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 अंतरिक्ष में भारत की खगोलीय यात्रा के 11 वर्ष

  लेखक  - डॉ. जितेन्द्र सिंह, केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार); पृथ्वी विज्ञान और प्रधानमंत्री कार्यालय, परमाणु ऊर्जा विभाग, अंतरिक्ष विभाग, कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन राज्य मंत्री
 केरल के थुंबा में मछली पकड़ने वाले शांत गाँव के चर्चयार्ड से साउंडिंग रॉकेट के प्रक्षेपण के साथ शुरू हुई भारत की अंतरिक्ष यात्रा के बारे में शायद ही किसी ने कल्पना की होगी कि एक दिन देश कितनी ऊँचाईयों को छूएगा। यह समय दृढ़ संकल्प का था, जब सितारों तक पहुँचने का सपना सीमित साधनों, लेकिन असीम महत्वाकांक्षा के साथ परवान चढ़ा।
आज, वह सपना विकसित होकर एक राष्ट्रीय मिशन का रूप अख्तियार कर चुका है, और जब हम नरेन्द्र मोदी सरकार के ग्यारह वर्षों को चिन्हित कर रहे हैं, तो भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में आमूल-चूल बदलाव आ चुका है – यह साहसपूर्ण, समावेशी और आम नागरिकों के जीवन से गहराई से संबद्ध है।
यह परिवर्तन केवल रॉकेट और उपग्रहों से ही संबंधित नहीं है, अपितु यह लोगों के बारे में है। यह दर्शाता है कि दूरदराज के गाँव के किसान से लेकर डिजिटल कक्षा के छात्र तक, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी किस प्रकार रोजमर्रा की जिंदगी की लय में खामोशी से शामिल हो चुकी है । प्रधानमंत्री मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व और अंतरिक्ष विभाग के रणनीतिक नेतृत्व में, भारत ने विकास, सशक्तिकरण और अवसर के उपकरण के रूप में अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम की नए सिरे से परिकल्पदना की है।
साल 2014 से शुरू किए गए सुधारों ने नई संभावनाओं के द्वार खोले हैं। 2020 में इन-स्पे स की स्थारपना ने निजी कंपनियों को अंतरिक्ष गतिविधियों में भाग लेने का अवसर प्रदान किया, जिससे नवाचार की लहर उठी। आज, 300 से अधिक अंतरिक्ष-प्रौद्योगिकी स्टार्टअप उपग्रह बना रहे हैं, प्रक्षेपण वाहन डिजाइन कर रहे हैं तथा कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और नेविगेशन के क्षेत्र में सेवाएं देने वाले अनुप्रयोग विकसित कर रहे हैं। ये स्टार्टअप केवल प्रौद्योगिकी ही सृजित नहीं कर रहे हैं - वे खासकर टियर 2 और टियर 3 शहरों में युवा इंजीनियरों और उद्यमियों के लिए रोजगार के अवसरों का भी सृजन कर रहे हैं। उदारीकृत अंतरिक्ष नीति ने अंतरिक्ष सेवाओं को अधिक किफायती और सुलभ बना दिया है, जिससे उन्नत प्रौद्योगिकी का लाभ जमीनी स्तर पर पहुंच रहा है।
भारत के उपग्रह अब मौसम पूर्वानुमान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिनकी बदौलत किसानों को अपनी बुवाई और कटाई के चक्रों की योजना अधिक सटीकता से बनाने में मदद मिलती है। बाढ़-ग्रस्त क्षेत्रों में, उपग्रह डेटा प्रारंभिक चेतावनी और आपदा प्रतिक्रिया को सक्षम बनाता है, जिससे जीवन और आजीविका की रक्षा होती है। चक्रवातों और सूखे के दौरान रिमोट सेंसिंग के कारण अधिकारियों को तैयार रहने  और नुकसान को कम करने में मदद मिलती है। ग्रामीण क्लीनिकों में, उपग्रह कनेक्टिविटी द्वारा संचालित टेलीमेडिसिन की बदौलत शहरी केंद्रों के डॉक्टरों द्वारा दूरदराज के क्षेत्रों में रोगियों को परामर्श मुमकिन हो पाता है, जिससे स्वास्थ्य सेवा से संबंधित  खाई पाटना संभव होता है। सैटेलाइट बैंडविड्थ द्वारा समर्थित ई-लर्निंग प्लेटफ़ॉर्म यह सुनिश्चित करते हुए कि भूगोल अब सीखने में बाधा नहीं रहा है, दूर-दराज के गाँवों में बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करते हैं।
 भारत के स्वदेशी जीपीएस नेटवर्क-नाविक प्रणाली  का इस्तेमाल अब वाहनों में नेविगेशन, ट्रेनों और जहाजों पर नज़र रखने और मछुआरों को किनारे पर सुरक्षित वापस लाने के लिए किया जाता है। कृषि में, उपग्रह परामर्श से किसानों को मिट्टी की नमी, फसल की सेहत और कीटों के संक्रमण की निगरानी करने में मदद मिलती है, जिससे उचित निर्णय लेने और बेहतर पैदावार प्राप्त करने में मदद मिलती है। ये काल्पैनिक  लाभ नहीं हैं, बल्कि - ये लाखों लोगों के जीवन में आया वास्तविक, उल्ले खनीय सुधार हैं।
बीते दशक में शुरू किए गए मिशनों ने दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है। मंगलयान भारत की इंजीनियरिंग उत्कृष्टता प्रदर्शित करते हुए अपने पहले ही प्रयास में मंगल पर पहुँच गया। चंद्रयान-3 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के निकट उतरा, ऐसा क्षेत्र जहां बर्फ होने का अनुमान है, और इसके रोवर ने ऐसे प्रयोग किए जो भविष्य के चंद्र मिशनों को जानकारी प्रदान करेंगे। आदित्य-एल1 अब सौर तूफानों का अध्ययन कर रहा है, जिससे वैज्ञानिकों को अंतरिक्ष के मौसम तथा संचार प्रणालियों और बिजली ग्रिड पर इसके प्रभाव को समझने में मदद मिल रही है।
साल 2027 के लिए निर्धारित गगनयान मिशन भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजेगा। लेकिन चालक दल की उड़ान से पहले ही, यह मिशन नई पीढ़ी को प्रेरित कर रहा है। अंतरिक्ष यात्रियों का प्रशिक्षण, सुरक्षा प्रणालियों का विकास और चालक दल रहित परीक्षण उड़ानें व्याजपक प्रभाव उत्‍पन्ने कर रही हैं - अनुसंधान को बढ़ावा दे रही हैं, प्रतिभाओं को आकर्षित कर रही हं  और राष्ट्रीय गौरव का निर्माण कर रही हैं।
भविष्य पर गौर करते हुए, भारत 2035 तक अपना स्वायं का अंतरिक्ष स्टेशन- भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन- बनाने की योजना बना रहा है। पहला मॉड्यूल 2028 में लॉन्च होने की उम्मीद है, और अंतरिक्ष डॉकिंग प्रयोग की हाल की सफलता ने इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य के लिए आवश्यक तकनीकों की पुष्टि की है। यह स्टेशन दीर्घकालिक निवास और अनुसंधान का अवसर देगा, जिससे गहन अंतरिक्ष अन्वेषण और अंतरग्रहीय मिशनों के लिए द्वार खुलेंगे।
इन बढ़ती महत्वाकांक्षाओं में सहायता देने के लिए, भारत अगली पीढ़ी के प्रक्षेपण यान (एनजीएलवी) का विकास कर रहा है, जो पृथ्वी की निचली कक्षा में 30,000 किलोग्राम वजन ले जाने में सक्षम है। इसमें पुन: प्रयोज्य चरण और मॉड्यूलर प्रणोदन प्रणाली होगी, जिससे अंतरिक्ष तक पहुँच अधिक किफायती और टिकाऊ हो जाएगी। लॉन्च की बढ़ती बारंबारता को संभालने और वाणिज्यिक मिशनों की सहायता करने के लिए श्रीहरिकोटा में एक तीसरा लॉन्च पैड और तमिलनाडु में एक नया स्पेसपोर्ट बनाया जा रहा है।
भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम बेहद सहयोगपूर्ण भी है। नासा के साथ निसार मिशन पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र और प्राकृतिक खतरों की निगरानी करेगा। जापान के साथ लूपेक्सप मिशन भारी रोवर के साथ चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों का पता लगाएगा। ये साझेदारियां एक विश्वसनीय वैश्विक अंतरिक्ष भागीदार के रूप में भारत की बढ़ती प्रतिष्ठा को दर्शाती हैं।
लेकिन अंतरिक्ष सिर्फ़ अन्वे षण के बारे में नहीं है - यह ज़िम्मेदारी के बारे में भी है। हज़ारों उपग्रहों के पृथ्वी की परिक्रमा करने के कारण अंतरिक्ष मलबा एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है। इसरो का अंतरिक्ष परिस्थिति जागरूकता कार्यक्रम मलबे की रियल-टाइम निगरानी करता है, टक्क र होने से बचने और अंतरिक्ष गतिविधियों की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए रणनीति विकसित करता है।
देश के कोने-कोने में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का प्रभाव दिखाई दे रहा है। हिमालयी राज्यों में, उपग्रह डेटा भूस्खलन और हिमनदों की गतिविधियों की निगरानी में मदद करता है। तटीय क्षेत्रों में, यह समुद्री संरक्षण और आपदा की तैयारी में सहायता करता है। जनजातीय और दूरदराज के क्षेत्रों में, यह उपग्रह इंटरनेट के माध्यम से डिजिटल समावेशन को सक्षम बनाता है। खामोशी से हो रही ये क्रांतियाँ - परिवर्तन हैं, जो बिना किसी दिखावे के जीवन को प्रभावित करते हैं।
 हम अगले दशक पर गौर करें, तो लक्ष्य स्पष्ट हैं: 2040 तक चालक दल के साथ चंद्रमा पर उतरना, पूरी तरह से चालू अंतरिक्ष स्टेशन, और वैश्विक अंतरिक्ष नवाचार में नेतृत्व की भूमिका। ये केवल सपने नहीं हैं - ये ऐसे राष्ट्र के लिए रणनीतिक अनिवार्यताएँ हैं, जिसने हमेशा समाज को बदलने के लिए विज्ञान की शक्ति में विश्वास किया है।
 थुंबा के साइकिल शेड से लेकर कक्षा में डॉकिंग मेन्यु वर तक, भारत की अंतरिक्ष यात्रा दृढ़ता, कल्पनाशीलता और अथक प्रयास की दास्तायन  है। यह एक ऐसी दास्ता्न है जिसका ताल्लुंक  हर नागरिक, हर वैज्ञानिक, हर स्वतपनदृष्टा  से है। और अब, जबकि हम परिवर्तनकारी शासन के ग्यारह वर्षों का जश्न मना रहे हैं, तो हम एक ऐसे राष्ट्र का भी कीर्तिगान कर रहे हैं जो वास्तव में सितारों तक जा पहुँचा है - और उनकी रोशनी को वापस घर ले आया है।

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