...और स्वामी विवेकानंद के आइडिया से बदल गई भारत की तस्वीर
स्वामी विवेकानंद की आज जयंती है। जानते हैं एक रोचक कथा, जिसमें स्वामी स्वामी विवेकानंद और जमशेदजी टाटा की मुलाकात हुई और स्वामी विवेकानंद के आइडिया से बदल गई भारत की तस्वीर बदल गई।
1893 में एक ही जहाज पर स्वामी विवेकानंद और जमशेदजी टाटा यात्रा कर रहे थे। वैंकुवर जा रहे इस जहाज में इन दो महान हस्तियों ने काफी समय बिताया। इस दौरान विवेकानंद ने जमशेदजी को एक ऐसा आइडिया दिया जिसने भारत की तकदीर ही बदल दी। जमशेदजी टाटा देश में औद्योगिक क्रांति के लिए पूरी कोशिश में जुटे थे। वह भारत में स्टील इंडस्ट्री की नींव रखना चाहते थे। यात्रा के दौरान विवेकानंद ने उन्हें ज्ञान से प्रभावित किया। जमशेदजी ने इसके बाद उस भगवाधारी संत से कई मुद्दों पर राय ली और उसे अमल में लाया।
विवेकानंद से बातचीत के दौरान जमशेदजी टाटा ने जापान के विकास और तकनीक की चर्चा की और भारत में एक स्टील उद्योग लगाने की बात कही। उन्होंने कहा कि वह ऐसे उपकरण और तकनीक की खोज में हैं जो भारत को एक मजबूत औद्योगिक राष्ट्र बनाने में मदद करे। उस वक्त महज 30साल के रहे विवेकानंद ने अपने से 24साल बड़े 54 साल के जमशेदजी टाटा को गरीबों और भारतीयों को मदद करने का आइडिया दिया। टाटा के जीवटता की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा कि भारत की असली उम्मीद यहां के लाखों लोगों की संपन्नता से जुड़ी है। उन्होंने टाटा से कहा कि वह जापान से माचिस का आयात करने की बजाए उसे भारत में ही बनाएं इससे ग्रामीण इलाके में रहने वाले गरीबों की मदद होगी। स्वामी विवेकानंद के विज्ञान का ज्ञान और कूट-कूटकर भरी देशभक्ति ने जमशेदजी टाटा को काफी प्रभावित किया। उन्होंने विवेकानंद से अपने अभियान में मदद करने और भारत में एक रिसर्च संस्थान की स्थापना के लिए मदद मांगी। विवेकानंद ने मुस्कुराते हुए कहा कि यह कितना ही सुंदर होगा कि आप पश्चिम के विज्ञान और तकनीक तथा भारत के अध्यात्म से लेकर मानवतावाद की पढ़ाई हो।
विवेकानंद की इसी प्रेरणा से प्रेरित होकर जमशेद जी टाटा ने 23नवंबर 1898 को उन्हें एक पत्र लिखा और उनके साथ बातचीत की याद दिलाई और विश्वस्तरीय संस्थान खोलने की अपनी प्रतिबद्धता भी बताई। १८९८ में टाटा ऐसे संस्थान खोलने के लिए उचित जगह की तलाश में थे। वह उस समय मैसूर के दीवान शहयाद्री अय्यर से मिले और दोनों ने मिलकर उस वक्त के मैसूर के शासक कृष्णाराजा वडयार-ढ्ढङ्क को बेंगलूर में करीब 372एकड़ जमीन देने के लिए राजी किया। विवेकानंद का तो जुलाई 1902में निधन हो गया और ठीक उसके दो साल बाद जमशेदजी टाटा का भी निधन हो गया। लेकिन दोनों विभूतियों का सपना उनके निधन के बाद पूरा हुआ। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस का 1909 में जन्म हुआ जिसका 1911 में नाम बदलकर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस कर दिया गया।
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