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 विदेशों से इस महीने चीते लाने की संभावनाएं क्षीण

 भोपाल। भारत में विदेश से लाकर चीतों को फिर से बसाने की अटकलों के बीच एक अधिकारी ने शनिवार को कहा कि केन्द्र सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना के तहत अगस्त में चीतों को भारत लाए जाने की संभावना क्षीण है, क्योंकि दक्षिण अफ्रीका के साथ सहमति पत्र (एमओयू) पर अभी तक हस्ताक्षर नहीं हुए हैं। चीता 70 साल पहले भारत में विलुप्त हो गया था और इन चीतों को अब मध्य प्रदेश के श्योपुर जिला स्थित कुनो-पालपुर राष्ट्रीय उद्यान में बसाया जाएगा। इससे पहले कयास लगाए जा रहे थे कि चीते 15 अगस्त तक राज्य में पहुंच जाएंगे और उन्हें शुरू में रखने के लिए कुनो-पालपुर राष्ट्रीय उद्यान में पांच वर्ग किलोमीटर के दायरे में ‘सॉफ्ट रिलीज बाड़ा' भी बनाया गया है। चीतों को दक्षिण अफ्रीका एवं नामीबिया से भारत लाया जाना है।
 इस योजना से जुड़े एक अधिकारी ने शनिवार को  बताया, ‘‘हालांकि, केन्द्र सरकार ने कुनो-पालपुर राष्ट्रीय उद्यान में चीतों को बसाने की अपनी इस योजना के तहत नामीबिया सरकार के साथ चीतों की खरीद के लिए पिछले महीने सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कर चुका है। लेकिन, इन चीतों ने नामीबिया में पृथक-वास में रहने की जरूरी अवधि अभी पूरी नहीं की है। इसलिए वहां से भी अगस्त तक चीतों को भारत नहीं लाया जा सकता।'' उन्होंने कहा, ‘‘दक्षिण अफ्रीका के साथ चीतों को भारत लाये जाने वाले प्रस्तावित समझौते पर अभी तक हस्ताक्षर नहीं किए गए हैं। यह एमओयू दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति के पास एक सप्ताह से अधिक समय से स्वीकृति के लिए लंबित है।'' यह पूछे जाने पर कि क्या दक्षिण अफ्रीका सरकार को एमओयू पर हस्ताक्षर करने में कुछ समस्याएं आ रही हैं, तो इस पर उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया में समय लगता है। अधिकारी ने कहा, ‘‘दक्षिण अफ्रीका से लाये जाने वाले चीतों ने एक महीने की अपनी पृथक-वास में रहने की अवधि पूरी कर ली है। लेकिन नामीबिया से लाये जाने वाले चीतों ने पृथक-वास की अवधि पूरी नहीं की है।'' उन्होंने बताया, ‘‘नामीबिया से लाये जाने वाले चीतों की पृथक-वास की अवधि अगस्त के अंत या सितंबर की शुरुआत में पूरी होगी।'' अधिकारी ने कहा कि भारतीय वन्यजीव नियमों के अनुसार चीतों को भारत ले जाने से पहले एक महीने के पृथक-वास की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इन चीतों को भारत में भी एक महीने के लिए फिर से पृथक-वास में रखा जाएगा। उन्होंने कहा कि अगर चीतों ने नामीबिया में अपनी पृथक-वास अवधि पूरी कर ली होती तो हम उन्हें एयरलिफ्ट कर भारत लाने के बारे में सोच सकते थे। अधिकारी ने कहा, ‘‘हमारी योजना दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से चीतों को एक साथ उठा कर भारत लाने की है। यह किफायती होगा।'' इन चीतों के आने के बाद करीब 70 साल बाद देश में बिलुप्त हुए चीते की दहाड़ फिर से सुनाई देगी। देश में इस प्रजाति का अंतिम चीता 1947 में अविभाजित मध्य प्रदेश के कोरिया इलाके में देखा गया था, जो अब छत्तीसगढ़ में आता है। बाद में 1952 में इस जानवर को देश में विलुप्त घोषित कर दिया गया। इस प्रजाति के चीते की रफ्तार 80 से 130 किलोमीटर प्रति घंटा तक होती है।

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