घर-घर में लगाएं आकाशदीप, महाराष्ट्र मंडल का अभियान जारी
- रामायण काल से कार्तिक मास में आकाशदीप लगाने की रही है परंपरा
रायपुर। प्रति वर्षानुसार इस वर्ष भी महाराष्ट्र मंडल दिवाली पर दीयों की लड़ी के साथ आकाशदीप लगाने के लिए आमजनों को प्रेरित कर रहा है। मंडल के सभासद बड़ी संख्या में अपने घरों पर आकाशदीप लगाते हैं।
मंडल अध्यक्ष अजय मधुकर काले ने बताया कि घरों में आकाशदीप लगाने की परंपरा हम कई पीढियों से देखते आ रहे हैं। हिंदू मान्यता के अनुसार कार्तिक मास में आकाशदीप या फिर कहें आकाश कंदील को दीपावली में की जाने वाली सजावट का अहम हिस्सा माना जाता है। उसे कोई पितरों की याद में जलाता है, तो कोई अपने घर की शोभा को बढ़ाने के लिए अपने घर पर लगता है। वहीं कुछ लोग धन की देवी मां लक्ष्मी और शुभ-लाभ के देवता भगवान श्री गणेश को अपने घर में आमंत्रित करने के लिए विशेष रूप से जलाते हैं।
सांस्कृतिक समिति के समन्वयक प्रेम उपवंशी ने बताया कि हिंदू मान्यता के अनुसार आकाशदीप का इतिहास रामायण काल से जुड़ा हुआ है। जब मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम लंका विजय के बाद वापस अपने नगर लौटे, तो वहां के लोगों ने उनके स्वागत के लिए दीये जलाए थे। प्रभु श्रीराम के वापस आने में मनाए गये दीपोत्सव को दूर तक दिखाने के लिए लोगों ने बांस में खूंटा बनाकर उसमें दीये के जरिए रोशनी की थी। तब से आज तक यह परंपरा चली आ रही है।
प्रेम ने जानकारी दी कि वाराणसी में लंबे समय से अपने पितरों की स्मृति में आकाशदीप जलाने की परंपरा चली आ रही है. मान्यता यह भी है कि इस परंपरा की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी। कहते हैं कि महाभारत के युद्ध के दौरान दिवंगत हुए लोगों की याद में भीष्म पितामह ने कार्तिक मास में विशेष रूप से दीये जलवाए थे।
कला- संस्कृति समिति के प्रभारी अजय पोतदार के अनुसार महाराष्ट्र मंडल में इस साल कृष्ण जन्माष्टमी के बाद लगातार कार्यक्रम और कार्यशाला हो रहीं हैं। पिछले हफ्ते ही फ्री हैंड रंगोली बनाने की कार्यशाला लगाई गई थी। इसी वजह से आकाशदीप लगाने की कार्यशाला इस वर्ष नहीं लगाई जा सकी और न ही दिवाली सोहला (मेला) में अलग से आकशदीप बेचा जा सका। इसके बावजूद मंडल की कार्यकारिणी, पदाधिकारी लोगों से अधिक से अधिक संख्या में आकाशदीप लगाने का अभियान चलाए हुए हैं। इसका एक बड़ा कारण इस कलात्मक और गौरवशाली परंपरा को जीवित रखा जा सके।












.jpg)
Leave A Comment