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राजनीतिक लाभ के लिए विरोध जताने के नाम पर सत्र को चलने नहीं देना ठीक नहीं है: शाह

नयी दिल्ली.  केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने रविवार को कहा कि संसद या विधानसभाएं चर्चाओं और परिचर्चाओं के स्थान हैं, लेकिन संकीर्ण राजनीतिक लाभ के लिए विरोध जताने के नाम पर सत्र को चलने नहीं देना ठीक नहीं है। शाह ने यह टिप्पणी ‘ऑल इंडिया स्पीकर्स कॉन्फ्रेंस' को संबोधित करते हुए की। इससे तीन दिन पहले संसद के मानसून सत्र के दौरान विपक्ष के विरोध प्रदर्शनों के बाद बार-बार व्यवधान और स्थगन के कारण बहुत कम कामकाज हो पाया। गृह मंत्री ने यह भी कहा कि जब संसद में सीमित चर्चा-परिचर्चा होती है, तो राष्ट्र निर्माण में सदन का योगदान प्रभावित होता है। उन्होंने कहा, ‘‘लोकतंत्र में चर्चा-परिचर्चा होनी ही चाहिए, लेकिन किसी के संकीर्ण राजनीतिक लाभ के लिए विरोध जताने के नाम पर सदन को चलने न दिया जाए, यह ठीक नहीं है।” शाह ने कहा, ‘‘विपक्ष को हमेशा संयमित रहना चाहिए। विरोध जताने के नाम पर अगर सदन को दिन-प्रतिदिन या सत्र-दर-सत्र चलने नहीं दिया जाएगा, तो यह ठीक नहीं है। देश को इस पर विचार करना होगा, लोगों को इस पर विचार करना होगा और निर्वाचित प्रतिनिधियों को इस पर विचार करना होगा।'' शाह ने कहा कि सभी परिचर्चाओं में कुछ न कुछ सार्थकता होनी चाहिए और सभी को अध्यक्ष पद की गरिमा व सम्मान बढ़ाने की दिशा में काम करना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘हमें जनता के मुद्दों को उठाने को लेकर एक निष्पक्ष मंच प्रदान करने के लिए काम करना चाहिए। सत्ता पक्ष और विपक्ष, दोनों के तर्क निष्पक्ष होने चाहिए। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सदन का संचालन संबंधित सदन के नियमों और विनियमों के अनुसार हो।'' हस्तिनापुर में महाभारत की पात्र द्रौपदी के अपमान का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि जब भी सदन की गरिमा से समझौता हुआ है, देश को भयावह परिणाम देखने को मिले हैं। गृह मंत्री ने स्वतंत्रता के बाद से भारत की लोकतांत्रिक परंपरा की सराहना की और कहा कि यहां लोकतंत्र की जड़ें इतनी गहरी हैं कि सत्ता बदलने के दौरान यहां खून की एक बूंद भी नहीं गिरी है, जबकि कई देशों में लोकतांत्रिक स्थिति समय बीतने के साथ-साथ खराब होती गई। उन्होंने कहा कि यदि संसद या विधानसभाओं में चर्चा नहीं होगी तो ये इमारतें बेजान बनी रहेंगी। उन्होंने कहा, "अध्यक्ष के नेतृत्व में सभी सदस्य इन भवनों में विचार व्यक्त करते हैं, तभी यह एक जीवंत इकाई बनती है, जो देश और राज्यों के हित में काम करती है।" स्पीकर को अभिभावक के साथ-साथ सेवक भी बताते हुए शाह ने कहा कि लोकतंत्र में लोगों की समस्याओं को सुलझाने के लिए विचार-मंथन सबसे अच्छा तरीका है। उन्होंने कहा कि किसी भी कानून का उद्देश्य हमेशा जनता का कल्याण, देश का समावेशी विकास, प्रशासनिक दक्षता सुनिश्चित करना, राष्ट्र की आंतरिक सुरक्षा और बाह्य सुरक्षा होना चाहिए। शाह ने केंद्रीय विधान सभा के पहले निर्वाचित भारतीय अध्यक्ष विट्ठलभाई पटेल को श्रद्धांजलि भी दी।
उन्होंने कहा कि 100 वर्ष पहले आज ही के दिन, महान स्वतंत्रता सेनानी विट्ठलभाई पटेल को केंद्रीय विधान सभा का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था, जिससे भारत के विधायी इतिहास की शुरुआत हुई। शाह ने कहा कि सरदार वल्लभभाई पटेल के भाई विट्ठलभाई पटेल का योगदान समय के साथ फीका पड़ गया।
उन्होंने कहा, अगर देश का स्वतंत्रता संग्राम महत्वपूर्ण था, तो देश चलाना और विधायी प्रक्रियाएं स्थापित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। विट्ठलभाई पटेल ने कठिन समय में भी लोकतंत्र की स्थापना और उसे मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हम सभी को इसे याद रखना चाहिए।'' विट्ठलभाई के बारे में बात करते हुए शाह ने कहा कि उन्होंने एक स्वतंत्र विधानसभा बनाई थी।
उन्होंने कहा कि कोई भी विधानसभा निर्वाचित सरकार के अधीन काम नहीं कर सकती, उन्हें स्वतंत्र होना चाहिए। गृह मंत्री ने कहा कि विट्ठलभाई ने कहा था कि विधानसभाओं के स्वतंत्र होने पर ही वहां होने वाली चर्चाओं की सार्थकता बनी रहेगी। शाह ने कहा कि ब्रिटिश काल में विट्ठलभाई पटेल ने स्वतंत्र विधायी विभाग की स्थापना का निर्णय लिया था, जिसे संविधान सभा ने भी स्वीकार किया था। उन्होंने कहा कि इसलिए, आज यह विभाग देश की सभी विधानसभाओं के साथ-साथ लोकसभा और राज्यसभा में भी पीठासीन अधिकारी के अधीन कार्य करता है। उन्होंने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष का पद अत्यंत महत्वपूर्ण है और सदन की प्रतिष्ठा की रक्षा करना तथा उसे बढ़ाना अध्यक्ष का दायित्व है और विट्ठलभाई पटेल ने इन कार्यों को बखूबी निभाया। शाह ने कहा कि विट्ठलभाई पटेल ने सदन में कई परंपराएं स्थापित कीं, जो आज विधायी कार्यों, विशेषकर अध्यक्ष महोदय के लिए मार्गदर्शक का काम करती हैं। उन्होंने कहा, "जब हम विट्ठलभाई पटेल की बात करते हैं, तो हम गुजरात के लोग गर्व से कहते हैं कि गुजरात ने दो महान व्यक्ति दिए हैं। पहले भाई, सरदार पटेल, जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गांधी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर दिन-रात काम किया। और दूसरे, विट्ठलभाई पटेल, ने भारत की विधायी परंपराओं की नींव रखी और आज के लोकतंत्र की मजबूत नींव रखी।
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