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 शहीद स्मारक स्थल के पुनरुद्धार में नहीं है किसी की दिलचस्पी

-शहीद कौशल की प्रतिमा तक नहीं लग पाई
-कहीं सीढ़ियों के ग्रेनाइट दरके, तो कहीं चबूतरे के
-केवल पुण्यतिथि कार्यक्रमों में ही मुस्तैदी
टी सहदेव
भिलाई नगर। शहीदों के सम्मान में लिखी गईं ये पंक्तियां 'शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा' शायद अमर जवानों की पुण्यतिथियों पर सिर्फ दोहराने के लिए ही रह गई हैं। हुडको स्थित शहीद स्मारक स्थल यही हकीकत बयां कर रहा है। यहां पर भारत माता की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति देने वाले दो शहीदों कौशल यादव और प्रह्लाद सोनबोइर के स्मारक हैं, जो एक अरसे से बदहाली का शिकार हैं। ऐसा लगता है, मानो स्मारक स्थल के पुनरुद्धार में किसी की दिलचस्पी नहीं है। स्मरण रहे कि कौशल यादव कारगिल युद्ध में ऑपरेशन विजय के दौरान शहीद हुए थे, जबकि प्रह्लाद सोनबोइर ने भारत-पाक सीमा पर ऑपरेशन पराक्रम के दौरान अपनी शहादत दी थी।
 
शहीद कौशल की प्रतिमा तक नहीं लग पाई
 
यह कितनी अजीब बात है कि आज उनके स्मारक स्थल की सुध लेने वाला कोई नहीं। आलम यह है कि स्मारक स्थल की चहारदीवारी के अंदर और बाहर शहीदों के शौर्य को प्रदर्शित करते भित्ति चित्र और शिल्प जगह-जगह क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। स्मारक स्थल में शहीद प्रह्लाद सोनबोइर की प्रतिमा तो स्थापित कर दी गई, लेकिन शहीद कौशल यादव की प्रतिमा आज तलक स्थापित नहीं की गई। शहीद कौशल के पुण्यतिथि कार्यक्रम में नजारा उस वक्त और भी गमगीन हो जाता है, जब चित्र रखकर उनका स्मरण किया जाता है और शाम को उसे हटा दिया जाता है।
 
कहीं सीढ़ियों के ग्रेनाइट दरके, तो कहीं चबूतरे के
 
तस्वीरों में साफ़ देखा जा सकता है कि स्मारक के ग्रेनाइट जगह-जगह टूटफूट हो चुके हैं। कहीं ये दरक गए हैं, तो कहीं उखड़ चुके हैं। चाहे स्मारक की सीढ़ियां हों, या फिर चबूतरा। हर जगह  ग्रेनाइट का यही हाल है। स्मारक स्थल परिसर में झाड़-झंकार इतने ऊंचे हो गए हैं कि दीवारों पर उकेरी गईं जवानों की शौर्य-गाथाओं को रेखांकित करतीं चित्रकलाएं नजर नहीं आतीं। स्मारक स्थल की भीतरी और बाहरी दीवारों पर निर्मित शिल्पों पर लंबे समय से रंगरोगन नहीं होने के कारण वे इतने बदरंग हो गए हैं कि आंखें शर्म से झुक जाती हैं।
 
केवल पुण्यतिथि कार्यक्रमों में ही मुस्तैदी
 
क्षेत्र के सोशल एक्टिविस्ट टीजी नायुड़ु ने बताया कि परिसर में बिजली के खंभे तो कई लगे हैं, लेकिन एक ही बल्ब से रोशनी आती है, बाकी खंभों में से बल्ब नदारद हैं। जिसकी वजह से यहां अंधेरा पसरा रहता है। साफ-सफाई पर नगर निगम भी कोई खास ध्यान नहीं देता। केवल पुण्यतिथि कार्यक्रमों में ही निगम के अफसरों की मुस्तैदी नजर आती है। शेष दिनों में कोई भी जनप्रतिनिधि आसपास नहीं फटकता। यहां पर वाचनालय खोलने की भी घोषणा की गई, लेकिन उस पर भी अमल नहीं हुआ। बता दें कि तत्कालीन कैबिनेट मंत्री प्रेमप्रकाश पांडे की पहल पर दस वर्ष पूर्व दोनों स्मारकों के संधारण, चहारदीवारी के निर्माण, प्रकाश की व्यवस्था, ग्रेनाइट लगाने समेत सौंदर्यीकरण के लिए 43 लाख रुपए स्वीकृत हुए थे। 
 

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