- Home
- सेहत
- कोरोना वायरस को डिटेक्ट करने वाले भारत सरकार के आरोग्य सेतु ऐप को अब तक 14 करोड़ से ज्यादा लोगों ने डाउनलोड कर लिया है। नागरिकों को कोरोना वायरस से सुरक्षित रखने के लिए सरकार ने 2 अप्रैल को आरोग्य सेतु ऐप लांच किया था। सरकार ने इसे कई जगहों पर डाउनलोड करना अनिवार्य किया है। आरोग्य सेतु कोरोना वायरस का पता लगाने के साथ सेल्फ असेसमेंट और कोरोना वायरस से जुड़ी जरूरी जानकारी मुहैया कराता है।आरोग्य सेतु ऐप क्या है?आरोग्य सेतु ऐप एक मोबाइल एप्लीकेशन है, जो कोविड-19 के संभावित खतरों से अवगत कराता है। यह ऐप ब्लूटूथ बेस्ड कांटैक्ट ट्रेसिंग तंत्र का उपयोग करता है। यह उन सभी लोगों का डेटा रिकॉर्ड करता है, जिनके संपर्क में व्यक्ति आता हैं। यदि आप किसी कोविड-19 पॉजिटिव के संपर्क में आते हैं तो ये एप्लीकेशन आपको सचेत करता है। साथ ही यह बचाव संबंधी जानकारी भी देता है। इससे यह कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने में मदद करता है।आरोग्य सेतु ऐप 12 भाषाओं में और Android, iOS और KaiOS प्लेटफार्मों पर उपलब्ध है। एक बार डाउनलोड किए जाने के बाद, उपयोगकर्ताओं को अपने, ब्लूटूथ पर स्विच करना होगा और अपने लोकेशन के बारे में बताना होगा। यह एप्लीकेशन आईसीएमआर द्वारा अनुमोदित उन प्रयोगशालाओं की सूची प्रदान करता है जहां कोविड-19 परीक्षण की सुविधा है। यह पूरे देश में कोरोना के कुल एक्टिव मामले, ठीक हुए लोग और मरने वालों संख्या राज्यवार उपलब्ध कराता है।आरोग्य सेतु ऐप कैसे काम करता है?आपके फोन में मौजूद आरोग्य सेतु एप ब्लूटूथ के जरिए एक रेंज के भीतर आने वाले अन्य उपकरणों का पता लगाता है जिनमें भी यही ऐप काम कर रहा होता है। जब ऐसा होता है तो दोनों फोन सुरक्षित रूप से एक डिजिटल इंटरैक्शन का आदान-प्रदान करते हैं, जिसमें समय, निकटता, स्थान और अवधि शामिल होती है। यह डेटा सभी व्यक्तियों के मोबाइल फोन में इकठ्ठा होता है। अगर आप पिछले 14 दिनों में किसी कोरोनोवायरस पॉजिटिव मरीज के संपर्क में आए हैं, तो ये ऐप उस व्यक्ति के साथ आपकी निकटता के आधार पर संक्रमण के जोखिम की गणना करता है। उसके बाद ये ऐप आपको सही कदम उठाने की सलाह देता है। आपको क्या करना चाहिए ये आपके एप्लिकेशन की होम स्क्रीन पर दिखाई देना शुरू हो जाता है। ये एप्लिकेशन आपको आवश्यकतानुसार और आवश्यक चिकित्सा जानकारी भी प्रदान करता है।
- एकता कपूर के सीरियल कसम से और बड़े अच्छे लगते हैं , के गोलू-मोलू अभिनेता राम कपूर काफी दिनों से नजर नहीं आ रहे थे। दरअसल वे वजन कम करने के अभियान में जुटे हुए थे और अब उन्होंने अपने नए अवतार की जो तस्वीर शेयर की है, उससे लोग चौंक गए हैं। अब वे काफी स्लिम फिट बन गए हैं।45 साल के राम कपूर इस समय अपना वजन कम करने को लेकर काफी चर्चा में हैं। इंडियन टेलीविजन और बॉलीवुड एक्टर राम कपूर ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स पर अपनी कुछ तस्वीरें शेयर की हैं, जो निश्चय ही किसी को भी आश्चर्य में डालने वाली हैं। लोग उनकी मेहनत की जमकर तारीफ कर रहे हैं। आइये जानें उन्होंने किसतरह से अपना करीब 30 किलो वजन कम किया है।राम कपूर का वर्कआउट रूटीनराम कपूर सुबह जल्दी उठ जाते हैं और उसके बाद वह सीधे जिम जाते हैं। वह जिम जाने से पहले कुछ भी नहीं खाते हैं, जिम में वह सुबह हैवी वेट ट्रेनिंग करते हैं। इसके अलावा वह रात में सोने से पहले कुछ कॉर्डियो एक्सरसाइज कर जमकर पसीना बहाते हैं।राम कपूर का डाइट प्लानराम 16 घंटों तक कुछ भी नहीं खाते हैं और अपनी कैलोरी काउंट पर सख्ती से निगाह रखते हैं। फैटी से स्लिम होने के लिए राम रूक-रूककर उपवास करते रहे। निर्विवाद के लिए, रूक-रूककर उपवास डाइटिंग का एक तरीका है जो आपके भोजन करने के समय को प्रतिबंधित करता है।ये डाइट क्या खाएं या क्या नहीं खाएं पर कभी भी जोर नहीं देती, बल्कि इस बात पर ध्यान केंद्रित किया जाता है कि उपवास की अवधि के दौरान आपको कब, कितना और क्या खाना चाहिए। लेकिन विशेषज्ञों का सुझाव है कि इसमें आप पानी, कॉफी, चाय आदि पी सकते हैं। अभिनेता राम 16/8 इंटरमिटेड फास्टिंग शेड्यूल को फॉलो करते हैं। जहां हर दिन 16 घंटे उपवास रहा जाता है और केवल दोपहर और शाम (7-8 बजे तक) के बीच ही डाइट ली जाती है। राम की कड़ी मेहनत और समर्पण ने निश्चित रूप से उन्हें फायदा पहुंचाया है। उन्होंने 30 किलो वजन कम किया है और वह इंस्टाग्राम पर अपने नए सुडौल शरीर को दिखा रहे हैं।राम ने एक के बाद एक खींची गई सेल्फी में अपने नए पतले-दुबले लुक और पहले के मुकाबले अपनी सेक्सी फिजीक को दिखाया है। इन सेल्फी में उनका लुक पूरे तरीके से बदला दिखाई दे रहा है। इतना ही नहीं उन्होंने इन तस्वीरों में फ्रेंच दाढ़ी रखी हुई है, जो उन्हें और हॉट लुक दे रही है। उन्होंने अपनी बॉडी में आई इस बेमिसाल अंतर वाली तस्वीर को साझा करते हुए लिखा, वॉस अप पीप्स, लॉन्ग टाइम नो सी।
- केला अपने विभिन्न पौष्टिक गुणों के कारण लोगों के खान-पान का एक अभिन्न हिस्सा है। वजन बढ़ाना हो या एक्सरसाइज के बाद एनर्जी ड्रिंक के रूप में इस्तेमाल करना हो, केले की जड़ हर तरह से स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है। पर आपने कभी केले की जड़ के इस्तेमाल के बारे में सोचा है। दरअसल केले की जड़ औषधीय गुणों से भरपूर है जिसे आयुर्वेद में कई बीमारियों के उपचारों के लिए इस्तेमाल किया जाता है।केले की जड़ में कई प्रकार के पोषक तत्व और खनिज पदार्थ होते हैं, जो कि अन्य पौधों की जड़ों की अपेक्षा कहीं अधिक हैं। इसमें सेरोटोनिन, टैनिन, डोपामाइन, विटामिन ए, विटामिन बी, विटामिन सी, नॉर-एपिनेफ्रीन और हाइड्रोऑक्सीप्टामाइन आदि पोषक तत्व होते हैं जो अस्थमा, सूजन और अल्सर जैसी बीमारियों का रामबाण इलाज बन सकता हैं।केले की जड़ को आयुर्वेद में कई सारी बीमारियों के उपचार के लिए इस्तेमाल किया जाता है। आइए जानते हैं इसके कुछ खास स्वास्थ्य लाभ।अस्थमा के मरीजों के लिए केले की जड़ का काढ़ाकेले की जड़ों में में सूजन को कम करने वाले एंटीपायरेटिक गुण होते हैं। ये सांस या अस्थमा की बीमारियों को ठीक करने के लिए बहुत उपयोगी होते हैं। आयुर्वेद में अस्थमा के मरीजों को केले की जड़ का काढ़ा पीने के लिए सुझाव दिया जाता है। केले की जड़ का काढ़ा बनाने के लिए केले की जड़ लें और उसे अच्छे से साफ कर लें। फिर इसे पानी में डालकर उबाल लें। उबल कर पानी जब गाढ़ा हो जाए तो इसमें आजवाइन मिला कर नमक के साथ इसका सेवन करें। ये काफी कारगार तरीके से काम करेगा। इसमें मिठास के लिए गुड़ भी मिलाया जा सकता है।सूजन को कम करने के लिएआयुर्वेद उपचार में केले की जड़ का उपयोग पुराने सूजन को कम करने के लिए किया जाता है। यह बहुत ही विश्वशनीय और पारंपरिक दवा के रूप में जानी जाती है। अगर गले में सूजन की समस्या है, तो इसके लिए केले की जड़ को अच्छी तरह से साफ करके इसे पीस लें। फिर इस पेस्ट को निचोड़कर इसका रस निकाल लें। केले की जड़ से बने इस जूस में थोड़ा सा पानी मिलाएं और इस मिश्रण से गरारे करें। ऐसा दिन में 3-4 बार करने से गले की सूजन कम हो जाती है।हाई ब्लड प्रेशर मेंकेले की जड़ हाई ब्लड प्रेशर से पीडि़त लोगों के लिए भी बहुत फायदेमंद है। इसके लिए केले की जड़ों को उबाल कर इसका पानी पीना है। इसके लिए 30 से 120 ग्राम तक केले की जड़ लें और साफ करने के बाद इसे उबाल लें। इस उबले हुए पानी को ठंडा होने के बाद चाय की तरह पी सकते हैं। अच्छे परिणाम पाने के लिए इसे चाय की तरह नियमित रूप से 3-4 बार पिएं। यह धीरे-धीरे आपके ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने में मदद करता है।पेट की समस्यों के लिएकेले की जड़ पर डोपामाइन की सामग्री गैस्ट्रिक एसिड को बनने से रोक सकती है जिससे कि ये पेट से जुड़ी बीमारियों का रामबाण इलाज बन सकती है। साथ ही इससे अल्सर रोग की शुरुआत को रोकने में मदद मिलती है। गंभीर पेट दर्द या गैस की परेशानी में इसे उबाल कर पिएं या इसका काढ़ा बना कर पिएं, तो ये तुरंत आराम पहुंचा सकती है।---
- मुंबई। स्वस्थ रहना और अपनी इम्यूनिटी को मजबूत बनाए रखना इस समय बहुत ज्यादा जरूरी है। स्वास्थ्य अधिकारियों और तो और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी देश के नागरिकों से अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली यानी की इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाने के लिए गर्म पानी पीने और काढ़ा पीने का आग्रह कर चुके हैं। कोरोना वायरस से निपटने के लिए सीलेब्रिटी भी नए-नए नुस्खे सुझा रहे हैं।हाल ही में फिटनेस फ्रीक और फिल्म जगत में अपनी टोंड और फिट बॉडी के लिए मशहूर मलाइका अरोड़ा ने इम्यूनिटी बढ़ाने वाले अपने डेली रूटीन को आप लोगों के साथ शेयर किया है। ये डेली रूटीन है देसी काढ़ा, जो 40 साल की उम्र के बाद आपकी कमजोर होती इम्यूनिटी को मजबूत बनाने में मदद करेगा और आपको फिट भी रखेगा।मलाइका ने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो शेयर किया जिसे कैप्शन देते हुए उन्होंने लिखा है प्तद्वड्डद्यड्डद्बद्मड्डह्यह्लह्म्द्बष्द्मशह्म्ह्लद्बश्च । यह एक सच्चा मेक इन इंडिया घरेलू उपाय है। बरसों पुराना ये आजमाया हुआ नुस्खा एक पारंपरिक कोशिश है घर बैठे इम्यूनिटी बूस्ट करने की । इसका नियमित सेवन आपको सर्दी-खांसी से राहत देने और कई रोगों से दूर रखने में मदद करता है। इस काढ़े को बनाने में आंवला, थोड़ा सेब का सिरका, ताजा कार्बनिक हल्दी और अदरक की जड़ व काली मिर्च की जरूरत होती है। यह सब चीजें आपकी इम्यूनिटी को बढ़ाने वाले इस जादुई औषधि के लिए जरूरी है। इस वीडियो में मलाइका अदरक, आंवला, कच्छी हल्दी, एप्पल साइडर विनेगर और काली मिर्च जैसे कुछ मूल अवयवों का उपयोग करते हुए अपना इम्यूनिटी बूस्टर ड्रिंक तैयार करते हुए देखा गया है। ये पेय विटामिन सी से भरा हुआ है, जो कि अभी हर किसी शरीर की आम जरूरत है। वीडियो में मलाइका कहती हुई दिख रही है, बेहतर परिणामों के लिए, सुनिश्चित करें कि आपका ये नुस्खा मां के नुस्खे जैसा हो और अपने शुद्धतम रूप में हो। बस इन सामग्रियों को मिश्रित करें और इसके स्वास्थ्य वर्धक गुणों का आनंद लें। कोरोना के नाम पर ढेरों इम्यूनिटी बूस्टर बाजार में जरूर उपलब्ध हैं लेकिन बेहतर परिणामों के लिए यह घरेलू, त्वरित और जैविक नुस्खा आपके लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद है।कभी योगा तो कभी अपने जिम वीडियो से प्रेरित करने वाली मलाइका ने एक बार फिर से आपको एक शानदार नुस्खा सुझाया है। तो आइए जानते हैं इम्यूनिटी बूस्ट करने वाले इस काढ़े में मौजूद सामग्रियों के बारे में।काढ़े में मौजूद सामग्री के स्वास्थ्य लाभ1. अदरक- अदरक में एंटी-वायरल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं। यह खांसी से राहत देने और पाचन में सुधार करने में मदद करता है। यह सर्दी और फ्लू के अन्य लक्षणों को भी कम करता है, इतना ही नहीं ये मांसपेशियों में दर्द, खराश और मतली जैसी समस्याओं को भी दूर करने का काम करता है।2. काली मिर्च- काली मिर्च प्रकृति में एंटी-इंफ्लेमेटरी होती है और एंटीऑक्सिडेंट से समृद्ध होती है। यह मस्तिष्क स्वास्थ्य में सुधार करती है, ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में मदद करती है, दर्द से राहत देती है और इसमें कैंसर से लडऩे वाले गुण भी होते हैं।3. हल्दी- हल्दी में करक्यूमिन नामक सक्रिय तत्व में सूजन-रोधी गुण होते हैं। यह मस्तिष्क के कामकाज में सुधार करता है और मस्तिष्क और हृदय रोग के जोखिम को कम करता है।4. आंवला- आंवला विटामिन सी से भरा होता है, जो इसे सर्दी और फ्लू के इलाज के लिए एकदम सही बनाता है। यह आयरन, कैल्शियम और अन्य महत्वपूर्ण खनिजों में भी समृद्ध है।-----
- विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि कोविड-19 से बचाव के लिए 150 से भी ज्यादा वैक्सीनों की जांच चल रही है। इनमें से 17 इंसानों पर परीक्षण के चरण में हैं। आइए जानते हैं कहां-कहां चल रहे हैं वैक्सीन बनाने के अहम प्रयास-1. भारत बायोटेक, जाइडस कैडिलाभारतीय कंपनी भारत बायोटेक को सरकारी इंस्टीट्यूट आईसीएमआर के साथ मिल कर कोवैक्सिन नाम की वैक्सीन के दूसरे चरण के परीक्षण की अनुमति मिल गई है। भारतीय कंपनी जाइडस कैडिला को भी उसकी वैक्सीन के दूसरे चरण के परीक्षण शुरू करने की अनुमति मिल गई है।2. सिनोवैकचीन की निजी कंपनी सिनोवैक बायोटेक चीन और ब्राजील में एक वैक्सीन के तीसरे चरण के परीक्षण कर रही है। कंपनी हर साल 10 करोड़ डोज उत्पादन के लिए एक फैक्टरी भी बना रही है।3. चाइनीज अकैडमीचाइनीज अकैडमी ऑफ मेडिकल साइंसेज के इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल बायोलॉजी में भी एक वैक्सीन पर दूसरे चरण के परीक्षण चल रहे हैं। इंस्टिट्यूट को पोलियो और हेपेटाइटिस ए की वैक्सीन के आविष्कार के लिए जाना जाता है।4. वुहान इंस्टिट्यूटवुहान इंस्टिट्यूट ऑफ बायोलॉजिकल प्रोडक्ट्स और चीन की सरकारी कंपनी सिनोफार्म मिल कर इस वैक्सीन पर काम कर रहे हैं। इसके तीसरे चरण के परीक्षण शुरू होने वाले हैं।5. नोवावैक्सएक और अमेरिकी कंपनी नोवावैक्स भी वैक्सीन पर काम कर रही है और इसके कुछ स्थानों पर तीसरे चरण के परीक्षण चल रहे हैं। एक अंतरराष्ट्रीय पहल के तहत इस प्रोजेक्ट में 38.4 करोड़ डॉलर का निवेश किया गया है।6. इम्पीरियल कॉलेज, लंदनलंदन के इम्पीरियल कॉलेज में भी शोधकर्ता एक वैक्सीन पर काम कर रहे हैं जिसके उत्पादन के लिए उन्होंने मॉर्निंगसाइड वेंचर्स से और वितरण के लिए वैक एक्विटी ग्लोबल हेल्थ नाम की कंपनी के साथ हाथ मिलाया है। इसके भी दूसरे और तीसरे चरण के परीक्षण शुरू हो चुके हैं।7. बायोऐंटेक और फाइजरजर्मन कंपनी बायोऐंटेक, अमेरिकी कंपनी फाइजर और चीनी कंपनी फोसुन फार्मा ने इस वैक्सीन को विकसित करने के लिए हाथ मिलाया है। इसके परीक्षण भी दूसरे चरण में पहुंच चुके हैं। कंपनियों को उम्मीद है कि टीका अक्तूबर तक उपलब्ध हो जाना चाहिए।8. मॉडर्नाअमेरिकी कंपनी मॉडर्ना की वैक्सीन परीक्षण के दूसरे चरण में है और जुलाई में तीसरे चरण में प्रवेश कर सकती है। इसे लेकर जांच में कम लोगों को शामिल करना जैसे कुछ विवाद भी रहे हैं, फिर भी परीक्षण निर्विरोध चल रहे हैं। कंपनी को उम्मीद है कि 2021 के शुरूआती महीनों में टीका आ जाएगा।9. ऐस्ट्राजेनेकाब्रिटिश-स्वीडिश कंपनी ऐस्ट्राजेनेका ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ मिल कर एक वैक्सीन पर काम कर रही है। बताया जा रहा रहा है कि यह वैक्सीन प्रीक्लिनिकल और उसके बाद के तीन चरणों में इंसानों में किए जाने वाले परीक्षण में पहला चरण पार कर चुकी है और दो अलग-अलग स्थानों पर इसे लेकर दूसरे और तीसरे चरण में परीक्षण चल रहे हैं। अगर सब ठीक रहा तो इस प्रोजेक्ट से आपातकाल वैक्सीन अक्तूबर में आ सकती है।
- सोते समय खर्राटे लेना आम बात है, पर वहीं ये आपके खराब होते स्वास्थ्य का भी एक गंभीर सूचक है। खर्राटे लेना उन लोगों में अधिक आम है जो 40 वर्ष से अधिक उम्र के हैं और जिन्हें धूम्रपान की आदतें हैं या फिर अत्यधिक वजन है या उन्हें सांस लेने में समस्या होती है। वहीं खर्राटे अक्सर बढ़े हुए टॉन्सिल, बढ़े हुए जीभ या गर्दन के चारों ओर अतिरिक्त वजन का कारण बनते हैं। इन सबके कारण फेफड़ों में यात्रा करने के लिए वायुमार्ग को बहुत संकीर्ण बना जाता है और इससे गले में कंपन होता है, इसलिए खर्राटे की आवाज होती है। पर हाल ही में आए रिसर्च की मानें, तो खर्राटे का मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा असर पड़ता है। वो कैसे आइए जानते हैं।मानसिक स्वास्थ्य और खर्राटे लेनाठीक से काम करने के लिए आपके मस्तिष्क को नींद की आवश्यकता होती है। नींद के दौरान भी, मस्तिष्क काम करना जारी रखता है, क्योंकि यह दिन की घटनाओं को संसाधित करता है। तो एक अच्छी रात की नींद स्मृति, निर्णय लेने, सीखने और अन्य संज्ञानात्मक कार्यों को बढ़ाने के लिए आवश्यक है। वहीं खर्राटे लेने से इन सब में खलल पड़ता है, जिससे व्यक्ति थका हुआ, तनावमय और चिड़चिड़ा महसूस करता है।खर्राटे का मनोवैज्ञानिक प्रभावनींद से वंचित मस्तिष्क में कुछ मनोवैज्ञानिक प्रभाव होते हैं जो जरूरी नहीं कि बहुत स्पष्ट हैं, लेकिन परेशान करने वाले हैं। यह संज्ञानात्मक हानि की ओर जाता है, जिसमें खराब नींद स्मृति को संग्रहित करने और पुन: प्राप्त करने में मस्तिष्क की दक्षता को कम करती है। यह रचनात्मकता, एकाग्रता में बाधा डाल सकता है, और जोखिम लेने वाले व्यवहारों में वृद्धि कर सकता है। वहीं इसके कई और नुकसान भी है।खर्राटे भविष्य में अवसाद की ओर अग्रसर करते हैंपरेशान नींद चिंता का कारण बन सकती है, और यह चिंता तनाव से निपटने की क्षमता को कम करती है। जो लोग पहले से ही चिंता से पीडि़त हैं, नींद की कमी उनके लक्षणों को खराब कर सकती है। जिन व्यक्तियों को स्लीप एपनिया होता है, उनमें अवसाद विकसित होने की संभावना अधिक होती है। ऑक्सीजन की कमी और नींद की गड़बड़ी मस्तिष्क के कामकाज में परिवर्तन का कारण बन सकती है, जिससे अवसाद हो सकता है। जो व्यक्ति अधिक खर्राटे लेते हैं उनका निजी जीवन भी बहुत प्रभावित रहता है।व्यवहार में भी दिखने लगता है इसका असरखर्राटे लेने वाले व्यक्तियों में आत्मसम्मान की कमी जैसी स्थतियां भी देखी गई हैं। साथ भी पाया जाता है और यह उनके रिश्तों पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। जहां वे अपने खर्राटों के कारण असुरक्षित महसूस करते हैं, वे व्यवहार में भी शामिल होते हैं जैसे कि अपने साथी के साथ सोने से परहेज करते हैं या यहां तक कि अन्य सदस्यों के साथ अपने बिस्तर या कमरे को साझा करने से भी बचते हैंइससे बचने के लिए अपनी जीवनशैली में बदलाव करें। जैसे कि -ॉ-परेशान और लोगों से बुरा व्यवहार करना।- वजन कम करना।-सोने के समय भारी भोजन से बचने के लिए नींद की स्थिति बदलना।- किसी भी एलर्जी और सांस की समस्याओं के लिए चिकित्सा सहायता लें।-सोने से पहले धूम्रपान छोडऩा और शराब के सेवन से बचना।-अनिद्रा, अवसाद, चिंता, रिश्ते के मुद्दों जैसे खर्राटों के मनोवैज्ञानिक प्रभावों के लिए, एक मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से पेशेवर मदद लें।--
- कोरोना वायरस देश और दुनिया में बड़ी तेजी से अपना पैर पसार रहा है। सरकार ने संक्रमण से बचाव के लिए कई नियम और कानूनों में बदलाव किया है। सरकार कोरोनो वायरस के प्रसार को रोकने के लिए खाद्य पदार्थों सहित सतहों और वस्तुओं की सफाई के लिए समय-समय पर गाइडलाइन जारी करती रही है। हाल ही में भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने फलों और सब्जियों के साफ सफाई को लेकर कुछ दिशा निर्देश दिए हैं। हालांकि भोजन के माध्यम से वायरस के संचारित होने का कोई ठोस सबूत नहीं है, भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने सुझाव दिया है कि फलों और सब्जियों को खपत से पहले ठीक से धोया जाना चाहिए।क्यों जरूरी है फलों और सब्जियों की सफाईफलों और सब्जियों की सफाई कोरोना के इस वक्त में इसलिए जरूरी है क्योंकि ठोक तरह से हम में बहुत लोगों को नहीं पता होता है कि हमारे पास जो फल और सब्जियां आ रही हैं, वो कहां-कहां से गुजर कर आ रही हैं। दरअसल कोरोना वायरस यूं तो सतही जगहों पर होता है और किसी व्यक्ति या सामान के द्वारा ही एक स्थान से दूसरे स्थान पर ये फैलता है। आइए जानते हैं कोरोना से बचाव के लिए भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने क्या गाइडलाइन जारी की हैं।- पैकेट के भीतर विक्रेताओं से खरीदे गए फलों और सब्जियों को एक अलग जगह पर रखें।-फलों और सब्जियों को अच्छी तरह से धोएं या गर्म पानी में 50 पीपीएम क्लोरीन की एक बूंद डालें और उन्हें इसमें डुबोएं।-पीने योग्य या स्वच्छ पानी से ही फलों और सब्जियों को धोएं।-कीटाणुनाशक या साबुन आदि का इस्तेमाल ताजी सब्जियों पर न करें।- फ्रिज में रखे जाने वाले फलों और सब्जियों को फ्रिज में रखें। बाकी को बास्केट या रैक में कमरे के तापमान पर रखें।खरीदारी के बाद घर पहुंच कर इन बातों का रखें खास ध्यानभारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने सिर्फ सब्जियों की सफाई को ही लेकर गाइडलाइन्स नहीं जारी की है बल्कि ये भी बताया है कि अगर आप खरीदारी करके बाहर से घर वापिस आते हैं, तो आपको अपने सफाई और सैनिटाइजेशन के साथ किन चीजों का ध्यान रखना चाहिए। एफएसएसएआई के ये निर्देश अब और जरूरी हो गए हैं, जब देश में अनलॉक 2.0 है और बहुत सारी चीजें खुली हैं।-घर में घुसने से पहले अपने जूते-चप्पलों को बाहर ही उतारें।-खरीदे हुए सामान को थैलों से अलग रखें।-हाथों को दरवाजे पर ही धो लें तभी अंदर आएं।-खाद्य सुरक्षा के मुद्दों जैसे तापमान या कीट के जोखिम से बचने के लिए कारों या गैरेज में घर के बाहर न छोड़ें।- सिंक और प्लेटफॉर्म को साफ करें जहां खाद्य पदार्थों को धोया गया है। ड्रिप को फर्श पर गिरने न दें अन्यथा आपको इसे तुरंत पोंछना चाहिए।- खाने के पैकेज के मामले में, उन्हें अल्कोहल-आधारित सैनिटाइजर या साबुन और साफ पानी के साथ पोंछकर कीटाणुरहित करें।
- -आईआईटी दिल्ली से शोधकर्ताओं के अध्ययन में ये बात सामने आईदुनिया भर के वैज्ञानिक कोविड-19 से लडऩे के लिए वैक्सीन और दवाओं के विकास पर काम कर रहे हैं। इस दिशा में कार्य करते हुए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली के शोधकर्ताओं ने चाय और हरितकी यानी हरड़ में ऐसे तत्व का पता लगाया है, जिसके बारे में दावा है कि यह कोविड-19 के उपचार में एक संभावित विकल्प हो सकताहै।इस अध्ययन का नेतृत्व कर रहे आईआईटी दिल्ली केकुसुमा स्कूल ऑफ बायोलॉजिकल साइंसेज के शोधकर्ता प्रोफेसर अशोक कुमार पटेल ने बताया कि हमने प्रयोगशाला में वायरस के एक मुख्य प्रोटीन 3सीएल-प्रो प्रोटीएज को क्लोन किया है और फिर उसकी गतिविधियों का परीक्षण किया है। इस अध्ययन के दौरान वायरस प्रोटीन पर कुल 51 औषधीय पौधों का परीक्षण किया गया है। इन विट्रो परीक्षण में हमने पाया कि ब्लैक-टी, ग्रीन-टी और हरितकी इस वायरस के मुख्य प्रोटीन की गतिविधि को बाधित कर सकते हैं।चाय महत्वपूर्ण बागान फसल है। इसके एक ही पौधे से ग्रीन-टी और ब्लैक-टी मिलती है। इसी तरह, हरितकी, जिसे हरड़ भी कहते हैं, को एक प्रमुख आयुर्वेदिक औषधि के रूप में जाना जाता है। प्रोफेसर पटेल ने बताया कि विस्तृत आणविक तंत्र की पड़ताल के लिए हमारी टीम ने चाय और हरितकीके सक्रिय तत्वों की जांच शुरू की तो पाया कि गैलोटेनिन नामक अणु वायरस के मुख्य प्रोटीन की गतिविधि को नियंत्रित करने में प्रभावी हो सकता है। ब्लैक-टी, ग्रीन-टी या फिर हरितकी भविष्य में कोरोना वायरस के लिए संभावित उपचार विकसित करने में प्रभावी हो सकते हैं। परंतु, इसके लिए क्लिनिकल ट्रायल की जरूरत होगी।शोधकर्ताओं का कहना है कि वायरस का 3सीएल-प्रो प्रोटीएज वायरल पॉलीप्रोटीन के प्रसंस्करण के लिए आवश्यक है। इसलिए, यह वायरस को लक्षित करने वाली दवाओं के विकास के लिए एक दिलचस्प आधार के रूप में उभरा है। उनका मानना है कि इस प्रोटीन को लक्ष्य बनाकर वायरस को बढऩे से रोका जा सकता है।प्रयोगशाला में किए गए इस शोध के बाद चाय और हरितकी को कोविड-19 संक्रमण रोकने में संभावित उम्मीदवार के रूप में देखा जा रहा है। हालाँकि, अध्ययनकर्ताओं का कहना यह भी है कि इस शोध के नतीजों की वैधता का परीक्षण जैविक रूप से किया जा सकता है। इस अध्ययन के नतीजे शोध पत्रिका फाइटोथेरैपी रिसर्च में प्रकाशित किए गए हैं।प्रोफेसर पटेल के अलावा शोधकर्ताओं की टीम में आईआईटी दिल्ली के सौरभ उपाध्याय, प्रवीण कुमार त्रिपाठी, डॉ शिव राघवेंद्र, मोहित भारद्वाज और मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान, नई दिल्ली की शोधकर्ता डॉ मंजू सिंह शामिल हैं।---
- दाल एक ऐसा आहार है, जो भारतीय थाली में हर सीजन में देखा जा सकता है। ज्यादातर लोग रोजाना के खाने में दाल जरूर खाते हैं। आमतौर पर सभी दालें सेहत के लिए फायदेमंद होती हैं, मगर कुछ दालों को आप हर मौसम में नहीं खा सकते हैं। जैसे- उड़द की दाल में बादीपन होता है तो इसे बारिश में कम खाना चाहिए, चने और मटर की दाल गरिष्ठ होती है इसलिए इसे गर्मी में कम खाना चाहिए। लेकिन मूंग और मसूर की दाल को मिक्स करके आप किसी भी मौसम में खा सकते हैं। इन दालों को मिक्स करने से आपका पेट स्वस्थ रहेगा, पाचनतंत्र की कोई समस्या नहीं होगी और शरीर को ढेर सारे लाभ मिलेंगे। आयुर्वेदिक डाइट में इन दालों को विशेष तौर पर फायदेमंद माना गया है।मूंग और मसूर की दाल को मिक्स करके खाने से मिलने वाले 4 जबरदस्त फायदे।किसी भी मौसम में खा सकते हैं ये मिक्स दालआमतौर पर गर्मियों में आपको ठंडी तासीर वाली चीजें खाने की सलाह दी जाती है और सर्दियों में गर्म तासीर वाली चीजें खाने की। मूंग के दाल की तासीर ठंडी होती है, जबकि मसूर की दाल की तासीर गर्म होती है। इसलिए इन दोनों दालों को मिलाकर आप किसी भी मौसम में इस दाल को खा सकते हैं। इससे आपकी सेहत को कोई नुकसान नहीं होता है। बरसात के मौसम में अक्सर सुपाच्य चीजें खाने की सलाह दी जाती है क्योंकि इस मौसम में पाचन कमजोर हो जाता है। ऐस में मूंग और मसूर की मिक्स दाल आप बारिश के मौसम में भी खा सकते हैं।पचाने में आसान और पाचनतंत्र के लिए वरदान है ये दालपाचन खराब होने पर आपको पेट की कई समस्याएं होने लगती हैं। ऐसा तब होता है, जब आप उलूल-जुलूल खाना खाकर अपने पाचनतंत्र से ज्यादा मेहनत करवाते हैं। पाचन खराब होने पर उल्टी, दस्त, पेट दर्द, कब्ज, बहदहमी, गैस, पेट फूलने जैसी समस्याएं होती हैं। इस तरह की बीमारी में आयु्र्वेदिक डॉक्टर्स भी आपको मूंग और मसूर की दाल को मिक्स करके खाने की सलाह देते हैं। इसके अलावा ये दाल सुपाच्य होती है, इसलिए ये पेट को आराम पहुंचाती है।प्रोटीन का भंडार हैं ये दालेंप्रोटीन शरीर के लिए बेहद जरूरी है। शरीर में नई कोशिकाएं, बाल, नाखून आदि प्रोटीन से ही बनते हैं। इसके अलावा प्रोटीन आपको सेहतमंद और स्वस्थ रखने के लिए भी जरूरी है। मूंग और मसूर की मिक्स दाल खाने से आपके शरीर की प्रोटीन की जरूरत भी पूरी हो जाती है। दरअसल सभी प्रकार की दालें प्रोटीन का बहुत अच्छा स्रोत मानी जाती हैं। इसलिए अगर आप सप्ताह में 4-5 दिन भी मूंग और मसूर की दाल को मिक्स करके खाते हैं, तो इससे आपके शरीर को अच्छी मात्रा में प्रोटीन मिल जाता है।कोलेस्ट्रॉल, डायबिटीज और हार्ट की बीमारियां रहती हैं दूरमूंग और मसूर की मिक्स दाल खाने से आपके शरीर में कोलेस्ट्रॉल कम होता है, डायबिटीज का खतरा कम होता है और हार्ट की बीमारियां दूर रहती हैं। इसका कारण यह है कि ये दालें लो-फैट का अच्छा स्रोत होती हैं। इनमें मौजूद मिनरल्स जैसे आयरन और जिंक आपके शरीर में खून बढ़ाते हैं, मांसपेशियों को स्वस्थ रहते हैं। इसके अलावा दालें फाइबर से भरपूर होती हैं इसलिए इनके सेवन से शरीर में बैड कोलेस्ट्रॉल कम होता है, जिससे हार्ट की बीमारियां दूर रहती हैं।
- ..कोरोना वायरस महामारी के आने के बाद से हैंड सैनिटाइजर्स का महत्व बढ़ गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन सहित दुनियाभर के हेल्थ एक्सपर्ट्स का मानना है कि 60 प्रतिशत एल्कोहल वाले हैंड सैनिटाइजर के प्रयोग से वायरस को मारा जा सकता है और कोरोना वायरस को फैलने से रोका जा सकता है। यही कारण है कि अचानक से मार्केट में हैंड सैनिटाइजर्स के हजारों नए ब्रांड आ गए हैं। इसमें कई शिकायतें भी आ रही हैं। दरअसल कुछ कंपनियां हैंड सैनिटाइजर्स में एल्कोहल के नाम पर एल्कोहल का ऐसा रूप मिला रही हैं, जो खतरनाक होता है और जानलेवा भी हो सकता है। यही कारण है कि U.S. Food and Drug Administration (FDA) ने ऐसे हैंड सैनिटाइजर्स के इस्तेमाल के खिलाफ चेतावनी जारी की है। फिलहाल एफडीए ने मैक्सिको में बने 9 हैंड सैनिटाइजर्स के ब्रांड्स को मेथनॉल के प्रयोग के लिए चेतावनी भेजी है।आप भी हैंड सैनिटाइजर्स को लेकर सचेत हो जाएं और इन्हें खरीदने से पहले इसके पीछे यह जरूर पढ़ लें कि इसमें किस तरह के एल्कोहल का किस मात्रा में प्रयोग किया गया है।क्यों खतरनाक हैं मेथनॉल वाले हैंड सैनिटाइजर्स?मेथनॉल एल्कोहल का एक ऐसा रूप है, जो बहुत ज्यादा जहरीला होता है। इसका इस्तेमाल आमतौर पर रेसिंग गाडिय़ों के ईंधन में और एंटीफ्रीज के तौर पर किया जाता है। एफडीए ने बताया है कि मेथनॉल इतना खतरनाक हो सकता है कि इसे त्वचा पर लगाने से ये सीधे त्वचा के भीतर चला जाता है और गंभीर मामलों में ये जानलेवा भी हो सकता है। हाथ पर इस सैनिटाइजर को लगाने से जहरीला प्रभाव फैल सकता है। ऐसे एल्कोहल को सूंघना भी खतरनाक हो सकता है।कितना खतरनाक हो सकता है मेथनॉल वाला हैंड सैनिटाइजर?एफडीए ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि मेथनॉल वाले हैंड सैनिटाइजर्स के प्रयोग से ये समस्याएं या खतरे हो सकते हैं।चक्कर आनाउल्टी आनासिर दर्द होनाआंखों से धुंधला दिखाई देनाहमेशा के लिए अंधापनशरीर में कंपकंपीकोमा में भी जा सकता है व्यक्तिनर्वस सिस्टम परमानेंट डैमेज हो सकता हैव्यक्ति की मौत हो सकती हैकौन से हैंड सैनिटाइजर्स हैं इस्तेमाल के लिए सुरक्षित?विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक प्रश्न के जवाब में बताया है कि अभी तक प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर एथेनॉल और आइसोप्रोपेनॉल - सिर्फ यही हो एल्कोहल ऐसे हैं, जो हैंड सैनिटाइजर के लिहाज से सुरक्षित हैं। इसके अलावा विश्व स्वास्थ्य संगठन यह भी कहता है कि सभी तरह के एल्कोहल ज्वलनशील होते हैं, यानी इनमें तुरंत आग पकड़ती है। इसलिए हैंड सैनिटाइजर का प्रयोग करने वाले व्यक्ति को सैनिटाइजर के प्रयोग के तुरंत बाद आग से दूर रहना चाहिए। खासकर ऐसे लोग जो धूम्रपान करते हैं, वो सैनिटाइजर्स के प्रयोग को लेकर जरूर सावधानी बरतें, वर्ना आग का खतरा रहता है।फर्जी दावों वाले सैनिटाइजर्स से रहें सावधानएफडीए की रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि हैंड सैनिटाइजर्स मौजूदा वक्त की जरूरत हैं। इसलिए कुछ लोग फर्जी दावे करके अपने प्रोडक्ट को बेचकर ज्यादा मुनाफा कमाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि अगर कोई सैनिटाइजर ऐसा दावा करता है कि उसका प्रोडक्ट इस्तेमाल के बाद 24 घंटे तक सुरक्षा देगा, तो ये दावा पूरी तरह निराधार है। फिलहाल हैंड सैनिटाइजर्स सिर्फ तत्काल प्रयोग करने पर ही कारगर पाया गया है।अगर आपके आसपास भी ऐसा फर्जी दावे वाले प्रोडक्ट्स बिक रहे हैं या आप ऐसे हैंड सैनिटाइजर्स पाते हैं, जिनमें मेथनॉल का प्रयोग है, तो इसकी सूचना तत्काल 1800-11-4000 या 1800-11-4424 टोल फ्री नंबर पर दें।
- स्वस्थ आहार पुरानी बीमारियों के विकास के जोखिम को कम करता है और आपको लंबे और खुशहाल जीवन जीने में मदद करता है। हेल्दी फूड पोषक तत्वों, विटामिन, खनिज और प्रोटीन से भरे होते हैं, जो हमारे शरीर को ठीक से काम करने के लिए आवश्यक होते हैं। लेकिन बहुत ज्यादा अच्छी चीज भी स्वास्थ्य के लिए खराब हो सकती है, जब हम हेल्दी फूड की बात करते हैं तो ऐसे कई फूड हैं, जो स्वास्थ्य के लिए अच्छे हैं, लेकिन इनका अधिक मात्रा में सेवन खतरनाक हो सकता है।आइए जानते हैं ऐसी कौन सी चीजें हैं जिनकी अधिक मात्रा नुकसान पहुंचाती है-1. शकरकंद- शकरकंद एक जड़ वाली सब्जी है और स्टार्चयुक्त सफेद आलू का स्वास्थ्यवर्धक विकल्प है। वे विटामिन सी, विटामिन बी, कॉपर, पोटेशियम और मैंगनीज से भरे होते हैं। यह वजन कम करने, श्वसन समस्याओं का इलाज करने, गठिया और पेट के अल्सर से लडऩे में मदद करता है। लेकिन बीटा-कैरोटीन और विटामिन ए के उच्च स्तर के कारण, बहुत अधिक शकरकंद का सेवन त्वचा का रंग बदल सकता है। शरीर और नाखून संतरे जैसा दिख सकता है। एक बार जब शकरकंद का सेवन कम कर दिया जाता है, तो नारंगी रंग फीका पड़ जाएगा।2. सोयाबीन- सोयाबीन एक प्रकार की फली है। हम अपने आहार में सोया मिल्क, टोफू जैसे विभिन्न तरीकों से शामिल कर सकते हैं। यह प्रोटीन, कैल्शियम, मैंगनीज और सेलेनियम के साथ पैक किया जाता है, कुछ अन्य विटामिनों के अलावा। सोयाबीन का नियमित सेवन रजोनिवृत्ति के लक्षणों को कम कर सकता है और प्रोस्टेट कैंसर के जोखिम को कम कर सकता है। हालांकि, सोयाबीन की अधिकता शरीर द्वारा प्रोटीन के अवशोषण और प्रसंस्करण को प्रतिबंधित कर सकती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि बीन्स में ट्रिप्सिन और प्रोटीज इनहिबिटर की अधिक मात्रा होती है।3. ब्राजील नट्स- ब्राजील नट्स मोनोअनसैचुरेटेड वसा, प्रोटीन, मैग्नीशियम, जस्ता, कैल्शियम, विटामिन ई और कुछ बी विटामिन का एक बड़ा स्रोत हैं। यह थायरॉयड ग्रंथि को विनियमित करने, सूजन को कम करने और विभिन्न प्रकार के कैंसर के विकास के जोखिम को कम करने में मदद करता है। अखरोट भी सेलेनियम का एक समृद्ध स्रोत है। सेलेनियम एक आवश्यक खनिज है लेकिन अगर अधिक मात्रा में सेवन किया जाए तो यह विषाक्त हो सकता है। लक्षणों में बालों और नाखूनों का नुकसान, पाचन संबंधी समस्याएं और स्मृति संबंधी समस्याएं शामिल हो सकती हैं।4. बादाम- कुरकुरे बादाम में बहुत सारा फाइबर, प्रोटीन और मैग्नीशियम होता है। यह ब्लड शुगर लेवल, ब्लड प्रेशर और लो कोलेस्ट्रॉल लेवल को कम करने में मदद करता है। यह नट्स भी विटामिन ई का एक समृद्ध स्रोत है और इस पोषक तत्व के अत्यधिक सेवन से आपके शरीर में विषाक्तता हो सकती है। एक व्यक्ति को सांस लेने में समस्या, तंत्रिका टूटना, घुटन, सिर दर्द, दस्त और पेट फूलना हो सकता है।5. दालचीनी- दालचीनी न केवल भोजन को स्वादिष्ट बनाने का यंत्र है, बल्कि यह स्वास्थ्य के लिए भी अच्छी है। यह कैल्शियम, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन ए और मैग्नीशियम से भरा होता है। इसका मसाला सूजन और रक्त शर्करा के स्तर को कम करने में मदद करता है। दालचीनी में कौमारिन नामक एक यौगिक भी होता है, जिसका अधिक मात्रा में सेवन किया जाए तो यह हानिकारक हो सकता है। यह यकृत विषाक्तता और कैनीस से जुड़ा हुआ है!---
- ओमेगा-3 फैटी एसिड एक प्रकार की वसा है। यह शरीर में हार्मोन्स के निर्माण के साथ शारीरिक और मानसिक विकास में मदद करती है।शाकाहारी और मांसाहारी दोनों स्रोतों से हमें ओमेगा-3 फैटी एसिड मिलता है। यह अखरोट जैसे सूखे मेवों, मूंगफली, अलसी, सूरजमुखी, सरसों के बीज, कनोडिया या सोयाबीन, स्प्राउट्स, टोफू, गोभी, हरी बीन्स, ब्रोकली, शलजम, हरी पत्तेदार सब्जियों और स्ट्रॉबेरी, रसभरी जैसे फलों में काफी मात्रा में पाया जाता है। टय़ूना, सामन, हिलसा, सार्डिन जैसी मछलियां, शैवाल, झींगा जैसे सी-फूड ओमेगा-3 के ईपीए और डीएचए प्रकार के अच्छे स्त्रोत हैं। इसके अलावा गाय का दूध, मूंगफली, अंडे का सेवन भी फायदेमंद है।एक स्वस्थ व्यक्ति को वजन के हिसाब से ओमेगा-3 फैटी एसिड का सेवन करना चाहिए। डाइटीशियन या डॉक्टर से सलाह लें, क्योंकि अधिक फैट लेने से यह मोटापे का कारण बनता है। ओमेगा-3 युक्त ऑयल में खाना बनाने से इसकी आपूर्ति स्वत: ही हो जाती है। एक स्वस्थ व्यक्ति एक दिन में ओमेगा-3 फैटी एसिड की 4 ग्राम खुराक ले सकता है। पर्याप्त मात्रा में सेवन के बावजूद कई बार पाचन तंत्र में गड़बड़ी से चयापचय या अवशोषण में कमी होने के कारण ओमेगा-3 फैटी एसिड की कमी का जोखिम बढ़ जाता है। इसकी कमी से उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, उच्च कॉलेस्ट्रॉल, डायबिटीज, सूजन, आंत्र रोग, अल्जाइमर जैसे रोग हो सकते हैं। अनुसंधानों से साबित हो चुका है कि आहार में ओमेगा-3 की कमी से स्तन और प्रोस्टेट कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।ओमेगा 3 एक तरह का पॉली अनसेचुरेटेड फैटी एसिड है, जिसे हम अपने आहार से ही प्राप्त कर सकते हैं। हमारे भोजन में ओमेगा-3 तीन तरह का होता है।1.अल्फा-लिनोलेनिक एसिड (एएलए)- प्लांट्स या पेड़-पौधों से मिलने वाला ऑयल है।2. आईकोसेपेंटानॉइक एसिड (ईपीए)- सी फूड या समुद्री जीव-जंतुओं से मिलने वाला ऑयल है।3. डोकोसेहेक्सानॉइक एसिड (डीएचए)- यह सी फूड या समुद्री जीव-जंतुओं से मिलने वाला ऑयल होता है।ओमेगा-3 के नियमित सेवन से रक्त में वसा या ट्राइग्लिसराइड्स का स्तर नियंत्रित होता है, जिससे हृदय रोगों का जोखिम 50 प्रतिशत तक कम रहता है।इसके नियमित सेवन से आथ्र्राइटिस से शरीर में सूजन पैदा करने वाले तत्वों का प्रभाव कम होता है। जोड़ में में दर्द, पीठ दर्द, रुमैठी गठिया, जकडम्न में आराम मिलता है।बच्चों के नर्वस सिस्टम, मानसिक और शारीरिक विकास में फायदेमंद है ओमेगा 3। बच्चों की लर्निग पावर को बूस्ट करता है और उनके मानसिक कौशल में सुधार करता है।--
- नई दिल्ली। राष्ट्रीय औषधीय शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (नाईपर) ने कोविड महामारी से लडऩे के लिए सुरक्षा उपकरण, सैनिटाइजऱ और मास्क जैसे कई अभिनव उत्पाद पेश किए हैं। साथ ही इसने संक्रमण के खिलाफ शारीरिक प्रतिरोध को मजबूत करने के लिए रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढाने वाली (इम्यूनिटी बूस्टर) हर्बल चाय को भी पेश किया है।चूंकि कोविड-19 के उपचार के लिए कोई प्रभावी दवा या वैक्सीन अभी तक उपलब्ध नहीं है, इसलिए लोगों में मजबूत प्रतिरक्षा प्रणाली होना आवश्यक है ताकि वे किसी भी तरह के संक्रमण से खिलाफ आसानी से लड़ सकें और खुद को सुरक्षित रख सकें। इस बात को ध्यान में रखते हुए, नाईपर, मोहाली के प्राकृतिक उत्पाद विभाग ने हर्बल चाय विकसित की है, जो रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है। यह हर्बल चाय शरीर में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को बेहतर बनाती है ताकि इसका उपयोग कोविड-19 वायरल संक्रमण के खिलाफ एक निवारक उपाय के रूप में किया जा सके।एक मजबूत प्रतिरक्षा प्रणाली व्यक्तियों को संक्रमणों से बचाती है और इसमें रोगजनक सूक्ष्म जीव जैसे बैक्टीरिया, वायरस और किसी भी अन्य प्रकार के विषाक्त उत्पादों को बेअसर और समाप्त करने की क्षमता होती है। प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को मज़बूत करना एंटी-वायरल / एंटी-माइक्रोबियल दवाओं का विकल्प हो सकता है। जड़ी-बूटियों को प्रतिरक्षा बढाने वाले गुणों के लिए जाना जाता है, जिसका अर्थ है कि वे विशिष्ट और सामान्य प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया दोनों का उत्पादन करते हैं।यह हर्बल चाय अश्वगंधा, गिलोय, मुलेठी, तुलसी और ग्रीन टी जैसी 6 स्थानीय रूप से उपलब्ध जड़ी-बूटियों का एक संयोजन है, जिन्हें सावधानीपूर्वक निर्धारित अनुपात में मिलाया जाता है। इसके लिए प्रतिरक्षा बढाना, संवेदी अपील, तैयार करने में आसानी और स्वीकार्य स्वाद को ध्यान में रखा गया है। जड़ी-बूटियों का चयन आयुर्वेद में वर्णित रसायन अवधारणा पर आधारित है। रसायन का अर्थ है कायाकल्प। इन जड़ी-बूटियों का लंबे समय से विभिन्न आयुर्वेदिक दवाओं में उपयोग होता रहा है और इन्हें प्रतिरक्षा बढाने वाले प्रभावों के लिए जाना जाता है। ये जड़ी-बूटियां कोशिका स्तर पर प्रतिरक्षा कार्य करती हैं और वायरल / जीवाणु से लडऩे के लिए हमारे शरीर द्वारा उत्पन्न प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को बढ़ाती हैं। अधिकतम प्रतिरक्षा के प्रभाव के लिए को प्राप्त करने के लिए सूत्र (फार्मूला) को तैयार किया गया है।इस चाय को दिन में 3 बार पीया जा सकता है। यह बच्चों और बुजुर्गों के लिए भी सुरक्षित है। यह गले को आराम देता है और शरीर को मौसमी फ्लू की समस्याओं से लडऩे में मदद करता है। इसे परिसर में नाईपर मेडिकल प्लांट गार्डन से एकत्रित / खरीदी गयी जड़ी-बूटियों से तैयार किया गया है। रसायन और उर्वरक मंत्रालय के फार्मास्यूटिकल विभाग के तत्वावधान में नाईपर राष्ट्रीय महत्व के संस्थान हैं। सात संस्थान अहमदाबाद, हैदराबाद, हाजीपुर, कोलकाता, गुवाहाटी, मोहाली और रायबरेली में कार्यरत हैं।---
- आयुर्वेद के अनुसार, पंचामृत पीने से संक्रमण से बचाव होता है। पंचामृत का अर्थ है पांच अमृत, जो पांच पवित्र वस्तुओं से बना है। यह मिश्रण दूध, दही, घी, चीनी/मिश्री और शहद को मिलाकर बनाया गया पेय है, जिसे देवताओं का भोजन कहा जाता है। प्रसाद के रूप में भी इसका बहुत महत्व है। इसके साथ ही भगवान का अभिषेक भी किया जाता है।हिंदू धर्म में किसी भी पूजा के दौरान पंचामृत या पंचामृतम जरूरी होता है। ये भगवान को लगाए जाने वाला पवित्र भोग है और इसका अभिषेक में भी प्रयोग होता है। पंचामृत दो शब्दों से मिलकर बना है, पंच का मतलब है पांच और अमृत का मतलब अमरता देने वाला द्रव।महाभारत के मुताबिक पंचामृत समुद्र मंथन, जिसे क्षीर सागर मंथन भी कहते हैं, के दौरान निकली चीजों में से एक था। दूध, शहद, दही, चीनी और घी के मिश्रण को देवताओं का पेय कहते हैं। पंचामृत में प्रयोग होने वाली सभी सामग्रियों के अपने प्रतीकात्मक अर्थ हैं। दूध शुद्धता और धर्मपरायणता का प्रतीक है। मधुमक्खियों द्वारा पूर्ण समर्पण और सहयोग से तैयार शहद मीठी वाणी और एकता का प्रतीक है। चीनी मिठास और आनंद का प्रतीक है। दही समृद्धि दर्शाती है और घी ताकत और जीत के लिए है। आयुर्वेद के अनुसार ये पांच चीजें जब सही अनुपात में ली जाती हैं, तो सेहत को बहुत फायदा पहुंचाती हैं।पंचामृत पीते समय, यह व्यक्ति के भीतर सकारात्मक भावनाओं को पैदा करता है। पंचामृत के महत्व का उल्लेख कुछ ग्रंथों में किया गया है कि जो व्यक्ति पंचामृत का व्रत करता है उसे जीवन में सभी प्रकार की सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। भगवान को अर्पित किए गए पंचामृत को पीने से व्यक्ति जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाता है और मोक्ष को प्राप्त करता है।पंचामृत सप्त धातु का पोषण करता है- सात शारीरिक ऊतक, शुक्र धातु (प्रजनन ऊतक), मज्जा धातु (अस्थि मज्जा और तंत्रिका ऊतक), अस्थि धातु (हड्डी, दांत), मेदस धातु (वसायुक्त ऊतक), ममसा धातु (मांसपेशियों के ऊतक), रक्त धातु (रक्त) और रस धातु (शक्ति, प्रतिरक्षा और जीवन शक्ति के लिए प्लाज्मा)। पारंपरिक तौर पर पंचामृत चांदी के बर्तन में तैयार किया जाता है। इस धातु में एंटीमाइक्रोबियल, एंटीवायरल, एंटी-इंफ्लेमेटरी और जख्म को ठीक करने का गुण होता है।पंचामृत तैयार करने की मूल विधि समान है, लेकिन कुछ क्षेत्रीय विविधताएं हो सकती हैं। कुछ स्थानों पर पंचामृत में तुलसी के पत्ते, सूखे मेवे और केले डाले जाते हैं। पंचामृत कब तक ठीक रहता है, ये जलवायु और मौसम पर निर्भर करता है।----
- सुबह उठने के बाद खाली पेट एक 1 चम्मच शहद आपके मस्तिष्क शरीर और मस्तिष्क की सेल्स को नष्ट होने से बचाता है और जीवनभर आपका ब्रेन अच्छी तरह काम करता है।अगर आपसे पूछें कि आपके शरीर के सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा कौन सा है? तो संभवत: सभी का जवाब एक ही होगा- मस्तिष्क। मस्तिष्क हमारे शरीर का संचालक है, जिसके इशारे पर हमारे शरीर का हर एक फंक्शन काम करता है। हमारे शरीर में सबसे ज्यादा काम मस्तिष्क करता है इसलिए शरीर जो भी एनर्जी बनाता है, उसका एक बड़ा हिस्सा मस्तिष्क इस्तेमाल करता है। इसी तरह शरीर में सबसे ज्यादा ऑक्सीजन की जरूरत भी हमारे मस्तिष्क को ही होती है। लेकिन यह भी एक तथ्य है कि मस्तिष्क में पॉलीसैचुरेटेड फैटी एसिड्स और लिपिड्स की मात्रा अधिक होने के कारण शरीर में ऑक्सिडेशन की क्रिया से जो फ्री-रेडिकल्स निकलते हैं, वो सबसे ज्यादा नुकसान भी मस्तिष्क को ही पहुंचाते हैं। फ्री रेडिकल्स मस्तिष्क की कोशिकाओं को नष्ट करते रहते हैं, जिसके कारण अल्जाइमर, डिमेंशिया जैसी बीमारियां लोगों को होती हैं।हमारे मस्तिष्क के लिए बहुत जरूरी हैं एंटीऑक्सीडेंट्सशरीर में होने वाले इस ऑक्सिडेशन को रोकने के लिए हमें एंटी-ऑक्सीडेंट्स की जरूरत पड़ती है। ये एंटीऑक्सीडेंट्स हमें खाने-पीने की चीजों से मिलते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि जो लोग नैचुरल चीजें ज्यादा खाते हैं, उन्हें बुढ़ापा और याददाश्त की कमी जैसी समस्याएं कम होती हैं। मस्तिष्क को नुकसान पहुंचाने से रोकने के लिए कई तरह के पोषक तत्वों की जरूरत होती है, जैसे- विटामिन सी, विटामिन ई, जिंक, बीटा कैरोटीन, सेलेनियम आदि। इसलिए अगर आप रोजाना सुबह खाली पेट कोई ऐसी चीज खाएं जो पावरफुल एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर हो, तो आपका मस्तिष्क और शरीर दोनों लंबे समय तक स्वस्थ रहेंगे। ऐसी एक चीज हम सभी के घरों में बहुत आसानी से उपलब्ध होती है, जो कि शहद है।एंटीऑक्सीडेंट्स का भंडार है शहदशहद का महत्व आयुर्वेद में भी बहुत अधिक है और आज के विज्ञान ने भी शहद को बहुत पावरफुल औषधि माना है। अगर आप शहद बनाने वाली मक्खियों को देखें और इनके छत्ते को देखें, तो आपको शहद कुदरत के किसी नायाब चमत्कार से कम नहीं लगेगा। और इसके फायदे जानने के बाद तो आपको और अधिक हैरानी होगी। अच्छी क्वालिटी के शहद में कई तरह के ऑर्गेनिक एसिड्स और फ्लैवोनॉइड्स जैसे फेनॉलिक कंपाउंड्स होते हैं, जो खून में घुलकर बीमारियों से लडऩे में और फ्री रेडिकल्स से लडऩे में शरीर की मदद करते हैं।शरीर के सभी अंगों की रक्षा करता है शहदशहद में एंटी-वायरल, एंटी-बैक्टीरियल और एंटी इंफ्लेमेट्री गुण होते हैं, जिसके कारण ये आपके इम्यून सिस्टम को मजबूती देता है और लिवर, हार्ट, किडनी, फेफड़ों आदि की रक्षा करता है। लेकिन शहद सबसे ज्यादा फायदेमंद आपके मस्तिष्क के लिए होता है। मस्तिष्क कोशिकाओं को होने वाले डैमेज से रोकने में शहद बड़ी भूमिका निभा सकता है। यहां तक कि यह भी देखा गया है कि बूढ़े लोग अगर रोजाना एक चम्मच शहद लें, तो उनकी याददाश्त, एकाग्रता और देखने की क्षमता लंबे समय तक बनी रहती है।रोजाना सुबह 1 चम्मच शहद रखेगा आपको हेल्दी और एक्टिवरोजाना सुबह उठने के बाद 1 ग्लास गुनगुने पानी में 1 चम्मच ऑर्गेनिक अच्छी क्वालिटी वाला शहद घोलें और पिएं। इसके बाद कम से कम 30 मिनट तक कुछ और न खाएं। इससे आपके शरीर को एनर्जी मिलेगी, एंटीऑक्सीडेंट्स मिलेंगे और शरीर और मस्तिष्क दोनों लंबे समय तक स्वस्थ रहेंगे। बस इतना ध्यान दें कि अगर आपको डायबिटीज या पीसीओडी की समस्या है, तो अपने डॉक्टर से पूछकर ही शहद का सेवन करें।
- बहुत सारे घरों में बासी रोटी को गाय या फिर कुत्तों को खिला दिया जाता है। बासी रोटी स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद है इसलिए इसे सुबह-सुबह खाने से शरीर को ढेरों फायदे मिलेंगे। आयुर्वेद के अनुसार बासी रोटी खाने के अनगिनत फायदे होते हैं। इसका सेवन कई गंभीर बीमारियों के इलाज में रामबाण साबित होता है। आज का विज्ञान भी कहता है कि गेहूं से बना बासी खाना हमारी सेहत के लिए बहुत लाभकारी होता है, लेकिन एक बात का ध्यान रखें कि बनने के 12-15 घंटों के अंदर ही रोटी खाना फायदेमंद होता है। इससे ज्यादा बासी रोटी नुकसान पहुंचा सकती है। ज्यादातर घरों में आज भी बुजुर्ग रात में भोजन के रूप में दूध और रोटी का ही सेवन करते हैं।ऐसे खाने से मिलेंगे फायदे....- बासी रोटी को सब्जी से नहीं बल्कि दूध के साथ खाएं क्योंकि दूध में भी कई पोषक तत्व होते हैं जो रोटी के साथ मिलकर फायदा करते हैं। बासी रोटी को ठंडे दूध में 10 मिनट भिगोने के बाद खाएं। इससे ब्लड प्रेशर कंट्रोल में रहता है। इसमें चीनी न डालें। इस तरह रोटियों का सेवन आपको कई बीमारियों से बचाकर रखेगा।- ठंडे दूध के साथ बासी रोटी खाने से शरीर का तापमान नियंत्रित करने में मदद मिलती है। इससे बुखार में फायदा होता है।- सोने से पहले ठंडे दूध में भिगोई हुई बासी रोटी खाने से कब्ज, एसिडिटी और गैस जैसी पेट की समस्याओं से निजात मिलती है। 10-15 मिनट ठंडे दूध में भीगी बासी रोटी दिन के किसी भी समय खाने से खून के ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित किया जा सकता है।- इससे डायबिटीज में फायदा होता है। डायबिटीज जैसी गंभीर बीमारी से छुटकारा पाना है, तो सुबह खाली पेट बासी रोटियों का सेवन करें। यह डायबिटीज को नियंत्रण में रखेगी, साथ ही इस बीमारी को जड़ से खत्म करने में मदद करेगी। इसका असर 2 से 3 महीने में दिखाई देने लगेगा।- हाईब्लड प्रेशर से परेशान लोगों के लिए दूध और बासी रोटी का सेवन काफी राहत दे सकता है। बस आपको दूध में बासी रोटियों को भिगोकर खाना है। इसके बाद आपको बस सुबह खाली पेट एक गिलास पानी पीना है।- इसके अलावा बासी रोटियों का सेवन पेट संबंधी बीमारियों में रामबाण का इलाज करती हैं। इसके साथ ही बासी रोटी वजन घटाने में भी मदद करती हैं। तो आज से ही बासी रोटियों को फेंकना छोड़ दें। रोजाना इसका सेवन करें और अपनी सेहत को स्वस्थ्य बनाए रखें।----
- आज की भाग दौड़ वाली जिंदगी में हर किसी के पास समय की कमी की समस्या रहती है। ऐेसे में हम अपने स्वास्थ्य के साथ अक्सर लापरवाही कर जाते हैं और बीमारियों को निमंत्रण दे बैठते हैं। पौष्टिक भोजन व आराम और व्यायाम न मिलने की वजह से शरीर के स्वास्थ्य का स्तर प्रतिदिन गिर रहा है। जिस कारण ज्यादातर लोग घुटनों की बीमारी जैसे - घुटनों में दर्द के शिकार हो रहे हैं।आइये जाने हम अपने घुटनों को कैसे स्वस्थ रख सकते हैं।- सबसे पहले अपना वजन संतुलित रखें। वजन सही रहेगा, तो आपके घुटनों पर ज्यादा जोर नहीं पड़ेगा।- कभी भी खड़े होकर पानी न पीएं क्योंकि ऐसा करना घुटनों को नुकसान पहुंचाता है इसलिए खड़े होकर पानी न पिए जब भी पीएं बैठ कर पीएं।- कभी भी रात के समय खट्टी चीजों का सेवन न करें । खट्टा दही, आंवला, कीवी, संतरा, मौसमी, नींबू, कीनू, छाछ, इमली और आम आदि का इस्तेमाल नुकसानदायक होता है। रात के समय इनका सेवन घुटनों के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है।- अपने शरीर को चलाते -फिराते रहें यदि हाथ और पैर न चलाएं जाएं तो शरीर में जंग लग जाता है। इसलिए नित्य जरूर व्यायाम करें- जैसे - दौड़ें, योग करें या फिर एक्सरसाइज करें। चलना एक बेहतर व्यायाम हैं। आप अपने घर के आंगन में ही चल सकते हैं, या फिर सीढ़ी- चढऩा- उतरना भी एक बेहतर व्यायाम है।- शरीर में कैल्शियम की कमी न होने दें।-बराबर मात्रा में नीम और अरंडी के तेल को हल्का गर्म करके सुबह-शाम जोड़ों पर मालिश करें।- मालिश के लिए आप इन चीजों से भी तेल बना सकते हैं। 50 ग्राम लहसुन, 25 ग्राम अजवायन और10 ग्राम लौंग 200 ग्राम सरसों के तेल में पका कर जला दें। ठंडा होने पर कांच की बोतल में छान कर रख लें। इस तेल से घुटनों या जोड़ों की मालिश करें।-घुटनों की ग्रीस बढ़ाने के लिए अखरोट काफी फायदेमंद होता है। आप हर रोज दो अखरोट का सेवन जरूर कीजिये। ऐसा करने से घुटनों का ग्रीस बढऩे लगता है। ऐसा इसलिए क्योंकि अखरोट में प्रोटीन, फैट, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन ई, बी-6, कैल्शियम और मिनरल भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। इसके अलावा अखरोट में एंटी-ऑक्सीडेंट के साथ-साथ ओमेगा-3 फैटी एसिड पाया जाता है। यह एक प्रकार का फैट है जो सूजन को कम करने में हेल्प करता है।-हरसिंगार जिसे पारिजात और नाइट जैस्मिन भी कहते हैं। इसके फूल, पत्ते और छाल का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। इसके पौधे आपको अपने घर के आस-पास भी देखने को मिल जाएंगे। इस पेड़ के पत्ते जोड़ों के दर्द को दूर करने और घुटनों की ग्रीस बढ़ाने में मददगार होते हैं। इसके पत्तों में टेनिक एसिड, मैथिल सिलसिलेट और ग्लूकोसाइड होता है ये द्रव्य औषधीय गुणों से भरपूर हैं। घुटनों की ग्रीस बढ़ाने के लिए हरसिंगार के 3 पत्तों को पीसकर पेस्ट बना लें। फिर इस पेस्ट को 1 बड़े गिलास पानी में मिलाकर धीमी आंच पर पकाएं। जब पानी आधा से भी आधा रह जाये तब इसे छानकर हल्का ठंडा करके पियें। इस काढ़े का सेवन सुबह खाली पेट करें।-खाली पेट नारियल का पानी पीने से भी घुटनों में लचीलापन आता है। एक महीना इस उपाय को करके देखें। आपको बहुत फायदा मिलेगा।
- सूरजमुखी के बीज सुपरफूड की श्रेणी में आते हैं। ये स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी होते हैं। कई सालों से सेहत के लिए का इनका इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके बीज कई गुणों से भरपूर होते हैं, जिसकी वजह से इसको काफी लोकप्रिय माना जाता है। इसके सेवन से शरीर में कई पोषक तत्व की पूर्ति होती है साथी ही इसका सेवन कई बीमारियों से लडऩे की क्षमता देता है। सूरजमुखी के बीज में आवश्यक फैटी एसिड, विटामिन और मिनरल्स पाए जाते हैं, जो हमारे शरीर को स्वस्थ रखने के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। इसलिए हमें इन बीजों को किसी न किसी रूप में अपने आहार में जरूर शामिल करना चाहिए। भुने हुए या नमकीन सूरजमुखी के बीज एक स्वास्थ्यपरक स्नैक माने जाते हैं।आइये जाने इसके 10 फायदे.....1. इसके बीज में मैग्निशियम की मात्रा काफी पाई जाती है, इसलिए यह ब्लड प्रेशर को नियंत्रण करने में मदद करता है। कई शोध के मुताबिक, हाई ब्लड प्रेशर वाले लोगों को रोजाना 80 ग्राम सूरजमुखी के बीज खाना चाहिए।2. सूरजमुखी के बीजों में क्लोरोजेनिक एसिड होता है., इसलिए इसका सेवन डायबिटीज को नियंत्रित रखता है।3. इसके बीजों में फाइटोस्टरोल्स उच्च मात्रा में होता है, जो कि दिल को स्वस्थ बनाए रखने में मदद करता है। इसमें विटामिन ई और खनीज पदार्थ की मात्रा खूब पाई जाती है, जिससे दिल संबंधित बीमारियों से बचाव होता है।4. इसके बीज हड्डियों को स्वस्थ बनाए रखते हैं, क्योंकि इसमें फैट, खनिज पदार्थ, विटामिन और प्रोटीन की भरपूर मात्रा होती है। इसका सेवन स्ट्रोक के खतरे में आ चुके लोगों के लिए फायदेमंद होता है।5. सूरजमुखी के बीज त्वचा को निखारते हैं, क्योंकि इसमें विटामिन ई और कॅापर पाया जाता है।6. इसके बीजों में विटामिन ई की मात्रा भरपूर पाई जाती है, साथ ही फाइबर और सिलेनियम कोलोन बी होता है, इसलिए यह कैंसर जैसी बीमारी से बचाता है।7. सूरजमुखी के बीज में आवश्यक फैटी एसिड, विटामिन और मिनरल्स पाय जाते हैं, जो हमारे शरीर को स्वस्थ रखने के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। इसलिए हमें इन बीजों को किसी न किसी रूप में अपने आहार में जरूर शामिल करना चाहिए। भुने हुए या नमकीन सूरजमुखी के बीज एक स्वास्थ्यपरक स्नैक माने जाते हैं।8. सूरजमुखी के बीज में एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-इंफ्लेमेटरी के साथ-साथ घाव को भरने का गुण भी होता है। सूरजमुखी के बीज में फ्लेवोनॉइड, पॉलीसैचुरेटेड फैटी एसिड और विटामिन मौजूद होते हैं, जो ह्रदय संबंधी समस्याओं से बचाव करने का काम करते हैं।9. अगर शुरुआत से ही हड्डियों का ध्यान न रखा गया, तो बढ़ती उम्र का प्रभाव हड्डियों पर भी पडऩे लगता है। इसलिए, पोषक तत्वों से भरपूर आहार को अपनी डाइट में शामिल करना जरूरी है। खासकर, आयरन, कैल्शियम व जिंक और सूरजमुखी के बीज में आयरन, जिंक, कैल्शियम मौजूद होते हैं, जो हड्डियों को स्वस्थ रखने में मदद कर सकते हैं।10. मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी पोषक तत्व जरूरी होते हैं। बढ़ती उम्र का असर दिमाग पर भी पड़ता है, जिससे कई तरह की मस्तिष्क संबंधी समस्याएं (भूलने की बीमारी, सोचने की शक्ति कमजोर होना) उत्पन्न हो सकती हैं। ऐसे में सूरजमुखी के बीज आपकी मदद कर सकते हैं। सूरजमुखी के बीज में कैल्शियम व जिंक जैसे पोषक तत्व होते हैं, जो मस्तिष्क विकास में लाभकारी हो सकते हैं।
- छत्तीसगढ़ में भाजियां बड़े चाव से खाई जाती हैं। इनमें औषधीय गुण भी भरपूर होते हैं। इन्हीं में एक है कुलफा, जो एक खरपतवार की तरह फैलती हैं और ज्यादार लोग इसे बेकार समझ कर फेंक देते हैं। एक प्रकार से यह एक जंगली घास है, और अक्सर यह खाली पड़ी जमीन पर अपने आप ही उग आती है। इस जंगली घास को लोणी, बड़ी लोणी, लोणा शाक, खुरसा, कुलफा, लुनाक, घोल, लोनक आदि नामों से भी जाना जाता है। अंग्रेजी में इसे कॉमन पुर्सलेन कॉन, पर्सले, पिगविड भी कहते हैं।आइये जाने इसके औषधीय गुणों के बारे में .....-आयुर्वेद में इसको सर के रोग, आंखों के रोग, कानों के रोग, मुख रोग, त्वचा के रोग, थूक में खून आना, पेट के रोग, मूत्र के रोग में लाभकारी माना गया है।-बेहतर स्वास्थ्य के लिए इसे सलाद, सब्जी या फिर काढ़े के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।-इसकी जड़ कभी नहीं मरती और बारिश या फिर पानी मिलने पर दोबारा हरी हो जाती है। कहा जाता है कि इसकी जड़ 25 सालों तक नहीं मर सकती है। आप सोच सकते हैं कि इसमें कितनी इम्युनिटी होती होगा।- इसकी गोल-गोल पत्तियों में गजब के गुण भरे हुए हैं। इसमें विटामिन, आयरन, कैल्शियम, प्रोटीन और मिनरल्स भरपूर मात्रा में होते हैं। जो हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है।.- हरी सब्जियों में यदि ओमेगा 3 फैटी एसिड्स किसी में मिलते हैं, यह कुलफा भाजी ही है, जो हृदय रोगों से बचाते हैं।- इसकी पत्तियों में सभी हरी सब्जियों से ज्यादा विटामिन मिलते हैं। जो कैंसर जैसे रोगों से लडऩे में हमारे शरीर की रक्षा करते हैं।- यह भाजी कैंसर, हृदयरोग, खून की कमी, हड्डियों की मजबूती के लिए लाभकारी है।-इसका स्वाद नींबू जैसा खट्टा होता है। इसके सेवन से शरीर को भरपूर ऊर्जा मिलती है। यह भाजी शरीर में ताकत को बढ़ाती है।- यह भाजी बच्चों के दिमागी विकास के लिए लाभकारी है।.
- अश्वगंधा एक औषधीय जड़ी-बूटी है। इसके कई फायदे हैं। यह आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी वजन घटाने के साथ-साथ बेहतर स्वास्थ्य में मददगार है। इसकी बनी चाय स्वास्थ्यवर्धक है और कई तरह की संक्रामक बीमारियों से शरीर की रक्षा करती है।अश्वगंधा का वैज्ञानिक नाम विथानिया सोमनीफेरा है। यह ब्लड शुगर को कंट्रोल करने, थायरॉइड, वजन घटाने और इम्युनिटी को बढ़ाने के काम आती है। हर रोज अश्वगंधा से बनी चाय का सेवन कर खुद को बीमारियों से दूर रखा सकता है और अपनी इम्युनिटी पावर को मजबूत कर सकते हैं।अश्वगंधा की चाय- वजन घटाने में मददगार तो है ही साथ ही ब्लड शुगर को कंट्रोल करती है, तनाव को कम करने में सहायक, महिलाओं में प्रजनन क्षमता के लिए फायदेमंद , एनीमिया में सहायक साथ ही शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है।ऐसे बनाएं अश्वगंधा की चायअश्वगंधा चाय ऑनलाइन या किसी स्टोर पर आसानी से मिल जाती है, जिसे आपको सामान्य चाय की तरह बनाना होता है। लेकिन अगर आप इस बूटी से खुद घर पर चाय बनाना चाहते हैं, तो ये विधि अपनाएं-जरूरी सामान- अश्वगंधा की जड़ या पाउडर , शहद और नींबू ।विधि- अश्वगंधा चाय बनाने के लिए आप एक पैन में 1 गिलास पानी डालकर गर्म कर लें। अब इसमें आप 1 या 2 अश्वगंधा की जड़ डालें और इसे 5-7 मिनट उबालें। अब आप गैस को बंद कर लें और अब चाय में स्वादानुसार शहद और नींबू का रस डालें। चाय तैयार है। इस चाय को आप दिन में 2 से 3 बार पी सकते हैं।इस चाय में मौजूद ये तीनों घटक इम्युनिटी बढ़ाने और स्वास्थ्य के लिए कई फायदों से भरपूर हैं-1. अश्वगंधा- यह तनाव और चिंता से राहत देता है और इंफ्लेमेशन को कम करता है। वहीं इसके अलावा, यह आपकी इम्युनिटी को भी बढ़ाता है।2. नींबू- नींबू में विटामिन सी होता है, जो आपकी इम्युनिटी को बढ़ाने में मदद करता है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट, एंटीवायरल और एंटीबैक्टीरियल गुण भी होते हैं, जो आपके समग्र स्वास्थ्य के लिए इसे सर्वश्रेष्ठ बनाते हैं। प्रणाली को बढ़ावा देने में भी मदद करता है।3. शहद- शहद को मीठा अमृत माना जाता है, यह एंटीऑक्सिडेंट और एंटी बैक्टीरियल गुणों से भरपूर है। यह आपके आपके पाचन स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाने में मदद करता है।---
- अधिकांश लोगों के घरों में पवित्र तुलसी का पौधा होता है, जिसकी कि पूजा की जाती है। लेकिन इसी तुलसी का इन 6 तरीकों से सेवन आपको स्वस्थ भी रख सकता है। आयुर्वेद में तुलसी को एक औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। आयुर्वेद में तुलसी को शरीर से मन तक का एक मरहम माना गया है। तुलसी के तीन अलग-अलग प्रकार हैं- राम (हरी पत्ती) तुलसी, श्यामा (बैंगनी पत्ती) तुलसी, और वन (जंगली पत्ता) तुलसी। लेकिन इनमें से हरे पत्ते वाली राम-तुलसी का सबसे अधिक उपयोग किया जाता है। तुलसी की पत्तियों की खुशबू और स्वाद काफी अच्छा होता है, खासकर कि जब सूखे पत्तों को चाय में पीसा जाता है।तुलसी के स्वास्थ्य लाभतुलसी दिखने में तो आम हरा पौधा है लेकिन यह कई औषधीय गुणों से भरपूर है। तुलसी के अर्क का उपयोग आयुर्वेदिक दवा के तौर पर सर्दी-जुखाम, पेद दर्द, सिर दर्द, इंफ्लेमेशन, विभिन्न प्रकार के संक्रमण, जहर, डेंगू-मलेरिया और स्किनकेयर के लिए किया जाता है। इसके अवाला, तुलसी का उपयोग भी हर स्वास्थ्य समस्या के लिए कई अलग-अलग तरीकों से किया जाता है। जिसमें तुलसी का एसेंशियल ऑयल से लेकर तुलसी की हर्बल चाय या काढ़ा शामिल है।तुलसी के उपयोग के 6 तरीके1- सर्दी-जुखाम और इन्फ्लूएंजा के लिए तुलसी का पानीसर्दी-जुखाम, ब्रोंकाइटिस, अस्थमा और इन्फ्लूएंजा से पीडि़त तुलसी के पत्तों से बना ये पानी पी सकते हैं। तुलसी के 7-8 पत्तियां लें और उन्हें एक गिलास पानी में डालकर उबाल लें। अब आप इस उबलते पानी में अदरक को कुचल कर डाल दें। 5 मिनट उबालने के बाद आप इस पानी को थोड़ा ठंडा होने दे और फिर छलनी से छानकर कर गिलास में निकाल लें। इसके बाद 1 चम्मच शहद इस पानी में मिलाएं और इस काढ़े को पिएं।2- तनाव को कम करने और इम्युनिटी बढ़ाने में मददगार तुलसीरोजाना दिन में दो बार कम से कम 8-10 पत्ते तुलसी की पत्तियां चबाने से तनाव को कम करने में मदद मिलती है। इसके अलावा, यह इम्युनिटी बढ़ाने और ब्लड प्रेशर व ब्लड शुगर पर भी सामान्य प्रभाव डालती है।3- मुंह के अल्सर और संक्रमण के लिए तुलसी का काढ़ायदि आप तुलसी का काढ़ा बनाकर पीते हैं, तो यह आपके खून को साफ करने में मदद करता है। इसके अलावा, यह काढ़ा मुंह के अल्सर और संक्रमण को रोकने में मदद करता है और आपको मजबूत बनाता है।4- एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर है तुलसी के बीजआप नियमित तौर पर तुलसी के बीजों का सेवन कर अपनी इम्युनिटी बढ़ा सकते हैं और स्वस्थ रह सकते हैं। आप तुलसी के बीजों को पानी या फिर दूध में भिगो कर रखें और फिर इस मिश्रण को पी लें। यह एक एंटीऑक्सीडेंट के रूप में कार्य करते हैं, जो शरीर के लिए पौष्टिक और सुखदायक साबित होता है।5- यूटीआई और किडनी की समस्या में पिएं तुलसी का रसआप तुलसी के तुलसी के पत्तों का रस और शहद का मिश्रण बनाकर पी सकते हैं। यह आपकी यूटीआई की समस्या में भी अच्छा माना जाता है और यह किडनी स्टोन में भी फायदेमंद है। आप अपने डॉक्टर की सलाह के साथ इसका सेवन शुरू कर सकते हैं।6- सिर दर्द के लिए तुलसी का काढ़ा और एसेंशियल ऑयलसिर दर्द की समस्या में तुलसी की पत्तियों का काढ़ा और एसेंशियल ऑयल का उपयोग लाभकारी होता है। इसके अलावा, चंदन के पेस्ट के साथ तुलसी की पत्तियों को पीसकर माथे पर लेप लगाने से भी सिर दर्द से राहत मिलती है।----
- हमारी सेहत कैसी रहेगी यह हमारे खान-पान पर निर्भर करता है। लेकिन हमारी किडनी पर सिर्फ हमारी डायट का ही नहीं बल्कि हमारे द्वारा लिए गए तरल पदार्थों का भी प्रभाव होता है। यदि किसी भी कारण हम दूषित जल का सेवन कर लेते हैं या दूषित भोजन खा लेते हैं तो हमारी किडनी बुरी तरह प्रभावित होती हैं। यहां जानें, उन 5 खास चीजों के बारे में जो किडनी की सेहत बनाए रखने का कार्य करती हैं...पार्सले के फायदेपार्सले को अमजोद नाम से जाना जाता है और यह दिखने में हरी धनिया पत्ती जैसा होता है। आमतौर पर पार्सले का उपयोग फूड को गार्निश करने के लिए किया जाता है। पार्सले अपने औषधीय गुणों के कारण बॉडी से टॉक्सिन्स निकालने का काम करता है। इसमें एपिओल और मिरिस्टिसिन होते हैं किडनी स्टोन से बचाते हैं।सेलेरी की जड़हमारी किडनी तभी सेहतमंद रह पाती हैं, जब हमारे शरीर में पोटैशियम और सोडियम का बैलंस हो। सेलेरी में ये दोनों ही तत्व संतुलित मात्रा में होते हैं। इसकी जड़ में लिक्विड कंटेंट होता है, जो यूरिन की मात्रा बढ़ाकर किडनी को क्लीन करने का काम भी करता है। हेल्थ ऐक्सपट्र्स का कहना है कि यह यूटीई और किडनी इंफेक्शन से भी बचाता है।अदरक करे किडनी की सफाईअगर आप चाहते हैं कि किडनी जीवनभर स्वस्थ बनी रहें तो सबसे पहले शुगर का सेवन कम करें। क्योंकि यह किडनी को बहुत नुकसान पहुंचाती है। अदरक में जिंजरॉल होता है जो ब्लड शुगर को कम करने का काम करता है। रोज के खाने में अदरक का सेवन करने से डायबीटीज होने का खतरा भी बेहद कम हो जाता है।हल्दी का सेवनहल्दी अपने कलर और फ्लेवर दोनों के कारण भोजन को स्वादिष्ट और सेहतमंद बनाती है। हल्दी में ऐंटिइंफ्लामेट्री एंजाइम्स होते हैं और कक्र्यूमिन नाम का यौगिक होता है, जो शरीर में किसी प्रकार की सूजन या दर्द को नहीं बढऩे देते और किडनी की बीमारी के कारणों को पनपने से रोकते हैं। एक तरफ जहां हल्दी अपनी खूबियों के कारण हमें किडनी या गुर्दे की बीमारी से बचाती है। वहीं अगर किसी को यह बीमारी हो चुकी है तो हल्दी का सेवन बेहद कम करने या ना करने की सलाह भी दी जाती है। क्योंकि इसमें पोटैशियम काफी हाई होता है, जिसे बैलंस करने के लिए किडनी को काफी मेहनत करनी पड़ती है।लहसुन है किडनी के लिए लाभकारीलहसुन के बारे में पुरानी कहावत है कि इसमें अगर एक गुण और होता तो यह अमृत बन जाता। खैर, हेल्थ एक्सपट्र्स का कहना है कि लहसुन में एलिसिन नामक इंग्रीडिऐंट होता है, जो ऐंटिफंगल, ऐंटिबैक्टीरियल और ऐंटिइंफ्लामेट्री मेडिसिन के रूप में काम करता है। अपने औषधीय गुणों के कारण लहसुन हमारी किडनी को हार्मफुल टॉक्सिन्स फिल्टर करने में मदद करता है। ताकि किडनी के साथ ही पूरी बॉडी फिट बनी रहे। यह यूरिन की मात्रा बढ़ाकर बॉडी में सोडियम की मात्रा को मेंटेन रखने का काम करता है।--
- संक्रामक बीमारियों से बचाने वाली चीजों में विटामिन सी का नाम काफी ऊपर आता है। यह एक ऐसी चीज है जिसकी हमें रोजाना बहुत कम मात्रा में जरूरत होती है। देखिए कैसे और कितना विटामिन सी हमें बीमारियों से बचाने के लिए जरूरी है।इंसान को छोड़कर ज्यादातर स्तनधारी अपने शरीर में विटामिन सी का निर्माण कर पाते हैं। इंसान को इसे बाहर से लेना पड़ता है।सबके लिए सेहत की बूटीविटामिन सी की पर्याप्त मात्रा ली जाए तो यह ब्लड प्रेशर, दिल की बीमारी और स्ट्रोक से बचाती है। केवल बूढ़े, बीमार और वीगन लोगों के लिए ही नहीं बल्कि सबके लिए काम की है। यह एक ऐसा माइक्रोन्यूट्रिएंट है जो बहुत कम मात्रा में चाहिए और इससे शरीर को कोई ऊर्जा नहीं मिलती है, लेकिन शरीर की कई अहम प्रक्रियाओं के लिए इसकी ज़रूरत होती है, जैसे सेल मेटाबोलिज्म और शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र।रैडिकल्स की रैडिकल तोड़अहम पोषण तत्व के अलावा इसकी दूसरी भूमिका एंटीऑक्सीडेंट की है। यह उस नुकसान को कम करता है जो ऑक्सीजन के फ्री रैडिकल्स के कारण शरीर को पहुंचता है। यह रैडिकल्स शरीर की सामान्य मेटाबोलिक प्रक्रियाओं में पैदा होती रहती हैं।एंजाइम की मददगार भीस्ट्रॉबेरी जैसे फलों से हमें केवल स्वाद में लिपटा विटामिन सी ही नहीं मिलता जो ऑक्सीजन रैडिकल्स से बचाए। इसके साथ ही यह कई एंजाइमों के काम में उनकी मदद करता है।एंटीऑक्सीडेंट के रूप में यह हमारे शरीर की कोशिकाओं को सुरक्षित रखने में मदद करता है। संक्रमणों से बचाने में विटामिन सी काम आता है। संक्रमण होने पर यह शरीर की इम्यून सेल्स, न्यूट्रोफिल्स को उस जगह तक पहुंचाने में मदद करता है।कमी का क्या नतीजा?अगर किसी को विटामिन सी की बहुत ज्यादा कमी हो जाए तो स्कर्वी की बीमारी हो सकती है। इसके लक्षणों पर ध्यान देना चाहिए जैसे चोट भरने में लंबा समय लगना, शरीर पर खरोंचे दिखना, बाल का झडऩा, दांतों और जोड़ों में दर्द होना।कितना काफी है?जर्मन कंज्यूमर एडवाइस सेंटर के अनुसार, पुरुषों को रोज 110 मिलिग्राम और महिलाओं को 75 मिलिग्राम विटामिन सी लेना चाहिए. तो वहीं अमेरिका की ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी के रिसर्चर बालिगों के लिए रोज 400 मिलिग्राम की सलाह देते हैं। सच तो ये है कि अगर आपने इसकी ज्यादा मात्रा भी ले ली तो उससे कोई नुकसान नहीं होगा बल्कि वह मूत्र के साथ बाहर निकल जाएगा।इनमें है भरपूर विटामिन सीसंतरा- एक बड़े संतरे में 82 मिलीग्राम विटामिन सी पाया जाता है।रेड पिपर- आधा कप कटी हुई लाल मिर्च में 95 मिलीग्राम विटामिन सी पाया जाता है।केल- एक कप केल में 80 मिलीग्राम विटामिन सी पाया जाता है।ब्रोकली- आधा कप पके हुए ब्रोकली में 51 मिलीग्राम विटामिन सी होता है।स्ट्राबेरी- आधा कप स्ट्राबेरी में 42 मिलीग्राम विटामिन सी होता है।अमरूद- एक अमरूद में 125 मिलीग्राम विटामिन सी पाया जाता है।कीवी- एक कीवी में 64 मिलीग्राम विटामिन सी पाया जाता है।ग्रीन पिपर- आधा कप कटी हुई ग्रीन पिपर में 60 मिलीग्राम विटामिन सी पाया जाता है।ब्रसेल्स स्प्राउट्स- आधा कप पके ब्रसल्स स्प्राउट्स में 48 मिलीग्राम विटामिन सी पाया जाता है।ग्रेपफ्रूट: हाफ ग्रेपफ्रूट में 43 मिलीग्राम विटामिन सी पाया जाता है।
- घर में पौधे लगाने की परंपरा बहुत पुरानी है। आयुर्वेद में बताए गए कुछ खास पौधों की पत्तियों और जड़ों को तमाम तरह की बीमारियों के इलाज के लिए पुराने समय से ही इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसे पौधों को आप घर में छोटी सी जगह में भी लगा सकते हैं। 3 ऐसे ही मेडिकेटेड पौधे और इनके आश्यर्यजनक फायदे के बारे में हम बता रहे हैं...तुलसी- भारतीय घरों में तुलसी का पौधा धार्मिक कारणों से भी लगाया जाता है। लेकिन इससे अलग ये पौधा तमाम तरह की बीमारियों में आयुर्वेदिक औषधि का काम करता है। तुलसी को लगाने का सबसे बड़ा फायदा तो यह है कि ये पौधा आपके घर के वातावरण को पॉजिटिव बनाएगा और निगेटिव एनर्जी को दूर करेगा। तुलसी का पौधा आपके घर में ताजी ऑक्सीजन भी लाएगा। तुलसी की पत्तियों का इस्तेमाल आप सर्दी, जुकाम, बुखार, खांसी, गले में छाला, पेट में इंफेक्शन, कब्ज, गैस, बदहजमी आदि में कर सकते हैं। इसके अलावा इसकी पत्तियों में एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं इसलिए इसका इस्तेमाल आप मच्छरों के काटने या किसी कीड़े आदि के काटने पर पीसकर लगाने में कर सकते हैं। तुलसी की पत्तियों से बना काढ़ा आपके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है, इसलिए रोजाना काली चाय में 4-5 तुलसी की पत्तियां डालने से आप बैक्टीरियल बीमारियों से बच सकते हैं।मुंहासे और दूसरी त्वचा समस्याओं में भी इसकी पत्तियों को पीसकर लगाने से बड़ी जल्दी आराम मिलता है। तुलसी के बीज भी बहुत फायदेमंद होते हैं और इनके सेवन से वजन घटता है।एलोवेरा- एलोवेरा का इस्तेमाल मेडिकल साइंस में 6 हजार सालों से किया जा रहा है। एलोवेरा की पत्तियों में भी बहुत सारे गुण होते हैं, जिनके कारण ये आपके लिए बड़ा फायदेमंद साबित हो सकता है। चोट लगने, घाव होने, जलने और कटने पर भी एलोवेरा जेल को लगाने से बड़ी जल्दी आराम मिलता है। एलोवेरा जेल आपकी त्वचा के लिए बहुत फायदेमंद होता है। इसे लगाने से त्वचा के दाग-धब्बे दूर हो जाते हैं। इसके अलावा मुंहासें, झुर्रियों, झाइयों, आंखों के नीचे काले घेरों, बैक्टीरियल इंफेक्शन, फंगल इंफेक्शन, खुजली, दाद, चर्म रोग आदि समस्याओं में इसकी पत्तियों से बना जेल लगाने से आपको फायदा मिलेगा। एलोवेरा जेल को नियमित खाने से आपका पेट ठंडा रहता है और इससे आपको पेट दर्द, कब्ज, एसिडिटी, अपच, बदहजमी, पेट में मरोड़, फूड एलर्जी, फूड पॉयजनिंग आदि समस्याओं से 10 मिनट में छुटकारा मिल सकता है।एलोवेरा जेल का इस्तेमाल से आप कई तरह के आप बिना केमिकल के इस्तेमाल के ही कई ब्यूटी प्रोडक्ट्स जैसे- फेसपैक, मॉइश्चराइजिंग क्रीम, नाइट क्रीम, हेयर पैक, एक्ने क्रीम आदि बना सकते हैं। एलोवेरा का जूस पीने से पेट के छालों में आराम मिलता है और आंतों की बीमारियों, कोलाइटिस, बॉवल सिंड्रोम जैसी समस्याओं में भी आराम मिलता है।
- हर घर में खाने में स्वाद बढ़ाने के लिए छौंका या तड़का लगाया जाता है। अपने स्वाद के अनुसार इसमें सामग्री इस्तेमाल की जाती है। बिना छौंका लगाए सब्जी या दाल में वो स्वाद नहीं आता है, जिसे भारतीय जीभ स्वाद लेकर खा पाए। लेकिन क्या खाने में छौंका सिर्फ स्वाद बढ़ाने के लिए लगाया जाता है? जवाब है नहीं। भारतीय खानपान प्राचीन समय से ही ऐसा रहा है, जिसमें आयुर्वेदिक नियमो को बड़ी प्राथमिकता दी गई है। इसलिए खाने में छौंका या तड़का लगाने के पीछे भी ढेर सारे स्वास्थ्य लाभ हैं।दरअसल भारतीय खाने में तड़का लगाने के लिए जिन चीजों का इस्तेमाल किया जाता है, वो सभी आयुर्वेदिक हब्र्स और मसाल हैं, जो एंटीऑक्सीडेंट्स और पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। अलग-अलग मसालों से तड़का लगाने के अलग-अलग फायदे मिलते हैं।खाने में तड़का लगाने का आयुर्वेदिक रहस्यखाने में तड़का लगाने के पीछे आयुर्वेद में बताए गए नियमों का विशेष महत्व है। जैसे गरिष्ठ भोजन को पचाने के लिए अलग तरह का तड़का लगाया जाता है, तो सौम्य भोजन को पौष्टिक बनाने के लिए अलग तरह का तड़का लगाया जाता है। ये तड़का उस दाल या सब्जी के खाने से शरीर में होने वाले विकास को बैलेंस कर देता है, जिससे शरीर भी स्वस्थ रहता है और आप अलग-अलग तरह के भोजन का आनंद भी ले पाते हैं।बेसन की कढ़ी - बेसन या चने की दाल की कढ़ी बनाते समय इसमें हींग, मेथी और कड़ी पत्ते का तड़का लगाना चाहिए। दरअसल बेसन या चने की दाल को पचाने में पेट को ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। हींग और मेथी के दाने इस काम में पेट की मदद करते हैं और कढ़ी का स्वाद भी बढ़ाते हैं।अरबी (कोचई) की सब्जी- अरबी की सब्जी बनाते समय इसमें आवश्यक रूप से अजवाइन का तड़का लगाना चाहिए। इसका कारण है कि अरबीकी सब्जी से पेट में गर्मी और गैस बढ़ती है, जिसे रोकने के लिए अजवाइन बहुत फायदेमंद होती है।कद्दू- इसी तरह कद्दू या कुम्हड़े की सब्जी में मेथी का छौंक लगाया जाता है, ताकि इसकी गरिष्ठता कम हो सके।चने की दाल- चने की दाल में जीरा, तेजपत्ता और दाल चीनी का तड़का लगाना अच्छा रहता है। चने की दाल भी पचाने में थोड़ी हार्ड होती है। इसके अलावा चने की दाल खाने से कई बार पेट में गैस बनने, पेट फूलने और दूसरी समस्याएं हो सकती हैं। इसलिए गांवों में लोग चने की दाल के साथ लौकी को मिलाकर भी बनाते हैं। लौकी सुपाच्य होती है, इसलिए दाल को बचाने में मदद करती है। दाल बनाते समय तेजपत्ता, दालचीनी और जीरा तीनों ही इसे पचाने में आपके पेट की सहायता करते हैं।कटहल की सब्जी-कटहल की सब्जी में अदरक, लहसुन, हींग और जीरा का तड़का लगाना चाहिए। कटहल भी एक गरिष्ठ सब्जी है, जिसे पचाने के लिए पेट को बहुत अधिक मेहनत करनी पड़ती है। लहसुन, हींग और जीरा पेट की पाचन क्षमता को बढ़ाकर पेट का काम आसान कर देते हैं।अरहर की दाल-अरहर की दाल बनाने में देसी घी, लहसुन और जीरे का तड़का लगाना चाहिए। इसका कारण यह है कि अरहर की दाल को आयुर्वेद में गर्म तासीर का माना गया है। ये पेट में जाकर गर्मी न करे इसलिए इसके तड़के में घी और जीरा का बड़ा महत्व है। ये तड़का दाल का स्वाद भी बढ़ा देता है।इसी तरह अन्य भारतीय व्यंजनों में हल्दी, धनिया, मिर्च, प्याज, लहसुन, अदरक, हींग और जीरा का तड़का जरूर लगाया जाता है। ये सभी मसाले आयुर्वेद में विशेष फायदेमंद बताए गए हैं। इन मसालों में कई तरह के एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं, जो शरीर की रोगों से लडऩे की क्षमता बढ़ाते हैं।----