और यहां ... रावण के पुतले को उससे क्षमा मांगकर जलाया जाता है, महिलाएं दशानन के सामने घूंघट निकालती हैं
यहां आज भी दामाद के रुप में पूजे जाते हैं दशानन, मान्यता ऐसीकि रावण के दाहिने पैर में कुसुम बांधने से होती है मनोकामना पूरी
मंदसौर। देश के विभिन्न हिस्सों में सोमवार को दशहरे के मौके पर रावण का पुतला दहन किया जाएगा, लेकिन मंदसौर में रावण पुतला दहन की परंपरा अन्य स्थानों से अलग है। मंदसौर में मंदोदरी को बेटी और रावण को दामाद माना जाता है। दशहरे के दिन मंदसौर के नामदेव समाज द्वारा सुबह खानपुरा स्थित 41 फीट ऊंची नौ मुखी रावण की प्रतिमा पर पूजा अर्चना कर क्षमा मांगकर, शाम को युद्ध के लिए आमंत्रित कर गोधूलि बेला में रावण का पुतला दहन किया जाता है। लोगो की ऐसी मान्यता है कि खासकर दशहरे के दिन रावण की प्रतिमा के दाएं पैर में कुसुम (लच्छा) बांधकर मन्नत मांगने से वो पूरी हो जाती है। मन्नत पूरी होने पर रावण प्रतिमा के सामने गुलगुले (मीठे भजिए) प्रसाद के रूप में चढ़ाए जाते हैं। मंदसौर नामदेव समाज के सचिव राजेश मेड़तवाल बताते हैं कि मालवा क्षेत्र में ससुराल में महिलाएं दामाद के सामने घंूघट निकालती हैं।
200 साल पहले स्थापना नौ सिर में एक गधे का भी
नामदेव समाज के सचिव राजेश मेड़तवाल बताते हैं कि मंदसौर के खानपुरा स्थित प्रतिमा को लगभग 200 वर्ष पूर्व स्थापित किया गया था। अभी जो प्रतिमा दिखाई दे रही है ये आज से 35 वर्ष पूर्व की है। इससे पूर्व में इससे भी ऊंची प्रतिमा थी जो इस प्रतिमा से भी 10 फीट ऊंची थी। लेकिन उस प्रतिमा पर बिजली गिर गई और वह क्षतिग्रस्त हो गई थी। अब यहां 41 फीट की प्रतिमा स्थापित की गई है। वे बताते हैं कि रावण के एक मुख्य सिर के साथ दोनों तरफ चार चार सिर लगे हैं, इसके अलावा मुख्य सिर के ऊपर एक सिर गधे के रूप में रख दिया है, मान्यता है कि जब सीता मैया का अपहरण किया था तब रावण कि बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी, ये सिर वही भ्रष्ट बुद्धि को दर्शाता है।
ये भी दावा...मेरठ में भी रावण की ससुराल
मेरठ में भी रावण की ससुराल का दावा किया जाता रहा है। यहां के लोग रावण की पत्नी मंदोदरी को मेरठ की रहने वाली बताते हैं। मेरठ का प्राचीन नाम मयदन्त का खेड़ा था। यह मय दानव की राजधानी थी। मय दानव की पुत्री का ही नाम मंदोदरी था। मंदोदरी का विवाह रावण से हुआ था। इसलिए मेरठ को रावण की ससुराल कहा जाता है। ग्रेटर नोएडा के बिसरख गांव को रावण का जन्म स्थान माना जाता है। बिसरख गांव मातम में डूबा रहता है। यहां कोई जश्न नहीं मनाया जाता। अब यहां एक मंदिर है जो रावण को समर्पित है।
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