नवरात्रि में क्यों खेलते हैं गरबा और डांडिया, जानें धार्मिक महत्व
नवरात्रि के पर्व को उत्साह और उमंग से साथ मनाया जाता है। हर साल नवरात्रि के नौ दिन नवदुर्गा की पूजा होती है। इस दौरान दुर्गा पंडाल सजते हैं। माता दुर्गा की भव्य और विशाल प्रतिमाएं सजती हैं। नवरात्रि के मौके पर गुजरात समेत कई राज्यों में गरबा और डांडिया का आयोजन किया जाता है। लोग डांडिया खेलते हैं और गरबा करते हैं। इसे माता की आराधना से जुड़े खास उत्सव की तरह मनाया जाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि नवरात्रि में डांडिया और गरबा क्यों खेलते हैं? डांडिया और गरबा क्या धार्मिक महत्व है?
नवरात्रि में गरबा करने और डांडिया खेलने का धार्मिक महत्व है। इन दोनों नृत्य को मां दुर्गा से नाता है। गरबा को मां दुर्गा की प्रतिमा के आसपास या जहां माता की ज्योत जगाई होती है, वहां किया जाता है। गरबा गर्भ शब्द से लिया गया है, जो माता के गर्भ में शिशु के जीवन को दर्शाता है। गरबा करते समय नृत्य करने वाले गोले में नृत्य करते हैं, जो जीवन के गोल चक्र का प्रतीक है। वहीं डांडिया नृत्य मां दुर्गा और महिषासुर के बीच हुए युद्ध को प्रदर्शित करता है। डांडिया की रंगीन छड़ी को मां दुर्गा की तलवार मानी जाती है। इस कारण डांडिया को तलवार नृत्य भी कहते हैं।
नवरात्रि में क्यों खेलते हैं डांडिया?
नवरात्रि नौ दिन का पर्व है। इन नौ दिनों नें माता के नौ स्वरूपों की पूजा होती है। नौ दिन ज्योत जलाई जाती है। डांडिया भी नवरात्रि के नौ दिन खेलते हैं। हर शाम भक्त मां की पूजा के लिए एकत्र होते हैं और डांडिया करते हैं। गुजरात में लगभग हर घर और गली में मां दुर्गा की प्रतिमा के सामने डांडिया किया जाता है और माता को प्रसन्न किया जाता है।
नवरात्रि में गरबा भी करते हैं। महिलाएं, पुरुष और बच्चे एक गोल आकृति में एकत्र होकर गरबा करते हैं। इस दौरान जहां गरबा करते हैं, उसके केंद्र में एक गरबा, एक मिट्टी का बर्तन रखते हैं, जिसमें सुपारी, नारियल और चांदी का सिक्का रखा जाता है।
डांडिया और गरबा में अंतर
वैसे तो डांडिया और गरबा दो अलग तरह के नृत्य हैं। लेकिन दोनों का नाता माता दुर्गा और नवरात्रि से जुड़ा है। हालांकि डांडिया और गरबा में एक विशेष अंतर है। गरबा मां दुर्गा की आरती से पहले किया जाता है, जबकि डांडिया आरती के बाद खेला जाता है।
डांडिया के लिए प्रॉप के तौर पर रंग बिरंगी डांडिया स्टिक की जरूर होती है, जबकि गरबा के लिए किसी चीज की जरूरत नहीं होती। लोग अपनी दोनों हथेलियों को जोड़कर ताली बजाते हुए गरबा करते हैं और गरबा ज्योत के आसपास नृत्य करते हैं।
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