कुंडलिया
-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
जुड़ते जाते लोग सब, मन में हो सद्भाव।
कठिन कार्य भी पूर्ण हो, धन का नहीं अभाव।।
धन का नहीं अभाव, काज हो जन-कल्याणी।
जनता देती साथ, निवेदन करती वाणी।।
सही रहे उद्देश्य, नहीं जन पीछे मुड़ते।
एक करे प्रारंभ, लोग सब जाते जुड़ते ।।
यादों के संदूक में, अच्छी बातें जोड़।
कड़वी बातें भूलकर, जीवन दें नव मोड़।।
जीवन दें नव मोड़, पुरातनता को छोड़ें।
मन में भर उत्साह, सोच की धारा मोड़ें ।।
करें निरंतर कर्म, बनें पक्के वादों के।
घोलें सदा मिठास, कोष भर उन यादों के।।
मिलता है श्रम का सदा, सुखद सफल परिणाम।
सरिता सम बहते रहें, पहुँचे सागर-धाम।।
पहुँचे सागर-धाम, तोड़कर सब बाधाएँ।
निश्चित करके लक्ष्य, निरंतर बढ़ते जाएँ।
संघर्षों के बाद, सुमन जीवन का खिलता।
करें सतत् अभ्यास, लक्ष्य निश्चित ही मिलता।।








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