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बाजरा की खेती के तौर-तरीकों के पुनर्मूल्यांकन की जरूरतः रिपोर्ट

नयी दिल्ली. बदलती जलवायु परिस्थितियों के बीच भारत में ‘पर्ल मिलेट' यानी बाजरा को उगाए जाने की जगह और उसके तौरतरीकों का नए सिरे से मूल्यांकन करने की जरूरत है। यह आकलन इक्रिसैट और आईसीएआर-एआईसीआरपी के नवीनतम अध्ययन में पेश किया गया है। इस अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक, मोटा अनाज बाजरा भारत की खाद्य सुरक्षा की एक जरूरी कड़ी है। बदलते मौसम के मिजाज और विकसित होती कृषि प्राथमिकताओं के बीच यह अध्ययन बाजरे की खेती को नियंत्रित करने वाले वर्गीकरण मानदंडों में बदलाव की मांग करता है। वर्तमान में, भारत के कृषि क्षेत्र वर्षा और मिट्टी के प्रकार पर आधारित हैं। राजस्थान में शुष्क क्षेत्रों को ‘ए-1', उत्तर और मध्य भारत में अर्ध-शुष्क क्षेत्रों को ‘ए' और दक्षिण भारत में भारी मिट्टी वाले अर्ध-शुष्क क्षेत्रों को ‘बी' क्षेत्र में रखा गया है। रिपोर्ट में बदलती जलवायु परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए 'ए' जोन का पुनर्मूल्यांकन करने का सुझाव दिया गया है। अध्ययन में शामिल 'इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर द सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स' (इक्रिसैट)
 की महानिदेशक जैकलीन ह्यूजेस ने कहा, ‘‘जलवायु परिवर्तन अब एक स्थायी वास्तविकता है, शुष्क भूमि समुदायों के लिए इस महत्वपूर्ण फसल को समझने और पोषण करने के दृष्टिकोण को फिर से व्यवस्थित करना जरूरी है।'' उन्होंने कहा कि इस नई वर्गीकरण प्रणाली का उद्देश्य नीति निर्माताओं, शोधकर्ताओं और किसानों को बेहतर साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने में प्रभावी ढंग से सहायता करने के लिए मोती बाजरा उत्पादन को अनुकूलित करना है।

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