प्रधानमंत्री मोदी ने अभिनेत्री बी. सरोजा देवी के निधन पर जताया शोक
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को तमिल सिनेमा की दिग्गज अभिनेत्री बी. सरोजा देवी के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। मोदी ने कहा कि उन्हें भारतीय सिनेमा और संस्कृति की एक अनुकरणीय प्रतिमूर्ति के रूप में याद किया जाएगा। उनके विविध अभिनय ने पीढ़ियों पर अमिट छाप छोड़ी है। विभिन्न भाषाओं और विविध विषयों पर आधारित उनकी कृतियां उनकी बहुमुखी प्रतिभा को उजागर करती हैं।
बी. सरोजा देवी को भारतीय सिनेमा और संस्कृति की एक अनुकरणीय प्रतिमूर्ति के रूप में याद किया जाएगा
प्रधानमंत्री ने एक्स पोस्ट में कहा, “प्रसिद्ध फिल्मी हस्ती बी. सरोजा देवी जी के निधन से दुखी हूं। उन्हें भारतीय सिनेमा और संस्कृति की एक अनुकरणीय प्रतिमूर्ति के रूप में याद किया जाएगा। उनके विविध अभिनय ने पीढ़ियों पर अमिट छाप छोड़ी। विभिन्न भाषाओं और विविध विषयों पर आधारित उनकी कृतियां उनकी बहुमुखी प्रतिभा को उजागर करती हैं। उनके परिवार और प्रशंसकों के प्रति मेरी संवेदनाएं हैं।”
1962 में ‘चतुर्भाषा तारे’ के रूप में बी. सरोजा देवी को किया गया था सम्मानित
उल्लेखनीय है कि तमिल सिनेमा की दिग्गज अभिनेत्री बी. सरोजा देवी का सोमवार को बेंगलुरु के मल्लेश्वरम स्थित उनके आवास पर निधन हो गया। उनके निधन पर पूरा देश गमगीन है। वह 87 वर्ष की थीं। पद्मभूषण से अलंकृत सरोजा देवी ने अपने सात दशक लंबे फिल्मी करियर में 200 से भी ज्यादा फिल्मों में काम किया। वह सिर्फ एक अभिनेत्री नहीं थीं, बल्कि एक प्रेरणा थीं, जिन्होंने चार भाषाओं- तमिल , कन्नड़ , तेलुगु और हिंदी फिल्मों में अभिनय कर एक मिसाल कायम की। चार भाषाओं में उनकी लोकप्रियता के चलते 1962 में उन्हें ‘चतुर्भाषा तारे’ के रूप में सम्मानित किया गया।
सरोजा देवी को उनके बेहतरीन अभिनय के लिए ‘अभिनया सरस्वती’ भी कहा जाता था
सरोजा देवी को उनके बेहतरीन अभिनय के लिए ‘अभिनया सरस्वती’ कहा जाता था। उनकी पहली बड़ी सफलता 1955 की कन्नड़ फिल्म ‘महाकवि कालिदास’ रही। इसमें उन्होंने सहायक भूमिका निभाई थी, उस वक्त उनकी उम्र महज 17 साल थी। इस फिल्म ने बेस्ट फीचर फिल्म का नेशनल अवॉर्ड जीता। इसके बाद, उन्होंने तमिल में ‘थंगमलाई रागासियम’ (1957) जैसी फिल्मों में नृत्य और अभिनय से अपनी पहचान बनाई। एमजी रामचंद्रन (एमजीआर) के साथ उनकी जोड़ी पसंद की गई। दोनों ने मिलकर 26 हिट फिल्में दीं, जिसमें ‘नादोडी मन्नन’ (1958) ने उन्हें तमिलनाडु की टॉप अभिनेत्रियों में स्थापित किया।
हिंदी फिल्मों में दिलीप कुमार, राजेंद्र कुमार और शम्मी कपूर जैसे बड़े सितारों के साथ काम किया
हिंदी फिल्मों में भी उन्होंने दिलीप कुमार, राजेंद्र कुमार और शम्मी कपूर जैसे बड़े सितारों के साथ काम किया। ससुराल (1960), ओपेरा हाउस (1961), परीक्षा , हांगकांग (1962) और प्यार किया तो डरना क्या (1963) जैसी कई फिल्मों में सरोजा देवी ने अभिनय किया।
1967 में शादी के बाद उनका करियर धीरे-धीरे कन्नड़ फिल्मों की ओर केंद्रित हो गया
कन्नड़ सिनेमा में उनकी उल्लेखनीय फिल्में ‘चिंतामणि’, ‘स्कूल मास्टर’, और ‘किट्टूरू रानी चेन्नम्मा’ रहीं। तेलुगु फिल्मों में उन्होंने एनटी रामाराव और अक्किनेनी नागेश्वर राव के साथ भी सफल फिल्में कीं। 1960 के दशक में वह दक्षिण भारतीय फिल्मों की एक फैशन आइकन बन गईं। 1967 में शादी के बाद उनका करियर धीरे-धीरे कन्नड़ फिल्मों की ओर केंद्रित हो गया, लेकिन उन्होंने तमिल और तेलुगु में भी सक्रिय रूप से काम जारी रखा। उन्होंने 161 मुख्य भूमिकाएं निभाईं, जिनमें रोमांटिक से लेकर सामाजिक मुद्दों पर आधारित फिल्में शामिल थीं।
सरोजा देवी को सिनेमा में उनके योगदान के लिए कई सम्मान मिले
1985 में पति के निधन के बाद उन्होंने कुछ समय फिल्मों से ब्रेक लिया, फिर अभिनय में लौट आईं लेकिन सहायक भूमिका के तौर पर। उन्होंने राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार निर्णायक मंडल की अध्यक्षता भी की और कर्नाटक फिल्म विकास निगम की अध्यक्ष रहीं। सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहते हुए उन्होंने कई धर्मार्थ अभियानों का नेतृत्व किया। 2019 में उनकी फिल्म ‘नतासार्वभौमा’ रिलीज हुई।सरोजा देवी को सिनेमा में उनके योगदान के लिए कई सम्मान मिले। उन्हें 1969 में पद्मश्री और 1992 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। इसके अलावा, उन्हें तमिलनाडु का कलाईममणि पुरस्कार और बैंगलोर विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की मानद उपाधि मिली।
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