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- -बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्यायशास्त्रों में देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का विधान है। मान्यता है कि इस दिन तुलसी जी और शालीग्राम का विवाह कराया जाता है। इस दिन तुलसी पर कुछ चीजों को चढ़ाना बहुत शुभ माना जाता है। आइए जानते हैं इस दिन किन चीजों को अर्पित किया जा सकता है.तुलसी पर चुनरी चढ़ाएंइस दिन तुलसी के पौधे पर लाल रंग की चुनरी अर्पित करनी चाहिए। चुनरी अर्पित करते समय इस मंत्र का जाप करें- महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते। माना जाता है कि इस तरह तुलसी पर चुनरी अर्पित करने से तुलसी मां और भगवान शालीग्राम जल्द प्रसन्न हो जाते हैं। साथ ही, सुख-शांति और धन-वैभव की प्राप्ति होती है।दीपक जलाएंशास्त्रों में कहा गया है कि तुलसी में मां लक्ष्मी का वास होता है और लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए नियमित रूप से सुबह-शाम तुलसी के पास घी का दीपक जलाना चाहिए। देवउठनी एकादशी के दिन भी तुलसी पर घी का दीपक जलाने से घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।अर्पित करें दूधज्योतिष शास्त्र के अनुसार तुलसी में कच्चा दूध अर्पित करने का भी विधान है। तुलसी विवाह के दिन तुलसी में थोड़ा कच्चा दूध अर्पित करें और ओम नमो भगवते वासुदेवाय नम:' का उच्चारण करें। कहते हैं कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु प्रसन्न होकर कृपा बरसाते हैं।पीला धागा करें अर्पिततुलसी विवाह के दिन पीले रंग का धागा लें और शरीर के बराबर लंबाई जितना काट लें. इसके बाद इस धागे में 108 गांठें लगाएं और तुलसी के पौधे के नीचे बांध दें। इस दौरान अपनी मनोकामना कहें। मनोकामना पूर्ण होने पर इस धागे को खोलकर जल में प्रवाहित कर दें।लाल धागा बांधेंदेव उठनी एकादशी के दिन तुलसी के पौधे में लाल रंग का कलावा बांधना शुभ माना जाता है। इससे भगवान विष्णु के साथ-साथ मां लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं।
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आंवला नवमी को अक्षय नवमी भी कहते हैं। एक बार मां लक्ष्मी पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए आईं तो उनकी इच्छा हुई कि भगवान शंकर व भगवान विष्णु की पूजा एक साथ की जाए। विष्णु जी को तुलसी अति प्रिय हैं व शंकर जी को बेल पत्र। इन दोनों वृक्षों के सभी गुण आंवले के वृक्ष में मौजूद हैं। अत देवी लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष की पूजा की, ताकि दोनों भगवान प्रसन्न हो जाएं। जिस दिन यह पूजा की गई, वह दिन कार्तिक की नवमी तिथि थी। तभी से हर वर्ष कार्तिक की नवमी को ये पर्व मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार कार्तिक की नवमी से लेकर पूर्णिमा तक भगवान विष्णु आंवले के पेड़ में विद्यमान रहते हैं। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है।
आंवला नवमी के दिन ही आदि शंकराचार्य ने ‘कनकधारा स्रोत’ की रचना की थी। कहा जाता है कि एक बार शंकराचार्य भिक्षा मांगते हुए एक गांव में पहुंचे। एक झोपड़ी बाहर खड़े होकर उन्होंने कहा, ‘भिक्षां देहि।’ झोपड़ी के अंदर एक गरीब वृद्ध महिला ने जब यह पुकार सुनी तो वह सोच में पड़ गई। वह इतनी गरीब थी कि उस समय उसके पास इस संन्यासी को देने के लिए कुछ भी नहीं था। बस, एक सूखा आंवला था। किसी तरह संकोच करते हुए उस वृद्धा ने वही आंवला हाथ में लिया और दरवाजा खोलते हुए शंकराचार्य से कहा कि मेरे पास आपको भिक्षा में देने के लिए इस सूखे आंवले के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। यह कहकर उसने शंकराचार्य की झोली में वह आंवला डाल दिया। शंकराचार्य से उस वृद्धा की यह हालत देखी नहीं गई। उन्होंने उसी क्षण ‘कनकधारा स्रोत’ की रचना करते हुए देवी लक्ष्मी की स्तुति की। उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर लक्ष्मी प्रकट हो गईं। उन्होंने लक्ष्मी जी से उस औरत की गरीबी दूर करने की प्रार्थना की। लक्ष्मी जी ने उसी क्षण वहां स्वर्ण आंवलों की वर्षा कर दी। और उस गरीब औरत की दरिद्रता दूर हो गई। पौराणिक कथाओं के अनुसार कार्तिक की शुक्ल नवमी को श्री कृष्ण ने वृंदावन से मथुरा के लिए प्रस्थान किया था। -
प्रबोधिनी अथवा देवोत्थान एकादशी इस बार चार नवंबर को होगी। शास्त्रों के अनुसार इस दिन चार महीने से चला आ रहा चातुर्मास समाप्त हो जाता है। भगवान श्री हरि जागृत होकर के विश्व का कल्याण करना आरंभ कर देते हैं। इस दिन कुछ साधक तुलसी विवाह भी करते हैं। जो व्यक्ति एकादशी का व्रत रखते हैं और उस का समापन अर्थात उद्यापन करना चाहें तो इस तिथि को किया जाता है। बीते चार माह से जो वर्षा काल चला आ रहा था, वह चार नवंबर को समाप्त हो जाएगा। शास्त्रों में चातुर्मास अर्थात वर्षा ऋतु का समय यात्रा एवं घूमने-फिरने के लिए वर्जित है।
इस दिन एकादशी व्रत करने वाले साधक तुलसी का विवाह भगवान विष्णु के साथ करते हैं और ब्राह्मण विद्वानों से कथा सुनकर उनको दान-दक्षिणा देते हैं। भारतीय पंचांग के अनुसार पांच पर्व विवाह के लिए अनसूझ विवाह मुहूर्त होते हैं। ये हैं देवोत्थान एकादशी, बसंत पंचमी, फुलेरा दूज, अक्षय तृतीया और भड़रिया नवमी। इन स्वयं सिद्ध मुहुर्त यानी पांच दिनों में जिन युवक-युवती का विवाह नहीं सूझ पा रहा हो वह बिना किसी विद्वान या ब्राह्मण से पूछे विवाह कर सकते हैं। देवोत्थान एकादशी चार महीने के बाद आने वाला सबसे पहला वह अनसूझ अर्थात स्वयं सिद्धि विवाह मुहूर्त है।
देवोत्थान एकादशी के पश्चात सभी पूजा-पाठ संबंधी पाबंदियां हट जाती हैं। विवाह मुहूर्त, गृह प्रवेश मुहूर्त और वैवाहिक कार्य आरंभ हो जाते हैं। इस बार नवंबर और दिसंबर में देवोत्थान एकादशी के विवाह मुहूर्त को छोड़कर मात्र सात विवाह मुहूर्त हैं। शुक्र अस्त के कारण नवंबर में विवाह मुहूर्त बहुत कम हैं। 24 नवंबर को शुक्र उदय हो जाएंगे। इसके बाद 28 नवंबर का केवल एक ही विवाह मुहूर्त नवंबर में है। दिसंबर में दो, तीन, चार, सात,आठ और नौ दिसंबर को ही विवाह मुहूर्त रहेंगे। उसके पश्चात 16 दिसंबर से 13 जनवरी तक सूर्य मीन सक्रांति में आकर मलमास का आरंभ करेंगे। इसके बाद फिर से वैवाहिक आदि शुभ कार्य बंद हो जाएंगे। -
वास्तु शास्त्र के अनुसार दिशाओं को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है प्रत्येक दिशा को उसके महत्व के हिसाब से सजाया जाना चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में दक्षिण दिशा को खाली रखना चाहिए और उत्तर पूर्व दिशा में सामान रखने से सुख समृद्धि बनी रहती है। इन सभी बातों को जानकारी मिलती है। वास्तु शास्त्र एक बहुत पुरानी बहुत प्राचीन भारतीय परंपरा है इससे दिशाओं का ज्ञान होता है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में एक आंगन जरूर होना चाहिए। घर में एक छोटा या बड़ा आंगन जरूर होना चाहिए आंगन में अनार, मीठी नीम, आंवला या किसी भी फूलदार पौधे का होना बेहद शुभ माना जाता है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार उत्तर पूर्व दिशा को ईशान कोण भी कहते हैं। इस दिशा जल या जल को संग्रहित करने वाली चीजें बनानी चाहिए। जैसे यदि आप अपने घर में उत्तर- पूर्व दिशा में एक स्विमिंग पूल बनाते हैं। तो इससे घर में हमेशा पॉजिटिव एनर्जी बनी रहती है।
घर के दक्षिण दिशा में कोई भी भारी समान नहीं रखना चाहिए। इस दिशा को किसी भी तरीके से खुला रखना चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार दक्षिण दिशा में कोई गेट या खिड़की होने से घर में निगेटिव एनर्जी वास रहती है।
घर के दक्षिण -पश्चिम दिशा में किसी भी दरवाजे खिड़की का होना बेहद शुभ माना जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर के मुखिया का कमरा दक्षिण -पश्चिम दिशा की ओर बनाया जा सकता है।
पूर्व दिशा ,इस दिशा को आग्नेय कोण भी कहते हैं। इस दिशा का स्वामी अग्नि है इस दिशा में वास्तु दोष होने से घर का माहौल तनावपूर्ण और अशांत बना रहता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार इस दिशा में अगर रसोई घर बनाए तो घर में शांति और खुशहाली बनी रहती है। -
रत्न शास्त्र में रत्नों को विशेष महत्व दिया गया है। रत्न, ग्रहों की दशा को ध्यान में रखकर धारण करना चाहिए। रत्न शास्त्र में कुछ रत्नों को बेहद खास माना गया है। आज हम एक ऐसे ही रखने की बात करने जा रहे हैं। जो रत्न शास्त्र में अपना एक खास स्थान रखता है। इस रत्न को धारण करने से राहु ग्रह के कारण आने वाली सभी परेशानियां दूर हो जाती है और लोगों को बीमारियों से भी मुक्ति मिलती है।
आइए जानते हैं, गोमेद रत्न और उसके फायदे
1. गोमेद रत्न को बेहद खूबसूरत रत्न माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राहु को पाप ग्रह माना जाता है। ज्योतिषाचार्य राहु ग्रह के दुष्प्रभाव को खत्म करने के लिए गोमेद रत्न धारण करने की सलाह दी जाती है।
2. इस रत्न को धारण करने से रुके हुए कार्य पूर्ण होने लगते हैं अपनी चमक बेहद आकर्षक लगते हैं।
3. गोमेद रत्न को धारण करने से किसी भी व्यक्ति की सुंदरता में चार चांद लग जाते हैं राहु की महादशा से छुटकारा पाने के लिए गोमेद रत्न धारण करने की सलाह दी जाती है।
4. इस रत्नों को धारण करने से मन में पॉजिटिव एनर्जी और कॉन्फिडेंस बढ़ता है।
5. गोमेद रत्न धारण करने से बिजनेस में भी काफी लाभ होता है गोमेद रत्न को शनिवार के दिन धारण नहीं करना चाहिए।
6.इस रत्नों को धारण करने से पूर्व इसे दूध, गंगाजल ,शहद और मिश्री के गोल में डालकर रात भर रहने दें, तत्पश्चात इसे कनिष्का उंगली में धारण करना चाहिए।
7. गोमेद रत्न को 6 रत्ती से कम धारण नहीं करना चाहिए। मान्यता है कि इस रत्न को धारण करने से आंख और जोड़ों के दर्द, ब्लड कैंसर जैसी बीमारियों से छुटकारा मिलता है। इस रत्न को कभी भी मूंगा या पुखराज के साथ धारण नहीं करना चाहिए। -
-बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्याय
तुलसी को मां लक्ष्मी के समान माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि अगर कार्तिक के महीने में तुलसी का पौधा आपने घर में लगा लिया और उसकी लक्ष्मी स्वरूप में पूजा की, तो मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। ऐसे घर में कभी भी धन की कमी नहीं होती। मां लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है। विशेषकर कार्तिक माह में तुलसी का महत्व और भी बढ़ जाता है।
कार्तिक के महीने में अगर आप महीने भर कार्तिक स्ना न कर रही हैं, तो आपको तुलसी जी का भी विशेष पूजन करना चाहिए। कहा जाता है कि तुलसी विवाह के दिन व्रत करने से जन्म और जन्म के पूर्व के पापों से मुक्ति मिल जाती है। कार्तिक मास की एकादशी को तुलसी विवाह का त्यौहार बेहद शुभ माना जाता है। तुलसी को विष्णुप्रिया नाम से भी जाना जाता है।
तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त - तुलसी विवाह 5 नवंबर दिन शनिवार को मनाया जाएगा। कार्तिक द्वादशी तिथि 5 नवंबर 2022 को शाम 6:08 से प्रारंभ होकर 26 नवंबर 2022 शाम 5:06 पर समाप्त होगी। -
हस्त रेखाओं में से एक खास रेखा है हृदय रेखा। हाथ में हृदय रेखा के शुरू होने की प्रकृति ही व्यक्ति के जीवन का बहुत हद तक संकेत देती है। हृदय रेखा का मध्य में टूटना प्रेम संबंधो में बिखराव का प्रतीक है। हृदय रेखा तर्जनी उंगली के मूल से शुरू हो तो मानसिक रुप से परेशान रह सकते हैं। हथेली में हृदय रेखा न हो या बहुत छोटी हो तो प्रेम संबंधों में असफलता मिल सकती है। यदि हृदय रेखा और मस्तिष्क रेखा दोनों एक सिरे से शुरू होकर हथेली के दूसरे छोर तक पहुंचे तो ऐसे लोग अपनी मर्जी के मालिक होते हैं। ये दूसरों की बात नहीं सुनते।
हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार यदि हथेली में हृदय रेखा एक छोर से शुरू होकर दूसरे छोर तक पहुंचे तो व्यक्ति वर्तमान में जीने वाला होता है, लेकिन स्वभाव में ये बेहद भावुक किस्म के होते हैं। हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार यदि व्यक्ति के हाथ में हृदय रेखा शनि पर्वत से शुरू हो और यह सूर्य पर्वत तक पहुंचे तो ऐसे लोगों के प्रेम में वासना का भाव अधिक होता है। ऐसे लोग स्वार्थी किस्म के होते हैं। यदि हृदय रेखा पतली हो, साथ ही गहरी भी ना हो तो ऐसे लोग रूखे स्वभाव के होते हैं। यदि हृदय रेखा गुरु पर्वत से शुरू हो तो व्यक्ति दृढ़ निश्चयी और आदर्शवादी होता है। हृदय रेखा का लाल और अधिक गहरा होना चंचल एवं तेज स्वभाव को दर्शाता है। इस तरह के लोगों को कोई बुरी आदत भी लग सकती है। -
-बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्याय
सूर्यग्रहण की तरह ही इस बार चंद्र ग्रहण भी देशभर में दिखाई देगा। ऐसे में ग्रहण के सूतक काल भी मान्य होगा। सूतक काल में मंदिरों के कपाट बंद हो जाएंगे। चंद्र ग्रहण समाप्त होने के बाद ही मंदिरों के कपाट खोले जाएंगे। सूतक काल और ग्रहण काल के दौरान भजन कीर्तन करना चाहिए।
ग्रहण के बाद मंदिर के पट खोले जाते हैं और मंदिर का साफ-सफाई कर शुद्धिकरण करने के बाद पूजा पाठ की जाती है। कार्तिक पूर्णिमा होने के कारण इस दिन दीप दान ग्रहण छूटने के बाद कियाजा सकता है, इसके अलावा अगले दिन या एक दिन पहले भी स्नान-दान और दीपदान किया जा सकता है।
आपको बता दें कि सूतक काल में पूजा वर्जित होती है। इसलिए इस दौरान घर में रहकर ही भगवान का ध्यान करें। मान्यताओं के अनुसार ग्रहण के दिन भोजन आदि खाद्य पदार्थों में भी तुलसी की पत्ती डालकर ही उन्हें ग्रहण किया जाता है। ग्रहण में जो भी दान दिया जाता है, दान अमृत तुल्य माना जाता है। ग्रहण के बाद लाल कपड़ा, तांबे के पात्र, मसूर दाल, गेंहू और लाल फल का दान करना बेहत उत्तम माना गया है। वैदिक सभ्यता के अनुसार ग्रहण के बाद इन चीजों का दान करने से कुंडली में मौजूद ग्रहों के सभी दोष दूर होते हैं और शुभ फलों की प्राप्ति होती है। -
वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर पर पौधे लगाना बेहद शुभ होता है। हालांकि कई बार लोगों को इस बात की जानकारी नहीं होती है कि किन पौधों को घर पर लगाने से सुख-समृद्धि आती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि वास्तु शास्त्र में कुछ ऐसे पौधों के बारे में बताया है जिन्हें घर पर लगाने से धन का अभाव नहीं होता है। इन पौधों के बारे में-
1.अनार का पौधा- अनार का पौधा सेहत व स्वाद दोनों के लिहाज से बेहतर होता है। यह पौधा व्यक्ति को सुख-समृद्धि भी प्रदान करता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर के सामने अनार का पौधा लगाने से कर्जों से मुक्ति मिलती है। हालांकि अनार का पौधा लगाते समय ध्यान रखें कि इसे घर के आग्नेय कोण या दक्षिण-पश्चिम दिशा में न लगाएं।
2. बांस का पौधा- घर के सामने बांस का पौधा होना बेहद शुभ माना जाता है। वास्तु के अनुसार, अगर इसे ईशान कोण यानी उत्तर-पूर्व या फिर उत्तर दिशा में लगा दिया जाए तो घर में पैसों की दिक्कत नहीं रहती है। घर के सामने बांस का पेड़ होने से पैसों का कभी अभाव नहीं रहता है।
3. बेल का पौधा- वास्तु शास्त्र में बेल का पौधा बेहद शुभ माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, बेल के पौधे में भगवान शंकर का वास होता है और जिस घर पर भगवान शंकर की दृष्टि हो वहां कभी धन का अभाव नहीं रह सकता है। बेल का पौधा लगाने से आर्थिक तंगी भी दूर होने की मान्यता है।
4. दूब का पौधा- अगर आप घर के सामने या बगीचे में दूब उगा लें तो जीवन में कभी धन का अभाव नहीं होगा। घर के सामने दूब लगाने के कई फायदे होते हैं। संतान प्राप्ति की कामना करने वालों को घर के सामने इस पौधे को लगाने से लाभ होता है।
5. मनी प्लांट- घर में सुख-समृद्धि के प्रतीक के रूप में मनी प्लांट का पौधा लगाया जाता है। यह पौधा जितना तेजी से बढ़ता है, उतनी ही तेजी से धन भी देता है। घर में मनी प्लांट हमेशा आग्नेय कोण यानी दक्षिण पूर्व दिशा में ही लगाना चाहिए। मनी प्लांट के पौधे को सीधे कभी जमीन पर नहीं रखना चाहिए। -
वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में चीजें रखने से परिवार में खुशहाली बनी रहती है। इससे घर में सुख समृद्धि का वास होता है। वास्तु शास्त्र वेदों के समय से चली आ रही एक परंपरा है। जिसका भारत में बहुत अधिक महत्व है।
डाइनिंग रूम---
1. डाइनिंग टेबल के कोने ,आराम करने वाली जगह की ओर नहीं होने चाहिए। इस तरह बना लेआउट देखने में भी बेहद अजीब लगता है।
2. डाइनिंग टेबल हमेशा गोल या अंडाकार आकार की होनी चाहिए। इससे जीवन को चलाने के लिए बैलेंस एनर्जी मिलती रहती है। गोल टेबल होने से टेबल पर रखें खाने और व्यक्ति के बीच की दूरी कम होती है और टेबल से खाने का सामान लेने में भी तकलीफ नहीं होती।
3. पिचके और टूटे बर्तनों का इस्तेमाल न करें उन्हें जल्द से जल्द बाहर फेंक दें। आपकी प्लेट, गिलास और बर्तन बिल्कुल नए न हों, लेकिन अच्छी तरह से रखें बर्तन में खाना परोसने से मेहमानों के सामने आपकी अच्छी छवि बनती है।
4. डाइनिंग टेबल के ऊपर ताजे फूल के साथ ही साथ गोल बर्तन में फलों को रखना चाहिए। यह ताजगी और सुख समृद्धि को दर्शाता है।
5. डाइनिंग रूम में टीवी और घड़ी नहीं लगानी चाहिए। यदि आपके घर के डाइनिंग रूम में टीवी या घड़ी लगी हुई है तो उसे आज ही वहां से हटा दें क्योंकि डाइनिंग रूम में टीवी लगे होने के कारण लोग आपसी बातचीत से ज्यादा टीवी देखना पसंद करते हैं। इससे आपका ध्यान खाना खाने की अपेक्षा दूसरी चीजों पर ज्यादा लगा रहता है।
6. कमरे में रोशनी और ताजगी बनाएं रखने के लिए चारों तरफ पेंटिंग और छोटे छोटे पौधे लगाकर रखें। पेंटिंग पॉजिटिविटी की ओर इशारा करने वाली होनी चाहिए। -
घर में अक्सर लोग सुगंधित फूलों के पौधे लगाना पसंद करते हैं। ये पौधे न सिर्फ घर को महकाते हैं बल्कि इनकी छटा भी देखने लायक होती है। वास्तु शास्त्र में कुछ ऐसे सुगंधित फूलों के पौधे के बारे में बताया है, जिन्हें घर में लगाने से धन लाभ के साथ करियर में तरक्की व मान-सम्मान प्राप्त होती है। रजनीगंधा उन फूलों में से एक है,जो बेहद सुगंधित होते हैं। वास्तु शास्त्र के अनुसार, धन लाभ के लिए रजनीगंधा के पौधे को घर पर लगाते समय दिशा का विशेष ध्यान रखना चाहिए। रजनीगंधा के पौधे से न सिर्फ लाभ प्राप्त होता है बल्कि घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है।
इस दिशा में लगाएं रजनीगंधा का पौधा-
कहते हैं कि रजनीगंधा का पौधा सौभाग्य लाता है। रजनीगंधा का पौधा सुख, समृद्धि में बढ़ोतरी करता है। इससे घर में बरकत आती है। रजनीगंधा के पौधे को पूर्व या उत्तर दिशा में लगाने से धन लाभ होता है।
पूर्व या उत्तर दिशा में रजनीगंधा का पौधा लगाने से घर के सदस्यों की तरक्की के मार्ग खुलते हैं। पति-पत्नी के रिश्ते में प्यार भी बढ़ता है। रजनीगंधा के फूलों की महक और रंग पॉजिटिव माहौल देने वाला माना गया है। कहते हैं कि जिस घर में रजनीगंधा पूर्व या उत्तर दिशा में महकती है, वहां सकारात्मकता बनी रहती है। -
साल का आखिरी ग्रहण और दूसरा खंडग्रास चंद्रग्रहण 8 नवंबर 2022, कार्तिक पूर्णिमा पर पड़ने जा रहा है। यह चंद्रग्रहण लोगों के मन में चिंता बढ़ा रहा है क्योंकि 25 अक्टूबर 2022 को सूर्यग्रहण होने के 15 दिन के भीतर ही यह दूसरा ग्रहण पड़ने जा रहा है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, एक पक्ष या 15 दिन के भीतर दो ग्रहण होना किसी बड़े अशुभ का संकेत माना गया है। इसी को देखते हुए लोगों के मन में आशंका है कि अब देश व समाज के सामने कोई बड़ी कठिनाई आने वाली है।
ज्योतिषशात्र के अनुसार, ग्रह-नक्षत्रों के परिवर्तन की तरह ग्रहण का असर भी सभी राशियों पर देखने को मिलता है, चाहे यह सूर्य ग्रहण हो या चंद्र ग्रहण। ग्रुहण के बाद आने वाले करीब एक महीने तक का समय बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। जो आइए जानते हैं कि आने वाला समय ग्रहण के प्रभाव के चलते किन राशियों के जातकों को लाभ और किन राशियों के लिए हानि के योग बना रहा है। खबरों के अनुसार, 8 नवंबर 2022 को पड़ने जा रहे साल के आखिरी ग्रहण से 4 राशियों मिथुन, कर्क, वृश्चिक और कुंभ के लिए लाभकारी साबित होगा। वहीं 4 राशियों मेष, वृष, कन्या और मकर के लिए हानि के योग लेकर आ रहा है। इसके आलावा बाकी चार राशियों को ग्रहण के चलते मध्यम फल मिलेगा।
चंद्र ग्रहण का समय-
साल का आखिरी ग्रहण कार्तिक पूर्णिमा, 8 नवंबर 2022 को पड़ेगा। चंद्र ग्रहण की शुरुआत यानी स्पर्शकाल शाम 5:35 बजे से शुरू होगा और ग्रहण का मध्य 6:19 बजे और मोक्ष शाम 7:26 बजे होगा। इस ग्रहण का सूतक काल ग्रहण से 12 घंटे पहले सुबह 5.53 बजे शुरू होगा और अगले दिन सुबह करीब 7 बजे तक चलेगा।
कहां-कहां दिखेगा चंद्रग्रहण ?
साल का आखिरी चंद्रग्रहण भारत समेत दक्षिणी/पूर्वी यूरोप, एशिया, ऑस्ट्रेलिया, उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, पेसिफिक, अटलांटिक और हिंद महासागर में देखने को मिलेगा।
इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। -
-बालोद से प्रकाश उपाध्याय
हिंदू धर्म में तुलसी पूजन का विशेष महत्व है। हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को तुलसी विवाह होता है, इस एकादशी को देवउठनी एकादशी भी कहते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु के अवतार शालिग्राम की पूजा की जाती हैं और तुलसी माता से उनका विवाह करवाया जाता है। तुलसी विवाह के दिन माता तुलसी और भगवान शालिग्राम की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और उनके वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
तुलसी विवाह का महत्व
माना जाता है की आषाढ़ शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार महीनों के लिए सोते हैं और कार्तिक मास की देवउठनी एकादशी के दिन जागते हैं। इसी पूजा के बाद शादी का शुभ महूर्त शुरू होता है। इस खास मौके पर विष्णु के अवतार भगवान शालिग्राम का तुलसी माता से विवाह करवाया जाता है। यह भी मान्यता है की इस दिन व्रत करने से एक हजार अश्वमेध यज्ञ करने जितना फल मिलता है।
तुलसी विवाह पूजा विधि
-इस दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर नहा लें और नए कपड़े पहनें।
-जहां आप पूजा करने वाले हैं उस जगह को अच्छी तरह साफ कर लें और सजा लें।
-इस दिन तुलसी माता को दुल्हन की तरह सोलह श्रृंगार से सजाएं जिसके बाद गन्ना और चुनरी भी चढ़ानी चाहिए।
-तुलसी विवाह करने के लिए सबसे पहले चौकी बिछाएं उस पर तुलसी का पौधा और शालिग्राम को स्थापित करें।
-तुलसी माता के पौधे के पास ही शालिग्राम भगवान को रखकर दोनों की साथ में पूजा करनी चाहिए.
-उसके बाद गंगाजल छिड़कर घी का दीया जलाएं.
-भगवान शालीग्राम और माता तुलसी दोनों को रोली और चन्दन का टीका लगाएं।
-उसके बाद आप भगवान शालिग्राम को हाथों में लेकर तुलसी के चारों ओर परिक्रमा करें।
-फिर तुलसी को भगवान शालिग्राम की बाईं ओर रखकर उन दोनों की आरती उतारे। इसके बाद उनका विवाह संपन्न हो जाएगा।
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-बालोद से प्रकाश उपाध्याय
वास्तु अनुसार रोजाना प्रयोग में आने वाले आईना का आप के जीवन की सुख-समृद्धि से काफी संबंध होता है. अपनी सुंदरता को निहारने के लिए हर व्यक्ति इसे अपने घर में लगवाता है. वास्तु के अनुसार शीशा, दर्पण या फिर कहें आईने में एक उर्जा होती है, जो घर में सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. ज्योतिष शास्त्र में ये माना गया है कि घर के भीतर लगे आइने को सही दिशा में लगाना बहुत आवश्यक है. घर में ऊर्जा का उचित संतुलन बनाए रखना, वास्तु के सबसे आवश्यक उद्देश्यों में से एक होता है. इससे आपके घर में सकारात्मक माहौल बनता है और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है.
आइए दर्पण से जुड़े कुछ वास्तु नियम जानें..
आईने से जुड़े वास्तु नियम----------
वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में चौकोर शीशा लगाना लाभकारी माना जाता है. यदि ये तिजोरी या अलमारी के सामने लगा हो, तो उससे धन की प्राप्ती होती है. वहीं गोल शीशा लगाना शुभ नहीं होता है.
बेडरूम में आईना लगाने से हमेशा बचना चाहिए. वास्तु अनुसार अगर बेडरूम में लगे आईने में आपके बेड का प्रतिबिंब दिखाई देता है, तो इससे घर में दोष आता है. इससे आप के दांपत्य जीवन पर बुरा असर पड़ता है और प्रेमी जोड़ में आपसी विश्वास और सामंजस्य की कमी भी आती है.
अपने घर में आईना लगाते वक्त ध्यान रखें कि इसे पूर्व और उत्तर दिशा में लगाए. मान्यता है कि उत्तर दिशा धन के देवता भगवान कुबेर का केंद्र होता है. इसलिए इस दिशा को हमेशा सकारात्मक रखना चाहिए. वास्तु अनुसार पश्चिम या दक्षिण दिशा में आईना लगाना अशुभ माना जाता है.
यदि आप के घर में टूटा शीशा लगा है तो उसे तुरंत हटा दें. माना जाता है कि टूटा शीशा घर की नकारात्मकता बढ़ाता है और आर्थिक नुकसान भी पहुंचाता है.
वास्तु के मुताबिक शीशे को कभी भी गंदा नहीं रखना चाहिए. शीशे के गंदे होने से घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह अधिक बढ़ जाता है. -
देवउठनी एकादशी इस साल 4 नवंबर को मनाई जाएगी। इस दिन लोग घरों में भगवान सत्यनारायण की कथा और तुलसी-शालिग्राम के विवाह का आयोजन करते हैं। देवउठनी एकादशी से मंगलकार्य शुरू हो जाते हैं। माना जाता है कि देवउठनी एकादशी को भगवान श्रीहरि चार माह की गहरी निद्रा से उठते हैं। भगवान के सोकर उठने की खुशी में देवोत्थान एकादशी मनाया जाता है। इसी दिन से सृष्टि को भगवान विष्णु संभालते हैं। इसी दिन तुलसी से उनका विवाह हुआ था।
इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं। परम्परानुसार देव देवउठनी एकादशी में तुलसी जी विवाह किया जाता है, इस दिन उनका श्रृंगार कर उन्हें चुनरी ओढ़ाई जाती है। उनकी परिक्रमा की जाती है। शाम के समय रौली से आंगन में चौक पूर कर भगवान विष्णु के चरणों को कलात्मक रूप से अंकित करेंगी। रात्रि को विधिवत पूजन के बाद प्रात:काल भगवान को शंख, घंटा आदि बजाकर जगाया जाएगा और पूजा करके कथा सुनी जाएगी। -
दिवाली के बाद अब पूरा देश छठ पर्व की तैयारी कर रहा है. इस साल यह पर्व 28 अक्टूबर से शुरू हो रहा है और 31 अक्टूबर तक चलेगा. इस त्योहार में छठी माता और सूर्यदेव की पूजा-अर्चना की जाती है. छठ पूजा के दौरान, पुरुष और महिला दोनों ही अपने बच्चों के स्वास्थ्य, खुशी और लंबी उम्र के लिए पूरे 36 घंटे का निर्जल व्रत रखते हैं. हिंदु मान्यताओं के अनुसार इस त्योहार का बहुत विशेष महत्व होता है.
तिथि और शुभ मुहूर्त----------
दिन पूजा समय
28 अक्टूबर, शुक्रवार नहाय खाय सूर्योदय प्रात 06 बजकर 30 मिनट सूर्यास्त शाम 05 बजकर 39 मिनट
29 अक्टूबर, शनिवार लोहंडा और खरना सूर्योदय: प्रात: 06 बजकर 31 मिनट सूर्योस्त: शाम 05 बजकर 38 मिनट
30 अक्टूबर, रविवार संध्या अर्घ्य शाम 05 बजकर 38 मिनट पर
31 अक्टूबर, सोमवार प्रात: अर्घ्य प्रात: 06 बजकर 32 मिनट पर
पूजा की विधि
पहला दिन- इस दिन नहाय खाय की परंपरा है. महिलाएं इस दिन घर की साफ-सफाई करती हैं और स्नान करती हैं. प्रसाद के तौर पर इस दिन चना दाल, लौकी की सब्जी और चावल बनाया जाता है.
दूसरा दिन – छठ महापर्व के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है. इस दिन प्रसाद के तौर गुड़ की खीर बनाई जाती है. इस दिन के बाद 36 घंटे का उपवास शुरू होता है.
तीसरा दिन- पर्व के तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. व्रत करने वाले स्त्री-पुरुष दोनों किसी नदी, तालाब या घर में खड़े होकर अर्घ्य देते हैं.
चौथे दिन – इस पर्व के आखिरी दिन जल में खड़े होकर उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इसके बाद व्रत तोड़ा जाता है.
क्या है छठ का महत्व
हिंदू मान्यता के अनुसार, इस दिन षष्ठी देवी की पूजा की जाती है, जिन्हें ब्रह्मा की मानस पुत्री के रूप में भी जाना जाता है. कुछ जगाहों में इन्हें छठी माता के नाम से भी जानते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार वैदिक काल में यह पूजा ऋषियों द्वारा की जाती थी. मान्यता है कि छठी माता की पूजा करने से धन-धान्य की प्राप्ती होती है और संतानों की रक्षा करती हैं. जो दंपत्ती अपने जीवन में संतान सुख की प्राप्ती चाहते हैं, उनके लिए छठ पूजा अत्यंत आवश्य मानी गई है. -
हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितिया तिथि पर भाई दूज का त्योहार मनाया जाता है। यह पर्व भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है। इस दिन भाई बहन के घर जाता है और बहन भाई का तिलक करती है और भोजन भी खिलाती है। धार्मिक कथाओं के अनुसार सबसे पहले यमराज अपनी बहन यमुना के घर आए थे और यमुना ने यमराज का तिलक कर आरती उतारी थी। तब से ही ये परंपरा चली आ रही है। जानें भाई दूज का शुभ मुहूर्त और पूजा- विधि...
भाई दूज पर तिलक करने की विधि----------
इस दिन भाई को घर बुलाकर तिलक लगाकर भोजन कराने की परंपरा है।
भाई के लिए पिसे हुए चावल से चौक बनाएं।
भाई के हाथों पर चावल का घोल लगाएं।
भाई को तिलक लगाएं।
तिलक लगाने के बाद भाई की आरती उतारें।
भाई के हाथ में कलावा बांधें।
भाई को मिठाई खिलाएं।
मिठाई खिलाने के बाद भाई को भोजन कराएं।
भाई को बहन को कुछ न कुछ उपहार में जरूर देना चाहिए।
भाई दूज 2022 शुभ मुहूर्त------------
भाई दूज पर तिलक करने का शुभ मुहूर्त दोपहर 01 बजकर 12 मिनट से दोपहर 03 बजकर 27 मिनट तक रहेगा।
अवधि - 02 घंटे 14 मिनट
द्वितीया तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 26, 2022 को 02:42 पी एम बजे।
द्वितीया तिथि समाप्त - अक्टूबर 27, 2022 को 12:45 पी एम बजे।
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हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को भाई दूज का त्योहार मनाने की परंपरा है. इस साल भाई दूज का त्योहार 26 और 27 अक्टूबर दोनों दिन मनाया जा रहा है. दरअसल, कार्तिक शुक्ल द्वितीय तिथि 26 अक्टूबर को दोपहर 02 बजकर 43 मिनट से लेकर 27 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर 45 मिनट तक रहेगी. ऐसे में लोग अपनी सहूलियत के हिसाब से भाई दूज का त्योहार मना रहे हैं.
27 अक्टूबर क्यों है खास?
वैसे तो भाई दूज का त्योहार दोनों दिन मनाया जा सकता है, लेकिन इस मामले में 27 अक्टूबर की तारीख थोड़ी विशेष मानी जा रही है. दरअसल इस दिन भाई दूज मनाने के लिए एक नहीं बल्कि चार-चार शुभ योग बन रहे हैं. इन अबूझ मुहूर्तों में भाई को तिलक करना बहुत ही फलदायी हो सकता है. आइए आपको 27 अक्टूबर को भाई दूज पर बन रहे शुभ योगों के बारे में बताते हैं.
सर्वार्थ सिद्धि योग- दोपहर 12 बजकर 42 मिनट से लेकर अगले दिन 28 अक्टूबर को सुबह 05 बजकर 38 मिनट तक
अभिजीत मुहूर्त- सुबह 11 बजकर 42 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 27 मिनट तक
आयुष्मान योग- 27 अक्टूबर को सूर्योदय से लेकर सुबह 07 बजकर 27 मिनट तक रहेगा
सौभाग्य योग- 27 अक्टूबर को सूर्योदय से लेकर अगले दिन सुबह 04 बजकर 33 मिनट तक रहेगा
भाई दूज के त्योहार का महत्व
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, भाई दूज के दिन जो भाई अपनी बहन से तिलक करवाते हैं, उन्हें अकाल मृत्यु से खतरा नहीं होता है. कहते हैं कि कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमराज अपनी बहन यमुना के आग्रह पर उनके घर गए थे. अपने भाई को घर देखकर यमुना बहुत खुश हुईं. उन्होंने यमराज का स्वागत किया और उन्हें स्वादिष्ट भोजन करवाया.
बहन यमुना के आदर सत्कार और कोमल हृदय से यमराज बहुत प्रसन्न हुए, लेकिन जैसे ही वह जाने लगे यमुना ने उनसे एक वरदान मांग लिया. यमुना ने कहा कि कार्तिक शुक्ल द्वितीय को जो भी भाई अपनी बहन से तिलक करवाएगा और उसके घर भोजन करेगा, उसे यमराज के भय से मुक्ति मिलेगी. उसे न तो अकाल मृत्यु का भय रहेगा और न ही जीवन की जटिल समस्याएं उसके आड़े आएंगी. तब यमरान ने यमुना को ये वरदान दे दिया. कहते हैं कि तभी से भाई दूज मनाने की रस्म चली आ रही है. -
कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजन किया जाता है। खासतौर पर मनुष्यों के द्वारा प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए गोवर्धन का ये पर्व मनाया जाता है। इस दिन गिरिराज यानी गोवर्धन पर्वत और भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है। गोवर्धन पूजा के दिन को अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन अन्नकूट का भोग लगाने की परंपरा है। इस दिन घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत और पशुधन की आकृति बनाई जाती है और विधि-विधान से पूजा की जाती हैं। कहा जाता है कि गोवर्धन पूजा की कथा द्वापर युग से जुड़ी हुई है।
जानते हैं गोवर्धन पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में...
गोवर्धन पूजा की कथा----
पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक दिन श्री कृष्ण ने देखा कि सभी ब्रजवासी तरह-तरह के पकवान बना रहे हैं, पूजा का मंडप सजाया जा रहा है और सभी लोग प्रातः काल से ही पूजन की सामाग्री एकत्रित करने में व्यस्त हैं। तब श्री कृष्ण ने योशदा जी से पूछा, ''मईया'' ये आज सभी लोग किसके पूजन की तैयारी कर रहे हैं, इस पर मईया यशोदा ने कहा कि पुत्र सभी ब्रजवासी इंद्र देव के पूजन की तैयारी कर रहे हैं। तब कन्हा ने कहा कि सभी लोग इंद्रदेव की पूजा क्यों कर रहे हैं। इस पर माता यशोदा उन्हें बताते हुए कहती हैं, इंद्रदेव वर्षा करते हैं और जिससे अन्न की पैदावार अच्छी होती है और हमारी गायों को चारा प्राप्त होता है।
तब कान्हा ने कहा कि वर्षा करना तो इंद्रदेव का कर्तव्य है। यदि पूजा करनी है तो हमें गोवर्धन पर्वत की करनी चाहिए, क्योंकि हमारी गायें तो वहीं चरती हैं और हमें फल-फूल, सब्जियां आदि भी गोवर्धन पर्वत से प्राप्त होती हैं। इसके बाद सभी ब्रजवासी इंद्रदेव की बजाए गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। इस बात को देवराज इंद्र ने अपना अपमान समझा और क्रोध में आकर प्रलयदायक मूसलाधार बारिश शुरू कर दी, जिससे चारों ओर त्राहि-त्राहि होने लगी। सभी अपने परिवार और पशुओं को बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे। तब ब्रजवासी कहने लगे कि ये सब कृष्णा की बात मानने का कारण हुआ है, अब हमें इंद्रदेव का कोप सहना पड़ेगा।
इसके बाद भगवान कृष्ण ने इंद्रदेव का अहंकार दूर करने और सभी ब्रजवासियों की रक्षा करने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा लिया। तब सभी ब्रजवासियों ने गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण ली। इसके बाद इंद्रदेव को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने श्री कृष्ण से क्षमा याचना की। इसी के बाद से गोवर्धन पर्वत के पूजन की परंपरा आरंभ हुई। -
गोवर्धन पूजा या अन्नकूट दिवाली के अगले दिन मनाई जाती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन यह पूजा होती है। इस साल गोवर्धन पूजा मंगलवार 25 अक्टूबर, 2022 को है। लेकिन इसी दिन सूर्य ग्रहण भी लगेगा, जिस कारण इस साल गोवर्धन पूजा दिवाली के अगले दिन नहीं बल्कि बुधवार 26 अक्टूबर 2022 को मनाई जाएगी। यह त्योहार विशेष रूप से श्रीकृष्ण, गौ माता और गोवर्धन पर्वत की पूजा के लिए समर्पित होता है। गोवर्धन पूजा में अन्नकूट बनाए जाते हैं और गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाई जाती है। लेकिन परिक्रमा के बिना गोवर्धन पूजा अधूरी मानी जाती है। जानते हैं गोवर्धन पूजा में परिक्रमा का क्या है महत्व। इस बार गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 29 मिनट से सुबह 8 बजकर 43 मिनट तक है।
गोवर्धन पर्वत का महत्व---
पौराणिक कथा के अनुसार श्री कृष्ण ने जब ब्रजवासियों से गोवर्धन पर्वत और गायों की पूजा करने के लिए कहा तो इंद्र देव नाराज हो गए। उन्होंने क्रोध में आकर ऐसी वर्षा कराई जिससे कि ब्रजवासियों की जान खतरे में आ गई। तब श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली से उठा लिया और इस पर्वत के नीचे पूरे 7 दिनों तक ब्रजवासियों और पशुओं ने शरण ली। इसलिए गोवर्धन पूजा में गाय के गोबर से इस पर्वत की आकृति बनाकर लोग पूजा करते हैं और पूरे सात बार इसकी परिक्रमा की जाती है।
गोवर्धन पूजा में इसलिए जरूरी है परिक्रमा---
गोवर्धन पर्वत को गिरिराज पर्वत के नाम से भी जाना जाता है। उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में गोवर्धन पर्वत स्थित है, जिसकी ऊंचाई 62 फीट है। गिरिराज पर्वत की परिक्रमा 21 किलोमीटर की है इसकी परिक्रमा करने में 7-8 घंटे का समय लग जाता है। मान्यता है जो लोग चार धाम की यात्रा नहीं कर पाते हैं उन्हें एक बार इस पर्वत की परिक्रमा जरूर करनी चाहिए।
गोवर्धन पूजा के नियम----
गोवर्धन पूजा अकेले न करें। अपने घर-परिवार, पड़ोसी या रिश्तेदार के साथ ही गोवर्धन पूजा करनी चाहिए।
घर के आंगन या छत पर गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाकर पूजा करनी चाहिए।
गोबर से बने गोवर्धन पर्वत की सात बार परिक्रमा करनी चाहिए।
परिक्रमा को बीच में अधूरा नहीं छोड़ना चाहिए।
परिक्रमा के दौरान खील बताशे पर्वत पर अर्पित करने चाहिए। -
हिंदू पंचाग के अनुसार भाई दूज का पर्व हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है. भाई दूज को यम द्वितीया (Yam Dwitiya) या भ्रातृ द्वितीया भी कहा जाता है. भाई दूज (Bhai Dooj 2022) दीपावली के दो दिन बाद और गोवर्धन पूजा के ठीक अगले दिन मनाया जाता है. इस पर्व के साथ ही पांच दिन के दीपोत्सव का समापन हो जाता है. इस साल भाई दूज की तारीख को लेकर कन्फ्यूजन है. कुछ लोग 26 अक्टूबर को तो कुछ लोग 27 अक्टूबर को भाई दूज मनाने की बात कह रहे हैं. फिलहाल आइये जानते हैं कि भाई-बहन के प्रेम और स्नेह का त्योहार क्यों मनाया जाता है और इसके पीछे की मान्यता क्या है?
क्यों मनाया जाता है भाई दूज?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्यदेव और उनकी पत्नी छाया की दो संताने थीं, यमराज और यमुना. दोनों में बहुत प्रेम था. बहन यमुना हमेशा चाहती थीं कि यमराज उनके घर भोजन करने आया करें. लेकिन यमराज उनकी विनती को टाल देते थे. एक बार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि पर दोपहर में यमराज उनके घर पहुंचे. यमुना अपने घर के दरवाजे पर भाई को देखकर बहुत खुश हुईं. इसके बाद यमुना ने मन से भाई यमराज को भोजन करवाया. बहन का स्नेह देखकर यमदेव ने उनसे वरदान मांगने को कहा.
इसपर उन्होंने यमराज से वचन मांगा कि वो हर वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर भोजन करने आएं. साथ ही मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई का आदर-सत्कार के साथ टीका करें, उनमें यमराज का भय न हो. तब यमराज ने बहन को यह वरदान देते हुआ कहा कि आगे से ऐसा ही होगा. तब से यही परंपरा चली आ रही है. इसलिए भैयादूज वाले दिन यमराज और यमुना का पूजन किया जाता है.
पूजा सामग्री
कुमकुम, पान, सुपारी, फूल, कलावा, मिठाई, सूखा नारियल और अक्षत आदि. तिलक करते वक्त इन चीजों को पूजा की थाली में रखना ना भूलें.
ऐसे करें पूजा
व्रत रखने वाली बहनें पहले सूर्य को अर्घ्य देकर अपना व्रत शुरू करें. इसके बाद आटे का चौक तैयार कर लें. शुभ मुहूर्त आने पर भाई को चौक पर बिठाएं और उसके हाथों की पूजा करें. सबसे पहले भाई की हथेली में सिंदूर और चावल का लेप लगाएं फिर उममें पान, सुपारी और फूल इत्यादि रखें. उसके बाद हाथ पर कलावा बांधकर जल डालते हुए भाई की लंबी उम्र के लिए मंत्रजाप करें और भाई की आरती उतारे. इसके बाद भाई का मुंह मीठा कराएं और खुद भी करें.
तिलक का महत्व
प्राचीन काल से यह परंपरा चली आ रही है कि भाई दूज के दिन बहनें अपने भाई की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि के लिए तिलक लगाती हैं. कहते हैं कि कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन जो बहन अपने भाई के माथे पर कुमकुम का तिलक लगाती हैं, उनके भाई को सभी सुखों की प्राप्ति होती है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार, भाई दूज के दिन जो भाई अपनी बहन के घर जाकर तिलक करवाता है और भोजन करता है, उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती. -
भाई दूज का पर्व हर साल कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है. इस साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितिया तिथि का आरंभ 26 अक्टूबर को दोपहर 2 बजकर 42 मिनट से शुरू हो रही है. वहीं द्वितीया तिथि की समाप्ति 27 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर 45 मिनट पर होगी. ऐसे में ज्योतिष शास्त्र के जानकारों का कहना है कि भाई दूज (Bhai Dooj Date 2022) 27 अक्टूबर, गुरुवार को मनाई जाएगी. वहीं कई लोग 26 अक्टूबर को भी भाई दूज मनाएंगे. भाई दूज (Bhai Dooj 2022) के दिन बहनें अपने भाई के माथे पर तिलक लगाती हैं. साथ ही वे ऐसा करने के बाद भगवान से उनकी लंबी उम्र और खुशहाल जीवन की कामना करती हैं. इस दिन भाई भी अपनी बहन को खास उपहार देते हैं. भाई दूज को भैय्या दूज, भातृ द्ववितीया, भाऊ बीज के नाम से जाना जाता है. आइए जानते हैं कि भाई दूज के दिन तिलक लगाते वक्त मुंह किस ओर होना चाहिए और भाई दूज के लिए शुभ मुहूर्त और खास नियम क्या-क्या हैं.
धार्मिक मान्यता के अनुसार, भाई दूज के दिन बहनों को अपने भाई के माथे पर रोली-चंदन का तिलक लगाना चाहिए. भाई दूज पर तिलक लगाते वक्त दिशा का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है. ऐसे में इस दिन भाई का मुंह पूरब, उत्तर या उत्तर-पश्चिम दिशा में होना चाहिए. वहीं तिलक लगाते वक्त बहन का मुंह पूर्व या उत्तर-पूर्व दिशा में होना चाहिए. भाई दूज पर तिलक लगाने से पहले अन्न ग्रहण नहीं किया जाता है. ऐसे में भाई दूज पर इन बातों का खास ख्याल रखें.
भाई दूज पूजन विधि --
भाई दूज पर अपने भाई को तिलक लगाने से पहले स्नान करके घर में साफ स्थान पर आटा या चावल को पीसकर उसका घोल बना लें. इसके बाद उस घोल से शुद्ध स्थान पर अड़िपन बनाएं. इसके बाद उस पर लकड़ी का पाया या आसन रखें. इसके बाद उस आसन पर भाई को बिठाएं. इसके बाद चंदन लगाने की प्रक्रिया पूरी करें.
भाई दूज 2022 शुभ मुहूर्त---
कार्तिक कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि 26 और 27 अक्टूबर दोनों ही दिन है. हिंदू पंचांग के अनुसार, 26 अक्टूबर को दोपहर 02 बजकर 43 मिनट से द्वितीया तिथि शुरू हो रही है. जो कि 27 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर 45 मिनट तक रहेगी. ऐसे में 26 अक्टूबर को भाई को तिलक करने का शुभ मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 14 मिनट से 12 बजकर 47 मिनट तक है. वहीं कई जगहों पर उदया तिथि के अनुसार, भाई दूज का पर्व 27 अक्टूबर को मनाया जाएगा. ऐसे में 27 अक्टूबर को भाईदूज का शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 07 मिनट से दोपहर 12 बजकर 46 मिनट तक है. -
ज्योतिषाचार्य कामेश्वर चतुर्वेदी ने कहा है कि 25 अक्टूबर को सूर्य ग्रहण पड़ेगा। उन्होंने कहा है कि यह सूर्य ग्रहण चार ग्रहों सूर्य, चंद्र, शुक्र और केतु की युति में पड़ेगा। मथुरा पुरी सहित संपूर्ण ब्रजभूमि में यह सूर्य ग्रहण शाम 04:32 बजे पर प्रारंभ होगा और शाम 05:42 बजे तक चलेगा किंतु सूर्यास्त शाम 05:39 पर ही हो जाएगा। मथुरा में इस ग्रहण का पर्व काल 1 घंटे 10 मिनट का है। सूर्य बिंब 44 प्रतिशत ग्रसित रहेगा। उन्होंने कहा है कि ज्योतिष शास्त्र के आधार पर सूर्य ग्रहण का कारण होता है चंद्रमा तथा चंद्रग्रहण का मुख्य कारण होता है पृथ्वी की काली छाया। पुराणों के अनुसार ग्रहण राहु और केतु द्वारा होते हैं। कामेश्वर नाथ चतुर्वेदी के अनुसार भारत के पूर्वी राज्य अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा आदि के समीप यह सूर्य ग्रहण दिखाई नहीं देगा, इसके अलावा संपूर्ण देश में तथा विदेशों में भी यह दिखाई देगा।
सुबह 2:28 से लग जाएगा सूतक:ग्रहण का सूतक 25 अक्तूबर को सुबह 2:28 बजे से लग जाएगा। कार्तिक कृष्ण अमावस्या 25 अक्तूबर को ग्रहण का आरंभ दोपहर 2:29 पर होगा और समाप्ति शाम 06:32 पर होगी।
एक पखवाड़े में दो ग्रहण:कामेश्वर चतुर्वेदी ने बताया कि इस बार एक पखवाड़े में दो ग्रहण पड़ रहे हैं। 25 अक्तूबर एवं 8 नवंबर को 15 दिन के अंतराल से दो ग्रहण पड़ेंगे। जो अशुभ हो सकते हैं। द्वापर युग में महाभारत युद्ध से पूर्व कार्तिक मास में इसी तरह दो ग्रहण पड़े थे। -
हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इस साल दिवाली पर सूर्यग्रहण लगने के कारण लोगों के मन में तिथियों को लेकर कंफ्यूजन है। ऐसे में लोगों के बीच सवाल उठ रहा है कि आखिर भाई दूज का त्योहार किस दिन मनाया जाएगा। जानें 26 या 27 अक्टूबर किस दिन भाईदूज मनाना रहेगा सही-
दोपहर के समय होती है भाईदूज की पूजा-
शास्त्रों के अनुसार, यम द्वितीया यानी भाईदूज के दिन यमराज अपनी बहन के घर दोपहर के समय आए थे और बहन की पूजा स्वीकार करके उनके घर भोजन किया था। वरदान में यमराज ने यमुना को कहा था कि भाई दूज यानी यम द्वितीया के दिन जो भाई अपनी बहनों के घर आकर उनकी पूजा स्वीकार करेंगे और उनके घर भोजन करेंगे उनका अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा।
भाईदूज के दिन किसकी करें पूजा-
शास्त्रों के अनुसार, भाईदूज के दिन यमराज, यमदूज और चित्रगुप्त की पूजा करनी चाहिए। इनके नाम से अर्घ्य और दीपदान करना चाहिए।
26 अक्टूबर को मनाएं भाईदूज का त्योहार-
इस साल कार्तिक कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि 26 व 27 अक्टूबर दोनों दिन लग रही है। 26 अक्टूबर को दोपहर 02 बजकर 43 मिनट से भाईदूज का पर्व शुरू होगा, जो कि 27 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर 45 मिनट तक रहेगा। इस दिन भाई को तिलक करने का शुभ मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 14 मिनट से 12 बजकर 47 मिनट तक रहेगा।
27 अक्टूबर को पूजन का यह है शुभ मुहूर्त-
कई जगहों पर उदया तिथि के हिसाब से भाईदूज का पर्व 27 अक्टूबर को मनाया जाएगा। 27 अक्टूबर को भाईदूज का शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 07 मिनट से दोपहर 12 बजकर 46 मिनट तक रहेगा।
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दिवाली के अगले दिन तड़के ही इस बार सूर्य ग्रहण के सूतक लग जाएंगे। इसलिए इस त्योहार का असर दिवाली पूजा पर भी पड़ेगा। सूर्य ग्रहण के सूतक 25 अक्टूबर को सुबह 4 बजे लग जाएंगे, इसलिए इस तिथि में मंदिर पूजा से जुड़ा कोई भी काम नहीं किया जा सकेगा। 25 अक्टूबर का दिन खाली माना जाएगा। इस दिन पितरों का दान आदि किया जाएगा। ग्रहण के बाद ही स्नान और दान फलदायी रहेगा। मंगलवार 25 अक्टूबर को भौमवती अमावस्या है।
दरअसल इस बार दिवाली के दिन शाम को अमावस्या तिथि शुरू हो रही है, इसलिए ग्रहण वाले दिन ग्रहण काल खत्म होने पर ही अमावस्या तिथि का स्नान और दान किया जाएगा। अब बात आती है दिवाली पूजा की। दिवाली की पूजा के बाद अगली सुबह से ग्रहण का सूतक काल शुरू हो जाता है, जिसमें मंदिरों के पट बंद रहते हैं, इसलिए माता लक्ष्मी के पूजन की चौकी भी ग्रहण काल के समाप्त होने के बाद ही उठाई जाएगी। 25 अक्टूबर की शाम 4 बजे से सूर्य ग्रहण शुरू होगा। शाम 6.25 बजे ग्रहण खत्म होगा। सूर्य ग्रहण देश के उत्तरी और पश्चिमी हिस्सों में आसानी से देखा जा सकेगा। देश के पूर्वी हिस्सों में ये ग्रहण दिख नहीं पाएगा।



























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