मोइरंगथेम के हाथ से बने जूतों ने विदेशी बाज़ारों में बनाई पैठ
इम्फाल. गरीबी ने काकचिंग के रहने वाले मुकुटमोनी मोइरंगथेम को अपनी बेटी के लिए जूते बनाने के लिए मजबूर किया था, लेकिन अब तीन दशक बाद उनकी इस कला ने देश के साथ-साथ विदेशों में भी अपनी पैठ बना ली है। मुकुटमोनी को उनकी उद्यमशीलता और गरीब महिलाओं को सशक्त बनाने के प्रयासों ने एक अलग पहचान दिलाई है। उन्हें उनकी इस कला के लिए 2022 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।
मोइरंगथेम ने कहा कि उन्होंने तीन दशक पहले जूते के ऊपरी हिस्से की बुनाई शुरू की थी, चूंकि वे अपनी स्कूल जाने वाली बेटी के लिए नए जूते नहीं खरीद सकती थीं। राजधानी से करीब 45 किलोमीटर दूर काकचिंग निवासी मुकुटमोनी (64) ने कहा, ‘‘जब भी मुझे दिन में धान के खेतों में काम करने के बाद थोड़ा समय मिलता था, तो इस क्षेत्र की अन्य महिलाओं की तरह मैं भी अपने तीन बच्चों के लिए घर पर ऊनी मोजे और मफलर बुनती थी।'' मोइरंगथेम ने कहा, ‘‘मैं अपनी स्कूल जाने वाली बेटी के लिए जूते नहीं खरीद सकती थी और उन्हें लगातार ठीक करना पड़ता था। इसलिए मैंने ऊपरी हिस्से को हटाकर उसे ऊन के बने जूते से बदल दिया।'' मोइरंगथेम ने कहा, ‘‘मेरी इस कला पर स्कूल की एक शिक्षिका की नज़र पड़ी और उन्होंने अपनी बेटी के लिए एक जोड़ी का ऑर्डर दिया। इस तरह यह सब शुरू हुआ।'' शुरुआती दौर में वह जूतों के तलवों को काटने के लिए साधारण हाथ से चलने वाले औजारों से काम करती थीं और काकचिंग शहर में एक गैर-मणिपुरी व्यक्ति की मदद लेती थीं। उन्होंने कहा, ‘‘एक दिन गश्त के दौरान वहां तैनात सेना के जवानों ने मेरे हाथ से बुने हुए जूते देखे और उनमें से कुछ का ऑर्डर भी दिया। इस तरह से मेरे हाथ से बुने हुए जूते सबसे पहले मणिपुर के बाहर गए थे।'' उन्होंने 1990 में ‘‘मुक्ता शूज़ इंडस्ट्री'' के नाम से अपनी कंपनी शुरू की। इम्फाल शहर में एक व्यापार मेले में अपने हाथ से बुने हुए उत्पादों का प्रदर्शन किया। अब उनके हाथ से बने जूते बड़े-बड़े मेलों में बेचे जाते हैं। दिल्ली, राजस्थान और बंगाल के अलावा, राष्ट्रीय राजधानी में बिचौलियों के माध्यम से जापान, रूस, सिंगापुर और दुबई जैसे देशों से भी ऑर्डर प्राप्त होते हैं। वह एक प्रशिक्षण केंद्र भी स्थापित करना चाहती हैं जहां युवाओं को शिल्प सिखाया जाएगा और स्वरोजगार के लिए तैयार किया जाएगा। मोइरंगथेम ने कहा, ‘‘एक दिन ऐसा आएगा जब मैं ये जूते नहीं बना पाऊंगी। जब तक एक उचित तंत्र नहीं बनाया गया तो मेरा यह शिल्प अंततः खो जाएगा। यह विचार मेरा दिल तोड़ देता है।
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