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नांदेड़ से लाल किला तक : भारत के राष्ट्रीय झंडे ‘तिरंगे’ की खास यात्रा

 नई दिल्ली। भारत जब 79वां स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारी कर रहा है, तब महाराष्ट्र का एक छोटा सा शहर नांदेड़ देश के देशभक्ति भरे आयोजनों में बड़ी भूमिका निभा रहा है। नांदेड़ स्थित मराठवाड़ा खादी ग्रामोद्योग समिति देश के उन गिने-चुने अधिकृत केंद्रों में से एक है, जहां राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा सरकारी मानकों के अनुसार बनाया जाता है। यहां से तैयार हुए झंडे गांव के छोटे-छोटे कार्यालयों से लेकर दिल्ली के भव्य लाल किले तक फहराए जाते हैं। यह जिम्मेदारी 1965 से जुड़ी है, जब स्वतंत्रता सेनानी गोविंदभाई श्रोफ और स्वामी रामानंद तीर्थ ने नांदेड़ में खादी ग्रामोद्योग की नींव रखी। तब से यह संस्था स्थानीय रोजगार और राष्ट्रीय गौरव का अहम केंद्र बन गई है।

कार्यालय अधीक्षक ज्ञानोबा सोलांके के मुताबिक, तिरंगा झंडा बनाने की प्रक्रिया बेहद सावधानी और समय लेकर होती है, जिसकी शुरुआत महीनों पहले हो जाती है। सबसे पहले बिना संसाधित खादी कपड़े को अहमदाबाद की बीएमसी मिल में भेजा जाता है, जो सरकार से स्वीकृत है। यहां कपड़े को तिरंगे के तीन रंगों में बुना जाता है। इसके बाद भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) के निर्देशों के अनुसार सख्त गुणवत्ता जांच होती है, फिर अशोक चक्र की स्क्रीन प्रिंटिंग, कटाई और सिलाई की जाती है। निर्माण प्रक्रिया की एक खास बात ‘गारदी’ रस्सी है, जिसका उपयोग झंडा बांधने में होता है। यह रस्सी हल्दी, सागौन, साल और शीशम जैसी लकड़ियों के मिश्रण से बनती है और मुंबई से मंगाई जाती है। पूरे निर्माण प्रक्रिया में कम से कम दो महीने लगते हैं, इसलिए पहले से योजना बनाना जरूरी होता है।
नांदेड़ निर्माण इकाई के प्रबंधक महाबलेश्वर माथपती ने बताया, “हमारा संगठन 1962 में शुरू हुआ था और 1993 से हम राष्ट्रीय ध्वज बना रहे हैं। केंद्र सरकार हमें कपास देती है। लातूर जिले के उदगीर में हमारी एक शाखा है, जहां 250 कताई और बुनाई कारीगर कपड़ा तैयार करते हैं। यह कपड़ा फिर नांदेड़ लाकर, रंगाई और ब्लीचिंग के लिए गुजरात भेजा जाता है और अंत में प्रिंटिंग और सिलाई के लिए वापस नांदेड़ आता है।” इस साल अब तक नांदेड़ इकाई में 10,000 से अधिक विभिन्न आकार के राष्ट्रीय ध्वज तैयार किए जा चुके हैं। 8 अगस्त तक 50 लाख रुपये के झंडे बिक चुके हैं और इकाई इस साल 1.5 करोड़ रुपये का कारोबार पार करने की राह पर है। स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस से पहले हर साल मांग बढ़ जाती है।
झंडे के आकार उनके इस्तेमाल पर निर्भर करते हैं। सबसे बड़ा झंडा 14×21 फीट का होता है, जो लाल किला और मंत्रालयों जैसी सरकारी इमारतों पर फहराया जाता है। 8×12 फीट का झंडा जिला कलेक्टर कार्यालय, 6×9 फीट का पुलिस आयुक्तालय और 4×6 फीट का तहसील कार्यालय में इस्तेमाल होता है। छोटे झंडे स्कूलों और कॉलेजों में वितरित किए जाते हैं। दिलचस्प बात यह है कि पूरे भारत में केवल चार केंद्रों को लाल किले के लिए झंडा बनाने की अनुमति है-नांदेड़ और मुंबई (महाराष्ट्र), हुबली (कर्नाटक) और ग्वालियर (मध्य प्रदेश)। माथपती ने गर्व से कहा, “हम राष्ट्रीय ध्वज बनाते समय गर्व महसूस करते हैं। यह हमारे लिए एक बड़ी जिम्मेदारी है और हम इस राष्ट्रीय कर्तव्य का हिस्सा बनकर सम्मानित महसूस करते हैं।”

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