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  अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जिमी कार्टर का 100 वर्ष की आयु में निधन

 वाशिंगटन। नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित एवं अमेरिका के 39 वें राष्ट्रपति जिमी कार्टर का रविवार को निधन हो गया। वह 100 वर्ष के थे। कार्टर भारत की यात्रा करने वाले तीसरे अमेरिकी नेता थे और उनकी यात्रा के दौरान उनके सम्मान में हरियाणा के एक गांव का नाम उनके नाम पर कार्टरपुरी रखा गया था। सबसे लंबे समय तक जीवित रहे अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति कार्टर ने 1977 से 1981 तक इस पद पर सेवाएं दी थीं। मूंगफली की खेती करने वाले कार्टर ने ‘वाटरगेट' घोटाले और वियतनाम युद्ध के बाद राष्ट्रपति पद का चुनाव जीता था। वह 1977 से 1981 तक राष्ट्रपति रहे। अमेरिका के निवर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडन ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए एक बयान में कहा, ‘‘अमेरिका और विश्व ने आज एक असाधारण नेता, राजनीतिज्ञ और मानवतावादी खो दिया।” कार्टर के परिवार में उनके बच्चे- जैक, चिप, जेफ एवं एमी, 11 पोते-पोतियां और 14 परपोते-परपोतियां हैं। उनकी पत्नी रोजलिन और उनके एक पोते का निधन हो चुका है। कार्टर की पत्नी रोजलिन का नवंबर 2023 में निधन हो गया था। वह 96 वर्ष की थीं।
 चिप कार्टर ने कहा, ‘‘मेरे पिता केवल मेरे लिए ही नहीं, बल्कि शांति, मानवाधिकारों और निःस्वार्थ प्रेम में विश्वास रखने वाले हर व्यक्ति के नायक थे।''
बाइडन ने अपने बयान में कहा कि कार्टर ने करुणा और नैतिक मूल्यों के जरिए शांति स्थापित करने, नागरिक अधिकारों और मानवाधिकारों को प्रोत्साहित करने, स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों को बढ़ावा देने, बेघरों को घर मुहैया कराने और वंचितों की हमेशा मदद करने की दिशा में काम किया।
अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि हालांकि वह ‘‘दार्शनिक और राजनीतिक रूप से'' कार्टर से ‘‘पूरी तरह असहमत'' हैं, लेकिन वह जानते हैं कि कार्टर ‘‘हमारे देश और इसके मूल्यों'' से सच्चा प्यार करते थे और उनका सम्मान करते थे। ट्रंप ने कहा, ‘‘उन्होंने अमेरिका को एक बेहतर जगह बनाने के लिए कड़ी मेहनत की और इसके लिए मैं उनका अत्यधिक सम्मान करता हूं। वह वास्तव में एक अच्छे इंसान थे और उनकी कमी निश्चित रूप से महसूस होगी।''
कार्टर को भारत का मित्र माना जाता था। वह 1977 में आपातकाल हटने और जनता पार्टी की जीत के बाद भारत आने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति थे। भारतीय संसद में अपने संबोधन के दौरान कार्टर ने सत्तावादी शासन के खिलाफ बात की थी। कार्टर ने दो जनवरी, 1978 को कहा था, ‘‘भारत की कठिनाइयां, जिनका हम अक्सर स्वयं अनुभव करते हैं और जिनका विशेष रूप से विकासशील देशों को सामना करना पड़ता है, वे हमें भविष्य की जिम्मेदारियों की याद दिलाती हैं। सत्तावादी तरीके की नहीं।'' उन्होंने सांसदों से कहा था, ‘‘भारत की सफलताएं अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वे इस सिद्धांत को निर्णायक रूप से खारिज करती हैं कि आर्थिक एवं सामाजिक प्रगति के लिए विकासशील देश को सत्तावादी या अधिनायकवादी सरकार को और इस तरह के शासन से मनुष्यता की भावना को होने की नुकसान को स्वीकार करना होगा।'' कार्टर ने कहा था, ‘‘क्या लोकतंत्र महत्वपूर्ण है? क्या सभी लोग मानवीय स्वतंत्रता को महत्व देते हैं?...भारत ने जोरदार आवाज में ‘हां' में जवाब दिया है और यह आवाज पूरी दुनिया में सुनी गई। पिछले मार्च यहां कुछ महत्वपूर्ण हुआ, इसलिए नहीं कि कोई खास पार्टी जीती या हारी, बल्कि इसलिए कि मतदाताओं ने स्वतंत्र रूप से और समझदारी से चुनावों में अपने नेताओं को चुना। इस अर्थ में, लोकतंत्र ही विजेता रहा।'' इसके एक दिन बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के साथ दिल्ली घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करते हुए कार्टर ने कहा था कि भारत और अमेरिका के बीच मित्रता के मूल में उनका यह दृढ़ संकल्प है कि सरकारों के कार्य लोगों के नैतिक मूल्यों से निर्देशित होने चाहिए। ‘कार्टर सेंटर' के अनुसार, तीन जनवरी, 1978 को कार्टर और तत्कालीन प्रथम महिला रोजलिन कार्टर नयी दिल्ली के पास स्थित दौलतपुर नसीराबाद गांव गए थे। वह भारत की यात्रा पर जाने वाले तीसरे अमेरिकी राष्ट्रपति थे और देश से व्यक्तिगत रूप से जुड़े एकमात्र राष्ट्रपति थे। उनकी मां लिलियन ने 1960 के दशक के अंत में ‘पीस कोर' के साथ स्वास्थ्य स्वयंसेवक के रूप में वहां काम किया था। ‘कार्टर सेंटर' ने कहा, ‘‘यह यात्रा इतनी सफल रही कि कुछ ही समय बाद गांव के निवासियों ने उस क्षेत्र का नाम बदलकर ‘कार्टरपुरी' रख दिया।'' उसने कहा, ‘‘इस यात्रा ने एक स्थायी प्रभाव छोड़ा: जब राष्ट्रपति कार्टर ने 2002 में नोबेल शांति पुरस्कार जीता तो गांव में उत्सव मनाया गया और तीन जनवरी को कार्टरपुरी में अवकाश रहता है।'' उसने कहा कि इस यात्रा ने एक स्थायी साझेदारी की नींव रखी, जिससे दोनों देशों को बहुत लाभ हुआ है।

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