विश्व गुरु भारत और जगदगुरुत्तम (भाग - 1)
भारतवर्ष की महिमा तथा विश्व के पंचम मूल जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के अलौकिक एवं दिव्यवतार की स्मृति - भाग - 1
हिन्दू धर्म ग्रंथ वेद, शास्त्र, पुराण, भागवत गीता, रामायण इत्यादि भारत की आध्यात्मिक परम निधि हैं। इस संपत्ति के कारण ही भारत विश्व गुरु के रुप में प्रतिष्ठित रहा है। कोई कितना ही वैभवशाली देश हो जाय, टैक्नालॉजी कितनी भी एडवांस हो जाय, लेकिन उनके पास कोई ऐसी तरकीब नहीं है जो अंदर की मशीन (अंत:करण) की गड़बड़ी को समाप्त कर दे।
एक बार अमेरिका के राष्ट्रपति आइसन हॉवर का दौरा हुआ था भारत में, तो उन्होंने अपने भाषण में यह कहा कि भगवान ने हमको भौतिक शक्ति दी है (मटीरियल) लेकिन जब तक गॉड हमको सद्बुद्धि न दे उसका सदुपयोग नहीं हो सकता। इसलिये सद्बुद्धि के अभाव में, आध्यात्मवाद के अभाव में, अब उसका दुरुपयोग भी हो रहा है।
जितना छल-कपट, दांव-पेंच, चार सौ बीसी, दुराचार, भ्रष्टाचार, पापाचार सब संसार में चल रहा है, ये सब आध्यात्मवाद की कमी के ही कारण है। ये जितने अपराध बढ़ते जा रहे हैं, उसका कारण आध्यात्मवाद का ह्रास ही है।
हमारे भारत के पास वह खजाना है जो पूरे विश्व में किसी भी देश में नहीं है। विदेशी फिलॉसफरों ने भी उपनिषद की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। शोपेन हावर बहुत बड़े विदेशी फिलॉसफर ने उपनिषद की प्रशंसा करते हुये कहा कि यह अद्वितीय है, इसके मुकाबले का कोई भी ग्रन्थ विश्व में नहीं है। जर्मनी के फैडरिक मैक्समूलर ने भी उसका समर्थन किया और कहा कि उपनिषद का ज्ञान सूर्य के समान है और पाश्चात्य देशों के सब ज्ञान सूर्य की किरण के समान हैं।
(क्रमश:, शेष आलेख अगले भाग में)
( स्त्रोत- साधन साध्य पत्रिका, गुरु पूर्णिमा विशेषांक, जुलाई 2018
सर्वाधिकार सुरक्षित -जगद्गुरु कृपालु परिषत एवं राधा गोविंद समिति, नई दिल्ली।)
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