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 जब शम्मी कपूर ने चैलेंज दिया तो रफी साहब ने एक सांस में गा दिया था इस गाने का अंतरा और मुखड़ा
 मुंबई। 24 दिसंबर 1924 को भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के सबसे बड़े सिंगर मोहम्मद रफी का जन्म हुआ था। आज उनकी 96 वीं जयंती है। रफी साहब सुरों के सम्राट और संगीत के जादूगर थे। उन्होंने अपने करियर में हजारों गाने गाए और हर गाने ने लोगों का दिल छुआ। यहां जानिए उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें...
 सूफी फकीर से मिली गाने की प्रेरणा
मोहम्मद रफी को लेकर कई कहानियां मशहूर हैं। कहा जाता है कि 24 दिसंबर 1924 को अमृतसर के एक छोटे से गांव में जन्मे रफी को गाने की प्रेरणा एक सूफी फकीर से मिली। उनके गांव में एक फकीर आया करते थे। इस फकीर का गाना सुनते-सुनते रफी साहब काफी दूर चले जाते थे। यहीं से रफी को गाने की प्रेरणा मिली। 
  जब शम्मी कपूर के चैलेंज पर खरे उतरे मोहम्मद रफी
मोहम्मद रफी ने कई सितारों को अपनी सुरीली आवाज दी लेकिन शम्मी कपूर पर उनकी आवाज काफी ज्यादा सेट हुई। दोनों के गाने 'चाहे कोई मुझे जंगली कहे', 'ये चांद सा रोशन चेहरा', 'बार-बार देखो', 'ओ हसीन जुल्फों वाली जाने जहां', 'बदन पे सितारे लपेटे हुए' आज भी लोगों की जुबां पर हैं। साल 1968 में आई शम्मी की फिल्म 'ब्रह्मचारी' के गाने 'दिल के झरोखों में तुझ को बिठाकर' को लेकर शम्मी कपूर ने रफी साहब को चैलेंज दिया था। जब ये गाना रिकॉर्ड होने वाला तो इस दौरान वहां शम्मी कपूर भी मौजूद थे। इस पर शम्मी ने मोहम्मद रफी से कहा कि अगर आप इस गाने का अंतरा और मुखड़ा एक ही सांस में गा देंगे तो आपकी तारीफ में चार चांद लग जाएंगे। इस पर रफी साहब ने मुस्कुराते हुए कहा कि चलिए हम आपकी बात पर अमल करते हैं। इसके बाद रफी साहब ने इस गाने का अंतरा और मुखड़ा एक सांस में गा दिया। यह देखकर शम्मी कपूर हैरत में रह गए। इसके बाद जब गाने की रिकॉर्डिंग खत्म हुई तो शम्मी ने रफी को गले लगा लिया और कहा कि वाह रफी साहब वाह। वाकई आप जैसा कोई नहीं है। इस पर मोहम्मद रफी ने कहा कि शम्मी ऐसी शर्त ना लगाया करो, वरना तुम्हारे लिए गाने कौन गाएगा।
 अपने घरवालों से भी छिपाई थी ये बात
रफी साहब दिल के बहुत नेक इंसान थे। उन्होंने अपने जीवन में कई लोगों की मदद की और वो भी बिना अपने घरवालों को बताए। रफी साहब के इंतकाल के कुछ महीनों बाद कश्मीर का एक फकीर रफी साहब से मिलने उनके घर आया। वॉचमैन ने घुसने से मना किया तो वह बहस करने लगा। इसे सुनकर रफी साहब के साले और सेक्रेटरी उसे अंदर ले आए। अंदर आकर फकीर ने कहा कि उसे रफी से मिलना है। घरवालों ने बताया कि रफी साहब का तो इंतकाल हो चुका है। इस पर फकीर चौंका और उसने कहा कि तभी मैं सोचूं, कुछ महीनों से मेरे पास पैसे क्यों नहीं आ रहे। दरअसल रफी साहब फकीर को हर महीने कुछ मदद भेजते रहते थे और उनके घरवालों को इस बारे में नहीं पता था। 
ना फनकार तुझसा तेरे बाद आया, मोहम्मद रफी तू बहुत याद आया
मोहम्मद का रफीक का निधन 30 जुलाई 1980 को हुआ। उनके निधन से फिल्म इंडस्ट्री को एक गहरा सदमा लगा। गायक मोहम्मद अजीज रफी साहब के बहुत बड़े फैन थे। साल 1990 में आई अमिताभ बच्चन की फिल्म 'क्रोध' में रफी साहब को लेकर एक गाना रखा गया। इसे अजीज ने गाया। इसके बोल कुछ ऐसे हैं, 'ना फनकार तुझसा तेरे बाद आया, मोहम्मद रफी तू बहुत याद आया'। 

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