संपत्ति-देनदारी असंतुलन के भारी जोखिम का सामना कर रहा है बैंकिंग क्षेत्र: प्रणव सेन
कोलकाता। भारत का बैंकिंग क्षेत्र संपत्ति-देनदारी असंतुलन के भारी जोखिम का सामना कर रहा है। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रणव सेन ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि ये हालात कभी भी बेकाबू हो सकते हैं और उद्योग को नियंत्रित करने वाले कानून के पुनर्मूल्यांकन की जरूरत है। सेन ने कहा कि हालात अभी तक बेकाबू नहीं हुए हैं, क्योंकि ज्यादातर बैंक सार्वजनिक क्षेत्र के हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय बैंकों ने ब्रिटिश मॉडल को अपनाया है, और कानून बैंकों को पूंजी बाजार से उधार लेने की अनुमति नहीं देते हैं। इस तरह उनके लिए अनिवार्य रूप से धन का एकमात्र स्रोत जमाएं ही हैं। सांख्यिकीय आयोग के पूर्व अध्यक्ष ने सोमवार रात बंधन बैंक के 7वें वर्षगांठ समारोह में कहा, आज, बैंक ऋण देने की औसत अवधि लगभग नौ वर्ष है, और जमाओं की औसत अवधि ढाई वर्ष के करीब है। इसलिए, आपके पास परिसंपत्ति पक्ष में नौ वर्ष और देनदारी पक्ष में 2.5 वर्ष हैं। इसका मतलब है कि बड़े पैमाने पर संपत्ति-देनदारी असंतुलन है, और हालात कभी भी बेकाबू हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि हालात अभी तक बेकाबू नहीं हुए हैं, क्योंकि हमारे बैंकों का बड़ा हिस्सा सार्वजनिक क्षेत्र में है, लेकिन अब बैंकों को न केवल उधार लेने वाले के जोखिम का आकलन करना है, बल्कि उधार देने की अवधि का भी आकलन करना है। सेन ने कहा कि बैंकिंग क्षेत्र के लिए अत्यधिक जोखिम हैं।
उन्होंने कहा कि 20 साल पहले बैंकों के ऋण पोर्टफोलियो में 70 प्रतिशत कार्यशील पूंजी वित्त था। इसके अलावा 20 प्रतिशत खुदरा ऋण और कंपनियों को सावधि ऋण का हिस्सा 10 प्रतिशत था। उन्होंने आगे कहा कि इस समय कार्यशील पूंजी वित्त घटकर लगभग 35 प्रतिशत रह गया है, जबकि नियत पूंजी के लिए सावधि ऋण पोर्टफोलियो बढ़कर 45 प्रतिशत हो गया है। सेन ने कहा कि बैंकिंग कानूनों को उधारदाताओं को पूंजी बाजार से धन जुटाने की अनुमति देनी चाहिए। हमें अपने कानूनों को जापान और यूरोप के कानूनों के अनुरूप बनाना चाहिए।
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