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मनोज कुमार ने कॉलेज पत्रिका में लिखा .....!

नयी दिल्ली. अपने बचपन के एक महत्वपूर्ण पल को याद करते हुए अभिनेता मनोज कुमार ने लिखा था, ‘‘मैंने विभाजन के दंगों के दौरान हिंदू कॉलेज परिसर में शरण ली थी और इसने मेरी जान बचाई।'' देशभक्ति फिल्मों के लिए ‘भारत कुमार' के नाम से मशहूर मनोज कुमार का शुक्रवार सुबह मुंबई में निधन हो गया। वह 87 वर्ष के थे। मनोज कुमार कुछ समय से बीमार थे और उम्र संबंधी समस्याओं के कारण कोकिलाबेन अंबानी अस्पताल में तड़के करीब साढ़े तीन बजे उनका निधन हो गया। पद्मश्री और दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित मनोज कुमार दिल्ली के हिंदू कॉलेज के पूर्व छात्र थे और 1947 से ही इस संस्थान से जुड़े हुए थे, जब उनका परिवार पाकिस्तान के लाहौर से दिल्ली आ गया था। उनका जन्म अविभाजित भारत के एबटाबाद शहर (अब पाकिस्तान) में हुआ था। वर्ष 1947 में विभाजन के बाद उनका परिवार पाकिस्तान में अपना सबकुछ छोड़कर दिल्ली आ गया। वे हडसन लाइन क्षेत्र में शरणार्थी बैरक के कमरा नंबर एक और दो में रुके थे, जिसे हडसन लेन-किंग्सवे कैंप के नाम से भी जाना जाता है। कुमार ने उस पल को याद किया जब, उनकी मां तीस हजारी अस्पताल में भर्ती थीं। कुमार ने कॉलेज की 125वीं वर्षगांठ पर कॉलेज पत्रिका के लिए लिखे एक लेख में बताया, ‘‘एक दिन मैं अकेले ही सुनसान सड़कों से होते हुए तीस हजारी अस्पताल में अपनी मां से मिलने जा रहा था। मैंने अचानक भयानक नारे सुने और घबराहट में मैंने हिंदू कॉलेज परिसर में शरण ली। वहां के चौकीदार ने मुझे शांत किया और कहा, ‘चिंता मत करो, मैं इस हिंदू कॉलेज का हिंदू चौकीदार हूं'।'' कुमार ने लिखा, ‘‘हिंदू, हिंदू की रक्षा करेगा-चौकीदार ने मुझसे कहा। इससे मैंने राहत की सांस ली। ऐसा तीन या चार बार हुआ।'' कुमार ने उल्लेख किया कि कई साल बाद, वह उसी कॉलेज में वापस लौटे- एक डरे हुए बच्चे के रूप में नहीं, बल्कि एक छात्र के रूप में। सलवान पब्लिक स्कूल से स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने हिंदू कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की। कुमार ने याद करते हुए कहा, ‘‘घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी और मैंने पढ़ाई के साथ-साथ सिलाई मशीन के पुर्जे बेचने जैसे छोटे-मोटे काम भी किए। मेरे प्रोफेसरों ने मेरी प्रतिबद्धता का सम्मान किया और मेरा सहयोग किया।'' कुमार ने बताया कि अपने चचेरे भाई और फिल्म निर्माता लेखराज भाकरी से प्रेरित होकर वह स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद मुंबई चले गए। उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि शुरुआती साल संघर्ष से भरे थे, लेकिन आखिरकार मुझे फिल्म उद्योग में अपनी जगह मिल गई।'' कुमार ने ‘शहीद', ‘उपकार' और ‘पूरब और पश्चिम' जैसी कई देशभक्ति फिल्मों में अपनी भूमिकाओं के जरिए लाखों लोगों का दिल जीता। कुमार ने वह क्षण भी याद किया जब वर्षों बाद हिंदू कॉलेज ने उन्हें ‘मिलेनियम पुरस्कार' से सम्मानित करने के लिए पुनः आमंत्रित किया था। उन्होंने लिखा, ‘‘मैं मंच पर खड़ा होकर उसी परिसर को याद कर रहा था जिसने मुझे बचपन में सुरक्षा दी थी।'' कुमार ने अपने लेख में लिखा, ‘‘हां, हिंदू ने मुझे बचाया। हिंदू अमर रहे और हिंदू कॉलेज अमर रहे।''
 हिंदू कॉलेज की प्रधानाचार्य अंजू श्रीवास्तव ने  बताया कि कुमार को 1999 में कॉलेज की 100वीं वर्षगांठ के अवसर पर विशिष्ट पूर्व छात्र पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। श्रीवास्तव ने कहा, ‘‘2019 में जब वह एंबुलेंस से कॉलेज आए थे, तब उनकी तबीयत बहुत खराब थी और वह चलने में असमर्थ थे। फिर भी, उन्होंने कॉलेज के फर्श को छुआ।'' उन्होंने कहा, ‘‘कुमार को कॉलेज से बहुत लगाव था और वह इसे मंदिर की तरह पूजते थे।'' वर्ष 2019 में कॉलेज की अपनी आखिरी यात्रा के दौरान, कुमार ने आगंतुकों की डायरी में एक नोट लिखा जिसमें संस्थान के साथ अपने गहरे भावनात्मक बंधन को व्यक्त किया। उन्होंने लिखा, ‘‘यह मेरे कॉलेज की यात्रा नहीं है। यह एक मंदिर है, और मैं यहां माथा टेकने आया हूं।''

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