ये हंसी वादियां ये खुला आसमां..
-
- उत्साह और अनुभव भरी यात्रा
- छत्तीसगढ़ के शिमला जाने की बात हो तो कुछ अलग ही माहौल बन जाता है
- हवा बादलों को अपने साथ उड़ाती हुई नजर आई
ये हंसी वादियां ये खुला आसमां..... हिन्दी फिल्म का यह गीत कानों में पड़ते ही कुछ अलग तरह के दृश्य जेहन में उभरने लगते हैं और इनकी केवल कल्पना मात्र दिलो दिमाग में नई ऊर्जा का संचार करती है। कश्मीर और शिमला की वादियां यदि छत्तीसगढ़ में देखनी हो, तो एक बार मैनपाट की सैर जरूर कर लें। छत्तीसगढ़ और तिब्बती संस्कृति का मिला जुला रूप यहां देखने को मिल जाएगा। प्राकृतिक खूबसूरती भगवान ने यहां जी भर के दी है। .
आप चाहे घर को कितना ही सर्वसुविधा युक्त ही क्यों न बना लें, फिर भी आप का दिल प्राकृतिक सौंदर्य को देखने के लिए ललकता ही रहेगा। आप धरती और आकाश के बीच कौतूहल से दूर जिज्ञासा एवं रोमांचकारी स्थल की तलाश करने और प्राकृतिक सौंदर्य देखने, हरी-भरी वादियों की गोद में ही जाना पसंद करेंगे। इसी प्रकार मैं और मेरा परिवार जीवन की एकरसता भरी जिंदगी से दूर पर्यटन का लुफ्त उठाने के लिहाज से निकल पड़ा मैनपाट हिल स्टेशन के लिए, जो छत्तीसगढ़ का शिमला कहलाता है। यूं तो पर्यटन की कल्पना से ही मन उत्साह एवं रोमांच का अनुभव करने लगता है, फिर छत्तीसगढ़ के शिमला जाने की बात हो तो कुछ अलग ही माहौल बन जाता है।
परिवार साथ हो तो कार से यात्रा करने का मजा ही कुछ और होता है। हालांकि मैनपाट जाने के लिए दुर्ग-अंबिकापुर ट्रेन भी उपलब्ध है, जो रात 9.30 बजे रायपुर से रवाना होकर अंबिकापुर सुबह 8.30 बजे पहुंच जाती है। खैर हमारा पूरा परिवार सुबह-सुबह ही दो कार में चल पड़ा अपने गंतव्य की ओर। रास्ते में चर्चा- गपशप और गाने- खाने का दौर चल रहा था। अंबिकापुर शहर काफी अच्छा लगा। लोग काफी मिलनसार हैं। अंबिकापुर में प्रसिद्ध शक्तिपीठ में मां महामाया के दर्शन का मोह हमें मंदिर तक ले गया। ऐसी मान्यता है कि जो भी यहां सच्चे दिल से मांगे, वह मुराद अवश्य पूरी होती है। देवी दर्शन के समय ऐसा लगा मानो माता इस स्थान पर साक्षात बैठी हों। उनके दर्शन मात्र से शरीर में अब तक की यात्रा की सारी थकान मिट गई और एक नई शक्ति का संचार होने लगा। मंदिर परिसर में विशाल बरगद के वृक्ष के प्रति लोगों की आस्था भी अटूट नजर आई।
इसके बाद हम लोग मैनपाट के लिए निकल पड़े। दरिमा-हवाई पट्टी के रास्ते से मैनपाट 33 किलोमीटर दूर है। रास्ते भर नए-नए अनुभव हो रहे थे। बडेÞमेदनी गांव में जो नवानगर के समीप ही था, यहां चारो ओर हरे-भरे खेत में लोग एक साथ मिलकर काम करते नजर आए। बरगई गांव से ही घाटी आरंभ हो जाती है। 2-3 किलोमीटर ऊपर पहाड़ों की ओर दुर्गम दृश्य का अवलोकन करते हुए यह पहाडिय़ां हरी-भरी प्रकृति की गोद में ले जाती हैं। यहां मौसम हमेशा सुहावना और मस्ताना होता है। मस्ताना इसलिए कि यहां की घाटियां हरे-भरे वृक्षों एवं पौधों से रंग बिरंगे फूलों से महकती हुई, आप के मन को मदमस्त करती हुई आपके भीतर अलौकिक अनुभूति का अहसास कराती है। मैनपाट वैसे तो कभी भी जाया जा सकता है, लेकिन हर मौसम का अपना अलग ही मजा होता है। बंसत से ग्रीष्म तक लोग गर्मी से बचने के लिए छत्तीसगढ़ के शिमला में जाना पसंद करते हैं, क्योंकि ग्रीष्म ऋतु में बच्चों के स्कूल व कॉलेजों की छुट्टियां होती हैं। मौसम के लिहाज से जून से अगस्त-सितंबर का समय वर्षा का होता है। इसमें पहाड़ों की रानी को भीगते हुए देखा जा सकता है। जब बरसात होती है, तो मैनपाट ऐसा लगता होगा मानों एक पहाड़ को भिगोते हुए बादल दूसरे पहाड़ों की तरफ दौड़ लगा रहे हों। इन सुंदर पर्वत श्रेणियों को भिगोने में बादल इस तरह व्यस्त रहते हंै, जैसे आकाश और धरती एक साथ होली खेल रहे हों । आकाश बादल रूपी पिचकारी में इतना सारा जल भर देता है, ताकि कोई स्थान अछूता न रह जाए। वैसे तो नवंबर से जनवरी के दिनों में यहांं बर्फ-बारी होने के कारण यहांं का प्राकृतिक सौंदर्य देखने लायक होता है। जब ऊपर से बर्फ के छोटे-छोटे कण गिरते हैं, तो ऐसा लगता है कि प्रकृति रुई की वर्षा कर रही हो। यही बर्फ जब पत्तियों पर गिरती है, तो ठंड के कारण जम जाती है। सुबह-सुबह ओस की बूंदों को आप बर्फ की भांति जमा हुआ पाएंगे। यह एकदम परीकथाओं जैसा लगता है।
मैनपाट में बहुत से दर्शनीय स्थल हैं, जैसे- माटीघाट रोपणी, मेहता प्वाइंट, परपटिया का विहंगम दृश्य, सैला टूरिस्ट रिसोर्ट मैनपाट, टाइगर प्वाइंट, मछली प्वाइंट लेक-व्यू, देवप्रवाह, बौद्ध मठ, तिब्बती कैंप नं.-1 कमलेश्वरपुर है। मैनपाट वैसे तो समुद्रतल से 1080 मीटर ऊंचाई पर 62 पठारों में 40 किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है। यहां मैन मिट्टी की अधिकता होने के कारण इसका नाम मैनपाट पड़ा है। मैन मिट्टी का उपयोग स्थानीय महिलाएं अपने बाल धोने के लिए करती हैं। उनका मानना है कि मैन मिट्टी में दही मिलाकर बाल धोने से रूसी दूर हो जाती है।
हमारा गंतव्य सीधे सैला टूरिस्ट रिसोर्ट था। जहां रात्रि विश्राम और खाने की अच्छी व्यवस्था है। सैला टूरिस्ट रिसोर्ट मैनपाट के जिस मोटल में हम रुके थे, यह लगभग 11 एकड़ में फैला है। इसमें 4 बडेÞ़ भवन, 30 बिस्तर की डॉरमेट्री एवं 22 लक्जरी कमरे हैं। इसमें आप शादी, सगाई या कांफ्रेंस मीटिंग कर सकते हंै। बीच में कैंटीन है, जिसमें तीन बड़ेÞ-बड़े दरवाजे हैं। इससे ठंडी हवा अंदर की ओर प्रवेश करते हुए शानदार तरीके से गुम्मदनुमा रास्ते से होकर ऊपर बाहर की ओर चली जाती है। सुंदर बगीचों में बड़े-बड़े पेड़ों के नीचे से होते हुए आप अपने कमरों तक जा सकते हैं।
हवा बादलों को अपने साथ उड़ाती हुई नजर आई
सुबह-सुबह हम तैयार होकर मैनपाट को और करीब से जानने के लिए निकल पड़े। जब हम मेहता प्वाइंट पहुंचे, तब हवा बादलों को अपने साथ उड़ाती हुई नजर आई और ये बादल शनैै-शनै बरसते हुए एक-एक पहाड़ों को भिगाते हुए नजर आ रहे थे। इसी प्रकार धूप को भी एक पर्वतमाला से दूसरी पर्वतमालाओं तक जाते आप आसानी से देख सकते हैं। कभी-कभी तो एक पहाड़ में धूप नजर आती है, तो दूसरे में छांव, ऐसा लगता है जैसे इन हरी-भरी वादियों में कहीं रात तो कहीं दिन है। धूप-छांव खेलते हुए सूरज ऐसा सुहावना मौसम तैयार करता है, कि आपका मन प्रफुल्लित हो उठता है। सबसे आकर्षक स्थान परपटिया है जहां का विहंगम दृश्य मन को मोह लेने वाला होता है। बहुत ही सुंदर दर्शनीय बंदरकोट व अनेक पर्वत श्रेणियों का निकटम भूदृश्य प्रस्तुत करता है। यहां से जनजातियों के आस्था का प्रतीक दूल्हा-दुल्हन पर्वत, बनरईबांध, श्यामघुनघुट्टा बांध के साथ ही मेघदूतम की रचना स्थली रामगढ़ की पर्वत श्रृखंलाएं भी दृष्टिगोचर होती हैं। आलू के खेतों में भालू रात को विचरण करते मिलते हैं। भुट्टा, कोदो, आलू यहां की मुख्य फसल है और गर्मी के दिनों में यहां लीची की बहार भी छाई रहती है।
महादेव मुड़ा नदी और टाइगर प्वाइंट
जब हम टाइगर पांइट पहुंचे तो लोगों से पूछा इसका नाम ऐसा क्यों रखा गया है, तो वहां के स्थानीय आदिवासियों ने बताया कि पूर्व काल में इस स्थान पर शेरों का रहवास व विचरण क्षेत्र होने के कारण इसका नाम टाइगर प्वाइंट पड़ा। इस क्षेत्र में महादेव मुड़ा नदी अपने सुंदरतम स्वरूप से बहते हुए 60 मीटर की ऊंचाई से गिरते हुए, चित्ताकर्षक मनोहारी परिदृश्य प्रस्तुत करती हुई, खल-खल करती अपनी मदमस्त चाल में प्रवाहित हो रही थी। इसे देखने से ऐसा लगता है कि चारों ओर से घेरे पहाड़ों को कह रही हो तुम यहीं रहो, मुझे सागर से मिलने की जल्दी है। मुझे बहुत दूर रास्ता तय करना है। जलप्रपात के कारण हवा नमीयुक्त रहती है। जलप्रपात के गिरने से कुंड जैसा प्रतीत होता है। जब आप सीढिय़ों से नीचे उतरने लगते हैं, तो आपको ऐसा लगे कि आप प्रकृति की गोद में उतर रहे हैं। इस वनक्षेत्र में अनेक प्रकार की वनौषधियां प्राप्त होती हैं, जैसे- सफेद मूसली, काली मूसली, भोजराज, कामराज, वायविंडग, बच, बाम्ही, केउकंउ, बिदारीकंद, भईआंवला, भईचम्पा, भईनीम, पाताल कुम्हड़ा, शतावर आदि। कुछ प्रजातियां लुफ्त हो रही हैं, जैसे कीटभक्षी पौधा, सनउयू, तून, पारसपीपल, धूई आदि। वन्य प्राणी भी पाए जाते हैं, जैसे-तेंदुआ, कोटरी, भालू जंगली सूअर, बंदर, चीतल, साही, खरगोश, कहट आदि।
उल्टा पानी
यहीं पर एक लोकप्रिय जगह उल्टा पानी है, जहां पहाड़ी पर पानी नीचे से ऊपर ही ओर बहता है। साथ ही बंद गाडिय़ां अपने आप ऊपर की ओर धीरे-धीरे बढऩे लगती है। यहां के इस अद्भुत आश्चर्य पर अनेक शोध हो रहे हैं।
देवप्रवाह (जलजली)
यह एक प्राकृतिक झील है जो आगे चलकर एक लहरदार नयनाभिराम नाले का रूप धारण करती हुई 80 फीट उंचाई से गिरते हुए झरना रूप धारण करती है। सबसे अच्छी बात यह है कि इस झील के ऊपर मिट्टी और जलीय पौधों के जमावा के कारण आप इसके ऊपर उछलकूद सकते हैं। यह आप को साकअप (स्प्रिंग) जैसे ऊपर की ओर उछालती है।
बौद्धमठ और तिब्बती संस्कृति
मैनपाट छत्तीसगढ़ी और तिब्बती संस्कृति का मिला जुला रूप है। इस पवित्र स्थल पर बौद्ध मंदिरों का निर्माण वास्तुकला के अनुसार किया गया है तथा पूजा-अर्चना भी पंरपरागत बौद्ध संस्कृति के अनुरूप की जाती है। हमें यहां जाने से पता चला कि तिब्बती लोगों का त्यौहार जनवरी- फरवरी के मध्य मनाया जाता है जिसे कार्निवल ऑफ मैनपाट कहते हैं। इस त्यौहार का इंतजार पूरे साल लोगों को रहता है। इस त्यौहार को गौतम बुद्ध और दलाईलामा से संबंधित होने के कारण तिब्बती खूब धूमधाम से मनाते हैं।
रीति-रिवाज के तहत यहां तिब्बती वस्त्रों के बड़े-बड़े झंडे व तोरन लगाते हैं। यहां अनेक प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन खाने को मिलते हंै। इसमें मोमो विश्व प्रसिद्ध है। बौद्ध मंदिर के दर्शन के बाद हम लोग स्थानीय बाजार घूमने के लिए निकल पड़े। बाजार में बहुत से तिब्बती पारंपरिक वेशभूषा में नजर आए। उनके मन में छत्तीसगढ़ के लिए जो सम्मान देखा, वो काबिले तारीफ है। मैंने एक वृद्ध महिला से कुछ जानकारी हासिल ली। उन्होंने बताया कि वो सन 1962 में 20 वर्ष की आयु में जब चीन ने तिब्बत पर आक्रमण किया था, अपने साथियों के साथ भारत आई थी। 54 वर्ष से वह मैनपाट में निवास कर रही है। उसके द्वारा बताया गया कि यहां सात कैंप हैं, जिनमें लगभग 2000 हजार तिब्बती निवासरत हैं। लोग आज भी तिब्बती संस्कृति व धर्म को मानते हैं। पैगोड़ा शैली में बने मठ हैं, जिनमें गौतम बुद्ध व दलाईलामा से संबंधित व महत्वपूर्ण दिवसों पर एवं उनके जन्मदिवस पर सप्ताहभर उत्सव मनाया जाता है। इनके मुख्य नृत्य याकॅ नृत्य, स्नोलाइन नृत्य, क्षेत्रीय लोकनृत्य इत्यादि हैं।
मैनपाट में ऊनी वस्त्रों, कालीन और गलीचों का निर्माण किया जाता है। यह एक सहकारी संस्था के माध्यम से देश के विभिन्न भागों में भेजे जाते हैं। इसके अतिरिक्त तिब्बती नस्ल के कुत्ते बाजार में आसानी से खरीदे जा सकते हैं। सोमवार को कम्लेशपुर बसस्टैंड के पास साप्ताहिक बाजार लगता है। इसमें यहां अनेक जड़ी बूटियां, महुआ, शुद्ध शहद, कालीन व रोजमर्रा की वस्तुएं उपलब्ध होती हंै।
मैनपाट में तीन दिन रहने के बाद भी हमारा यहां से मन नहीं भरा था, लेकिन जिंदगी कहां एक जगह पर ठहरती है। एक असीम आनंद और अनुभूति लेकर हमारा कारवां वापस रोजमर्रा की आपाधापी के लिए मैनपाट से निकल पड़ा।
Leave A Comment