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विश्व शांति की अवधारणा भारत के मूल चिंतन का अभिन्न अंग है: प्रधानमंत्री

- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने  नवा रायपुर में शांति शिखर - ध्यान केंद्र के उद्घाटन पर ब्रह्माकुमारीज़ को संबोधित किया

-राज्यों के विकास से राष्ट्र की प्रगति को बढ़ावा मिलने वाले मार्गदर्शक सिद्धांत से प्रेरित होकर हम एक विकसित भारत के निर्माण के मिशन में सक्रिय रूप से लगे हुए हैं:  नरेन्द्र मोदी
-हम प्रत्येक जीव में परमात्मा को देखते हैं, हम स्वयं में अनंत को देखते हैं; यहां प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठान एक संस्कारपूर्ण आह्वान के साथ संपन्न होता है जो विश्व के कल्याण और  सभी जीवों के बीच सद्भावना का आह्वान है: प्रधानमंत्री
-जब भी दुनिया में कहीं भी कोई संकट या आपदा आती है, तो भारत एक विश्वसनीय सहयोगी के रूप में मदद के लिए आगे आता है, प्रथम प्रतिक्रियाकर्ता के रूप में कार्य करता है: श्री नरेन्द्र मोदी
नवा रायपुर। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज छत्तीसगढ़ के नवा रायपुर में आध्यात्मिक शिक्षा, शांति और ध्यान के आधुनिक केंद्र "शांति शिखर" के उद्घाटन के अवसर पर ब्रह्माकुमारीज़ को संबोधित किया। प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर कहा कि आज का दिन बहुत ही विशेष है क्योंकि छत्तीसगढ़ अपने गठन के 25 वर्ष पूरे कर रहा है। उन्होंने इस बात का उल्लेख किया कि छत्तीसगढ़ के साथ-साथ झारखंड और उत्तराखंड ने भी अपनी स्थापना के 25 वर्ष पूरे कर लिए हैं। उन्होंने कहा कि देश भर के कई अन्य राज्य आज अपना स्थापना दिवस मना रहे हैं। श्री मोदी ने इन सभी राज्यों के निवासियों को उनके स्थापना दिवस पर अपनी शुभकामनाएं दीं। प्रधानमंत्री ने ज़ोर देकर कहा, "राज्यों के विकास से राष्ट्र की प्रगति को बढ़ावा मिलने वाले मार्गदर्शक सिद्धांत से प्रेरित होकर  हम एक विकसित भारत के निर्माण के मिशन में सक्रिय रूप से लगे हुए हैं।"
प्रधानमंत्री ने भारत के विकसित राष्ट्र बनने की यात्रा में ब्रह्माकुमारीज़ जैसी संस्थाओं द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख करते हुए कहा कि कई दशकों तक ब्रह्माकुमारीज़ परिवार से जुड़े रहना उनके लिए सौभाग्य की बात रही है। उन्होंने कहा कि उन्होंने इस आध्यात्मिक आंदोलन को एक वटवृक्ष की तरह विकसित होते देखा है। श्री मोदी ने 2011 में अहमदाबाद में आयोजित 'फ्यूचर ऑफ़ पावर' कार्यक्रम, 2012 में संस्था की 75वीं वर्षगांठ और 2013 में प्रयागराज कार्यक्रम को याद किया। उन्होंने कहा कि दिल्ली आने के बाद भी  चाहे वह आज़ादी का अमृत महोत्सव से जुड़ा अभियान हो, स्वच्छ भारत अभियान हो, या जल जन अभियान से जुड़ने का अवसर हो, जब भी उन्होंने उनसे बातचीत की है तो लगातार उनके प्रयासों की गंभीरता और समर्पण को देखा है।
श्री मोदी ने ब्रह्माकुमारी संस्था के साथ अपने गहरे व्यक्तिगत जुड़ाव का ज़िक्र करते हुए दादी जानकी के स्नेह और राजयोगिनी दादी हृदयमोहिनी के मार्गदर्शन को अपने जीवन की अनमोल स्मृति बताया। उन्होंने कहा कि वे 'शांति शिखर - एक शांतिपूर्ण विश्व अकादमी' की अवधारणा में उनके विचारों को साकार होते हुए देख रहे हैं। श्री मोदी ने कहा कि आने वाले समय में यह संस्था वैश्विक शांति की दिशा में सार्थक प्रयासों का एक प्रमुख केंद्र बनकर उभरेगी। उन्होंने इस सराहनीय पहल के लिए उपस्थित सभी लोगों और देश-विदेश में ब्रह्माकुमारी परिवार के सदस्यों को शुभकामनाएँ दीं।
श्री मोदी ने एक पारंपरिक कहावत का जिक्र करते हुए  समझाया कि आचरण ही धर्म, तप और ज्ञान का सर्वोच्च रूप है  और सदाचार से कुछ भी अप्राप्य नहीं है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि सच्चा परिवर्तन तब होता है जब शब्दों को कर्म में रूपांतरित किया जाता है  और यही ब्रह्माकुमारी संस्था की आध्यात्मिक शक्ति का स्रोत है। उन्होंने कहा कि यहाँ की प्रत्येक बहन कठोर तपस्या और आध्यात्मिक अनुशासन से गुज़रती है। प्रधानमंत्री ने कहा कि संस्था की पहचान ही विश्व और ब्रह्मांड में शांति की प्रार्थना से जुड़ी है। उन्होंने इस बात का उल्लेख किया कि ब्रह्माकुमारीज़ का पहला आह्वान "ॐ शांति" है - जहाँ 'ॐ' ब्रह्म और संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतीक है और 'शांति' शांति की आकांक्षा का प्रतीक है। यही कारण है कि ब्रह्माकुमारीज़ के विचार प्रत्येक व्यक्ति की आंतरिक चेतना पर इतना गहरा प्रभाव डालते हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा, "विश्व शांति की अवधारणा भारत के मूल चिंतन और आध्यात्मिक चेतना का अभिन्न अंग है।" उन्होंने कहा कि भारत एक ऐसा राष्ट्र है जो प्रत्येक जीव में दिव्यता और स्वयं में अनंतता का दर्शन करता है। भारत में प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठान विश्व कल्याण और सभी जीवों के बीच सद्भावना की कामना के साथ संपन्न होता है। श्री मोदी ने कहा कि ऐसी उदार सोच और आस्था एवं विश्व कल्याण की भावना का सहज संगम भारत के सभ्यतागत चरित्र का अभिन्न अंग है। भारतीय अध्यात्म न केवल शांति का पाठ पढ़ाता है, बल्कि हर कदम पर शांति का मार्ग भी दिखाता है। उन्होंने कहा कि संयम से आत्म-ज्ञान, आत्म-ज्ञान से आत्म-साक्षात्कार और आत्म-साक्षात्कार से आंतरिक शांति प्राप्त होती है। इस मार्ग पर चलकर शांति शिखर अकादमी के साधक वैश्विक शांति के माध्यम बनेंगे।
श्री मोदी ने वैश्विक शांति के मिशन में विचारों की महत्ता को रेखांकित करते हुए कहा कि व्यावहारिक नीतियों और प्रयासों के साथ-साथ भारत इस दिशा में अपनी भूमिका निभाने के लिए पूरी ईमानदारी से प्रयासरत है। प्रधानमंत्री ने कहा, "जब भी दुनिया में कहीं भी कोई संकट या आपदा आती है तो भारत एक विश्वसनीय सहयोगी के रूप में मदद के लिए आगे आता है और इस तरह की स्थितियों में सबसे पहले प्रतिक्रिया देता है।"
श्री मोदी ने कहा कि आज की पर्यावरणीय चुनौतियों के बीच  भारत दुनिया भर में प्रकृति संरक्षण के लिए एक अग्रणी आवाज़ बनकर उभरा है। श्री मोदी ने प्रकृति प्रदत्त संसाधनों के संरक्षण और उन्हें समृद्ध करने के महत्व पर ज़ोर देते हुए कहा कि यह तभी संभव है जब हम प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर रहना सीखें। हमारे शास्त्रों और सृष्टिकर्ता ने हमें यही सिखाया है। उन्होंने कहा कि हम नदियों को माँ मानते हैं, जल को ईश्वर मानते हैं और वृक्षों में ईश्वर का स्वरूप देखते हैं। यही भावना प्रकृति और उसके संसाधनों के उपयोग का मार्गदर्शन करती है—केवल दोहन के इरादे से नहीं, बल्कि वापस देने की भावना से। जीवन का यह तरीका दुनिया को एक सुरक्षित भविष्य का विश्वसनीय मार्ग प्रदान कर सकता है।
प्रधानमंत्री ने इस बात पर ज़ोर दिया कि भारत पहले से ही भविष्य के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों को समझ रहा है और उन्हें निभा रहा है। उन्होंने 'एक सूर्य, एक विश्व, एक ग्रिड' जैसी पहलों और भारत के 'एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य' के दृष्टिकोण का उल्लेख करते हुए कहा कि दुनिया तेज़ी से इन विचारों से जुड़ रही है। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत ने भू-राजनीतिक सीमाओं से परे जाकर पूरी मानवता के लिए मिशन लाइफ़  की शुरुआत की है।
प्रधानमंत्री ने समाज को निरंतर सशक्त बनाने में ब्रह्माकुमारीज़ जैसी संस्थाओं की महत्वपूर्ण भूमिका पर ज़ोर देते हुए  विश्वास व्यक्त किया कि शांति शिखर जैसी संस्थाएं भारत के प्रयासों में नई ऊर्जा का संचार करेंगी और इस संस्था से निकलने वाली ऊर्जा देश और दुनिया भर के लाखों लोगों को वैश्विक शांति के विचार से जोड़ेगी। श्री मोदी ने अपने भाषण के समापन पर एक बार फिर शांति शिखर - शांतिपूर्ण विश्व अकादमी की स्थापना पर सभी को बधाई दी।
 इस कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ के राज्यपाल श्री रमन डेका, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय और अन्य गणमान्य अतिथि उपस्थित थे।
 
 

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