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 अंतरिक्ष में खाने से लेकर सोने तक, शुभांशु ने आईएसएस से दिये छात्रों के सवालों के जवाब

लखनऊ. एक्सिओम मिशन-4 के तहत अंतरिक्ष यात्रा पर गये लखनऊ निवासी शुभांशु शुक्ला ने विभिन्न स्कूलों के बच्चों से अपने इस अविस्मरणीय सफर के अनुभव साझा किये। बच्चों ने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर मौजूद अंतरिक्ष यात्री शुक्ला से बात करने के मौके का भरपूर फायदा उठाया। इस दुर्लभ बातचीत में बच्चों के अंदर यह जानने की खासी ललक दिखी कि अंतरिक्ष यात्री क्या खाते हैं? वे अंतरिक्ष में कैसे सोते हैं? अगर कोई बीमार पड़ जाए तो क्या होता है? शरीर अंतरिक्ष में कैसे ढलता है और पृथ्वी पर लौटने के बाद माहौल में फिर से ढलने में कितना समय लगेगा? आईएसएस पर मौजूद शुक्ला ने यहां सिटी मॉन्टेसरी स्कूल में एकत्र हुए छात्रों द्वारा पूछे गए इन सवालों के विस्तृत जवाब दिये। छात्रों ने अंतरिक्ष कार्यक्रम के लाभों के बारे में भी जानना चाहा।
 साथ ही यह भी जानने की ख्वाहिश जतायी कि अंतरिक्ष यात्रा का कौन सा हिस्सा सबसे ज्यादा मजेदार होता है। आईएसएस पर पहुंचने वाले पहले भारतीय बने शुक्ला ने 25 जून को फ्लोरिडा के कैनेडी स्पेस सेंटर से एक्सिओम मिशन-4 के शुरू होने के अपने अनुभव को 'अद्भुत' बताया। अंतरिक्ष यात्री कैसे सोते हैं, इस बारे में पूछे गये सवाल पर उन्होंने कहा, ''यह वास्तव में मजेदार है... इसलिए अगर आप स्टेशन (आईएसएस) पर आते हैं, तो आप पाएंगे कि कोई दीवारों पर सो रहा है, कोई छत पर।'' शुक्ला ने कहा, ''ऊपर तैरना और खुद को छत से बांधना बहुत आसान है। चुनौती यह है कि जागने पर आप उसी स्थान पर मिलें, जहां आप रात में सोए थे। यह बहुत जरूरी है कि हम अपने ‘स्लीपिंग बैग' बांध लें ताकि हम बहकर कहीं और न पहुंचे जाएं।'' एक छात्र ने पूछा कि अगर कोई यात्री अंतरिक्ष में बीमार पड़ जाए तो क्या होगा, शुक्ला ने जवाब दिया कि ऐसी स्थिति से निपटने के लिये पर्याप्त दवाएं साथ रखी जाती हैं। बातचीत के दौरान भारत के पहले मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन गगनयान का हिस्सा रहे ग्रुप कैप्टन अंगद प्रताप अंतरिक्ष कार्यक्रमों के बारे में युवाओं में जागरूकता पैदा करने के लिए लखनऊ में मौजूद थे। छात्रों के साथ यह बातचीत इसरो के विद्यार्थी संवाद कार्यक्रम का हिस्सा थी। आईएसएस पर पहुंचने वाले पहले भारतीय शुक्ला गगनयान के लिए नामित चार अंतरिक्ष यात्रियों में से एक हैं। 
एक छात्र के मुताबिक, शुक्ला ने उन्हें बताया कि अंतरिक्ष यात्रियों को शायद ही कोई खाली समय मिलता है। हालांकि, एक चीज जिसका अंतरिक्ष यात्री बेसब्री से इंतजार करते हैं वह है बाहर जाकर अंतरिक्ष और पृथ्वी का खूबसूरत नजारा देखना। अंतरिक्ष के माहौल में खुद को ढालने से जुड़ी चुनौतियों के बारे में शुक्ला ने उपस्थित बच्चों को बताया कि सबसे बड़ी चुनौती गुरुत्वाकर्षण की अनुपस्थिति है। उन्होंने कहा, ''अंतरिक्ष शरीर के लिए एक नई स्थिति है। हालांकि मैं पहले दिन की तुलना में अब बहुत बेहतर महसूस कर रहा हूं।'' शुक्ला ने कहा, ''मेरा शरीर अब ‘माइक्रोग्रैविटी' के अनुकूल हो गया है, लेकिन जब मैं धरती पर वापस लौटूंगा तो मेरे शरीर को गुरुत्वाकर्षण के अनुकूल फिर से ढलना होगा। यह एक चुनौती होगी और धरती पर दोबारा प्रवेश करने पर इस अनुकूलन की जरूरत होगी। इसके लिये बहुत सारी तैयारियां और प्रक्रियाएं जरूरी हैं क्योंकि अंतरिक्ष बहुत ही गतिशील जगह है।'' अंतरिक्ष यात्री क्या खाते हैं, इस सवाल पर शुक्ला ने कहा कि अधिकांश भोजन पहले से पैक किया हुआ होता है और पर्याप्त पोषण सुनिश्चित करने के लिए उसकी पर्याप्त देखभाल की जाती है। दरअसल, अंतरिक्ष में भोजन प्रेरणा या आनंद के मुख्य स्रोतों में शुमार हो जाता है। 
शुक्ला ने कहा, ''कई तरह के खाद्य पदार्थ रखे जाते हैं और अंतरिक्ष यात्री उन सभी का स्वाद लेते हैं।'' उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ बातचीत के दौरान उन्हें बताया था कि वह अंतरिक्ष में अपने साथ गाजर का हलवा, मूंग दाल का हलवा और आम रस जैसी मिठाइयां ले गए हैं। एक छात्र ने जानना चाहा कि अंतरिक्ष का मानसिक स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है, इस पर शुक्ला ने कहा कि आधुनिक तकनीक ने यह सुनिश्चित किया है कि अंतरिक्ष यात्री परिवार और दोस्तों से जुड़ सकें और इससे बहुत मदद मिलती है। भारत के पहले अंतरिक्ष यान गगनयान के लिए नामित चार अंतरिक्ष यात्रियों में से एक विंग कमांडर अंगद प्रताप ने बृहस्पतिवार को लखनऊ के सिटी मॉन्टेसरी स्कूल में छात्रों से कहा कि उन्हें अगले कुछ दशकों तक प्रेरित रहना होगा क्योंकि तब भारत में मानव अंतरिक्ष यान के लिए अपार संभावनाएं सामने आएंगी। उनकी बातचीत विंग कमांडर शुक्ला से भी हुई। प्रताप ने एयरोस्पेस विज्ञान के क्षेत्र में रोमांचक और चुनौतीपूर्ण करियर के बारे में बात की।
 

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