दुर्लभ बीमारियों के लिए चार नई दवाएं जल्द ही बाजार में आने की उम्मीद: नीति सदस्य पॉल
नयी दिल्ली. नीति आयोग के सदस्य डॉ. वी के पॉल ने बुधवार को कहा कि दुर्लभ बीमारियों के लिए चार नई दवाएं जल्द ही बाजार में आने की उम्मीद है, जबकि सात बीमारियों के लिए पांच दवाएं पहले ही बाजार में आ चुकी हैं। इन दवाओं से मरीजों की परेशानी कम हो रही है। उन्होंने दुर्लभ बीमारियों पर उद्योग मंडल फिक्की और नीति आयोग द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित एक सम्मेलन में कहा कि स्थानीय कंपनियों द्वारा पेश जेनेरिक दवाओं से दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित लोगों को भारी बचत हुई है। वर्तमान में, दुर्लभ बीमारियों के लिए केंद्रीय तकनीकी समिति (सीटीसीआरडी) की सिफारिश पर राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति के अंतर्गत 63 दुर्लभ बीमारियां शामिल हैं। पॉल ने कहा, ‘‘सात बीमारियों के मामले में, हमने उल्लेखनीय प्रगति की है। इन सात बीमारियों में थैलेसीमिया, विल्सन रोग और सिस्टिक फाइब्रोसिस शामिल हैं... अब पांच दवाएं बाजार में उपलब्ध हैं।'' उन्होंने कहा कि चार अन्य दवाएं भी जल्द ही बाजार में आने वाली हैं। पॉल ने कहा कि नीति आयोग ने 2023 में 13 विकारों को प्राथमिकता के तौर पर चुना है।
औषधि विभाग के सचिव अमित अग्रवाल ने कहा कि सरकार, औषधि क्षेत्र के लिए पीएलआई योजना के तहत, आठ दुर्लभ बीमारियों के इलाज के लिए दवाओं के उत्पादन को समर्थन देने में सक्षम रही है। उन्होंने कहा कि सरकार का लक्ष्य दुर्लभ बीमारियों के इलाज को उच्च नीतिगत समर्थन वाले एक रणनीतिक प्राथमिक क्षेत्र बनाना है। नोवार्टिस के प्रबंध निदेशक और क्षेत्रीय अध्यक्ष अमिताभ दुबे ने कहा कि दुर्लभ बीमारियां दुनिया भर में 30 करोड़ से ज्यादा लोगों को प्रभावित करती हैं, जिनमें से सात से नौ करोड़ भारत में हैं। उन्होंने इस दिशा में हुई प्रगति को स्वीकार करते हुए दुर्लभ रोग प्रबंधन में मरीजों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिए निरंतर प्रयासों की आवश्यकता बतायी। दुबे ने कहा, ‘‘हमें एक ऐसा परिवेश बनाना होगा जो अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित और सक्षम बनाए, नियामक देरी को कम करे और नवाचार को महत्व दे ताकि उपचार भारतीय मरीजों तक तेजी से पहुंच सके।''
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