भगवान शिव ने ‘हरिहर’ का रूप भी धरा था! जानें क्या है हरिहर का रहस्य!
भगवान शिव के ‘अर्धनारीश्वर’ स्वरूप की कथा तो सभी जानते होंगे, लेकिन इस बात की जानकारी कम लोगों को ही होगी, कि एक बार भगवान शिव ने हरिहर का रूप भी धरा था, और बताया था कि वे और श्रीहरि एक ही हैं. हरिहर को हिंदू धर्म शास्त्रों में ‘शंकरनारायण’ के नाम से भी जाना जाता है. यह अवतार हिंदू धर्म में एकता और सद्भाव का प्रतीक है, जो दर्शाता है कि दोनों देवता एक ही शक्ति के दो पहलू हैं. हरिहर अवतार में, शरीर का आधा भाग विष्णु (हरि) और आधा भाग शिव (हर) का प्रतिनिधित्व करता है. आइये जानते हैं, महादेव को हरिहर का अवतार क्यों लेना पड़ा था, और सावन माह से इस तथ्य का कितना गहरा संबंध है.
हरिहर के स्वरूप का गूढ़ भाव
भगवान शिव एवं श्रीहरि के संयुक्त स्वरूप 'हरिहर' के रूप में, दाहिना भाग रुद्र के प्रतीकों के साथ भगवान शिव का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि बायां भाग भगवान विष्णु को दर्शाता है. भगवान हरिहर अपने दाहिने हाथ में त्रिशूल और भाला तथा बाएं हाथ में गदा और चक्र धारण करते हैं. उनके दाहिने हाथ में देवी गौरी और बाएं हाथ में देवी लक्ष्मी विराजमान हैं.
हरिहर अवतार की कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार शिव और श्रीहरि के भक्तों के बीच यह बहस उठी कि दोनों में कौन सर्वश्रेष्ठ हैं. श्रीहरि के भक्त श्रीहरि को तो भगवान शिव के भक्त शिव को सर्वश्रेष्ठ मानते थे. धीरे-धीरे बहस इतनी बढ़ी कि दोनों भगवान शिव के पास पहुंचे, और अपनी बात उनके सामने रखी. शिवजी ने इस बहस को गलत मानते हुए हरिहर के रूप में प्रकट हुए और अहसास कराया कि विष्णु ही शिव हैं और शिव ही विष्णु हैं
हरिहर का आध्यात्मिक महत्व
‘हरिहर अवतार’ का हिंदू धर्म में गहरा आध्यात्मिक महत्व है. भगवान शिव को संहारक और भगवान विष्णु को पालनकर्ता के रूप में पूजा जाता है, यह दर्शाता है कि सृष्टि विनाश और संरक्षण दोनों के माध्यम से चलती रहती है, जिससे ब्रह्मांड का चक्र पूरा होता है, चूंकि चातुर्मास काल में भगवान विष्णु योग निद्रा में लीन रहते हैं, उनकी जगह भगवान शिव ब्रह्मांड का संचालन करते हैं. ऐसी भी मान्यता है कि इस दौरान शिव पृथ्वी पर निवास करते हैं. इसलिए सावन माह में हरिहर स्वरूप की पूजा करने से भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
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