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विश्व संगीत दिवस....  शास्त्रीय संगीत को मिल रहे नये श्रोता

नयी दिल्ली.भाग-दौड़ भरी जिंदगी के बीच हमारा ड्राइंग रूम एक ऐसी जगह होती है जहां हम सुकून के पल तलाशते हैं और ऐसे में जब संगीत की मधुर लहरें कानों तक पहुंचती हैं तो मन को भी एक नयी ताजगी मिलती है। ऐसा लगता है कि मानों हम किसी पुराने पोस्टकार्ड को पढ़ते हुए पुरानी यादों में खो गये हो। भारतीय शास्त्रीय संगीत कभी युवाओं के बीच अधिक मशहूर नहीं रहा। आमतौर पर इसे बहुत धीमा और जटिल माना जाता है। इस तरह के संगीत कार्यक्रम आमतौर पर संगीत सभागारों और आयोजनों तक ही सीमित थे। लेकिन आज इसके इसके श्रोता बढ़े हैं और तेज धुन के शौकीन युवा भी इसकी ओर आकर्षित हो रहे हैं। भारतीय शास्त्रीय संगीत प्रेमियों और संगीत में रुचि रखने वालों की अंतरंग महफिलें अब एक बार फिर जीवंत हो रही हैं। पहले यह परंपरा कुछ सीमित संगीतज्ञों और उनके संरक्षकों तक ही सीमित थी, लेकिन अब यह नये आयाम ले रही है। ड्राइंग रूम और छोटे सांस्कृतिक स्थलों में सजने वाली इन संगीतमयी बैठकों के जरिए संगीत न केवल नये श्रोताओं तक पहुंच रहा है, बल्कि उभरते कलाकारों को सम्मान और रोजगार भी दे रहा है। जिस संगीत की कल्पना पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर और पंडित विष्णु नारायण भातखंडे ने की थी, वह अब नये रास्ते पर चल पड़ा है। अब शास्त्रीय संगीत को सुनने के लिए किसी विशाल सभागार की जरूरत नहीं है। कई स्थानों पर स्वतंत्र समूहों और संगीत प्रेमियों ने अपने घरों को ही संगीत सभा में बदल दिया है। रणनीतिक सलाहकार सुकन्या बनर्जी और फिटनेस कोच तेजस जयशंकर उन लोगों में से थे जिन्होंने 2018 में इस दिशा में कदम बढ़ाया था, जब उन्होंने दक्षिण दिल्ली में अपने घर को संगीत प्रेमियों के लिए खोला। इस कार्यक्रम में महज 25 लोग शामिल हो पाते थे और वे अपने महत्वाकांक्षी कलाकार को सुनने के लि भुगतान करने को भी तैयार थे। महज 200 रुपये की टिकट से इस कार्यक्रम की शुरुआत की गई थी, जिसका नाम था ‘इवनिंग राग', जो अब पांच साल बाद ‘अपस्टेयर्स विद अस' के नाम से मशूहर है और अब इस कार्यक्रम की टिकट 2,000 रुपये है। जयशंकर ने  कहा, “भारतीय शास्त्रीय संगीत को लेकर कई बाधाएं थीं। पहला, लोग सरकार द्वारा आयोजित कार्यक्रमों के आदी हो गए हैं जो निःशुल्क होते हैं और इससे कलाकारों को उचित पारिश्रमिक भी नहीं मिल पाता था।” अब संगीत कार्यक्रम ‘अपस्टेयर्स विद अस' में 30 लोग शामिल होते हैं, जो दो हजार रुपये की टिकट खरीदते हैं और इससे बनर्जी और जयशंकर कलाकारों को 15,000 से 20,000 रुपये तक का मेहनताना देते हैं और साथ ही घर का बना स्वादिष्ट खाना भी दिया जाता है। इससे एक ओर जहां दर्शक संगीत को समझने और सराहने लगते हैं, वहीं कलाकारों को न केवल सम्मान बल्कि स्थिर आय भी मिलती है। संगीत कार्यक्रम ‘अपस्टेयर्स विद अस' में नियमित रूप से प्रस्तुति देने वाले तबला वादक जुहेब अहमद खान ने कहा कि ऐसे स्थानों पर वे लोग भी शास्त्रीय संगीत समझने लगते हैं, जिन्होंने कभी इसके बारे में सीखा न हो। खान ने कहा, ‘‘आप जो सुनते रहते हैं, वह आपको पसंद आने लगता है। आपको उस शैली या संगीत के प्रकार के बारे में सभी छोटी-छोटी जानकारियां जानने की जरुरत नहीं है। मैं लोगों से कहता हूं कि भले ही आप तानसेन न बनें, कांसें बन जाएं तो भी काफी है।''

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