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- अरबी को लेटिन भाषा में कोलोकेसिया एस्क्यूलेंटा नाम से जाना जाता है। अरबी से बनने वाली स्वादिष्ट सब्जी, भर्ता और अन्य रेसिपी लोगों को खूब भाती है। गैस के रोगियों को अरबी खाने से परहेज करना चाहिए। गठिया और खांसी में भी अरबी हानिकारक होती है।अरबी के कुछ लाभ भी हैं। ठंडी और तर प्रकृति की अरबी उच्च रक्तचाप के रोगियों के लिए बेहद फायदेमंद होती है। वहीं गुर्दे के रोगियों के लिए यह बेहद फायदेमंद होती है। अरबी खाने से गुर्दे की कमजोरी समाप्त होती है। हृदय रोग के मरीजों को नियमित रूप से अपने भोजन में अरबी की सब्जी को शामिल करना चाहिए इससे हृदय रोग में लाभ होता है। शिशुवती माताओं को अरबी का सेवन करना चाहिए इससे बच्चे को पिलाने के लिए दूध बढ़ता है।त्वचा का सूखापन और झुर्रियां समाप्त करने में भी अरबी बेहद सहायक होती है। फिर चाहे सूखापन सांस नली में हो या आतों में। अरबी की सब्जी में गरम मसाला, दालचीनी और लौंग डालकर खाना फायदेमंद होता है।
- हमारे शरीर की त्वचा हमारे खानपान पर काफी निर्भर करती है। हेल्दी डाइट शरीर की स्किन को चमकदार बना सकती है। स्किन को नैचरली ग्लोइंग और रेडिऐंट बनाने के लिए कुछ चीजों को खान-पान में अवश्य शामिल करें। दरअसल हम जो कुछ भी खाते हैं, उसे से हमारे शरीर को सेहत और सुंदरता मिलती है। अपनी प्राकृतिक सुंदरता को निखारने के लिए सबसे जरूरी बात है कि हम प्रकृति के अधिक से अधिक करीब रहें।हरी सब्जियों को डाइट में शामिल करेंखूबसूरत त्वचा पाने के लिए अपनी डायट में हरी पत्तेदार सब्जियां शामिल करें। हमारी स्किन केवल बढ़ती उम्र और धूप के कारण ही खराब नहीं होती है, बल्कि प्रदूषण और जंक फूड्स भी इस पुर बुरा असर डालते हैं।डार्क चॉकलेट्सअधिक चॉकलेट खाने से शरीर का वजन बढ़ जाता है। लेकिन यदि सही मात्रा में डार्क चॉकलेट खाया जाए, तो यह हमारी बॉडी में ब्लड शुगर लेवल को रेग्युलेट करने और स्किन को खूबसूरत बनाने का काम भी करती है। डार्क चॉकलेट ऐंटिऑक्सीडेंट्स से भरपूर होती है। इससे उम्र का असर भी त्वचा पर कम पड़ता है। इसीलिए ब्यूटीशियन आजकल चेहरे पर चॉकलेट पैक लगाने पर जोर देती हैं।खट्टे फलमौसमी, संतरा, नींबू, चकोतरा, कीवी, आलू बुखारा, आंवला और बेरीज जैसे खट्टे फलों का सेवन त्वचा को बेदाग बनाता है। इसलिए दिन में कम से कम एक फल अवश्य खाएं।ओमेगा-3 और विटामिन-डीओमेगा-3 फैटी एसिड, विटामिन-डी और प्रोटीन ये तीन बेहद जरूरी चीजें हैं, जो स्किन को खूबसूरत बनाए रखने के लिए जरूरी हैं। जो लोग नॉनवेज नहीं खाते, वे ओमेगा-3 फैटी एसिड्स के लिए कैपसूल्स ले सकते हैं। धूप में बैठने का वक्त नहीं है तो विटामिन-डी के लिए टैबलेट्स ले सकते हैं। प्रोटीन की जरूरत डायट में दाल शामिल करने से पूरी हो जाती है।ड्राई फ्रूट्सड्राई फ्रूट्स में खासतौर से अखरोट और बादाम स्किन को खूबसूरत बनाने का काम करते हैं। अखरोट ओमेगा-3 और ओमेगा-6 फैटी एसिट से भरपूर होता है। वहीं, बादाम विटामिन-ई का अच्छा सोर्स है।---
- हल्दी वाला दूध शरीर के लिए फायदेमंद माना जाता है। लेकिन गीली खांसी होने पर यह फायदा नहीं, बल्कि नुकसान पहुंचाता है। क्योंकि दूध से कफ बढऩे की समस्या हो सकती है। अगर आपको गीली खांसी है तो आपको मुलेठी चूर्ण और काली मिर्च का चूर्ण शहद में मिलाकर पेस्ट बना लेना चाहिए। इस पेस्ट को उंगली या चम्मच से धीरे-धीरे चाटते हुए खाना चाहिए।सूखी खांसी में मुलेठी का सेवन न करेंवहीं सूखी खांसी हो और इसमें गले में अधिक दिक्कत हो रही हो लेकिन खांसी में कफ ना आ रहा हो तो आपको मुलेठी का सेवन नहीं करना चाहिए। इससे आपको अधिक लाभ नहीं होगा। बल्कि कुछ केसेज में धसका उठने की समस्या बढ़ सकती है। अगर आपको सूखी खांसी है तो आपको इससे मुक्ति पाने के लिए हल्दी मिला दूध पीना चाहिए। यह आपकी खांसी को शीघ्र ठीक करने का काम करेगा। साथ ही खांसी के कारण होने वाली वीकनेस और मसल्स पेन में राहत देता है।----
- रंगों का त्योहार, होली में ठंडाई पीने का अपना ही मजा है। एक प्रकार से ठंडाई होली मनाने का एक अनिवार्य हिस्सा है। बादाम, खसखस और गुलाब की पत्तियों से बनी ठंडाई होली पर शरीर को तरोताजा बने रहने में मदद करेगी। उत्तर प्रदेश समेत कई जगह ये स्पेशल होली ड्रिंक के बिना, तो त्योहार का मजा ही नहीं आता है। ठंडाई के अपने फायदे हैं। ठंडाई एसिडिटी, पेट में जलन, अपच जैसी समस्याओं में बहुत फायदेमंद है।खसखस वाली ठंडाई एक एनर्जी बूस्टर है, जो तात्कालिक राहत और एनर्जी दे सकता है। खसखस का उपयोग हर्बल दवाओं में भी किया जाता है और इसमें कुछ अद्भुत एंटीबायोटिक गुण होते हैं। इसके साथ ये शरीर की थकी हुए मांसपेशियों को आराम करके शांत कर सकता है। वहीं आप इसे गर्मी में भी एक पेय पदार्थ की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं। दूसरी ओर, बादाम एक प्रोटीन से भरपूर नट है, जो कई तरह के स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है। यह फाइबर, विटामिन ई, मैग्नीशियम, कैल्शियम और पोटेशियम से समृद्ध है। कुल मिलाकर ये ठंडाई स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है।ऐसे बनाए ठंडाई-खसखस (1 बड़ा चम्मच), खरबूजे के बीज (1 चम्मच), सूरजमुखी के बीज (1 चम्मच), सौंफ (2 चम्मच), ,काली मिर्च (2-3 दाने), जायफल पाउडर (1 चम्मच) -इलाइची या इलायची पाउडर (1/4 चम्मच), पिस्ता पाउडर (2-3 बड़ा चम्मच), मेपल सिरप या शहद, केसर।विधि- सबसे पहले इन सबको पीस लें। अब, एक पैन में बादाम का दूध (800 मिली) डालें और पीसा हुआ मिश्रण डालें। साथ ही केसर डालकर अच्छी तरह हिलाएं। सुनिश्चित करें कि गांठ नहीं बनें। दूध को तब तक पकाएं जब तक वो गाढ़ी न हो जाए। गैस बंद करें और इसे ठंडा होने दें। मीठा करने के लिए मेपल सिरप मिलाएं । आप शहद के साथ पेय को मीठा भी कर सकते हैं। ठंडाई को गिलास में डालें और ठंडा करें। ऊपर से कटे हुए ड्राई-फूड्रस डाल के सजा लें।खसखस का पोषण तत्वखसखस के साथ उच्च पोषण मूल्य जुड़ा हुआ है। यह जड़ी बूटी ओमेगा -6 फैटी एसिड का एक समृद्ध स्रोत है, जो चयापचय और विकास के लिए अच्छा माना जाता है। खसखस में प्रोटीन, विटामिन, खनिज और आहार फाइबर भी मौजूद होते हैं, जो इसे व्यंजनों में एक महत्वपूर्ण घटक बनाते हैं। पोषण मूल्य के संदर्भ में, इसके 100 ग्राम बीज में 18 ग्राम प्रोटीन, 28 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 20 ग्राम आहार फाइबर और 3 ग्राम चीनी होती है। ये जब एक स्वस्थ अनुपात में दैनिक उपभोग किया जाता है और शरीर के संपूर्ण स्वास्थ्य को नियंत्रित करने में मदद करता है।खसखस सूजन को जल्दी ठीक करता है। अच्छी नींद में मदद करता है। दर्द निवारक है। इम्यूनिटी को बेहतर बनाने में मदद करता है और पाचन में सुधार करता है।---
- रंगों का त्यौहार होली पूर देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस बार भी बाजार में तरह-तरह के रंग आ गए हैं। इन कैमिकल रंगों का त्वचा पर बुरा असर पड़ता है। इससे बचाव के लिए लोग होली खेलने से पहले त्वचा पर तेल लगा लिया करते हैं या फिर सन स्क्रीन लोशन या बॉडी लोशन। पर हमारी त्वचा के लिए क्या है, सही?अच्छा होगा कि आप होली से पहले ही इसकी तैयारी कर लें। पहले ही दिन रात में आप शरीर पर बॉडी लोशन अच्छी तरह से लगा लें, ताकि आपकी त्वचा अच्छी तरह से माइक्शराइज्ड हो सके। आप कोहनी , घुटनों पैरों पर वैसलीन भी लगा सकते हैं। शरीर के इन अंगों की त्वचा सबसे पहले हार्ड होती है।होली से एक रात पहले आपको बॉडी लोशन की एक सामान्य मात्रा लगानी चाहिए। होली खेलने के लिए कोई नया बॉडी लोशन ट्राइ करने की बजाय अपने नियमित बॉडी लोशन का ही इस्तेमाल करें, लेकिन होली खेलने के कुछ घंटों पहले ही इसका इस्तेमाल करना बेहतर होगा।होली के दिन अच्छी तरह शरीर पर तेल की मालिश कर लें। मालिश के लिए नारियल तेल सबसे अच्छा है। या फिर बादाम और जैतून का तेल भी प्रभावी होता है। बालों में भी तेल लगाना न भूलें। कैमिकल रंगों से बाल भी बेजान हो जाते हैं। ज्यादा अच्छा होगा कि आप बालों को खुले रखने की बजाय उसे बांध लें और उसे अच्छी तरह से हेयर कैप से ढंक लें। इससे रंग उनमें नहीं लगेेंगे। त्वचा पर तेल लगाने से एक तो कैमिकल रंगों के हानिकारक प्रभाव से बचा जा सकता है, दूसरे रंग छुड़ाना भी आसान होता है। नहाने के बाद आप शरीर पर एक अच्छा टोनर भी लगा सकते हैं।हालांकि कोशिश करेंगे कि होली खेलते समय सिंथेटिक कैमिकल्स का इस्तेमाल न करें। जिससे आप अपनी त्वचा के साथ बिना किसी समझौता किए इस त्योहार का आनंद ले सकते हैं।
- किसी भी बीमारी से सुरक्षित रहने के लिए शरीर की इम्यूनिटी स्ट्रॉन्ग होना बहुत ही ज्यादा जरूरी है। भारत में घरेलू नुस्खे का सदियों से प्रयोग होता चला रहा है। कुछ ऐसे ही नुस्खें हैं जिसका प्रयोग भारतीय सदियों से करते आए हैं -1. आंवला- पोषण का पावरहाउस आंवला शरीर की इम्यूनिटी को बढ़ाने का काम करता है और इसकी शक्ति की आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। रोज सुबह खाली पेट लहसुन की एक कली पीसकर आधा चम्मच ताजा आंवला के साथ खाने से इम्यूनिटी स्ट्रॉन्ग होती है।2. नीम के पत्ते- भारत में मूल रूप से नीम के पत्तों का सेवन लोग खाली पेट किया करते हैं। नीम के पत्तों को शक्तिशाली रक्त शोधक के रूप में माना जाता है। इसमें एंटीवायरल और जीवाणुरोधी गुण होते हैं और ऐसा माना जाता है कि यह शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का काम करते है।3. तुलसी का काढ़ा- तुलसी के कुछ पत्तों, अदरक के एक टुकड़े और काली मिर्च को पानी में मिलाकर उसको चायनुमा बना लें। दरअसल ये एक प्रकार का काढ़ा है, जिसमें मौजूद तत्व सभी बीमारी पैदा करने वाले बैक्टीरिया से लडऩे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं।4. काली मिर्च और संतरे का रस-रोजाना एक गिलास ताजा संतरे के रस में एक चुटकी काली मिर्च मिलाकर पीएं। संतरा एंटीऑक्सिडेंट से भरा हुआ होता है और इसे विटामिन सी का भी एक समृद्ध स्रोत माना जाता है। यह स्वाभाविक रूप से आपकी प्रतिरक्षा को बढ़ाने में मदद करेगा।5. अदरक-तुलसी- इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए आपको बस इतना करना है कि ताजा अदरक का रस लें, उसमें तुलसी के कुछ पत्ते पीस दें। इसमें एक चम्मच शहद मिलाएं। खांसी से राहत पाने और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए इसका रोजाना सेवन करें।6. तुलसी-काली मिर्च के दाने- इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए आप सुबह-सुबह तुलसी के पत्तों के साथ ऑर्गेनिक शहद और ताजे पीसे पुदीने के पत्तों को साथ में मिलाकर खाएं। रोजाना सुबह उठकर खाली पेट तुलसी की 5 से 7 पत्तियां, एक चम्मच शहद के साथ कालीमिर्च के दो दाने पीसकर खा लें। इस बात का ध्यान रखें कि इसके बाद पानी न पीएं।7. इम्यूनिटी बॉल- एक चम्मच पिसी हुई हल्दी, 1 चम्मच गुड़, 1 चम्मच गाय का घी और 1 चम्मच सूखी अदरक का पाउडर लें। अच्छी तरह से मिलाएं और छोटी गोल गेंदें बना लें। रोजाना 2 से 3 बॉल का सेवन करें। ऐसा करने से आपकी इम्यूनिटी मजबूत हो जाएगी।8. हल्दी वाला दूध- हम सभी जानते हैं कि दूध और हल्दी का मिश्रण हमेशा प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाने के लिए अच्छा होता है। इस वायरल सीजऩ के दौरान, सुनिश्चित करें कि आप एक कप उबले हुए दूध में आधा चम्मच हल्दी मिलाएं। अच्छी तरह से मिलाएं और गर्म पीएं। सोने से 20-30 मिनट पहले रात में दूध का सेवन करें।---
- बादाम खाना सेहत के लिए काफी फायदेमंद है। बादाम में प्रोटीन, फाइबर, गुड फैट, विटामिन ए, विटामिन ई और मैग्नीशियम जैसी चीजें भरपूर मात्रा में होती हैं। पर यह जानना भी जरूरी है कि रोजाना कितनी मात्रा में बादाम खाना चाहिए।एफडीए यानी फूड ऐंड ड्रग ऐडमिनिस्ट्रेशन की मानें तो हर दिन एक तिहाई कप यानी करीब 40 ग्राम (10 से 15) से ज्यादा बादाम का सेवन नहीं करना चाहिए। साथ ही अगर बादाम को भिगोकर खाया जाए तो इसमें मौजूद फाइबर को पचाना भी आसान हो जाता है और यह सेहत के लिए ज्यादा फायदेमंद साबित होता है। आइये जाने अधिक बादाम खाने से क्या - क्या नुकसान होता है-कब्ज- बादाम को सबसे हेल्दी नट्स में से एक माना जाता है और शायद ही कोई ये सोचेगा कि बादाम खाने के कोई नुकसान भी हो सकते हैं। लेकिन अगर आप लिमिट से ज्यादा बादाम खा लें तो इस हेल्दी स्नैक का भी शरीर पर साइड इफेक्ट दिखने लगता है। वैसे तो बादाम फाइबर से भरपूर होता है जो कब्ज की समस्या दूर करने में मदद करता है लेकिन अगर बहुत ज्यादा बादाम खा लिया जाए तो कब्ज, पेट फूलना या लूज मोशन की दिक्कत हो सकती है। हमारा शरीर बहुत ज्यादा फाइबर को पचा भी नहीं पाता है।कमजोरी- 100 ग्राम (आधा कप) बादाम में 25 ग्राम तक विटामिन ई होता है और हमारी हर दिन की विटामिन ई की जरूरत सिर्फ 15 ग्राम है। ऐसे में आप अंदाजा लगाइए कि अगर आप 1 कप बादाम का सेवन कर लें तो शरीर में डेली विटामिन ई की जरूरत का 3 गुना विटामिन ई पहुंच जाएगा। इस वजह से आपको कमजोरी महसूस हो सकती है, डायरिया हो सकता है या फिर देखने में परेशानी हो सकती है और धुंधला दिखने की समस्या हो सकती है।दवाइयों का असर कम होना-100 ग्राम बादाम में 2.4 मिलीग्राम मैग्नीज होता है । अगर शरीर में मैग्नीज की मात्रा ज्यादा हो जाए तो ब्लड प्रेशर की दवाई, ऐंटिबायॉटिक्स और लैक्सेटिव्स जैसी दवाइयों का असर कम होने लगता है।वजन बढऩा- बादाम में फैट और कैलरी की मात्रा भी अधिक होती है। 100 ग्राम बादाम में करीब 50 ग्राम मोनोसैच्युरेटेड फैट होता है जो दिल के लिए फायदेमंद होता है। लेकिन अगर फिजिकल ऐक्टिविटी नहीं होती है तो ज्यादा बादाम खाने से शरीर में फैट जमा होने लग जाता है।---
- ओट्स करीब 3 हजार साल पहले पूर्व योरोप का एक मुख्य अनाज था। ओट्स की कई सारी किस्में होती हैं जैसे कि- ओट ग्रोट, ओट ब्रान, आयरिश ओट्स, रोल्ड ओट्स, क्विक ओट्स, इंस्टेंट ओट्स और ओट फ्लोर आदि। ओट्स को हिन्दी में जई का दलिया कहा जाता है।सामान्यत: ओट्स में फाइबर, कैल्शियम, फास्फोरस और पौटेशियम बहुत अधिक मात्रा में होता है, जिसके शरीर में बहुत अधिक फायदे हैं। ओट्स में जिंक, आयरन और ओमेगा-6 फैटी एसिड भी पाया जाता है। ये पोषक तत्व बालों की जड़ों को मजबूत बनाते हैं और इन्हें गिरने से भी बचाते हैं।ओट्स का सेवन आपके बालों के लिए बहुत फायदेमंद होता है। आज लोग इसे नाश्ते के रूप में भी बहुत इस्तेमाल करते हैं। जिन लोगों को बालों के झडऩे की समस्या हो वो लोग भी इसका सेवन कर सकते हैं। ओट्स कोलेस्ट्राल को भी कंट्रोल करता है। दिल की बीमारियों को भी दूर करता है। इसमें फाइबर होता है, जो कब्ज रोकता है। वजन कम करने में भी यह फायदेमंद है। ओट्स के सेवन से स्मरणशक्ति बढ़ती है। इससे स्कीन को भी फायदा होता है। यह स्कीन से बैक्टीरिया और आइल को हटाता है और उसमें निखार लाता है। ओट्स का रोजाना सेवन कैंसर जैसी बीमारी को रोकता है।---
- शरीर में पोषक तत्वों की कमी हमें कई बीमारियों का शिकार बना देती है और कभी-कभार ये बीमारियां इतना घातक रूप ले लेती हैं, जिसके बारे में आप सोच भी नहीं सकते हैं। इसके पीछे कई कारण जिम्मेदार हैं, जिसमें खान-पान की खराब आदतें, तनाव और व्यस्त जीवनशैली प्रमुख कारण हैं। इन्हीं में से एक समस्या है सोते वक्त नस चढ़ जाना। शरीर में सोते वक्त नस चढ़ जाना आम समस्या है लेकिन ऐसा कई बार शरीर में कुछ पोषक तत्वों की कमी के कारण भी ऐसा होता है।शरीर में इन 3 चीजों की कमी से चढ़ती है नसविटामिन सी की कमीशरीर में विटामिन सी की कमी कई समस्याओं का कारण बनती है। विटामिन सी की कमी सर्दी और जुकाम जैसी समस्याओं के साथ-साथ हमारी आंखों के नीचे काले घेरे का भी प्रमुख कारण है। विटामिन सी हमारी त्वचा के लिए बेहद फायदेमंद माना जाता है क्योंकि ये शरीर में लचीलेपन को बनाए रखने में मदद करता है। विटामिन सी हमारी रक्त कोशिकाओं को भी मजबूत बनाने में मदद करता है, जिसके कारण हमारी स्किन हेल्दी होती है। यही कारण है कि जब हमारी रक्त कोशिकाएं मजबूत नहीं होती है तो हमें हमारी नसें कमजोर हो जाती है और आसानी से एक के ऊपर एक चढ़ जाती है, जिसके कारण आपको तेज दर्द का सामना करना पड़ सकता है। इस समस्या से बचने के लिए आप मेडिकल या फिर डॉक्टर की सलाह लें सकते हैं। इसके अलावा आप विटामिन सी युक्त आहार का सेवन भी कर सकते हैं ताकि शरीर में विटामिन सी की कमी पूरे हो सके। शरीर में विटामिन सी की आपूर्ति के लिए सिट्रस फल- नींबू, टमाटर, पालक, फूलगोभी, ब्रोकली जैसे हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन कर सकते हैं।हीमोग्लोबिन की कमीसोते वक्त नस हाथ-पैर या कंधे की नस चढ़ जाना शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी भी दर्शाता है। दरअसल हीमोग्लोबिन की कमी से ब्लड सर्कुलेशन सही तरीके से नहीं हो पाता,जिसके कारण अंगों की नस चढ़ जाती है। शरीर के किसी भी अंग की नस चढ़ जाने से व्यक्ति खुद को अस्वस्थ महसूस करने लगता है। हमारी रक्त कोशिकाओं में मौजूद हीमोग्लोबिन शरीर के अलग-अलग अंगों तक ऑक्सीजन पहुंचाता है, जो कि शरीर के संचालन के लिए एक जरूरी प्रक्रिया है। ये प्रक्रिया जब सुचारू रूप से नहीं चल पाती तो नस चढऩे लगती है। हीमोग्लोबिन को बढ़ाने के लिए आप चाहे तो इन खाद्य पदार्थों का भी सेवन कर सकते हैं।हीमोग्लोबिन को बढ़ाने वाले फूड-चुकंदर, आम, अंगूर, सेब, अमरूद, हरी सब्जियां, नारियल, तुलसी, तिल, पालक, गुड़, अंड।आयरन की कमीशरीर में आयरन की कमी के कारण भी सोते वक्त नस चढ़ जाती है। अगर आपके साथ भी ऐसा बार-बार होता है तो आपके शरीर में आयरन की कमी है। आयरन की कमी को पूरा करने के लिए आप आयरन युक्त सप्लीमेंट और फूड का सेवन कर सकते हैं। दरअसल आयरन की कमी से शरीर की कोशिकाओं को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पाता, जिसके कारण नस चढ़ जाने की दिक्कत सामने आती है। आयरन की कमी को पूरा करने के लिए आप ये फूड खा सकते हैं।हरी पत्तेदार सब्जियां, पालक, बीन्स, दाल, नट्स, ब्राउन राइस, गेहूं, ड्राई फूट्स।---
- हम अक्सर इस बात को लेकर बहुत ज्यादा चिंतित रहते हैं कि किस चीज के साथ कौन सी चीज खाएं ताकि कभी बीमार न पड़े। फिर चाहे वह मछली के साथ चाय पीने की बात हो या फिर दही के साथ नींबू। सही खान-पान अच्छे स्वास्थ्य का राज है और इसी के कारण सही फूड के साथ सही चीज का सेवन बहुत जरूरी है क्योंकि गलत फूड पेयरिंग से बीमार होने का खतरा बढ़ जाता है।अब बात करते हैं दूध की। बच्चों से लेकर बड़ों को दूध पीना पसंद होता है और अक्सर घर में हम लोग दूध के साथ कूकीज, फल या कुछ अन्य फूड खाना पसंद करते हैं। कभी-कभार हमारी ये आदत हमारे लिए नुकसान भी पैदा कर सकती है। आयुर्वेद के मुताबिक अगर हम गलत फूड के साथ दूध का सेवन करते हैं तो ये हमारे स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक हो सकता है। इसलिए अगली बार दूध पीते वक्त इन चीजों का सेवन बिल्कुल भी न करें।कौन से फूड है दूध के साथ जहरआयुर्वेद विशेषज्ञों के मुताबिक, बहुत से लोग दूध और केला साथ में खाना पसंद करते हैं और बॉडी बिल्डिंग में लगे युवा अक्सर इस शेक का सेवन वर्कआउट करने के बाद करते हैं। फिटनेस कोच भी इस ड्रिंक को वर्कआउट के बाद काफी अच्छा मानते हैं। लेकिन आयुर्वेद इस ड्रिंक को पीने से मना करता है। विशेषज्ञों की मानें तो असंगत फूड स्वास्थ्य के लिए हमेशा से हानिकारक होते हैं। अग्नि या फिर इंसानों की आंत में मौजूद पाचन आग खाने को पचाने के लिए जिम्मेदार होती है, जो भी हम खाते हैं।दूध एक पोषणभरा फूड है, जो काफी पोषक तत्वों से भरा होता है लेकिन तब तक, जब तक आप इसमें असंगत फूड को नहीं मिलाते हैं। आइये जाने ऐसी कौन- कौन सी 9 चीजें हैं, जिन्हें दूध के साथ लेने से बचना चाहिए।1. केले, 2. चेरी, 3. कोई भी खट्टा फल (नारंगी, नींबू, चूना, अंगूर, इमली, आंवला, हरे सेब, आलूबुखारा, स्टार फल, अनानास, आदि), 4. खमीर युक्त वस्तुएं , 5. मांसाहार (अंडा, मांस और मछली), 6. खिचड़ी , 7. दही, 8. फलिया और 9. मूली।दूध पीने का सबसे आसान और अच्छा तरीका उसे बिना किसी फूड या उसमें बिना कुछ मिलाएं पीना है, खासकर अगर गाय का दूध हो तो। शहद, गुड़ या फिर चीनी को स्वाद बढ़ाने के लिए मिला सकते हैं और इससे उसके पोषक तत्व भी बढ़ते हैं। आप इसमें ये चीजें कम मिलाएं और दूसरी चीजों के साथ दूध पीने से बचें।--
- सेप्सिस, रक्त में हुए संक्रमण को कहा जाता है। चिकित्सकों के अनुसार सेप्सिस आम तौर पर बैक्टीरिया के संक्रमण के कारण होता है और यह जानलेवा हो सकता है। इसके शुरूआती लक्षण दिल की धड़कन बढ़ जाना, बुखार आना, तेजी से सांस चलना और रक्त में श्वेत रक्त कणिकाओं का अत्यधिक हो जाना आदि हैं। शुरूआत में इसके इलाज के लिए एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं और कोशिश की जाती है कि जिस अंग में भी संक्रमण हुआ है, वह संक्रमणमुक्त हो सके।सेप्सिस और इससे होने वाली समस्याओं को रोकने का बेहतर तरीका शुरूआती अवस्था में इसका पता लगाना और संक्रमण को रोकना है। रक्त के संक्रमण से नवजात शिशु भी नहीं बच पाते। जीवन के शुरूआती 28 दिनों में यदि नवजात को रक्त का संक्रमण हो जाए तो उसे नियोनैटल सेप्सिस या सेप्सिस नियोनैटोरम कहा जाता है। यह संक्रमण फेफड़ों में हो तो न्यूमोनिया हो सकता है। शिशु में जन्म के पहले से होने वाले रक्त संक्रमण को इन्ट्रायूटेराइन सेप्सिस और जन्म के बाद होने वाले रक्त संक्रमण को एक्स्ट्रायूटेराइन सेप्सिस कहते हैं। रक्त संक्रमणका कारण हारपीज वायरस, रूबेला (जर्मन मीजल्स) बैक्टीरिया या कैंडिडा फफूंद हो सकते हैं। गर्भावस्था के दौरान स्त्रीरोग विशेषज्ञ गर्भवती महिला और भ्रूण की लगातार जांच कर पता करती हैं कि कहीं सेप्सिस के लक्षण तो नहीं उभर रहे हैं। महिलाओं की एचआईवी, गोनोरिया, सिफिलिस, हारपीज, क्लैमाइडिया, हेपेटाइटिस बी, रूबेला आदि की जांच कर पता लगाया जाता है कि कहीं उन्हें कोई संक्रमण तो नहीं है।यदि सेप्सिस अधिक फैल गया हो तो इलाज में बहुत मुश्किल होती है और मरीज की मौत भी हो सकती है। रक्त में किसी भी टॉक्सिक एजेंट की मौजूदगी प्रतिकूल प्रभाव डालती है और सेप्सिस का कारण बन सकती है। रक्त में टॉक्सिक एजेंट तब पहुंचते हैं जब उनका मूल स्रोत या बैक्टीरिया रक्त में पहुंच जाएं। बैक्टीरिया के अलावा अन्य कारणों से भी सेप्सिस हो सकता है। दांतों की अच्छी तरह सफाई और अच्छी तरह पका हुआ भोजन सेप्सिस से बचाव के लिए जरूरी है। बैक्टीरिया का संक्रमण दांतों से भी हो सकता है। इसके साथ ही सब्जियों के जरिए बैक्टीरिया आंतों में पहुंच सकते हैं। सब्जियों को अच्छी तरह पकाने से ये बैक्टीरिया खत्म हो जाते हैं।
- रायपुर। हमारी रसोई में रोजाना इस्तेमाल होने वाला करी पत्ता गुणों की खान है। इसमें ढेर सारे स्वास्थ्य लाभ हैं। अपने स्वाद और औषधीय गुणों के कारण भारत में करी पत्ता का इस्तेमाल अधिक मात्रा में किया जाता है।अधिकांश रूप में दक्षिण भारतीय व्यंजनों में करी पत्ता एक आवश्यक घटक है, जिसका इस्तेमाल सांभर, दाल, सब्जियों और पुलाउ में किया जाता है। खिचड़ी के तड़के तैयार करने के लिए भी उपयोग किए जाते हैं। करी पत्ता ऐसे औषधीय गुणों से भरपूर होता है, कि जिसकी वजह से इसका इस्तेमाल त्वचा की समस्याओं से लेकर ब्लड शुगर कंट्रोल करने तक किया जा सकता है। जी हां, हाई ब्लड शुगर आजकल लोगों के बीच एक आम समस्या बनी हुई है। जिसका सीधा अर्थ है कि करी पत्ता मधुमेह प्रबंधन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन सकता है। इसके अलावा, करी पत्ते के कुछ और भी स्वास्थ्य लाभ हैं, जिसमें बेहतर पाचन, अच्छा हृदय स्वास्थ्य और स्वस्थ त्वचा और बाल शामिल हैं।डायबिटीज के लिए करी पत्ताकरी पत्ता एंटीऑक्सिडेंट, फ्लेवोनॉयड्स का एक अच्छा स्रोत है और यह ब्लड शुगर के लेवल को कंट्रोल करने में मदद कर सकता है। इतना ही नहीं, करी पत्ते में फाइबर होता है, जो आपके पाचन को धीमा करता है और कार्बोहाइड्रेट के अवशोषण को भी रोकता है, जिसके बदले में, आपके खून में शुगर का लेवल कम होता है। करी पत्ता न केवल डायबिटीज प्रबंधन, बल्कि कोलेस्ट्रॉल के स्तर को भी कम कर सकता है।कोशिकाओं को क्षतिग्रस्त होने से रोकता हैएक अध्ययन में यह भी पाया गया है कि करी पत्ते कोशिकाओं के क्षतिग्रस्त होने को कम कर सकते हैं, जो कि अग्नाशय कोशिकाओं में इंसुलिन उत्पादन के लिए जिम्मेदार है। यह शरीर में इंसुलिन की गतिविधि में सुधार करता है। करी पत्तियों में एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीमाइक्रोबियल भी भरपूर मात्रा में होते हैं। यही वजह है कि करी पत्तों को स्वाभाविक रूप से इंसुलिन गतिविधि को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है, जो हाई ब्लड शुगर को कंट्रोल करने के लिए जरूरी है।करी पत्ता इंसुलिन का उपयोग करने में मदद करते हैं, जिससे रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित किया जाता है। इसमें एंटी-हाइपरग्लाइकेमिक गुण भी होते हैं, जो ब्लड शुगर को कम करने के लिए जाने जाते हैं। वहीं करी पत्ता आपके कोलेस्ट्रॉल को भी कंट्रोल करता है, जो डायबिटीज के लिए जिम्मेदार कारको और दुष्परिणामों में से एक है। इसके अलावा क्योंकि यह फाइबर से भरपूर है, तो यह डायबिटीज के लिए अच्छा है। फाइबर युक्त खाद्य पदार्थ शरीर में शुगर के अवशोषण को धीमा करने में मदद कर सकते हैं, जिससे ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रित किया जा सकता है।कैसे करें करी पत्ते का इस्तेमालकरी पत्ता एक तरह की औषधीय जड़ी बूटी है, जिसे कि अन्य दवाओं के साथ भी लिया जा सकता है। हालांकि आपको डायबिटीज या ब्लड शुगर कंट्रोल करने के लिए पूरी तरह से करी पत्ते पर निर्भर होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इसके साथ आपका स्व?थ खानपान और व्यायाम भी जरूरी है।रोजाना सुबह 5-10 करी पत्ते चबाएं। करी पत्ते का जूस या काड़ा बनाकर सेवन करें। भोजन में करी पत्ते को शामिल करें।
- रायपुर। दही एक दुग्ध-उत्पाद है। खाने में दही का प्रयोग पिछले लगभग 4500 साल से किया जा रहा है। आज इसका सेवन दुनिया भर में किया जाता है। यह एक स्वास्थ्यप्रद पोषक आहार है। यह प्रोटीन, कैल्शियम, राइबोफ्लेविन, विटामिन बी 6 और विटामिन बी 12 जैसे पोषक तत्वों से भरा होता है। यह आपके पेट के लिए काफी फायदेमंद होता है। इसमें मौजूद लाभदायक बैक्टीरिया आपको स्वस्थ रखते हैं। यह पेट के लिए कई तरह से फायदेमंद हैं।एसिडिटी से दूर रखेकई लोगों को खाना खाने के तुरंत बाद ही एसिडिटी होने लगती है। अगर आपको भी ऐसी ही समस्या है तो खाने के तुरंत बाद, या उसके साथ ही एक कटोरी सादी दही खाएं। ये दही आपके शरीर का पीएच बैलेंस बनाए रखेगी। साथ ही आपके पेट में खाने से पैदा हुई गर्मी को कम करेगी। जिससे आपको एसिडिटी नहीं होगी। अगर आप खाने के बाद छाछ या दही लेते हैं तो आप को इस समस्या से मुक्ति मिल जाएगी। साथ ही आपका खाना आसानी से पच जाएगा। आप एक ग्लास छाछ में थोड़ा सा भुना ज़ीरा पाउडर डालकर भी पी सकते हैं।हाज़मा दुरूस्त करेप्रोबायोटिक होने के कारण दही में विटामिन बी12 और माइक्रोऑर्गैनिज्म होते हैं जो पेट में बैक्टीरिया बढ़ाते हैं, जो बदहजमी की स्थिति संभालते हैं। दही खाने के हाजमे में मदद करता है और कब्ज से बचाव करता है।दूध से ज्यादा फायदेमंद है दही!कुछ लोगों को दूध में मौजूद लैक्टोज के कारण पाचन नही हो पाता है। ऐसे में वो दूध जैसे फायदे दही से ले सकते हैं। इससे आपको कैल्शियम और दूसरे विटामिन मिल जाएंगे, वो भी बिना लैक्टोज के। खाने के साथ दही कई तरीकों से खाया जा सकता है। आप दही में सब्ज़ी मिलाकर रायता बना सकते हैं। नमक या चीनी मिलाकर दही खा सकते हैं। सादा दही भी खाया जा सकता है।दही में छुपा है खूबसूरती का खज़ानादही एक ऐसा खाद्य पदार्थ है जो खाने में स्वास्थ्यवर्धक तो है ही साथ ही ये सौंदर्य निखारने के लिए भी अच्छा स्रोत माना जाता है। गर्मियों में अक्सर तेज धूप शरीर पर पडऩे से त्वचा झुलस या टैन हो जाती है, ऐसे में दही टैनिग कम करने के लिए बेहतर विकल्प माना जाता है। इतना ही नही दही में बेसन मिलाकर लगाने से भी चेहरे पर चमक आती है।---
- बला एक बहुत ही लाभकारी औषधि है जो बहुत सारे रोगों में काम आती है। ऋषियों के अनुसार यह एक उत्तम कोटि का रसायन है और वात, पित्त, कफ तीनों दोषों का शमन करती है। शीतल प्रकृति के होते हुए भी यह वात रोग के उपचार के लिए प्रयुक्त की जाती है। ऋषि चरक इसको बल्य मानते हंै अर्थात यह बल बर्धक भी है।विभिन्न भाषाओं में नाम -संस्कृत- बला। हिन्दी- खिरैटी, वरियारा, वरियारा, खरैटी। मराठी- चिकणा। गुजराती- खरेटी, बलदाना। बंगला- बेडेला। तेलुगू- चिरिबेण्डा, मुत्तबु, अन्तिस। कन्नड़- किसंगी, हेटुतिगिडा। तमिल- पनियार तुट्टी। मलयालम- वेल्लुरुम। इंग्लिश- कण्ट्री मेलो। लैटिन- सिडा कार्डिफोलिया।आयुर्वेद के अनुसार बला मांस-पेशियों की मजबूती के लिए विशेष रूप से उत्तम मानी गयी है। अर्थात मांस धातु का पोषण करती है। संक्रमण में भी इसके प्रयोग लाभकारी होता है विशेषकर श्वसन तन्त्र से सम्बन्धित रोगों में यह अच्छा प्रभाव दिखाती है। एक मत के अनुसार यह स्नायु तन्त्र पर भी अच्छा प्रभाव करती है। शरीर को बल प्रदान करने के कारण इसका नाम बला रखा गया है।बला जिसे खिरैटी भी कहते हैं, यह जड़ी-बूटी वाजीकारक एवं पौष्टिक गुण के साथ ही अन्य गुण एवं प्रभाव भी रखती है अत: यौन दौर्बल्य, धातु क्षीणता, नपुंसकता तथा शारीरिक दुर्बलता दूर करने के अलावा अन्य व्याधियों को भी दूर करने की अच्छी क्षमता रखती है।बला चार प्रकार की होती है, इसलिए इसे 'बलाचतुष्ट्य' कहते हैं। यूं इसकी और भी कई जातियां हैं पर बला, अतिबला, नागबला, महाबला- ये चार जातियां ही ज्यादा प्रसिद्ध और प्रचलित हैं। चारों प्रकार की बला शीतवीर्य, मधुर रसयुक्त, बलकारक, कान्तिवद्र्धक, स्निग्ध एवं ग्राही तथा वात रक्त पित्त, रक्त विकार और व्रण (घाव) को दूर करने वाली होती है।मुख्यत: इसकी जड़ और बीज को उपयोग में लिया जाता है। यह झाड़ीनुमा 2 से 4 फीट ऊंचा क्षुप होता है, जिसका मूल और काण्ड (तना) सुदृढ़ होता है। पत्ते हृदय के आकार के 7-9 शिराओं से युक्त, 1 से 2 इंच लंबे और आधे से डेढ़ इंच चौड़े होते हैं। फूल छोटे पीले या सफेद तथा 7 से 10 स्त्रीकेसर युक्त होते हैं। बीज छोटे-छोटे, दानेदार, गहरे भूरे रंग के या काले होते हैं। यह देश के सभी प्रांतों में वर्षभर पाया जाता है।
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लौकी हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद होता हैं। इसमें लगभग 96 प्रतिशत पानी होता हैं। लौकी में कई विटामिन और खनिज जैसे कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटेशियम, लोहा, फास्फोरस, विटामिन ए, विटामिन बी, विटामिन सी और फोलेट भरपूर मात्रा में पाया जाता हैं। लौकी का प्रयोग उच्च रक्तचाप, मधुमेह, वजन कम करने, हृदय रोग, त्वचा संक्रमण, मूत्र संक्रमण और पाचन समस्याओं सहित कई बीमारियों के उपचार में किया जाता हैं।
लौकी में कम कैलोरी और उच्च फाइबर होता हैं जो वजन कम करने में मदद करता हैं। लौकी में मौजूद फाइबर और 96 प्रतिशत पानी पाचन तंत्र को मजबूत बनाता हैं। यह कब्ज और अन्य पाचन विकार जैसे पेट फूलना और बवासीर को रोकने में मदद करता है। लौकी का रस मधुमेह के रोगियों के लिए बहुत फायदेमंद होता हैं। लौकी रक्त शर्करा के स्तर को कम करने में मदद करता हैं।
लौकी लीवर और गुर्दे में सूजन को कम करने में मदद करता है। ताजा लौकी का जूस नीबू के रस के साथ मिलाकर पीने से मूत्र पथ के संक्रमण के इलाज में मदद करता है। यह पेशाब करते समय जलन के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
लौकी का रस अम्लता, अपच और पेट के अल्सर के इलाज में प्रयोग किया जाता हैं। सुबह-सुबह खाली पेट में एक कप लौकी के जूस को एक गिलास पानी के साथ मिलाकर पीने से उच्च रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में मदद करता है और दिल को स्वस्थ बनाता है।
लौकी के रस को एक चुटकी नमक के साथ मिलाकर पीने से डायरिया के उपचार में सहायक होता है। लौकी में मौजूद फोलेट (फोलिक एसिड) गर्भवती महिलाओं के नवजात शिशुओं में न्यूरल ट्यूब दोष की घटनाओं को कम करने में मदद करता है। लौकी पीलिया रोग के उपचार में मदद करता है। गर्मियों के दौरान एक गिलास लौकी का रस पीने से अत्यधिक प्यास और थकान नहीं होती है। सुबह-सुबह एक गिलास लौकी के रस का सेवन करने से समय से पहले बाल सफेद होने से रोकता है। -
हाथीचक या आर्टिचक एक बड़ा और अनूठा कंद है, जो 3 हजार वर्ष से प्रयोग में लिया जा रहा है। इसका इतिहास बहुत पुराना है। इसकी उत्पत्ति युरोप के भूमध्य रेखीय संभाग से हुई है, मिश्र के प्राचीन दस्तावेजों में भी इसका जिक्र मिलता है, जिनमें इसे त्याग और पुरुषत्व का प्रतीक माना गया है। यह थिसल प्रजाति का सदस्य है।
इसका वान्पतिक नाम चिनारा स्कोलिमुस है । 15 वीं शताब्दी में यह ब्रिटेन पहुंचा, जहां इसे आर्टिचॉक नाम दिया गया। आज अमेरिका में इसका सबसे अधिक उत्पादन कैलीफोर्निया में होता है। भारत में इसकी खेती शायद बहुत ही कम होती है। डॉ. बुडविग ने अपने कैंसर उपचार में इसके प्रयोग की विशेष तौर पर सलाह दी है। इसकी कई किस्में जैसे ग्रीन ग्लोब, डेजर्ट गेलोब, बिग हार्ट और इंपीरियल स्टार आदि उपलब्ध हैं। इसका कांटेदार पत्तियां हरे रंग की होती हैं और अंदर का हृदय या गूदा हल्के हरे रंग का होता है। इसकी पत्तियां और गूदा दोनों ही खाये जाते हैं। लेकिन कुछ लोग गूदा पसन्द करते हैं तो कुछ पत्तियां खाना पसन्द करते हैं। अपनी अपनी पसन्द है। यह देखने में कांटेदार, स्वाद में मजेदार और सेहत में दमदार है।
सन् 2004 में अमेरिका के कृषि विभाग ने बड़े स्तर पर विभिन्न भोज्य पदार्थों में एंटीऑक्सीडेंट्स के विश्लेषण हेतु अध्ययन करवाया था। अचरज की बात यह रही कि एंटीऑक्सीडेंट्स की दृष्टि से हाथीचक ने सर्वश्रेष्ठ सात भोज्य पदार्थों में स्थान बनाया और सब्जियों की श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ चार में स्थान प्राप्त किया। ब्लूबेरी, रेडवाइन, ग्रीन टी भी पीछे रह गये।
पत्ते पत्ते में छुपे हैं एंटीऑक्सिडेंट
हाथीचक फाइबर का उत्कृष्ट स्रोत है। इसमें मैेग्नीशियम, मेंगनीज, पोटेशियम और क्रोमियम प्रचुर मात्रा में होते हैं। यह विटामिन-सी, फोलिक एसिड, बायोटिन, विटामिन-ए, थायमिन, नायसिन और राइबोफ्लेविन का भी अच्छा स्रोत है।
हाथीचक में अनेक फाइटोन्युट्रियेंट्स होते हैं। फाइटोन्युट्रियेंट्स पौधों में पाये जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर तत्व होते हैं, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए उत्कृष्ट और जरूरी होते हैं।
क्युअरसेटिन एक फ्लेवोनॉयड है। यह कैंसर रोधी और एंटीऑक्सीडेंट है। कैंसर और हृदय रोग से बचाता है।
रूटिन -यह भी एक फ्लेवोनॉयड है और रक्त-वाहिकाओं को स्वस्थ रखता है। यह कैंसर कोशिकाओं के अनियंत्रित विभाजन को बाधित करता है। यह प्रदाहरोधी और एंटी-ऐलर्जिक है।
ऐन्थोसायनिन्स-यह कुछ तरह के कैंसर का खतरा कम करता है। साथ में यह मूत्रपथ का स्वस्थ रखता है, स्मरणशक्ति बढ़ाता है और आयुवर्धक है।
गेलिक एसिड-यह एंटीऑक्सीडेंट रेड वाइन और ब्लैक टी में भी पाटा जाता है। यह प्रोस्टेट कैंसर में कैंसर कोशिकाओं के विकास को बाधित करता है।
ल्युटियोलिन और सायनेरिन ल्युटियोलिन पॉलीफेनोल एंटीऑक्सीडेंट है और कॉलेस्टेरोल को कम करता है। हाथीचक में विद्यमान सायनेरिन कॉलेस्टेरोल को कम करता है, साथ ही यह पाचन तंत्र के विकार आइ.बी.एस. और अपच में भी फयदेमंद है। सायनेरिन यकृत की कोशिकाओं का जीर्णोद्धार करता है और यकृत में पित्त के स्राव को प्रोत्साहित करता है, जिससे फैट्स के पाचन मदद मिलती है और विटामिन्स का अवशोषण बढ़ता है।
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कॉन्टेक्ट डर्माटाईटिस त्वचा की एक प्रकार की जलन (इन्फ्लेमेशन) है जो तब होती है, जब त्वचा किसी ऐसे पदार्थ के सम्पर्क में आती है जो इसे (उत्तेजित) इरिटेट करता है या एलर्जिक रिएक्शन का कारण बनता है। प्राकृतिक और कृत्रिम रसायनों की ऐसी लम्बी सूची है जो कॉन्टेक्ट डर्माटाईटिस उत्पन्न कर सकते हैं।
सामान्य त्वचा सम्पर्क (कॉमन स्किन एक्सपोजर) या कॉन्टेक्ट जो कॉन्टेक्ट डर्माटाईटिस उत्पन्न करते हैं उनमें शामिल हैं- हाथों को धोना, घर की साफ सफाई, डायपर पहनाना, विषैली लता, ओक (शाहबलूत) या सुमैक के सम्पर्क में आना, परफ्यूम स्प्रे करना या हाथ से लगाना, कोई ऐसा धातु की नेकलेस या ब्रेसलेट पहनना जिसमें निकेल हो, धातु के कांटों या जिपर्स वाले कपड़े पहनना, बालों को शैम्पू करना, मेकअप करना या हेयरडाई का इस्तेमाल करना, औद्योगिक विलायकों के साथ कार्य करना और किसी ऐसी जलती आग के निकट बैठना जिसमें विषैली लता जलाई जा रही हो।
डॉक्टर कांन्टेक्ट डर्माटाईटिस को दो प्रकार में बांटते हैं जो जलन के कारणों पर आधारित हैं-
इरिटेंट कॉन्टेक्ट डर्माटाईटिस- यह किसी ऐसे कैमिकल के सम्पर्क में आने पर होता है जो विषैला (टॉक्सिक) या मानवीय त्वचा को इरिटेट करने वाला हो। यह एलर्जिक रिएक्शन नहीं है। बच्चों में इरिटेंट कॉन्टेक्ट डर्माटाईटिस सर्वाधिक डायपर डर्माटाईटिस के रूप में पाया जाता है। यह डायपर वाले हिस्से में त्वचा का रिएक्शन होता है जो मूत्र और मल में पाए जाने वाले प्राकृतिक रसायनों (कैमिकल) के सम्पर्क में ज़्यादा देर तक रहने से होता है। बच्चों में आईसीडी मुंह के आसपास भी विकसित हो जाता है जो बच्चों के भोजन के साथ टपकती लार या सलाईवा के त्वचा के सम्पर्क में आने से होता है। वयस्कों में इरिटेंट कॉन्टेक्ट डर्माटाईटिस प्राय: एक आकस्मिक बीमारी के रूप में पाया जाता है जो कठोर साबुनों, विलायकों या क्षारक अभिकर्मकों (कटिंग एजेंट्स) के सम्पर्क में आने से होता है। यह स्वास्थ्य सेवा कार्यकर्ताओं, घर का कार्य करने वालों, दरबानों, मैकेनिकों, मशीन पर काम करने वालों और बाल काटने वालों (हेयरड्रेसर) में सबसे ज़्यादा पाया जाता है। लेकिन यह किसी भी ऐसे व्यक्ति में हो सकता है जो घर का कामकाज करता हो या अपने किसी शौक के चलते जलन पैदा करने वाले कैमिकलों के सम्पर्क में आता हो।
एलर्जिक कॉन्टेक्ट डर्माटाईटिस- यह एक इम्यून रिएक्शन है जो केवल ऐसे लोगों में होता है जो कुछ केमिकलों के प्रति प्राकृतिक रूप से अधिक संवेदनशील होते हैं। एलर्जिक कॉन्टेक्ट डर्माटाईटिस में पदार्थ (एलर्जेन) के सम्पर्क में आने के 24 से 36 घंटे बाद तक जलन उत्पन्न नहीं होती। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि एलर्जिक कॉन्टेक्ट डर्माटाईटिस में शरीर की प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूमन सिस्टम) भाग लेता है और इस प्रक्रिया में कुछ समय लगता है। त्वचा पर एलर्जी की स्थिति अलग-अलग लोगों में अलग-अलग हो सकती है। हालांकि इसके लिए जिम्मेदार सबसे प्रमुख प्रकार के एलर्जेन्स, विषैली लता, ओक और सुमैक में पाए जाने वाले केमिकल, मेटल ज्वैलरी में निकेल और कोबॉल्ट, कपड़ों के स्नैप्स, जिपर्स और मेटल प्लेटेड ऑब्जेक्ट्स, त्वचा के जैवप्रतिरोधी (एंटीबायोटिक) मलहमों में नियोमाईसिन, लेदर(चमड़े) के जूतों और कपड़ों में पाया जाने वाला एक टैनिंग एजेंट पोटेशियम डाईक्रोमेट, दास्तानों और रबर के कपड़ों में लैटेक्स और कुछ परिरक्षक (प्रिजर्वेटिव्स) जैसे कि फार्मेल्डिईहाईड आदि हैं।