस या बैक्टीरिया के संक्रमण से बचाने के लिए तमाम तरीके हैं। संक्रमण के कारण आमतौर पर खांसी और जुकाम की समस्या सबसे पहले होती है। खानपान खांसी-जुकाम के इलाज और रोकथाम के लिए महत्वपूर्ण होता है। सर्दी-जुकाम से राहत पाने के लिए 4 हेल्दी डाइट टिप्स-1. सूप- सूप कफ से छुटकारा पाने में मदद करता है। इसके अलावा, हेल्दी सूप शरीर में सूजन को शांत करने में मदद करता है। अदरक, लहसुन, हल्दी, काली मिर्च , सब्जियों से बना सूप भूख भी शांत करता है और फायदेमंद भी होता है। यह आप पर निर्भर है कि आप किस तरह का सूप पीना पसंद करते हैं।2. विटामिन सी खाद्य पदार्थ- विटामिन सी से युक्त फल और सब्जियां खांसी और जुकाम में लाभकारी हैं। ये इम्युनिटी को बढ़ाने में मदद करती हैं, शरीर को इंफेक्शन से बचाती हैं। अधिकतम लाभ के लिए अपने आहार में टमाटर, संतरे, पपीता आदि को शामिल करें।3. कैमोमाइल टी- इस चाय में जीवाणुरोधी गुण होते हैं, जो अच्छी नींद में मदद करता है। बिस्तर पर जाने से पहले इस चाय का एक कप खांसी और सर्दी के कारण परेशान होने पर आपको बेहतर नींद में मदद कर सकता है।4. केला- यह एक गलत धारणा है कि व्यक्ति को खांसी और जुकाम के दौरान केला नहीं खाना चाहिए। केले पोटेशियम से भरपूर होते हैं, जो इसे खांसी और सर्दी से पीडि़त लोगों के लिए एक अद्भुत फल बनाता है। जहां तक संभव हो दोपहर से पहले केले खा लें।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल ही में बच्चों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए फैबरिक मास्क को पहनने का सही तरीका बताया है। डब्ल्यूएचओ ने फैबरिक मास्क को पहनने की कुछ गाइडलाइंस तैयार की हैं। साथ ही डब्ल्यूएचओ ने बताया कि खुद को और दूसरों को कैसे प्रोटेक्ट किया जाए। पढ़ते हैं आगे...खुद को और दूसरों को बचाने के लिए याद रखें ये बातें1. दूसरों से लगभग एक मीटर की दूरी बनाए रखें।2. समय-समय पर अपने हाथ धोते रहें।3. अपने मास्क को और अपने चेहरे को बार-बार छूने से बचें।4. मास्क को पहने समय सही साइड का ध्यान रखें।5. अपने मास्क को छूने से पहले एक बार हाथ जरूर धोएं।6. मास्क के खराब होने या गंदे होने पर उसे फेंक दें।मास्क पहनते वक्त ध्यान रखें ये बातें1. सबसे पहले मास्क में उस हिस्से की पहचान करें जो चेहरे को और नाक को कवर करेगा।2. अब अपने मास्क को बड़ी सावधानी के साथ पहनें और ध्यान दें कि नाक के आसपास के हिस्से में जगह न छूटे।3. मास्क से अपने मुंह, नाक और चिन को कवर करें।4. एक बार मास्क पहनने के बाद उसके फ्रंट हिस्से को छूने से बचें।5. अपना मास्क उतारने से पहले भी हाथ धोएं।6. मास्क में लगी तनी की मदद से मास्क को उतारें।7. अपने मास्क को किसी साफ थैले या कंटेनर में रखें।8. मास्क उतारने के बाद अपने हाथ फिर से धोएं।9. अपने मास्क को दिन में कम से कम एक बार गर्म पानी से जरूर धोएं।10. किसी अन्य को अपना मास्क इस्तेमाल करने न दें।मास्क के गलत प्रयोग करने से, असावधानी और वायरस की चपेट में आने की संभावना, मास्क न पहनने वाले लोगों से भी कहीं ज्यादा है, क्योंकि गलत तरीके से पहना गया मास्क आपको झूठी सुरक्षा का भ्रम देता है। इसीलिए विश्वा स्वास्थ्य संगठन ने बताया है कि लोग मास्क पहनने में कौन सी गलतियां कर रहे हैं।ढीला मास्क लगानाआपका मास्क आपके चेहरे से चिपका हुआ होना चाहिए, ताकि ऊपर, नीचे या किसी भी दिशा से बाहरी पार्किल्स और वायरस आपकी नाक और मुंह में न प्रवेश कर जाएं। लेकिन बहुत सारे लोग ढीला-ढाला मास्क पहन लेते हैं।नाक के नीचे मास्क पहननाबहुत सारे लोग मास्क तो लगा रहे हैं, लेकिन सुविधा की दृष्टि से अपनि नाक को मास्क के बाहर निकाल लेते हैं और मुंह को ढके रहते हैं। मुंह से ज्यादा तो वायरस के प्रवेश का खतरा और निकलने का खतरा नाक से ही है, क्योंकि आमतौर पर नाक से ही आप सांस खींचते हैं और छोड़ते हैं। इसलिए नाक और मुंह दोनों ढंके होने चाहिए।बात करने के लिए मास्क उतार लेते हैंये गलती बहुत सारे लोग करते हैं कि अकेले में तो पूरा मास्क पहनते हैं, लेकिन जब कोई सामने आ जाए तो उससे बात करने के लिए मास्क हटा कर बात करते हैं। कुल मिलाकर इस तरह मास्क के प्रयोग से बिल्कुल भी सुरक्षा नहीं मिल सकती है।ठुड्डी के नीचे मास्क पहननाकुछ लोग मास्क को मुंह और नाक पर लगाने के बजाय कान से लटकाकर दाढ़ी के नीचे कर लेते हैं और बाद में इसे फिर पहनते-उतारते रहते हैं। ये भी गलत बात है।मास्क को बार-बार एडजस्ट करना और छूनाये गलती तो 99 प्रतिशत लोगों को करते हुए देखा गया है। मास्क पहनने के बाद भी थोड़ी-थोड़ी देर में अपने मास्क को एडजस्ट करना या उतारना-पहनना ये गलत आदतें हैं। इससे आपको कोरोना वायरस से सुरक्षा नहीं मिल सकती है।मास्क की अदला-बदलीकुछ लोग एक-दूसरे से मास्क भी शेयर कर रहे हैं। खासकर घर के सदस्य आपस में कोई किसी का भी मास्क पहन कर बाहर निकल जाते हैं। ये आदत इसलिए गलत है क्योंकि कोरोना वायरस के 50त्न से ज्यादा मामलों में व्यक्ति को कोई लक्षण नहीं दिखते, वो स्वस्थ नजर आता है। ऐसे में मास्क आपस में बदलने से वायरस के फैलने का खतरा बहुत ज्यादा है।अगली बार जब भी आप मास्क पहनें तो ये गलतियां न करें क्योंकि मास्क आपको सुरक्षा के लिए पहनना है, न कि पुलिस से बचने या किसी को दिखाने के लिए। इसलिए मास्क को तरीके से पहनें। अगर आपका मास्क रियूजेबल (दोबारा इस्तेमाल) वाला है, तो हर प्रयोग के बाद मास्क को साबुन और पानी से अच्छी तरह धोकर सुखाएं। अगर मास्क सिंगल यूज है, तो इसे इस्तेमाल करने के बाद फेंक दें।
- देश में कोरोना संक्रमण के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। ऐसे में सरकार और वैज्ञानिक नई-नई गाइडलाइंस और एडवाइजरी लोगों के सामने पेश कर रहे हैं। शरीर की प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्युनिटी जितनी मजबूत होगी उतनी ही जल्दी लोग ठीक होंगे इसलिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी आयुष मंत्रालय द्वारा जारी की गई इम्युनिटी बढ़ाने वाली चीजों को अपनी दिनचर्या में जोडऩे के लिए कहा है। आइए जानते हैं...इम्युनिटी बूस्ट करने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय की गाइडलाइन1. गिलोए पाउडर एक इम्युनिटी बूस्टर है। अगर इसे गर्म पानी में 1-3 ग्राम लगातार 15 दिन लिया जाए तो शरीर को बीमारियों से लडऩे में मदद मिलती है।2. अश्वगंधा एक प्रकार की आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी है जो इम्युनिटी बढ़ाने में मदद करती है। दिन में दो बार इसका सेवन करने से लाभ मिलता है।3. आंवला या आंवले के पाउडर में विटामिन सी भरपूर मात्रा में होता है। 1-3 ग्राम रोजाना सवेन करने से इम्युनिटी मजबूत रहती है।4. मुलेठी पाउडर सूखी खांसी के लिए बहुत मददगार है। अगर दिन में दो बार गर्म पानी में 1-3 ग्राम लिया जाए तो बीमारी से लडऩे में मदद मिलती है।5. जब भी चोट लगती है तो गर्म हल्दी दूध का सेवन किया जाता है। इम्युनिटी सिस्टम को बढ़ाने के लिए ये बहुत मददगार है। रोज रात को गर्म दूध में हल्दी मिलाकर लें।6. अगर आपको गले में खराश सी महसूस हो तो अपनी दिनचर्या में गरारे शामिल करें। इसके लिए एक गिलास गर्म पानी में आधा चम्मच हल्दी पाउडर और थोड़ा सा नमक डालकर एक घोल बना लें। दिन में कम से कम 5 से 6 बार गरारे करें।7. वैसे तो च्यवनप्राश का सेवन सर्दियों में किया जाता है। लेकिन ये इम्युनिटी बढ़ाने के लिए काफी कारगर है। ऐसे में महामारी के दौर में इसका सेवन किया जा सकता है।8. समशामनी वटी को अगर दिन में दो बार लिया जाए तो ये संक्रमण से लडऩे में बेहद मददगार है। बता दें कि ये वटी बड़ी आसानी से पंसारी की दुकान पर मिल सकती है। इसके आलावा आप ऑनलाइन भी ऑडर दे सकते हैं।9. हर्बल टी या काढ़ा पिएं। इसके लिए तुलसी, दालचीनी, काली मिर्च और अदरक और मुनक्का को एक साथ पानी में उबाल लें और छानकर इस पानी का सेवन करें। ऐसा आप दिन में 1 से 2 बार कर सकते हैं। अगर आपको इस काढ़े को पीने में परेशानी आए तो टेस्ट के लिए आप इसमें गुड़ या नींबू का रस मिला सकते हैं।10. खाना पकाने में रोजाना हल्दी, जीरा, धनिया और लहसुन जैसे मसालों का इस्तेमाल करें।कुछ महत्वपूर्ण बिंदु-समय-समय पर हाथ धोएं। साथ ही मास्क हर वक्त लगाए रखें।-हर सात दिनों के भीतर एक बार अपना चेक-अप जरूर करवाएं।-अपनी दिनचर्या में योगासन और प्राणायम जोड़ें।-अपने ऑक्सीजन का स्तर भी बीच-बीच में जांचते रहें।----