अच्छे कामों को उधार करना बड़ी भूल है; भीम-युधिष्ठिर से संबंधित एक घटना द्वारा जानें 'कल' का उधार क्यों न करें?
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - 336
(भूमिका - विश्व के पंचम मौलिक जगदगुरुत्तम स्वामी श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'काल' या 'मृत्यु' की अनिश्चितता, मानव-शरीर की 'क्षणभंगुरता' के विषय पर प्रवचन....)
कालि भजु जनि कहु गोविन्द राधे।
जाने काल कालि को ही आवन न दे।।
(स्वरचित दोहा)
हम लोग अनादिकाल से अनन्त बार मानव देह पाकर भी, अनन्त बार संतों के उपदेश को समझकर भी भगवत्प्राप्ति नहीं कर सके। उसका एक प्रमुख कारण है उधार। मैं जरा बी.ए. कर लूँ, एम.ए. कर लूँ। जरा ब्याह-व्याह हो जाय, जरा बच्चे-वच्चे हो जायें, जरा बच्चे बड़े हो जायें, मर गये। कल करूँगा, कल करूँगा, कल से ये ही करूँगा। फिर कल आया तो कल से करूँगा। वेद कहता है;
न श्वः श्व उपासीत को हि पुरुषस्य श्वो वेद ।
(वेद)
अरे ! कल करूँगा, कल करूँगा मत कहो। क्या पता कल आवे, न आवे। तो,
कालि भजु जनि कहु गोविन्द राधे।
जाने काल कालि को ही आवन न दे।।
अरे ! आज रात में ही बिस्तर गोल हो जाय तो? हाँ। एक बार युधिष्ठिर के यहाँ एक ब्राह्मण आया, कुछ सोना माँगने लड़की की शादी के लिये। युधिष्ठिर ने कहा - भई ! इस समय मैं बहुत व्यस्त हूँ राज-काज में, कल आना। वो चला गया बेचारा। युधिष्ठिर भी चले गये अपने राज-काज के लिये। राजा थे वो। महाभारत हो चुका था। भीमसेन को बहुत बुरा लगा कि भैया ने ऐसा क्यों कहा, कल आना। अरे ! हमसे कह देते कि इसको दिला दे भई, दस तोला सोना माँग रहा है। उनको मजाक सूझा और भीमसेन ने प्राइम मिनिस्टर को बुलाया और उससे कहा कि खुशी मनाओ, बहुत बड़ी खुशी की बात है। उसने आर्डर कर दिया नीचे और सारे शहर में आतिशबाजी और सजावट सब होने लगे। युधिष्ठिर ने देखा, आज क्या बात है भई ! न रामनवमी है, न जन्माष्टमी है, ये काहे का फंक्शन हो रहा है? उन्होंने किसी से पूछा - क्यों भई, ये क्यों हो रहा है? उन्होंने कहा प्राइम मिनिस्टर का आर्डर है। प्राइम मिनिस्टर को बुलाया, अरे भई ! तुम क्या कर रहे हो? उन्होंने कहा, सरकार ! आपके भाई साहब ने कहा है। मेरे भाई साहब! भीमसेन? हाँ। भीमसेन को बुलाओ। बुलाया। उन्होंने कहा - ये काहे का उत्सव हो रहा है रे ! उन्होंने कहा, 'भैया ! आपने आज काल को जीत लिया, इस खुशी में'। काल को जीत लिया ! क्या बकबक करता है, काल को कौन जीत सकता है? काल तो भगवान् का स्वरूप है।
तो भैया आपने उस ब्राह्मण से क्यों कहा था कि कल आना। अगर रात को ही हम सब पाँचों चले जायें तो? उन्होंने कहा - अरे हाँ ! शरीर मोटा है, अकल पतली है इसकी। उन्होंने कहा - अरे ! बुलाओ-बुलाओ उस ब्राह्मण को।
तो भगवद् कार्य में उधार नहीं करना चाहिये, संसारी कार्य में उधार कर देना चाहिये। ये प्रिंसिपल याद कर लो। हम लोग उलटा करते हैं, संसारी कार्य को सबसे पहले, अरे भई ! ये मामला ऐसा है शादी ब्याह का, अब इसमें कर्जा लेकर के हमें देना है उसकी लड़की की शादी में गिफ्ट। संसार में, जरा सा एक्सीडेन्ट हो जाय, हड्डी टूट गई, फौरन जाओ डॉक्टर के पास। पच्चीस हजार रुपया लगेगा, पचास हजार लगेगा, ऑपरेशन होगा। ओऽ लगाओ, लगाओ, डॉक्टर साहब जल्दी ठीक करो। तो हम लोग उलटी खोपड़ी वाले हैं। संसार की बड़ी इम्पॉर्टन्स् है हमारे मस्तिष्क में। ओऽ ! लड़की की शादी ! तो? तो पचास लाख सेठजी खर्च कर रहे हैं। पचास लाख!! इससे कौन सा लोक मिलेगा, बैकुण्ठ कि गोलोक? ये तो भाड़ में डाल रहे हो, पचास लाख। अजी नहीं ! तारीफ होगी। बहुत शान से शादी किया। सेठ जी ! ये तुम्हारी शान तुमको कहाँ भेजेगी? अरे जगन्नाथ जी के मन्दिर में कुछ दान कर देते। अरे ! वहाँ भी किया था सौ रुपया। अच्छा, वहाँ सौ रुपया किया था और लड़की की शादी में पचास लाख। हाँ हाँ, वो तो भई इम्पॉर्टन्ट है।
सोचना है, हमने ये गलती अनादिकाल से अब तक की, अब सावधान हो जायें। भगवान् सम्बन्धी तन, मन, धन तीनों की सेवा, तीनों को लगाने के विषय में उधार नहीं ल, संसार में उधार कर दो। रावण ने लक्ष्मण को उपदेश दिया था। राम ने कहा, जब मरने लगा रावण - लक्ष्मण ! जाओ रावण से उपदेश लो। तो रावण ने यही उपदेश दिया था कि लक्ष्मण अच्छा काम तुरन्त करना और गलत काम को उधार कर देना। मैंने सोचा था स्वर्ग में सीढ़ी लगवाऊँगा। हाँ, लगवा दूँगा, क्या जल्दी है और सीता हरण जल्दी कर लिया, उस बारे में उधार नहीं किया। उसका परिणाम भोग रहा हूँ इसलिये तुम सावधान रहना अपने जीवन में। भगवद्विषय का कार्य तुरन्त करो , उधार न करो। क्यों? अरे ! क्या पता अगले क्षण में तुम्हारी ही बुद्धि धोखा दे दे। अरे अब रहने दो, कौन दान करे। अरे। तो इसके पहले तो तुमने सोचा था कि करेंगे ल। अरे हाँ, सोचा था लेकिन अब ऐसा सोचा कि अब ये फालतू क्यों करें, इसको रहने दो, आगे काम आयेगा। ये मन और बुद्धि इतने भ्रष्ट हैं तमाम जन्मों के पापों से कि ये संसार की ओर ही झुकते हैं।
ये गन्दा शरीर, मल-मूत्र भरा है शरीर में, इसके लिये ऐसा पैन्ट चाहिये, ऐसी साड़ी चाहिये जो कम से कम एक हजार की हो। अरे, पाँच सौ की ले लो न। नहीं नहीं ! वो पोजीशन....। बड़ी पोजीशन है तुम्हारी? अनन्त जन्मों के पापात्मा, तुम्हारी क्या पोजीशन है? तुलसी हो कि सूर हो कि मीरा हो कि क्या हो? अरे तुम्हारी क्या पोजीशन है? एक भगवत्कृपा से मानव देह मिल गया है, कल को वो भी खतम हो जायगा फिर चौरासी लाख की चक्की पीसोगे तब एक हजार की साड़ी याद आयेगी? हाँ, हम लोग फालतू खर्चा करते हैं। इसी प्रकार समय भी खराब करते हैं। बातें कर रहे हैं। कीर्तन से निकले बाहर, दो स्त्रियाँ और दो पुरुष बातें कर रहे हैं। क्या बीमारी है बोलने को चुप नहीं रह सकते, भगवान् का चिन्तन नहीं कर सकते, संसार की बातें करते करते अनन्त जन्म बीत गये, पेट नहीं भरा।
तो समय को नष्ट करें, धन को नष्ट करें और मन तो होगा ही न जब ये सब नष्ट होगा तो। हो इस प्रकार हमको सोचना है कि अगला क्षण मिले कि न मिले, रोज हार्टअटैक हो रहा है। हम देख रहे हैं आँखों से। अरे ! वो तो हट्टा कट्टा था, कल मेरे पास आया था। हाँ जी, वो रात को चला गया। लेकिन मैं नहीं जाऊँगा, अभी मेरी उमर ही क्या है? कुल छियासी साल का तो हूँ । अभी कम से कम और दस-बीस साल रहना चाहिये। ये भावनायें हम लोगों की खोपड़ी में भरी हैं तो हम सावधान होकर के भगवद्विषय के कार्य में कल का उधार न करें।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: 'हरि गुरु स्मरण' पुस्तक, प्रवचन - 6
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
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