कल का उधार न करो
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा स्वरचित दोहा एवं उसकी व्याख्या :
कालि कालि जनि कहु गोविन्द राधे।
जाने काल कालि को ही आवन ना दे।।
कल से भजन करेंगे, कल से यही करेंगे। हाँ वेद कहता है -
न श्वः श्व उपासीत को हि पुरुषस्य श्वो वेद। (वेद)
कल करेंगे, कल करेंगे, कल भजेंगे, कल से यही करेंगे, ये बकवास बंद करो। यही करते-करते तो अनंत जन्म बीत गये, उधार-उधार।
कोहि जानाति कस्याद्य मृत्युकालो भविष्यति। (महाभारत)
अरे एक सेकंड लगता है क्या प्राण निकलने में? बड़े-बड़े वैज्ञानिक, बड़े-बड़े ऋषि-मुनि, योगी, तपस्वी जो नया स्वर्ग बना सकते हैं, ऐसे विश्वामित्र वगैरह कहाँ हैं? सबको जाना पड़ा। भगवान को छोड़कर, किसी की हिम्मत नहीं है जो काल को चैलेंज कर सके और भगवान को भी तो जाना पड़ता है। लेकिन वो काल के आधीन होकर नहीं जाते, काल की प्रार्थना से जाते हैं।
जब ग्यारह हजार वर्ष पूरे हो गये राम के, तो यमराज आया और आकर के चरणों में प्रणाम करके कहता है - महाराज! याद दिलाने आया हूँ। आपने कहा था ग्यारह हजार वर्ष रहूँगा, तो मैं याद दिलाने आया हूँ और प्रणाम करके चला गया।
अरे! महापुरुष के पास भी यमराज आता है, आकर के बैठ जाता है तो महापुरुष उसके सिर पर पैर रखता है, तब आगे विमान में बैठता है। तो ये काल किसी को नहीं छोड़ता। सीधे नहीं टेढ़े, सबको जाना होगा। जाना नहीं चाहता कोई संसार से, अटैचमेंट है न, इसलिये मम्मी, पापा, बेटा, बेटी, नाती, पोता जो भी होते हैं उनको छोड़ के नहीं जाना चाहता। जानता है, सब छूटेंगे, फिर भी पहले नहीं छोड़ता अटैचमेंट।
अन्तहु तोहि तजेंगे पामर तू न तजै अबहिं ते।
अरे! ये सब छोड़ेंगे तेरा साथ। किसी का आज तक इतिहास में ऐसा नाम नहीं है जो सब साथ गये हों और अगर एक साथ चलें भी तो रास्ता सबका अलग-अलग होगा, है। आप कह सकते हैं छः अरब आदमी हैं एक सेकंड में दस मरे हैं, सारी दुनियाँ में। हाँ, एक साथ मरे दस, ठीक है, लेकिन उसके बाद क्या हुआ? सब अलग-अलग गये।
पुण्येन पुण्यं लोकं नयति पापेन पापमुभाभ्यामेव मनुष्यलोकम्। (प्रश्नोपनिषद 3-7)
सब अपने-अपने कर्म के अनुसार गये। इसलिये उधार नहीं करना।
(जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा यह प्रवचन 25 अक्टूबर 2006 को भक्तिधाम मनगढ़ में दिया गया था। सर्वाधिकार 'राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली' के आधीन है।)
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