लघुकथाएँ
लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
काम पर
निर्माणाधीन इमारत में मजदूरी करती इमरती आज अपने चार वर्षीय बेटे दीनू को भी साथ ले आई थी । उसकी तबीयत ठीक नहीं लग रही थी तो घर पर अकेले छोड़ने का मन नहीं हुआ । बाकी दिन तो उसके घर पहुँचने तक मुहल्ले में बच्चों के साथ खेलता रहता था । सिर पर ईंट उठाते वक्त थोड़ा दीनू की तरफ देखकर आश्वस्त हो जाती और अपने काम पर लग जाती । बच्चे की बालसुलभ क्रीड़ाएँ माँ के ममतामयी हृदय को आनंद से विलोडित कर देतीं और उसकी सारी थकान दूर हो जातीं । जहाँ दीनू और दो-एक बच्चे खेल रहे थे जाने कैसे कहाँ से एक लकड़ी का पट्टा जोर से गिरा.. और इमरती की दुनिया वीरान कर गया । इमरती अपनी आँखों के आगे उजड़ती कोख देखकर पथरा गई थी । जिसके लिए काम पर आई थी , काम उसे ही निगल गया था ।
--
एक मिनट की जिंदगी
अभी - अभी स्वर्ग पहुँची रितेश की आत्मा से धर्मराज ने प्रश्न पूछा - " यदि तुम्हें एक मिनट की जिंदगी दी जायेगी तो तुम अपनी किस भूल को सुधारना चाहोगे ?" रितेश ने एक गहरी साँस भरते हुए उत्तर दिया - " उस पल को जब मैंने सिग्नल रेड होते हुए देखकर भी अपनी बाइक दौड़ा दी थी और एक कार से टकरा गया था । मेरी लापरवाही की वजह से उस कार वाले की भी मौत हो गई थी और दो घरों के चिराग एक साथ बुझ गये थे । काश! मैं एक मिनट रुक गया होता…..
--
स्टेटस ( लघुकथा )
रेल के स्लीपर क्लास में वह अभी आकर बैठी थी । सबकी नजरें बरबस ही उधर चलीं गईं , वह लग ही रही थीं संभ्रांत उच्च वर्ग की महिला । अपनी सीट पर बैठते वक्त नाक-भौं सिकोड़ कर ,सैनीटाइजर छिड़क कर दर्शा ही दिया था कि मजबूरी में यह यात्रा कर रहीं हैं । ऊपर से किसी से फोन पर बात करके स्पष्ट कर दिया कि ए. सी. में आरक्षण नहीं मिलने के कारण जो भी मिला उसमें जाना पड़ रहा है , वरना स्लीपर क्लास में चढ़ना उनके स्टेटस के अनुकूल नहीं है । कुछ समय पश्चात अगले स्टेशन में एक अपाहिज चढ़ा और उसने अपनी कातर दृष्टि… मदद की उम्मीद में डिब्बे की ओर घुमाई । स्लीपर क्लास के दिलदार यात्रियों ने तुरंत उसे कुछ न कुछ धनराशि देकर उससे सहानुभूति दर्शाई । वह महिला चुपचाप बैठी रही….सामान्य जीवन-शैली जीने वाले उन दिलदारों का स्टेटस उनसे कहीं अधिक ऊँचा हो गया था ।
Leave A Comment