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 हरित ईंधन को लेकर मिशन मोड में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, कहा- ‘इस पहल से मक्के की कीमत हुई दोगुनी’

नई दिल्ली। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने मंगलवार को नई दिल्ली में आयोजित 12वीं कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) समिट में कहा कि हरित ईंधन को लेकर उनके प्रयास वर्ष 2004 से मिशन के रूप में जारी हैं और आज वे खुद देश के पहले ऐसे मंत्री हैं जिनकी गाड़ी 100 प्रतिशत बायोफ्यूल पर चलती है।
 केंद्रीय मंत्री गडकरी ने यह भी कहा कि इस वैकल्पिक ईंधन का निर्माण मक्का, टूटे चावल और गन्ने जैसे उत्पादों से होता है, जिसे किसान तैयार कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि जब मक्का की कीमत 1200 रुपये प्रति क्विंटल थी, तब इसके उत्पादन को प्रोत्साहन दिया गया और अब उसकी बाजार कीमत 2400 रुपये तक पहुंच गई है। इसका लाभ किसानों को सीधे मिल रहा है। भारत का फॉसिल फ्यूल आयात 40 लाख करोड़ रुपये तक का है, जिसे घटाने के लिए वैकल्पिक ईंधन का उपयोग और आवश्यक हो गया है।
 उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने एक प्लेटफार्म की भी शुरुआत की है जिसमें रेडीमेड गारमेंट से बची हुई कतरनों से कारपेट बनाए जाते हैं। ये कारपेट कम लागत में तैयार होते हैं और इनमें 1500 महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया है। यदि सामाजिक जिम्मेदारी और संवेदनशीलता के साथ छोटे-छोटे प्रयास किए जाएं तो लोगों के जीवन को बदला जा सकता है। शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि और स्किल डेवलपमेंट जैसे क्षेत्रों में आज भी बड़ी मदद की आवश्यकता है और सीएसआर के माध्यम से जो कार्य हो रहे हैं, वे बेहद सराहनीय हैं। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के सकारात्मक और रचनात्मक कार्यों को वैसी प्रसिद्धि नहीं मिलती जैसी राजनैतिक गतिविधियों को मिलती है, जबकि इन कार्यों से कई लोगों का जीवन बदला है। उन्होंने बताया कि वे 80 प्रतिशत कार्य ग्रामीण क्षेत्रों में करते हैं और इसीलिए उन्हें सामाजिक कार्यों में सबसे अधिक संतोष मिलता है। 
 उन्होंने बताया कि रोड निर्माण के लिए जरूरी सामग्री जैसे मिट्टी और एग्रीगेट की पूर्ति हेतु नदियों, नालों और तालाबों का गहरीकरण किया गया। वहां से निकाली गई मिट्टी का उपयोग सड़कों के निर्माण में किया गया। यह सारा कार्य मुफ्त में कराया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि संबंधित क्षेत्रों में सामाजिक और आर्थिक बदलाव आया। उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि उनके मंत्रालय ने अकोला स्थित कृषि विश्वविद्यालय में उन्होंने 36 तालाब बनवाए, जिससे जल संकट दूर हुआ और ग्रामीणों का शहरों की ओर पलायन भी रुका।
 उन्होंने कहा कि स्किल डेवलपमेंट के क्षेत्र में भी सार्थक बदलाव आ रहा है। उन्होंने यह सुझाव भी दिया कि सीएसआर प्रोजेक्ट्स का सोशल और इकोनॉमिक ऑडिट किया जाना चाहिए, जिससे यह पता लगाया जा सके कि कम खर्च में कौन-कौन से अच्छे परिणाम सामने आए हैं। इसके साथ ही उन्होंने कार्यरत संस्थाओं की ग्रेडिंग का भी सुझाव दिया ताकि जो लोग अच्छा कार्य कर रहे हैं, उन्हें प्राथमिकता मिल सके और देशभर में इन कार्यों का प्रभाव और अधिक बढ़े। उन्होंने कहा कि यदि हम गुणवत्ता के आधार पर संस्थाओं को बढ़ावा देंगे तो यह सेक्टर और अधिक विश्वसनीय बन सकेगा।
 उन्होंने कहा कि खासकर ग्रामीण, आदिवासी और कृषि आधारित क्षेत्रों में सीएसआर के अंतर्गत जल, जमीन, जंगल और जानवर पर केंद्रित कार्यों की अत्यधिक आवश्यकता है। इन क्षेत्रों में शिक्षा का घोर अभाव है, जिसके समाधान के लिए उन्होंने कई प्रयास किए हैं। एक स्कूल का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि जहां तीस हजार बच्चे पढ़ते हैं, वहां की माताओं को साथ लेकर एक महिला महाविद्यालय के हॉस्टल में प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया गया। वहां से 80 आदिवासी लड़कियां आईं, जिन्होंने वर्चुअल इंटरव्यू से चयन होकर राष्ट्रीय स्तर के खेलों में भाग लिया और उत्कृष्ट प्रदर्शन किया।
 

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