कभी गणित और विज्ञान पढ़ाया करते थे ऋषिकेश मुखर्जी
पुण्यतिथि पर विशेष
हिन्दी फिल्मों में ऋषिकेश मुखर्जी एक ऐसे फिल्मकार के रूप में विख्यात हैं जिन्होंने बेहद मामूली विषयों पर संजीदा फिल्में बनाने के बावजूद उनके मनोरंजन पक्ष को कभी अनदेखा नहीं किया। यही कारण है कि उनकी सत्यकाम, आशीर्वाद, चुपके चुपके, अभिमान और आनंद जैसी फिल्में आज भी बेहद पसंद की जाती हैं।
ऋषिकेश मुखर्जी यानी ऋषि दा की अधिकतर फिल्मों को पारिवारिक फिल्मों के दायरे में रखा जाता है क्योंकि उन्होंने मानवीय संबंधों की बारीकियों को बखूबी पेश किया। उनकी फिल्मों में राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र, शर्मीला टैगोर, जया भादुड़ी जैसे स्टार अभिनेता और अभिनेत्रियां भी अपना स्टारडम भूलकर पात्रों से बिल्कुल घुल मिल जाते हैं।
सही मायनों में ऋषि दा की फिल्में सहजता का पर्याय हैं। उनकी फिल्मों में बड़ी से बड़ी बात को मामूली ढंग से कहा जाता है। मुखर्जी कॉमेडी के मामले में भी सहज हास्य के पक्षधर रहे हैं। गोलमाल और चुपके चुपके जैसी फिल्मों में कॉमेडी के लिए अश्लील संवादों या बेसिर पैर की सिचुएशन पैदा नहीं की गयी।
आनंद में कैंसर रोगी की पीड़ा हो या बावर्ची में बिखरते संयुक्त परिवार की समस्या, नमक हराम में श्रमिकों की समस्या हो या अभिमान में वैवाहिक संबंध में आने वाली दरार, मुखर्जी की हर फिल्म में सामाजिक मुद्दे होने के बावजूद वे कभी मनोरंजन के पक्ष पर हावी नहीं हुए। उनकी बनाई फिल्म आनंद को आज भी परिवार साथ बैठकर देखते हैं और हर बार आखिर में आंखें भिगाते हुए जीवन की पहेली को समझते हैं। बावर्जी, मिली, चुपके-चुपके, आलाप, गुड्डी जैसी फिल्में आज भी खुशियों का खजाना हैं। अभिमान फिल्म में दो स्टारों की लोकप्रियता और उनके तकरार तथा अहम की कहानी को भी उन्होंने बड़ी संजीदगी से पेश किया।
तीस सितंबर 1922 को कोलकाता में जन्मे ऋषिकेश मुखर्जी फिल्मों में आने से पूर्व गणित और विज्ञान का अध्यापन करते थे। उन्हें शतरंज खेलने का शौक था। फिल्म निर्माण के संस्कार उन्हें कोलकाता के न्यू थियेटर मिले। उनकी प्रतिभा को सही आकार देने में प्रसिद्ध निर्देशक बिमल राय का भी बड़ा हाथ है। मुखर्जी ने प्रसिद्ध फिल्म 'दो बीघा जमीनÓ फिल्म में राय के सहायक के रूप में काम किया था। ऋषिकेश मुखर्जी ने 1951 में बिमल राय के सहायक निर्देशक के रूप में अपना कॅरिअर शुरू किया था। उनके साथ छह साल तक काम करने के बाद उन्होंने 1957 में मुसाफिर फिल्म से अपने निर्देशन के कॅरिअर की शुरूआत की। इस फिल्म ने बाक्स आफिस पर अच्छा प्रदर्शन तो नहीं किया लेकिन राजकपूर को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने अपनी अगली फिल्म अनाड़ी 1959 उनके साथ बनाई।
ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म निर्माण की प्रतिभा का लोहा समीक्षकों ने उनकी दूसरी फिल्म अनाड़ी से ही मान लिया था। यह फिल्म राजकपूर के सधे हुए अभिनय और मुखर्जी के कसे हुए निर्देशन के कारण अपने दौर में काफी लोकप्रिय हुई। इसके बाद ऋषिकेश मुखर्जी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने अनुराधा, अनुपमा, आशीर्वाद और सत्यकाम जैसी ऑफ बीट फिल्मों का भी निर्देशन किया। उनके द्वारा निर्देशित अंतिम फिल्म झूठ बोले कौवा काटे थी। उन्हें दादा साहेब फाल्के सहित अनेक पुरस्कार और सम्मान से भी नवाजा गया था। (छत्तीसगढ़आजडॉटकॉम विशेष)
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