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- नवरात्रि के 9 दिन पूरे होने के बाद अगले दिन यानी दशमी तिथि पर मां दुर्गा की पूजा-अर्चना करने के बाद उनकी विदाई की जाती है। दशहरा को विजयदशमी के नाम से भी जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। शास्त्रों के अनुसार, दशहरा का दिन बेहद शुभ होता है और इस तिथि पर दसों दिशाएं खुली रहती हैं। ऐसे में इस दिन किया गया कोई नया काम, पूजा और उपाय जातक को कई गुना फल दिला सकते हैं। ऐसे में 2 अक्टूबर, गुरुवार को दशहरा के दिन कुछ खास और आसान उपाय किए जा सकते हैं। इनमें से एक भी कर लेने से व्यक्ति को पूरे साल लाभ प्राप्त हो सकता है। साथ ही, जीवन में उन्नति प्राप्त होती है।आर्थिक समस्याओं से राहत पाने का उपायदशहरा के दिन एक छोटा सा उपाय करने से आपको आर्थिक समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है। इसके लिए दशहरा के दिन अपने पास के किसी मंदिर में जाकर झाड़ू का दान करें। ऐसा करने से जातक को धन की तंगी से निजात मिल सकती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। साथ ही, इस उपाय से घर की आर्थिक स्थिति भी मजबूत होने लगती है। इस उपाय को शाम के समय करना सबसे उत्तम माना जाता है और झाड़ू दान करते समय मन में देवी लक्ष्मी का ध्यान करें।धन-धान्य में वृद्धि का उपायइसके लिए दशहरा के दिन शाम के समय भगवान गणेश और लक्ष्मी मां की विधि-विधान से पूजा करें। इस दौरान उन्हें एक नारियल भी जरूर अर्पित करें। इसके बाद, नारियल को अपनी तिजोरी में रख दें और रात के समय नारियल को लेजाकर किसी राम मंदिर में चढ़ाकर आ जाएं। मंदिर में प्रभु श्रीराम से जीवन में सुख-समृद्धि और धन-धान्य में वृद्धि का कामना करें। इस उपाय को करने से जातक को बेहद शुभ फल की प्राप्ति होती है और घर से दरिद्रता दूर हो सकती है।इस एक उपाय से पुण्य फल होगा प्राप्तदशहरा के मौके पर प्रभु श्रीराम की आराधना करने का खास महत्व होता है। ऐसा करने के बाद एक लाल रंग के कलम से कम से कम 108 बार राम नाम लिखना चाहिए। इस उपाय को करने श्रद्धापूर्वक करने से जातक को भगवान राम की कृपा प्राप्त हो सकती है और आंतरिक शांति का अनुभव होता है। दशहरा पर श्रीराम से जुड़े इस उपाय से आपको बेहद पुण्य फल प्राप्त हो सकता है।जीवन में उन्नति प्राप्त करने का उपायदशहरा के अवसर पर आप नारियल से जुड़ा एक विशेष उपाय कर सकते हैं। इसके लिए एक नारियल को पीले रंग के साफ वस्त्र में लपेट दें और उसे लेजाकर राम मंदिर में चढ़ा दें। इस उपाय को करने से आपके कार्यों में आ रही बाधाएं दूर हो सकती हैं। साथ ही, जीवन में तरक्की और उन्नति प्राप्त होने लगती है। नारियल का यह उपाय आपको करियर और नौकरी में भी सफलता के मार्ग पर लेकर जा सकता है।इस उपाय से प्रभु श्रीराम और बजरंगबली की कृपा होगी प्राप्तमान्यता है कि दशहरा के दिन सुंदरकांड का पाठ करना बेहद शुभ होता है। ऐसा करने से व्यक्ति को भगवान राम, बजरंगबली और जानकीजी की आराधना करने के समान फल प्राप्त होता है। इस दिन पूजा-पाठ करने के साथ-साथ नई चीजें जैसे- वाहन, घर आदि खरीदना भी शुभ माना जाता है। साथ ही, आप दशहरा पर किसी नए काम की शुरुआत कर सकते हैं। इससे जीवन में तरक्की प्राप्त होती है।--
- दशहरा का पर्व हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है और इसे बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाया जाता है. इस दिन सिर्फ रावण दहन नहीं होता, बल्कि जीवन में शुभता और सकारात्मक ऊर्जा लाने के लिए कई पारंपरिक उपाय भी किए जाते हैं. मान्यता है कि दशहरा के दिन किए गए उपाय खास प्रभाव रखते हैं और घर-परिवार में खुशहाली और समृद्धि ला सकते हैं. खासकर नींबू का प्रयोग, जो सदियों से नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने और धन की वृद्धि के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है, अगर आप इस दशहरा अपने घर में सुख-शांति और धन के अवसर लाना चाहती हैं, तो कुछ आसान लेकिन असरदार उपाय हैं जिन्हें आप आजमा सकती हैं. यहां हमें भोपाल निवासी एक ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित बताने जा रहे हैं तीन ऐसे नींबू के रहस्यमयी उपाय जो आपके जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं और घर में लक्ष्मी के वास को मजबूत कर सकते हैं.1. घर के मुख्य द्वार पर नींबू-मिर्च की माला लटकाएंदशहरा के दिन घर के मुख्य द्वार पर नींबू और हरी मिर्च की माला लटकाना एक पुरानी परंपरा है. ऐसा माना जाता है कि इससे कोई भी बुरी नजर या नकारात्मक ऊर्जा घर के भीतर प्रवेश नहीं कर सकती. इस उपाय को करने के लिए आप सुबह जल्दी उठकर नींबू और मिर्च की माला तैयार करें और अपने मुख्य दरवाजे पर लटका दें. इस उपाय का असर सिर्फ नकारात्मकता को दूर करना ही नहीं है, बल्कि यह धन को आकर्षित करने में भी मदद करता है. सदियों से यह तरीका परिवारों में अपनाया जाता रहा है और इसे आज भी कारगर माना जाता है, अगर आप इस उपाय को नियमित रूप से दशहरा के दिन करती हैं, तो आपके घर में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है.2. नींबू के छिलकों से करें धन लाभ का उपायनींबू के छिलके भी धन लाभ और घर की सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाने में मदद करते हैं. इसके लिए सबसे पहले नींबू को अच्छे से धोकर उसके छिलके अलग कर लें. अब इन छिलकों को एक बर्तन में रखें और उस पर हल्का सा हल्दी और अक्षत छिड़कें.इन छिलकों को आप घर के मंदिर या पूजा स्थान में रखें, ऐसी जगह जहां किसी की नजर न पड़े. अगले दिन इन्हें किसी नदी में प्रवाहित कर दें या घर के बाहर किसी पेड़ के नीचे रख दें. यह उपाय घर की नकारात्मकता को दूर करता है और नए अवसर व धन के योग बनाने में सहायक होता है.3. नींबू के छिलके का दीपक जलाएंदशहरा से एक दिन पहले ही नींबू के छिलकों को धूप में सुखा लें. दशहरा की रात को इन छिलकों का दीपक जलाकर घर के मुख्य दरवाजे पर या बालकनी जैसे खुले स्थान पर रखें. यह न केवल घर की नकारात्मक शक्तियों को दूर करता है, बल्कि घर में लक्ष्मी का वास भी बनाए रखता है.यदि आप घर के मंदिर में भी नींबू के छिलके का दीपक जलाती हैं, तो यह उपाय घर की खुशहाली और समृद्धि को बढ़ाने में और भी मददगार साबित होता है. इसे नियमित रूप से अपनाने से आपके घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है और परिवार के सभी सदस्य खुशहाल रहते हैं.
- हिंदू धर्म में नवरात्रि को अत्यंत पवित्र और पावन पर्व माना गया है। इन नौ दिनों में माता दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की आराधना की जाती है। इस दौरान भक्त सात्विक जीवन जीते हैं और वातावरण में भी एक विशेष शुद्धता बनी रहती है। शास्त्रों में कहा गया है कि नवरात्रि के समय जन्म लेने वाले लोग भी खास गुणों के धनी होते हैं। आइए जानते हैं कि इस अवधि में जन्मे लोगों का स्वभाव कैसा होता है और उनके जीवन कैसा होता है।नवरात्रि में जन्मे लोगों का स्वभावनवरात्रि में जन्म लेने वाले बच्चे बहुत भाग्यशाली माने जाते हैं, क्योंकि इन पर मां दुर्गा की विशेष कृपा होती है। इनके स्वभाव में सकारात्मकता और विनम्रता झलकती है। सामाजिक जीवन में ये अपनी बातों से दूसरों को आकर्षित कर लेते हैं। हालांकि कभी-कभी ये एकांतप्रिय भी हो जाते हैं। ऐसे लोग सीमित मित्र बनाते हैं, लेकिन जिनसे जुड़ते हैं उनके लिए समर्पण भाव रखते हैं।बौद्धिक क्षमतानवरात्रि के दौरान जन्म लेने वालों की बुद्धि तेज होती है। वे नई चीजें जल्दी सीखने की सक्षमता रखते हैं। साथ ही कठिन परिस्थितियों में भी सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखते हैं। शिक्षा और ज्ञान की ओर इनका विशेष झुकाव होता है, जिससे इन्हें पढ़ाई में सफलता और सम्मान दोनों मिलते हैं। अक्सर इनके जीवन में शैक्षणिक या बौद्धिक क्षेत्र से जुड़ी कोई न कोई उपलब्धि देखने को मिलती है।भाग्य का साथऐसे लोग भाग्यशाली माने जाते हैं। हालांकि इन्हें परिश्रम भी करना पड़ता है, लेकिन इनकी मेहनत अपेक्षाकृत जल्दी फल देती है। कई बार इनका भाग्योदय अचानक और अप्रत्याशित रूप से होता है। इनकी एक खासियत यह भी होती है कि ये कर्मशील रहते हैं, इसलिए इनका भाग्य खुद ही इनके प्रयासों का साथ देता है।नवरात्रि में जन्मी कन्यानवरात्रि के दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना होती है। मान्यता है कि इस अवधि में यदि किसी घर में कन्या जन्म ले, तो उसका आगमन सुख-समृद्धि का सूचक होता है। ऐसी कन्याएं जहां जाती हैं, वहां समृद्धि और शुभता का संचार होता है। ये कन्याएं प्रभावशाली व्यक्तित्व की धनी होती हैं और समाज में अपना अलग स्थान बना लेती हैं।
- शारदीय नवरात्रि का पर्व आरंभ हो चुका है। यह समय देवी दुर्गा की साधना और आराधना के लिए अत्यंत शुभ है। शारदीय नवरात्रि के इन नौ दिनों में देशभर के धार्मिक स्थलों सहित मंदिरों में पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन और विभिन्न मांगलिक कार्यक्रमों का भव्य आयोजन किया जाता है। इस दौरान श्रद्धालु सच्चे भाव से व्रत रखते हैं, माता के नौ स्वरूपों की आराधना करते हैं।धार्मिक मान्यता है कि नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा करने से जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं और व्यक्ति मानसिक शांति का एहसास करता है। यही नहीं, इस अवधि में देवी की उपासना से आर्थिक समृद्धि, परिवार में सुख-शांति और सभी मनोकामनाओं की पूर्ति भी होती हैं।शास्त्रों के अनुसार शारदीय नवरात्रि में मां दुर्गा के शक्तिशाली नामों का स्मरण करने से भी व्यक्ति का भाग्योदय होता है और वह कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी सफलता प्राप्त करता है। ऐसे में आप भी शारदीय नवरात्रि के दिनों में देवी के इन 108 नामों का जाप कर सकते हैं। यह बेहद शुभ होता है। आइए इसके बारे में जानते हैं।शारदीय नवरात्रि 2025 कैलेंडर22 सितंबर 2025 – प्रतिपदा (शैलपुत्री पूजा)23 सितंबर 2025 – द्वितीया (ब्रह्मचारिणी पूजा)24 सितंबर 2025 – तृतीया (चन्द्रघण्टा पूजा)26 सितंबर 2025 – चतुर्थी (कूष्माण्डा पूजा)27 सितंबर 2025 – पञ्चमी (स्कन्दमाता पूजा)28 सितंबर 2025 – महाषष्ठी (कात्यायनी पूजा)29 सितंबर 2025 – महासप्तमी (कालरात्रि पूजा)30 सितंबर 2025 – महाअष्टमी (महागौरी पूजा)1 अक्टूबर 2025 – महानवमी (सिद्धिदात्री पूजा)2 अक्टूबर 2025 – विजयादशमीमां दुर्गा के नाम1. ॐ श्रियै नमः।2. ॐ उमायै नमः।3. ॐ भारत्यै नमः।4. ॐ भद्रायै नमः।5. ॐ शर्वाण्यै नमः।
6. ॐ विजयायै नमः।
7. ॐ जयायै नमः।
8. ॐ वाण्यै नमः।
9. ॐ सर्वगतायै नमः।
10. ॐ गौर्यै नमः।
11. ॐ वाराह्यै नमः।
12. ॐ कमलप्रियायै नमः।
13. ॐ सरस्वत्यै नमः।
14. ॐ कमलायै नमः।
15. ॐ मायायै नमः।
16. ॐ मातंग्यै नमः।
17. ॐ अपरायै नमः।
18. ॐ अजायै नमः।19. ॐ शांकभर्यै नमः।20. ॐ शिवायै नमः।21. ॐ चण्डयै नमः।22. ॐ कुण्डल्यै नमः।
23. ॐ वैष्णव्यै नमः।
24. ॐ क्रियायै नमः।
25. ॐ श्रियै नमः।
26. ॐ ऐन्द्रयै नमः।
27. ॐ मधुमत्यै नमः।
28. ॐ गिरिजायै नमः।
29. ॐ सुभगायै नमः।
30. ॐ अंबिकायै नमः।
31. ॐ तारायै नमः।
32. ॐ पद्मावत्यै नमः।
33. ॐ हंसायै नमः।
34. ॐ पद्मनाभसहोदर्यै नमः।
35. ॐ अपर्णायै नमः।
36. ॐ ललितायै नमः।
37. ॐ धात्र्यै नमः।
38. ॐ कुमार्यै नमः।
39. ॐ शिखवाहिन्यै नमः।
40. ॐ शांभव्यै नमः।
41. ॐ सुमुख्यै नमः।
42. ॐ मैत्र्यै नमः।
43. ॐ त्रिनेत्रायै नमः।
44. ॐ विश्वरूपिण्यै नमः।
45. ॐ आर्यायै नमः।46. ॐ मृडान्यै नमः।47. ॐ हींकार्यै नमः।
48. ॐ क्रोधिन्यै नमः।
49. ॐ सुदिनायै नमः।
50. ॐ अचलायै नमः।
51. ॐ सूक्ष्मायै नमः।
52. ॐ परात्परायै नमः।
53. ॐ शोभायै नमः।
54. ॐ सर्ववर्णायै नमः।
55. ॐ हरप्रियायै नमः।
56. ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
57. ॐ महासिद्धयै नमः।
58. ॐ स्वधायै नमः।
ॐ. स्वाहायै नमः।
60. ॐ मनोन्मन्यै नमः।
61. ॐ त्रिलोकपालिन्यै नमः।
62. ॐ उद्भूतायै नमः।
63. ॐ त्रिसन्ध्यायै नमः।
64. ॐ त्रिपुरान्तक्यै नमः।
65. ॐ त्रिशक्त्यै नमः।
66. ॐ त्रिपदायै नमः।
67. ॐ दुर्गायै नमः।
68. ॐ ब्राह्मयै नमः।
69. ॐ त्रैलोक्यवासिन्यै नमः।
70. ॐ पुष्करायै नमः।
71. ॐ अत्रिसुतायै नमः।72. ॐ गूढ़ायै नमः।73. ॐ त्रिवर्णायै नमः।74. ॐ त्रिस्वरायै नमः।75. ॐ त्रिगुणायै नमः। - नवरात्रि भारत का प्रमुख धार्मिक पर्व है जो शक्ति की उपासना को समर्पित है। इस पर्व के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना की जाती है। नवरात्रि के अष्टमी और नवमी तिथि को कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है। इसे कंजक पूजन भी कहा जाता है। इस परंपरा में छोटी-छोटी कन्याओं और एक छोटे बालक (लांगुरिया/भैरव) को आमंत्रित कर उन्हें भोजन कराया जाता है और उनका पूजन किया जाता है।शास्त्रों के अनुसार, कन्याएं स्वयं मां दुर्गा का ही रूप मानी जाती हैं। देवी भागवत में वर्णन है कि “जहां कन्याओं का पूजन होता है, वहां मां दुर्गा स्वयं प्रसन्न होकर वास करती हैं।” नवरात्रि के दौरान जब साधक नौ दिनों तक व्रत, भक्ति और अनुष्ठान करते हैं, तो कन्या पूजन को उस साधना का पूर्ण फल माना जाता है। माना जाता है कि जब कन्याओं को श्रद्धा और भक्ति से पूजन कर भोजन कराया जाता है, तो मां दुर्गा साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि प्रदान करती हैं।नवदुर्गा का प्रत्येक रूपदेवी भागवत में नौ कन्याओं को नवदुर्गा का प्रत्यक्ष विग्रह बताया गया है। उसके अनुसार नवकुमारियां भगवती के नवस्वरूपों की जीवंत मूर्तियां है। इसके लिए दो से दस वर्ष तक की कन्याओं का चयन किया जाता है।दो वर्ष की कन्या ‘कुमारिका’ कहलाती है, जिसके पूजन से धन-आयु-बल की वृद्धि होती है।तीन वर्ष की कन्या ‘त्रिमूर्ति’ कही जाती है। इसके पूजन से घर में सुख-समृद्धि का आगमन होता है।चार वर्ष की कन्या ‘कल्याणी’ के पूजन से विवाह आदि मंगल कार्य संपन्न होते हैं।पांच वर्ष की कन्या ‘रोहिणी’ की पूजा से स्वास्थ्य लाभ होता है।छह वर्ष की कन्या ‘कालिका’ के पूजन से शत्रु का दमन होता है।आठ वर्ष की कन्या ‘शांभवी’ के पूजन से दुःख-दरिद्रता का नाश होता है।नौ वर्ष की कन्या ‘दुर्गा’ पूजन से असाध्य रोगों का शमन और कठिन कार्य सिद्ध होते हैं।दस वर्ष की कन्या ‘सुभद्रा’ पूजन से मोक्ष की प्राप्ति होती है।देवी भागवत में इन नौ कन्या को कुमारी नवदुर्गा की साक्षात प्रतिमूर्ति माना गया है। दस वर्ष से अधिक आयु की कन्या को कुमारी पूजा में सम्मिलित नहीं करना चाहिए। कन्या पूजन के बिना भगवती महाशक्ति कभी प्रसन्न नहीं होतीं।नवरात्रि में कन्या पूजन कैसे करें?महाअष्टमी या महानवमी के दिन स्नान आदि करने के बाद भगवान गणेश और माता गौरी की पूजा करें।इसके बाद कन्या पूजन के लिए 9 कन्याओं और एक बालक को भी आमंत्रित करें।पूजा की शुरुआत कन्याओं के स्वागत से करें।इसके बाद सभी कन्याओं के साफ पानी से पैर धोएं और साफ कपड़े से पोछकर आसन पर बिठाएं।फिर कन्याओं के माथे पर कुमकुम और अक्षत का टीका लगाएं।इसके बाद कन्याओं के हाथ में कलावा या मौली बांधें।एक थाली के में घी का दीपक जलाकर सभी कन्याओं की आरती उतारें।आरती उतारने के बाद कन्याओं को भोग में पूड़ी, चना, हलवा और नारियल खिलाएं।भोजन के बाद उन्हें अपने सामर्थ्य अनुसार भेंट दें।आखिर में कन्याओं के पैर छूकर उनसे आशीर्वाद जरूर लें।अंत में उन्हें अक्षत देकर उनसे थोड़ा अक्षत अपने घर में छिड़कने को कहें।कन्या पूजन का महत्वहिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, कन्या पूजन के लिए दो से दस साल तक की कन्या उपयुक्त होती हैं. दो से दस साल तक की कन्याएं मां दुर्गा के विभिन्न रूपों का प्रतिनिधित्व करती हैं. इसके अलावा लंगूर के रूप में एक बालक को भी इस पूजा में शामिल किया जाता है, जिसे भैरव बाबा या हनुमान जी का प्रतीक कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि अष्टमी और नवमी तिथि पर कन्या पूजन करने से देवी दुर्गा प्रसन्न होती हैं और उनकी कृपा आपके परिवार पर सदा बनी रहती है।
- शक्ति और साधना का महापर्व शारदीय नवरात्रि पूरे देश में आस्था और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। हिंदू धर्म में इन नौ दिनों को अत्यंत पवित्र और शुभ माना जाता है। यही वजह है कि बहुत से लोग एक नई शुरुआत के लिए अपने नए घर में प्रवेश (गृह प्रवेश) जैसे मांगलिक कार्य करने की योजना बनाते हैं। मान्यताओं के अनुसार, इतने पावन पर्व पर गृह प्रवेश करने से घर में मां दुर्गा का आशीर्वाद बना रहता है और सुख-समृद्धि का वास होता है। आइए इस लेख में जानते हैं कि इस बार शारदीय नवरात्रि में गृह प्रवेश करना शुभ है या नहीं।क्या नवरात्रि में गृह प्रवेश शुभ है?आम तौर पर नवरात्रि के नौ दिनों को 'सिद्ध मुहूर्त' माना जाता है, यानी यह समय इतना पवित्र है कि कई नए कार्यों की शुरुआत के लिए विशेष मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती। मान्यता है कि इन दिनों में सकारात्मक ऊर्जा अपने चरम पर होती है, इसलिए इस दौरान गृह प्रवेश करने से घर में देवी का वास होता है और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।क्या शारदीय नवरात्रि 2025 में गृह प्रवेश कर सकते हैं?इस वर्ष शारदीय नवरात्रि चातुर्मास के दौरान पड़ रही है, और शास्त्रों में चातुर्मास के समय गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य वर्जित माने गए हैं। इसलिए इस बार नवरात्रि में गृह प्रवेश नहीं कर सकते हैं। गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त देखते समय चातुर्मास जैसे अशुभ योगों का विशेष ध्यान रखा जाता है। चातुर्मास वह चार महीने की अवधि है जब भगवान विष्णु योग निद्रा में रहते हैं। इस दौरान कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह, मुंडन या गृह प्रवेश करना वर्जित होता है।इस नवरात्रि क्या करें?इस वर्ष शारदीय नवरात्रि चातुर्मास के भीतर पड़ रही है। चूंकि नवरात्रि चातुर्मास के दौरान है, इसलिए ज्योतिषियों के अनुसार इस अवधि में गृह प्रवेश करना शुभ नहीं है। आप इस दौरान नए घर की खरीदारी कर सकते हैं या सामान ले जा सकते हैं, लेकिन मुख्य पूजा और रहने की शुरुआत चातुर्मास के बाद ही करनी चाहिए।इस वर्ष शारदीय नवरात्रि में गृह प्रवेश का कोई शुभ मुहूर्त नहीं है। यह समय नए घर की खरीदारी करने, अनुबंध करने या घर के लिए सामान खरीदने के लिए अत्यंत शुभ है। आप चाहें तो अपने नए घर में दुर्गा सप्तशती का पाठ रखवा सकते हैं। गृह प्रवेश के लिए अगला शुभ मुहूर्त नवंबर 2025 में देवउठनी एकादशी के बाद ही उपलब्ध होगा।
- घर-घर माता रानी पधार चुकी हैं। माता के 9 स्वरूपों की इस बार 10 दिन उपासना की जाएगी। इस साल शारदीय नवरात्रि 10 दिनों की है। नवरात्रि व्रत का समापन कन्या पूजन के बाद ही किया जाता है। माता की भक्ति में लीन होकर माता का आशीर्वाद प्राप्त हो सकता है। वहीं, पूजा-पाठ करते समय कुछ बातों का ध्यान अवश्य रखा जाता है। नवरात्रि पूजा शुरू करने से पहले एक काम करना जरूरी माना जाता है, जिसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। यह काम करना न केवल महत्वपूर्ण है बल्कि लाभदायक भी है। आइए जानते हैं-नवरात्रि में पूजा शुरू करने से पहले करें ये काम--शारदीय नवरात्रि की पूजा शुरू करने से पहले भगवान श्री गणेश को प्रणाम करें। प्रभु का ध्यान करें। मान्यता है किसी भी शुभ कार्य या पूजा-पाठ की शुरुआत बिना भगवान गणेश जी का ध्यान किए नहीं होती है। ऐसे में नवरात्रि से जुड़ा कार्य शुरू करने से पहले भगवान गणेश जी की पूजा करें। प्रभु का जलाभिषेक करें, चंदन और पुष्प अर्पित कर नमन करें।दशमी तक माता को लगाएं इन चीजों का भोग---प्रतिपदा तिथि को माता को घी का भोग लगाएं- द्वितीया को माता को शक्कर का भोग लगाएं- तृतीया को गाय के दूध का भोग लगाएं-चतुर्थी को माता को माल पूआ का भोग लगाएं- पंचमी को माता को केला का भोग लगाएं-षष्ठी तिथि को शहद का भोग लगाएं- सप्तमी तिथि को माता को गुड़ का भोग लगाएं- अष्टमी को माता को नारियल का भोग लगाएं-नवमी को माता को लावा का भोग लगाएं-दशमी को माता को तिल का भोग लगाएं
- शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो चुकी है. ये पवित्र दिन मां दुर्गा की उपासना के लिए बेहद पावन माना जाता है. इन दिनों में मां की पूजा, आरती, व्रत रखना बेहद उत्तम माना गया है. नवरात्र के पहले दिन घटस्थापना के समय मां की चौकी लगाई जाती है, जिसके कुछ खास नियम होते हैं.धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मां की कृपा पाने के लिए चौकी का सही दिशा में लगाना बेहद जरूरी माना गया है. चौकी की सही दिशा उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) बताई गई है, ऐसी मान्यता है कि चौकी को इस दिशा में रखने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है. इसके अलावा, माता की चौकी को कभी भी खाली नहीं रखने की भी मान्यता है. ऐसा करना शुभ नहीं माना जाता है. कहते हैं कि नवरात्र में अगर माता की चौकी सूनी छोड़ दी जाए तो पूजा का फल नहीं मिलता है. इसके पीछे कई धार्मिक मान्यताएं भी हैं. आइये जानते हैं उसके बारे में1. मां दुर्गा का सम्माननवरात्र मां दुर्गा के आगमन का समय होता है और घर में स्थापित चौकी मां दुर्गा को समर्पित होती है. अगर घर में माता की चौकी स्थापित करके इसे सूना छोड़ दिया जाए तो इसे माता का अनादर समझा जाता है. इसलिए ऐसा न करें. चौकी के पास हर वक्त कोई न कोई जरूर होना चाहिए. देवी की चौकी के पास ठहरने वाले व्यक्ति को सात्विक और शुद्धि का भी विशेष ख्याल रखना चाहिए.2. नकारात्मक शक्तियों का संचारनवरात्र में माता की चौकी स्थापित करने से घर में पवित्रता आती है. कहते हैं कि यदि साधक चौकी को सूना छोड़ दे तो घर में नकारात्मक शक्तियों के प्रवेश का खतरा बढ़ सकता है. लगातार निगरानी से चौकी की पवित्रता और सुरक्षा दोनों कायम रहती है.4. कलश और जौनवरात्र के दौरान चौकी पर रखे कलश के पास जौ बोए जाते हैं, जो सुख-समृद्धि और देवी के आशीर्वाद का प्रतीक हैं. इसे सूना या अकेला छोड़ना अशुभ माना जाता है. नवरात्र में इनकी बहुत बारीकी से देख-रेख की जाती है5. भक्ति और समर्पणनवरात्र में देवी के सारे भक्त निरंतर पूजा, व्रत और आराधना में लगे रहते हैं. चौकी को कभी खाली न छोड़ना इसी भक्ति और समर्पण का हिस्सा है, जो यह दिखाता है कि भक्त हर पल देवी की उपासना में लीन है.
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नवरात्रि का पावन पर्व शुरू हो गया है। नवरात्रि के दौरान मां के अलग-अलग 9 रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। नवरात्रि सिर्फ धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि यह आध्यात्मिक और मानसिक उन्नति का समय भी है। इस दौरान कुछ चीजों की खरीदारी करना बेहद शुभ माना जाता है, जिससे घर में सुख, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा आती है। आइए जानते हैं, नवरात्रि के दौरान किन चीजों की खरीदारी करना शुभ रहता है…
श्रृंगार का सामान- नवरात्रि में श्रृंगार सामग्री खरीदना बहुत शुभ माना जाता है। इससे घर में समृद्धि आती है और सौभाग्य भी बढ़ता है। कोशिश करें कि श्रृंगार का सामान सप्तमी, अष्टमी या नवमी के दिन ही खरीदा जाए, इससे पुण्य फल दोगुना होता है।देवी-देवताओं की मूर्ति या तस्वीर- इस पावन पर्व पर घर में देवी-देवताओं की मूर्ति या तस्वीर रखना बेहद शुभ है। अपनी इष्ट देवी या देवता की मूर्ति घर लाने से जीवन में शुभ फल, मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।पौधे घर में लाएं- नवरात्रि में घर में तुलसी, शमी, केले या मनी प्लांट जैसे पौधे लगाना भी बेहद लाभकारी है। ये न सिर्फ नकारात्मक ऊर्जा को दूर करते हैं बल्कि वास्तु दोषों से मुक्ति दिलाने में भी मदद करते हैं।कामधेनु की मूर्ति- यदि आप नवरात्रि में कामधेनु की मूर्ति घर लाते हैं, तो यह धन-धान्य और आरोग्य दोनों में लाभ देती है। घर में कामधेनु की पूजा से आर्थिक संकट और नकारात्मक ऊर्जा से राहत मिलती है।घर या जमीन की खरीदारी- नवरात्रि के दौरान नया घर या जमीन का टुकड़ा खरीदना भी शुभ माना जाता है। इस दौरान खरीदा गया घर या जमीन लंबे समय तक सुख-समृद्धि और शांति देता है।नया वाहन खरीदना- अगर आप नवरात्रि के दिनों में नया वाहन खरीदते हैं, तो यह भी लाभकारी है। खासकर शनिवार के दिन खरीदा गया वाहन लंबे समय तक टिकाऊ और लाभकारी रहता है।अन्य शुभ चीजें- नवरात्रि में आप चांदी का सिक्का, श्री यंत्र, चंदन, कलश जैसी चीजें भी घर ला सकते हैं। ये सभी वस्तुएँ माता दुर्गा की कृपा और सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाने में मदद करती हैं। - शारदीय नवरात्रि माता दुर्गा की उपासना का पवित्र पर्व है। नवरात्रि में वास्तु शास्त्र के नियमों का पालन करने से पूजा का प्रभाव बढ़ता है और माता रानी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। बता दें कि साफ-सफाई, पूजा की सही दिशा और सजावट से घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है।घर में साफ-सफाई रखेंवास्तु शास्त्र में स्वच्छता सकारात्मक ऊर्जा का आधार है। नवरात्रि से पहले घर की अच्छी तरह साफ-सफाई करें। फर्श पर गंगाजल का छिड़काव करें और पुराने, टूटे सामान को हटाएं। रसोई और पूजा कक्ष को विशेष रूप से साफ रखें। स्वच्छ घर माता रानी की कृपा को आकर्षित करता है और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है।सही दिशा में करें कलश स्थापनावास्तु के अनुसार, नवरात्रि में कलश स्थापना उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) में करें, जो सकारात्मक ऊर्जा का केंद्र है। कलश को पीतल या तांबे के बर्तन में स्थापित करें और उसमें गंगाजल, सुपारी, और आम के पत्ते डालें। माता की मूर्ति के सामने कलश रखें। यह समृद्धि और शांति को आकर्षित करता है।पूजा कक्ष की सही दिशानवरात्रि के लिए पूजा कक्ष उत्तर-पूर्व दिशा में बनाएं, क्योंकि यह दिशा आध्यात्मिक ऊर्जा से जुड़ी है। पूजा कक्ष में माता की मूर्ति को पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके रखें। सुनिश्चित करें कि पूजा स्थान के पास कोई अव्यवस्था ना हो और दीपक, धूपबत्ती नियमित जलाएं। यह माता रानी की कृपा को बढ़ाता है।दीपक जलाने की सही दिशावास्तु के अनुसार, नवरात्रि में दीपक को दक्षिण-पूर्व (अग्नि कोण) में जलाएं। यह अग्नि तत्व को संतुलित करता है और सकारात्मक ऊर्जा लाता है। घी या तिल के तेल का दीपक जलाएं और माता के सामने रखें। दीपक को रोज साफ करें और रात में बुझने न दें। यह माता का आशीर्वाद दिलाता है।मुख्य द्वार को सजाएंमुख्य द्वार को नवरात्रि में आम के पत्तों के तोरण और स्वास्तिक से सजाएं। वास्तु में मुख्य द्वार सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश द्वार है। लाल या पीले रंग का स्वास्तिक बनाएं और फूलों की माला लगाएं। यह माता रानी को आमंत्रित करता है और घर में सुख-समृद्धि लाता है।शुभ रंगों से बढ़ाएं ऊर्जानवरात्रि में पूजा कक्ष और घर में लाल, पीला और नारंगी जैसे शुभ रंगों का उपयोग करें। ये रंग सूर्य और गुरु ग्रह से जुड़े हैं, जो समृद्धि और सकारात्मकता लाते हैं। पूजा स्थल पर रंगीन कपड़ा बिछाएं और फूलों से सजावट करें। यह माता की कृपा और शुभ ऊर्जा को आकर्षित करता है।वास्तु से नवरात्रि की शक्तिशारदीय नवरात्रि में साफ-सफाई, सही दिशा में कलश और पूजा कक्ष, दीपक और मुख्य द्वार की सजावट जैसे वास्तु उपाय अपनाएं। ये उपाय सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाते हैं और माता रानी का आशीर्वाद दिलाते हैं। श्रद्धा से इनका पालन करें, ताकि घर में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहे।
- शास्त्रों में मां लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। देवी लक्ष्मी धन, ऐश्वर्य और वैभव की देवी है। उनकी कृपा से न केवल घर-परिवार में सुख-समृद्धि बल्कि आर्थिक प्रगति भी होती है। इसके अलावा साधक का जीवन सुख-सुविधाओं से भरा रहता है। शास्त्रों के अनुसार, शुक्रवार का दिन मां लक्ष्मी की आराधना के लिए अत्यंत शुभ माना गया है। इस दिन श्रद्धा और भक्ति के साथ पूजा करने से साधक का भाग्योदय होता है और जीवन में उन्नति के नए अवसर प्राप्त होते हैं। हालांकि, देवी की असीम कृपा पाने के लिए इस दिन कुछ उपाय करना भी लाभकारी होता है। मान्यता है इन उपायों के प्रभाव से घर में बरकत बनी रहती है और दरिद्रता का नाश होता है। आइए इनके बारे में जानते हैं।धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक शुक्रवार के दिन अपने मंदिर में मां लक्ष्मी की कमल के फूल पर विराजमान वाली तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें। फिर देवी की विधि-विधान से पूजा करें और उन्हें फूल चढ़ाएं। मान्यता है कि ऐसा करने से घर की बरकत पर सकारात्मक प्रभाव पड़ पड़ता है।माना जाता है कि शुक्रवार के दिन श्रीयंत्र की स्थापना करने से घर की आर्थिक स्थिति बेहतर होती है। ऐसे में इसे स्थापित कर सकते हैं। इससे धन लाभ की प्राप्ति हो सकती है।शुक्रवार के दिन आप पांच पीली कौड़ियों को एक साफ लाल कपड़े में बांध दें। फिर इसे मां लक्ष्मी के चरणों में अर्पित करें। इसके बाद अगले दिन यानी शनिवार को सुबह इन्हें घर के धन स्थान पर रख दें। मान्यता है कि इसके प्रभाव से कर्ज से मुक्ति और धन लाभ होता है।ज्योतिषियों के मुताबिक शुक्रवार के दिन शाम को सफेद चीजों का दान करें। हालांकि, आप अन्न या वस्त्रों का दान भी कर सकते हैं। यह सरल उपाय आपके लिए लाभकारी हो सकता है।
- क्या आप भी हर सुबह टूथब्रश और केमिकल भरे टूथपेस्ट से दांत साफ करते हैं, लेकिन फिर भी पीलापन और मसूड़ों की कमजोरी की समस्या बनी रहती है? हमारे दादाजी-नानाजी जमाने से एक आयुर्वेदिक राज अपनाते आए हैं और वो है दातुन. गांव-देहात में लोग आज भी नीम और बबूल के दातुन से दांत साफ करते हैं और यही वजह है कि उनके दांत उम्रभर मजबूत और मोती जैसे सफेद रहते हैं.दातुन क्या है?दातुन दरअसल नीम, बबूल या करंज जैसे पेड़ों की टहनी से बना प्राकृतिक टूथब्रश है. इसे चबाने से दांतों की सफाई होती है, मसूड़ों की मसाज होती है और बैक्टीरिया का खात्मा होता है. सदियों पहले जब न तो टूथब्रश था और न ही केमिकल युक्त पेस्ट, तब दातुन ही ओरल हाइजीन का एकमात्र उपाय था.दातुन के फायदेप्राकृतिक एंटीसेप्टिक – नीम और बबूल की कड़वी टहनियों में एंटी-बैक्टीरियल और एंटीसेप्टिक गुण होते हैं.नेचुरल फ्लॉसिंग – दातुन चबाने से उसके रेशे दांतों के बीच जाकर फंसा हुआ खाना और प्लाक निकाल देते हैं.मसूड़ों की मजबूती – दातुन से मसूड़ों की हल्की मसाज होती है, जिससे ब्लड सर्कुलेशन बढ़ता है और मसूड़े मजबूत बनते हैं.पीलापन दूर – नियमित इस्तेमाल से दांतों का पीलापन कम होता है और दांत मोती जैसे सफेद बनते हैं.बुरी सांस से राहत – दातुन का कसैला रस मुंह की दुर्गंध को दूर करता है और सांसों को फ्रेश रखता है.टूथब्रश या दातुन?टूथब्रश: आसान और मॉडर्न, लेकिन पेस्ट में मौजूद फ्लोराइड और केमिकल लंबे समय तक नुकसान पहुंचा सकते हैं.दातुन: 100% नेचुरल, आयुर्वेदिक और बिना किसी साइड इफेक्ट के, दांतों और मसूड़ों दोनों के लिए लाभकारी.दातुन कैसे करें इस्तेमाल?सुबह-सुबह नीम या बबूल की पतली टहनी लें.उसका एक सिरा चबाकर रेशेदार बना लें.इसे धीरे-धीरे दांतों पर रगड़ें और मसूड़ों की मसाज करें.दिन में एक बार इसका इस्तेमाल करना पर्याप्त है.
- देशभर में नवरात्रि की तैयारी चल रही है सनातन धर्म को मानने वाले लोग शारदीय नवरात्रि का बेसब्री से इंतजार करते हैं. इस बार शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 22 सितंबर से शुरू हो कर 1 अक्टूबर को समाप्त होगा. शारदीय नवरात्रि के नौ दिनों तक माता जगत जननी जगदंबा की विधि विधान पूर्वक पूजा आराधना की जाती है. अनुसार नवरात्रि के इस पावन दिनों में भक्त माता रानी के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा आराधना करते हैं.उनको प्रसन्न करने के लिए प्रतिदिन उनके मंत्र का जाप करते हैं. इसके साथ ही माता रानी को प्रिय वस्तुओं का भोग भी लगाते हैं. ऐसी स्थिति में नवरात्रि के पूजा पाठ के साथ भोग का भी विशेष महत्व माना गया है. धार्मिक मान्यता के अनुसार माता दुर्गा को उनके प्रिय चीजों का भोग अर्पित करने से माता रानी बेहद प्रसन्न होती है. अपने भक्तों पर सुख समृद्धि शांति और शक्ति की वर्षा करती है ऐसी स्थिति में अगर आप भी नवरात्रि में पूजा आराधना कर रहे हैं तो प्रतिदिन माता रानी के प्रिय वस्तुओं का भोग जरूर लगाए.नौ दिनों तक लगाए इन चीजों का भोगअयोध्या के ज्योतिष पंडित कल्कि राम बताते हैं कि नवरात्रि शुरू होने वाली है. नवरात्रि की तैयारी चल रही है ऐसी स्थिति में नवरात्रि के 9 दिन तक हर दिन मां के अलग-अलग स्वरूप की पूजा आराधना का विधान है.हर देवी का प्रिय भोग भी अलग होता है. इस वजह से अगर आप नवरात्रि में मां दुर्गा के स्वरूप के अनुसार भोग अर्पित करते हैं तो ऐसा करने से माता रानी की विशेष कृपा प्राप्त होती है. नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा आराधना का विधान है. ऐसी स्थिति में मां शैलपुत्री को गाय के घी से बने वस्तुओं का भोग लगाना चाहिए. ऐसा करने से सभी तरह के रोग दूर होते हैं. दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा आराधना का विधान है. इस दिन माता रानी को मिश्री का भोग लगाना चाहिए.तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा आराधना की जाती है. ऐसी स्थिति में माता रानी को खीर का भोग लगाना चाहिए ऐसा करने से जीवन में सुख शांति बनी रहती है. चौथे दिन मां कुष्मांडा की पूजा आराधना की जाती है इस दिन मालपुआ का भोग लगाना चाहिए ऐसा करने से सभी दुख का नाश होता है.पांचवें दिन मां स्कंद माता की पूजा आराधना की जाती है इस दिन माता रानी को केले का भोग लगाना चाहिए. छठवें दिन मां कात्यायनी की पूजा आराधना की जाती है. इस दिन माता रानी को फल का भोग लगाना चाहिए. सातवें दिन मां काली रात्रि की पूजा आराधना की जाती है इस दिन माता रानी को गुड से बनी वस्तुओं का भोग लगाना चाहिए. आठवें दिन मां महागौरी की पूजा आराधना का विधान है. इस दिन माता रानी को नारियल का भोग लगाना चाहिए. ऐसा करने से संतान से जुड़ी समस्या दूर होती है. नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा आराधना का विधान है. इस दिन माता रानी को तिल से वाणी वस्तुओं का भोग लगाना चाहिए.
- शारदीय नवरात्रि 22 सितंबर से प्रारंभ हो रहे हैं। इस बार मां दुर्गा की सवारी हाथी है। हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार, नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा की भक्ति भाव से पूजा-अर्चना करने से जीवन में सुख-समृद्धि व खुशहाली आती है। आदिशक्ति मां दुर्गा का आशीर्वाद पाने के लिए यह नौ दिन अत्यंत खास माने गए हैं। मान्यता है कि इन दिनों में मां दुर्गा को उनके प्रिय फूल या पुष्प अर्पित करने से जातक की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और घर में धन-संपदा आती है। जानें नवरात्रि में मां दुर्गा को कौन-से पुष्प अर्पित करने चाहिए।1. लाल गुड़हल: देवी पुराण के अनुसार मां दुर्गा को लाल गुड़हल का फूल अतिप्रिय है। मान्यता है कि मां दुर्गा के पूजन में गुड़हल के फूल का इस्तेमाल उसी तरह से लाभकारी होता है जैसे भगवान शिव पर बेलपत्र का चढ़ाना। मान्यता है कि मां दुर्गा को गुड़हल का फूल अर्पित करने से व्यक्ति को सुख-सौभाग्य के साथ मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।2. गेंदे का फूल: नवरात्रि में मां दुर्गा को गेंदे का फूल अर्पित करना अत्यंत शुभ माना गया है। मान्यता है कि नवरात्रि पूजन में गेंदे का फूल प्रयोग करने से धन लाभ के साथ ज्ञान व बुद्धि की प्राप्ति होती है। साथ ही मां दुर्गा को इस फूल को अर्पित करने से नकारात्मकता दूर होती है।3. गुलाब का फूल: नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा को गुलाब का फूल अर्पित करना लाभकारी माना गया है। मान्यता है कि ऐसा करने से मां दुर्गा की असीम कृपा प्राप्त होती है और घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इसके साथ ही परिवार में सुख-समृद्धि व खुशहाली आती है।4. हरसिंगार के फूल: नवरात्रि में हरसिंगार के फूल मां दुर्गा को अर्पित करने से जीवन की परेशानियां दूर होने की मान्यता है। मान्यता है कि ऐसा करने से मानसिक तनाव दूर होता है और तरक्की मिलती है।5. कमल का फूल: मां दुर्गा को कमल का फूल भी प्रिय है। मान्यता है कि नवरात्रि में मां दुर्गा को कमल का फूल अर्पित करने से कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
- शारदीय नवरात्रि का पर्व हर साल देशभर में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस बार 22 सितंबर से शारदीय नवरात्रि आरंभ हो रहे हैं। इन 9 दिनों में मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरुपों की पूजा की जाती है। इन 9 दिनों का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि, जो भक्त इन दिनों में माता रानी की सच्ची उपासना करता है मां दुर्गा उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। शारदीय नवरात्रि का आरंभ आश्विन प्रतिपदा तिथि से होता है और समापन दशमी तिथि को होता है। वैसे को माता का वाहन शेर है लेकिन, नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा अलग-अलग वाहन से आगमन और प्रस्थान करती हैं। माता के अलग-अलग वाहन पर आने और जाने का प्रभाव भी अलग होता है। आइए जानते हैं नवरात्रि 2025 से जुड़ी बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी।नवरात्रि का आरंभ कब से हो रहा है?शारदीय नवरात्रि का आरंभ 22 सितंबर से हो रहा है और 2 अक्टूबर को दशमी तिथि के दिन नवरात्रि का समापन हो जाएगा। साथ ही इस बार नवरात्रि पर ग्रहों का बहुत ही शुभ संयोग बना हुआ है। नवरात्रि पर इस बार बुधादित्य राजयोग, भद्र राजयोग, धन योग (चंद्र मंगल युति तुला राशि में), त्रिग्रह योग (चंद्रमा बुध और सूर्य की युति कन्या राशि में), और गजेसरी राजयोग का शुभ संयोग रहने वाला है। नवरात्रि का आरंभ गजकेसरी राजयोग से हो रहा है क्योंकि, गुरु और चंद्रमा एक दूसरे से केंद्र भाव में होंगे। गुरु मिथुन राशि में और चंद्रमा कन्या राशि में गोचर करेंगे जिससे गजकेसरी राजयोग का निर्माण होगा। साथ ही इस बार मां दुर्गा भी गज पर सवाल होकर आ रही हैं तो यह बेहद ही दुर्लभ संयोग हैं।नवरात्रि 2025 मां दुर्गा का वाहन ?शशिसूर्ये गजारूढ़ा , शनिभौमे तुरंगमे ।गुरुशुक्रे च दोलायां बुधे नौका प्रकीर्तिता ।।फलम् - गजे च जलदा देवी , छत्रभङ्ग तुरंगमे ।नौकायां सर्व सिद्धिस्यात् दोलायां मरणं धुव्रम् ।।इस बार शारदीय नवरात्रि का आरंभ 22 सितंबर सोमवार से हो रहा है। जब भी नवरात्रि का आरंभ रविवार या सोमवार से होता है तो उस दिन माता का आगमन गज यानी हाथी पर होता है। श्रीमदेवी भागवत महापुराण के अनुसार, जब भी माता का आगमन हाथी पर होता है तो यह बेहद ही शुभ माता जाता है। माता के हाथी पर आगमन का अर्थ है कि कृषी में वृद्धि होती साथ ही देश में धन समृद्धि में बढ़ोतरी देखने को मिलेगी।नवरात्रि 2025 मां दुर्गा के प्रस्थान का वाहन ?शशिसूर्यदिने यदि सा विजया, महिषा गमनेरूज शोककरा,शनिभौमे यदि सा विजया चरणायुधयानकरी विकला ,बुधशुक्रे यदि सा विजया गजवाहनगा शुभवृष्टिकरा ,सुरराजगुरौ यदि सा विजया नरवाहनगा शुभसौख्यकरा ।।शारदीय नवरात्रि का समापन 2 अक्टूबर गुरुवार विजयदशमी के दिन होगा। जब भी माता का प्रस्थान गुरुवार के दिन होता है तो मां दुर्गा मनुष्य की सवारी करके प्रस्थान करती हैं। इस बार भी मां मनुष्य की सवारी करके प्रस्थान करेंगे जिसे बहुत ही शुभ संकेत माना गया है। इसका मतलब है कि लोगों के बीच प्रेम बढ़ेगा और सुथ शांति बनी रहेगी।नवरात्रि 2025 किस दिन कौनसी देवी की पूजा करें?1) नवरात्रि पहला दिन 22 सितंबर 2025 : मां शैलपुत्री की पूजा2) नवरात्रि दूसरे दिन 23 सितंबर 2025 : मां ब्रह्मचारिणी की पूजा3) नवरात्रि तीसरे दिन 24 सितंबर 2025 : मां चंद्रघंटा की पूजा4) नवरात्रि तीसरे दिन 25 सितंबर 2025 : मां चंद्रघंटा की पूजा5) नवरात्रि चौथा दिन 26 सितंबर 2025 : मां कूष्माण्डा की पूजा6) नवरात्रि पांचवां दिन 27 सितंबर 2025 : मां स्कंदमाता की पूजा7) नवरात्रि छठा दिन 28 सितंबर 2025 : मां कात्यायनी की पूजा8) नवरात्रि सातवां दिन 29 सितंबर 2025 : मां कालरात्रि की पूजा9) नवरात्रि आठवा दिन 30 सितंबर 2025 : मां महागौरी सिद्धिदात्री की पूजा10) नवरात्रि नौवां दिन 1 अक्टूबर 2025 : मां सिद्धिदात्री की पूजा11 ) नवरात्रि दसवा दिन 2 अक्तूबर 2025 : विजयदशमीबता दें कि इस बार नवरात्रि में तृतीया तिथि दो दिन लग रही है। इसलिए 24 और 25 सितंबर दोनों ही दिन मां चंद्रघंटा की उपासना की जाएगी।
- माता पार्वती ही संसार की समस्त शक्तियों का स्रोत हैं। उन्ही का एक रूप माँ दुर्गा को भी माना जाता है। उनपर आधारित ग्रन्थ "दुर्गा सप्तसती" में माँ के 108 नामों का उल्लेख है। प्रातःकाल इन नामों का स्मरण करने से मनुष्य के सभी दुःख दूर होते हैं। आइये उन नामों और उनके अर्थों को जानें:सती: भगवान शंकर की पहली पत्नी। अपने पिता प्रजापति दक्ष के यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति देने वाली इन देवी का माहात्म्य इतना है कि उसके बाद पति परायण सभी स्त्रियों को सती की ही उपमा दी जाने लगी।साध्वी: ऐसी स्त्री जो आशावादी हो।भवप्रीता: जिनकी भगवान शिव पर अगाध प्रीति हो।भवानी: समस्त ब्रह्माण्ड ही जिनका भवन हो।भवमोचनी: संसार बंधनों से मुक्त करने वाली।आर्या: देवी, पुरुषश्रेष्ठ की पत्नी।दुर्गा: दुर्गमासुर का वध करने वाली, अपराजेय।जया: जो सदैव विजयी हो।आद्या: सभी का आरम्भ।त्रिनेत्रा: तीन नेत्रों वाली।शूलधारिणी:शूल को धारण करने वाली।पिनाकधारिणी: जो भगवान शिव का धनुष धारण कर सकती हो।चित्रा: अद्वितीय सुंदरी।चण्डघण्टा: प्रचण्ड स्वर में नाद करने वाली।महातपा:अत्यंत कठिन तपस्या करने वाली।मन: मानस शक्ति।बुद्धि: सर्वज्ञता।अहंकारा: अभिमान करने वाली।चित्तरूपा: वो जो मनन की अवस्था में है।चिता: मृत्युशैय्या के समान।चिति: सब को चेतना प्रदान करने वाली।सर्वमन्त्रमयी: सभी मंत्रों का ज्ञान रखने वाली।सत्ता: जो सबसे परे है।सत्यानन्दस्वरूपिणी: जो अनन्त आनंद का रूप हो।अनन्ता: जिनका कोई अंत नहीं।भाविनी: सभी की जननी।भाव्या: ध्यान करने योग्य।भव्या: भव्य स्वरूपा।अभव्या: जिससे बढ़कर भव्य कुछ नहीं।सदागति: मोक्ष प्रदान करने वाली।शाम्भवी: शम्भू (भगवान शंकर का एक नाम) की पत्नी।देवमाता: देवताओं की माता।चिन्ता: चिंतन करने वाली।रत्नप्रिया: जिन्हे आभूषणों से प्रेम हो।सर्वविद्या: ज्ञान का भंडार।दक्षकन्या: प्रजापति दक्ष की पुत्री।दक्षयज्ञविनाशिनी: दक्ष के यज्ञ का विनाश करने वाली।अपर्णा: तपस्या के समय पूर्ण निराहार रहने वाली।अनेकवर्णा: अनेक रंगों वाली।पाटला: रक्तिम (लाल) रंग वाली।पाटलावती: लाल पुष्प एवं वस्त्र धारण करने वाली।पट्टाम्बरपरीधाना: रेशमी वस्त्र धारण करने वाली।कलामंजीरारंजिनी: पायल को प्रसन्नतापूर्वक धारण करने वाली।अमेय: जो सीमा से परे हो।विक्रमा: अनंत पराक्रमी।क्रूरा: दुष्टों के प्रति क्रूर।सुन्दरी: अनिंद्य सुंदरी।सुरसुन्दरी: जिनके सौंदर्य की कोई तुलना ना हो।वनदुर्गा: वन की देवी।मातंगी: मतंगा की देवी।मातंगमुनिपूजिता: गुरु मतंगा द्वारा पूजनीय।ब्राह्मी: भगवान ब्रह्मा की शक्ति का स्रोत।माहेश्वरी: महेश की शक्ति।इंद्री: देवराज इंद्र की शक्ति।कौमारी: किशोरी।वैष्णवी: भगवान विष्णु की शक्ति।चामुण्डा: चंड और मुंड का नाश करने वाली।वाराही: वराह पर सवार होने वाली।लक्ष्मी: सौभाग्य की देवी।पुरुषाकृति: जो पुरुष का रूप भी धारण कर सके।विमिलौत्त्कार्शिनी: आनंद प्रदान करने वाली।ज्ञाना: ज्ञानी।क्रिया: हर कार्य का कारण।नित्या: नित्य समरणीय।बुद्धिदा: बुद्धि प्रदान करने वाली।बहुला: जो विभिन्न रूप धारण कर सके।बहुलप्रेमा: सर्वप्रिय।सर्ववाहनवाहना: सभी वाहनों पर सवार होने वाली।निशुम्भशुम्भहननी: शुम्भ एवं निशुम्भ का वध करने वाली।महिषासुरमर्दिनि: महिषासुर का वध करने वाली।मधुकैटभहंत्री: मधु एवं कैटभ का नाश करने वाली।चण्डमुण्ड विनाशिनि: चंड और मुंड का नाश करने वाली।सर्वासुरविनाशा: सभी राक्षसों का नाश करने वाली।सर्वदानवघातिनी: सबके संहार में समर्थ।सर्वशास्त्रमयी: सभी शास्त्रों में निपुण।सत्या: सदैव सत्य बोलने वाली।सर्वास्त्रधारिणी: सभी शस्त्रों को धारण करने वाली।अनेकशस्त्रहस्ता: हाथों में अनेक हथियार धारण करने वाली।अनेकास्त्रधारिणी: अनेक हथियारों को धारण करने वाली।कुमारी: कौमार्य धारण करने वाली।एककन्या: सर्वोत्तम कन्या।कैशोरी: किशोर कन्या।युवती: सुन्दर नारी।यति: तपस्विनी।अप्रौढा: जो कभी वृद्ध ना हो।प्रौढा: प्राचीन।वृद्धमाता: जगतमाता, शिथिल।बलप्रदा: बल प्रदान करने वाली।महोदरी: ब्रह्माण्ड को धारण करने वाली।मुक्तकेशी: खुले केशों वाली।घोररूपा: भयानक (दुष्टों के लिए) रूप वाली।महाबला: अपार शक्ति की स्वामिनी।अग्निज्वाला: अग्नि के समान तेजस्विनी।रौद्रमुखी: भगवान रूद्र के समान रूप वाली।कालरात्रि: रात्रि के समान काले रंग वाली।तपस्विनी: तपस्या में रत।नारायणी: भगवान नारायण की शक्ति।भद्रकाली: काली का रौद्र रूप।विष्णुमाया: भगवान विष्णु की माया।जलोदरी: ब्रह्माण्ड निवासिनी।शिवदूती: भगवान शिव की दूत।करली: हिंसक।अनन्ता: जिसके स्वरुप का कोई छोर ना हो।परमेश्वरी: प्रथम पूज्य देवी।कात्यायनी: ऋषि कात्यायन द्वारा पूजनीय।सावित्री: सूर्यनारायण की पुत्री।प्रत्यक्षा: वास्तविकता।ब्रह्मवादिनी: हर स्थान पर वास करने वाली।
- अबसे कुछ ही दिन में शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो जाएगी। अमूनन नवरात्रि नौ दिन की होती है लेकिन इस बार इसे 10 दिन के लिए मनाया जा रहा है। बता दें कि हर साल नवरात्रि अश्विन महीने की शुक्ल पक्ष को पड़ती है। नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए लोग कई तरहके उपाय करते हैं। मान्यता भी यही है कि नवरात्रि पर अगर पूरे विधि विधान के साथ मां दुर्गा की पूजा कर ली जाए तो उनकी कृपा बरसती है। इस दौरान लोग घर में अखंड ज्योत भी जलाते हैं। हिंदू धर्म में अखंड ज्योत का खास महत्व है। अगर वास्तु के हिसाब से आप घर में अखंड़ ज्योत रखने के लिए सही दिशा का चुनाव करेंगे तो इससे आपकी हर इच्छा पूरा होगी।अखंड ज्योत रखने की सही दिशाबता दें कि पूरी नवरात्रि घर में अखंड ज्योत जलाने की परंपरा होती है। वास्तु शास्त्र के अनुसार इस ज्योत को सही दिशा में रखने से घर में खूब बरकत आती है। शास्त्र के हिसाब से अखंड ज्योत की दिशा हमेशा दक्षिण-पूर्व की ओर ही होनी चाहिए। दिया या फिर अखंड ज्योत के लिए ये दिशा सबसे ज्यादा अच्छी मानी जाती है। अगर बिना किसी बाधा के इस दिशा में पूरी नवरात्रि अखंड ज्योत जलती रहे तो घर के सदस्यों के जीवन में पैसों का फ्लो अच्छा होगा। वहीं लोगों की हेल्थ भी अच्छी होगी। अच्छा माहौल होगा तो घर का हर एक कोना पॉजिटिविटी से भर जाएगी।नवरात्रि से पहले खरीद लें ये चीजेंअगर नवरात्रि से पहले कुछ चीजों को खरीदकर घर में रख दिया तो इससे देवी मां प्रसन्न होती हैं। ज्योतिष शास्त्र के हिसाब से नवरात्रि से पहले महालक्ष्मी यंत्र, नवग्रह यंत्र, मां दुर्गा के श्रृंगार का सामान और शंख इत्यादि को खरीद लेना चाहिए। इस चीजों को पूजा में शामिल करना काफी शुभ होता है।
- हर साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत होती है। इन दिनों मां के 9 स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। 9 दिनों तक चलने वाले इस पर्व में भक्त व्रत, उपवास, घटस्थापना, दुर्गा पूजन और कन्या पूजन जैसे अनुष्ठान करते हैं। माना जाता है कि नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा की उपासना करने से घर में सुख-शांति, समृद्धि और नकारात्मकता से मुक्ति मिलती है। इस साल मां दुर्गा की आराधना व पूजन का पावन पर्व शारदीय नवरात्र का प्रारंभ 22 सितंबर से होने जा रहा है। इस बार नवरात्र में माता रानी हाथी पर सवार होकर आ रही हैं। मां दुर्गा का आगमन और प्रस्थान सप्ताह के दिन के अनुसार होता है। इस बार नवरात्र का प्रारंभ 22 सितंबर यानि सोमवार से हो रहा है। यदि नवरात्र की प्रतिपदा सोमवार या रविवार को हो तो मां दुर्गा गज (हाथी) पर सवार होकर आती हैं। हाथी पर सवार होकर आना शुभ लक्षण का प्रतीक है। पूरे साल सुख-समृद्धि व सौभाग्य का संचार होगा।कलश स्थापना मुहूर्त-आचार्य ने बताया कि आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 22 सितंबर को देर रात 1.23 मिनट पर हो रही है। जो 23 सितंबर को रात 2.55 बजे समाप्त होगी। ऐसे में 22 सितंबर से नवरात्र शुरू होगा व कलश स्थापना की जाएगी। कलश स्थापना सुबह 6.09 से 8.06 बजे तक किया जा सकता है। अगर दोपहर में घट स्थापना कर रहे हैं तो अभिजीत मुहूर्त दोपहर 11.49 से 12.38 बजे तक व्याप्त रहेगा। यह समय स्थापना के लिए उपयुक्त माना जाता है।10 दिनों के नवरात्रइस साल 9 नहीं बल्कि 10 दिन के शारदीय नवरात्र होंगे। एक तिथि में वृद्धि हो रही है। नवरात्र में तिथि की वृद्धि अति शुभ फलदायक मानी जाती है। शारदीय नवरात्रि 22 सितंबर से शुरू होंगे। नवरात्रि की अष्टमी, नवमी पर कन्या पूजन और दशमी पर रावण दहन होता है।10 दिनों के नवरात्र क्यों?- इस साल श्राद्ध पक्ष में एक तिथि का क्षय और नवरात्र में एक तिथि में वृद्धि हो रही है, इसलिए इस साल 9 दिन के नहीं 10 दिन के नवरात्र होंगे। इस तरह इस बार शारदीय नवरात्र में चतुर्थी तिथि की वृद्धि हो रही है। नवरात्र में तिथि की वृद्धि अति शुभ फलदायक मानी जाती है। इस कारण से नवरात्र का प्रभाव शुभ की प्राप्त होगा।
- सर्वपितृ अमावस्या, पितृपक्ष का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। यह तिथि उन सभी ज्ञात-अज्ञात पितरों को समर्पित होती है जिनकी मृत्यु तिथि का पता नहीं होता या जिनका श्राद्ध किसी कारणवश न किया जा सका हो। ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष की समाप्ति पर पितरों की आत्माएं अपने परिजनों को आशीर्वाद देकर पुनः अपने लोक को लौटती हैं। ऐसे में यदि इस दिन श्रद्धा और नियमों के अनुसार तर्पण, पिंडदान व दान किया जाए, तो पूर्वज अत्यंत प्रसन्न होते हैं और अपने वंशजों को सुख, शांति और समृद्धि का वरदान देते हैं।इस शुभ अवसर पर एक विशेष परंपरा का भी महत्व है , दान की टोकरी तैयार करना। इस टोकरी में जीवनोपयोगी वस्तुएं जैसे अनाज, वस्त्र, तिल, गुड़, पंचमेवा, दक्षिणा, और श्राद्ध सामग्री रखकर किसी ब्राह्मण, मंदिर या ज़रूरतमंद व्यक्ति को दान दिया जाता है। यह न केवल पूर्वजों की आत्मा की तृप्ति का साधन बनता है, बल्कि दान करने वाले व्यक्ति के जीवन में भी धन, आरोग्य और सौभाग्य बना रहता है।दान की टोकरी क्यों बनाई जाती है?सर्वपितृ अमावस्या के दिन दान का विशेष महत्व होता है, क्योंकि यह दिन पितरों को विदाई देने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का अंतिम अवसर होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितरों को प्रसन्न करने का सबसे सरल और प्रभावी माध्यम दान है। यही कारण है कि इस दिन विशेष रूप से दान की टोकरी तैयार करने की परंपरा है।इस टोकरी में रोजमर्रा की जरूरी वस्तुएं जैसे अनाज, तिल, गुड़, वस्त्र, दक्षिणा, आदि रखी जाती हैं और श्रद्धा भाव से इसे किसी ब्राह्मण, मंदिर या ज़रूरतमंद को अर्पित किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह दान पितरों तक पहुंचता है और उनकी आत्मा को तृप्त करता है। बदले में वे अपने वंशजों को सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य और शांति का आशीर्वाद देते हैं। इस परंपरा से न सिर्फ पितृ कृपा मिलती है, बल्कि यह परिवार की उन्नति और कल्याण का मार्ग भी प्रशस्त करती है।दान की टोकरी में क्या रखें और कैसे करें दान?सर्वपितृ अमावस्या पर जब हम अपने पितरों को विदा देने के भाव से तर्पण और दान करते हैं, तो एक विशेष दान की टोकरी तैयार करने की परंपरा बहुत शुभ मानी जाती है। यह टोकरी पितरों की तृप्ति और कृपा पाने का श्रेष्ठ माध्यम मानी जाती है। आइए जानें इसमें क्या-क्या रखना चाहिए और इसे कैसे दान करना चाहिए।दान की टोकरी में क्या रखें?चावल, गेहूं और काले तिल टोकरी में अवश्य रखें। यह पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए अति आवश्यक माने गए हैं।सफेद या पीले रंग का कपड़ा (धोती, साड़ी या सुथनी) रखें। इससे पितरों को शांति और संतोष प्राप्त होता है।हरी सब्जियां जैसे लौकी, कद्दू का दान करने से पितृदोष का शमन होता है और जीवन में रुकावटें दूर होती हैं।तांबे या पीतल के बर्तन शुद्ध धातु के पात्र जैसे लोटा या थाली टोकरी में रखें। यह मां लक्ष्मी की कृपा पाने का मार्ग खोलते हैं।थोड़ी सी दक्षिणा रुपए या सिक्के, गुड़, खील या कोई मिठाई ज़रूर रखें। यह पूर्ण श्रद्धा का प्रतीक होता है।दान की विधि कैसे करें?सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें और शांत मन से पितरों का ध्यान करें।दक्षिण दिशा की ओर मुख करके तर्पण करें, यानी जल अर्पित करें।फिर, श्रद्धा और प्रेमपूर्वक यह टोकरी किसी ब्राह्मण, गौशाला या ज़रूरतमंद व्यक्ति को भेंट करें।दान सदा प्रसन्न मन से करें, तभी उसका पूर्ण फल प्राप्त होता है।
- यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में पितृदोष हो तो जीवन में विघ्न-बाधाएं आती ही रहती हैं। दरअसल, पितृदोष पूर्वजन्म में किए गए पाप कर्मों का फल अथवा पितरों के पाप के दंड को भोगता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली में सूर्य, गुरु, चंद्रमा, मंगल, शुक्र, बुध, शनि आदि की युति जब राहु के साथ बनती है अथवा राहु के साथ अन्य ग्रहों की युति बनती है तो पितृदोष होता है। इसी प्रकार जब हाथ में बृहस्पति पर्वत और मस्तिष्क रेखा के बीच से निकलकर आ रही रेखा बृहस्पति और मस्तिष्क रेखा को काटती है तो हस्तरेखा शास्त्रानुसार यह पितृदोष का सूचक है। ज्योतिष शास्त्र में इसे मंगल का कारक भी माना गया है, क्योंकि मंगल ज्योतिष शास्त्रानुसार रक्त संबंध को जोड़ता है। यही कारण है कि विद्वान पितृदोष की तुलना मंगलदोष से करते हैं। कुछ उपायों से पितृदोष के असर को कम किया जा सकता है।कैसे करें निवारणपितृ पक्ष में प्रतिदिन भोजन करने से पहले अपने आहार में से कुछ हिस्सा गाय, कुत्ते और कौवे या अन्य पक्षी को जरूर दें।पितृ पक्ष के पहले दिन एक पीपल का पेड़ किसी सुरक्षित स्थान अथवा मंदिर में लगाएं। पीपल का पेड़ लगाने से पहले संकल्प लें- ‘मैं यह पौधा अपने पूर्वओं के लिए एवं जाने-अनजाने में मेरे तथा परिवार के किसी अन्य सदस्यों से हुई गलतियों की माफी मांगते हुए लगा रहा हूं। इसके माध्यम से मैं अपने पापों का प्रायश्चित करना चाहता हूं और पूरे वर्ष इस पेड़ की सेवा करूंगा तथा प्रत्येक महीने की अमावस्या को भोजन दान करूंगा।’पितृ पक्ष के सोलह दिनों तक घर में प्रतिदिन श्रीमद्भागवद्गीता के ग्यारहवें अध्याय का पाठ करें अथवा इस दौरान रोजाना सूर्यास्त के समय पीपल पेड़ के नीचे दक्षिण मुख कर चार बत्ती वाला दीपक, सरसों के तेल में लोबान मिलाकर जलाएं तथा प्रार्थना करें कि पितृ मुझे और मेरे परिवार को पितृदोष से मुक्त करें।श्राद्ध के दौरान किसी बालक या जरूरतमंद को भोजन कराएं अथवा भोजन दान भी कर सकते हैं। भोजन देने से पहले संकल्प करें कि मैं यह भोजन अपने पितरों को समर्पित करता हूं। आपका आशीर्वाद और मार्गदर्शन प्राप्त हो।पितृ पक्ष में नागबलि, नारायण बलि, त्रिपिंडी श्राद्ध आदि का पाठ नित्य करने से भी पितृदोष का प्रभाव कम होता है। इन दिनों पूर्वजों का ध्यान कर दो मूली दान करने या गाय को खिलाने से भी पितरों का आशीर्वाद मिलता है।पितृ पक्ष में रोजाना स्नान करने के बाद एक माला महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें। इससे भी पितृदोष दूर होता है। इसके अलावा आप प्रत्येक महीने की नाग पंचमी का व्रत भी एक साल तक के लिए कर सकते हैं।
- श्राद्ध संस्कार हिंदू धर्म में पितरों की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए अत्यंत आवश्यक माना गया है। पिंडदान कहां किया जाए, यह अक्सर उलझन का विषय बनता है, क्योंकि लोग स्थान, परंपरा और श्रद्धा के आधार पर निर्णय नहीं ले पाते, जिससे भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है।ब्रह्म कपाल : यह स्थल हिमालय पर्वत पर स्थित बद्रीधाम में है। इसे वैकुंठ धाम भी कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि महाभारत के बाद पांडवों ने अपने सभी पितरों का पिंडदान यहीं किया था। अलकनंदा नदी के तट पर बसे बद्रीनाथ धाम स्थित ब्रह्म कपाल में पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष मिलता है। पिंडदान का यह सर्वोच्च स्थान माना गया है।जगन्नाथ पुरी : यह भगवान जगदीश का तारण क्षेत्र है। इसकी स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी। इसकी भी प्रमुख तीर्थों में गणना की जाती है, इसलिए यहां भी पिंडदान करने से पितरों को शांति मिलती है।ओंकारेश्वर : यह स्थान नर्मदा नदी के तट पर बसा हुआ है और यहां ब्रह्मा-विष्णु-महेश का निवास माना गया है। मान्यता है कि यहां पितरों को मोक्ष अवश्य प्राप्त होता है।पुष्कर : राजस्थान स्थित पुष्कर को तीर्थों का राजा भी कहा गया है। यहां पर पिंडदान का अधिक महत्व है। कहते हैं कि यहां पिंडदान करने से करोड़ों यज्ञ के बराबर पुण्य मिलता है।हरिद्वार : यह पावन तीर्थ स्थल है। यहां हर की पौड़ी पर श्राद्ध करने का विधान है। मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से पितरों की मुक्ति का मार्ग खुलता है।प्रयागराज : गंगा-यमुना-सरस्वती तीनों पवित्र नदियों का संगम यहां यानी प्रयागराज में होता है। यह भगवान भारद्वाज का तपोक्षेत्र है। इस संगम में पिंडदान का अधिक महत्व है।पशुपतिनाथ : यह नेपाल में गंडकी नदी के तट पर स्थित भगवान का धाम है। भगवान कपिल ने इस धाम का महत्व बताया है और यहां पिंडदान करने से पितृ खुश होते हैं।द्वारिका : श्रीकृष्ण की पावन धरती द्वारिका में पिंडदान किया जाता है। कहते हैं कि श्रीकृष्ण को भी यहीं मुक्ति मिली थी, इसलिए यहां पिंडदान करने से भी पितरों को मुक्ति प्राप्त होती है।नासिक : इसे कुंभ क्षेत्र कहा जाता है। यहां अमृत की बूंदें गिरी थीं। यहां भी पिंडदान किया जा सकता है।महाकाल : उज्जैन नगरी में शिप्रा नदी के तट पर भगवान शिव का तपोस्थल है। यहां से सीधे महाकाल के चरणों में जगह मिलती है। कहा जाता है कि यहां पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष मिलता है।रामेश्वरम : यह स्थल भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित है। यहां श्रीराम ने भगवान शिव की तपस्या की थी। इस वजह से यह भूमि पितरों को मुक्ति दिलाती है।कैलास मानसरोवर : भगवान शिव के इस पावन क्षेत्र में पिंडदान करने से पितरों को सीधे वैकुंठ की प्राप्ति होती है। इसके अलावा वृंदावन की भूमि को भी पिंडदान के योग्य माना गया है।गया : धर्मशास्त्र के अनुसार, गया की 54 वेदियों में विष्णु पद प्रथम है। इसके दर्शन मात्र से पितर नारायण रूप हो जाते हैं। फल्गु नदी में स्नान और तर्पण करने से पितरों को देव योनि मिल जाती है। हिंदू समाज का यह दृढ़ विश्वास है कि गया में श्राद्ध पिंडदान करने से उसकी सात पीढ़ियों के पितरों को मुक्ति मिलती है।
- भारतीय वास्तुशास्त्र में दक्षिण दिशा को लेकर विशेष सावधानियां बरती जाती हैं. इसे यम (मृत्यु के देवता) से जोड़ा गया है, जिसके चलते कई लोग दक्षिणमुखी घर खरीदने से बचते हैं. वे मानते हैं कि ऐसा घर उनके लिए दुर्भाग्य लेकर आएगा. लेकिन यह धारणा पूरी तरह सही नहीं है.ऊर्जा का असंतुलन और मानसिक प्रभावदक्षिण दिशा गर्म और तीव्र ऊर्जा वाली होती है. यदि इसका प्रबंधन ठीक ढंग से न किया जाए तो यह घर में तनाव, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और पारिवारिक कलह पैदा कर सकती है. दक्षिणमुखी घरों में सूर्य की रोशनी कम होती है, जिससे वातावरण उदासीपूर्ण रह सकता है और लोग मानसिक तनाव या डिप्रेशन का शिकार हो सकते हैं. उन्होंने स्पष्ट किया कि वास्तुशास्त्र केवल ऊर्जा संतुलन पर ध्यान देता है, न कि अंधविश्वास पर.धन-संपत्ति और व्यवसाय पर प्रभावदक्षिणमुखी घरों में धन टिकता नहीं और खर्चे बढ़ जाते हैं. यदि मुख्य द्वार वास्तु नियमों के अनुसार न बनाया गया हो, तो यह आर्थिक हानि और व्यवसाय में रुकावट का कारण बन सकता है. यह नकारात्मक प्रभाव केवल तब होता है जब वास्तु नियमों का पालन नहीं किया गया हो.सामाजिक मान्यता और मानसिक तनावसमाज में पहले से फैली मान्यताओं के कारण लोग दक्षिणमुखी घर को लेकर डर या संदेह रखते हैं. इस मानसिक तनाव का असर घर के वातावरण और परिवार के स्वास्थ्य पर पड़ता है.दक्षिणमुखी घर को शुभ बनाने के उपायदक्षिणमुखी घर भी सही उपायों से बहुत शुभ हो सकता है. मुख्य द्वार दक्षिण-पूर्व ( में होना चाहिए. उत्तर और उत्तर-पूर्व भाग खुला और साफ-सुथरा रखें. दक्षिण दिशा की दीवारें भारी और ऊँची और उत्तर दिशा हल्की रखें. घर में वास्तु यंत्र, दर्पण और पौधों का उचित प्रयोग करें. नियमित हवन, दीपक जलाना और मंत्रों का जाप सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाने में मदद करता है.केवल दिशा के नाम पर घर को अशुभ मानना गलत है. दक्षिणमुखी घर सही योजना और वास्तु उपायों के साथ घरवालों के लिए सुख, सफलता और समृद्धि लाने वाला बन सकता है. यह केवल मिथक नहीं, बल्कि सही प्रबंधन और ऊर्जा संतुलन का परिणाम है.
- भाद्रपद की पूर्णिमा से आश्विन मास की अमावस्या तक श्राद्ध पक्ष चलता है जिसे पितृपक्ष भी कहते हैं। यदि आप इस दौरान अपने पितरों का श्राद्ध, तर्पण या पिंडदान करने जा रहे हैं तो यह भी जान लें कि शास्त्रों के अनुसार किस स्थान पर श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए और किस जगह पर श्राद्ध करना शुभ माना जाता है।वर्जित है इन 4 जगहों पर श्राद्ध कर्म करनादेव स्थान: किसी मंदिर के भीतर या परिसर में या किसी भी अन्य देवस्थान श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए क्योंकि यह देवभूमि होती है। पंडित या विद्वान की सलाह पर ही स्थान का चयन करें।अपवित्र भूमि: किसी भी प्रकार से अपवित्र हो रही भूमि पर भी श्राद्ध नहीं करते हैं। कांटेदार भूमि या बंजर भूमि पर भी श्राद्ध नहीं करना चाहिए। जहां लोग खुले में मल-मूत्र त्यागने जाते हैं वहां भी श्राद्ध नहीं करना चाहिए भले ही उस भूमि को शुद्ध कर लिया गया हो।दूसरों की भूमि : किसी दूसरे की व्यक्तिगत भूमि पर भी श्राद्ध नहीं करना चहिए। यदि दूसरे के घर या भूमि पर श्राद्ध करना पड़े तो किराया या दक्षिणा भूस्वामी को दे देना चाहिए।शमशान : किसी ऐसे शमशान में श्राद्ध नहीं कर सकते हैं जिसे तीर्थ नहीं माना जाता। देश में कुछ ऐसे श्मशान हैं जिन्हें तीर्थ माना जाता है। जैसे उज्जैन का चक्रतीर्थ शमशान घाट को तीर्थ का दर्जा प्राप्त है। हालांकि ऐसी जगहों पर श्राद्ध करना मजबूरी हो तो ही करें। वैसे तीर्थ शमशान में श्राद्ध करने के पहले किसी विद्वान से सलाह जरूर लें।
- पितृ पक्ष 7 सितंबर, रविवार से है और इनका समापन 21 सितंबर, रविवार के दिन ही सर्व पितृ अमावस्या के दिन होगा. पितृ पक्ष के दिन पितरों का तर्पण, श्राद्ध और तर्पण करने का विधान बताया गया है.पंचांग के मुताबिक, पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से शुरू होकर आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर समाप्त होते हैं. मान्यताओं के अनुसार, इन दिनों के लिए पितर धरती पर आते हैं और अपने लोगों को आशीर्वाद देकर जाते हैं.ज्योतिषियों के मुताबिक, पितृ पक्ष में लोग अपने पितरों का पिंडदान या श्राद्ध कर्म करने के लिए कई तीर्थस्थलों जैसे गया, वाराणसी, इलाहाबाद, हरिद्वार आदि जगहों पर जाते हैं जिससे पितरों की आत्मा को शांति प्रदान होती है. लेकिन कई बार तीर्थस्थलों पर जाकर श्राद्ध कर्म करना संभव नहीं हो पाता है, जिसके कारण लोग अपने घरों पर ही ब्राह्मण को बुलाकर श्राद्ध कर्म या पिंडदान की प्रक्रिया पूरी कर लेते हैं. तो चलिए जानते हैं कि घर पर पितरों का श्राद्ध और तर्पण करने की पूरी विधि क्या है.पितृ पक्ष में घर पर श्राद्ध करने की विधिघर पर श्राद्ध करने से लिए सबसे पहले जल्दी उठकर स्नान करें और सफेद रंग के साफ सुथरे वस्त्र पहनें. उसके बाद घर की किसी शांत या खुली जगह पर आसन बिछाएं. फिर, उस पर कपड़ा डालकर अपने पितर की तस्वीर रखें और उनकी तस्वीर के आगे तांबे का लोटा रखें. उस लोटे में जल, काले तिल और कुश डालें.उसके बाद, दक्षिण दिशा की ओर मुख करके हाथ में जल, तिल और कुश लें और पितरों का स्मरण करते हुए तर्पण करें. इसके बाद पितरों को जल अर्पित करते हुए 'ऊं पितृदेवाय नम: मंत्र का जाप करें.याद रखें कि पितरों का तर्पण कुतप वेला यानी दोपहर में ही करें क्योंकि इस वेला में तर्पण का विशेष महत्व होता है. कुतुप वेला दोपहर 12 बजकर 24 मिनट तक होती है.फिर, पितरों को सात्विक भोजन अर्पित करें जैसे खिचड़ी, खीर, चावल, मूंग आदि और यह सात्विक भोजन केले के पत्ते पर ही रखें. उसके बाद संभव हो तो घर पर बुलाए ब्राह्मण या किसी गरीब को भोजन या दान दें.
- भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से पितृपक्ष प्रारंभ होते हैं। इनका समापन आश्विन मास की अमावस्या तिथि पर होता है। इस बार 7 सितंबर रविवार को पितृपक्ष की शुरुआत हो चुकी है, जो 21 सितंबर रविवार तक रहेगा। यह अवधि मुख्य रूप से पूर्वजों की आत्मशांति के लिए श्राद्ध कर्म के लिए जानी जाती है। पितृपक्ष का सनातन धर्म में बहुत ही विशेष महत्व होता है। मान्यताओं के अनुसार, इन दिनों पितृ अपने परिवार को आशीर्वाद देने का लिए धरती पर आते हैं। उनकी आत्मा की शांति के लिए तर्पण आदि कार्य किए जाते हैं। कहा जाता है कि विधि विधान से पितरों के नाम से तर्पण आदि करने से वंश की वृद्धि होती है और पितरों के आशीर्वाद से व्यक्ति को सुख सौभाग्य की प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार, पितृपक्ष में कुछ नियमों का पालन करना चाहिए। वरना पितृ नाराज हो जाते हैं। अगर आप इन नियमों की अनदेखी करते हैं तो पितर नाराज हो जाते हैं।ज्योतिषाचार्य ने बताया कि पितृपक्ष में मृत्यु की तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है। अगर किसी मृत व्यक्ति की तिथि ज्ञात न हो तो ऐसी स्थिति में अमावस्या तिथि पर श्राद्ध किया जाता है। इस दिन सर्वपितृ श्राद्ध योग माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पितृ पक्ष के दौरान पितर संबंधित कार्य करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस पक्ष में विधि-विधान से पितर संबंधित कार्य करा जाए तो पितरों का आर्शावाद प्राप्त होता है।श्राद्ध पक्ष के दौरान श्रीमद्भागवत गीता के सातवें अध्याय का माहात्म्य पढ़कर फिर पूरे अध्याय का पाठ करना चाहिए। इस पाठ का फल आत्मा को समर्पित होता है। आश्विन कृष्ण प्रतिपदा इस तिथि को नाना-नानी के श्राद्ध के लिए सही बताया गया है। इस तिथि को श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। यदि नाना-नानी के परिवार में कोई श्राद्ध करने वाला न हो और उनकी मृत्युतिथि याद न हो, तो आप इस दिन उनका श्राद्ध कर सकते हैं।पंचमी तिथिपंचमी जिनकी मृत्यु अविवाहित स्थिति में हुई हो, उनका श्राद्ध इस तिथि को किया जाना चाहिए।नवमी तिथिनवमी सौभाग्यवती यानि पति के रहते ही जिनकी मृत्यु हो गई हो, उन स्त्रियों का श्राद्ध नवमी को किया जाता है। यह तिथि माता के श्राद्ध के लिए भी उत्तम मानी गई है। इसलिए इसे मातृनवमी भी कहते हैं। मान्यता है कि इस तिथि पर श्राद्ध कर्म करने से कुल की सभी दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध हो जाता है।एकादशी और द्वादशीएकादशी में वैष्णव संन्यासी का श्राद्ध करते हैं। अर्थात् इस तिथि को उन लोगों का श्राद्ध किए जाने का विधान है, जिन्होंने संन्यास लिया हो।नवमी तिथिचतुर्दशी इस तिथि में शस्त्र, आत्म-हत्या, विष और दुर्घटना यानि जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो उनका श्राद्ध किया जाता है जबकि बच्चों का श्राद्ध कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को करने के लिए कहा गया है।सर्वपितृमोक्ष अमावस्याकिसी कारण से पितृपक्ष की अन्य तिथियों पर पितरों का श्राद्ध करने से चूक गए हैं या पितरों की तिथि याद नहीं है, तो इस तिथि पर सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है। शास्त्र अनुसार, इस दिन श्राद्ध करने से कुल के सभी पितरों का श्राद्ध हो जाता है। यही नहीं जिनका मरने पर संस्कार नहीं हुआ हो, उनका भी अमावस्या तिथि को ही श्राद्ध करना चाहिए। बाकी तो जिनकी जो तिथि हो, श्राद्धपक्ष में उसी तिथि पर श्राद्ध करना चाहिए।प्रत्येक व्यक्ति के लिए श्राद्धकर्म अनिवार्य है, वह करना ही चाहिए लेकिन उससे भी कहीं अधिक महत्वपूर्ण है जीवित अवस्था में अपने माता-पिता की सेवा करना। जिसने जीवित अवस्था में ही अपने माता-पिता को अपनी सेवा से संतुष्ट कर दिया हो उसे अपने पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता ही है।







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