सजल
-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
भंग नीति का शील, पड़ेगी चुप्पी भारी ।
शुष्क संवेदन-झील, पड़ेगी चुप्पी भारी।।
हुए उपेक्षित वृद्ध, दूरियाँ मन में आईं।
चुभे हृदय में कील, पड़ेगी चुप्पी भारी।।
आँगन में दीवार, बँटी माँ दो हिस्सों में।
दुख दे सीना छील, पड़ेगी चुप्पी भारी।।
दुर्व्यसनी हो पुत्र, नशे में धुत मिलता है।
क्यों दी इतनी ढील, पड़ेगी चुप्पी भारी।।
लिए हथेली जान, दाँव पर रखते जीवन।
बना रहे हैं रील, पड़ेगी चुप्पी भारी ।।
धूमिल हैं संस्कार, दौड़ अंधी फैशन की।
मूल्य गए सब लील, पड़ेगी चुप्पी भारी ।।










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