भारत-ब्रिटेन व्यापार समझौते से फार्मा और केमिकल सेक्टर को मिलेगा बढ़ावा, जेनरिक दवाएं और मेडिकल उपकरण अब होंगे टैक्स-फ्री
नई दिल्ली। भारत और यूनाइटेड किंगडम (UK) के बीच सम्पन्न व्यापक व्यापार समझौता (CETA) अब भारत के फार्मास्युटिकल और केमिकल क्षेत्र के लिए नए अवसर लेकर आ रहा है। इस समझौते के तहत दोनों क्षेत्रों को जीरो ड्यूटी मार्केट एक्सेस मिलेगा, जिससे भारतीय उत्पाद UK में अधिक प्रतिस्पर्धी बन जाएंगे। यह मुक्त व्यापार समझौता (CETA) पीएम मोदी और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर के बीच आज गुरुवार को लंदन में हुआ।
फार्मा सेक्टर को जीरो ड्यूटी का फायदा
भले ही फार्मा सेक्टर में सिर्फ 56 टैरिफ लाइनें हैं (कुल टैरिफ का 0.6%), लेकिन इसका रणनीतिक महत्व वैश्विक व्यापार में बेहद अधिक है। भारत अभी विश्वभर में लगभग 23.31 अरब अमेरिकी डॉलर की दवाएं निर्यात करता है, जबकि UK करीब 30 अरब डॉलर की दवाएं आयात करता है। बावजूद इसके, भारतीय दवाओं की हिस्सेदारी UK बाजार में मात्र 1 अरब डॉलर से कम है। इससे यह स्पष्ट होता है कि वहां भारत के लिए बहुत बड़ी संभावनाएं हैं। वहीं CETA के तहत भारत की जेनरिक दवाओं को अब UK में टैक्स से छूट मिलेगी, जिससे वे वहां की बाजार में और भी प्रतिस्पर्धी हो जाएंगी।
मेडिकल उपकरण भी होंगे टैक्स फ्री
इस समझौते से सर्जिकल उपकरण, डायग्नोस्टिक मशीनें, ECG, X-ray सिस्टम जैसे मेडिकल उपकरणों पर भी कोई शुल्क नहीं लगेगा। इससे भारतीय मैन्युफैक्चरर्स की लागत घटेगी और वे ब्रिटेन के बाजार में अधिक प्रतिस्पर्धी बनेंगे। ब्रेक्जिट और कोविड के बाद ब्रिटेन ने चीन से आयात पर निर्भरता कम करने की नीति अपनाई है, ऐसे में भारत एक भरोसेमंद और किफायती विकल्प बनकर उभरेगा।
केमिकल सेक्टर को भी मिलेगा बढ़ावा
केमिकल और संबद्ध उत्पादों के लिए कुल 1,206 टैरिफ लाइनें हैं, जो कुल व्यापार का 12.4% हिस्सा हैं। इसमें उर्वरक, औद्योगिक केमिकल और पेट्रोकेमिकल शामिल हैं। वर्तमान में भारत ब्रिटेन को 570.32 मिलियन डॉलर का केमिकल निर्यात करता है, जो भारत के वैश्विक केमिकल निर्यात (40.52 अरब डॉलर) का सिर्फ 2% है। CETA लागू होने के बाद 2025-26 में इन निर्यातों में 30% से 40% तक वृद्धि की संभावना जताई गई है, जिससे यह आंकड़ा 650 से 750 मिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है। वहीं, ब्रिटेन करीब 35.11 अरब डॉलर के केमिकल्स आयात करता है, जिसमें भारत की हिस्सेदारी अब तक मात्र 843 मिलियन डॉलर है। इसका मतलब है कि भारत इस समझौते के बाद केमिकल निर्यात में भी बड़ी छलांग लगाने को तैयार है।







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